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गुरुवार, 28 जुलाई 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का एकांकी .... शहीदे आजम भगत सिंह । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में द्वितीय स्थान पर रहा ।


पात्र परिचय


1.भगतसिंह -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र  23 वर्ष

2.सुखदेव -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 24 वर्ष

3.राजगुरु -स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, उम्र 23 वर्ष

4.जेलर

5.अंग्रेज अफसर

6.छतरसिंह-कारिंदा

7.सरदार किशन सिंह-भगत सिंह के पिता

8.विद्यावती कौर-भगत सिंह की मां

9.कुलतार-भगत सिंह का छोटा भाई

सूत्रधार - सांडर्स की हत्या एवं असेंबली में बम विस्फोट के अपराध में दफा 121,दफा 302 के तहत फांसी की सजा! सजायाफ्ता कैदी भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु लाहौर की जेल में बंद हैं । पूरे देश में इन को दी जाने वाली फांसी की सज़ा के विरोध में कोहराम मचा हुआ है जिससे अंग्रेजों की नींद उड़ी हुई है।

             दृश्य-1-

(लाहौर जेल का गेट जहां पर भगत सिंह के माता-पिता और छोटा भाई मिलाई करने आते हैं)

कुलतार सिंह- सतश्रीअकाल! प्राह जी

(भगत सिंह कुलतार सिंह के सर पर हाथ फेरता है)

भगत सिंह- बाबूजी आपकी बहुत याद आ रही थी!

सरदार किशन सिंह- क्यों? क्या हुआ पुत्तर?

भगत सिंह-मैंने जो ढेर सारी चिट्टियां आपको लिखीं उनमें से कुछ ने आपका दिल दुखाया होगा!मुझे माफ़ कर देना!

सरदार किशन सिंह- ओए ऐसा मत कह पुत्तर तेरे जाने के बाद वो चिट्ठियां तो मेरे पास कीमती खजाने की तरह हैं तेरे जाने के बाद उन्हीं के सहारे तो जिऊंगा मैं ।

(यह सुनकर छोटा भाई कुलतार रोने लगता है!)

भगत सिंह- ओए कुलतार तू रो रहा है देख मैं तो बेटे का  फर्ज निभा नहीं पाया ,मेरे जाने के बाद तूने ही तो बेटे का फर्ज निभाना है मां बाबूजी की सेवा करनी है तुझे हौसला रखना है। मुसीबतों से घबराना मत!

कुलतार सिंह- जी प्राह जी।

भगत सिंह- मां नहीं आई?

सरदार किशन सिंह- वह बाहर खड़ी है मैं जाऊंगा तो आएगी पर अभी तो मेरा ही मन नहीं भरा...

(दोनों चले जाते हैं मां मिलाई करने आती है)

विद्यावती कौर -क्या हुआ बेटा ?आज तू बड़ा उदास लग रहा है ?.

भगत सिंह- कुलतार की आंखों में आसूं देख कर बड़ा दुख हुआ मां एक कसक रह गयी!

विद्यावती कौर -छोटा है समझता नहीं कि उसका वीर जी कितने ऊंचे मकसद के लिए कुर्बानी दे रहा है!(निस्वास छोड़कर )बेटा मरना तो एक दिन हम सबको ही है लेकिन मौत ऐसी हो जिसे सब याद  रखें!

भगत सिंह- लेकिन मां, एक कसक रह गयी! दिल में जो जज्वात थे उसका हजारवां हिस्सा भी मैं देश और इंसानियत के लिए पूरा नहीं कर पाया!

विद्यावती कौर -सब कह रहें कि ये हमारी आखिरी मुलाकात है, ...पर आज तो ३ मार्चं ही है अभी तो बहुत दिन पड़े हैं।....आज के बाद मैं तुझे कभी नहीं देखूंगी?

भगत सिंह- मैं दुबारा जनम लूंगा मां! अंग्रेजों के बाद जो उनकी कुर्सियों पर बैठेंगे वह भी  हमारे मुल्क को बहुत तकलीफ़ पहुंचायेंगे मैं दुबारा जन्म लूंगा  मां ! मैं वापस आऊंगा! 

विद्यावती कौर- लेकिन, मैं तुझे  पहचांनुगी कैसे?

भगत सिंह- तेरे बेटे के गले पर एक निशान होगा मां तू पहचान लेगी!

विद्यावती कौर -जाने से पहले मैं कुछ सुनना चाहती हूं! ... भगत सिंह : इंकलाब जिंदाबाद! इंकलाब जिंदाबाद!!... इंकलाब जिंदाबाद!!!

(भगतसिंह की मां चली जाती है

             दृश्य-2

     (लाहौर जेल की  कालकोठरी, जहां भगत सिंह,सुखदेव, और राजगुरु एक साथ बैठे हुए हैं।)

राजगुरु-यार भगत ! मां मिलकर गई थी बहुत रो रही थी मैंने कहा शहीद की मां को रोना नहीं चाहिए पर मां का कलेजा कब मानता है!....

भगत सिंह-

दीदार करने को,

 ये दिल बेकरार है"

"ऐ मौत जल्दी आ! ,

हमें तेरा इन्तजार है।

हमारा निर्णय सही है हमें अंग्रजों से फांसी से माफी नहीं चाहिए हमारा देश तभी  जागेगा जब हम हंसते हंसते फांसी पर झूल जाएंगे!

सुखदेव--सही कहा भाई फांसी से स्वतंत्रता के लिए देश में बड़ा संग्राम छिड़ जाएगा और इस प्रकार हमारी भारत माता को इन फिरंगियों  से आजादी मिल जाएगी।

(तीनों मिलकर गाते हैं--)

"वक्त आने दे बता देंगे ,

तुझे ए आसमां ! 

हम अभी से क्या बताएं 

क्या हमारे दिल में है! 

सरफ़रोशी की तमन्ना ,

अब हमारे दिल में है।......"

दृश्य 3

 23 मार्च शाम का समय

(तभी छतर सिंह आता है और गीता का गुटका भगत सिंह को देता है )

छतर सिंह--लो सरदार जी इसे पढ़ लो! परमात्मा को याद करो!

भगत सिंह---अरे छतरसिंह जी परमात्मा तो हमारे दिल में है अब इसे लेकर क्या करेंगे  जब वह हमारे अंदर है तो उसे क्या याद करना"? "आज क्या तारीख है?"

छतर सिंह--"23 मार्च!"

भगत सिंह--"कल क्या तारीख है?"

छतर सिंह-"अरे बेटा ! कल तो  बहुत दूर है,पर तू घबरा मत सब ठीक हो जायेगा,।

भगत सिंह -फिर छतर सिंह जी आप तो इतने सालों से जेल में हो आपने तो न जाने कितने लोगों को फांसी चढ़ते हुए देखा है, आप क्यों घबरा रहे हो ? आपके सामने मेरे जैसे जाने कितने आए कितने गए?

छतर सिंह - "नहीं बेटा ! तेरे जैसा न कोई आया न कोई आएगा !"

(तभी जेल में अंग्रेज ऑफिसर का प्रवेश होता है...)

अंग्रेज अफसर -(जेलर से) "भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव की आज ही फांसी होनी है। फांसी की तैयारी करो! अंग्रेजी सरकार का हुक्म है!"

जेलर--"मगर सर फांसी तो कल 24 मार्च को होनी थी ऐसा क्यों किया जा रहा है?"

अंग्रेज अफसर-"आज पूरे देश के लोग रात को सोएंगे नहीं सुबह होते होते जेल के फाटक के बाहर इकट्ठे हो जाएंगे आन्दोलन करेंगे और भगत सिंह ,राजगुरु, सुखदेव की अर्थी के साथ जुलूस निकालेंगे  अंग्रेजी गोरमेंट इस बात के लिए तैयार नहीं है! इससे सिक्योरिटी को बहुत बड़ा खतरा हो सकता है! इसलिए फांसी आज ही दी जानी है!"

जेलर-"सर क्या मतलब ? भगत सिंह मरने के बाद भी सिक्योरिटी के लिए खतरा हो सकता है!परंतु यह तो सरासर अन्याय है सर! ऐसा नहीं होना चाहिए सर यह तो गैरकानूनी होगा..! हिस्ट्री में कभी ऐसा नहीं हुआ!"

 आपको पता है गांधी जी और लार्ड इरविन के बीच हुए समझौते के अनुसार तो भगत सिंह को रिहा कर देना चाहिए था परंतु ऐसा हुआ नहीं..... यह अन्याय है आप लोगों ने कभी चाहा ही नहीं कि भगत सिंह को रिहा कर दिया जाए नहीं तो आप लोग भगत सिंह ,सुखदेव, राजगुरु को बचा सकते थे!

अंग्रेज अफसर- "यह हमारा कानून है जब चाहे तोड़ मरोड़ सकते हैं तुम कौन होते हो? तुम अंग्रेजी सरकार के नौकर हो जो कहा जाए वही करो!"

जेलर- "बिल्कुल सही कहा सर आपने ठीक है सर  मैं नौकर हूं!" "छतर सिंह ! भगत सिंह ,राजगुरु, सुखदेव के अंतिम स्नान की तैयारी करो! उनको आज ही फांसी होनी है!"

छतर सिंह- "अरे सरकार क्या? क्या कह रहे हो? फांसी 24 मार्च की शाम को दी जानी थी !एक दिन पहले 23 मार्च को ही आखरी दिन तो मां-बाप का दिन होता रिश्तेदारों के मिलने दिन होता है!"

..... मिलने के लिए, कल वो लोग मिलने आएंगे तो क्या अपने अपने लोगों को आखिरी बार देख भी नहीं सकेंगे? क्या लाशों से मिलेंगे? ऐसा मत करो सरकार यह अन्याय है ऊपर वाले से डरो!.."..

अंग्रेज अफसर -"अरेस्ट हिम!"

(पुलिस वाले उसे पकड़ने लगते हैं)

छतरसिंह- (चीखता है... चिल्लाता है..... गालियां बकता है) तुम अंग्रेजो का सत्यानाश हो!.... फिरंगी गोरों तुम्हें बहुत भारी पड़ेगा !.... सालो तुमने बहुत अन्याय किया है कमीनों तुम्हें हमारा भारत छोड़कर जाना होगा!.... कहीं ऐसा होता है जैसा तुमने किया?

(पुलिस वाले छतर सिंह को घसीटते हुए ले जाते हैं।)

जेलर- ( भगत सिंह से)- "तैयार हो जाओ फांसी का हुक्म हो गया है !"

भगत सिंह-(किताब के पन्ने पलटते हुए) एक क्रांतिकारी को दूसरे क्रांतिकारी से मिल तो लेने दो! वह लेनिन की पुस्तक पढ़ रहे थे.... दो पन्ने शेष रह गए हैं पढ़ लूं...अच्छा चलो ! छोड़ो फिर कभी सही!...."

(भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तैयार होकर निकलते हैं !

 फांसी के लिए गीत गाते झूमते हुए चलते हैं---)

अर्थी जब उठेगी शहीदों की ....ओ.....ओ

ऐ वतन वालों तुम सब्र खोना नहीं....

हंसते हंसते विदा हमको कर देना

आंसुओ से आंखें भिगोना नहीं....!

इतना वादा करो जब आजादी मिले

उस समय तुम हमें भूल जाना नहीं...

पार्श्व में रुदन का संगीत गूंजने लगता है...

नाचते गाते हुए फांसी के फंदे तक चले जाते हैं

" मेरा रंग दे बसंती चोला माय ए रंग दे बसंती चोला.... आगे बढ़ते हैं !...

आजादी को चली बिहाने,

हम मस्तों  की टोलियां!....

( पुलिस वाले उनको आगे ले जाते हैं फांसी के फंदे तक जाते हुए गाने गाते चले जाते हैं अंत में गाते हैं सर सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है!....)

जेलर- "भगत सिंह कोई आखिरी ख्वाहिश?"

भगत सिंह-  "हमारी आखिरी ख्वाहिश तो आप पूरी कर नहीं सकते हमारे हाथ खोल दीजिए जिससे हम आपस में एक दूसरे से आखरी बार मिल सकें! फिर जाने कब मिलना हो!"

जेलर- "इनके हाथ खोल दो"!

(तीनों के हाथ खोल दिए जाते हैं, तीनों एक-दूसरे से गले मिलकर खूब लिपट लिपट चिपट कर मिलते हैं और जोर-जोर से नारे लगाते हैं....)

 "इंकलाब जिंदाबाद!"

 "इंकलाब जिंदाबाद!!" 

  "इंकलाब जिंदाबाद !!!"

"भारत माता की जय !"

"वंदे मातरम!"

 (फिर उनको पकड़ कर पुलिस वाले बलपूर्वक अलग कर देते हैं। तीनों फांसी से पहले  फांसी के फंदे  को चूमते हैं।सभी के मुंह पर काला नकाब चढ़ा दिया जाता है ,वे ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं)

 "इंकलाब जिंदाबाद !"

" इंकलाब जिंदाबाद !! "

( तीनों को फांसी का फंदा लगा दिया जाता है और जेलर के आदेश पर जल्लाद फांसी के तख्ते का खटका खींच देता है 7 बज कर 33 मिनट पर फांसी दे दी जाती है। तीनों की गर्दनें लटक जाती हैं।

नेपथ्य के पीछे से लोगों के चीखने, चिल्लाने रोने की आवाज़ें आने लगती हैं। रुदन का संगीत गूंजने लगता है.... उनका यह बलिदान पूरे देश में हाहाकार बनकर जन-जन को आंदोलित कर देता है।)

विद्यावती कौर:  मेरा भगत चला गया... पर तुम ही में से मेरा भगत है कोई ? कौन है ? वह कौन है ? कौन है ?

✍️ अशोक विद्रोही

412, प्रकाश नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 82 18825 541

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी ....क्रांतिवीर हेडगेवार । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के वरिष्ठ वर्ग में तृतीय स्थान पर रहा ।



 पात्र परिचय 

डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार

अंग्रेज न्यायाधीश श्री स्मेली 

डा० हेडगेवार के वकील श्री बोबड़े

पुलिस इन्स्पेक्टर श्री गंगाधर राव आबा जी ,

कुछ अन्य वकील, 

दर्शक,

पुलिसकर्मी 

 काल: 1921 ईसवी

 स्थान : न्यायालय, नागपुर।

 दृश्य 1

[ न्यायाधीश के आसन पर श्री स्मैली बैठे हुए हैं। वह काफी परेशान दीख रहे हैं। माथे पर त्यौरियाँ हैं। वह अपने दाहिने हाथ की दो उंगलियाँ भौहों के मध्य रखकर चिंता में डूब जाते हैं। अदालत में काफी शोर हो रहा है। स्मैली हथौड़ा खटखटाते हैं। ] 


 स्मैली: आर्डर-आर्डर ! केशवराव बलिराम हेडगेवार ने राजद्रोह का अपराध किया है। उसका भाषण हिन्दुस्तान के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ भड़काने का था।

 बोबड़े: योर ऑनर ! यह अभी साबित नहीं हो सका है कि डॉक्टर हेडगेवार राजद्रोह के दोषी हैं। अपने देश की आजादी की इच्छा राजद्रोह नहीं कही जा सकती।

 स्मेली : जो कानून और गवाह कहेंगे, अदालत तो उसी पर चलेगी (व्यंगात्मक शैली में हाथ और सिर हिलाते हुए आँखें मटकाता हुआ वह कहता है।) 

 बोबडे:: मैं पुलिस इन्स्पेक्टर आबाजी से कुछ जिरह करना चाहता हूँ। कृपया इजाजत दें ।

 स्मैली: इजाजत है।

[पुलिस इन्स्पेक्टर आबा जी गवाह के कटघरे में आते हैं।] 

बोबड़े : इंस्पैक्टर ! क्या आप समझते हैं कि डॉक्टर हेडगेवार अंग्रेजों के खिलाफ व्यक्तिगत द्वेष और हिंसा के लिए जनता को उकसा रहे थे ?

 स्मैली : (तेजी से): यह प्रश्न अभियोग से मेल नहीं खाता ।

 बोबड़े : (इन्स्पैक्टर से ) खैर ! यह बताइये ,डॉक्टर हेडगेवार ने कोई ऐसी बात की जिससे लूटमार, आगजनी होने या संविधान और न्याय व्यवस्था समाप्त होने का खतरा हो ? 

 स्मैलो: यह प्रश्न असंबद्ध है।

 बोबड़े: इन्स्पेक्टर ! हेडगेवार ने इसके अलावा तो अपने भाषणों में कुछ नहीं कहा कि उन्हें देश की आजादी चाहिए।

 स्मैली : आप नही पूछ सकते ।

 बोबड़े : ( गुस्से में ) इन्स्पेक्टर साहब ! डॉक्टर हेडगेवार सिर्फ इतना ही तो जनता से कह रहे थे कि हिन्दुस्तान, हिन्दुस्तान के लोगों का है ?

 स्मैली: मैं आपको यह सवाल नहीं पूछने दे सकता। आप गवाह से बेकार के सवाल पूछे जा रहे हैं। 

 बोबड़े : (गुस्से में भरे हुए) न्यायाधीश मुझे गवाह से जिरह ही नहीं करने दे रहे हैं। यह अदालत ही नहीं, कानून का मजाक है । [पैर पटकते हुए बोबड़े कचहरी से बाहर चले जाते हैं

दृश्य 2

[ डा० हेडगेवार और श्री बोबड़े एक निजी कक्ष में बैठे हुए बातें कर रहे हैं। बोबड़े वकीलों का-सा काला चोगा पहने हैं। हेडगेवार सफेद धोती-कुर्ता पहने हैं। उनकी बड़ी काली मूँछें हैं तथा बलिष्ठ शरीर है। आयु लगभग 32 वर्ष है।]

 बोबड़े : जैसी भाषा में आपने यह मुकदमा दूसरी अदालत में भेजे जाने का आवेदन-पत्र दिया है, उससे लगता नहीं कि काम बनेगा । 

डॉक्टर हेडगेवार : अंग्रेजों से हम भारतीयों को न्याय की आशा करना व्यर्थ है।

 बोबड़े : तो फिर आप अपना बचाव क्यों कर रहे हैं ? 

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं बचाव नहीं कर रहा। स्वराज्य-संघर्ष में जेल जाना मेरे लिए गौरव की बात होगी । 

 बोबड़े : फिर ?

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं तो अदालत को एक जनसभा में बदलना चाहता हूँ और चाहता हूँ कि अदालत के मंच से हम अंग्रेज सरकार की अपवित्रता और असहयोग आंदोलन के उद्देश्य धूमधाम से गुंजित कर दें। 

 बोबड़े : बड़े धन्य है आप डाक्टर जी ! (हाथ जोड़ते हुए) राष्ट्र आपकी तेजस्वी प्रवृत्ति और त्यागमय जीवन-साधना को सदा स्मरण करेगा । आप सचमुच क्रांतिवीर हैं। 

 डॉक्टर हेडगेवार : यह प्रताप भारत की धरती का है। हम सब उसी भारत माता को प्रणाम करते हैं। (वह दोनों हाथ जोड़कर धरती को प्रणाम करते हैं।)

 दृश्य 3

[ अदालत में स्मैली न्यायाधीश के आसन पर उपस्थित है। ]

 स्मैली: मिस्टर हेडगेवार ! आपके मुकदमे को मैं ही सुनुँगा । दूसरी अदालत में मुकदमा भेजने की आपकी अर्जी कलेक्टर साहब के यहाँ से खारिज हो गयी है।

 डॉक्टर हेडगेवार : मैं पहले से जानता था कि अंग्रेजों के राज में नियम और न्याय के अनुसार भारतीयों से बर्ताव कभी नहीं हो सकता। 

 स्मैली (दाँतों को पीसता हुआ) : अंग्रेजों के न्याय पर शक करते हो ?

 डॉक्टर हेडगेवार(व्यंग्यात्मक लहजे में) जो पराये देश में मनमाने ढंग से कब्जा करके बैठ जायें, उनके न्याय कर सकने पर भला कौन शक कर सकता है ? 

[ हेडगेवार के कहने का तात्पर्य था कि अंग्रेज न्याय कर ही नहीं सकते। मगर स्मैली को समझ में स्पष्ट नहीं हो पाया, सो वह उलझा-सा रह गया और अपने बाल सहलाने लगा।]

 स्मैली : (थोडी देर बाद) आपका वकील क्या अब कोई नहीं होगा ? मिस्टर बोबड़े भी नहीं दीख रहे हैं।

 डॉक्टर हेडगेवार: सही बात कहने के लिए मैं अकेला ही काफी हूँ। भारत में अंग्रेजी राज से जूझने के लिए मेरी भुजाओं में अभी काफी दम है। 

 स्मैली: मुकदमे के बारे में आप कुछ कहना या पूछना चाहेंगे ?

 डॉक्टर हेडगेवार : हाँ ! मैं इन्स्पेक्टर गंगाधर राव आबाजी से जिरह करना चाहूँगा।

[ इन्स्पेक्टर आबाजी गवाहों के कठघरे में लाये जाते हैं ]

 डॉक्टर हेडगेवार : क्यों जी ! बिना टार्च के अंधेरे में आपने मेरे भाषण की रिपोर्ट कैसे लिख ली ? 

