शुक्रवार, 25 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की लघु नाटिका----बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

*पात्र*------लाखन सिंह, उसकी वृद्धा माँ, लाखन की तीसरी पत्नी कमला, डाक्टर रीना व सूत्रधार।

सूत्रधार----(मंच पर गाते हुए प्रवेश करता है।)

जय गणपति जय गणेश।
जय गौरा जय महेश।
जय माँ वागीश्वरी
हर मन के तम निशेष।
जय भू,जय अनल,जल
जय नभ,जय पवन शेष।
होवे सब की कृपा,
विकसित हो मेरा देश।
विकसित हो मेरा देश।
विकसित हो मेरा देश।

(देवताओं को शीश नवाता है।पुनः दर्शकों की ओर मुख करके)
उपस्थित सम्मानित जन को,
करबद्ध हो शीश नवाता हूँ।
जनमन के जागरण हेतु,
मैं एक कथा सुनाता हूँ।
एक बार की बात कहूँ मैं
एक गाँव था बसा सुदूर।
उसी गाँव में एक चौधरी,
धन-पद के मद में था चूर।
अपनी मूंछों पर हरदम,
वह हाथ फेरता रहता था।
मूंछों वाला ही इस जग में
है सम्मानित कहता था।
उसकी ऐसी बातों पर,
माँ उसका समर्थन करती थी।
है पुरुष प्रधान,जगत सारा,
वह नारी,नारी से चिढ़ती थी।
कहती थी पुत्र वही सीढ़ी,
जो स्वर्ग द्वार तक जाती है।
बेटी तो धन पराया है,
किसी और वंश की थाती है।
ऐसे विचार वाले घर में,
इक गर्भवती बहू रोती है।
पुत्र रतन की आशाओं का,
बोझ शीश पर ढोती है।
बोझ शीश पर ढोती है।
(सूत्रधार गाता हुआ मंच से एक ओर को निकल जाता है।)

*दृश्य-एक*

(आलीशान कोठी का एक सर्वसुविधायुक्त कक्ष जिसमें पलंग पर एक गर्भवती महिला बैठी है और कुछ घबरायी हुई सी है।युवती की वय और संकोचमिश्रित आचरण उसके पहली बार गर्भवती होने के संकेत दे रहे हैं।तभी कमरे में एक वृद्धा प्रवेश करती है। युवती उठने का प्रयास करती है।)

वृद्धा-----अर्ररर् कमला बहू रहने दो,आराम से बैठी रहो। तुम्हारी कोख में मेरे वंश का चिराग पल रहा है।(गर्भ की ओर बढ़े ममत्व से देखती हुई)मेरे कान्हा, मेरे किरसन मुरारी!जब मेरे अंगना अवतरेंगे,तब पूरा जिला देखेगा चौधरी की आन बान शान।मोती लुटाऊँगी, मोती।
(युवती सकुचाकर वृद्धा से कुछ कहने का प्रयास करती है)

युवती----अअअअम्मा जी।

वृद्धा----(बड़े लाड़ से)हाँ,बोल बेटा।

युवती-----अअअअम्मा जी वो मैं कह रही थी अगर बिटिया हुई तोअ...

वृद्धा----(अत्यधिक आवेश में आकर बीच में बात काटती हुई) खबरदार बहू जो ऐसी मनहूस बातें की तो। स्वामी जी का आशीर्वाद लेकर आयी हूँ इस बार मैं।तेरे गले में ये जो ताबीज़ है इस बात का पक्का प्रमाण है कि बेटा ही होगा।

युवती-----(साहस बटोरकर)पर माँ जी मैंने सुना ऐसा ताबीज़ तो पहले दोनों दीदियों को भी आपने बांधा था,पर पुत्र जनना तो दूर वह दोनों तो अपनी जान भी गंवा बैठी।

वृद्धा----(क्रोध से तिलमिलाते हुए)बस कर छोकरी!चार अक्षर क्या पढ़ लिये बड़ों से ज़बान लड़ायेगी।(हड़बड़ाकर)उन दोनों ने.... उन दोनों ने तो....ताबीज़ की कद्र नहीं की थी जिसका फल उन्हें मिला।पर तूझे ऐसी भूल नहीं करने दूँगी। (बाहर की ओर मुख करके जोर से आवाज लगाती है) लाखन,बेटा लाखन!

लाखन सिंह----(लम्बी चौड़ी कद-काठी का एक अधेड़ कमरे में प्रवेश करता है)कहो माँ जी कोई परेशानी है क्या?

वृद्धा----बेटा!जरा बहू का ध्यान रखना गले से ताबीज़ न निकले,बच्ची है अभी,भला बुरा नहीं जानती। प्यार से माने तो ठीक ,वरना चौधरी के वंश की बात है।तरीके और भी हैं.... (युवती को धमकाने वाली तीखी नजरों से देखती है)

लाखन सिंह---(मूँछों पर ताव देते हुए)माँजी तुम तो हुकुम करो,परिंदा भी पर न फड़फड़ायेगा तुम्हारी मर्जी के बगैर।

वृद्धा----मेरा लाल जुग जुग जीवे।(माँ बेटा जहाँ प्रसन्न वदन हैं,वहीं युवती के चेहरे पर भय के भाव हैं)

सूत्रधार-----
तो इस तरह भय्या बहनों,
वह नारी डरायी जाती थी।
बेटा बेटा बेटा होवे,
यह धुन रटवायी जाती थी।
पर कोमल अंगी वह नारी,
थी ज्ञानशक्ति से भरी हुई।
लगी थी सोचने निराकरण,
वह विगत दृश्य से डरी हुई।
सहसा उसके मन में फिर,
समाधान इक आ गया।
शोकाकुल चेहरे पर उसके,
आस उजाला छा गया।
अपनी खास सहेली को,
उसने संदेशा भिजवाया।
सारा हाल उपाय सहित,
विस्तार से उसको समझाया।
धीरे-धीरे-धीरे भय्या,
वह मोड़ समय का आ गया।
असह दर्द में थी महिला,
चिन्ता का बादल छा गया।
आयी दायी फिर ये बोली,
मेरे बस की यह बात नहीं।
हकीम बड़े ही भली करें,
उससे कम की औकात नहीं।
आनन फानन में दुखिया को,
शहर ले जाया जाता है।
माँ तो बची है किसी तरह,
मृत शिशु बताया जाता है।
बेटे के अभिलाषी मन में,
वज्रपात सहज हो जाता है,
स्वप्न महल उम्मीदों का
देखो ढह कर गिर जाता है।
पर कुछ तो है छिपा हुआ,
उस अनदेखे आगत में।
आँखें माँ की हँसती हैं,
जाने किसके स्वागत में।
धीरे-धीरे रे समय
पथ अनजाने पर बढ़ आया।
कोठी आलीशान वहीं,
पर छाया है दुख का साया।
पर छाया है दुख का साया

*दृश्य-दो*

(वही सुसज्जित कमरा,पर सुविधा के कुछ संसाधनों का बदलाव देखकर प्रतीत होता है कि समय का एक लम्बा अंतराल बीत चुका है।पलंग पर एक वृद्ध असहाय सा लेटा है।एक औरत तीमारदारी में लगी है।)

वृद्ध----पानी, थोड़ा पानी पिलाना कमला।
(महिला तुरन्त जग से पानी उड़ेल कर गिलास में डालती है और वृद्ध को सहारा देकर पानी पिलाती है। वृद्ध महिला की ओर देखता है और उसकी आंखों से आंसू छलकने लगते हैं।)मैं तुम्हारा गुनहगार हूँ कमला। मुझे माफ़ कर दो।

महिला----अरेरेरे ऐसा मत कहिए।आप मेरे पति हैं, मैं आपकी अर्द्धांगिनी हूँ।आप ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिसके लिए आप माफी माँगे।

वृद्ध----नहीं कमला,आज मुझे कह लेने दो। तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है।माँ ने तुम्हें कितना दुख दिया पर उनके अन्तिम समय में उनकी तकलीफों में तुम्हीं उनका सबसे बड़ा सहारा बनी। मैं बेटा होकर भी कुछ न कर सका।और तुमने बेटी होकर भी अपने घर के साथ साथ अपने माँ बाप की जिम्मेदारी भी अच्छे से संभाली। मैं पागल था जो अपनी ओछी सोच के कारण बेटा बेटा रटता रहा,एक बेटा पाने के लिए मैंने तीन-तीन बेगुनाह औरतों की जिन्दगी दांव पर लगा दी।आठ अजन्मी बच्चियों के कत्ल का गुनाह है मुझ पर।और मेरा दण्ड कि मैं  आज निसंतान हूँ,असहाय हूँ, मृत्यु शय्या पर हूँ और कोई मुझे पिता कहने वाला नहीं।(जोर जोर से रोने लगता है, महिला आंसू पोछती है।वह स्वयं भी भावुक हो गयी है।)

