गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा---- निखरे रंग


आज आसमान बहुत खुश था .होता भी क्यों नहीं मुद्दतों बाद अपने असली रंग रूप को जो देख रहा था . और पक्षी भी तो कलरव करते हुए उसके आगोश में सिमटने को आतुर थे .थोड़ी उड़ान भरने पर ही जो आँखों से ओझल या बहुत ही फीके से दिखाई देने लगते थे आज उनका दूर से बहुत दूर से इएक एक पंख गिना जा सकता था .
धुंध का दूर दूर तक नामो निशाँ नहीं था और पवन की शीतलता बदलते मौसम की गर्मी पर बभारी पहो रही थी .
नदी का पानी भी मुस्करा रहा था और लहरें अठखेलियां करती प्रतीत हो रही थीं सूरज की किरणें उन पर पपड़कर वातावरण को और खूबसूरत बना रही थीं .
फूल डालिओं पर लटके अपना निखरा हुआ यौवन दिखाकर भौरों को अपनी औतरफ आकर्षित कर रहे थे .
​पूरी प्रकृति खुश थी मंगल गीत गाने को आतुर सी प्रतीत हो रही थी .
​आसमान इतना स्वच्छ की दिन में भी तारे गिने जा सकते तथे
​जंगली और आवारा कहे जाने वाले जानवर बड़ी शान्ति से अपने दिन बिताने में मशगूल थे .
​यह संभव कैसे हुआ प्रकृति भी आश्चर्य चकित थी .फिर उसको पता चचला की अपनी बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध मानव पर प्रकृति के महामारी नामक दंश ने उसको घर में कैद रहने के लिए विवश कर दिया है .
​इसलिए प्रकृति आज कहकर सांस और अपने चमकीले रंगों की दुनियां में फिर से लौट आई है .

​ ✍️ राशि सिंह
​मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश,भारत

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