 आबाजी : मेरे पास टॉर्च थी !

 डॉक्टर हेडगेवारः (कड़ककर, आँखों में आँखें डाल कर ) जरा फिर से तो कहो!

 आबाजी : (मुँह लटकाकर)  आप एक मिनट में करीब बीस-पच्चीस शब्द बोलते थे, मैं वह आधे-अधूरे लिख लेता था।

 डॉक्टर हेडगेवार: (स्मैली की ओर मुड़कर) मेरे भाषण में प्रति मिनट औसतन दो सौ शब्द रहते हैं। ऐसे नौसिखिए रिपोर्टर केवल कल्पना से ही मेरे भाषण को लिख सकते हैं।

 आबा जी : (हड़बड़ाकर) जो मेरी समझ में नहीं आया, दूसरों से पूछ कर लिख लेता था।

 डॉक्टर हेडगेवार : (स्मैली से) मेरे भाषण की रिपोर्ट लिख सकने में इन्स्पेक्टर साहब की परीक्षा की अनुमति दी जाए । ताकि जाना जा सके कि यह कितने शब्द लिख सकते हैं। 

 स्मैली: (घबराकर) नहीं-नहीं-नहीं। यह जरूरी नहीं है।

 डॉक्टर हेडगेवार : मैंने तो अपने भाषणों में सारे हिन्दुस्तान को यही बताया कि जागो देशवासियों ! मातृभूमि को दासता के बंधनों से मुक्त कराओ ।

 स्मैली : आप जानते हैं आप क्या कह रहे हैं ?

 डॉक्टर हेडगेवार: मैंने यही कहा कि हिन्दुस्तान हम हिन्दुस्तानवासियों का है और स्वराज्य हमारा ध्येय है।

 स्मैली : आप जो कुछ कह रहे हैं, उसके मुकदमे पर नतीजे बुरे होंगे ।

 डॉक्टर हेडगेवार: जज साहब ! एक भारतीय के किए की जाँच के लिए एक विदेशी सरकार न्याय के आसन पर बैठे, इसे मैं अपना और अपने महान देश का अपमान समझता हूँ ।

 स्मैली : मिस्टर हेडगेवार ! आप न्याय का मजाक उड़ा रहे हैं । 

 डॉक्टर हेडगेवार; हिन्दुस्तान में कोई न्याय पर टिका शासन है, ऐसा मुझे नहीं लगता ।

 स्मैली : (आँखें फाड़कर) क्या ?

 डॉक्टर हेडगेवार : शासन वही होता है जो जनता का हो, जनता के द्वारा हो, जनता के लिए हो। बाकी सारे शासन धूर्त लोगों द्वारा दूसरे देशों को लूटने के लिए चलाए गए धोखेबाजों के नमूने हैं।

 स्मैली : (हथौड़ा बजाकर गुस्से में चीखकर) मिस्टर हेडगेवार !

 डॉक्टर हेडगेवार : हाँ जज साहब ! मैंने हिन्दुस्तान में यही अलख जगाई कि भारत, भारतवासियों का है और अगर यह कहना राजद्रोह है, तो हाँ ! मैंने राजद्रोह किया है । गर्व से राजद्रोह किया है।

 स्मैली: बस - बस ! और कुछ न कहना !

 डॉक्टर हेडगेवार : मैंने इतना और कहा था जज साहब ! कि अब अंग्रेजों को सम्मान सहित भारत छोड़कर घर वापस लौट जाना चाहिए।

(दर्शक-वर्ग की ओर से तालियों की आवाज आती है) 

 स्मैली : (चीखकर) आर्डर - आर्डर । अदालत में दिया जा रहा  हेडगेवार का यह बचाव-भाषण तो इनके मूल-भाषण से भी ज्यादा राजद्रोहपूर्ण है।

 डॉक्टर हेडगेवार : (केवल हँस देते हैं । )

 स्मैली : (जल-भुनकर) हेडगेवार के भाषण राजद्रोहपूर्ण रहे है। इसलिए अदालत के हुक्म से इन्हें एक साल तक भाषण करने से मना किया जाता है और एक-एक हजार की दो जमानतें और एक हजार रुपये का मुचलका माँगा जा रहा है।

 डॉक्टर हेडगेवार : आपके फैसले कुछ भी हों, मेरी आत्मा मुझे बता रही है कि मैं निर्दोष हूँ । विदेशी राजसत्ता हिन्दुस्तान को ज्यादा दिन गुलाम नहीं रख पाएगी। पूर्ण स्वतंत्रता का आन्दोलन शुरू हो गया है। हम स्वराज्य लेकर रहेंगे। आपकी माँगी जमानत देना मुझे स्वीकार नहीं है ।

 स्मैली: अच्छा ! अगर ऐसा है, तो अदालत  हेडगेवार को एक वर्ष का परिश्रम सहित कारावास का दण्ड देती है।

 डॉक्टर हेडगेवार : ( हाथ उठाकर नारा लगाते हैं) वन्दे मातरम ! वन्दे मातरम !

(अदालत में उपस्थित दर्शक-वर्ग भी वंदे-मातरम कहना आरम्भ कर देता है। डॉक्टर हेडगेवार दो पुलिस वालों के साथ हँसते हुए कारावास जाने के लिए अदालत से बाहर आते हैं। अपार भीड़ उन्हें फूलमालाओं से लाद देती है ]

 डॉक्टर हेडगेवार : (भीड़ को संबोधित करते हुए) पूर्ण स्वातंत्र्य हमारा परम ध्येय है। देशकार्य करते हुए जेल तो क्या कालेपानी जाने अथवा फाँसी के तख्त पर लटकने को भी हमें तैयार रहना चाहिए। हम अब गुलाम नहीं रहेंगे । भारत माता जंजीरों में जकड़ी नहीं रहेगी। आजादी मिलेगी, जरूर मिलेगी, हम उसे लेकर रहेंगे।

 [नारे गूँज उठते हैं : भारत माता की जय !

 डॉक्टर हेडगेवार की जय ! ]


✍️ रवि प्रकाश  

बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) 

रामपुर  244901

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451 

 

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर का एकांकी ....मुखबिर । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के कनिष्ठ वर्ग में द्वितीय स्थान पर रहा ।


पात्र
-

1-सुरेश उम्र 16/17 वर्ष

2-महेश उम्र 15 वर्ष

3-गणेश उम्र 14/15 वर्ष

4-शंकर  उम्र 14 वर्ष

5- भोला उम्र 12 वर्ष

6- मुरारी गौशाला का सेवक उम्र 40/45 साल


दृश्य 1

( शाम का समय है गाँव से बाहर गोशाला का दृश्य है।शाम के झुकमुके में कुछ बच्चे गौशाला के अंदर आते दिखाई देते हैं। अंदर चार लोग आकर ईंट और पत्थर के टुकड़ों पर बैठे हुए हैं इनकी उम्र 12 से 16 वर्ष के बीच है। इनके बदन पर हाथ के सिले चाक वाले बनियान और कमर में फ़टी पुरानी आधी धोती बंधी हुई है। एक लड़का जो उम्र में 16/17 वर्ष का दिखाई दे रहा है पतला दुबला इकहरा बदन। चेहरे पर बहुत गम्भीरता। चाक का कुर्ता और धोती पहने हुए एक ऊँचे मिट्टी के ढेर पर बोरी बिछा कर उनके मुखिया की तरह बैठा हुआ है। उसके सामने चार लड़के बैठे बहुत गम्भीरता से उसके कुछ बोलने का इंतजार कर रहे हैं। इन सभी की भावभंगिमा इतनी दृढ़ है कि ये सभी बहुत परिपक्व नज़र आ रहे हैं।)

 सुरेश- साथियों, जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि नेता जी आजकल हमारे देश को इन गोरों से आज़ाद करवाने के लिए एक सेना बना रहे हैं और उन्होंने उसका नाम रखा है 'आज़ाद हिंद फौज'।कल शाम को मैंने रेडियो पर उनका संदेश सुना जिसमें वे कह रहे थे 'प्यारे देशवासियों आज़ादी दी नहीं जाती बल्कि ली जाती है। कोई भी अपने गुलाम को स्वेच्छा से कभी मुक्त नहीं करना चाहता। किन्तु परिस्थितियों का निर्माण करके उसे मुक्त करने पर विवश किया जा सकता है। आज हमारे अंदर बस एक ही इच्छा होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके; एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के खून से प्रशस्त हो सके।ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी स्वतंत्रता का मोल अपने खून से चुकाएं। हमें अपने बलिदान और परिश्रम से जो आज़ादी मिलेगी, हमारे अंदर उसकी रक्षा करने की ताकत होनी चाहिए।

" तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आज़ादी दूँगा" 

मेरे प्यारे युवाओं, ये आज़ादी एक महायज्ञ है और इसमें सभी को यथासंभव आहूति देनी ही होगी। तो आओ, आगे बढ़ो और हमारे साथ इस महायज्ञ में जुड़ों।

भोला- लेकिन हम तो अभी बच्चे हैं! हमारे अंदर कितना खून होगा? क्यों महेश होगा मेरे अंदर एक सेर खून? हाँ इतना तो ज़रूर होगा…! तो तय रहा सुरेश भैया मैं अपना पाव सेर खून देने के लिए तैयार हूँ। लो निकाल लो (मुट्ठी बाँध कर हाथ आगे बढ़ाते हुए) लेकिन सुई आराम से घुसाना, वैसे  तो मैं बहुत बहादुर हूँ। बस, इस दवा वाली सुई से डर लगता है।

 (उसकी बात सुनकर सारे जोर से हँसते हैं और भोला और ज्यादा भोला चेहरा बनाकर उनको देखता है।)

 महेश- बुद्धू, ये खून निकालकर देने की बात नहीं हो रही। तूने वह कहावत नहीं सुनी 'खून पसीने की कमाई' बस ऐसे ही ये आज़ादी भी हमें खून पसीने से कमानी होगी। इसका अर्थ ये है कि हमें मरने मारने के लिए तैयार रहना होगा। तभी तो ये गोरे लोग डरकर हमारे देश से भागेंगे।

शंकर - हाँ, यही बात है और पसीना तो गांधी जी और उनके साथी कांग्रेसी बहा ही रहे हैं। हमें तो क्रांतिकारियों की राह पर चलकर अपने प्राण रूपी लहू की आहुति देनी है।

(भोला पूरी गम्भीरता से उनकी बात सुनता है और समझ जाने के अंदाज़ में सिर हिलाता है।)

गणेश- हमारे गाँव और आसपास के क्षेत्र में भी कुछ लोग हैं जो नेताजी के विचारों से सहमत हैं और अपनी-अपनी तरह से अंग्रेजों को नुकसान पहुंचा रहे  हैं। हम लोगों को उनसे संपर्क करके उनके दिशानिर्देशों में काम करना चाहिए या फिर किसी तरह सम्पर्क जुटाकर आज़ाद हिन्द फौज से जुड़ना चाहिए तभी हमारा आज़ादी की लड़ाई का संकल्प साकार रूप ले पायेगा और लोग हमें जानेंगे।

भोला- बात ठीक है गणेश भाई की, ऐसे भी हम तो बच्चे हैं। हमें अपने साथ एक मार्गदर्शन करने वाला बड़ा आदमी भी चाहिए जो हमें सही और गलत की सलाह दे सके।

सुरेश- लोग हमें जाने या ना जाने गणेश किन्तु हमने अब आज़ादी के ये अपनी आहुति देने का संकल्प ले लिया है। अब हमने अपने तरीके से काम करना शुरू भी कर दिया है। और जहाँ तक किसी बड़े का सवाल है तो मुरारी काका तो हैं ही हमारे साथ। उनके कुछ क्रांतिकारियों से भी सम्पर्क हैं। वे बता रहे थे की कई बार क्रांतिकारी लोग अंग्रेजों से छिपने के लिए इस गौशाला का सहारा लेते हैं। मुरारी काका अपनी सेवा इसी रूप में दे रहे हैं कि वे क्रांतिकारियों को यहाँ सुरक्षित शरण देते हैं और उनके भोजनादि की व्यवस्था करते हैं। उन्होंने मुझे कहा था कि आज कुछ क्रांतिकारी लोग यहाँ आने वाले हैं। मैंने आज तुम सभी को इसीलिए यहाँ बुलाया है ताकि तुम लोग भी उनसे मिल सको और आज मैं उनसे हम लोगों को भी उनके साथ शामिल करने की प्रार्थना करने वाला हूँ। तुम लोग भी इसमें मेरा साथ देना, उन्हें पूरा भरोसा होना चाहिए कि हम लोग पूरे मन से इसके लिए तैयार हैं।

 (सभी एक स्वर में बोलते हैं।)" हम सभी तैयार हैं, हम देश की आज़ादी के महायज्ञ में अपने खून की आखिरी बून्द तक की आहुति देने को तत्पर रहेंगे।" 

(तभी किसी के कदमों की तेज आवाज आती है मानो कोई तेज़ी से दौड़कर आ रहा हो। सभी बच्चे झपटकर चारा पानी और सफाई में लग जाते हैं मानो सभी गौशाला में काम करने वाले सेवक हों। मुरारी बदहवास दौड़ता हुआ इनके पास पहुँचता है।मुरारी एक कमज़ोर शरीर वाला छोटे कद का काला से व्यक्ति है उसने आधी धोती को कमर में बांध रखा है, ऊपर नङ्गे बदन है। उसके सिर पर एक अंगोछा बंधा हुआ है और हाथ में लाठी पकड़ी हुई है।)

सुरेश- क्या हुआ काका आप इतने परेशान क्यों दिख रहे हो? सब ठीक तो है?

मुरारी- गज़ब हो गया बच्चो, हमारे क्रांतिकारियों की किसी ने मुखबिरी कर दी। तीन लोगों को पुलिस ने पकड़ लिया और अब बाकियों की तलाश में जगह-जगह छापेमारी हो रही है।

महेश- क्या, मुखबिर का पता लगा?

मुरारी- पता तो नहीं लेकिन लोगों को सुबहा है कि रायबहादुर ही इस मुखबिरी के लिए जिम्मेदार है। पर किसी के पास भी इस बात का कोई सबूत नहीं है कि रायबहादुर ही मुखबिर है।

गणेश- बात ठीक ही है सुरेश भाई, क्योंकि रायबहादुर अंग्रेजों का खास आदमी है। वह उनका नमक खाता है तो उनकी वफादारी तो ज़रूर निभाता होगा।

सुरेश-  ठीक है काका आप जाओ और आसपास नज़र रखो, अगर कुछ भी असुरक्षित लगे तो कोयल की आवाज करके हमें सचेत कर देना।

मुरारी-  ठीक है बच्चों लेकिन जो भी करना पूरी सावधानी से करना क्योंकि अब अंग्रेजों की सतर्कता इस क्षेत्र में बढ़ गयी है।

महेश - आप चिंता ना करें काका जी हम सावधान रहेंगे।

(मुरारी धीरे-धीरे चला जाता है। बच्चे फिर अपनी-अपनी जगह बैठ जाते हैं।)

शंकर-  भाई सुरेश, अगर ये मुखबिर ना होते तो हम लोग कबके इन गोरों का मुँह काला करके भारत से बाहर भगा चुके होते। लेकिन, क्या करें इस मुखबिरी के चक्कर में कितने ही क्रांतिकारी पकड़े जाते हैं और फाँसी चढ़ा दिए जाते हैं। ये मुखबिरी करने वाले बिके हुए लोग चन्द सिक्कों के बदले अपनी माँ का आँचल बेचने में भी परहेज नहीं करेंगे। उसपर ये दुःख की लोग केवल इनपर सन्देह ही करते हैं। कोई भी पक्के विश्वास से किसी भी मुखबिर को पकड़कर कभी उसे सजा नहीं देता।

भोला (जो बहुत देर से शान्त बैठा सारी बात सुन रहा था-) ये मुखबिर कौन होता है भाई?

महेश-  मुखबिर वो मुआ होता है जो किसी की चुगली करके उसकी खबर उसके दुश्मनों को देता है। जैसे कि किसी मुखबिर ने हमारे छिपे हुए क्रांतिकारी साथियों की खबर हमारे शत्रु अंग्रेजों को दे दी और अब अंग्रेज हमारे देश के उन सेवकों को पकड़कर ले गए। अब उनपर मुकदमा होगा और उन्हें फाँसी पर लटकाकर मार दिया जाएगा।

भोला- भाई सुरेश अभी आप बता रहे थे ना कि आजादी के लिए हमें खून देना होगा? 

सुरेश- हाँ कहा था।

भोला- तो क्यों ना हम मुखबिर का खून आज़ादी की देवी को चढ़ा दें? क्यों न हम कोई ऐसा उपाय करें जिससे सही-सही पता लग जाये कि कौन मुखबिर है जिसने हमारे आज़ादी के सिपाहियों को अंग्रेजों के हाथ पकड़ा दिया। और फिर हम उसका खून चढाकर आज़ादी के सिपाहियों के रास्ता साफ कर दें?

(सुरेश, महेश, गणेश और शंकर एक स्वर में, "वाह भोला तेरे छोटे दिमाग ने तो बड़ी बात कर दी आज।)

सुरेश-  साथियों, अब हमें अपना लक्ष्य मिल गया है। अब हम एक युक्ति लगाएंगे और मुखबिर को पहचान कर उसे सजा देकर आज़ादी की इस लड़ाई में अपना योगदान सुनिश्चित करेंगे।

(बाकी लोग एक स्वर में) "ज़रूर करेंगे हम मां भारती की शपथ लेते हैं।

शंकर- लेकिन सुरेश भाई इसके लिए कोई सटीक योजना है आपके पास?

सुरेश- हाँ है, आओ बताता हूँ।

(सभी लोग सिर जोड़कर कुछ देर बात करते हैं और फिर मुस्कुराते हुए सहमति में सिर हिलाकर चले जाते हैं।)

दृश्य-2 समय दोपहर का

स्थान जँगल के बीच एक बड़े बरगद से कुछ दूर एक झाड़ी के झुरमुट में।

(सुरेश और महेश बरगद की ओर टकटकी लगाए बैठे हुए हैं तभी चार अंग्रेजी सिपाही कुदाल लिए आते दिखाई देते हैं और बरगद की ओर बढ़ रहे हैं।)


सुरेश- वो देखो गोरे, और हाथ में खोदने के औजार भी। इसका मतलब मुखबिर का संदेह सही था। रायबहादुर ही मुखबिर है। लेकिन, हम लोगों के जाल में पहले इन्हें फँसने दो।

महेश-  सही कहते हो भाई, इस स्थान पर क्रांतिकारियों के गोला बारूद छिपे हैं इसकी खबर हम लोगों ने केवल रायबहादुर के ही कान तक पहुंचाई थी और ये गोरे उसे निकालने भी आ गए।

(अभी ये लोग बातें कर ही रहे थे कि अंग्रेजी सिपाहियों की चीख गूंज उठी और वे चारों लहराते हुए घास-फूंस से ढके एक पुराने कुएं में गिर गए।)

सुरेश-  इनकी बलि तो चढ़ गई, अब चलो रायबहादुर का इलाज सोचा जाए।


  दृश्य-3 

शाम का समय 

स्थान गौशाला

(सारे बच्चे अपने-अपने स्थान पर बैठे हुए हैं।)

गणेश- सुरेश भाई क्या ये स्पष्ट हो गया कि रायबहादुर ही मुखबिर है?

सुरेश- हाँ दोस्तों ये बात सच है कि रायबहादुर ही वह मुखबिर है जिसकी वजह से हमारे देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले क्रांतिकारी पकड़े गए।हमने जँगल में बारूद छिपी होने की बात और जगह की खबर केवल रायबहादुर के कानों तक ही पहुँचायी थी और आज अंग्रेजों के सिपाही उसे खोजने भी पहुंच गए। इस बात से साफ हो गया कि वही इस मुखबिरी का एकमात्र अपराधी है।

महेश-( हँसते हुए) बेचारे अंग्रेजों के सिपाही…! चले थे बारूद खोजने लेकिन हमारे बिछाए जाल में फँसकर मौत के कुँए कर कैद हो गए हैं।

शंकर- लेकिन अब उस रायबहादुर का क्या करना है साथियों ?

सुरेश- (मुस्कुराते  हुए) वही जो उसने किया था, उसने क्रांतिकारियों की खबर अंग्रेजों को दी थी और हमने उसकी खबर क्रांतिकारियों को दे दी। मुरारी काका बस आते ही होंगे।

(तभी कदमों की आवाज़ आती है, सभी लोग उठकर काम की और दौड़ने का उपक्रम करते हैं लेकिन सुरेश उन्हें हाथ से इशारा करके रोक लेता है।अभी ये लोग सुरेश की ओर देख ही रहे  होते हैं तभी सामने से मुरारी और उनके पीछे 4 आदमी आते दिखाई देते हैं।)

आगन्तुक1-  मुझे गर्व है भारत के बच्चों पर। आज आप लोगों ने सिद्ध कर दिया कि भारत का भविष्य सशक्त और बुद्धिमान है। चारों अंग्रेजी सिपाही अपने अंजाम तक पहुँच चुके हैं और आज ही की रात मुखबिर का खून भी आज़ादी पर चढ़ जाएगा।

सभी लोग एक साथ जयघोष करते हैं, "भारत माता की जय। आज़ादी लेकर रहेंगे।

वन्देमातरम।।

✍️ नृपेंद्र शर्मा सागर

ठाकुरद्वारा 

जिला मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 9045548008

गुरुवार, 21 जुलाई 2022

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का एकांकी ---चिंगारी । यह एकांकी ’साहित्यिक मुरादाबाद’ द्वारा आयोजित लघु नाटिका / एकांकी प्रतियोगिता के कनिष्ठ वर्ग में प्रथम स्थान पर रहा ।


पा
त्र परिचय..

मातादीन : (खलासी) 

मंगलपांडे : (अंग्रेजी फौज में भारतीय सैनिक)

काली पलटन के दो अन्य सैनिक : इब्राहिम और राम सरन

जेम्स मैथ्यू : अंग्रेज अधिकारी


               (  अंक 1) 


दृश्य एक, समय दोपहर

( मेरठ छावनी परिसर ,मार्च सन् 1857 ) 


(  मातादीन, छावनी में पसीने से तरबतर पानी पीने की दिशा में जा रहा है, तभी रास्ते में मंगल पांडे जिनके हाथ में पानी का लोटा है, उसे मिलते हैं ) 

मातादीन : राम राम पांडे जी! (गले में पड़े गमछे से पसीना पोंछता हुए) 

मंगलपांडे : राम -राम, क्या हालचाल हैं ? 

मातादीन : अच्छे है जी, आप बताओ... ? 

मंगलपांडे : (अपनी मूंछों को ताव देते हुए) हम भी मज़े में  हैं... कल अखाड़े में एक गोरे को पछाड़ा  है.. ससुर का नाति बहुत जोस दिखा रहा था... ! ! 

मातादीन : कभी हम से भी पहलवानी आज़माओ तो जाने कितना जोस है तुम्हारे बाजुओ में ?? ( हंसते हुए, कमीज की आस्तीनों को ऊपर चढ़ाता है) 

मंगलपांडे : बस.... !बस! दूर ही रहो हमसे! 

मातादीन :  (व्यंग्य पूर्वक) अच्छा जी? लो हो गये दूर.(.. कूदकर  उल्टा ही एक कदम पीछे हट जाता है) ) चलो हमें बहुत प्यास लगी है... तनिक अपने लोटे से पानी तो पिलवाई दो । (...हंसता है) 

मंगलपांडे: (आक्रोशित होते हुए) ऐ !! दूर रह हमसे...!!

हमारा धर्म भ्रष्ट करेगा क्या ?? होश में रह!! 

(उनकी यह झड़प सुनकर आसपास खड़े दो भारतीय सिपाही  (काली पलटन) , आ जाते हैं।) 

इब्राहिम : क्या हुआ मंगल भैया? किस बात पर भड़क रहे हो? 

मंगलपांडे : ज़रा इस मातादीन को तो देखो, कह रहा है कि अपने लोटे से पानी पिला दें... इसे..!!. हुंह हमार लोटे को हमारे अलावा कोई छू भी नहीं सकता!! 

रामसरन : अरे!!मंगल भैया... छोड़ो भी... !!इस माता दीन  को तो यही काम है बस.... फौज में खलासी क्या हुई गवा... खुद को फौज का बड़ा अफसर समझने लगा है...! कहता है मैं जो कहता हूँ, मुंह पर कहता हूँ... !! 

मंगलपांडे : फौज में है तो सबका ईमान धर्म भ्रष्ट करेगा क्या? जात पात भी कोई चीज़ है भाई... 

(यह सब सुनकर माता दीन का चेहरा गुस्से में लाल पड़ गया) 

माता दीन : (उपहास उड़ाने वाले स्वर में, जोर से चीखा) ऐ पंडत!! बड़ा चुटिया धारी ब्राह्मण बना फिरते हो!!! जब बंदूक चलाते समय मुहं से गाय और सुअर की चर्बी वाले कारतूस खींचते हो तब तुम्हारा ईमान धर्म कहाँ चला जाता है..... हा हा हा..... शायद पानी पीने.... !!! 

मंगलपांडे : (चीखते हुए) माता दीन!!!!!!! ज़बान को लगाम दे, बदतमीज़!! वरना.....!! 

माता दीन : (बीच में ही रोकते हुए) वरना...वरना क्या कर लोगे ??? मारोगे मुझे..?(आंखें फाड़ते हुए) अरे मैनै अपनी आंखों से देखा और कानों से सुना है... !! वो जो फैक्ट्री है न कलकत्ते में...!!...ऊ में क्या क्या होता है ... ??  सब जानते हूं...!!गाय और सुअर की चर्बी.... ! ! 

(माता दीन की बात पूरी होने से पहले ही.. मंगलपांडे बीच में ही चीख पड़़ता है) 

मंगलपांडे : (गुस्से से आंखें लाल करते हुए, दांतों को पीसते हुए )  बस कर मूरख....!!अगर ये बात  गलत साबित  हुई तो... !!तो तेरी खोपड़ी इसी बंदूक से उड़ा दूंगा

माता दीन: (कमर पर दोनो हाथ टिकाकर  भवों  को चढ़ाते हुए)  अच्छा जी...!!और अगर सच हुई तब? तब क्या करोगे पंडत??? 

मंगलपांडे : (सीना ठोकते हुए)तब !!तब दुनिया देखेगी... एक चुटिया धारी पंडत का अंग्रेज़ों से इंतकाम....  कि एक  ब्राह्मण का धर्म भ्रष्ट करने का क्या अंजाम होता है....इतिहास बार बार याद करेगा . इस पंडत को..... !!! सदियां नाम पुकारेंगे मंगल पांडे का...!! सदियां...... (पागलों की तरह बेतहाशा चीखता है) 

मातादीन : अगर ऐसी बात है,तो सुन पंडित ध्यान से...!!. जब जब  इतिहास तेरा नाम दोहरायेगा... तो उसमें एक नाम और जुड़ेगा....!! और वो होगा..मातादीन  का....!! (अपना सीना ठोकता है) तू अगर बारूद का ढेर है तो मैं उस बारूद की चिंगारी बनूंगा...हिंदुस्तान तेरे साथ मातादीन का नाम भी उसी इज्जत से लेगा... जिस इज्जत से तुझे याद करेंगा पंडित!!! फिर तेरा धर्म.. मेरा धर्म.. एक राष्ट्र धर्म बन कर इतिहास में अमर हो जायेगा... और हाँ (  भावुक होता हुए) गाय और सुअर की चर्बी वाली बात गलत निकली तो मातादीन का सर हाज़िर है्..शौक से उड़ा देना! (सिर झुकाता है) 

(उसकी यह बात सुनकर मंगलपांडे भावुक हो जाते हैं और आगे बढ़कर मातादीन को गले से लगा लेते हैं, दोनों की आंखों से गंगा-जमुना बह निकलती है) 

उनकी यह बातें सुनकर बाकी दो सैनिक भी साथ में नारा लगाते हैं...  तेरा धर्म- मेरा धर्म... हम सबका धर्म.. राष्ट्र धर्म.... ( नेपथ्य में विप्लव के स्वर गूंजने लगते हैं.) 

दृश्य दो : 8 अप्रैल, 1857, बैरकपुर छावनी, 

समय: सुबह दस बजे

(अंग्रेज अधिकारियों की हत्या व बग़ावत फैलाने के ज़ुर्म में मातादीन और मंगलपांडे को फांसी की सजा हो जाती है) 

जान मैथ्यू : (उपहास भरे स्वर मेंं) मंगलपांडे कुछ बोलोगे नहीं अब...? 

मंगलपांडे: (हंसते हुए गाते हैं) है आरज़ू ये मेरी तेरी ज़मी ही पाऊँ, सातो जनम ही चाहे आना पड़ेगा दोबारा (झुककर हिंद की मिट्टी चूमते हैं.. ) सुनो...जल्लादों !!मातादीन की लगायी चिंगारी से मंगलपांडे  नाम की मशाल तुम्हारी हुक़ूमत  को जलाकर राख कर देगी.. (भावुक होते हुए) मातादीन अब स्वर्ग में ही मिलेंगे दोस्त... . (  ऊपर आकाश की ओर देखते हुए ज़ोर से नारा लगाते हैं) वंदेमातरम्..... (जल्लाद के हाथ से फांसी का फंदा लेकर खुद अपने गले में डाल लेते हैं..) 

(नेपथ्य में विप्लव का बिगुल और भी तेजी से बज उठता है) 

जय हिंद..... जय हिंद...जय हिंद

( नाटक 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है) 

✍️ मीनाक्षी ठाकुर, 

मिलन विहार

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2022

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का एकांकी --नेत्रदान महादान


काल
: आधुनिक काल 

स्थान : भारत का कोई भी साधारण-सा शहर 

पात्र 

वृद्धा : आयु लगभग 70 वर्ष

पड़ोसन :आयु लगभग 70 वर्ष 

दो युवक :आयु लगभग 25 वर्ष 

राम अवतार :आयु लगभग 25 वर्ष

कुछ अन्य पात्र : आयु कुछ भी हो सकती है


              【 दृश्य एक 】


दो नवयुवक एक मोहल्ले में जाकर किसी घर की कुंडी खटखटाते हैं । अंदर से महिला की आवाज आती है : कौन है ?


एक युवक : अम्मा जी ! हम आई बैंक से आए हैं । दरवाजा खोलिए ।

(एक वृद्धा घर का दरवाजा खोलती है।) वृद्धा : भैया ! कहाँ से आए हो ? क्या काम है?

दूसरा युवक : हम आई बैंक अर्थात नेत्र संग्रहालय से आए हैं । आपके शहर के आँखों के अस्पताल में अब आई बैंक खुल गया है । हम आपको नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करने आए हैं ।

वृद्धा : (चौंककर पीछे हटते हुए) हाय राम ! क्या तुम मेरी आँखें निकालने आए हो ? क्या तुम लोग मुझे अंधा करोगे ? अरे कोई है ? बचाओ ! बचाओ !

एक युवक : (वृद्धा को निकट जाकर समझाने का प्रयास करता हुआ ) मैया ! आप गलत समझ रही हो । हम जिंदा लोगों की आँखें नहीं निकालते हैं । हम तो यह कहना चाहते हैं कि आप मरणोपरांत अपनी आँखें दान करने का संकल्प-पत्र भरकर हमें दे दें । (अपने बैग में से एक कागज निकालता है ) देखिए अम्मा ! यह रहा संकल्प-पत्र ! आप नेत्रदान की घोषणा कर दीजिए ।

वृद्धा : मुझ बुढ़िया को मूर्ख बनाने आए हो। मेरी आँखें लेकर कोई क्या करेगा ? अब मुझे ही कौन-सा अच्छा दिखता है ?

(तभी वृद्धा की पड़ोसन जो कि स्वयं भी वृद्धा है ,आ जाती है )

वृद्धा  अरी पड़ोसन ! अच्छा हुआ ,तू आ गई। देख तो ,यह लोग मेरी आँखें निकालने की तैयारी कर रहे हैं ।

पड़ोसन : हाय रे हाय बहना ! ऐसा अत्याचार !

वृद्धा : हाँ ! यह कहते हैं कि नेत्रदान कर दो। 

पड़ोसन : (हाथ नचा कर ) बिल्कुल नहीं ! तुम अपनी आँखें कभी दान मत करना। मुझे सब मालूम है। यह लिखा-पढ़ी करके तुम्हारे मरने के बाद तुम्हारी आँखें निकाल कर ले जाएँगे और तुम्हारा चेहरा राक्षसों की तरह दिखने लगेगा। तुम बिल्कुल भूतनी नजर आओगी ।

एक युवक : नहीं अम्माजी ! यह गलत धारणा है । मरने के बाद आँखें निकालने के बाद भी चेहरे में कोई खराबी नहीं आती है। यह पता भी नहीं चलता कि किसी की आँखें निकाली गई थीं।

वृद्धा : क्या शरीर की चीर-फाड़ से कष्ट नहीं होगा ? आत्मा को अशांति नहीं होगी ?

दूसरा युवक : बिल्कुल नहीं । जो व्यक्ति मर गया है ,उसे कष्ट कैसा ? कष्ट तो जीवित रहने पर ही होता है । जहाँ तक मृतक की आत्मा की शांति का सवाल है ,तो मृतक को तो परम प्रसन्न होना चाहिए कि उसकी आँखें किसी के काम आ रही हैं ।

पड़ोसन : बेटा रे ! मुझे तो डायबिटीज रहती है । मेरी आँखें किसी के क्या काम आएँगी ?

पहला युवक : डायबिटीज का रोग होने के कारण आँखें बेकार नहीं हो जातीं। चश्मा लगाने वाला व्यक्ति भी अपनी आँखें दान कर सकता है । 

पड़ोसन : क्या बूढ़े-बुढ़िया भी ?

एक युवक : हाँ ! किसी भी उम्र का व्यक्ति अपनी आँखें दान कर सकता है ।

पड़ोसन : क्या आँखें आदमी के मरने के बाद सड़ती नहीं हैं ?

दूसरा युवक : अम्माजी ! मृत्यु के छह घंटे के भीतर अगर शरीर से आँखें निकाल ली जाएँ तो उन्हें नेत्रहीन व्यक्ति के लिए उपयोग में लाया जा सकता है ।

वृद्धा : (गुस्से में चीख कर ) अरे मरे नासपीटो ! तुम्हें इतनी देर से मरने की बातें ही सूझ रही हैं । क्या मैं मर गई हूँ ? भाग जाओ मेरे घर से । निकलो ! 

(वृद्धा जमीन पर पड़ी झाड़ू उठा कर दोनों युवकों को मारने के लिए दौड़ती है । दोनों युवक तेजी से घर से बाहर निकल जाते हैं।)


                     【दृश्य दो】


(रामअवतार जिसकी आयु लगभग 25 वर्ष है ,उसको कुछ लोग हाथों से सहारा देकर वृद्धा के घर में लाते हैं । रामअवतार की आँखों पर पट्टी बँधी है।)

वृद्धा : (चौंक कर) मेरे बेटे ! मेरे राम अवतार ! तुझे क्या हुआ ? तेरी आँखों पर यह चोट कैसी है ?

एक आगंतुक : अम्मा ! यह कार्यालय की सीढ़ियों से गिर गए थे । आँखों में चोट आई है । अब यह ...

वृद्धा : अब यह ...तुम क्या कहना चाहते हो ?

एक आगंतुक : अब यह देख नहीं सकते। इनकी आँखों की रोशनी चली गई है।

वृद्धा : (रोकर)  हाय ! मेरा बेटा अंधा हो गया । हाय राम ! इसकी आँखें चली गई ं। 

राम अवतार : (टटोलते हुए वृद्धा के निकट पहुँचता है तथा उसके सीने से लग जाता है) माँ ! बड़ी भयंकर चोट थी । किस्मत से ही मैं बच पाया ।

पड़ोसन : क्या बेटा राम अवतार ! तुम्हारी आँखें अब कभी ठीक नहीं होंगी ? किसी डॉक्टर को दिखाया ?

राम अवतार : मौसी ! मेरी आँखें ठीक हो सकती हैं। मैंने शहर के आँखों के अस्पताल के डॉक्टर को दिखाया था । उनका कहना है कि कोई अपनी आँखें दान कर दे ,तो मुझे आँखों की रोशनी मिल सकती है ।

वृद्धा और पड़ोसन : (एक साथ चीख कर कहती हैं ) नेत्रदान ! यह तुम क्या कह रहे हो ?

राम अवतार : हाँ माँ !अब तो हमारे शहर में भी आई बैंक खुल गया है । काश लोगों में इतनी चेतना आ जाए कि सब लोग नेत्रदान के संकल्प-पत्र को भरकर अपनी आँखें खुशी से दान करने लगें, तब मुझ जैसे अंधे को शायद आँखें मिल सकें।

पड़ोसन :( वृद्धा से कहती है ) बहना ! यह हमने क्या कर डाला ? 

वृद्धा : (पड़ोसन से)  हमने अपने पैरों पर आप ही कुल्हाड़ी मार ली ।

राम अवतार : मैं कुछ समझा नहीं ..

वृद्धा : मगर मैं सब कुछ समझ गई हूँ। मैं नेत्रदान जरूर करूँगी ,ताकि किसी अंधे को आँखों की रोशनी मिल सके ।

पड़ोसन : (कान पकड़कर)  मैं भी अपनी गलती की माफी चाहती हूँ। मैं भी नेत्रदान करूँगी।

वृद्धा तथा पड़ोसन : ( मिलकर कहती हैं) चलो ! हम अभी आँखों के अस्पताल के आई बैंक में जाकर नेत्रदान का संकल्प-पत्र भरते हैं । सुन लो मोहल्ले वालों ! सुन लो शहर वालों ! सुन लो हमारे घर वालों ! हमने आँखें दान करने का फैसला किया है । जब हम मर जाएँ तो आई बैंक वालों को बुलाकर हमारी आँखें दान जरूर करना । इसी से हमारी आत्मा को शांति मिलेगी ।

(पर्दा गिर जाता है।) 

✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा

 रामपुर, उत्तर प्रदेश, भारत

 मोबाइल 99976 15451

सोमवार, 31 जनवरी 2022

मुरादाबाद के साहित्यकार एवं रंगकर्मी धन सिंह धनेन्द्र का एकांकी --टोपियां


(मंच सज्जा - मंच पर एक मेज लगी है। दो कुर्सियां भी बेतरतीब रखीं हैं उन पर गीले सूखे कपड़े रखें हैं। मेज पर कई रंग के पेंट, ब्रुश, बाल्टी व हैंगर रखे है । रंग-बिरंगी टोपियां रस्सी पर लटकी सूख रहीं हैं)

पीतम- अरी सुन रही है। यह टोपियां आज ही देनी हैं। मौसम का मिज़ाज समझ नहीं आ रहा है। टोपियां कमबख्त सूखने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं। जरा प्रेस से गरम करके सुखा दे इनको । मुझे अभी बहुत सारी टोपियां रंगनी है।

कमला - आप भी अजीब बात करते हो । भला प्रेस से मैं कब तक सुखाती रहुंगी, और भी कितने काम पडे़ हैं मुझे।

पीतम - मौसम है कमाने का। दल-बदलुओं का कुछ नहीं पता। रात को एक दल में तो सुबह दूसरे दल में होते हैं। आजकल यह धंधा खूब जोर पकड़ रहा है। (एक छुटभैया नेता हाथ में कुछ सफेद टोपियों के साथ प्रवेश करता है)

नेता- किसके धंधे की बात कर रहे हो पीतम ?

पीतम- नेताजी, चुनाव का मौसम है। सभी के धंधे की बात है। अब देखो न आप भी अब अपने धंधे में कितने ब्यस्त रहते है.

नेता- भई मैं तो मौहल्ले का एक छोटा अदना सा नेता हूं। मेरा धंधा बहुत छोटा है और रिस्की भी, जिस पार्टी ने अच्छा दाना डाला उसी की टोपी ओढ़ ली। अब अगले हफ्ते 20 तारीख में एक पार्टी की रैली में मुझे एक बस भर कर आदमी ले जाने हैं, मगर 200 रु में कोई जाने को तैयार नहीं। लोग 500रु से कम में राजी नहीं। रोटी पूडी़ दारु अलग से।

पीतम- महंगाई भी तो बढ़ गई है अब

नेता- अच्छा यह बताओ, मेरी टोपियां हो गई सब।

पीतम- आपकी नीले रंग वाली 100 टोपियों का आर्डर था, 50 हो चुकी हैं, बाकी 50 अभी सूख रहीं हैं। अगर मौसम सही हो गया तो कल ले जाना।

नेता- अरे अब इन्हें रहने दो, इनकी कोई पूछ नहीं। अब मुझे लाल रंग की 500 टोपियां चाहिए शाम तक, कल पहनानी हैं।

पीतम- पहले इन नीली टोपियों से तो काम चलाओ।

नेता- पीतम दद्दा तुम समझते नहीं। अब इन नीली टोपी का पत्ता साफ हो चुका है। कल लाल टोपियों की सख्त जरुरत है। एक बड़े नेता पार्टी बदल रहें हैं।

पीतम -फिर यह जो टोपियां तैयार हो गई अब इनका क्या होगा?

नेता- इन टोपियों की फिलहाल कोई जरुरत नहीं रही, जो बन गई उनके भी कुछ पैसे दे दूंगा। बाद में कभी काम आयेंगी सम्हाल कर रखना।

पीतम- मौसम कितना बदल गया है। टोपियां सूख नहीं पायेंगी।

नेता- मौसम सभी के लिए बदल चुका पीतम दद्दा। आजकल नेताओं ने भी बे-मौसम चाल बदलनी शुरू कर दी है। अब आदमी से ज्यादा टोपियों की डिमांड बढ़ गई है।

 कमला- (रस्सी पर लाल सफेद टोपिया लटकाते हुए) सही कह रहे है नेता जी, हमारे इलाके में भी अब रंग-बिरंगी टोपियों बदल-बदल कर पहनने का फैशन चल पड़ा है।

पीतम- अरे चुप कर, बहुत बोलती है। यह नीली टोपियां हटा यहां से। यहां लाल टोपियां सुखानी हैं। कल ही नेता जी को देनी है।

कमला- कभी नीली, कभी लाल फालतू काम क्यों फैला रहे हो जी?

पीतम- यह खडे़ हैं नेता जी, इन्हीं से पूछ ले।

नेता- हर आदमी अपने धंधे को पहले देखता है। हमारे नेता भी जहां धंधा मद्दा हुआ तुरंत पार्टी बदल रहें हैं। आखिर उनको भी खाना कमाना है और बिना सत्ता के नेताजी मूंगफली थोडे ही छीलेंगे। सत्ता में रहने वाली पार्टी से दूर होकर नेता आगे कैसे जी पायेंगे? इसीलिए तो कल गांधी मैदान में एक बड़े नेता पार्टी बदलेंगे। गांधीजी की शपथ लेकर पहले टोपी का रंग बदलेगा तभी न पार्टी बदलेगी।

(बाहर शोर शराबे की आवाज जोर-जोर से होती है। तभी तेज आवाज के साथ एक मोटा दरोगा और 4-5 सिपाहियों के साथ घर में प्रवेश करता है )

पीतम- क्या हो गया साहब।

दरोगा - तो यहां हो रहा है यह लाल-पीला काला धंधा। गिरफ्तार कर लो इसे।

(नेता चुपचाप खिसकने लगता है। दरोगा नेता को पकड़ता है और कडक आवाज़ में पूछता है)

दरोगा- क्यों, कौन सी पार्टी के हो नेता जी ?

नेता- सर, हम किसी पार्टी के नेता नहीं हम तो छोटे कार्यकर्ता है।

दरोगा- यहां क्या कर रहे हो। भागो यहां से। (पीतम से) क्यों बे तू यहां टोपियां बदलने का धंधा करता है। जानता नहीं आचार संहिता लगी हुई है। टोपियां का रंग बदल कर दल-बदल को बढ़ावा देता है। पार्टियां बदलने का धंधा फैला रहा है। ले चलो इसे थाने। यह इस शहर की शांति भंग कर रहा है। इसकी सारी लाल, पीली काली नीली टोपियां जब्त कर लो। केवल एक टोपी छोड़ दो।

पीतम- हम गरीब आदमी है सरकार। हमारा धंधा चौपट हो जायेगा।

कमला- हजूर इनका कोई कसूर नहीं हम तो केवल टोपियों का रंग बदलें हैं। इस काम में भी बहुत टाईम लगता है, मेहनत लगती है। लोग तो रातों-रात अपना दल बदल रहें हैं। अपना ईमान- धर्म बदल ले रहें हैं। हम टोपियां सिलाई-रंगाई का काम करके बमुश्किल गुजारा करते हैं।

दरोगा - ऐ । बहुत ज्यादा बोलती है। नेतानी बनती है। जानती नहीं चुनाव आचार संहिता लगी है। अभी मिनटों में बंद कर दूंगा। जमानत भी नहीं होगी।

पीतम- दरोगा जी, इस पागल की बातों पर ध्यान मत दो। मौसम बदलने के साथ इसे भी एलर्जी हो जाती है।

दरोगा- ऐसा है तो इसका ईलाज क्यों नहीं कराता। पुलिस से कैसे बात की जाती है इसे सिखा दे वरना जेल में सडे़गी।

कमला- (हाथ जोड़ कर विनम्रता से कहती है) देखो दरोगा जी, हम अभी मंत्री जी के घर जाकर यह टोपियां फेंक आतें हैं। बोल देंगे- हमें जेल नहीं जाना। अपनी टोपियां जहां चाहे वहां सिलवा लो- रंगवा लो।

दरोगा- (आश्चर्य में) मंत्रीजी से टोपियों का क्या मतलब ?

पीतम - यह सब उन्ही का आर्डर है। दो- एक दिन बाद एक बड़े कद्दावर नेता उनकी पार्टी को ज्वाइन कर रहें हैं। उनके और उनके कार्यकर्ताओं के लिए ही तैयार हो रहीं हैं यह टोपियां उन सबको ही पहनाई जायेंगी।

दरोगा - (तुरंत चेहरे का रंग बदलता है) अरे। यह बात है, तो पहले क्यों नहीं बताया। आप सब तो बड़ा नेक काम कर रहे हो । कड़ी मेहनत से टोपियों के रंग बदलो लेकिन टोपियों पर ज्यादा पक्का रंग मत चढ़ाना। पता नहीं कब कौन सा रंग बदलना पड जाय। हो सकता है पुलिस की नौकरी छोड़ कर जनता की सेवा करने के लिए मुझे भी यह टोपियां पहननी पडे.. और हां, इस नेक काम में अगर कोई परेशानी हो या अड़चन हो तो तुरंत बताना। चलो सिपाहियों ।

(दरोगा और सिपाही सब मंच से निकल जाते हैं।)


✍️ धन सिंह 'धनेन्द्र'

म.नं. 05 , लेन नं -01

श्रीकृष्ण कालोनी,

चन्द्रनगर , मुरादाबाद-244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मो०- 9412138808

रविवार, 29 अगस्त 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष वीरेन्द्र कुमार मिश्र की प्रथम नाट्य कृति - छत्रपति शिवाजी । इस कृति का प्रथम संस्करण वर्ष 1958 में सफलता पुस्तक भंडार, रेती स्ट्रीट ,मुरादाबाद से प्रकाशित हुआ था। द्वितीय संस्करण वर्ष 1990 में प्रकाशित हुआ । इस कृति की प्रशंसा प्रख्यात साहित्यकार राम कुमार वर्मा और वृन्दालाल वर्मा जी ने भी की है ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िये पूरी कृति

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:::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

शनिवार, 28 नवंबर 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार रेखा रानी का एकांकी "श्रमिक पलायन"


(चेहरे पर परेशानी का भाव लिए  किशोर आता है और  माथा पकड़ कर जमीन पर बैठ जाता है)  

सूत्रधार :  अरे सब इधर तो आओ, जरा देखो तो यहां क्या हो रहा है ? यह किशोर कैसा अनमना सा माथा पकड़ कर बैठ गया है? यह चुप क्यों है ? .....कुछ बोलता क्यों नहीं ?

अरे काका- काकी सब दौड़े आओ,

मिलकर सारे किशोर को समझाओ।

रामू - अरे, किशोर भाई कुछ तो बोलो काहे हैरान परेशान हो? क्या तुमको कोरोना का डर सता रहा है? काहे चिंता करते हो? यह कोरोना बड़े लोगों को ही होता है ,हम जैसे मजदूरों को कुछ नहीं होता।

किशोर - अरे बबुआ, चिंता की तो  बात है , सुना है मालिक कारखाना बंद करने वाले हैं , जब कारखाना बंद हो जाएगा तो खाओगे क्या? बीवी बच्चे क्या खाएंगे? कौन जिंदा रहेगा ?.....और देखो मेरी मुन्नी को तो कितना तेज बुखार है?

किशोर की पत्नी सुखिया  - अरे, आप तो मुन्नी की दवाई लेने गए थे, परंतु यह कैसी खबर ले आये

। अब, मुन्नी का बुखार कैसे उतरेगा?

किशोर - घबरा मत सुखिया, तू धीरज रख मैं सब संभाल लूंगा।

(तभी इमरजेंसी बेल बजती है 

सायरन के साथ)

सब शांत होकर सुनने लगते हैं।

सुनो ! ....सुनो  !!.....सुनो !!!...

खोली के सभी लोगों ध्यान से सुनो 

कोविड-19 के मरीजों की संख्या बहुत बढ़ चुकी है।

तुम सभी लोगों को अभी फौरन खोली  खाली करनी होगी। यह कारखाना बंद हो गया है।

( यह सुनते ही खोली में अफरा-तफरी मच जाती है।)

सूत्रधार- देखिए  बस्ती में कैसा अफरा-तफरी का माहौल है। अभी सारे लोग कैसे अपने गांव को वापस होंगे।  उनके पास न तो कोई सवारी का साधन है ना कुछ खाने की सामग्री और ना ही सामग्री खरीदने के लिए पैसे) किशोर - (दुःखी होकर)

मना किया था कि गांव नहीं छोड़ते।

महानगरों से नाता नहीं जोड़ते।

पर तुमने मेरी एक न मानी।

 दिखलाई अपनी मनमानी।

किसी की खाट बुनता था।

किसी की छान चढ़ाता था।

अपनी कहता था ,

औरों की सुनता था।

गांव की दावतों  में 

गर्व से पत्तल सजाता था।

दुखी मन से सुखिया गठरी में सामान समेटकर बुखार में तपती मुन्नी को लेकर चल दिया सपनों को मसल कर गांव की ओर। वि

सूत्रधार- गांवों  में रहो,

 शिक्षित बनो ।

सभी अपने गांव को

 विकसित करो।

(धीरे धीरे पर्दा गिरता है)

✍️  रेखा रानी 

प्रधानाध्यापिका , एकीकृत विद्यालय- गजरौला 

जनपद- अमरोहा।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघु नाटिका----बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

*पात्र*------लाखन सिंह, उसकी वृद्धा माँ, लाखन की तीसरी पत्नी कमला, डाक्टर रीना व सूत्रधार।

सूत्रधार----(मंच पर गाते हुए प्रवेश करता है।)

जय गणपति जय गणेश।
जय गौरा जय महेश।
जय माँ वागीश्वरी
हर मन के तम निशेष।
जय भू,जय अनल,जल
जय नभ,जय पवन शेष।
होवे सब की कृपा,
विकसित हो मेरा देश।
विकसित हो मेरा देश।
विकसित हो मेरा देश।

(देवताओं को शीश नवाता है।पुनः दर्शकों की ओर मुख करके)
उपस्थित सम्मानित जन को,
करबद्ध हो शीश नवाता हूँ।
जनमन के जागरण हेतु,
मैं एक कथा सुनाता हूँ।
एक बार की बात कहूँ मैं
एक गाँव था बसा सुदूर।
उसी गाँव में एक चौधरी,
धन-पद के मद में था चूर।
अपनी मूंछों पर हरदम,
वह हाथ फेरता रहता था।
मूंछों वाला ही इस जग में
है सम्मानित कहता था।
उसकी ऐसी बातों पर,
माँ उसका समर्थन करती थी।
है पुरुष प्रधान,जगत सारा,
वह नारी,नारी से चिढ़ती थी।
कहती थी पुत्र वही सीढ़ी,
जो स्वर्ग द्वार तक जाती है।
बेटी तो धन पराया है,
किसी और वंश की थाती है।
ऐसे विचार वाले घर में,
इक गर्भवती बहू रोती है।
पुत्र रतन की आशाओं का,
बोझ शीश पर ढोती है।
बोझ शीश पर ढोती है।
(सूत्रधार गाता हुआ मंच से एक ओर को निकल जाता है।)

*दृश्य-एक*

(आलीशान कोठी का एक सर्वसुविधायुक्त कक्ष जिसमें पलंग पर एक गर्भवती महिला बैठी है और कुछ घबरायी हुई सी है।युवती की वय और संकोचमिश्रित आचरण उसके पहली बार गर्भवती होने के संकेत दे रहे हैं।तभी कमरे में एक वृद्धा प्रवेश करती है। युवती उठने का प्रयास करती है।)

वृद्धा-----अर्ररर् कमला बहू रहने दो,आराम से बैठी रहो। तुम्हारी कोख में मेरे वंश का चिराग पल रहा है।(गर्भ की ओर बढ़े ममत्व से देखती हुई)मेरे कान्हा, मेरे किरसन मुरारी!जब मेरे अंगना अवतरेंगे,तब पूरा जिला देखेगा चौधरी की आन बान शान।मोती लुटाऊँगी, मोती।
(युवती सकुचाकर वृद्धा से कुछ कहने का प्रयास करती है)

युवती----अअअअम्मा जी।

वृद्धा----(बड़े लाड़ से)हाँ,बोल बेटा।

युवती-----अअअअम्मा जी वो मैं कह रही थी अगर बिटिया हुई तोअ...

वृद्धा----(अत्यधिक आवेश में आकर बीच में बात काटती हुई) खबरदार बहू जो ऐसी मनहूस बातें की तो। स्वामी जी का आशीर्वाद लेकर आयी हूँ इस बार मैं।तेरे गले में ये जो ताबीज़ है इस बात का पक्का प्रमाण है कि बेटा ही होगा।

युवती-----(साहस बटोरकर)पर माँ जी मैंने सुना ऐसा ताबीज़ तो पहले दोनों दीदियों को भी आपने बांधा था,पर पुत्र जनना तो दूर वह दोनों तो अपनी जान भी गंवा बैठी।

वृद्धा----(क्रोध से तिलमिलाते हुए)बस कर छोकरी!चार अक्षर क्या पढ़ लिये बड़ों से ज़बान लड़ायेगी।(हड़बड़ाकर)उन दोनों ने.... उन दोनों ने तो....ताबीज़ की कद्र नहीं की थी जिसका फल उन्हें मिला।पर तूझे ऐसी भूल नहीं करने दूँगी। (बाहर की ओर मुख करके जोर से आवाज लगाती है) लाखन,बेटा लाखन!

लाखन सिंह----(लम्बी चौड़ी कद-काठी का एक अधेड़ कमरे में प्रवेश करता है)कहो माँ जी कोई परेशानी है क्या?

वृद्धा----बेटा!जरा बहू का ध्यान रखना गले से ताबीज़ न निकले,बच्ची है अभी,भला बुरा नहीं जानती। प्यार से माने तो ठीक ,वरना चौधरी के वंश की बात है।तरीके और भी हैं.... (युवती को धमकाने वाली तीखी नजरों से देखती है)

लाखन सिंह---(मूँछों पर ताव देते हुए)माँजी तुम तो हुकुम करो,परिंदा भी पर न फड़फड़ायेगा तुम्हारी मर्जी के बगैर।

वृद्धा----मेरा लाल जुग जुग जीवे।(माँ बेटा जहाँ प्रसन्न वदन हैं,वहीं युवती के चेहरे पर भय के भाव हैं)

सूत्रधार-----
तो इस तरह भय्या बहनों,
वह नारी डरायी जाती थी।
बेटा बेटा बेटा होवे,
यह धुन रटवायी जाती थी।
पर कोमल अंगी वह नारी,
थी ज्ञानशक्ति से भरी हुई।
लगी थी सोचने निराकरण,
वह विगत दृश्य से डरी हुई।
सहसा उसके मन में फिर,
समाधान इक आ गया।
शोकाकुल चेहरे पर उसके,
आस उजाला छा गया।
अपनी खास सहेली को,
उसने संदेशा भिजवाया।
सारा हाल उपाय सहित,
विस्तार से उसको समझाया।
धीरे-धीरे-धीरे भय्या,
वह मोड़ समय का आ गया।
असह दर्द में थी महिला,
चिन्ता का बादल छा गया।
आयी दायी फिर ये बोली,
मेरे बस की यह बात नहीं।
हकीम बड़े ही भली करें,
उससे कम की औकात नहीं।
आनन फानन में दुखिया को,
शहर ले जाया जाता है।
माँ तो बची है किसी तरह,
मृत शिशु बताया जाता है।
बेटे के अभिलाषी मन में,
वज्रपात सहज हो जाता है,
स्वप्न महल उम्मीदों का
देखो ढह कर गिर जाता है।
पर कुछ तो है छिपा हुआ,
उस अनदेखे आगत में।
आँखें माँ की हँसती हैं,
जाने किसके स्वागत में।
धीरे-धीरे रे समय
पथ अनजाने पर बढ़ आया।
कोठी आलीशान वहीं,
पर छाया है दुख का साया।
पर छाया है दुख का साया

*दृश्य-दो*

(वही सुसज्जित कमरा,पर सुविधा के कुछ संसाधनों का बदलाव देखकर प्रतीत होता है कि समय का एक लम्बा अंतराल बीत चुका है।पलंग पर एक वृद्ध असहाय सा लेटा है।एक औरत तीमारदारी में लगी है।)

वृद्ध----पानी, थोड़ा पानी पिलाना कमला।
(महिला तुरन्त जग से पानी उड़ेल कर गिलास में डालती है और वृद्ध को सहारा देकर पानी पिलाती है। वृद्ध महिला की ओर देखता है और उसकी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं।)मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ कमला। मुझे माफ़ कर दो।

महिला----अरेरेरे ऐसा मत कहिए।आप मेरे पति हैं, मैं आपकी अर्द्धांगिनी हूँ।आप ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए आप माफी माँगे।

वृद्ध----नहीं कमला,आज मुझे कह लेने दो। तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है।माँ ने तुम्हें कितना दुख दिया पर उनके अन्तिम समय में उनकी तकलीफों में तुम्हीं उनका सबसे बड़ा सहारा बनी। मैं बेटा होकर भी कुछ न कर सका।और तुमने बेटी होकर भी अपने घर के साथ साथ अपने माँ बाप की जिम्मेदारी भी अच्छे से संभाली। मैं पागल था जो अपनी ओछी सोच के कारण बेटा बेटा रटता रहा,एक बेटा पाने के लिए मैंने तीन-तीन बेगुनाह औरतों की जिन्दगी दांव पर लगा दी।आठ अजन्मी बच्चियों के कत्ल का गुनाह है मुझ पर।और मेरा दण्ड कि मैं  आज निसंतान हूँ,असहाय हूँ, मृत्यु शय्या पर हूँ और कोई मुझे पिता कहने वाला नहीं।(जोर जोर से रोने लगता है, महिला आंसू पोछती है।वह स्वयं भी भावुक हो गयी है।)

महिला-(ढांढस बँधाते हुए)मत रोइये, हिम्मत रखिए। पश्चाताप के इन आंसुओं के साथ आपकी सारी गलतियाँ बह गयी हैं।
और आज मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आप निसंतान नहीं है और न ही आप अब असहाय और गम्भीर बीमार हैं।

वृद्ध---(चौंककर आशा भरी निगाहों से महिला की ओर देखता है।)क्या कह रही हो कमला?सच बताओ क्या बात है?पहेलियां मत बुझाओ।

महिला-जी,सच ये है कि डाक्टर रीना जो आपका इलाज कर रही है,वह आपकी ही बेटी है।

वृद्ध-(हर्ष मिश्रित विस्मय से महिला को देखता हुआ)सच कमला!डाक्टर रीना मेरी बेटी हैं।
महिला-बिल्कुल सच। अम्मा जी और आप की सोच के डर से मैंने बेटी को पैदा होते ही अपनी खास सहेली के हाथ सौंप दिया था। मैं आप लोगों से छुपाकर उसकी परवरिश का खर्च भेजती थी और मायके जाने पर उससे मिल भी आती थी।

वृद्ध----आह! कितना अभागा पिता हूँ मैं ,जो अपनी संतान का पालन पोषण भी न कर सका। आज मुझे अपनी सोच पर शर्म आती है।लानत है मुझ पर (सर झुका लेता है। महिला उसे सांत्वना देते हुए गले लगा लेती है तभी एक सुंदर युवती डाक्टर का कोट पहने कमरे में प्रवेश करती है।)

डाक्टर युवती----और चौधरी जी कैसी तबियत है आपकी अब?

वृद्ध-(बड़े ममत्व से उसकी ओर देखता है उसकी आंखों से अश्रु धारा बह निकलती है।वह बाँह फैला देता है और करुण भाव से पुकारने लगता है।) डाक्टर बेटा!
(युवती आश्चर्य मिश्रित नजरों से माँ की ओर देखती है।)

महिला-–--जा बेटा!अपने पिता से मिल ले।आज सही समय आ गया था तो मैंने आज तेरे पिता को सब सच सच बता दिया।

युवती----(भावुक होकर वृद्ध के चरण स्पर्श करती है) पिताजी

वृद्ध----न बेटी! मैं इस लायक नहीं हूँ।तू मुझे माफ़ कर दे बेटी।(रोने लगता है)

युवती ----न,पिताजी न।अब सब ठीक हो गया है।आपकी गलती नहीं थी। आपका अज्ञान था जिसके कारण गलतियां हुई और पढ़ी लिखी माँ की समझदारी कि सब ठीक हो गया।

वृद्ध ---हाँ, बेटी तू सही कहती है।तू बिल्कुल सही कहती है। (दर्शकों की ओर मुखातिब होकर) मैं चौधरी लाखन सिंह आज सब लोगों को हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप सब भी अंधविश्वास से बाहर निकलो । बेटी हो या बेटा दोनों को खूब पढ़ाओ। बेटी बचेगी तभी तो बहू मिलेगी।इस संसार में बेटी बेटा दोनों का महत्व है। इसलिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।

सूत्रधार-
हाँ,भाईयों और बहनों !
तो सुना आपने।
क्या कह दिया है
लड़की के बाप ने।
(संगीत बजने लगता है और सभी एक स्वर में गाने लगते हैं)
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
धरती पे ही जन्नत ले के आओ।
बेटी पढ़ेगी बेटी बचेगी
खुशहाली घर घर में आके रहेगी।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
बेटा हो बेटी एक बराबर
बेटी से नफ़रत पाप सरासर।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
जन्मेगी न जो बेटी अहो हो
कैसे बढ़ेगा वंश कहो तो
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
बेटी या बेटा दोनों पढ़ाओ
अपने देश को आगे ले जाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
इति
पर्दा गिरता है।

✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001