बुधवार, 10 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी ------हाय ! बापू जी!!


.... अस्थि कलश लेकर राकेश वीनू काका के साथ -साथ चल रहा था ..साथ में था बंटी वीनू काका का बेटा ... बस यही थी उसके पिता सियाराम की अंतिम यात्रा.... लो आ गया गंगा तट.. विधि विधान से सियाराम का तर्पण अर्पण किया गया नहा धोकर लौटते समय राकेश की आंखें आंसुओं से भरी थी
पूरी कहानी उसकी दिल और आंखों में चल रही थी...
    ... दरवाजे पर खट.. खट ..की आवाज से बाप बेटा दोनों की आंखें खुल गईं.. रात का 1:00 बजा था.. मकान मालिक ने दरवाजा खोलने पर बताया "बसें आ कर लग गईं हैं ! निकलना है तो जल्दी करो बॉर्डर से यूपी तक के लिए बसें तुम्हें लें जाएंगी, रात 11:00 बजे से एनाउंसमेंट हो रहा था ,,जो लोग जाना चाहें आनंद विहार के लिए बस से जा सकते हैं,, ... "सभी लोग बस में बैठ चुके हैं "..."आप लोग ही रह गए हो!".... फिर क्या था ताबड़तोड़ जल्दी से जो सामान बांध सकते थे बांधा.. कुल मिलाकर एक सूटकेस और एक गठरी से कम समान हो ही नहीं रहा था बाकी सारा सामान फोल्डिंग कॉट कुर्सियां मेज किचन के वर्तन आदि सामान वैसे ही छोड़ कर जाना पड़ा ...जल्दी जाकर बस में भीड़ में खड़े हुए...कुछ ही देर में बस ने आनंद विहार बस स्टॉप पर छोड़ दिया.. वहां का नज़ारा देख कर सियाराम के होश उड़ गए हज़ारों की भीड़ जमा थी कंधे से कंधे टकरा रहे थे... परंतु जाने के लिए कोई भी साधन नहीं था अब समझ में आ रहा था,, दिल्ली सरकार ने बाहर वालों से पीछा छुड़ाने के लिए छल किया था.... दुर्भाग्य पर सियाराम को रोना आ रहा था ...ये सियासत भी बड़ी निर्दयी है चुनाव के समय वोट बनवाया गया खूब ख्याल रखा गया अब मुसीबत के समय रात में सोते से उठा कर घर से बाहर निकाल दिया ........
.. दिल्ली की सारी बसें उन्हें आनंद बिहार छोड़कर वापस और लोगों को लेने के लिए चली गयीं थीं ... धीरे-धीरे सुबह के 5:00 बज गए प्यास से व्याकुल राकेश ने कहा "पापा चलते समय हम पानी की बोतल लाना ही भूल गए ,अब यहां कहीं भी पानी नज़र नहीं  आ रहा"... लोगों का जैसे सैलाब उमड़ पड़ा था...दूरी बनाने की तो बात ही छोड़िए.... एक दूसरे यात्री से मांग कर राकेश को पानी पिलाया ....बहुत देर इंतजार करने के उपरान्त खड़े -खड़े  थकान होने लगी थी .. उफ़! भगवान ने ये महामारी भेज दी!...हम गरीब कहां जाएं! कुछ देर के बाद लोगों ने बताया कि मजबूर हो कर योगी जी  यूपी से बसें भेज रहे हैं....कुछ देर बाद बॉर्डर पर बसें लगीं... सब लोग गाजीपुर बॉर्डर की ओर दौड़ने लगे... हलचल सी मच गई वहां जाकर देखा तो बस से   ...जाने  बालों का हुजूम लगा था अफरा तफरी मच गई स्थान पाने के लिए एक एक बार में 10-10 आदमी दरवाजे पर अन्दर घुसने के लिए जूझ रहे थे ..कई लोग खिड़कियों से अंदर प्रवेश कर रहे थे सामान की कौन कहे सामान को रखने को जगह नहीं थी ...तिल रखने की भी जगह नहीं थी मिनटों में बस पूरी भर गई जैसे तैसे सियाराम ने अंदर प्रवेश किया तो राकेश छूट गया सियाराम चिल्लाने लगा ,राकेश ! अरे बेटा राकेश !! कहां है रे ! ....राकेश नीचे था 
सियाराम ने उसे खिड़की के रास्ते जैसे तैसे बस में लिया...दस -ग्यारह  साल का राकेश वदन छिलने से कराह रहा था सियाराम ने बेटे को कलेजे से लगा लिया । परंतु यह क्या 30 किलोमीटर चलकर बस को रोक दिया गया ....यह एक स्कूल था... जहां सबके रुकने की व्यवस्था की गई थी ! ... स्कूल में भूख से व्याकुल.... 1:30 बज गया था .... खाने की सूचना दी गई.. थोड़ी देर बाद सभी लोग भूखे भेड़ियों की तरह खिचड़ी के पैकेटों पर टूट पड़े सियाराम के हाथ एक पैकेट लगा उसी को दोनों बाप बेटे ने  पेट में डाला ...आगे का हाल न पूछो बार-बार चेकिंग होती रही  जिन लोगों को इंफेक्शन था उनको अलग किया जा रहा था ....बाप बेटे दोनों बिछड़ गए सियाराम की आंखों से आंसू टप टप बह रहे थे के... बेटे राकेश को कहां से कोरोना हो गया... लगातार तो मेरे साथ ही रहा है शायद जिसने पानी दिया था उसे ही कोरोना रहा होगा ....खैर जैसे तैसे 14 दिन काटे ... राकेश कोरोना  निगेटिंव हो गया ...अब आगे जाने के लिए शोर मचना शुरु हो गया बस चलने के लिए लगी परंतु सियाराम को उसमें जगह न मिल सकी.. बस चली गई अन्त में सियाराम ने निश्चय किया  दोनों पैदल ही चलते हैं और कोई रास्ता नहीं है ...और दोनों पैदल  ही चल दिए जो समान पास में था वह भी संभाले नहीं संभल रहा था सियाराम ने कहा पोटली को छोड़ो एक पिट्ठू बैग निकाला और जितना सामान आ सका आवश्यक पिट्ठू बैग में भरा एक सूटकेस, एक पिट्ठू बैग ... राकेश ने पिट्ठू बैग संभाला और सियाराम ने सूटकेस सिर पर धरा और चल दिए 20 25 किलोमीटर चलकर ही तबीयत हलकान होने लगी ....रात भी हो गई थी एक नल के पास मंदिर पर दोनों में शरण ली.... जैसे तैसे रात गुजारी अच्छा हुआ सुबह को कुछ भले मानस खाना देने आए दोनों ने खाना खा लिया ....कुछ पूरियां सियाराम ने रास्ते के लिए रख लीं... अब कहां मिलेगा? मिलेगा भी या नहीं! कुछ पता नहीं... 7-8  दिन चलकर मुगलसराय पहुंचे...लगने लगा  बिहार आने वाला है ....अपना घर .. कहा ज़्यादा पैसे के लालच में घर छोड़ कर नहीं जाना  चाहिए था अपना घर अपना ही होता है ... दानापुर आने वाला है  परंतु दूरी तो बहुत थी 2 दिन का और रास्ता है ... रास्ते में कुछ मिलता खा लेते और पानी पी लेते थे दोनों के पांव में छाले थे और राकेश  की हालत बहुत खराब थी थकान से चूर चूर ११ साल का बच्चा ..... हजारों किलोमीटर की यात्रा आखिर जैसे तैसे  पटना पहुंचे .परंतु यहां पर भी चैकिंग हो रही थी कमाल की बात थी राकेश तो कोरोना निगेटिव हो चुका था परंतु सियाराम  को बहुत तेज बुखार था उसे पटना में ही हॉस्पिटल में एडमिट कर दिया गया .... उसने. बेटे  राकेश को पड़ोसी  के साथ कर दिया जैसे ही वह घर पहुंचा मां बहनों का बुरा हाल था बच्चे को आराम करने को कहा... अस्पताल जाने की तैयारी करने लगे .... दिल्ली से चलते समय सियाराम की रिपोर्ट कोरोना नेगेटिव थी परंतु रास्ते में उसकी तबीयत बिगड़ गई घर वालों को उससे मिलने नहीं दिया गया ....हर दिन उसकी तबीयत और ज्यादा खराब होती गयी और ...एक दिन ऐसा आया कि खबर मिली कि सियाराम का इंतकाल हो गया .....घर में कोहराम मच गया कि किसी तरह बॉडी मिल जाए परंतु हॉस्पिटल वालों ने मना कर दिया  .. पटना में ही सीएनजी भट्ठी में उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया ....  घर वालों को उसका चेहरा तक देखने को नहीं मिला ..... कोरोना वायरस  का खतरा जो था पूरी बॉडी को प्लास्टिक से सील किया गया था  2 दिन बाद सियाराम की अस्थि अवशेष लेकर एक व्यक्ति सियाराम के घर पहुंचा.....
घर में कोहराम मच गया रोते-रोते राकेश का कलेजा फटा जा रहा था मां और तीनों बहने बिलाप कर कर के रो रहीं थीं *****हाय ! बापू!! हाय बापूजी! की चीत्कार सभी को भावुक कर रुला देती थी.....
    अस्थि अवशेष एक कलश में रखकर गंगा जी में प्रवाहित करने हेतु यही 3 प्राणी थे जो प्रवाहित करके लौट रहे थे
   सियाराम की कच्ची गृहस्थी थी तीन बेटियां शादी को... 11साल का राकेश .... न जाने प्रभु इनका क्या होगा? इन अनाथों का...... दुनिया में कौन है?....

                    ✍️   अशोक विद्रोही
                      8218825541
             412 प्रकाश नगर मुरादाबाद

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