बुधवार, 15 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार सीमा रानी की लघुकथा ----जमाईं

   पति की मौत के बाद मधु ने अपनी दोनों बेटियों को दिन-रात कपड़े सिल सिल कर पढ़ाया | बेटियों के सपनों को पूरा करने में उसने कोई कसर नहीं छोड़ी |  जीवन की गाड़ी मदन की मौत के बाद तो रुकती सी  मालूम हो रही थी परंतु मधु ने अपनी हिम्मत वह हुनर से रुकने नहीं दिया |बड़ी बेटी अब स्नातक कर एक स्कूल में शिक्षण कार्य करने लगी थी और छोटी बहन की पढ़ाई के खर्च का बोझ उठाने लगी थी तो मधु को लगा जैसे हर रात के बाद सवेरा अवश्य होता है अब जीवन उसको थोड़ा सहज  लगने लगा था |
                बेटियों के विवाह योग्य हो जाने पर हर मां-बाप की तरह उसे भी बेटियों के विवाह की चिंता सताने लगी थी । अंततः बड़ी बेटी का विवाह पड़ोस के शहर में व छोटी बेटी का उसी शहर में हो गया | अब मधु ने चैन की सांस ली उसे लगा जैसे वर्षों बाद उसके जीवन में सवेरा हुआ हो धीरे-धीरे जीवन की गाड़ी फिर चल पड़ी कुछ दिन तक तो सब ठीक ठाक रहा पर साल 2 साल में दामाद (जमाई) अपने नए नए रूप दिखाने लगे बेटियों से कहते कि तुम्हारी मां अकेली है इतने बड़े मकान में अकेली रहकर बोर हो जाती होंगी मकान बेच कर उन्हें अपने साथ ले आओ कुछ दिन बड़ी बेटी के यहां व कुछ दिन छाेटी  बेटी के यहां आराम से रह लेंगीं । दोनों बेटियां मां का मकान बेचकर मां को अपने साथ ले आयीं |कुछ दिन बड़ी बहन के साथ तो कुछ दिन छोटी बहन के साथ माँ को रखने का दोनों नें समझौता कर लिया|कुछ समय बाद सासू मां का अपने साथ रहना दामादाें (जमाई) को बहुत अखरने लगा ।दोनों अक्सर कहते कि तुम्हारी मां के साथ रहना ठीक नहीं लगता है क्यों न हम  ऐसा करें कि इन्हें वृद्ध आश्रम मैं पहुंचा दें क्योंकि वहां इन्हें संगी साथी  भी मिलेंगें और अपनी आयु वर्ग में यह स्वस्थ भी रहेंगीं क्योंकि मन खुश होने पर तन भी  स्वस्थ रहता है |
             अब मधु को हर पल यह एहसास होने लगा था कि आखिर ऐसी मुझसे क्या कमी हो गई जो आज मेरी बेटियां मुझे बाेझ समझ रही है जबकि इनके लिए तो मैंने अपना जीवन न्योछावर कर दिया |उसे बार-बार मां के कहे शब्द याद आ रहे थे कि "बेटी जमाई जम होता है |" मधु को वृद्धाश्रम भेजकर दोनों बेटियों ने अपना पत्नी धर्म पूरा किया और चैन की सांस ली |


✍🏻सीमा रानी
   अमराेहा
 7536800712

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें