रविवार, 26 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार विपिन शर्मा के मुक्तक


🎤✍️ विपिन कुमार शर्मा
 सीआरपीएफ गेट 3, ज्वालानगर
रामपुर
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9719046900
9458830001

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में मुंबई निवासी) प्रदीप गुप्ता की कविता ----- अगर संगीत नहीं होता तो क्या होता

https://youtu.be/i5C_DZFMkXw

***प्रदीप गुप्ता
 B-1006 Mantri Serene
 Mantri Park, Film City Road ,   Mumbai 400065

मुरादाबाद की साहित्यकार मोनिका शर्मा मासूम की रचना----- हमने सीखा है मुश्किल हालातों में खुश होना .....


शनिवार, 25 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ------- गधे से इंटरव्यू


काफी दौड़ धूप के बाद
एक गधे से इंटरव्यू का चांस मिला
हमारा मुरझाया हुआ दिल खिला
हमने उसको चाय पर बुलाया
डनलप के शानदार गद्दो पर बैठाया
गधे महाशय के चेहरे से
रोष झलक रहा था
अंग प्रत्यंग से आक्रोश टपक रहा था
उसका उखड़ा मूड देख
मन घबरा गया
माथे पर पसीने का
समंदर लहरा गया
हनुमान चालीसा पढ़ने के बाद
हमारा आत्मविश्वास जागा
हमने अपना पहला सवाल दागा
क्या कारण है
आजकल आप परेशान नजर आ रहे हैं
ना मुस्करा रहे हैं
ना खिलखिला पा रहे हैं
गधे ने हमारी ओर अचंभे से देखा
फिर दार्शनिक अंदाज में समझाया
भारत में इस समय भारी असंतोष है
कहीं पर हुए हैं सांप्रदायिक दंगे
कहीं लोगो में
विदेशियों के प्रति रोष है
कहीं मासूमों पर बलात्कार हो रहा है
कहीं हरिजनों पर अत्याचार हो रहा है
कहीं पर छात्र
आरक्षण के विरोध में चिल्ला रहे है
कहीं कुछ लोग
अलग राष्ट्र बनाने की बात उठा रहे हैं
कहीं पर डाकुओं का आतंक मचा है
कहीं बाढ़ आई है
कहीं सूखा पड़ा है
चारों तरफ मची है त्राहि त्राहि
बढ़ती ही जा रही है महंगाई
ऐसे माहौल में
कोई भी देशभक्त
खुश नहीं रह सकता है
और कोई पत्थर दिल आदमी ही
खुश रहने की बात कह सकता है
मैंने कहा
दुनिया में और भी बहुत से देश हैं
आप भारत की ही चिंता क्यों करते हैं
गधा बोला
भारत ही तो ऐसा देश है
जिसे हम अपना कह सकते है
भारतवासी हमसे
इतना अधिक प्यार जताते हैं
हर ऊंचे पद पर
हमारे ही किसी बंधु को बैठाते हैं
हर क्षेत्र में होती है हमारी पूजा
हमारे जैसा बुद्धिमान
यहां मिलता नहीं दूजा
यहां हमको
कोई भी असुविधा नहीं है
लेकिन बस एक ही बात
हमको मायूसी से भर देती है
यहां की पब्लिक
नेता तक की तुलना
हमसे कर देती है

✍️  डॉ पुनीत कुमार
 मुरादाबाद-244001
मोबाइल फोन नंबर -9837189600

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार भोलानाथ त्यागी की कविता------ प्रतिफल । यह कविता उनके काव्य संग्रह हलाला से ली गई है


✍️ भोलानाथ त्यागी
 विनायकम
49 इमलिया परिसर, सिविल लाइंस
बिजनौर 246701
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 70172 61904  , 94568 73005

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुंबई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की कविता--- जिंदगी नदी का पुल है .....

https://youtu.be/Jhnj2EI0P3c

***प्रदीप गुप्ता
 B-1006 Mantri Serene
 Mantri Park, Film City Road ,   Mumbai 400065

मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता ------ क्या तुम रोक सकोगे


इस देश में
क्या तुम रोक सकोगे?
जवान झील के
पानी की तरह ठहरी,
कभी न खोने वाले
उबलते सच से भरी दृष्टि को
जिससे लोग,
तुम्हें निरंतर देख रहे हैं?
खोखले कानूनों की सुरक्षा
और स्याह हथकडियों के पीछे
शिकार करते हुए,
एक के बाद एक
आवाजों को दबाते हुए,
लोगों को ले जाते हुए,
लोग, जो दबाए हालातों को
ले आते हैं मिट्टी से उछालकर
सतहों तक,
उनके स्वरों से गूँजते,
संघर्ष करते, लड़ते,
घरों को
खाली करते हुए
नज़रें तुम्हें निरंतर देख रही हैं,
बोलो, जब
त्वरित झरनों की तरह
उमड़ने लगेगा
प्रतिरोध का सागर
हर कोने से
तो क्या तुम
इस बहाव को रोक सकोगे?

 ✍️ अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी डॉ अनिल शर्मा अनिल की रचना ----- बचिएगा कोरोना से, औरों को भी बचाना । घर में ही रहना मित्रों, बाहर कहीं न जाना ।।


 ✍️  डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
गुजरातियान
धामपुर
जिला-बिजनौर
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन नम्बर-9719064630

शुक्रवार, 24 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ विश्व अवतार जैमिनी की ग़ज़ल ----- हैवानियत के जुर्म में पकड़ा गया, ये कोई पहुंचा हुआ फकीर है । मैं इबादत और की क्यों कर करूं, दिल में जब मां बाप की तस्वीर है ।


मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अजय जनमेजय की चार गजलें














✍️  डॉ अजय जनमेजय
 मकान नम्बर 1,गली नम्बर 1 एसडीपुरम कॉलोनी
बिजनौर -246701
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9412215952

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की ग़ज़ल ---- यह अश्क होते मोती, यदि आंख तेरी रोती


मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल निवासी साहित्यकार त्यागी अशोक कृष्णम की कविता ----- जमुना मौसी ने मारा है भारत माता के माथे पर पत्थर


देवराज इंद्र ने अकस्मात प्रकट हुए नारद जी से पूछा,
हे संसार दूत!आजकल पृथ्वी लोक पर यह क्या हो रहा है?
सुना है किसी कोरोना नामक  राक्षस के समक्ष,हर कोई जोर-जोर से रो रहा है।
नारद जी ने कहा-आपने जितना सुना,उससे भी अधिक हो रहा है,
यमराज का कार्यक्रम डबल शिफ्ट में,थोक के भाव चल रहा है।
विश्व की कई महाशक्तियों को एक साथ पछाड़कर,उनकी छातियों पर अपनी विनाश लीला का झंडा गाड़ कर,
युद्ध के चौथे महीने में भारत में आ बैठा है,पांव पसार कर।
यह सभी छोटे-बड़े मॅझले शहरों में मारधाड़ मचा रहा है।
खून के आंसू रो रहा है,हर कोई करहा रहा है,
परंतु यहां कोरोना मोदी ब्रांड लॉक डाउन में फंसकर,कुछ-कुछ हताश,चिड़चिड़ा,उखड़ा-उखड़ा नजर आ रहा है।
यह लॉकडाऊन क्या होता है?देवर्षि,जरा खुल कर बताओ,
इसकी मारक क्षमता कितनी है?कार्यशैली के बारे में सुनाओ।
बड़े मजेदार आइटम का नाम लॉकडाऊन है,
इसके आगे बड़े-बड़े तीरंदाजाें का मोरल डाऊन है।
देखा जाए तो चारों ओर साफ-सफाई है,सुख शांति,
प्रत्येक ग्रहणी कर रही है नृत्य,गृह स्वामियों के मन में है भीषण क्रांति।
छुआ-छाई,छेड़छाड़ के कारोबार में आजकल भारी मंदी है,
चारदीवारी के अंदर हर छिछोरा बंद है,छिछोरी बंदी है।
घर के अंदर भी,सोशल डिस्टेंसिंग का पालन पूरी ईमानदारी से हो रहा है,
हर दंपत्ति बच्चों की कड़ी निगरानी में,योग-वियोग कर रहा है
खाने से लेकर दवाई तक,सब कुछ सरकारी है
घर में रहें आप सब,सरकार  आपकी आभारी है।
पुलिस-प्रशासन का अद्भुत आचरण,आजकल मन मस्तिष्क को हिला रहा है,
घर से निकलते ही जमकर लतियाता है,बाद में खाना प्रेम पूर्वक खिला रहा है।
और सुनो!इस भीषण युद्ध में यदि किसी समाज का सर्वाधिक योगदान है,
तो वह संभ्रांत उच्च स्तरीय शराबी मनुष्य प्रजाति का है,
जो घुट-घुट कर जी रहा है,घुल-घुल कर मर रहा है,
लॉक डाउन का पालन करते हुए,मिलावटी शराब तीन-गुने पैसों में माफिया से लेकर पी रहा है।
मानव की इस प्रजाति पर है संकट भारी,इससे किसी को कोई मतलब नहीं, किसी को क्या पड़ी है?
यह पूरी की पूरी नस्ल,विलुप्त होने के कगार पर खड़ी है।
भारी उपेक्षा का शिकार होकर भी चींख नहीं रहा है,नहीं रहा है  चिल्ला,
किसी पर थूक रहा है नहीं पेशाब कर रहा है खुल्लम खुल्ला।
और ना ही मार रहा है किसी पर पत्थर,
मेरे मुंह में हैं 32 दांत,
जो बोलता हूं सच होता है,लो आ गया ऊपर से पत्थर।
अरे भाई किसने मारा पत्थर? किसको मारा यह पत्थर?
क्या कोरोना हो गया रक्त रंजित?
किसी देशभक्त ने क्या कोरोना को मारा पत्थर?
अरे नहीं देवराज!यह तो
देश की विधि पर आया है पत्थर,विधान पर पत्थर,
अस्तित्व पर पत्थर,संविधान पर पत्थर,
प्रभुता पर पत्थर,आया है संप्रभुता पर पत्थर,
यह तो जमुना मौसी ने मारा है,भारत माता के माथे पर पत्थर।

   ✍️  त्यागी अशोका कृष्णम्
 कुरकावली, संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर  9719059703

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत-----बेसहारों के लिए सोचें सभी, कामगारों के लिए सोचें अभी, भूख से मरते हुए बच्चों का हम, पेट भरने की भी तो सोचें कभी,


कब तलक हम झूठपर इतराएंगे,
चाहकर भी सच नहीं कह पाएंगे?
           ----------------------
शांत मन  से  सोचना  होगा  हमें,
उद्दंडता  को   रोकना  होगा  हमें,
बस उजालों से सबक लेकरअभी,
स्वयं  को  भी  टोकना  होगा  हमें,
पूछ  कर  देखें  अंधेरों   से  कभी,
क्या उजालों  के बिना रह  पाएंगे?
कब तलक हम-------------------

बेसहारों   के   लिए   सोचें   सभी,
कामगारों  के   लिए   सोचें  अभी,
भूख  से मरते हुए बच्चों  का  हम,
पेट भरने की  भी  तो  सोचें कभी,
वरना बोलो  इस तरह  इंसानियत,
कैसे जग  के  सामने   ला  पाएंगे।
कब तलक हम-------------------

कहाँ तक हम व्यर्थ झगड़ों में पड़ें,
हम घमंडी सोचपर कब तक अडें,
सिर्फअपने स्वार्थ की खातिर यहाँ,
झूठे सच्चे कहाँ  तक  किस्से  गढ़ें,
अपनी करनी दूसरों पर डाल कर,
क्या कभी हम चैन से  सो  पाएंगे।
कब तलक हम-------------------

हर  किसी एहसान  के पाबंद  हों,
प्यार  में  डूबा  हुआ  अनुबंध  हों,
हम बुज़ुर्गों और  गुरुओं  के सभी,
आशीष  पाने  के लिए  स्वछंद हों,
गर न ऐसा कर  सके  तो उम्र भर,
अपनी नज़रों में स्वयं गिर जाएंगे।
कब तलक हम-------------------

हम दिखावे के बड़े बिल्कुल न हों,
नेक नीयत से कभी ढुलमुल न हों,
किसी को नीचा  दिखाने  के लिए,
किसी भी षड्यंत्र में शामिल न हों,
तभी अपनी जिंदगी को हम सभी,
सर्वदा  खुशियों से  नहला  पाएंगे।
कब तलक हम------------------

        **************

               वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
                   मुरादाबाद
               मोबाइल फोन नम्बर 9719275453

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मुजाहिद फराज की गजल --- इन दिनों शायरी नहीं मकसद, दर्द अशआर में पिरोना है ....




मुरादाबाद की साहित्यकार पूनम गुप्ता की रचना ----प्यारी है अगर जिंदगी तो कुछ बातों को अपनाओ


मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश के 51 दोहे ------









गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार एवं रंगकर्मी स्मृति शेष डॉ इंदिरा गुप्ता जिनकी आज है जन्मतिथि ---


गोकुलदास हिंदू कन्या महाविद्यालय में शिक्षा शास्त्र विभाग में रीडर पद से सेवानिवृत्त डॉ इंदिरा गुप्ता का मुरादाबाद महानगर के रंगमंच और साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा । 23 अप्रैल 1939 को झांसी में जन्मी डॉ गुप्ता ने हिंदी व समाज शास्त्र विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की।तदुपरांत एमए और पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपकी शिक्षा बनारस, इलाहाबाद व लखनऊ में संपन्न हुई 1962 में प्रवक्ता शिक्षा विभाग मेरठ में प्रथम नियुक्त हुई। सन 1999 में मुरादाबाद के गोकुलदास हिंदू कन्या महाविद्यालय से रीडर शिक्षाशास्त्र पद से सेवानिवृत्ति ली । बचपन से ही लेखन में अभिरुचि थी ।आपकी एक काव्य कृति अंतर्ध्वनि का प्रकाशन हो चुका है । शिक्षा सिद्धांत एवं शिक्षा मनोविज्ञान नामक दो पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं ,जो बीए के पाठ्यक्रम में स्वीकृत हुई। संगीत, साहित्य एवं रंगमंच के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा। आ काशवाणी के रामपुर केंद्र से आपकी वार्ताओं का प्रसारण भी हो चुका है ।आप ने सन 1984 में मंजरी नाट्य मंच की स्थापना की। इसके माध्यम से आप के निर्देशन में 13 नाटकों का सफल मंचन हुआ, इनमें दिल की दुकान , माधवी तथा विष्णु प्रभाकर कृत युगे युगे क्रांति की प्रस्तुति चर्चित रही ।मुरादाबाद के रंगमंच के क्षेत्र में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। महाविद्यालय में आयोजित होने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उनकी सक्रिय भागीदारी रहती थी । उनका मानना था कि लेखन क्षमता हो ना हो ,नहीं कवि हृदय सबके पास होता है । मनुष्य संवेदनशील प्राणी है ।भावों, उनके प्रवाह, उनकी शक्ति से वह अछूता नहीं रह सकता। यह शक्ति उसे भावों को जीने की क्षमता प्रदान करती है । उसकी विचारधारा शब्दों का कलेवर पहनकर धारा सी प्रवाहित हो जाती है। प्रकाश में आना न आना दूसरी बात है ना ही सब में एक श्रेणी में आ सकते हैं ।साहित्य की पंडित होने की इतनी आवश्यकता नहीं है । कल्पना ,ज्ञान, अनुभव की विविधता अधिक महत्वपूर्ण है ।आश्चर्य की बात है, गर्वोक्ति भी लग सकती है पर मुझे पंक्ति में आगे आने की, यश की लालसा नहीं रही ,जो किया स्वांत: सुखाय । उनका निधन 14 जून 2019 को हो गया था । प्रस्तुत हैं वाट्स ऍप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में साझा की गई उन्हीं की हस्तलिपि उनकी कुछ रचनाएं -----





















                ::::::::::;प्रस्तुति :::::::::::::

                डॉ मनोज रस्तोगी
                8, जीलाल स्ट्रीट
                मुरादाबाद 244001
                उत्तर प्रदेश, भारत
                मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी ------- योद्धा


डा. रमेश का एक साथी कोरोना की चपेट में आकर अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से झूल रहा था।यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गयी थी।रमेश की  मेडिकल टीम में हालांकि सभी स्वस्थ थे फिर भी मेडिकल जाँच हुई और मेडिकल जाँच होने तक  घर में ही रहने का आदेश दे दिया गया। तीन  चार दिन  में समस्त टीम की मेडिकल रिपोर्ट निगेटिव आयी तो घर परिवार और विभाग वालों ने राहत की साँस ली।परंतु मेडिकल टीम के सभी योद्धाओं व  डा. रमेश का असली इम्तिहान तो अब शुरु हुआ था।यों तो सभी मेडिकल विभाग के  लोग किसी न किसी रूप में समाज के तिरस्कार का दंश झेल रहे थे परंतु  डा. रमेश के साथ तो हद ही हो गयी। एक दिन  हाई वोल्टेज के कारण रमेश के घर के  लगभग अधिकांश उपकरण फुँक गये थे।सबसे बड़ी आफत तो तब  आयी जब पता चला कि पानी का मोटर भी खराब हो गया है।कई जगह फोन मिलाये  पर कही से कोई सहायता न मिल पायी ,पुलिस का नम्बर भी लगातार व्यस्त जा रहा था।घर में लगा हैडपम्प उपयोग में न होने के कारण खराब हो चुका था ।
इस दौरान पूरे मोहल्ले में अफवाह उड़ गयी कि रमेश कोरोना  संक्रमित है।बस फिर क्या था मोहल्ले से होते होते आधे नगर में बिजली की तेजी से अफवाह फैल गयी कि डा रमेश के पूरे परिवार को ही कोरोना है।इन सब बातों से बेखबर रमेश निगेटिव रिपोर्ट आ जाने पर निश्चिंत होकर घर से बाहर मास्क व दस्ताने पहन कर बिजली वाले की तलाश में गया। पूरा दिन भाग दौड़ में गुज़र गया बड़ी मुश्किल से  शाम को एक इलेक्ट्रीशियन मिला। राम जाने.... वो इस अफवाह से अंजान था या ज़रूरतमंद ।वो तुरंत घर पर आ गया और बिजली के तमाम उपकरण ठीक कर दिये।पर मोटर ठीक न कर सका।बोला डाक साहब सुबह  आकर ठीक कर दूँगा।इसमें ज़रूरी सामान डलेगा।

खैर....दिमागी में कुछ शांति हुई कि चलो बिजली का सामान तो सही हुआ,वरना रात भर बिन पंखे के बच्चों के साथ कैसे रह पाते।मगर कोढ़ में खाज तो तब हुई जब वाटर प्यूरीफायर में भी पानी समाप्त हो गया ।रात में कम से कम दो लीटर पानी की ज़रूरत  तो पड़ती।जैसे तैसे पत्नी सुधा  ने खाना बनाया और पीने का पानी का वाटर कूलर लेकर,मास्क लगाकर सहज भाव से  पड़ोसन के दरवाजे पर जाकर आवाज़ दी,"गोलू...!गोलू....!!."पाँच छह बार में अंदर से पड़ोसन की उखड़ी हुई आवाज़ आयी,"हाँ...आती हूँ....।"
गेट पर आकर अंदर से झाँकते हुऐ बोली,"क्या हुआ भाभी जी?वाटर कूलर क्यों ले रखा है?"
"वो हमारा मोटर खराब हो गया है,सुबह तक ठीक हो जायेगा।...बस रात भर की बात है,अभी खाना भी नहीं खाया है,थोड़ा सा पीने का पानी चाहिए था.....
आप अपनी  किसी बाल्टी से ही ऊपर से मेरे वाटर कूलर में  घर के बाहर ही पानी डाल दीजिये।"
रमेश की पत्नी ने मुस्कुराते हुऐ सोशल डिस्टेंसिंग के लिहाज़ से कहा।
"पानी...!!!!ओहहहहह!!!पर मेरे यहाँ तो ऐसी कोई बाल्टी नहीं है,जिससे मैं पानी डाल दूँ।"पड़ोसन ने बहाना बनाया।
"कोई बड़ा बर्तन या भगोना तो होगा...?".सुधा ने उसकी कुटिलता से अंजान बनते हुए कहा।आखिर सुधा मुँह बनायेगी तो बच्चे और पति प्यासे ही रह जायेंगे।
"हाँ देखती हूँ....कोई बरतन हो तो.!..पर एक बात बताइये भाभी जी पूरे मौहल्ले में क्या चर्चा चल रही है...आपको कुछ पता नहीं है क्या?"पड़ोसन ने मुँह बिगाड़ते हुऐ कहा।
"क्या मतलब...कैसी चर्चा?"अब चौंकने की बारी सुधा की थी।
"यही की आप सब को कोरोना है....और आप सब घर के बाहर घूम रहे हो।मौहल्ले वाले बहुत नाराज़ हैं....कह रहे हैं पुलिस बुलायेंगे....और...."
और क्या....हमें पकड़वायेंगे..….है न?वाहहहहहह क्या बात है...जब आधीरात को हमारा गेट खटखटाकर दवाई लेने आते हैं तब नहीं सोचते....जब मुफ्त में इंजेक्शन लगवाने आते हैं तब नहीं सोचते....,कहती हुई सुधा फट पड़ी,"और उस दिन ताली और थाली बजाने की नौटंकी किसलिए कर रहे थे सब....?"इससे पहले सुधा कुछ और बोलती,पड़ोसन अंदर बरतन ढूँढने जा चुकी थी,जो शायद उसे पूरी रात मिला ही नहीं था।
 पलभर में सारे अहसान भुला दिये ...!! सुधा को विश्वास नहीं हो रहा था जब मौहल्ले के अनेक,परिवारों  का  अनेक बार मुफ्त में इलाज किया था।

सुधा अगले घर की ओर बढ़ी ,परंतु..... पता नहीं उसके गेट पर पहुँचने से पहले ही उस घर की लाइट बंद हो गयी थी।शायद पड़ोसी ने खिड़की से सुधा को आता देख लाइट बंदकर सोने का उपक्रम कर रहे थे। रात के साढ़े दस बज चुके थे।खाली वाटर कूलर,लटका हुआ मुँह लेकर सुधा घर आ गयी थी।

फिर...!!!फिर  धरती फटी न आसमान गिरा...!बच्चों के लायक एक डेढ़ गिलास पानी तो निकल आया था प्यूरीफायर में।खुद पति पत्नी बिन पानी के ही  थे।अपने बारे में अफवाहें व मौहल्ले वालों के नीच विचार सुनकर रमेश बाबू का मन क्षुब्ध हो गया था,जो लोग उसे देवता की तरह मानते थे,आखिर वही उसके दुर्दिन आने की आशंका मात्र से ही उसके शत्रु बन गये थे। वे सोचने लगे कि हम भी अगर अस्पताल से भाग जायें या मरीज़ों से नफरत करने लगें तो पूरी धरती पर कोई पानी माँगने वाला और पिलाने वाला भी  न बचेगा। सुधा ठीक ही कहती है ये समाज वैसा सुंदर  नहीं है जैसा हम सोचते हैं।समाज का असली चेहरा तो बड़ा विद्रूप है ,जो मुसीबत आने पर ही साफ साफ दिखता है।अपने बारे में ऐसी अफवाहें सुनकर कहीं और फोन करने की हिम्मत न बची थी।रमेश और सुधा दोनो की आँखे नम थीं,शायद आँख के आँसू  कोरोना योद्धाओं की प्यास बुझाने उनके गालों से बहकर होठ तक आने को आतुर थे।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश की कहानी ------- हम हैं मध्यमवर्ग



        "क्या बात है मम्मी ! इतनी गर्मी शुरू हो गई । अभी तक एसी नहीं चलाया ? "
    जब रोहित ने यह कहा तो उसकी माँ शीला ने अपने पति रजनीश की ओर प्रश्नवाचक नजरों से देखा । तुरंत रजनीश का जवाब आया" एसी को तो अब भूल ही जाओ। पंखे का बिजली का बिल भरना भी अब मुश्किल पड़ेगा ।"
     सुनकर रोहित और शीला दोनों के चेहरे लटक गए । सचमुच स्थिति बहुत खराब है। चालीस दिन के लॉकडाउन में दुकान की आमदनी ठप हो गई । एक पैसे की कमाई नहीं । बस यह समझ लो कि जो रुपए घर में थोड़े बहुत रखे रहते हैं ,उसी से खर्चा चल रहा है । अब यह भी कितने दिन चलेंगे ? दुकान का बिजली का बिल आ चुका होगा? घर का भी बिजली का बिल आएगा । चाहे दो महीने बाद दो या चार महीने बाद , लेकिन देना तो पड़ेगा ।  फिर , दुकान पर खरीदारी के लिए ग्राहक भी कौन से अधिक आ जाएंगे ? जब किसी की जेब में पैसा ही नहीं होगा , सब लाचार और मजबूर होंगे , तो विलासिता की वस्तुएं खरीदने कौन आएगा ?
     रजनीश के दिमाग में यही सब कुछ चल रहा था । " शीला ! सच कहूँ तो आने वाला समय बहुत संकट का है । पता नहीं कोरोना का यह दौर कितने महीने चलेगा और कब आमदनी शुरू होगी ? कब नुकसान की भरपाई होगी ? हो सकता है अब नगदी के बाद तुम्हारे जेवर बेचकर घर का खर्च चलाने की नौबत आ जाए !"
      आँसू यह कहते हुए शायद टपक ही जाते कि तभी मोबाइल की घंटी बजी। फोन उठाया तो उधर से दुकान के नौकर  की आवाज थी " बाबूजी ! अप्रैल के महीने का एडवांस अगर मिल जाता तो अच्छा रहता !"
     " हमारी तो खुद हालत खराब है । फिर भी हजार -पाँच सौ की अगर जरूरत हो तो दे सकता हूँ।" कहकर रजनीश ने फोन रख दिया
   " आप हजार रुपये कैसे दे देंगे ? घर में अब रुपए बचे ही कितने से हैं ? " रजनीश ने फोन रख दिया तो पत्नी ने प्रश्न किया ।
     "यह बात तो केवल मैं और तुम ही जानते हो । समाज में तो हम खाते पीते लोग कहलाते हैं । घर में एसी है। कार और स्कूटर मेंटेन कर रहे हैं । हम गरीब तो है नहीं और अमीर भी नहीं है। हम हैं मध्यमवर्ग ।"

 ✍️  रवि प्रकाश
 बाजार सर्राफा
 रामपुर
उत्तर प्रदेश भारत
 मोबाइल 99976 15451

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ----- मां का दंड


आज सुंदरवन नामक जंगल में दुनिया भर के जीव जंतुओं की सभा होने जा रही है. जीवों की सभी प्रजातियां यहाँ एकत्र हो रही हैँ, सिर्फ मनुष्य को छोड़ कर. सभी अपनी समस्याओं और शिकायतों के साथ उपस्थित हो रहे हैँ. आज की सभा की निर्णय कर्त्री होंगी माँ सृष्टि अथवा प्रकृति.
इस सभा का नेतृत्व चमगादड़ जी को दिया गया क्योंकि हाल ही में चाइनीज नामक दानव प्रजाति ने चमगादड़ समुदाय का अस्तित्व ही मिटा दिया.
यों  तो हर जीव समुदाय की मानव समुदाय के प्रति कोई ना कोई शिकायत है लेकिन छोटे जीव इस बात से परेशान की उनकी आबादी निरंतर कम हो रही है. मानव अपने निहित स्वार्थ के लिए जिस तरह जीव हत्या करता वो तरीका भी अलग ही है.
सभा प्रारभ  हुई. माँ प्रकृति सिंहासन पर आसीन हुई. सबने अभिवादन किया. हर एक जीव अपनी बात कहे. माँ प्रकृति ने कहा .
चमगादड़ गिलहरी कुत्ता  खरगोश सभी एक स्वर में बोले,"माँ क्या हम आपकी संतान नहीं है? क्यों आपने मानव अनुशासन नहीं सिखाया. जव  सृष्टि की थी तव सारे जीवों की आबादी  बराबर थी पर अब..............., मनुष्य इतना निर्दयी हो गया है हमारे नवजात शिशु भी सुरक्षित नहीं.
जो आयु हमें प्रदान की गई थी उतना जीवन तो हमें नसीब नहीं होता. फिर मौत भी इतनी बेदर्दी से की.......,
सिसक कर सभी रोने लगे. माँ से लगातार प्रश्न किये जा रहे पर वह चुपचाप सुन रही थी. आज पहली बार माँ को अपनी सबसे सुन्दर संतान के कुकर्मो की गाथा सुनाई पड़ी. वह तो समझ रही थी की सबसे विकसित स्थान के निवासी अधिक समझदार होंगे, 'पर........., अब आप चाहते क्या हैँ? माँ कातर स्वर में बोली. उन्होंने जैसा हमारे साथ किया वैसी मौत इंसान की भी हो. तभी उनको हमारे दर्द का अहसास होगा. एवमस्तु कहकर माँ प्रकृति उठी और बोली, "आज  मैं तुम्हारे अंतःकरण से निकली आह को एक माहमारी का रूप देती हूं. जो तुम्हारे अस्तित्व को खतरा बना मनुष्य तुमको हाथ लगाना भी भूल जायेगा. तुमको भोजन के रूप में खाकर वह जिसको भी छुएगा वही उस मौत के वायरस का शिकार हो जायगा. जो तुमको जीवन दान देंगे बही जीवित रहेंगे. इतना कहकर माँ प्रकृति अन्तर्ध्यान होगई.
✍️ डॉ प्रीति  हुंकार
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की लघुकथा----- एक्सीडेंट



9:00 बज चुके थे  ठीक 9:30 बजे स्टाफ बस जागृति विहार पहुंच जाती है मुझे सामान रखकर स्टाफ बस पकड़नी होगी
     परंतु यह क्या..... जैसे ही चाबी के लिए मैंने सूटकेस में अपने लंच बॉक्स बैग को देखा  वह गायब था तुरंत पड़ोसियों की सहायता से ताला तोड़ा रिक्शा वाले को पैसे मांग कर दिए किसी तरह विदा किया  ....
    मैं नौचंदी में जैसे ही ट्रेन में घुसा थाउस  कंपार्टमेंट  में सिर्फ एक हीआदमी और था।
   मैं ऊपर की बर्थ पर लेटा था  ठीक सामने वाली सीट पर एक व्यक्ति लेटा था... यह सब बड़ा अजीब सा लग रहा था
..... मुझे बाशरूमं जाना था परंतु डर रहाथा कोई सूटकेस ना ले जाए लिये ट्रेन चलने का इंतजार करता रहा जब ट्रेन की रफ्तार तेज हो गई मैं वॉशरूम गया
......... जैसे ही बॉशरूम से वापस आया तो देखा वह आदमी गायब था परंतु मेरा सूटकेस वहीं रखा था इसलिए निश्चिंत होकर वर्थ पर लेट गया.... फिर यह सब कैसे हो गया... उसने बड़ी सफाई से सूटकेस का लांक खोलकर उसमें से लंच बॉक्स बाला छोटा बैग निकाल लिया था*****एक महीने बाद बाजार में अचानक वह आदमी दिखाई दिया... उसके हाथ में सुंदर सा पर्स था मुझे देखते ही वह तेज़ दौड़ने लगा मुझे ध्यान आया अरे यह तो वही आदमी है जो मुझे ट्रेन में मिला था मैं भी तेजी से उसके पीछे दौड़ा.... दौड़ते दौड़ते हम दोनों मेन रोड पर आ गये तभी अचानक सामने से आती हुई गाड़ी से उसकी टक्कर हुई मैं वहीं रुक गया वह गाड़ी के नीचे आ चुका था उसके हाथ वाला पर्स दूर जा गिरा था ......
     ....मैंने जैसे ही पर्स उठाया एक उम्रदराज महिला हांफते हुए आकर मेरे पास रुकी वह तेज़ हांप रही थी ...महिला बोली बेटे ये वैंग मेरा है इसमें मेरी जीवन भर की पूंजी है ये मुझसे छीन कर लिये जा रहा था... मैंने मदद के लिए बहुत लोगों से गुहार लगाई ... पकड़ो ...पकड़ो मुझे लूट लिया..... कोई तो पकड़ो..परंतु किसी ने मदद नहीं की .....मैं बहुत दूर से इसके पीछे दौड़ रही थी.... तुम्हारा लाख लाख शुक्रिया..... मैं स्तब्ध खड़ा देख रहा था एक ओर वह व्यक्ति खून से लथपथ प्राण छोड़ चुका था दूसरी ओर वह महिला कृतज्ञता से मेरी ओर देख रही थी... काफी भीड़ जमा हो चुकी थी ...भीड़ को चीरते हुए मैं बाहर निकला ईश्वर की लीला के विषय में सोचता हुआ जा रहा था कि हे ऊपर वाले तेरे खेल निराले.. तेरी माया  भी कितनी विचित्र है....       
                अशोक विद्रोही
                8218825541
        412  प्रकाश नगर, मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी ----- कोरोना और मैं


