गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ------- अपनापन


     एक बुढ़िया जो रोज स्टेशन के सामने वाली पटरी पर बैठी भीख मांगा करती थी कई दिनों से दिखाई नहीं दे रही थी । दीपू ने अपने दोस्तों से मालूम किया,''यार क्या बात है कई दिनों से वह बुढ़िया नहीं दिखाई दे रही है ?
     दीपू के मित्र हँसे औऱ व्यंग कसा,'' तू तो ऐसे परेशान हैं जैसे तेरी मां थी ।''
    ''दीपू ने जमीन की ओर देखते हुए धीरे से उत्तर दिया .... हां... मेरी मां ...जैसी ही थी ।'' क्योंकि वह मुझे हर माह फीस के पैसे देती थी । '' लेकिन तुम ------ तुम ------क्या हो ?''
 
अशोक विश्नोई
मुरादाबाद

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