गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

रामपुर की साहित्यकार रागिनी गर्ग की लघुकथा -----"प्रकॄति का परिवर्तित रूप"


मिहिका ने शाम को जैसे ही खिड़की खोलीं।उसकी आँखें प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर मुस्करा उठीं।वो खुद को एकदम तरोताजा महसूस करने लगी।
समुद्र एकदम शान्त और स्वच्छ था।हवा में एक अलग सी मीठी-मीठी सुगन्ध थी, जो मन को आह्लादित कर रही थी।
सूरज घर जाने को तैयार था,वह गगन में सिंदूरी छटा बिखेरे हुआ था।बादल आसमान से अठखेलियाँ कर रहे थे। कुल मिलाकर यह खूबसूरती शब्दों में बयाँ नहीं हो सकती।
मिहिका ने अपने पति विहान को आवाज  लगायी,"विहान!,विहान!जल्दी आओ देखो!कितना खूबसूरत नजारा है।"
विहान आया ,और मिहिका के साथ उस खूबसूरती का अवलोकन करने लगा।
विहान बोला-"मिहिका! सचमुच एक अलग ही अनुभूति हो रही है।वरना तो प्रदूषण की वजह से साँस लेना भी दुश्वार था।विषैली हवा के कारण यह खिड़की भी हमेशा बन्द रहती  थी। तुमने इसको आज बहुत दिनों बाद खोला है।"
"विहान क्यों भूलते हो?  यह विष भी तो हम मानवों ने ही प्रकृति में घोला है।भौतिकता की दौड़ में हम धरती माँ का नित स्वरुप बिगाड़ रहे हैं। टी.वी,ए.सी,कूलर ,फ्रिज, इन्टरनेट,मोबाइल आदि अलादीन के चिराग ( विज्ञान) द्वारा  प्रदत्त सारे उपकरण हमारी पृथ्वी के लिये अभिशाप बन गये हैं। मनुज अपने अहम में अंधा हो गया  था कि उससे ज्यादा ताकतवर और समझदार प्राणी पूरी सृष्टि में कोई नही है।इतना सब कुछ मिहिका एक साँस में बोल गई,
विहान ने कहा, "मिहिका! प्रकृति का हर छोटा से छोटा प्राणी भी उतनी शक्ति रखता है जितना कि एक बडा़ प्राणी रखता है। देखो न! एक अति सूक्ष्म,अदृश्य जीव ने सम्पूर्ण मनुष्य जाति को घर में  कैद कर उसकी गति को रोककर प्रकृति का जीर्णोद्धार किया है।इस कोरोना ने प्रकृति को खुशहाल बना दिया है।नदियाँ अविरल बह रही हैं।पशु- पक्षी स्वतन्त्र विचरण कर रहे हैं,हवा स्वच्छ हो गयी, जल  साफ होकर पीने योग्य हो गया है।फूल, पेड़,पौधे सब मुस्करा रहे हैं।कुल मिलाकर आज धरती ,गगन,चाँद ,तारे,पशु,पक्षी,सब खुश हैं।"यह प्रकृति का परिवर्तित रूप है ,जो बहुत समय बाद देखने को मिला है।"
 
✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर
उत्तर प्रदेश,भारत
मोबाइल फोन न.-8077331027

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