शनिवार, 13 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से आज शनिवार 13 जून 2020 को मुक्तक गोष्ठी का आयोजन प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी जी की अध्यक्षता में किया गया। राजीव प्रखर द्वारा संचालित इस ऑनलाइन गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों यश भारती माहेश्वर तिवारी, शचीन्द्र भटनागर, डॉ अजय अनुपम, डॉ मनोज रस्तोगी , डॉ पूनम बंसल, योगेंद्र वर्मा व्योम, ओंकार सिंह विवेक, श्री कृष्ण शुक्ल, मनोज वर्मा मनु, राजीव प्रखर, मोनिका शर्मा मासूम , मीनाक्षी ठाकुर और रीता सिंह द्वारा प्रस्तुत मुक्तक

(1)
झूठे भी तो आधार हुआ करते हैं
सपनों के भी संसार हुआ  करते हैं
कुछ ऐसी परिधि अनोखी निर्माणों की
उजड़ों के भी घरबार हुआ करते हैं

(2)
गाँव का गाँव सूना पड़ा है
जेठ का सूर्य इतना कड़ा है
छिप गये छाँव में सब पखेरू
धूप में वृद्ध पीपल खड़ा है

✍️माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
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1-
दूसरों की पीर जो अनुभव करे इनसान है
भाव के जिसके विशद् हों दायरे इनसान है
व्यक्ति को बीहड़ विजन पथ पर अकेला देखकर
स्नेह- करुणा से ह्रदय जिसका भरे इनसान है
2-
आदमी की भीड़ में इनसान मिल पाते नहीं
प्यार के, अपनत्व के अनुमान मिल पाते नहीं
हैं बहुत जो आग की बौछार करते  हर तरफ़
पर कहीं तुलसी, कहीं रसखान मिल पाते नहीं
3-
जो सभी को प्यार में नहला सके, इनसान है
दर्द से दुखता हृदय सहला सके, इनसान है
अब न युग को देवताओं की ज़रूरत है कहीं
जो यहाँ इनसानियत दिखला सके, इनसान है
4-
मीत, मत उनको सराहो, जो बहारों में जिए
जो सदा ऐश्वर्य के मादक इशारों में जिए
है वही इनसान, सेवा में जिसे आनंद हो
जो सदा असहाय, बेबस, बेसहारों में जिए
5-
आज धरती को नहीँ धन का ज़खीरा चाहिए
प्रेम, श्रद्धा, त्याग की प्रतिमूर्ति मीरा चाहिए
जो निडर- निष्पक्ष होकर कह सके बानी सही
आज व्याकुल विश्व को ऐसा कबीरा चाहिए

✍️ शचींद्र भटनागर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन 80571-92199
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(1)
वे हमारे हुए या तुम्हारे हुए
हर कठिन काल गति में सहारे हुए
तिक्तताएं हृदय की समेटे सभी
चलपड़े इसलिये अश्रु खारे हुए

(2)
हो विवश थम गई भावना की नदी
निमिष भर में गयी बीत जैसे सदी
शब्द,संकेत भी जब न सम्भव लगे
एक उच्छ्वास ने सब कथा बांच दी

(3)
भाव की चांदनी के रजत कोष हैं
दाहपूरित,सजल, शांति मय,रोष हैं
नित अमलकांति वाले रजत अश्रुकण
बुद्धि पर भावना का विजय घोष हैं

(4)
मुक्तहोकर वासना के भार से
आन्तरिक अनुभूति के दृग-द्वार से
झांक कर देखो प्रणय की दिव्यता
देह-कामी स्थूलता के पार से

(5)
मुक्तस्वर से मौन भी गाने लगे
जलन सबका दर्द सहलाने लगे
प्यारवह संगीत है सुनकर जिसे
आंसुओं को भी हंसी आने लगे

✍️डॉ. अजय अनुपम
मुरादाबाद 244001
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(1)
सुन  रहे यह साल  आदमखोर है
हर तरफ  चीख, दहशत, शोर है
मत कहो वायरस जहरीला बहुत
आजकल इंसान  ही   कमजोर है

(2)
मौतों   का  सिलसिला  जारी है
व्यवस्था की कैसी ये लाचारी है
आप  शोक संदेश  पढ़ते  रहिये
आपकी इतनी ही जिम्मेदारी है

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल नंबर 945 6687 822
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शूल के संग हंसते सुमन देखिये
नीर से हैं भरे दो नयन देखिये
छेड़ कर फिर नयी प्रेम की रागनी
नेह की बारिशों के सपन देखिये

नहीं वो ज़िन्दगी जो दर्द से अनजान होती है
किसी भी आदमी की कर्म से पहचान होती है
ख़ुशी के रास्ते की हर बला को रोक देती है
मिली आशीष की पूंजी बनी दरबान होती है

याद में नैन उनकी तरल हो गए
प्यार के रंग सारे विरल हो गए
दर्द का ये गरल जब ख़ुशी से पिया
रास्ते ज़िन्दगी के सरल हो गए

न बदली ज़िन्दगी मेरी न बदला ये ज़माना है
कभी जो स्वप्न था देखा वही सपना सजाना है
लहर से खेलते हैं ये किनारे मुस्कुराते हैं
उम्र की कश्तियाँ लेकर सभी को पार जाना है

धूप में छाँव में राह चलने लगी
ज़िन्दगी हादसों से बहलने लगी
बदलियों ने ढकीं चाँद की शोखियाँ फिर नयी एक चाहत मचलने लगी

 ✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद 244001
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(एक)
अब न गौरैया चहकती है मुँडेरों पर
हो रहा हावी अजाना डर बसेरों पर
यह समय का खेल है या फिर सियासत है
रात भारी पड़ रही है अब सवेरों पर
(दो)
चाह में उत्साह की प्रस्तावना भी हो
शून्यता में नवसृजन संभावना भी हो
मंज़िलें निश्चित मिलेंगी शर्त इतनी है
कोशिशों में भी ललक हो साधना भी हो
(तीन)
त्यागकर स्वार्थ का छल भरा आवरण
तू दिखा तो  सही प्यार का आचरण
शूल  भी  फिर नहीं दे सकेंगे चुभन
जब छुअन का बदल जाएगा व्याकरण
(चार)
द्वंद  हर  साँस  का साँस के संग है
हो  रही  हर  समय स्वयँ से जंग है
भूख - बेरोज़गारी  चुभे   दंश - सी
ज़िन्दगी  का  ये  कैसा  नया रंग है
(पांच)
हों नयी उत्पन्न अब संभावनाएँ
नित जगें साहित्य के प्रति भावनाएँ
हम लिखें जो हो भला उससे सभी का
दिग्भ्रमित ना हों कभी नव कल्पनाएँ

 ✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद 244001
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1.
प्यार  की  बातें करें सब और सब में मेल हो,
नफ़रतों  का अब यहाँ पर बंद सारा खेल हो।
सैनिकों के शौर्य पर भी जो सियासत कर रहे,
 माँग  है  यह  ही  हमारी शीघ्र उनको जेल हो।

2.
धर्म-भाषा-बोलियों  का  जो  यहाँ  विस्तार  है,
 राष्ट्र  की  यह  एकता  का  एक दृढ़ आधार है।
  झुक नहीं  सकता कभी भारत किसी के सामने,
  जानता  इस  बात  को  अच्छी  तरह संसार है।
 
3.
डगर का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
  सफ़र  आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
  कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
  सदा  यह भान  होता है अगर माँ साथ होती है।

 ✍️  ओंकार सिंह विवेक
 रामपुर
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सामने आकर मधुर स्वर बोलता है।
पीठ पीछे सिर्फ विष ही घोलता है।।
आदमी से दोस्त, दर्पण ही भला है।
जो भी दिखता है बराबर बोलता है।।

एक नुस्खा आजमाना चाहिए
दर्द में भी मुस्कुराना चाहिए
चार बातें यूँ ही उनसे कीजिए
दोस्ती का कुछ बहाना चाहिए।

अँधेरे दिलों के मिटाते रहेंगे।
दिये प्यार के बस जलाते रहेंगे।
हवाओं से यदि तुम करोगे हिफ़ाजत।
दिये रात भर जगमगाते रहेंगे।

सब प्रशंसा करें, आप ऐसे बनो,
साथ सबका मिले, मीत ऐसे बनो,
जल रहा है स्वयं, दे रहा रोशनी,
हो सके तो किसी, दीप जैसे बनो।।

दुख के बादल सभी आज छँट जाएंगे।
राम के हाथों पुतले निपट जाएंगे
तुम ह्रदय में बसाओ तो श्री राम को।
मन के भीतर के रावण भी मिट जाएंगे।

 ✍️  श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400
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खुदा भी, गॉड भी, भगवान भी, वाहेगुरु भी तू,
हमारी कोशिशों के हौसले का दम शुरू भी तू,
तेरी मर्जी से होता है यहां ज़र्रा भी सूरज सा ,
तू ही मुझ में बसा है और मेरे रूबरू भी तू ,,
............

किसे हक़ है तेरी मर्जी में कोई भी दखल दे दे,
जो तू चाहे करिश्मे को हक़ीक़त का अमल दे दे,
भला तुझे सा करम फ़रमा सिवा तेरे कहीं  होगा,
कि जन्नत की रिहाइश एक नेकी का बदल दे दे,,
..........

 कुछ तो था जिसका ग़म नहीं जाता,
 दिल से वो... दम से कम नहीं जाता ,
कोई ...शिद्दत  से  याद  करता।  है ,
मुद्दतों ...यह   वहम    नहीं    जाता ,,
...........

ना रुसवाई का ग़म होता ये  हिस आहत ना होती,
 खलिश रहती तेरे दिल में कभी राहत न होती,
 ये कितने हुस्न के पैकर बिखर जाते हैं  तन्हा,
कभी सोचा? अगर तेरी हमें चाहत न होती,,
............

मुझे लगता है मेरे ख्वाब भी अब,
मेरे दिल से तिजारत कर रहे हैं,
 तेरे एहसास को दलदल बनाकर,
 मेरी जां से से बगावत कर रहे हैं,,
.............

किसी को ख्वाब की ता'बीर मिल गई होती,
आप मिलते अगर .. तकदीर मिल गई होती ,
और रांझे ने.... भला कौन  खुदा मांगा था?
 वही मिल जाता..अगर  हीर मिल गई होती,

 ✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
  63970 93523
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(1)
शब्द पिरोने का यह सपना, इन नैनो में पलने दो।
मैं राही हूँ लेखन-पथ का, मुझे इसी पर चलने दो।
कल-कल करती जीवन-धारा, पता नहीं कब थम जाए,
मेरे अन्तस के भावों को, कविता में ही ढलने दो।

(2)
हरे-भरे कलरव से गुंजित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
वर्षों से सूनी बगिया में, ज्यों ही पौध लगायी तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।

(3)
घोर विनाशक अन्धेरे ने , ऐसी सेज सजाई है।
श्वास-श्वास मटमैली होकर, सकल-सृष्टि थर्राई है।
सदा निरंकुश रह कर तूने, किया साधनों का दोहन,
तेरे ही इन दुष्कर्मों की, धुन्ध धरा पर छायी है।

(4)
राजनीति सा हो गया, मौसम का व्यवहार।
कभी भानु बहुमत रखें, कभी मेघ सरदार।।
असमंजस में पड़ गये, नीचे वाले लोग।
पता नहीं चलने लगे, कब किसकी सरकार।।

✍️ - राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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1
उसके मकाने-दिल में हमने घर बना लिया
चौखट को उसकी चूम कर मंदिर बना लिया
तकदीर अपनी छोड़ दी उसके नसीब पर
किस्मत को उसकी अपना मुकद्दर बना लिया
2
ओ चन्दा तेरे ही जैसा उज्जवल मेरा भाग रहे
जैसे तू बरसाए ,मुझ पर भी उनका अनुराग रहे
मैं भी प्रीत की रीत सँवर कर धवल चाँदनी हो जाऊं
मांगू तुझ से बस इतना मेरा भी अखंँड सुहाग रहे
 3
हैं कांच की चूड़ियां सिंगार नारी का
इनकी खनक में गूंजता है प्यार नारी का
नाजुक सी हैं भले, मगर कमजोर नहीं हैं
यह बांध के रखती हैं घर संसार नारी का
4
गज़ल कोई फिर सरफरोशी लिखी है
मुहब्बत में यूं गर्म जोशी लिखी है
वजूद अपना "मासूम" ने खुद मिटाकर
मुक़द्दर में खाना बदोशी लिखी है
5
कहूं हिटलर का पोता या उसे सद्दाम का नाती
न जाने क्यों मेरी कोई अदा उसको नहीं भाती तरसती है मेरी आंखें बस इक मुस्कान को उसकी
मुई, सौतन है ये भी सामने मेरे नहीं आती

✍️ मोनिका मासूम
मुरादाबाद 244001
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                    1
देख दुर्दशा मज़दूरों की,पल-पल आँसू बहते हैं,
हाय ! गरीबी लड़े मौत से,भूखे तन कब सुनते हैं।
कभी गाँव से चली डगर थी,शहरों में पाने रोटी,
आज उसी रोटी की खातिर, शहर गाँव को मुड़ते हैं।।
                     2
होकर जिधर से निकला, ये कारवां हमारा,
कर ली फत़ेह हासिल, हुआ आसमां हमारा,
मर कर भी न मरें हम,कुछ ऐसा करके जाएँ,
सदियों रहे सलामत,हिंदोस्तां हमारा।।
                      3
कहे मीरा दिवानी ये,मुक़म्मल ठौर क्या करना,
तेरी बाँहों में दम निकले, सफ़र अब और क्या करना ।
ज़हर पीकर भी ज़िंदा हैं,तमन्ना में तेरी ज़ालिम,
लगे दम ज़िंदगी मेरी,दुआ पर गौर क्या करना।।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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भोर के सूरज से निकलती , लहक हैं बेटियाँ
घर उपवन में खिले सुमन की , महक हैं बेंटियाँ
चहचहातीं जो अंजुली भर , खुले आसमां में
बाबुल अँगना की वो मीठी , चहक हैं बेटियाँ ।

बहें जिस लहर सँग भाई वो , बहक हैं बेटियाँ
छोड़तीं राखी के लिये सभी , हक हैं बेटियाँ
हो जाती भस्म जिसमें , कुरुवंश की कुरूपता
याज्ञसैनी के उस क्रोध की , दहक हैं बेटियाँ ।

 ✍️ डॉ. रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)

::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ------ मै चोर बन गया हूं



आप सब की नज़रों में
मैं चोर बन गया हूं
मैंने,न केवल चोरी की है
चोरी करते पकड़ा भी गया हूं
मैं कोई खानदानी चोर नहीं हूं
ना ही चोरी करना मेरा पेशा है
शायद इसीलिए
मैं ठीक से चोरी नहीं कर पाया
और मेरे इस कार्य को
आप सभी ने देखा है
जब मैं
अपने चारों ओर नजर घुमाता हूं
अधिकतर लोगों को
चोरी और लूटपाट करते हुए पाता हूं
हमारे नेता,चुनाव जीतते ही
देश को लूटने में लग जाते हैं
पूरे पांच साल तक
पब्लिक से नज़रें चुराते हैं
हम लाचार लोग
उनका कुछ नहीं कर पाते हैं
अगले चुनाव में
वो फिर चुन लिए जाते हैं
हमारे फिल्मकार
विदेशी फिल्मों से आइडिया चुरा रहे हैं
एक से बढ़कर एक
हिट फिल्में बना रहे हैं
साहित्य के क्षेत्र में भी
चोरों का बोलबाला है
अलग अलग कवियों की
अलग अलग लाइनें चुरा कर
कुछ कवियों ने
पूरा खंड काव्य लिख डाला है
कुछ ऐसे जोड़ तोड़ किए हैं
बड़े बड़े सम्मान पा लिए हैं
सरकारी कर्मचारी,समय चुराते हैं
दस बजे ऑफिस खुलता है
ग्यारह बजे आते हैं
उसके बाद काम से जी चुराते हैं
कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है
उनको समय से पहले
प्रमोशन भी मिल जाता है
व्यवसाय से जुड़े लोग
जितना अधिक टैक्स चुराते हैं
उतने ही बड़े व्यापारी कहलाते हैं
कोई  उन पर उंगली नहीं उठाता है
उनको समाज का
प्रतिष्ठित नागरिक समझा जाता है
युवा लड़के लड़कियां भी
इस क्षेत्र में अपना हाथ आजमा रहे हैं
किसी की नींद ,किसी का चैन
किसी का दिल चुरा रहे हैं
हम इसको बड़ी सहजता से लेते हैं
कभी मुंह फेर लेते हैंं
कभी मुस्करा देते हैं

इस चोरी के माहौल में
मैंने केवल कुछ रोटियां चुराई हैं
खुद नहीं खाई हैं,बच्चो को खिलाई हैं
मैं हालात के आगे मजबूर था
वो फैक्ट्री बंद हो गई,
जिसमे मैं मजदूर था
अपनी कमजोर पीठ पर
कुछ दिनों तक
बेरोज़गारी का बोझ उठाता रहा
बेटी के दहेज़ के लिए
बचाए पैसे से घर चलाता रहा
लेकिन जब बच्चे
भूख से तड़पने लगे
संयम की सीमा लांघ कर बिखरने लगे
मुझे ना चाहते हुए भी
ये काम करना पड़ा है
ये तथाकथित चोर
अब आपके सामने खड़ा है
इसे जो चाहे सजा दीजिए
लेकिन मेरे बच्चो को
भूख से बचा लीजिए ।

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T- 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद -244001
M-9837189600






वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है । मंगलवार 9 जून 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों सर्व श्री दीपक गोस्वामी चिराग, नवल किशोर शर्मा नवल, प्रीति चौधरी , कमाल जैदी वफ़ा, रागिनी गर्ग, सीमा वर्मा ,अशोक विद्रोही , वीरेंद्र सिंह बृजवासी, सीमा रानी, अमितोष शर्मा, कंचनलता पांडेय, मनोरमा शर्मा और स्वदेश सिंह की कविताएं----