        कोरोना, कोरोना, कोरोना ....................तंग आ गई हूं मैं इसकी दहशत से। यह बड़बड़ाते हुए आज मैंने कोरोना से मिलने का दृढ़ संकल्प लिया। मुँह पर मास्क लगाकर और हाथों में दस्ताने पहन कर मैं निकल पड़ी कोरोना से मिलने। गलियों को पार करते हुए मैं मुख्य सड़क पर आ गई। जहां लॉक डाउन के कारण कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। कहाँ मिलेगा यह कोरोना वायरस ? शायद अस्पताल के आस पास क्योंकि वहीं उसके प्रहार से संक्रमित लोग जाते हैं। उन्हें देखने के लिए निश्चित रूप से वह वहीँ होगा। यह सोच कर मैं अस्पताल पहुंच गई। मैंने इधर उधर देखा परंतु मुझे कोरोना दिखाई नहीं दिया। मैं पूरे दिन इधर उधर भटकती रही कि कोरोना यहाँ मिलेगा, वहां मिलेगा, पर कोरोना कहीं नहीं मिला। धीरे धीरे सूर्य अस्त होने लगा, मैं बहुत थक गई थी इसलिए सड़क किनारे एक बैंच पर बैठ गई। मैं बहुत हताश थी कि पूरा दिन गुजर गया परंतु कोरोना से भेंट नहीं हो पाई। अचानक एक अजीब सा प्राणी जो इस दुनिया का नहीं दिखता था, मेरे सामने आ गया और बोला, 'बताओ क्या काम है तुम्हे मुझसे'। मैने उस अजीब प्राणी को देखा और घबराकर पूछा कि कौन हो तुम ? उस प्राणी ने कहा कि मैं वही हूँ, जिसे तुम सुबह से ढूंढ रही हो "कोरोना वायरस ।" इतना सुनते ही मेरे पैर कांपने लगे, किसी तरह मैंने अपनी इंद्रियों को वश में करके तुरन्त मास्क ठीक किया और उससे एक मीटर की दूरी बना ली। कुछ समय लगा मुझे स्थिर होने में। फिर उसने मुझसे पूछा कि क्यों ढूंढ रही हो मुझे। इस पर मैंने गुस्से में कहा कि तुम्हें शर्म नहीं आती, पूरे विश्व को परेशान करके रख दिया है तुमने। अच्छी खासी चलती दुनिया को रोक दिया है  कितने ही निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया है तुमने। आज तुम्हारी वजह से सब घर में कैद होकर रह गए हैं। आदमी आदमी से डरने लगा है। क्यों परेशान किया है तुमने हम सब को। क्या बिगाड़ा है हमने तुम्हारा जो तुमने हम सबका जीना मुश्किल कर दिया है। यह सुन कर वह वायरस जोर जोर से हँसने लगा। हा हा हा ...................मैंने गुस्सा होते हुए पूछा कि क्यों हँस रहे हो। इस पर कोरोना ने कहा कि बस इतने से ही परेशान हो गए, आज जो तुम भुगत रहे हो, तुम्हारे अभिमान का नतीजा है। यह धरती जैसी तुम्हारी थी वैसी ही अन्य जीवधारियों की भी, परन्तु तुमने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिए कितनी ही प्रजातियों को लुप्त कर दिया और कितनी ही प्रजातियां विलुप्ति के कगार पर है।जो पेड़ पौधे तुम्हे जीवन देते हैं, तुम उनको ही काट देते हो। और क्या कहूँ मैं तुमसे। तुमने तो अपनी पवित्र पाविनी माँ समान गंगा को भी दूषित कर दिया, कभी अंधविश्वास के नाम पर तो कभी आध्यात्मिकता के नाम पर, इसको प्रदूषित करते रहते हो। बेजुबान जानवरों को अपने मनोरंजन के लिए कैद में रखते हो, आज जब तुम स्वयं कैद में हो तो महसूस करके देखो जरा इस पीड़ा को।
     कोरोना की इन बातों को सुनकर मेरी आँखें शर्म से झुक गई। मैंने हाथ जोड़ कर कोरोना से विनती की, कहा- अब हम ऐसा नहीं करेंगे, हमे इस बार माफ कर दो। तुमने हमारी आँखें खोल दी।
        मेरी आँखों मे पछतावे के आंसू देख कर कोरोना ने कहा कि यदि तुम प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़ छाड़ नहीं करोगे, उसे गंदा नही करोगे, वन्य प्राणियों से उनका रहने का स्थान नही छीनोगे ।उन्हें क़ैद में नही रखोगे तो मैं चला जाऊंगा। मैंने कहा , हम वादा करते हैं, हम वादा करते हैं, हम वादा करते हैं।
        अचानक मुझे लगा कि कोई मुझे जोर जोर से हिला रहा है, धीरे धीरे आवाज मेरे कानों तक पहुंच रही थी, मम्मी मम्मी, उठो उठो। मैं अचानक हड़बड़ाकर उठकर बैठ जाती हूं। क्या कोरोना और मैं स्वप्न में वार्तालाप कर रहे थे। बच्चे पूछ रहे थे कि क्या हुआ मम्मी। आप सोते हुए,हम वादा करते हैं, हम वादा करते हैं, क्यों चिल्ला रही थीं। मैने मुस्कुराकर बच्चों की तरफ देखा और कहा कि अब कोरोना हमेशा के लिए चला गया है, परन्तु इस वादे के साथ कि हम प्रकृति के साथ अनावश्यक छेड़ छाड़ नहीं करेंगे और पर्यावरण संतुलन को ध्यान में रखेंगे।इस धरती पर जितना अधिकार हमारा है उतना ही अन्य जीवधारियों का भी है।आओ बच्चों वादा करों।मम्मी हम आज से इस बात का ध्यान रखेंगे यह वादा करते है । मुझे उम्मीद है कि आप सब भी मेरे इस वादे को पूरा करने में अपना सहयोग देंगे।
 
  ✍️  प्रीति चौधरी
शिक्षिका
राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज
हसनपुर, जनपद अमरोहा, उ0 प्र0
मोबाइल फोन नंबर 9634395599

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ------- अपनापन


     एक बुढ़िया जो रोज स्टेशन के सामने वाली पटरी पर बैठी भीख मांगा करती थी कई दिनों से दिखाई नहीं दे रही थी । दीपू ने अपने दोस्तों से मालूम किया,''यार क्या बात है कई दिनों से वह बुढ़िया नहीं दिखाई दे रही है ?
     दीपू के मित्र हँसे औऱ व्यंग कसा,'' तू तो ऐसे परेशान हैं जैसे तेरी मां थी ।''
    ''दीपू ने जमीन की ओर देखते हुए धीरे से उत्तर दिया .... हां... मेरी मां ...जैसी ही थी ।'' क्योंकि वह मुझे हर माह फीस के पैसे देती थी । '' लेकिन तुम ------ तुम ------क्या हो ?''
 
अशोक विश्नोई
मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा---- निखरे रंग


आज आसमान बहुत खुश था .होता भी क्यों नहीं मुद्दतों बाद अपने असली रंग रूप को जो देख रहा था . और पक्षी भी तो कलरव करते हुए उसके आगोश में सिमटने को आतुर थे .थोड़ी उड़ान भरने पर ही जो आँखों से ओझल या बहुत ही फीके से दिखाई देने लगते थे आज उनका दूर से बहुत दूर से इएक एक पंख गिना जा सकता था .
धुंध का दूर दूर तक नामो निशाँ नहीं था और पवन की शीतलता बदलते मौसम की गर्मी पर बभारी पहो रही थी .
नदी का पानी भी मुस्करा रहा था और लहरें अठखेलियां करती प्रतीत हो रही थीं सूरज की किरणें उन पर पपड़कर वातावरण को और खूबसूरत बना रही थीं .
फूल डालिओं पर लटके अपना निखरा हुआ यौवन दिखाकर भौरों को अपनी औतरफ आकर्षित कर रहे थे .
​पूरी प्रकृति खुश थी मंगल गीत गाने को आतुर सी प्रतीत हो रही थी .
​आसमान इतना स्वच्छ की दिन में भी तारे गिने जा सकते तथे
​जंगली और आवारा कहे जाने वाले जानवर बड़ी शान्ति से अपने दिन बिताने में मशगूल थे .
​यह संभव कैसे हुआ प्रकृति भी आश्चर्य चकित थी .फिर उसको पता चचला की अपनी बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध मानव पर प्रकृति के महामारी नामक दंश ने उसको घर में कैद रहने के लिए विवश कर दिया है .
​इसलिए प्रकृति आज कहकर सांस और अपने चमकीले रंगों की दुनियां में फिर से लौट आई है .

​ ✍️ राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश,भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कहानी ---- जेबकतरी


अप्रैल का महीना था, शाम हो चली थी लेकिन अभी पर्याप्त प्रकाश था। सुदूर ग्रामीण इलाके के उस छोटे से रेलवे स्टेशन पर बस इक्का दुक्का ही लोग नज़र आ रहे थे।
सुरेश ने अपनी पेंट की पिछली जेब से अपना पर्स  निकालकर उसमें से एक पचास रुपए का नोट निकाला और पर्स वापस जेब में रखकर टिकट खिड़की की तरफ बढ़ गया।

"बीस रुपये और दीजिये", टिकट बाबू ने उसके बताये स्टेशन को कम्प्यूटर में फीड करते हुए कहा।

"अच्छा सर अभी देता हूँ", कहते हुए सुरेश ने अपनी जेब में हाथ डाला लेकिन ये क्या उसकी जेब में तो उसका पर्स था ही नहीं!!!
सुरेश ने जल्दी-जल्दी अपनी सारी जेबें टटोल लीं लेकिन उसका पर्स कहीं नहीं था।

"अभी तो मैने पैसे निकाल कर पर्स मेरी जेब में...?",  याद करते हुए सुरेश ने फिर अपनी पैंट की पिछली जेब को झाड़ा।

"जल्दी कीजिये भाई", तब तक खिड़की से फिर टिकट बाबू की आवाज आयी।

"ज..जी..जी सर अभी लाता हूँ", कहकर सुरेश परेशान होता हुआ उस जगह आकर खड़ा हो गया जहां उसने पर्स निकाला था और वह इधर-उधर देखने लगा कि शायद कहीं गिर गया हो जेब में रखते वक्त, लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगी।

"कहाँ गया मेरा पर्स??!!?", वह आँखें बंद करके कुछ सोचता हुए बुदबुदाया।

"ओह्ह!!" तभी अचानक उसे कुछ याद आया और वह एक तरफ दौड़ गया।

जल्दी उसने दौड़कर एक भिखारिन जैसी दिखने वाली लड़की को पकड़ा और उसे हाथ पकड़कर खींचता हुआ स्टेशन पर ले आया जो पटरी के सहारे अँधेरे में लगभग भागी हुई चली जा रही थी।
अब तक स्टेशन पर लाइट्स जल चुकी थीं और वहां अच्छा- खासा उजाला हो रहा था।

"ऐ लड़की कहाँ है मेरा पर्स? जो तूने मेरी जेब से निकाला था जब मैं टिकट लेने के लिए बढ़ रहा था", सुरेश चिल्लाकर उस लड़की से बोला।

"कौनसा पर्स साहब? मैंने तो कोई पर्स नहीं लिया", वह लड़की डरते हुए बोली।

"अच्छा झूठ बोलती है...! उस समय तू मेरे पास नहीं खड़ी थी",  सुरेश के तेवर और कड़े हो गए।

"मैं कब खड़ी थी साहिब मैं.. मैं तो.." उस लड़की की आवाज में अब सिसकियां सुनाई पड़ी, सुरेश उस लड़की को ध्यान से देखने लगा।

वह चेहरे से बहुत मासूम सी कोई तेरह-चौदह साल की लग रही थी, सांवला रँग, बड़ी आँखें, लंबे खुले बाल; उसने एक गन्दा सा फ्रॉक पहन रखा था,जो घुटनों के बस थोड़ा ही नीचे पहुंच रहा था। उसके पैरों में दो मेल की पुरानी चप्पल थीं।

किन्तु चेहरे से बच्ची लगने वाली ये लड़की जिस्म से किसी अठारह-बीस साल की महिला जैसी लग रही थी।
जी हाँ महिला क्योंकि उसके शरीर के कटाव समय से पहले ही उभर आये थे और उसका पेट... उसका पेट तो कुछ अलग ही संकेत दे रहा था।
सुरेश उसे देखकर चौंका की इतनी कम उम्र में ये...।

किन्तु अगले ही पल फिर सुरेश के मन मे पर्स का ख्याल आया और उसने फिर कड़क कर पूछा, बताती है या बुलाऊँ पुलिस को।

"बुला लो साहब जब हमने कुछ किया ही नहीं तो डरें क्यों", वह लड़की अब तन कर बोली और झपट्टा मार कर भागने लगी।
उसे सुबकते सुनकर उसे देखने के चक्कर में सुरेश की पकड़ उसके हाथ पर ढीली हो गयी थी और उसी का फायदा उठाकर वह भागने लगी।

"नहीं लिया तो फिर भागती क्यों है सा.. जेबकतरी", सुरेश ग़ुस्से गली देता हुआ उसके पीछे झपटा और कुछ ही कदम पर उसे पकड़ लिया।
इस बार सुरेश ने जब उस पर झपट्टा मारा तो उसका हाथ उस लड़की की छाती पर पड़ा और उसके हाथ में उसके फ्रॉक के साथ ही कुछ और भी चीज या गयी।

ये छोटी सी चीज बिल्कुल सुरेश के पर्स जैसी ही थी।
सुरेश का पर्स हमेशा कुछ पेपरों की वजह से बहुत मोटा हुआ रहता था और अब उसे अपना वही मोटा पर्स उसकी फ्रॉक के अंदर छिपा हुआ महसूस हो रहा था।

"तूने नहीं चुराया तो तेरे पास मेरा पर्स क्या कर रहा है? चोट्टी कहीं की, चल निकाल मेरा पर्स", सुरेश फिर से उसे झिड़कते हुए बोला, लेकिन इस बार उनसे इस 'जेबकतरी' को मजबूती से पकड़ा हुआ था।
इस सुनसान स्टेशन पर अभी तक इन दोनों के बीच अभी तक कोई नहीं आया था।

"मैंने कहा ना कि मैंने नहीं चुराया तुम्हारा पर्स साहब, ये तो मेरे पास मेरा कुछ समान है", इस बार वह लड़की कुछ तेज़ चीखकर बोली।
इतना तेज जैसे वह किसी दूर के व्यक्ति से बात कर रही हो या दूर खड़े किसी को सुनाना चाह रही हो।

"तेरे पास ही है मेरा पर्स, मैं अपना पर्स खूब पहचानता हूं; चल निकाल इसे", सुरेश फिर उस पर चिल्लाया।

"देखो साहब आपने मुझे गलत जगह पकड़ा हुआ है, आप छोड़ो मुझे नहीं तो..", अब वह लड़की सुरेश से डरने के स्थान पर लड़ने पर उतर आई थी।

"नहीं तो क्या? क्या करेगी तू... ", सुरेश उसकी बात सुनकर अपने हाथ को देखते हुए बोला, लेकिन उसने पर्स को नहीं छोड़ा।

अभी ये उलझ ही रहे थे तब तक एक पुलिस वाला सीटी बजाता इधर आता दिखाई पड़ा, उसके साथ ही एक व्यक्ति और था जो रेलवे का ही कोई कर्मचारी लग रहा था।
उन्हें आता देखकर लड़की की आंखों में खुशी की चमक आ गयी थी जिसे सुरेश नहीं देख पाया।

"क्या हुआ साहब, आपने इस भिखारन को ऐसे क्यों पकड़ रखा है?" पुलिस वाले ने आकर सुरेश से पूछा।

"हाँ- हाँ बताओ क्या बात है और किसी लड़की को ऐसे, इस तरह पकड़ना क्या आपको अच्छा लगता है? आप तो देखने में बहुत शरीफ लग रहे हैं तो फिर किसी लड़की के साथ ऐसे अंधेरे में छेड़छाड़...", वह दूसरा आदमी भी बोल पड़ा।

"इसने मेरा पर्स चुराया है हवलदार साहब, ये मेरे हाथ में मेरा पर्स है जो इसने अपने कपड़ों में..", सुरेश भी पुलिस के आने से सुरक्षित ही महसूस कर रहा था।
उसे पूरा विश्वास था कि पर्स बरामद होने पर पुलिस वाला उसकी बात जरूर समझेगा।

"अच्छा आप छोड़िए हम देखते हैं", पुलिस वाले ने उस लड़की का हाथ पकड़ते हुए कहा।

सुरेश ने उसका गिरेबान छोड़ दिया।

"क्यों बे साली मेरे इलाके में जेब काटती है??, चल निकाल क्या है तेरे पास", सिपाही उस लड़की को डाँटते हुए बोला।

"नहीं साहब, मैंने नहीं लिया कुछ भी; मेरे पास बस मेरा ही सामान है", वह लड़की अब पूरे आत्मविश्वास से बोल रही थी।
"अच्छा साली झूठ भी बोलती है, मैं खूब जनता हूँ तुम जे  जैसियों को, अभी चार डण्डे पड़ेंगे तो सब कुछ निकाल देगी",  सिपाही फिर उसे हड़काने लगा।
"चल तलाशी दे, अभी पता लग जाएगा क्या है-क्या नहीं तेरे पास", कहकर सिपाही ने उसे अपनी तरफ घुमाया जिससे सुरेश की तरफ उसकी पीठ हो गयी।
और सिपाही घुटनों पर बैठकर उसकी तलाशी लेने लगा।

"वैसे कितने रुपये होंगे आपके पर्स में और क्या-क्या सामान होगा?रंग क्या है आपके पर्स का? वो क्या है ना पता रहेगा तभी तो मिलान हो पायेगा की वह आपका पर्स है या इसका", तभी वह दूसरा आदमी सुरेश से बोला।

"कोई आठ सौ रुपए और कुछ कागज, मेरा कार्ड और एटीएम हैं मेरे काले पर्स में", सुरेश ने उसकी ओर देखकर जबाब दिया।

"मिल गया, तब तक पुलिस वाला हाथ में पर्स लेकर खड़ा हुआ। लेकिन ये तो लाल पर्स है साहब और इसमें तो कोई बीस-तीस रुपये पड़े हैं और खूब सारे कागज जिनकी वजह से ये मोटा हो रहा है; और तो इसमें कुछ नहीं है साहब।" पुलिस वाला उस लाल पर्स को पलटकर समान निकालते हुए बोला।

"लेकिन आपका पर्स तो काला था, और उसमें आठ सौ.." दूसरा आदमी याद करने का नाटक करते हुए बोला।

"हम समझते हैं आपकी परेशानी, आपका पर्स कहीं और गिर गया होगा। आप ऐसा करिए अपने पर्स का  ब्यौरा और अपना ऐड्रेस लिखकर दे दीजिए हम कल दिन में ढूंढकर देखेंगे और लोगों से पूछताछ करेंगे, अगर मिल गया तो आपके घर भिजवा देंगे", पुलिस वाला सहानुभुति दिखाते हुए बोला।

"वैसे आप कहीं जा रहे हैं या आ रहे हैं", दूसरे व्यक्ति ने पूछा।
"मैं जा रहा हूँ इसी गाड़ी से", सुरेश पता बताते हुए बोला।

"अरे  तब तो गाड़ी जाने वाली है, टिकट तो होगी आपके पास? अरे कहाँ से होगी आपका तो पर्स ही खो गया आप ये लीजिये ये सौ रुपये रखिये और जाइये, हम आपका सामान मिलते ही पोस्ट कर देंगे", पुलिस वाले ने अपनी जेब से सौ रुपये निकाल कर उसे देते हुए कहा।

गाड़ी जाने वाली थी इसलिए सुरेश भी कुछ ना कह सका और सौ रुपये पकड़कर धन्यवाद बोलते हुए टिकट खिड़की की तरफ बढ़ गया।

"पर्स तो उसके पास ही था मेरा, मेरे हाथ अपने पर्स को खूब पहचानते हैं, लेकिन वह बदल कैसे गया और फिर उस लड़की ने कोई भी मर्दाना पर्स अपने सीने पर क्यों छिपाया हुआ था।
और ये पुलिस.. पुलिस वाले ने मुझे अपने पास से सौ रुपए दिए....
वह लड़की भी उसके आने पर ज्यादा ही अकड़ने लगी थी... कहीं ये सब मिले हुए??", सुरेश भागती हुई ट्रेन में विचार दौड़ा रहा था।
इधर ये दोनों लोग, तीन सौ रुपये लड़की को देकर दो-दो सौ अपनी जेब में रख चुके थे और अब बेशर्मी से लड़की के जिस्म को आपस में बांट रहे थे।
लड़की के चेहरे पर मजबूरी और बेबसी का दर्द साफ झलक रहा था।

 ✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा
मुरादाबाद
मोबाइल फोन नंबर ९०४५५४८००८

रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा -----"प्रकॄति का परिवर्तित रूप"


मिहिका ने शाम को जैसे ही खिड़की खोलीं।उसकी आँखें प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर मुस्करा उठीं।वो खुद को एकदम तरोताजा महसूस करने लगी।
समुद्र एकदम शान्त और स्वच्छ था।हवा में एक अलग सी मीठी-मीठी सुगन्ध थी, जो मन को आह्लादित कर रही थी।
सूरज घर जाने को तैयार था,वह गगन में सिंदूरी छटा बिखेरे हुआ था।बादल आसमान से अठखेलियाँ कर रहे थे। कुल मिलाकर यह खूबसूरती शब्दों में बयाँ नहीं हो सकती।
मिहिका ने अपने पति विहान को आवाज  लगायी,"विहान!,विहान!जल्दी आओ देखो!कितना खूबसूरत नजारा है।"
विहान आया ,और मिहिका के साथ उस खूबसूरती का अवलोकन करने लगा।
विहान बोला-"मिहिका! सचमुच एक अलग ही अनुभूति हो रही है।वरना तो प्रदूषण की वजह से साँस लेना भी दुश्वार था।विषैली हवा के कारण यह खिड़की भी हमेशा बन्द रहती  थी। तुमने इसको आज बहुत दिनों बाद खोला है।"
"विहान क्यों भूलते हो?  यह विष भी तो हम मानवों ने ही प्रकृति में घोला है।भौतिकता की दौड़ में हम धरती माँ का नित स्वरुप बिगाड़ रहे हैं। टी.वी,ए.सी,कूलर ,फ्रिज, इन्टरनेट,मोबाइल आदि अलादीन के चिराग ( विज्ञान) द्वारा  प्रदत्त सारे उपकरण हमारी पृथ्वी के लिये अभिशाप बन गये हैं। मनुज अपने अहम में अंधा हो गया  था कि उससे ज्यादा ताकतवर और समझदार प्राणी पूरी सृष्टि में कोई नही है।इतना सब कुछ मिहिका एक साँस में बोल गई,
विहान ने कहा, "मिहिका! प्रकृति का हर छोटा से छोटा प्राणी भी उतनी शक्ति रखता है जितना कि एक बडा़ प्राणी रखता है। देखो न! एक अति सूक्ष्म,अदृश्य जीव ने सम्पूर्ण मनुष्य जाति को घर में  कैद कर उसकी गति को रोककर प्रकृति का जीर्णोद्धार किया है।इस कोरोना ने प्रकृति को खुशहाल बना दिया है।नदियाँ अविरल बह रही हैं।पशु- पक्षी स्वतन्त्र विचरण कर रहे हैं,हवा स्वच्छ हो गयी, जल  साफ होकर पीने योग्य हो गया है।फूल, पेड़,पौधे सब मुस्करा रहे हैं।कुल मिलाकर आज धरती ,गगन,चाँद ,तारे,पशु,पक्षी,सब खुश हैं।"यह प्रकृति का परिवर्तित रूप है ,जो बहुत समय बाद देखने को मिला है।"
 
✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन न.-8077331027

मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव प्रखर की लघुकथा --- छू लिया चांद