गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की कहानी ------- योद्धा


डा. रमेश का एक साथी कोरोना की चपेट में आकर अस्पताल में ज़िंदगी और मौत से झूल रहा था।यह खबर पूरे शहर में आग की तरह फैल गयी थी।रमेश की  मेडिकल टीम में हालांकि सभी स्वस्थ थे फिर भी मेडिकल जाँच हुई और मेडिकल जाँच होने तक  घर में ही रहने का आदेश दे दिया गया। तीन  चार दिन  में समस्त टीम की मेडिकल रिपोर्ट निगेटिव आयी तो घर परिवार और विभाग वालों ने राहत की साँस ली।परंतु मेडिकल टीम के सभी योद्धाओं व  डा. रमेश का असली इम्तिहान तो अब शुरु हुआ था।यों तो सभी मेडिकल विभाग के  लोग किसी न किसी रूप में समाज के तिरस्कार का दंश झेल रहे थे परंतु  डा. रमेश के साथ तो हद ही हो गयी। एक दिन  हाई वोल्टेज के कारण रमेश के घर के  लगभग अधिकांश उपकरण फुँक गये थे।सबसे बड़ी आफत तो तब  आयी जब पता चला कि पानी का मोटर भी खराब हो गया है।कई जगह फोन मिलाये  पर कही से कोई सहायता न मिल पायी ,पुलिस का नम्बर भी लगातार व्यस्त जा रहा था।घर में लगा हैडपम्प उपयोग में न होने के कारण खराब हो चुका था ।
इस दौरान पूरे मोहल्ले में अफवाह उड़ गयी कि रमेश कोरोना  संक्रमित है।बस फिर क्या था मोहल्ले से होते होते आधे नगर में बिजली की तेजी से अफवाह फैल गयी कि डा रमेश के पूरे परिवार को ही कोरोना है।इन सब बातों से बेखबर रमेश निगेटिव रिपोर्ट आ जाने पर निश्चिंत होकर घर से बाहर मास्क व दस्ताने पहन कर बिजली वाले की तलाश में गया। पूरा दिन भाग दौड़ में गुज़र गया बड़ी मुश्किल से  शाम को एक इलेक्ट्रीशियन मिला। राम जाने.... वो इस अफवाह से अंजान था या ज़रूरतमंद ।वो तुरंत घर पर आ गया और बिजली के तमाम उपकरण ठीक कर दिये।पर मोटर ठीक न कर सका।बोला डाक साहब सुबह  आकर ठीक कर दूँगा।इसमें ज़रूरी सामान डलेगा।