अंकपत्र की स्पर्धा में, बस्ते झूल रहे।
माली की चाहत की खातिर, मुरझा फूल रहे।

नहीं कहानी दादी की,ना; चूरन की पुड़िया।
अलमारी में गुमसुम बैठी; बिन ब्याही गुड़िया।
नैट-चैट गपशप से मुनिया; बिल्कुल 'कूल' रहे।

कहीं न दिखते ग्वाल-बाल अब; यमुना के तट पर।
लील रहे बचपन को कैसे, नैट औ'र कम्प्यूटर।
सारी दुनिया अँगुली पर है, बचपन भूल रहे।

कैसे लाए हामिद अपनी, दादी को चिमटा।
दिया स्वार्थ ने वृद्धाश्रम जब,अम्मा को सिमटा।
सम्बंधों पर खुदगर्जी की, चढ़ती धूल रहे।

महत्वाकांक्षाओं के गिरि से, बचपन हैं पिसते।
उच्च पदों के मैराथन में, प्रतिभागी मरते ।
कक्षा में 'पोजीशन' के भी ,चुभते शूल रहे।

✍️दीपक गोस्वामी 'चिराग'
बहजोई (सम्भल)
ईमेल deepakchirag.goswami@gmail.com
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खा लेंगे इक रोटी कम पर,घर पर रहना ओ पापा!
आप बिना दर दर की ठोकर,घर पर रहना ओ पापा!

बिना काम घूमो न बाहर,कोरोना खतरा भारी,
पास हमारे बैठो आकर,घर पर रहना ओ पापा!

लॉकडाउन की हुई घोषणा,जरा विचारो तुम पापा,
कोरोना बन घूम रहा खर,घर पर रहना ओ पापा!

वक्त बड़ा क्रूर है मानो,छिपकर रहना ही होगा,
सरकारी इमदाद मिले घर,घर पर रहना ओ पापा!

जनहित में हर काज निहित हो,देश बचायेंगे हम सब,
कोरोना है बहुत ही शातिर,घर पर रहना ओ पापा!

कोरोना से जूझ रहे हैं,पुलिस,डॉक्टर अन्य सभी,
पार करेंगे बाधा को हर,घर पर रहना ओ पापा।

जठराग्नि व्याकुल है करती,पर हार नहीं मानूंगा मैं,
नवल' रोये बच्चा यह कहकर,घर पर रहना ओ पापा!

✍️नवल किशोर शर्मा  'नवल'
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बचपन के बस्ते में छुपे
क़िस्मत के ख़ज़ाने थे।
कच्ची पेंसिल से लिखे
सफलता के फ़साने थे।
छोटे से उस बस्ते के अंदर
जो अनंत ज्ञान समाये थे।
जीवन जीने के सबक़ हम
उनसे ही सीख पाए थे।
सच्चाई और मेहनत के मोती
उसकी पुस्तक पर चमकते थे।
जिनकी रोशनी से हम अपनी
मंज़िल की तरफ़ बढ़ते थे।
आज करते है जो ज्ञान वर्षा
मेघ,  उस बस्ते ने बनाए थे।
कहता बसता ,बाँटते रहॊ जग में,
 ज्ञान जो ,सीखकर मुझसे आए थे।।

✍️ प्रीति चौधरी
शिक्षिका, राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, हसनपुर, जनपद अमरोहा
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आओ दोस्तों पेड़ लगाएं,
चहु ओर हरियाली लाएं।           
               आओ दोस्तो पेड़------                     

सावन में फिर झूला झूले,
गीत खुशी के फिर से गाएं।
               आओ दोस्तो पेड़------

चारो ओर महके फुलवारी,
चम्पा चमेली गुलाब उगाएं।
               आओ दोस्तो पेड़-----

कूड़ा कचरा नही जलाएं।
वातावरण को स्वच्छ बनाएं             
              आओ दोस्तों पेड़-----

स्वच्छ जल हो स्वच्छ हवाएं,
ऐसा फिर माहौल बनाएं।
              आओ दोस्तों पेड़------

पेड़ काटना जुर्म बड़ा हो,
ऐसा कुछ कानून बनाएं।
           आओ दोस्तो पेड़--------

जैसे पानी हम पीते है,
ऐसे उनको रोज पिलाएं।
              आओ दोस्तो पेड़-----

जैसे खाना हम खाते है,
ऐसे उनको खाद लगाएं।
               आओ दोस्तो पेड़-----

पेड़ हमे देते है जीवन,
पेड़ो को ही दोस्त बनाएं।
              आओ दोस्तो पेड़ -------

✍️  कमाल ज़ैदी 'वफ़ा'
सिरसी (सम्भल)
9456031926
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मम्मी -मम्मी यह बतलाओ
कोरोना क्यों आया है?

मम्मी-मम्मी! यह बतलाओ,
कोरोना क्यों आया है?
सबने इसके भय से खुद को,
बन्द घरों में पाया है।

छुपा वस्त्र के पीछे मइया,
सुन्दर सा मुखडा़ मेरा।
नहीं खेलने जा सकता है।
माता ये  लल्ला तेरा।
बैठ बैठ कर,घर के भीतर ,
मेरा मन घबराया है।
मम्मी-मम्मी यह बतलाओ,
कोरोना क्यों आया है?

अब स्कूल हुये बंद हमारे,
मित्रों  से  नाता टूटा।
हिल-मिल साथी  खाते  खाना।
अपना वो  खाना छूटा।
मोबाइल  पर  करूँ  पढा़ई,
मेरा सर चकराया है,
मम्मी-मम्मी मुझे बताओ,
कोरोना क्यों आया है?

सुन ले बेटा!माता बोली,
मनुज कर्म फल पाता है।
 सृष्टि मात मनु, खूब सताया,
आज सताया जाता है।
विज्ञान और भौतिकता ने,
मानव को भरमाया है।
यह कोरोना मेरे बच्चे!
नर ने स्वयं बनाया है।

वर्चस्व बनाने को अपना,
मानव ने की शैतानी।
ईश्वर बनने की इच्छा है,
 इसकी देखो! नादानी।
चीन देश ने की गद्दारी,
दुनिया में फैलाया है
यह कोरोना मेरे बच्चे!
नर ने स्वयं बनाया है।
 
 ✍️ रागिनी गर्ग
रामपुर
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एक बिल्ली ने चूहा पकड़ा   
कसकर हाथों में था जकड़ा
 
चूहा भय से भरा हुआ था
ऐसा जानो मरा हुआ था

बिल्ली ने सोचा घर ले जाऊँ
बैठ मजे से इसको खाऊँ

पर घर पे थीं उसकी बहनें
आईं थीं कुछ दिन जो रहने

बिल्ली अब थोड़ा घबराई
कैसे बाँटे अपनी कमाई

घर आकर बोली सुनो बहना
आज हम सबको व्रत है रहना

ये देखो पंडित है आया
कहकर उसने चूहा दिखाया

अब चूहे की शामत आई
पर उसने एक जुगत लगाई

बोला अब सब हाथ को जोड़ो
ध्यान करो मोह - माया सब छोड़ो

जैसे ही बिल्लियाँ भक्ति में आईं
चूहे जी ने दौड़ लगाई ।।।

✍️ सीमा वर्मा
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बनकर मैं जांबाज सिपाही
             अपने हिंदुस्तान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
           पापा के बलिदान का
आका जिनके आतंकी
     शिविरों के बल पर ऐंठे थे
कुछ बाहर,कुछ अंदर
    छुप कर आस्तीन में बैठे थे
सर्जिकल स्ट्राइक से भ्रम
              टूटा पाकिस्तान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
                पापा के बलिदान का
गद्दारी का रोग हिंद को
             बहुत पुराना भारी है
इसीलिए लंबे अरसे से
           जंग अभी तक जारी है
पहले किस्सा खत्म करो
          तुम अंदर के शैतान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
         पापा  के बलिदान का
पूरे देश को बतला दो
         जो भारत में रहना चाहे
उसके मुंह से कभी बुराई
             देश की न होने पाये
करें सभी गुणगान हमेशा
             भारत मां की शान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
             पापा के बलिदान का
पुलवामा में पापा तुम को
           शत्रु ने जब छीन लिया
हर एक पल अपने सुख का
    तब किस्मत ने था बीन लिया
शोले भड़क रहे हैं दिल में
            मंजर है तूफान का
शत्रु से बदला लूं एक दिन
            पापा के बलिदान का
नारों से या बातों से जो
            जहर हमेशा ही घोले
करे कलंकित मातृभूमि को
             भारत की जय ना बोले
आगे बढ़कर शीश काट लो
             ऐसे    हर इंसान का
 शत्रु से बदला लूं एक दिन
            पापा के बलिदान का

   ✍️   अशोक विद्रोही
 412, प्रकाश नगर ,मुरादाबाद
 मोबाइल फोन नंबर 8218825541
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चिक-चिक करती पूंछ हिलाती
रोज़     गिलहरी     आती     है
खोज-खोज  खाने   की   चीजें
तुरत     उठा    ले   जाती    है।

कुतर-कुतर  कर   सारा   खाना
जल्दी - जल्दी      खाती       है
बड़े  प्यार  से  बैठ   के  भोजन
करना     हमें      सिखाती    है।

पत्तों   के   झुरमुट   में  छुपकर
आँख   मूँद     सो    जाती    है
बिल्ली,   सांप,  नेवले   से   वह
चौकन्नी        हो      जाती     है।

हरी  भरी  सब्जी   फल  खाकर
सेहत      रोज़      बनाती      है
पेड़ों  से  फल  कुतर-कुतर  कर
नीचे        खूब      गिराती     है।

गिरे    बीज   से    फूटे    अंकुर
देख - देख        हर्षाती         है
इसी  तरह   नित  पेड़   उगाकर
पर्यावरण         बचाती         है।

खाली   नहीं   बैठती   दिन   भर
श्रम    का    साथ    निभाती   है
सक्रियता   जीवन     की    पूंजी 
सबको    यह     समझाती     है।

नाज़ुक   रेशों   को    ले   जाकर
घर    भी     स्वयं     बनाती    है
साथ  सुलाकर   सब  बच्चों  को
जीवन    का    सुख    पाती   है।

बिस्कुट,   रोटी,    सेव,   पपीता
आओ     सब    लेकर      आएं
सुंदर       धारीदार       गिलहरी
के      आगे     रखकर     आएं।

✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद
9719275453
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घर पर रहकर प्यारे बच्चों,
बोर नहीं अब हो ना तुम।
नित नई-नई मिठाई खाकर,
मन ही मन खुश हो ना तुम।

कभी जलेबी कभी रसगुल्ला,
कभी रसमलाई खुल्लम खुल्ला।
मीठी नई इमरती बालूशाही,
जी भर खाओ मिलकर भाई।

आलू टिक्की पानी पूरी,
 इडली डोसा गरम कचोरी।
प्यारे मिलजुल खाओ तुम,
जी भर  मौज मनाओ तुम।

लोक डाउन का पालन करना,
सभी सुरक्षित घर में रहना।
दो गज दूरी सब को समझाना,
बस याद रहे कोरोना हराना।

✍🏻सीमा रानी
 अमरोहा
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बापू काम पे जाओ न
अच्छा भोजन लाओ न ।
चटनी खिचड़ी अब न भाय,
दाल सब्जियां लाओ न।

नहीं मिली साबुन की टिक्की
कैसे रोज नहायें हम।
दंत मंजन के बिना आजकल
 मुख को कैसे छुपाएँ हम ।
नेकर भी बंदर ने फाड़ा,
नया हमें दिलवाओ न।
बापू काम पे .......
रिंकू टिंकू सीना गीता
रोज जलेवी खाते हैं ।
मेरी टूटी चप्पल देखके
बच्चे खूब चिढ़ाते हैं ।

पहले के जैसे तुम बापू
मां से चीले बनवाओ न ।
बापू काम पे.........

✍️ डॉ प्रीति हुंकार
 मुरादाबाद
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करते हैं तुझसे प्रार्थना |
    हे जगपिता......
         1
मेरे देश मे सदभाव हो l
नवचेतना का राग हो l
करें राष्ट्र की आराधना l
हे जगपिता...........
              2
मेरे देश मे सब स्वस्थ हों l
सब नवसृजन मे व्यस्त हों l
ज्योतिर्मई हो साधना l
हे जगपिता.........
             3
संसार मे कहीं हम रहें l
तेरी नज़र मे हम रहें l
हमें दुख भँवर से तारना l
हे जगपिता..........
 ✍️ अमितोष शर्मा
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आओ बच्चों तुम्हें सिखायें

पत्ते पे पत्ता
बेसन औ मसाला
संग चिपका

चलो पकाओ
पहले भाप फिर
तल के खाओ

नाम पतोड़
ये पात्रा रिकवँच
और तू जोड़

देखके आए
सबके मुँह पानी
सबको भाए

~ कंचन
आगरा
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गोल गोल मोती सी आँखे
आँखों में है चमक भरी,
सरर- सरर कर दौड़ लगाती
गज़ब की फुर्ती भरी हुई ,
भोली -भाली चितवन से तुम
लगती हो बड़ी क्यूट सी ,
एक-एक दाना उठा-उठा
नन्हें पंजों में भर लेती ,
इधर-उधर सब देखभाल कर
अपने मुख तक ले जाती ,
-गिल्लू रानी आज सैर पर ,
लगती है बड़ी स्वीट सी

✍️मनोरमा शर्मा
जट बाजार
अमरोहा
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बिल्ली मौसी बड़ी सयानी
चूहे से दोस्ती की ठानी
                                 
चूहे से बोली बाहर आ!
बिल में से मुँह को मत दिखला

तेरे लिए चॉकलेट लायी
ले जल्दी से खा ले भाई

चॉकलेट तो खिलवाओगी
फिर तुम मुझको खा जाओगी

✍️  स्वदेश सिंह
सिविल लाइन्स
मुरादाबाद
9456222230

शुक्रवार, 12 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष ईश्वर चंद्र गुप्त की कृति "चा का प्याला" के कुछ अंश--- उनकी यह कृति वर्ष 1994 में ईश प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुई थी।












::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

प्रख्यात साहित्यकार बाबा नागार्जुन का मुरादाबाद से भी गहरा नाता रहा है । वह यहां कई बार आए। यहां वह प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी जी के गोकुलदास रोड स्थित प्रकाश भवन आवास पर ठहरते थे। वर्ष 1992 में भी उन्होंने यहां कुछ दिन प्रवास किया। इस दौरान 6 जून को कृषि एवं प्रौद्योगिक प्रदर्शनी मुरादाबाद की ओर से आयोजित कवि सम्मेलन में भी वह शामिल हुए। इस अवसर के दो दुर्लभ चित्र ------


मुरादाबाद की साहित्यकार विशाखा तिवारी की कविता------ हथेलियों में चाँदनी


तुमने जाना है मुझे
शायद
मुझसे भी अधिक
मेरे अपने को
पहचाना है उतना
जितना
नहीं पहचान पाया
कोई अपना
तुमने पढ़ा है मुझे
भीतर तक
परत-दर-परत
मेरे अभावों को
सम्पन्नताओं को
दुर्बलताओं को
लड़खड़ाहट को
पढ़ा है तुमने
हाँ केवल तुमने
तुम्ही तो हो
मेरे आत्मबल
मेरे स्वाभिमान के उत्प्रेरक
भर जाता है
एक नया उल्लास
धमनियों में
तुम्हारे स्पर्श मात्र से
नापने लगती हूँ
मन-प्राण की
अतल गहराईयां
एक नए उत्साह के साथ
तैयार पाती हूँ स्वयं को
एक नई यात्रा के लिए
तुम्हें गुनगुनाते हुए
भर जाती हूँ
नई ताज़गी से
खो जाती हूँ
सप्तस्वरों के विस्तार में
रच जाता है
एक संगीत
अक्षय जलधारा-सा
प्रवाहमान
बजने लगता है
धमनियों में मृदंग
गूँजने लगते हैं
बाँसुरी के स्वर
तब मैं
कसने लग जाती हूँ
सितार के तार-सी
तुम्हारे शब्द
बन जाते हैं झरने
जीवन की पहाड़ी से
झर-झर अविरल
झरने से
भींग जाता है तन-मन
उनकी फुहारों से
अँजुरी में भर लेती हूँ
उनका जल
और लगता है
जैसे
चाँदनी उतर आई है
हथेलियों में

✍️ विशाखा तिवारी
हरसिंगार, नवीन नगर
कांठ रोड, एमडीए
मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 11 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष राम लाल अनजाना के 88 दोहे .......ये दोहे उनके दोहा संग्रह "दिल के रहो समीप" से लिए गए हैं । यह दोहा संग्रह उर्मिला प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा वर्ष 2003 में प्रकाशित हुआ था ।




















:::::::प्रस्तुति ::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822



मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मनोरमा शर्मा की दो कविताएं ----- "तुम्हारा साथ" औऱ "रोशनी की जंग छिड़ गई अब तम की व्याधाओं से"






बुधवार, 10 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ----- डायन

अपनी बीमार बेटी का इलाज करवाने आयी अपनी ननद के साथ उजाला  ने अस्पतालो के चक्कर काटे,रातोंं को जगी,रुपया पैसा लगाया वो अलग।सारा गांव उसकी तारीफ करता कि भौजाई हो तो ऐसी।अब ज़रा तबीयत ठीक हो गयी  थी और पैसे भी न बचे तो ननद के कहने पर बच्ची को वापस घर ले जानेका विचार किया। बस से उतर कर तेज धूप मे बच्ची को गोद मे लिये उजाला घर पहुंची।चारपाई पर बच्ची को लिटाकर काम मे लग गयीं।अचानक नन्द  चिल्लाने लगी ,"हाय हाय मेरी बेटी को खा गयी डायन,अस्पताल से तो सही आयी थी",।वह बाहर आयी आसपास की भीड जमा थी,उसे देखते ही उसकी ननद उसपर झपट पडी।इससे पहले वोकुछ समझती,गांव वाले पत्थर मारने लगे।उसके माथे से खून बहने लगा।उसका पति अजबसिंह यूहीं खडा रहा।वह हिम्मत करके बोली, मैने कुछ नहीं किया, मैतो सुलाकर गयी थी।मै ऐसाक्यू करुगी, पालने मे सोये अपने बेटे की ओर देखकर बोली।अपने पतिकीओर देखकर बोली" तुम कुछ कहते क्यों नहीं?"अजबसिंह ने बहन कीओर देखा फिर बोला,"हाँ ये डायन है ।इसे निकालो"।उसे डायन घोषित कर दिया गया।
गांव की रीत के अनुसार उस गांव से बाहर झोपड़ी बनाकर रहती ।न कोई व्यक्ति उससे मिलता नबात करता।वो जिधर से गुजरती लोग डरकर रास्ता छोड देते।
दस साल गुजर गये उसकी शक्ल सच मे डरावनी हो गयी।रातो को घुमती ,गीत गाती,हँसती।एकदिन वह रात को रेल लाइन के किनारे चल रही थी,देखा कुछ लोग पटरी उखाड़ रहे थे।वह चिल्ला ई,"कौन है वहाँ?"उसकी आवाज सुनते ही" ,डायन आयी"कहकर सब भागे।उसने देखा पटरियां काफी उखडी है।दूर से रेल की आवाज़ सुनाई दे रही थी।उसकी समझ मे कुछ नहीं आयी उसने अपनी साडी उतारी और दोनों हाथ उठाकर पटरियों पर दौडी,"रोको गाडी रोको आगे पटरी टुटी है"ड्राइवर ने देखा गाड़ी की गति कम की मगर तब तक डायन के ऊपर रेल निकल गयीं।एक बहुत बडी दुर्घटना उसने टाल दी।अगले दिन रेल के बडे अफसर वहां पहुचे और डायन की तारीफ की ,बोले "उसके परिवार से कोई हो तो सामने आये हम उसे ईनाम के पांच हजार रुपए देना चाहते है"उसके कारण हजारों लोगो की जान बची वरना अनर्थ हो जाता।"
अजब सिंह आगे आया बोला,"मैउसका पति हूँ और ये उसका बेटा"।अधिकारी नेउसकी पीठ थपथपाई और ईनाम का लिफाफा दिया।।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा ----- सत्संग


चंदो की चाची मंद गति से अपने घर की ओर जा रही थी।उनके चेहरे पर संतोष और पछतावे के मिले जुले भाव थे।घर के पास पहुंची तो देखा - गीता की मां अपनी गाय को पानी पिला रही थी ।उसने पूछा - ए चाची, कहां से आ रही हो,
अरे,तुझे नहीं पता,बहुत पहुंचे हुए गुरु जी आए हुए है,प्रेम बाग़ में उनका सत्संग चल रहा है ।आज वही चली गई थी।बहुत अच्छी व्यवस्था है।इतना बड़ा पंडाल आज तक गांव में नहीं लगा।देसी घी की पूरी सब्जी भी मिल रही है,साथ में गरम गरम हलवा भी।पूरी सब्जी तो बहुत ही बढ़िया है।मैंने तो आज 6 पूरी खा ली। परशाद तो जितना मिल जाए उतना कम है।
गुरु जी ने क्या बताया -- गीता की मां ने पूछा
अरे,वो कहां सुन पाई।पूरी सब्जी की लाइन बहुत लंबी थी,2  घंटे लग गए, मैं वहीं से चली आई।वैसे इतनी भीड़ जा रही है, तो अच्छा ही बता रहे होंगे।
मै कल फिर जाऊंगी,आज हलवा ख़तम हो गया था,और तू तो जाने ही है,हलवा मुझे कितना अच्छा लगता है।
तुम भी मेरे साथ चलना,घर गृहस्थी के काम तो चलते ही रहेंगे,थोड़ा धरम का लाभ भी उठाना चाहिए।
पूरी और हलवे की तारीफ सुन,गीता की मां के मुंह में भी पानी आने लगा था।दोनों ने मिलकर जयकारा लगाया -- गुरु जी की जय हो।

 ✍️ डॉ पुनीत कुमार
T -2/505
आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा ------- दरकती नींव

        कक्षा में रोज़ पवन को मुर्गा बना दिया जाता था।बिना किसी बात के बैन्च पर खड़ा कर दिया जाता था । कई माह तक यह क्रम चलता रहा ।
       आखिर तंग आकर पवन ने माँ से कहा , '' माँ ! मुझे पचास रुपये दोगी ।''
         '' हाँ ! हाँ ! ! मगर करेगा क्या ?''
        '' तुम दो तो सही ।''
अगले दिन पवन कक्षा में सबसे आगे बैठा था और मुर्गा भी नहीं बना ।
   
                        ✍️ अशोक विश्नोई
                          मुरादाबाद
             मोबाइल -9411809222

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------हाय ! बापू जी!!


.... अस्थि कलश लेकर राकेश वीनू काका के साथ -साथ चल रहा था ..साथ में था बंटी वीनू काका का बेटा ... बस यही थी उसके पिता सियाराम की अंतिम यात्रा.... लो आ गया गंगा तट.. विधि विधान से सियाराम का तर्पण अर्पण किया गया नहा धोकर लौटते समय राकेश की आंखें आंसुओं से भरी थी
पूरी कहानी उसकी दिल और आंखों में चल रही थी...
    ... दरवाजे पर खट.. खट ..की आवाज से बाप बेटा दोनों की आंखें खुल गईं.. रात का 1:00 बजा था.. मकान मालिक ने दरवाजा खोलने पर बताया "बसें आ कर लग गईं हैं ! निकलना है तो जल्दी करो बॉर्डर से यूपी तक के लिए बसें तुम्हें लें जाएंगी, रात 11:00 बजे से एनाउंसमेंट हो रहा था ,,जो लोग जाना चाहें आनंद विहार के लिए बस से जा सकते हैं,, ... "सभी लोग बस में बैठ चुके हैं "..."आप लोग ही रह गए हो!".... फिर क्या था ताबड़तोड़ जल्दी से जो सामान बांध सकते थे बांधा.. कुल मिलाकर एक सूटकेस और एक गठरी से कम समान हो ही नहीं रहा था बाकी सारा सामान फोल्डिंग कॉट कुर्सियां मेज किचन के वर्तन आदि सामान वैसे ही छोड़ कर जाना पड़ा ...जल्दी जाकर बस में भीड़ में खड़े हुए...कुछ ही देर में बस ने आनंद विहार बस स्टॉप पर छोड़ दिया.. वहां का नज़ारा देख कर सियाराम के होश उड़ गए हज़ारों की भीड़ जमा थी कंधे से कंधे टकरा रहे थे... परंतु जाने के लिए कोई भी साधन नहीं था अब समझ में आ रहा था,, दिल्ली सरकार ने बाहर वालों से पीछा छुड़ाने के लिए छल किया था.... दुर्भाग्य पर सियाराम को रोना आ रहा था ...ये सियासत भी बड़ी निर्दयी है चुनाव के समय वोट बनवाया गया खूब ख्याल रखा गया अब मुसीबत के समय रात में सोते से उठा कर घर से बाहर निकाल दिया ........
.. दिल्ली की सारी बसें उन्हें आनंद बिहार छोड़कर वापस और लोगों को लेने के लिए चली गयीं थीं ... धीरे-धीरे सुबह के 5:00 बज गए प्यास से व्याकुल राकेश ने कहा "पापा चलते समय हम पानी की बोतल लाना ही भूल गए ,अब यहां कहीं भी पानी नज़र नहीं  आ रहा"... लोगों का जैसे सैलाब उमड़ पड़ा था...दूरी बनाने की तो बात ही छोड़िए.... एक दूसरे यात्री से मांग कर राकेश को पानी पिलाया ....बहुत देर इंतजार करने के उपरान्त खड़े -खड़े  थकान होने लगी थी .. उफ़! भगवान ने ये महामारी भेज दी!...हम गरीब कहां जाएं! कुछ देर के बाद लोगों ने बताया कि मजबूर हो कर योगी जी  यूपी से बसें भेज रहे हैं....कुछ देर बाद बॉर्डर पर बसें लगीं... सब लोग गाजीपुर बॉर्डर की ओर दौड़ने लगे... हलचल सी मच गई वहां जाकर देखा तो बस से   ...जाने  बालों का हुजूम लगा था अफरा तफरी मच गई स्थान पाने के लिए एक एक बार में 10-10 आदमी दरवाजे पर अन्दर घुसने के लिए जूझ रहे थे ..कई लोग खिड़कियों से अंदर प्रवेश कर रहे थे सामान की कौन कहे सामान को रखने को जगह नहीं थी ...तिल रखने की भी जगह नहीं थी मिनटों में बस पूरी भर गई जैसे तैसे सियाराम ने अंदर प्रवेश किया तो राकेश छूट गया सियाराम चिल्लाने लगा ,राकेश ! अरे बेटा राकेश !! कहां है रे ! ....राकेश नीचे था 
सियाराम ने उसे खिड़की के रास्ते जैसे तैसे बस में लिया...दस -ग्यारह  साल का राकेश वदन छिलने से कराह रहा था सियाराम ने बेटे को कलेजे से लगा लिया । परंतु यह क्या 30 किलोमीटर चलकर बस को रोक दिया गया ....यह एक स्कूल था... जहां सबके रुकने की व्यवस्था की गई थी ! ... स्कूल में भूख से व्याकुल.... 1:30 बज गया था .... खाने की सूचना दी गई.. थोड़ी देर बाद सभी लोग भूखे भेड़ियों की तरह खिचड़ी के पैकेटों पर टूट पड़े सियाराम के हाथ एक पैकेट लगा उसी को दोनों बाप बेटे ने  पेट में डाला ...आगे का हाल न पूछो बार-बार चेकिंग होती रही  जिन लोगों को इंफेक्शन था उनको अलग किया जा रहा था ....बाप बेटे दोनों बिछड़ गए सियाराम की आंखों से आंसू टप टप बह रहे थे के... बेटे राकेश को कहां से कोरोना हो गया... लगातार तो मेरे साथ ही रहा है शायद जिसने पानी दिया था उसे ही कोरोना रहा होगा ....खैर जैसे तैसे 14 दिन काटे ... राकेश कोरोना  निगेटिंव हो गया ...अब आगे जाने के लिए शोर मचना शुरु हो गया बस चलने के लिए लगी परंतु सियाराम को उसमें जगह न मिल सकी.. बस चली गई अन्त में सियाराम ने निश्चय किया  दोनों पैदल ही चलते हैं और कोई रास्ता नहीं है ...और दोनों पैदल  ही चल दिए जो समान पास में था वह भी संभाले नहीं संभल रहा था सियाराम ने कहा पोटली को छोड़ो एक पिट्ठू बैग निकाला और जितना सामान आ सका आवश्यक पिट्ठू बैग में भरा एक सूटकेस, एक पिट्ठू बैग ... राकेश ने पिट्ठू बैग संभाला और सियाराम ने सूटकेस सिर पर धरा और चल दिए 20 25 किलोमीटर चलकर ही तबीयत हलकान होने लगी ....रात भी हो गई थी एक नल के पास मंदिर पर दोनों में शरण ली.... जैसे तैसे रात गुजारी अच्छा हुआ सुबह को कुछ भले मानस खाना देने आए दोनों ने खाना खा लिया ....कुछ पूरियां सियाराम ने रास्ते के लिए रख लीं... अब कहां मिलेगा? मिलेगा भी या नहीं! कुछ पता नहीं... 7-8  दिन चलकर मुगलसराय पहुंचे...लगने लगा  बिहार आने वाला है ....अपना घर .. कहा ज़्यादा पैसे के लालच में घर छोड़ कर नहीं जाना  चाहिए था अपना घर अपना ही होता है ... दानापुर आने वाला है  परंतु दूरी तो बहुत थी 2 दिन का और रास्ता है ... रास्ते में कुछ मिलता खा लेते और पानी पी लेते थे दोनों के पांव में छाले थे और राकेश  की हालत बहुत खराब थी थकान से चूर चूर ११ साल का बच्चा ..... हजारों किलोमीटर की यात्रा आखिर जैसे तैसे  पटना पहुंचे .परंतु यहां पर भी चैकिंग हो रही थी कमाल की बात थी राकेश तो कोरोना निगेटिव हो चुका था परंतु सियाराम  को बहुत तेज बुखार था उसे पटना में ही हॉस्पिटल में एडमिट कर दिया गया .... उसने. बेटे  राकेश को पड़ोसी  के साथ कर दिया जैसे ही वह घर पहुंचा मां बहनों का बुरा हाल था बच्चे को आराम करने को कहा... अस्पताल जाने की तैयारी करने लगे .... दिल्ली से चलते समय सियाराम की रिपोर्ट कोरोना नेगेटिव थी परंतु रास्ते में उसकी तबीयत बिगड़ गई घर वालों को उससे मिलने नहीं दिया गया ....हर दिन उसकी तबीयत और ज्यादा खराब होती गयी और ...एक दिन ऐसा आया कि खबर मिली कि सियाराम का इंतकाल हो गया .....घर में कोहराम मच गया कि किसी तरह बॉडी मिल जाए परंतु हॉस्पिटल वालों ने मना कर दिया  .. पटना में ही सीएनजी भट्ठी में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया ....  घर वालों को उसका चेहरा तक देखने को नहीं मिला ..... कोरोना वायरस  का खतरा जो था पूरी बॉडी को प्लास्टिक से सील किया गया था  2 दिन बाद सियाराम की अस्थि अवशेष लेकर एक व्यक्ति सियाराम के घर पहुंचा.....
घर में कोहराम मच गया रोते-रोते राकेश का कलेजा फटा जा रहा था मां और तीनों बहने बिलाप कर कर के रो रहीं थीं *****हाय ! बापू!! हाय बापूजी! की चीत्कार सभी को भावुक कर रुला देती थी.....
    अस्थि अवशेष एक कलश में रखकर गंगा जी में प्रवाहित करने हेतु यही 3 प्राणी थे जो प्रवाहित करके लौट रहे थे
   सियाराम की कच्ची गृहस्थी थी तीन बेटियां शादी को... 11साल का राकेश .... न जाने प्रभु इनका क्या होगा? इन अनाथों का...... दुनिया में कौन है?....

                    ✍️   अशोक विद्रोही
                      8218825541
             412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की कहानी ------- पिता की परवरिश


"मिस्टर मुकेश आपका बेटा अंश सभी बच्चों से लड़ता है उन्हें बुरी तरह से मारता पीटता है। यह देखिए इस बच्चे के हाथ में कितनी चोट आई है...." मैडम इशिता ने घायल बच्चे का हाथ दिखाते हुए कहा।
मुकेश ने बच्चे के चोट देखते हुए कहा "वाकई में मैडम घाव तो गहरा है लेकिन विश्वास कीजिए अंश जानबूझकर कभी ऐसा नहीं करेगा। अवश्य ही किसी बात पर दोनों बच्चों में झगड़ा हुआ होगा वरना अंश ऐसे किसी को कभी भी चोट नहीं पहुंचा सकता ।"
मैडम ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया "जब आपसे अपना बच्चा संभाला नहीं जाता तो आप इसे हॉस्टल में क्यों नहीं छोड़ देते। वहां रहेगा तो कम से कम कुछ तो सीखेगा। केवल पढ़ाई में अव्वल अंक लाना ही सबकुछ नहीं होता डिसिपिलीन भी अत्यधिक आवश्यक है। आपसे अपना बच्चा नहीं संभाला जा रहा और आप दूसरे बच्चों पर झगड़ा करने का आरोप लगा रहे हैं। बिना माँ के पलने वाले बच्चे ऐसे ही होते है उनमें न भावनाएं होती हैं व न ही संस्कार। "
मुकेश ने मैडम की आखों से आंखें मिलाकर कहा "मैडम मेरा बच्चा मेरे लिए मेरा जीवन है, मैं इसे बोर्डिग स्कूल कभी नहीं भेजूंगा। इसकी माँ के जाने के बाद मैंने ढेरों रिश्ते आने पर भी दोबारा शादी नहीं करी क्योंकि मैं इसे कभी दुखी नहीं देख सकता। मैने इसकी परवरिश स्वयं की है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि बिना किसी कारण के मेरा अंश किसी को चोट नहीं पहुंचा सकता।
और आप यह देखिए अंश के गले में नाखून के जो निशान हैं क्या मैं आपसे उसका कारण जान सकता हूं?"
इस बात पर मैडम थोड़ा घबरा गई।
तभी मेज पर रखा फोन रिंग किया। दूसरी तरफ से प्रिंसिपल ऑफिस से चपरासी बोल रहा था। उसने इशिता मैडम, मुकेश एवं दोनों बच्चों को ऑफिस में बुलाया। सभी प्रिंसिपल ऑफिस में पहुंचे।
प्रिंसिपल मिस्टर द्विवेदी ने मैडम इशिता से कहा "आपके और मिस्टर मुकेश के मध्य हुआ वार्तालाप मैने कैमरे पर सुना तथा मुझे बहुत दुख हुआ कि आपने पेरेंट से इतने रुखे तरीके से बात करी यह सरासर डिसिपिलीन के खिलाफ है।"
मिस्टर मुकेश से क्षमायाचना करते हुए प्रिंसिपल सर ने कहा "मैं अपने स्टाफ के इस रुखे रवैये के लिए आपसे क्षमा याचना करता हूं। मैं समझ सकता हूं कि कोई भी बच्चा बिना कारण कभी कुछ गलत नहीं करता। और अंश तो हमारे स्कूल का सबसे होनहार एवं समझदार स्टूडेंट है मुझे लगता है कि हमें अंश से ही इस घटना का कारण पूछना चाहिए।"
जब प्रिंसिपल ने अंश से इस घटना का कारण पूछा तो पहले वह घबरा गया लेकिन फिर हिम्मत करके उत्तर दिया "आक्रोश और उसके दोस्तों ने मिलकर मुझे बोला कि मैं और मेरे पापा बहुत बुरे हैं इसीलिए मेरी मम्मी हमसे परेशान होकर हमें छोड़कर चली गई। मैंने कहा भी कि नहीं, मेरे पापा बहुत अच्छे है, मम्मी को बहुत सारे काम थे वो इसीलिए गईं। इतना कहते ही सभी ने मुझे घेर लिया और बोला कि मेरी मम्मी भगौड़ी है और मेरे पापा राक्षस हैं। मैंने मना भी किया कि न बोलें तो आक्रोश ने मेरा गला दबाया। मैं चिल्लाया तो बाकी सब बच्चे भाग गए। लेकिन आक्रोश रुका नहीं इसीलिए मैंने खुद को छुडाने के लिए उसे धक्का दिया और वो पीछे खड़ी मोटरबाइक से टकरा गया। बाइक उसपे गिर गई और उसका साइलेन्सर बहुत गर्म था । जब आक्रोश को चोट लगी और वो जोरों से रोने लगा तो मैं दौड़कर टीचर को बुला लाया।"
अंश की आखों से आंसुओं की धारा बह निकली और वो पापा से बोला "पापा मैंने कुछ नहीं किया मैंने किसी को चोट नहीं पहुंचाई। पापा मम्मी से कह दो न कि वापस आ जाए देखो सब मुझे कितना परेशान करते हैं। पापा मेरी चोट नहीं दिखी मैम को और उन्होंने मुझे पूरी क्लास के सामने डांटा और बहुत बहुत बुरा बोला किसी ने भी आक्रोश से कुछ नहीं कहा, किसी ने मेरी चोट पर दवाई भी नहीं लगाई बहुत दर्द हो रहा है पापा आक्रोश ने बहुत जोर से नाखून मारे हैं। पापा देखो कितना खून बह रहा है। पापा मम्मी को बुला लाओ न अगर वो साथ होती तो कोई ऐसा नहीं बोलता। पापा मैं इतना ही बुरा हूँ कि मम्मी मुझे छोड़कर चली गई। उनसे कह दो कि वापस आ जाए मैं कभी उन्हें परेशान नहीं करूंगा।"
अंश की बात सुनते सुनते ऑफिस में उपस्थित सभी लोगों की आंखें आंसुओं से भर गई। प्रिंसिपल सर ने इशिता मैडम की ओर प्रश्नसूचक नजरों से देखा। मैडम की आँखें तो खुद अपनी इस भारी भूल पर शर्म से झुक चुकी थी।
प्रिंसिपल सर ने दराज से फर्स्ट एड बॉक्स निकालकर अंश के चोट की मरहमपट्टी करते हुए कहा "नहीं बेटा तुम बहुत अच्छे और समझदार। और एक बात बताओ जब तुम्हारा दिल इतना अच्छा है और तुम्हारे पास इतने अच्छे पापा है तो तुम मम्मी को क्यों याद करते हो? तुम इतने प्यारे हो कि तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें छोड़कर जाकर बहुत बड़ी गलती की है। लेकिन तुम अपने सर को प्रॉमिस करो कि हमेशा ऐसे ही अच्छे बच्चे बनकर रहोगे, बहुत अच्छे नंबर भी लाओगे और लड़ाई भी नहीं करोगे।"
अंश ने उत्तर दिया "लेकिन सर मैं तो यह प्रॉमिस पहले ही पापा से कर चुका हूं कि मैं कभी भी लड़ाई नहीं करूंगा और हमेशा अच्छा बच्चा बन कर रहूंगा। आप कह रहे हो तो आपसे भी कर देता हूं।"
प्रिंसिपल सर ने अंश की पीठ थपथपाते हुए कहा "वेरी गुड बेटा तुम बहुत समझदार हो........." और उसे एक बड़ी सी चॉकलेट दी।
प्रिंसिपल सर ने मुकेश से टीचर के बेरुखी बर्ताव के लिए फिर से माफी मांगी और आश्वासन दिया आगे से ऐसा नहीं होगा। साथ ही हिम्मत बढ़ाते हुए यह भी कहा "आपका बच्चा पढ़ाई में बहुत अच्छा है साथ ही व्यवहारकुशल एवं समझदार भी है। आपने अपने बच्चे में बहुत अच्छे संस्कार गढ़े हैं। यह अवश्य ही एक दिन आपका नाम रोशन करेगा।"
प्रिंसिपल सर के मुंह से आश्वासनभरे शब्द सुन मुकेश को गर्व महसूस हुआ। उसके मन में ये विचार पनपने शुरू हो गए थे कि उसकी पत्नी मीना ने उसे तलाक दे अपने दोस्त अविनाश से पुर्नविवाह किया इसमें भी शायद उसी की गलती होगी। शायद उसी ने अपनी पत्नी का ध्यान ढ़ग से नही रखा होगा तभी वो अपने दूसरे बच्चे का अबारशन करा, ढ़ाई साल के अंश को और उसे दोनों को ही अकेला छोड़ गई। लेकिन अंश के द्वारा अपना पक्ष रखने तथा प्रिंसिपल सर द्वारा प्रशंसा एवं हौसलाअफजाई से उसे महसूस हुआ कि वो गलत नही है, जो वास्तविक रूप से गलत थी वो केवल मीना थी।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

मुरादाबाद के साहित्यकार प्रवीण राही की लघुकथा -------- रोटी


कुसुम और उनके पति मयंक का मानना है कि उनके जीवन में समृद्धि और शांति तब से ज्यादा शुरू हुई जब से उन्होंने रात में एक रोटी गली के कुत्ते को खिलाना शुरू किया । गली के उस कुत्ते का नाम उन्होंने टोनी रख दिया था।टोनी भी उनकी आवाज़ पहचानता था। कुसुम- मयंक के रोटी रखते ही और आवाज़ लगाते ही टोनी  भागकर आता और रोटी  उठा ले जाता। यह सिलसिला पिछले कई महीने से निरंतर चल रहा था ।
  एक रात कुसुम-मयंक के आवाज लगाने पर जब काफी देर तक टोनी नहीं आया तो उन्होंने रोटी गेट के बाहर रख दी और गेट बंद करके चले गए । उनके अंदर जाते ही उन्हें भौं भौं की आवाज सुनाई दी । वे समझ गए कि टोनी आ गया है ।
 अब  यह रोज की बात हो गई। वह रोटी गेट के बाहर रखकर टोनी को आवाज़ लगाते और गेट बंद करके चले जाते । उनके जाते ही भौं भौं की आवाज आती । रोज की तरह आज भी रात को जब वह रोटी रख रहे थे , तो एक सज्जन ने उन्हें आवाज़ लगाई और पास आकर कहा-  मैं आपके सामने  रहता हूं। आप अब रोटी यहां मत रखा कीजिये । आप की रोटी खाने वाला लड़का अब नहीं रहा.......  कल रात आपकी रखी रोटी  लेकर जैसे ही वह झूमता हुआ सड़क पार कर रहा था वैसे ही तेजी से आते एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी और उसने दमतोड़ दिया। यह सुनकर हतप्रभ मयंक और कुसुम उसका मुंह देखने लगे  । मयंक ने कहा - भाई साहब ,हम तो रोटी टोनी के लिए रखते थे । सज्जन ने कहा-  टोनी तो दस दिन पहले ही ऐक्सिडेंट में मर चुका है। कुसुम बोली -पर भाई साहब , कुत्ते की आवाज........!! उन सज्जन ने कहा-  कोई बड़ी बात नहीं बहन,पेट क्या नहीं कराता,कला या तो जरूरत से या शौक से उपजती है ....और .....यह तो बात रोटी की थी.....
   
 ✍️ प्रवीण राही
एनसी 102,रेलवे कॉलोनी
         मुरादाबाद, यूपी
  मो. (8860213526,8800206869)

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार डॉ अनिल शर्मा अनिल की लघु कथा--------- काश


 लाकडाउन में खूब नयी डिशेज बनाई गई घर में। रोज कुछ नया व्यंजन और नया स्वाद। दाल, रोटी, सब्जी,चावल के अलावा कभी और कुछ न बनाने वाली बहू से,सास ने पूछ ही लिया- " "यह रोज नई-नई डिश, बनाना कैसे सीख गयी?"
"मोबाइल पर,यूट्यूब पर सब कुछ है सीखने के लिए,मां जी।" बहू ने बताया।
 सारे दिन टीवी सीरियल देखते रहने वाली सास ने कहा,-" काश हमारे समय में यह मोबाइल होता।"
                   
 ✍️ डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल की कहानी-----इफ्तार


बाबूजी, पाँच बजने वाले हैं, ये फोल्डर ऐसे ही रख देता हूँ, कल काम पूरा कर दूँगा, मुनव्वर ने रामबाबू से कहा।
अरे ऐसा कैसे, ये तो पहले ही तय हो गया था कि काम आज ही निपटाना है, चाहे सात बजें या आठ, रामबाबू जो एक दफ्तर में स्टोर कीपर थे बोले, तुम्हें तो बता दिया था कि ये खुला हुआ रिकार्ड स्टोर में नहीं रखा जा सकता। ये काम तो आज ही पूरा करना होगा, तुम तो पहले से विभाग का काम करते रहे हो, तुम्हें तो पता है ये रिकार्ड बिना बाइंडिंग के नहीं रखा जायेगा।
अरे बाबूजी, आजकल रोज़े चल रहे हैं, सोच रहा था घर जाकर रोजा़ इफ्तारूँगा। उसके बाद दोबारा आने की हिम्मत नहीं होती। मुनव्वर बोला।
अरे, इतनी सी बात है, मैं तो ऊपर ही रहता हूँ, रोज़ा ऊपर इफ्तार कर लेना। ऊपर सब सामान है। रामबाबू बोले।
अरे नहीं साहब, ऐसा करता हूँ, थोड़ी देर यहीं पास में दुकान पर इफ्तार लेता हूँ, फिर आकर काम निपटा दूँगा। सात बजे तक सब निपट जायेगा।
लेकिन चाय तो तुम मेरे साथ ही पीना, रामबाबू बोले।
पंद्रह बीस मिनट में ही मुनव्वर रोज़ा इफ्तार करके आ गया, और जल्दी जल्दी काम निपटाने लगा। पौने सात तक सारा काम निपट गया। हाथ मुँह धोने के बाद वह बोला: अच्छा साहब, चलता हूँ।
अरे भाई, ऐसे कैसे , हमने तो अभी तुम्हारे इंतजार में चाय भी नहीं पी है, आओ, ऊपर चलो, चाय पीकर जाना। दोनों ऊपर कमरे में गये। कमरा साफ सुथरा था। रामबाबू वहाँ अकेले ही रहते थे। थोड़ी देर में ही वो चाय बना लाये। साथ में कुछ बिस्कुट, कुछ नमकीन, केले, और एक प्लेट में कुछ खजूर ले आये। आ जाओ भाई, चाय नाश्ता कर लो।
खजूर देखकर मुनव्वर बोला साहब, ये तो आप बहुत बढ़िया चीज लाये। खजूर तो हमारे यहाँ बहुत अच्छे माने जाते हैं, हफ्तार में कुछ और न हो तो हम खजूर से ही रोज़ा इफ्तार कर लेते हैं।
अरे भाई, तभी तो मैं कह रहा था, हमारे साथ ही इफ्तार लो।
तुम तो संकोच में नहीं आये।
अरे भैया रोज़ा हो या व्रत हो, ऊपरवाले की इबादत में अपने शरीर को पवित्र करने के लिये करे जाते हैं। अब इबादत तो इबादत ही है। चाहे हम करें या आप। इबादत के तरीक़े अलग हो सकते हैं, लेकिन भावना तो एक ही है। ऊपरवाला सभी की भावनाओं से  खुश होता है, और सभी को उसका पुण्य देता है। जब उसके यहाँ कोई भेदभाव नहीं है, तो उसके बंदों में क्यों हो।
रामबाबू बोलते गये।
अरे साहब, आज तो आपने हमारी भी आँखें खोल दीं, मुनव्वर बोला: वाकई सभी अल्लाह के बंदे हैं तो आपस में भेद कैसा।
और वह  रामबाबू को नमस्कार करके अपने घर की ओर चल दिया। चलते चलते वह रामबाबू जी के विषय में सोच रहा था, कितने अच्छे विचार हैं साहब के।  न कोई अहंकार, न कोई धार्मिक विद्वेष, सरल इतने कि खुद ही चाय बना लाये, और सभी धर्मों का आदर करने की बात ने तो उसका दिल छू लिया। काश; सभी लोगों के विचार ऐसे ही होते तो दुनिया में इतने दंगे फसाद न होते, यही सोचते सोचते वह कब घर पहुँच गया पता ही न चला।

 ✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG - 69
रामगंगा विहार
मुरादाबाद, उ.प्र.
मोबाइल नं. 9456641400.

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----- .'अतृप्त मन'


​''जल्दी आओ बच्चो।"हरिसिहं ने अपने पोते रिशू और अवन्तिका को जोर से आवाज लगाई खुद गेट के बाहर बडी सी चमचमाती गाडी मे बैठे हुए थे।
​''अभी आये दादा जी ।" दोनो बच्चे एक साथ अन्दर से चिल्लाये ।
​आज पूरा परिवार गाँव जा रहा है ।बच्चों के  विद्यालय बंद हो गये थे इसलिये सब अपने गाँव जाने के लिये बहुत ही उत्सुक थे ।
​"लीजिये आ गए दादाजी ।"
​"अरे तुम्हारी मम्मी नही आई बेटा अभी -?"हरि सिंह ने दोनो से पूँछा।
​''पापा भी नही आये दादू अभी ।"अवन्तिका ने शरारत करते हुए कहा ।
​''हाँ जब तक तेरी माँ नही आयेगी तब तक वो कैसे आ जायेगा ?''दादा जी ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
​''जल्दी आओ बच्चो।"हरिसिहं ने अपने पोते रिशू और अवन्तिका को जोर से आवाज लगाई खुद गेट के बाहर बडी सी चमचमाती गाडी मे बैठे हुए थे।
​''अभी आये दादा जी ।" दोनो बच्चे एक साथ अन्दर से चिल्लाये ।
​आज पूरा परिवार गाँव जा रहा है ।बच्चों के  विद्यालय बंद हो गये थे इसलिये सब अपने गाँव जाने के लिये बहुत ही उत्सुक थे ।
​"लीजिये आ गए दादाजी ।"
​"अरे तुम्हारी मम्मी नही आई बेटा अभी -?"हरि सिंह ने दोनो से पूँछा।
​''पापा भी नही आये दादू अभी ।"अवन्तिका ने शरारत करते हुए कहा ।
​''हाँ जब तक तेरी माँ नही आयेगी तब तक वो कैसे आ जायेगा ?''दादा जी ने बनावटी गुस्सा करते हुए कहा।
​''हम आ गये पापा जी ।"हरि सिंह के बहू और बेटे दोनो गेट से बाहर निकलते हुए बोले ।
​''दादा जी दादी जी भी ऐसे ही देर लगाती थीं क्या तैयार होने मै ?''इस बार रिशू बोला ।
​''नही बेटा वो तो सुबह ही तैयार होकर बैठ जाती थी '।"हरी सिंह ने चहकते हुए कहा।
​सब गाड़ी में बैठ गए और हरि सिंह
​यादों में खो गए ।
​हरी सिंह को गाँव छोडे 45 साल हो गये ।जब बचपन मे वो गाँव मे रहते थे तो हमेशा शहरी ज़िंदगी के ही सपने देखते थे ।
​शहर आकर खूब पैसा कमाया बेटा भी खूब पढ -लिखकर अचछी जॉब मे चला गया शादी हो गयी ,परिवार पूरा हो गया ,परंतु मन त्रप्त नही हुआ ।
​शहर आकर गाँव की बहुत याद सताती रही ,हमेशा गाँव की हरियाली , वहाँ के पक्षी ,निस्वारत लोग याद आते रहे!अब जब भी मौका मिलता है ,तभी गाँव चले जाते हैं ।
​मानव मन भी बडा अजीब होता है ,हमारे पास जो नही होता हम उसकी कल्पना करते रहते हैं और उसे पाने के लिये पागल हो जाते हैं ,और जब वो वस्तु मिल जाती है तो पुरानी दुनियाँ की याद आने लगती है ।
​''दादा जी गाँव आ गया ''!रिशू खुशी से उछला ।
​''हाँ बेटा ।''हरी सिंह ने धीरे से आह भरते हुए
​कहा ।
​तभी गाँव के बहुत सारे बच्चों ने गाडी को आकर घेर लिया कोई ,हरि  सिंह भांप गये .
​बच्चों की अभिलाषा .कोई गाडी को  छू रहा था तो कोई दूर से ही बड़ी मासूमियत से देख रहा था .एक बच्चा दुसरे से कह रहा था की वह भी शहर जाकर खूब पैसे कमायेगा और फिर एक बड़ी सी गाडी खरीदेगा .
​​हरिसिंह ने अपने बहु बेटों और पोते पोतियों को घर जाने को कहा और उन बच्चों को गाडी में बैठकर घुमाने ले गए .बच्चे बहुत खुश हो रहे थे उनको खुश देखकर हरिसिंह को भी अपना बचपन याद आ गया जब उनके सपने भी गाँव छोड़कर शहर जाकर खूब सारे रूपये कमाने का ही था .मगर आज गाँव उन्हें अपनी तरफ खींच लाता है .

​✍️राशि सिंह
​मुरादाबाद ,उत्तर प्रदेश