वर्मा जी ने अपने बच्चों को शहर के प्रमुख स्कूलों में पढ़ाया चाहे उसके लिए उन्हें कितनी फीस क्यों ना चुकानी पड़े। उनकी पत्नी रमा भी अपने दोनों बेटों की इच्छा पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, क्योंकि पैसे की वर्मा परिवार में कोई कमी नहीं थी।
दोनों बेटे विदेश की प्रसिद्ध कंपनियों में इंजीनियर बन गए एवं दोनों की महीने की तनख्वाह भी लाखों में थी। उन्होंने अपने बराबर की लड़कियों से शादी की एवं अमेरिका में बस गये ।वर्मा जी उनकी पत्नी सारे मोहल्ले वालों व रिश्तेदारों में ताल ठोक कर कहते कि शायद उनसे बड़ा सुखी कोई नहीं है क्योंकि उनके बेटे व बहुएं बहुत अच्छा कमाते हैं। सभी पड़ोसी एवं रिश्तेदार उनकी इस बात से सहमत होतेऔर उनके सामने बोलने की हिम्मत ना करते। वर्मा जी को हर किसी में कमी नजर आती व उनकी पत्नी रमा उनसे भी आगे हर महिला के व्यवहार में बहुत कमियां बताती थी।
समय बीतता गया ,दोनों बेटे अपनी अपनी नौकरी में बहुत व्यस्त रहने लगे। माता पिता के पास आना तो दूर फोन पर बात करने का भी अब उनके पास समय नहीं होता था। उधर वर्मा जी व उनकी पत्नी पर भी समय ने वृद्धावस्था का प्रभाव जमाना शुरू कर दिया था। उन्हें हर क्षण सहारे की जरूरत पड़ने लगी अथाह पैसा व्यक्ति की जगह नहीं ले सकता यह दोनों पति-पत्नी को समझ आने लगा।
दोनों को ज्ञात होने लगा कि संतान को केवल पैसा कमाने की ही शिक्षा नहीं देनी चाहिए अपितु तो माता-पिता की जीवन के संध्या समय में देखभाल व संस्कारों की शिक्षा भी देनी चाहिए। क्योंकि जीवन प्राणी का एक निश्चित समय का सफर मात्र होता है पैसा व्यक्ति को सुख सुविधा दे सकता है परंतु अपनेपन का एहसास कभी नहीं दे सकता। परंतु अब बहुत देर हो चुकी थी अतः उन्होंने स्वयं को बदलने का निश्चय किया एवं दोनों ने अपने बेटों के साथ रहने का फैसला ले लिया क्योंकि वह जान गए अब जीवन संध्या में बच्चों के साथ रहने में ही भलाई है।
✍🏻सीमा रानी
अमरोहा
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