खैर....दिमागी में कुछ शांति हुई कि चलो बिजली का सामान तो सही हुआ,वरना रात भर बिन पंखे के बच्चों के साथ कैसे रह पाते।मगर कोढ़ में खाज तो तब हुई जब वाटर प्यूरीफायर में भी पानी समाप्त हो गया ।रात में कम से कम दो लीटर पानी की ज़रूरत  तो पड़ती।जैसे तैसे पत्नी सुधा  ने खाना बनाया और पीने का पानी का वाटर कूलर लेकर,मास्क लगाकर सहज भाव से  पड़ोसन के दरवाजे पर जाकर आवाज़ दी,"गोलू...!गोलू....!!."पाँच छह बार में अंदर से पड़ोसन की उखड़ी हुई आवाज़ आयी,"हाँ...आती हूँ....।"
गेट पर आकर अंदर से झाँकते हुऐ बोली,"क्या हुआ भाभी जी?वाटर कूलर क्यों ले रखा है?"
"वो हमारा मोटर खराब हो गया है,सुबह तक ठीक हो जायेगा।...बस रात भर की बात है,अभी खाना भी नहीं खाया है,थोड़ा सा पीने का पानी चाहिए था.....
आप अपनी  किसी बाल्टी से ही ऊपर से मेरे वाटर कूलर में  घर के बाहर ही पानी डाल दीजिये।"
रमेश की पत्नी ने मुस्कुराते हुऐ सोशल डिस्टेंसिंग के लिहाज़ से कहा।
"पानी...!!!!ओहहहहह!!!पर मेरे यहाँ तो ऐसी कोई बाल्टी नहीं है,जिससे मैं पानी डाल दूँ।"पड़ोसन ने बहाना बनाया।
"कोई बड़ा बर्तन या भगोना तो होगा...?".सुधा ने उसकी कुटिलता से अंजान बनते हुए कहा।आखिर सुधा मुँह बनायेगी तो बच्चे और पति प्यासे ही रह जायेंगे।
"हाँ देखती हूँ....कोई बरतन हो तो.!..पर एक बात बताइये भाभी जी पूरे मौहल्ले में क्या चर्चा चल रही है...आपको कुछ पता नहीं है क्या?"पड़ोसन ने मुँह बिगाड़ते हुऐ कहा।
"क्या मतलब...कैसी चर्चा?"अब चौंकने की बारी सुधा की थी।
"यही की आप सब को कोरोना है....और आप सब घर के बाहर घूम रहे हो।मौहल्ले वाले बहुत नाराज़ हैं....कह रहे हैं पुलिस बुलायेंगे....और...."
और क्या....हमें पकड़वायेंगे..….है न?वाहहहहहह क्या बात है...जब आधीरात को हमारा गेट खटखटाकर दवाई लेने आते हैं तब नहीं सोचते....जब मुफ्त में इंजेक्शन लगवाने आते हैं तब नहीं सोचते....,कहती हुई सुधा फट पड़ी,"और उस दिन ताली और थाली बजाने की नौटंकी किसलिए कर रहे थे सब....?"इससे पहले सुधा कुछ और बोलती,पड़ोसन अंदर बरतन ढूँढने जा चुकी थी,जो शायद उसे पूरी रात मिला ही नहीं था।
 पलभर में सारे अहसान भुला दिये ...!! सुधा को विश्वास नहीं हो रहा था जब मौहल्ले के अनेक,परिवारों  का  अनेक बार मुफ्त में इलाज किया था।

सुधा अगले घर की ओर बढ़ी ,परंतु..... पता नहीं उसके गेट पर पहुँचने से पहले ही उस घर की लाइट बंद हो गयी थी।शायद पड़ोसी ने खिड़की से सुधा को आता देख लाइट बंदकर सोने का उपक्रम कर रहे थे। रात के साढ़े दस बज चुके थे।खाली वाटर कूलर,लटका हुआ मुँह लेकर सुधा घर आ गयी थी।

फिर...!!!फिर  धरती फटी न आसमान गिरा...!बच्चों के लायक एक डेढ़ गिलास पानी तो निकल आया था प्यूरीफायर में।खुद पति पत्नी बिन पानी के ही  थे।अपने बारे में अफवाहें व मौहल्ले वालों के नीच विचार सुनकर रमेश बाबू का मन क्षुब्ध हो गया था,जो लोग उसे देवता की तरह मानते थे,आखिर वही उसके दुर्दिन आने की आशंका मात्र से ही उसके शत्रु बन गये थे। वे सोचने लगे कि हम भी अगर अस्पताल से भाग जायें या मरीज़ों से नफरत करने लगें तो पूरी धरती पर कोई पानी माँगने वाला और पिलाने वाला भी  न बचेगा। सुधा ठीक ही कहती है ये समाज वैसा सुंदर  नहीं है जैसा हम सोचते हैं।समाज का असली चेहरा तो बड़ा विद्रूप है ,जो मुसीबत आने पर ही साफ साफ दिखता है।अपने बारे में ऐसी अफवाहें सुनकर कहीं और फोन करने की हिम्मत न बची थी।रमेश और सुधा दोनो की आँखे नम थीं,शायद आँख के आँसू  कोरोना योद्धाओं की प्यास बुझाने उनके गालों से बहकर होठ तक आने को आतुर थे।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

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