पाप की गठरी उठाकर क्या मिलेगा ?
झूठ का लेकर सहारा मत बढ़ो तुम,
झूठ को सिर पर चढ़ाकर क्या मिलेगा?
भावना मन में अगर दूषित रहे तो,
रोज गंगा में नहाकर क्या मिलेगा?
पीर गैरों की अगर चुभती न तुझको,
आंख से पानी बहाकर क्या मिलेगा?
जीत जाओगे जहां को प्यार से तुम,
नफरतों को दिल लगाकर क्या मिलेगा?
हार में भी है छिपी निज जीत तेरी,
जूझ तू मन को सताकर क्या मिलेगा?
रोज रिश्तों में भला तकरार क्यों है?
जो रहें अपने गिराकर क्या मिलेगा?
आग क्यों है लग रही हर एक घर में,
यूं चरागों को जलाकर क्या मिलेगा?
"नवल" जख्मों को कभी भी मत कुरेदो,
घाव को गहरा बनाकर क्या मिलेगा?
(2)
मिटाना चाहता है गर मिटा फिर क्यों नहीं देता।
सितमगर है अगर मेरा सजा फिर क्यों नहीं देता।
वफा मैंने निभाई है,सदा तन-मन लुटा करके
अगर तू बेवफा है तो,दगा फिर क्यों नहीं देता।
सताता भी नहीं मुझको,जताता भी नहीं मुझको,
ये कैसी बेकरारी है,बुझा फिर क्यों नहीं देता।
छिपाता इश्क़ क्यों मुझसे,दिवाना हूँ सदा तेरा,
छिपा है इश्क़ दिल में जो,जता फिर क्यों नहीं देता।
सदा हारा लड़ाई मैं,मुहब्बत की मिरे हमदम,
जरा दिल हारकर अपना,जिता फिर क्यों नहीं देता।
कहीं पाबंदियां तेरी,न करदें अब मुझे पागल,
लिपट कर के गले आंसू,बहा फिर क्यों नहीं देता।
'नवल' मासूमियत तेरी,बड़ी ही क़ातिलाना है,
नयन तेरे कटीले हैं,चुभा फिर क्यों नहीं देता।
(3)
प्यार में कब हुआ है नफ़ा देखिए।
प्यार में कब मिली है दवा देखिए।
प्यार सदियों से' जाता रहा है छला,
प्यार को छल रहे बेबफ़ा देखिए।
प्यार पाने की' हसरत सभी में मगर,
प्यार में जिंदगी को लुटा देखिए।
प्यार के नाम पर वासना ही दिखे,
प्यार पावन नदी है बहा देखिए।
चैन मिलता नहीं जिंदगी में अगर,
प्यार को रूह में भी बसा देखिए।
प्यार करना सरल पर निभाना कठिन,
चंद गिनती मिलें बाबफ़ा देखिए।
प्यार प्यारा लगे रूह में जब बसे,
रूह से रूह को मत जुद़ा देखिए।
प्यार की डोर से बांध लो ये जहां,
प्यार से पत्थरों को हिला देखिए।
प्यार होता खुदा बंदगी तुम करो,
जिंदगी में 'नवल' फिर मज़ा देखिए।
✍️ नवल किशोर शर्मा 'नवल'
बिलारी, मुरादाबाद
मो नं - 9758280028
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