मंगलवार, 18 अक्टूबर 2022

मुरादाबाद मंडल के चांदपुर (जनपद बिजनौर) की साहित्यकार उर्वशी कर्णवाल के गीत संग्रह...." मैं प्रणय के गीत गाती" की बिजनौर के साहित्यकार मनोज मानव द्वारा की गई समीक्षा....

 192 पृष्ठों में 120 गीतों से सजा उर्वशी कर्णवाल का छंदबद्ध गीत संग्रह... ..." मैं प्रणय के गीत गाती", जिसमें मेरी दृष्टि से 25 सनातनी छंदों का प्रयोग किया गया है... द्विबाला, आनन्दवर्धक, सारः, लावणी, द्विमनोरम,स्रावि्गणी, राधेश्यामी , शृंगार, चतुर्यशोदा , माधव मालती,  विधाता, भुजंगपर्यात, सार्द्धमनोरम, गंगोदक, मानव, गीतिका, नवसुखदा , द्विपदचौपाई, महालक्ष्मी, दोहा, वीर/आल्हा, विष्णुपद, चौपाई ।

शारदे माँ की सुंदर वंदना से गीत संग्रह का बहुत सुंदर प्रारम्भ किया गया है। गीत- संग्रह में प्रेम के तीनों रूपों को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , ग्रन्थ प्रणय से शुरू होकर विरह की यात्रा करता हुआ प्रेम के अंतिम एवं सबसे भव्य स्वरूप भक्ति पर समाप्त होता है। 

यों तो संग्रह के सभी गीत छन्द एवं भावों का मधुर संगम के दर्शन कराते है लेकिन अधिकतर गीतों में भावों का विशाल सागर है जिसमें पाठक एक बार डुबकी लगाकर गहराई की ओर जाने से स्वयं को नहीं रोक पायेगा।देखिएगा प्रणय गीतों के कुछ ऐसे ही भाव--

" प्रेम पूज्य है, प्रेम ईश है, प्रेम हृदय का स्पंदन है।

  प्रेम विधाता का अनुभव है , प्रेम दिव्य का दर्शन है।।

एक और गीत देखिएगा

" एक वनिता को व्यथित कर, जा रहे पुरुषत्व लेकर।

  प्रीति की लय से विमुख हो, क्या किया बुद्धत्व लेकर।

उर निरंतर चाहता था , यह भुवन हो प्रीति सिंचित,

स्वाद रंगों से रहित यह, क्या करूंगी सत्व लेकर।

प्रीति की लय से विमुख हो, क्या किया बुद्धत्व लेकर।।

लेखिका ने प्रणय को बहुत ही खूबसूरती से परिभाषा दी है देखिएगा...

" व्याप्त हर कण में सुवासित, सृष्टि है चाहे प्रलय है।

  डूबता जो वह तरेगा, सिंधु सा गहरा प्रणय है।

  डूबकर पा ले चरम जो, या स्वयं को भी मिटा ले, 

  हो नहीं सकता पराजित , मृत्यु का उसको न भय है।

डूबता जो वह तरेगा, सिंधु सा गहरा प्रणय है।।

लेखिका ने चतुर्यशोदा जैसे अत्यंत कठिन छन्द को बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है , जिसकी बहुत सुरीली धुन है ...." रिहाले-मस्ती मकुंदरंजिश जिहाले हिजरा हमारा दिल है"

खुले-खुले से सुवास गेसू, मुदित हृदय को किये हुए है,

मंदिर-मंदिर सी, मलय अनोखी, लगे कि जैसे पिये हुए है।

प्रदीप्त स्वर्णिम, सवर्ण किरण सी प्रकाश करती उजास भरती।

झलक तुम्हारी अलग अनूठी कि प्राण लाखों दिए हुए हैं।।"

एक और मधुर छन्द माधवमालती का गीत देखिए

" जिंदगी के इस भँवर में, काल के लंबे सफर में,

शब्द उलझाते बहुत हैं, अर्थ तड़पाते बहुत हैं।

मौन को पढ़ना पड़ेगा,

पथ स्वयं गढ़ना पड़ेगा।।"

जब विरह के चरम पर कलम चले और उसे  मधुर ताल युक्त  गंगोदक छन्द  का साथ मिल जाये तो क्या उत्कृष्टता आती है  इस गीत में  देखिएगा, 

" भाव खो से गये शब्द मिलते नहीं, लय कहाँ गम हुई गीत कैसे लिखूँ,

श्वास या घड़कनें नाम में लीन है, पुष्प मुरझा गया पाँखुड़ी दीन है,

काँच की कोठरी , पात की झोपड़ी , पीर की ,अश्रु की, रीत कैसे लिखूँ ।"

वैसे तो संग्रह में ईश भक्ति , मातृ भक्ति के कई गीत है लेकिन एक गीत जो पितृ महिमा पर केंद्रित है बरबस आकर्षित करता है ।

" हमारे धन्य जीवन का, रहें आधार बाबू जी।

  तुम्हारे पुण्य-कर्मों को, कहें आभार बाबू जी।।

  घनी रातों में दीपक से, दिखाते रोशनी हमको,

  बने चंदा सितारों में , दिखाते चांदनी हमको।

  हमारे ग्रन्थ बाबू जी , हमारा सार बाबू जी ।।"

एक गीत में लेखिका ने समाज मे व्याप्त कोढ़ पर बड़ी सुंदर कलम चलायी है।

" शिकारी कुछ यहाँ ऐसे, चमन को छीन लेते हैं।

   जरा सी दे धरा तुमको , गगन को छीन लेते हैं।।"

आज कम्प्यूटर नेटवर्क के जमाने में पुस्तकों के महत्व को दर्शाते हुए लेखिका कहती है....

" पढ़ो पढ़ाओ किताब सब जन, सखी सहेली किताब होती,

उठे जो मन मे हजार उलझन , सवाल का ये जबाब होती।"

 अंत मे लेखिका ने गीत के माध्यम से कवि समाज के लिए संदेश दिया है कि --

" भूख- गरीबी लाचारी पर, होती खूब रही कविताई,

   अब थोड़ा सा जगना होगा, अंगारों पर लिखना होगा।

   कागज - कलम दवातें छोड़ो, तलवारों पर लिखना होगा

   उठने से पहले दब जाती, चीत्कारों पर लिखना होगा।

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा यह छंदबद्ध उत्कृष्ट गीत संग्रह, लेखिका को साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान दिलाने के समस्त गुण रखता है ।



कृति : मैं प्रणय के गीत गाती (गीत संग्रह)

रचनाकार : उर्वशी कर्णवाल

प्रथम संस्करण : वर्ष 2022

मूल्य : 300 ₹

प्रकाशक : शब्दांकुर प्रकाशन , नई दिल्ली

समीक्षक : मनोज मानव 

पी 3/8 मध्य गंगा कॉलोनी

बिजनौर  246701

उत्तर प्रदेश, भारत

दूरभाष- 9837252598

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