महिला-(ढांढस बँधाते हुए)मत रोइये, हिम्मत रखिए। पश्चाताप के इन आंसुओं के साथ आपकी सारी गलतियाँ बह गयी हैं।
और आज मैं आपको बताना चाहती हूँ कि आप निसंतान नहीं है और न ही आप अब असहाय और गम्भीर बीमार हैं।

वृद्ध---(चौंककर आशा भरी निगाहों से महिला की ओर देखता है।)क्या कह रही हो कमला?सच बताओ क्या बात है?पहेलियां मत बुझाओ।

महिला-जी,सच ये है कि डाक्टर रीना जो आपका इलाज कर रही है,वह आपकी ही बेटी है।

वृद्ध-(हर्ष मिश्रित विस्मय से महिला को देखता हुआ)सच कमला!डाक्टर रीना मेरी बेटी हैं।
महिला-बिल्कुल सच। अम्मा जी और आप की सोच के डर से मैंने बेटी को पैदा होते ही अपनी खास सहेली के हाथ सौंप दिया था। मैं आप लोगों से छुपाकर उसकी परवरिश का खर्च भेजती थी और मायके जाने पर उससे मिल भी आती थी।

वृद्ध----आह! कितना अभागा पिता हूँ मैं ,जो अपनी संतान का पालन पोषण भी न कर सका। आज मुझे अपनी सोच पर शर्म आती है।लानत है मुझ पर (सर झुका लेता है। महिला उसे सांत्वना देते हुए गले लगा लेती है तभी एक सुंदर युवती डाक्टर का कोट पहने कमरे में प्रवेश करती है।)

डाक्टर युवती----और चौधरी जी कैसी तबियत है आपकी अब?

वृद्ध-(बड़े ममत्व से उसकी ओर देखता है उसकी आंखों से अश्रु धारा बह निकलती है।वह बाँह फैला देता है और करुण भाव से पुकारने लगता है।) डाक्टर बेटा!
(युवती आश्चर्य मिश्रित नजरों से माँ की ओर देखती है।)

महिला-–--जा बेटा!अपने पिता से मिल ले।आज सही समय आ गया था तो मैंने आज तेरे पिता को सब सच सच बता दिया।

युवती----(भावुक होकर वृद्ध के चरण स्पर्श करती है) पिताजी

वृद्ध----न बेटी! मैं इस लायक नहीं हूँ।तू मुझे माफ़ कर दे बेटी।(रोने लगता है)

युवती ----न,पिताजी न।अब सब ठीक हो गया है।आपकी गलती नहीं थी। आपका अज्ञान था जिसके कारण गलतियां हुई और पढ़ी लिखी माँ की समझदारी कि सब ठीक हो गया।

वृद्ध ---हाँ, बेटी तू सही कहती है।तू बिल्कुल सही कहती है। (दर्शकों की ओर मुखातिब होकर) मैं चौधरी लाखन सिंह आज सब लोगों को हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप सब भी अंधविश्वास से बाहर निकलो । बेटी हो या बेटा दोनों को खूब पढ़ाओ। बेटी बचेगी तभी तो बहू मिलेगी।इस संसार में बेटी बेटा दोनों का महत्व है। इसलिए बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।

सूत्रधार-
हाँ,भाईयों और बहनों !
तो सुना आपने।
क्या कह दिया है
लड़की के बाप ने।
(संगीत बजने लगता है और सभी एक स्वर में गाने लगते हैं)
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
धरती पे ही जन्नत ले के आओ।
बेटी पढ़ेगी बेटी बचेगी
खुशहाली घर घर में आके रहेगी।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
बेटा हो बेटी एक बराबर
बेटी से नफ़रत पाप सरासर।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
जन्मेगी न जो बेटी अहो हो
कैसे बढ़ेगा वंश कहो तो
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
बेटी या बेटा दोनों पढ़ाओ
अपने देश को आगे ले जाओ
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ---
इति
पर्दा गिरता है।

✍हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें