बुधवार, 1 मार्च 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा ..'इतना आसान कहाँ ' ​


शुभि ने जल्दी जल्दी सारा घर का काम निपटाया और तैयार होकर सोफे पर बैठकर छोटे बेटे कुणाल की स्कूल शर्ट का बटन टाँकने लगी, साथ ही मन में कल की घटना भी उसको रह रह कर याद आ रही थी ।

​सोचने लगी "आजकल के बच्चे भी न ....पता नहीं क्या होता जा रहा है ?"

​कल उसकी बेटी सान्या का बर्थडे था , बस बच्चों को तो मौका मिल जाए गिफ्ट का , फिर भले ही उसकी जरूरत हो या न हो ।

​"मॉम मुझे इस बार कुछ नया गिफ्ट  चाहिए ....जो मेरी किसी फिरेण्ड के पास नहीं हो । "बेटी ने ठुनकते हुए कहा ।

​"मगर बेटा ...किसी की होड़ थोड़े ही करते हैं ...जिसकी जरूरत हो ....l"

​"मॉम प्लीज यह जरूरत वाली बात मुझे अच्छी नहीं लगती ....डैड देखो न मम्मा ...l"

​"ठीक तो कह रही है तुम्हारी मम्मी l"सूरज ने भी डरती हुई आवाज में कहा l

​"बस रहने ही दो मुझे नहीं जाना आपके साथ मार्केट ...l"चिढ़ते हुए सान्या ने कहा और पैर पटकते हुए अपने कमरे में भाग गई l

"​सान्या.........l"दोनों आवाज देते रह गए l

​"क्या जरूरत थी उसको ज्ञान देने की ?"सूरज का भी मूड खराब हो गया l

​"आप भी न ....चढ़ा लो इस लड़की को सिर पर ...क्या समझाना बुरी बात है ?"शुभि ने चिढ़कर कहा l

​"नहीं ...मगर अब कुछ माँग रही है तो देना ही होगा l"

​"और क्या देना ही होगा ...डिमांड तो रोज बढ़ती ही जा रहीं हैं दोनों की ...सुर भी तो कुछ कम नहीं l"

​"अभी तो दोनों आठवीं और दसवीं कक्षा में हैं ...पता नहीं आगे क्या होगा ?"शुभि ने संदेह व्यक्त करते हुए कहा l

​"शुभि तुम क्यों परेशान हो ....आजकल पेरेंट्स होना कोई इतना आसान नहीं ...हमारे तुम्हारे जैसा जिनके लिए माँ बाप की बात मानना भगवान की बात से भी ज्यादा आवश्य था l"

​तभी दरवाजे की घंटी बजती है वह उठकर दरवाजा खोलती है l

​"अरे आप तो तैयार हैं ....मैँ अभी रेडी होकर आती हूँ l"

​सान्या ने बैग सोफे पर पटकते हुए कहा l

​अपनी जीत पर सान्या बहुत खुश जो थी आखिर पेरेंट्स को हरा जो दिया था l

​रात खाना इसने तभी खाया  था जब यह तय कर लिया कि जो मांगेगी  वही  दिलाना पड़ेगा l

​✍️ राशि सिंह 

​मुरादाबाद 244001 

उत्तर प्रदेश , भारत


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ....हार या जीत


दौरे के बाद राधा अभी अभी आफिस आकर बैठी ही थी कि फोन आया मैडम आप तुरंत घर आइये दुर्घटना हो गयी। इससे पहले वह कुछ पूछती, फोन कट गया।ड्राइवर से गाडी़ निकलवा कर वह घर पहुंची। बाहर पुलिस की और लोगो की भीड़ जमा थी।घबराहट के साथ नीचे उतरी एस एस पी साहब वहीं थे । आगे आकर बोले,"आपके पति ने आत्महत्या कर ली है"।वह सन्न रह गयी। रितेश से कितनी बार कहा कि वह अब अच्छी नौकरी पर है।उसे नौकरी छोड़ देना चाहिए।तभी सास ससुर भी आ गये।सास रोते रोते बोली,"मेरे बेटे ने तुझे पढा़या लिखाया, इस लायक बनाया और तूने ही उसको मरने पर मजबूर कर दिया"।वह स्तम्भित  थी।एक पल में उसकी दुनिया उजड़ गयी।

      सच था कि जब उसकी शादी हुई ,उसने 12वीं पास की थी। पति सरकारी विभाग में चपरासी थे ।परिवार ने शादी कर दी ।मगर जब उसने रितेश से आगे पढ़ने की इच्छा जताई तो वह खुशी खुशी तैयार हो गया।दो बच्चों के जन्म और परिवार की जिम्मेदारी के साथ वह पढ़ती रही।और प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर अधिकारी बन गयी।मगर उस पर बिजली तब गिरी जब उसकी पोस्टिंग उसी कार्यालय में हुई जहाँ उसके पति चपरासी थे। बडी विषम स्थिति थी।उसने कहा कि वह नौकरी छोड़ दे।मगर रितेश न माना।उसने उनका स्थानांतरण दूसरे आफिस में करवा दिया। मगर उसके साब जब मैडम से मिलने आते तो बड़ी विषम परिस्थिति हो जाती। रितेश उन्हें देखकर खडा़ हो जाता।अपने चपरासी को मैडम के पति होने के नाते नमस्कार करना उन्हें बडा नागवार गुजरता था। घर का वातावरण भी कभी कभी बडा़ बोझिल हो जाता।वह बहुत प्रयास करती मगर स्थिति मे संतुलन लाना कठिन था।फिर भी वह रितेश के सामने पत्नी ही रहने की कोशिश करती।

     किंतु नये साल की पार्टी में अग्रिम पक्ति मे बैठे रितेश को नशे मे धुत अधिकारी द्वारा अपमानित करने पर वह पार्टी छोड़कर आ गयी।रितेश ने दो दिन की छुट्टी ले ली थी।वह उसे नौकरी छोड़कर व्यापार करने को मना रही थी।मगर रितेश ये कदम उठा लेगा उसे यकीन नहीं हो रहा था।

     रितेश का यूं जाना ,उसकी सबसे बड़ी हार थी।जब नौकरी लगी थी तब उसे लगा कि वह जीत गयीं।आज वह समझ नहीं पा रही थी कि वह हार गयी या जीत गयीं।

✍️ डॉ श्वेता पूठिया

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का व्यंग्य......क्या बताऍं शुगर हो गई



 क्या बताऍं, जब से शुगर की जॉंच हुई है और उसमें पता चला है कि हमारी शुगर सौ से ऊपर है ,जीवन का सारा रस समाप्त हो गया। जिंदगी का मजा ही जाता रहा। बस यों समझिए कि जी रहे हैं और जीने के लिए खा रहे हैं ।अब तक जो मन में आया खाते रहे। अब मन को एक तरफ रखा हुआ है और खाना सिर्फ वह खा रहे हैं जो शुगर के हिसाब से खाना चाहिए।

             मिठाईयां बंद हो गईं। कितने दुख की बात है कि अब तरह-तरह की मिठाइयां जो इस संसार की शोभा बढ़ाती रही हैं और आज भी बढ़ा रही हैं ,हमारे मुंह की शोभा नहीं बढ़ा पाएंगी। बुरा हो उस मनहूस सुबह का जब हमने हॅंसी-हॅंसी में अपना भी ब्लड शुगर टेस्ट करा लिया। हम समझते थे कि हमें आज तक शुगर नहीं हुई है, इसलिए अभी भी नहीं होगी । सोचा चलो एक सर्टिफिकेट मिल जाएगा कि तुम ठीक-ठाक हो । हाथ आगे बढ़ाया । जॉंचने वाले ने उंगली में सुई चुभाई। ब्लड की जॉंच की और शुगर सौ से ऊपर थी। बिना कुछ खाए फास्टिंग में सौ से ऊपर। सच कहूॅं हमारी तो सॉंस ऊपर की ऊपर, नीचे की नीचे रह गई। यह क्या हो गया !

         बस उसी समय से जीवन में अंधकार छाया हुआ है। सब लोग मीठा खाते हैं और हम गम खाते हैं ।आखिर बचा ही क्या है जिन्दगी में! फलों में मिठास है, खाने की हर चीज में मिठास है, अब जब मिठास ही खाने की वस्तुओं से चली गई तो फिर जीवन में मिठास कहॉं बची ? बड़ा कड़वा हो गया है जीवन ! मेरी समझ में नहीं आता कि यह शुगर की बीमारी कहॉं से आती है ? आदमी अच्छा भला है ।एक दिन उसे कह दिया जाता है कि तुम्हारे ब्लड में शुगर है। तुम शुगर के मरीज हो।

    परहेज इतने कि कुछ पूछो मत। दहीबड़ा भी खाओ तो बगैर सोंठ के ! क्या खाए ? आदमी मुँह लटकाए हुए कुर्सी पर बैठा हुआ है । आने वाला पूछता है “क्यों भाई ! मुॅंह लटकाए कैसे हो ? “जवाब देना पड़ता है “भाई साहब, शुगर हो गई है ”

   कुछ लोग दिलासा दिलाते हैं। कहते हैं, “मन छोटा न करो । हर तीसरे आदमी को शुगर है।”

        हमारा कहना है कि वह तीसरा आदमी हम ही क्यों हैं ? जो बाकी दो रह गए हैं, वह क्यों नहीं हैं ? भगवान किसी के साथ ऐसा अन्याय न करे । जिंदगी दी है तो मिठास भी दे। अब परहेज में जिंदगी गुजरेगी।

     शुगर के चक्कर में व्यवहार बदल गया। कल मैं एक फल वाले के पास गया। अंगूर देखे ,पूछा” कैसे हैं ? “वह उत्साह में भर कर बोला “बहुत मीठे हैं।” मैंने कहा “ज्यादा मीठे नहीं चाहिए “और मैं आगे बढ़ गया। वह बेचारा सोचता ही रह गया कि आखिर उसने ऐसा क्या कह दिया कि ग्राहक ने अंगूर नहीं खरीदे ।

     लोग कहते हैं कि दुनिया में केवल दो ही प्रकार के लोग हैं ,एक गरीब -दूसरे अमीर । लेकिन मेरा कहना है कि दुनिया में केवल दो ही प्रकार के लोग हैं ,एक वे जिनको शुगर है, दूसरे वे जिनको शुगर नहीं है ।शुगर वालों का एक अलग ही संसार है। वास्तव में सच पूछो तो “शुगर पेशेंट यूनियन “की आवश्यकता है ।और अगर सारे शुगर के मरीज मिल जाए बहुत बड़ा परिवर्तन समाज में जा सकते हैं।

     हमारा सबसे पहला काम इस मानसिकता को बदलना होगा कि उपहार में केवल मिठाई का डिब्बा ही देना चाहिए । मैं मिठाई के डिब्बों को देखता हूं , उनमें कितनी मिठाई ही मिठाई भरी हुई रहती है। इसके स्थान पर अगर मठरियाँ, मट्ठी, काजू के समोसे , खस्ता और दालमोठ रखी जाए तो कितना अच्छा होगा। शगुन के लिए अगर मिठाई देना जरूरी है तो डिब्बे के कोने में नुकती के चार लड्डू बिठाए जा सकते हैं । इसी तरह दावत में देखिए ! छह – छह मिठाई के स्टालों का क्या औचित्य है ? एक तरफ जलेबी,इमरती गरम गरम निकल रही है, दूसरी तरफ गुलाब जामुन, रसगुल्ला , मालपुआ है । “एक दावत एक मिठाई” इस सिद्धांत को व्यवहार में बदलना चाहिए। एक दावत में छह छह मिठाईयां शुगर वालों को चिढ़ाना नहीं तो और क्या है ?

निवेदन है:-

मर्ज शुगर का लग गया, अब हम हैं बीमार

रसगुल्ला सब खा रहे , टपकाएं हम लार

एक जगत में वे हुए , मीठा खाते लोग

दूजे उनको जानिए , मीठा जिनको रोग


✍️ रवि प्रकाश

बाजार सर्राफा 

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता के दोहे ....


उड़े रंग जो प्रेम के होली में इस बार 

सतरंगी आकाश हो गूंजे जय जयकार 


गुजिया घर बनती नहीं ना कांजी का स्वाद  

चाकलेट से हो गया फीका सा   आस्वाद


टेसू अब भी खिल रहे जंगल में सब ओर

किस को फ़ुरसत है बची लाए उनको तोड़ 


चीनी पिचकारी और  रंग से  अटा पड़ा बाज़ार 

देसी राग आलाप कर , लें ख़रीद  हर बार 


बरगुलियाँ ग़ायब हुईं  न मिले आम की डाल  

कैरोसिन को झोंक कर होलिका  दी है बाल  


दोज फुलेरा से होते थे शुरू पहले होली रंग 

सिमट चुका अब  एक दिन होली का हुड़दंग


कभी चंग की थाप पर  खेला जाता फाग जी 

दारू के संग आजकल  गा रहे बेसुरा  राग   


अभी वक्त है कुछ सोच लो छोड़ो सभी कुरंग 

होली खेलो प्रेम से समृद्ध परम्परा के संग

✍️ प्रदीप गुप्ता, मुंबई



मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार का व्यंग्य.....आर्ट ऑफ लीविंग


हमारे परम मित्र कविकंकर जी बहुत परेशान थे। हाथी जैसी महंगाई में, चूहे जैसी आमदनी से घर नहीं चल पा रहा था। एक दिन उनको किसी पागल कवि ने काट लिया।उनका मानसिक संतुलन ऐसा बिगड़ा कि सब कुछ छोड़ कर आध्यात्मिक गुरु बन गए।अब आर्ट ऑफ लीविंग संस्था चलाते हैं। फाइव स्टार होटलों में गुलछर्रे उड़ाते हैं।महंगे से महंगा खाना मंगाते हैं। आधा छोड़ते हैं,आधा खाते हैं।

    ‌‌उनका आध्यात्मिक चिंतन, छोड़ने पर ही टिका है। उनको खुद को भी,जो कुछ मिला है,कविता छोड़ कर मिला है। सफलता का सूत्र है..छोड़ना, छोड़ कर ही आप कुछ पा सकते हैं।विजय माल्या, नीरव मोदी आदि अगर आज खुशनुमा जीवन बिता रहे हैं,तो इसके पीछे उनका बहुत बड़ा त्याग है। उन्होंने अपने देश तक को छोड़ दिया है।

    अगर हम इतिहास पर नजर डालें,स्वतंत्रता संग्राम के मूल में भी छोड़ने की प्रवृति दिखाई देती है। महात्मा गांधी के आवाहन पर किसी ने पढ़ाई छोड़ी, किसी ने वकालत,किसी ने अपना घर और आंदोलन में कूद पड़े।इसकी परिणीति उन्नीस सौ बयालिस में भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में हुई।

     पिछले चुनाव में,एक पार्टी के वफादार नेता,अपनी पार्टी छोड़ कर दूसरी पार्टी में चले गए।उनके सारे पाप धुल गए और तरक्की के सारे रास्ते खुल गए। आज सरकार में एक महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे हैं।उन्होंने सही समय पर सही कदम उठाया। उसूलों को छोड़ा,पार्टी को छोड़ा और बहुत कुछ पाया।

      मेरा आप सब से, हाथ छोड़ कर निवेदन है,आप इस समय जो कुछ भी कर रहे हों,चाहे आवश्यक दैनिक कार्य ही क्यों ना हों,सब छोड़ कर इस लेख को पढ़िए और छोड़ने की इस मुहिम को,यानी कि आर्ट ऑफ लीविंग को आगे बढ़ाइए। वरना आपके दोस्त ,आपको छोड़ कर आगे बढ़ जायेंगे और आप हाथ मलते रह जायेंगे।


✍️ डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर का गीत ..... रंग पुराने लेकर आना, ओ हुरियारे


रंग पुराने लेकर आना,

ओ हुरियारे ।


मर्यादा का मुख इस युग में,

इतना काला । 

खुलने से ही कतराता है,

कुण्डी - ताला ।

तुम ही बोलो, चहकें कैसे,

घर - चौबारे ।

रंग पुराने लेकर आना, 

ओ हुरियारे ।


मीठी चिक-चिक- हुल्लड़बाजी,

या बतियाना ।

होगा कब चौका सखियों का,

फिर मस्ताना । 

पूछ रहे हैं गुझिया मठरी,

पापड़ - पारे ।

रंग पुराने लेकर आना,

ओ हुरियारे । 


आस लगाए सोच रही है,

प्यारी होली ।

वापस झूमे चौपाई पर, 

घर-घर टोली । 

रहें न गुमसुम ढोल-मजीरे, 

या इकतारे । 

रंग पुराने लेकर आना, 

ओ हुरियारे ।


✍️ राजीव प्रखर

डिप्टी गंज

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मंगलवार, 28 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता का बाल गीत ....जंगल की होली


लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार
जंगल में होने लगी, रंगों की बौछार

भरी बाल्टी रंग से, लेकर बैठे शेर
छोडूंगा अब मैं नहीं,लगा रहे हैं टेर
हाथी दादा सूंड से, मारे जल की धार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

बंदर मामा कम नहीं, बहुत बड़े शैतान
बैठे ऊँचे पेड़ पर, ले पिचकारी तान
लाये थे बाज़ार से, वो कुछ रंग उधार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

छिपती छिपती फिर रहीं, बिल्ली मौसी आज
चूहों ने रँग डालकर, किया उन्हें नाराज़
पर कुछ कर सकती नहीं,बैठी खाये खार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

हिरनी ने गुझिया बना, सबको दी आवाज
सभी खा गयी लोमड़ी,ज़रा न आयी लाज़
और टपकती रह गयी, सबके मुँह से लार
लो आया मस्ती भरा, होली का त्यौहार

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

सोमवार, 27 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा के तत्वावधान में 26 फरवरी 2023 को आयोजित समारोह में हिंदी की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए ओंकार सिंह ओंकार (मुरादाबाद), अनमोल रागिनी गर्ग (रामपुर), रश्मि चौधरी 'दीक्षा' (रामपुर), डॉ नीरू कपूर (मुरादाबाद), सुरेन्द्र अश्क 'रामपुरी', शिव प्रकाश सक्सेना (रामपुर), अमित रामपुरी समेत अनेक साहित्यकारों को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर की संस्था अखिल भारतीय काव्यधारा के तत्वावधान में रविवार 26 फरवरी 2023 को कवि सम्मेलन व सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। आनंद कॉन्वेंट स्कूल, ज्वाला नगर, रामपुर में आयोजित इस आयोजन की अध्यक्षता संस्था अध्यक्ष  जितेंद्र कमल आनंद ने की। मुख्य अतिथि बीसलपुर से पधारे दिनेश समाधिया और विशिष्ट अतिथि द्वय डॉ अब्दुल रऊफ (रामपुर) व मुरादाबाद से डॉ नीरू कपूर रहे। 

    राम किशोर वर्मा के संचालन में डॉ गीता मिश्रा गीत (हल्द्वानी) द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरंभ इस आयोजन में हिंदी की उत्कृष्ट सेवाओं के लिए ओंकार सिंह ओंकार (मुरादाबाद), डॉ गीता मिश्रा गीत, पुष्पा जोशी प्राकाम्य (शक्ति  फार्म सितार गंज), अनमोल रागिनी गर्ग (रामपुर), रश्मि चौधरी 'दीक्षा' (रामपुर), डॉ अब्दुल रऊफ, आनंद वर्धन शर्मा (अल्मोड़ा),  डॉ नीरू कपूर (मुरादाबाद), डॉ थम्मन लाल वर्मा 'विकल' (बीसलपुर- पीलीभीत), सुरेन्द्र अश्क 'रामपुरी', राजवीर सिंह 'राज' (बुलंदशहर), शिव प्रकाश सक्सेना (रामपुर), अमित रामपुरी, दिनेश समाधिया, सत्य पाल सिंह 'सजग'(लाल कुआँ) को सम्मानित किया गया। इन काव्यकारों को स्मृतिशेष प्रकाश चन्द्र सक्सेना "दिग्गज मुरादाबादी" स्मृति सम्मान, स्मृतिशेष शोभा आनंद स्मृति सम्मान, स्मृतिशेष हीरा लाल 'किरण' स्मृति सम्मान, काव्यधारा: काव्य श्री सम्मान, काव्य धारा: काव्य सृजन प्रवाह सम्मान विभूषित किया गया । इस अवसर पर काव्यामृत पत्रिका (चतुर्मासिक पत्रिका) प्रधान संपादक डॉ थम्मन लाल वर्मा 'विकल' का लोकार्पण अध्यक्ष और अतिथियों द्वारा किया गया ।

    आयोजन के दूसरे चरण में उपस्थित रचनाकारों ने काव्य पाठ भी किया। आयोजन में पीयुष प्रकाश सक्सेना (प्रबंधक आनंद कॉन्वेंट स्कूल व काव्य धारा के संरक्षक), कुसुम लता वर्मा, पीयूष वर्मा, श्रीमती रवि प्रकाश, श्रीमती मंजुल रानी, अरुण सक्सेना, अल्का सक्सेना, अमन सक्सेना व शन्नो आदि शामिल रहे। संचालन राष्ट्रीय महासचिव राम किशोर वर्मा ने किया।










































::::::प्रस्तुति::::::

राम किशोर वर्मा

महासचिव

अखिल भारतीय काव्यधारा

रामपुर , उत्तर प्रदेश, भारत

रविवार, 26 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के शायर जिगर मुरादाबादी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर डॉ आसिफ हुसैन का सारगर्भित आलेख। यह आलेख उन्होंने मुरादाबाद की संस्था अल्फाज़ अपने फाउंडेशन की ओर से रविवार 26 फरवरी 2023 को आयोजित कार्यक्रम जिक्र ए जिगर में प्रस्तुत किया था ......

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मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी)के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी का गीत .....कायर हो गई भावना


जब से सीखी इन हाथों ने, करनी याचना 

सच मानो, तभी से कायर हो गईं भावना। 


दरवाज़े दस्तक को भूले, अतिथि मौन खड़े 

हम न जावें कोई न आवे विकट भाव  अड़े 

मृगतृष्णा जब हो चौखट, कौन कहे देवो 

उखड़ उखड़ कर ढूंढे सांसे कौन है मेरो 


जब से छोड़ी इन कानों ने, सुननी प्रार्थना 

सच मानो, तभी से कायर हो गई भावना 


अब तो आदत पड़ चुकी यहाँ, क़र्ज़ लेने की 

ख़्वाहिशों के घर बिस्तर, बस फ़र्ज़ निभाने की 

कांपे रूह देख देख कर, अपने रोशनदान 

काँच काँच बिखरा है भू पर, अक्स हिंदुस्तान 


जब से भूली इन आँखों ने, करनी साधना 

सच मानो, तभी से कायर हो गई भावना।। 


एक कटोरी चीनी-पत्ती,  घंटों फिर बातें 

ले आंखों  में चित्रहार, कट जाती थीं  रातें 

बुनें स्वेटर, डालें फंदे,   भूल गये धागे 

कैसी दौड़ इस जीवन की, सब के सब भागे 


जब से भोगी इस बस्ती ने, सहनी यातना

सच मानो, तभी से कायर, हो गई भावना


✍️ सूर्यकान्त द्विवेदी

मेरठ

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में देहरादून निवासी) नरेश वर्मा की कहानी ..... सुभद्रा विला । हमने यह कहानी ली है उनके वर्ष 2022 में प्रकाशित कहानी संग्रह " सदाबहार" से .....


सुभद्रा विला नाम है इस घर का । बाहर बरामदे में कुछ गमले रखे हैं जिनमें मौसमी फूलों के अतिरिक्त एक तुलसी का और एक एलोवेरा का पौधा भी है। उपर छत की रेलिंग पर बेगोनिया बेवस्टा की बेल बेतरतीबी से काफ़ी धनी होकर फैल आई है। घर में दो प्राणी रहते हैं, एक गृहस्वामी शिव नारायण सिंह चौहान, जिनकी उम्र 72 साल है और वे डीज़ल इंजन कारखाने से मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त हो चुके हैं। दूसरी हैं पत्नी सुभद्रा चौहान, जिनकी उम्र 70 साल है। वह 50 साल से हाउस वाइफ़ के पद पर कार्य कर रही हैं। इस नौकरी में सेवानिवृत्ति की कोई उम्र सीमा नहीं होती है। जीवन से निवृत्त होने पर ही रिटायरमेंट मिलता है। आइए सुभद्रा विला में चलते हैं और देखते हैं कि अंदर क्या चल रहा है........

सुबह की चाय, दैनिक क्रिया आदि सब हो चुके हैं। दोनों बाहर बरामदे में बैठे हैं। सुबह का पेपर आ गया है।

"आज कौन सा वार है ?", चौहान जी ने पत्नी से पूछा, "अरे आपको इतना भी याद नहीं है कि आज रविवार है, आज रात को रवि का फ़ोन आयेगा।”, पत्नी ने उलाहना दी।

"भई जब तुम जैसी याद दिलाने वाली पी. ए. साथ हो तो मैं याद करके क्या करूँगा ? मैं तो सोचता हूँ कि यदि तुम न होती तो मेरी उम्र का बड़ा हिस्सा तो चश्मा ढूँढने में ही बीत जाता ।”

    पति की बात से मुस्करा कर सुभद्रा चाय के कप-प्लेट समेटकर अंदर 'चली गई। वह अपने पुत्र रवि के विषय में सोचने लगे। रवि उनका पुत्र, अमेरिका के कैसास सिटी में इन्जीनियर है, उसका फ़ोन प्रत्येक रविवार को रात के नौ बजे के आस-पास आता है। बेटे का फोन ही जीवन की एकरसता में "कुछ रस का संचार कर जाता है। इस फ़ोन पर किया गया वार्तालाप दोनों पति-पत्नी के बीच पूरे सप्ताह चर्चा का मनपसंद विषय रहता है।

        रविवार को सुभद्रा सारे काम जल्दी निपटाकर फ़ोन के पास बैठ जाती है। फ़ोन पर माँ-बेटे में लंबी वार्ता चलती है। सुबह नाश्ते में क्या बना है ? इस वीक-एन्ड का क्या प्रोग्राम है ? हेमंत (पौत्र) क्या कर रहा है ? छोटी-छोटी बातों का लंबा सिलसिला।

       उन्हें तो सुझता ही नहीं कि फ़ोन पर क्या बात करें। मौसम का हाल पूछ लेते हैं, सबकी कुशल पूछ लेते हैं, इसके बाद क्या...? और यदि कुछ पूछने का सोचा हुआ भी हो तो ठीक फ़ोन के टाइम पर भूल जायेंगे। 

            पिछले वर्ष बेटे के बहुत आग्रह पर दोनों पति-पत्नी,20-22 घंटे की थका देने वाली हवाई उड़ान के बाद समृद्धि के देश अमेरिका गए थे। बेटे ने वहाँ खूब सैर करवाई... नियाग्रा फॉल्स, लॉस वेगास, बड़े- बड़े मॉल्स, एक चकाचौंध वाली दुनिया। इन सब आकर्षणों के बीच दो महीनों के बाद ही उन्हें अपने सुभद्रा विला की याद सताने लगी थी। पता नहीं क्या आकर्षण होता है अपनी मिट्टी की ख़ुशबू में कि वह मन ही मन घर वापसी के दिन गिनने लगे थे।

        बेटे ने कितनी बार प्रस्ताव रखा था कि अब वह दोनों, बेटे के साथ अमेरिका में ही रहें किंतु बुढ़ापे में इस उम्र का क्या भरोसा। वह नहीं चाहते कि उनकी मिट्टी उस अनजाने पराये देश की मिट्टी में मिले। कहाँ हैं वहाँ गंगा के घाट ? कहाँ हैं वहाँ आम के बौर से आती भीनी ख़ुशबू ? कहाँ मिलेंगी वहाँ गायें जिनके लिए सुभद्रा रोज़ गाय की रोटी सेंकती है। सुभद्रा बिला की चहारदीवारी के बीच का सूनापन भी उनका अपना है। यहाँ की ईंट ईंट पर यादों के अनेक पल जुड़े हैं।

“आज नाश्ते में क्या बनाऊँ ?”, सुभद्रा की आवाज़ से उनकी तन्द्रा भंग हुई।

   "हज़म ही कहाँ होता है और सब, वही दलिया बना लो।”

सुभद्रा रसोई घर में चली गई थी। यादों का सिलसिला फिर चल निकला। कहाँ छूट गए वो पहले जैसे भरे-पूरे परिवार जिसमें दादी-नानी के क़िस्से होते थे, त्योहारों की धूम होती थी, ढोलक की थाप होती थी। अब तो जीवन की इस दूसरी पारी में होता है एक अंतहीन सूनापन। उन्हें याद आते हैं अपने बाबू जी और उनकी चिट्ठियों में झलकता उनका सूनापन। एक बार बाबू जी ने उन्हें चिट्ठी में लिखा था, "सामने बरामदे की बुर्जी में चिड़िया घोंसला बना रही है। तिनका-तिनका जोड़ रही है। घोंसले में अंडे देगी, फिर बच्चे बड़े होंगे, चोंच में दाना ला ला कर उन्हें खिलायेगी। बच्चे बड़े होंगे और जब उनके पर आ जायेंगे तो सब उड़ जायेंगे अपनी-अपनी दुनिया में।"

आज उम्र की इस दहलीज़ पर उन्हें अपने बाबू जी के पत्रों में झलकते उस सूनेपन का अहसास होता है। अब तो ऐसे मकान ही नहीं होते जहाँ गौरेया घुसकर घोंसला बना सके और न ही ऐसे खुले आँगन होते हैं, जहाँ अम्मा चिड़ियाँ को दाना डाला करती थी। कहाँ गए वे दिन ? अब जो दिन बीत रहे हैं वे बस पिछले दिनों की कार्बन कॉपी है।

       ऐसे ही एक दिन जब चौहान जी बरामदे में बैठे ताजे खिले पिटूनिया के फूलों को निहार रहे थे तो उन्होंने देखा कि किचन की बैक डोर से होकर सुभद्रा गैराज के पीछे बने स्टोर की तरफ़ कुछ लेकर तेज़-तेज़ जा रही है। इसके बाद वह पुनः किचन के रास्ते घर में गई और इस बार कोई पुरानी चादर लेकर गैरेज स्टोर की तरफ़ गई। बरामदे में बैठे हुए गैरेज से लगा स्टोर नज़र नहीं आता था। अत: वह कुछ भी नहीं देख पा रहे थे कि वहाँ क्या चल रहा

है। असमंजस की स्थिति में जब वह कुछ भी अनुमान नहीं लगा पा रहे थे, तो उसी क्षण उल्लासित सी सुभद्रा प्रगट हुई। इससे पहले कि वह कुछ पूछत सुभद्रा ने स्वयं मुस्कराते हुए कहा, “घर में कुछ नए मेहमान आए हैं।"

    "नये मेहमान ?" वह कुछ समझे नहीं।

"उठिए चलिए आपको मिलवाती हूं नये मेहमानों से", सुभद्रा ने चहकते हुए कहा। जिज्ञासा और कौतुहल से वह सुभद्रा के पीछे-पीछे चल दिए। स्टोर के पास पहुंचकर सुभद्रा ने स्टोर के फ़र्श की ओर इंगित करते हुए कहा, “लीजिए मिलिए नये मेहमानों से।” उन्होंने आश्चर्य से देखा कि स्टोर के फ़र्श पर एक सफ़ेद- भूरी बिल्ली अपने तीन नवजात बच्चों को जीभ से सहला रही है। रुई के फाहों की तरह नवजात कोमल बच्चे अपनी मिचमिचाती कन्जी आँखों से नये संसार से सामंजस्य बैठाने का प्रयास कर रहे थे।

“कितने प्यारे बच्चे हैं।”, सुभद्रा ने हुलसते हुए कहा। स्त्री के अंदर की माँ उसकी आँखों में तैर आई थी। बिल्ली के बच्चों के आगमन से सुभद्रा विला में म्यूंss...म्यूंss... की आवाज़ का संगीत गूंजने लगा था। बिल्ली और उसके नन्हे-नन्हे बच्चों के कारण सुभद्रा को जीने का एक सम्बल मिल गया था। सुबह-शाम बिल्ली परिवार को दूध और ब्रेड का लंच-डिनर कराया जा रहा था। बिल्ली भी सुभद्रा के आगे-पीछे मँडराती रहती थी। बच्चों की उछल-कूद एवं नई-नई शरारतों के कौतुक को देखकर सुभद्रा की हँसी छूट जाती थी। चौहान जी भी मुस्करा मुस्कराकर इस नये रिश्ते की मिठास का आनंद लेने लगे थे।

    सुभद्रा विला में प्रेम की सरिता बह निकली थी। जीवन में यदि प्रेम नहीं है तो जीवन उस वाटिका के समान है जिसमें न फूल हो और न चहचहाते पक्षियों और गुनगुनाते भँवरों का गुंजन । झुर्रियाँ हमारे चेहरे पर पड़ती हैं उन्हें ह्रदय में मत पड़ने दो।

    एक सुबह सुभद्रा परेशान और व्यग्रता में पूरे घर, बगीचा, गैराज के आस-पास कुछ ढूँढ रही थी। चौहान जी ने जब सुभद्रा की हताशा देखी तो पूछा, "सुबह-सुबह क्या खोज रही हो ?"

  एक बच्चा नहीं मिल रहा। रात तक तो तीनों उछल-कूद कर रहे थे किंतु आज वहाँ दो ही बच्चे हैं। एक पता नहीं कहाँ चला गया ?", सुभद्रा ने उत्तर दिया। खोजी अभियान में अब चौहान जी भी शामिल हो गए थे। घर का चप्पा-चप्पा ढूँढ मारा पर तीसरे बच्चे का कोई अता-पता नहीं था। सुभद्रा रुआँसी होकर हर उस कोने और झाड़ी में खोज रही थी जहाँ उसके होने की कोई संभावना नहीं बनती थी किंतु बच्चा नहीं मिला।

   सुभद्रा थक-हार कर बरामदे की कुर्सी पर निढाल होकर धप्प से बैठ गई। उन्हें कुर्सी के कोने में कुछ गुदगुदा सा लगा। उन्होंने कुर्सी की गद्दी सरकाई तो देखा गद्दी के नीचे छिपा तीसरा बच्चा शरारत से टुकुर-टुकुर देख रहा है।

   "हट बदमाश! मैंने, तुझे कहाँ कहाँ नहीं ढूंढा और तू यहाँ छिपा बैठा है।" सुभद्रा ने उल्लासित हो पति को सूचना देते हुए कहा, "सुनते हो जी, बग़ल में छोरा, नगर में ढिंढोरा। तीसरा शरारती मिल गया है।" यही है जीवन का फ़लसफ़ा - थोड़े ग़म-थोड़ी खुशियाँ। सुख और दुःख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक के अभाव में दूसरे का कोई अस्तित्व नहीं। सुख की पहचान, सुख के रूप में नहीं होती यदि दुःख न भोगा हो। इसी तरह दुःख भी अपनी • पीड़ा खो देगा यदि हमने सुख अनुभव न किया हो।

      आज रविवार है। रात के नौ बज रहे हैं। फ़ोन घनघना रहा है। अमेरिका से रवि का फ़ोन है। आज की फ़ोन वार्ता का मुख्य एपिसोड है सुभद्रा विला में बिल्ली और उसके बच्चों का आगमन। सुभद्रा ने बतलाया कि कैसे एक बच्चा गुम हो गया था। उनका तो दिल ही बैठ गया था पर शुक्र है भगवान का कि बच्चा मिल गया था। बच्चा मिलने की ख़ुशी में उन्होंने नाश्ते में हलुआ बनाया था जिसका रसास्वादन बिल्ली परिवार ने भी किया।

      उधर रवि ने लक्ष्य किया कि आज की वार्ता से शुगर, ब्लड प्रेशर आदि के विषय गायब थे। चर्चा का मुख्य केन्द्र बिन्दु बिल्ली उसके तीन बच्चे और उनके प्रति माँ का स्नेहिल उत्साह। जब बिल्ली-पुराण चर्चा को थोड़ा विराम लगा तो रवि ने फोन पर बताया, "मम्मी मेरे पास भी आपके लिए एक शुभ समाचार है।" “कैसा शुभ समाचार ?, सुभद्रा ने जिज्ञासा से पूछा।

      रवि ने कहा, "मैं जिस अमेरिकन कम्पनी में काम करता हूँ वो कम्पनी अपनी इंडियन ब्रांच में मुझे परिवार सहित एक साल के डेपुटेशन पर इंडिया भेज रही है, मैं जल्दी........ रवि की पूरी बात सुने बिना ही सुभद्रा ने प्रसन्नता से पति को पुकार कर कहा, “सुनते हो जी ! अपना रवि इंडिया आ रहा है.... मैं पहले ही जानती थी बिल्ली के बच्चों का आगमन शुभ है।" चश्में से ढकी अश्रुपूरित आँखों और भर आए गले से उन्होंने हाथ जोड़कर ईश्वर को नमन की मुद्रा में कहा, "आज बिल्ली का खोया बच्चा मिला और अब इतने वर्षों बाद अपना बच्चा घर आ रहा है।"

    उस दिन देर रात तक सुभद्रा विला की लाइटस् जलती रही थी। खिड़कियों से छनकर आते प्रकाश से लॉन में खिले पिटूनिया के पुष्प जैसे मुस्करा रहे थे।

✍️ नरेश वर्मा

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