गुरुवार, 4 जून 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार कमाल जैदी वफ़ा की कहानी------ झूठी शान

                     
बरामदे में  पलंग पर लेटे हुक्का गुड़गुड़ा रहे इकबाल मियां के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ दिखाई दे रही थी । वह किसी गहरी चिंता में डूबे हुए थे ।उनके सामने कुर्सी पर बैठी उनकी बीवी सफिया उन्हें समझा रही थीं -देखिये पूरे मुल्क में कोरोना की बीमारी फैली हुई है, लॉक डाउन लगा हुआ है ऐसे में  गुलफाम भाई के चालीसवें की फातिहा बड़ी मस्जिद के इमाम साहब को बुलाकर पढ़वा दीजिये। कोई जलसा वगैरा मत कीजिये इससे खर्चा भी बचेगा और हम कानून का पालन करने वाले भी कहलायेंगे । फातेहा में पांच लोग हाथ उठायेंं या पचास।  अल्लाह ताला सब जानता है उसके पास सवाब की कमी थोड़े है वो गुलफाम भाई को भरपूर सवाब देगा फिर हमारे गुलफाम भाई तो वैसे ही खुदा के नेक बन्दे थे। उन्होंने नमाज, रोजा ,हज, जकात वगैरा अल्लाह के किसी भी फरमान में कोताही नही की है और सबसे बढ़कर वह सबके हमदर्द थे। उन्होंने कभी किसी का दिल नही दुखाया। हर किसी की मदद करते थे ऐसे बन्दों से तो अल्लाह वैसे ही खुश रहता है। सफिया की बात सुनकर इकबाल मियां कहने लगे बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन बेगम दीन से दुनिया भारी है। लोग क्या कहेंगे, रिश्तेदार ताने देंगे कि एक ही भाई था उसकी चार बीघा जमीन तो लेली और उनका चालीसवाँ तक सही से नही किया । कहेंगे लॉक डाउन था तो क्या हुआ बाहर वालों को न सही गांव के लोगों को ही बुलाकर फातेहा का खाना कर देते । मीट बंद था तो चिकन तो मिल ही जाता थोड़ा महंगा होता तो क्या गुलफाम भाई की जमीन भी तो मिलेगी ।  मियां की बात सुनकर बीवी सफिया फिर समझाने लगी देखिये लोगो की बातों पर न जाइये लोगो की क्या वह तो खाना खाने के बाद भी बातें बनाएंगे । कोई कहेगा चिकन में नमक कम था तो कोई कहेगा रोटी ठंडी थी  फिर गुलफाम भाई की बीमारी में ही सारा पैसा खतम हो चुका है। उनकी जमीन भी आप साहूकार के पास गिरवीं रखकर उनके इलाज में लगा चुके है । ऐसे में और कर्जा करके  चालीसवें की फातेहा पर बड़ा खाना करना अक्लमंदी नही है लेकिन इकबाल मियां पर तो सफिया की बातों का कुछ असर ही नहीं हुआ। वह अपने तर्क देने लगे कि गांव वाले क्या सोचेंगे । उनके बाप दादा की शान मिट्टी में मिल जाएगी फिर किसी को क्या पता उन पर कितना उधार है। धीरे धीरे सब अदा कर देंगे लेकिन एक बार गई इज्जत बनाने में सालों लग जाते है ।इकबाल मियां अपनी ज़िद पर अड़े रहे और अगली जुमेरात पर उन्होंने बड़े भाई गुलफाम के चालीसवें की फातेहा बड़ी धूमधाम से की। लॉक डाउन के चलते छिपकर एक क्विंटल चिकन मंगाया ।शहर से नानवाई बुलाया ।जलसे के बाद फातेहा हुई और फिर चालीसवें की दावत शुरू हो गई। चालीसवें पर भी लोग दुखी होने के बजाय हँस हँस कर बतिया रहे थे ।तभी सायरन बजाती पुलिस की गाड़ियों ने गांव में प्रवेश किया और लॉक डाउन के उल्लंघन में इकबाल मियां को साथ ले गई। तमाम गांव में चर्चा हो गई कि प्रधानी चुनाव की रंजिश में सरवत खांं ने इकबाल मियांं को पकड़वा दिया। उधर, सफिया माथे पर हाथ रखे बड़बड़ा  रही थी मियां अगर झूठी शान दिखाने में न पड़कर मेरी बात मान लेते तो मुझे यह दिन न देखना पड़ता।

✍️  कमाल ज़ैदी "वफ़ा"
सिरसी (सम्भल)
9456031926

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