शनिवार, 13 जून 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ------ मै चोर बन गया हूं



आप सब की नज़रों में
मैं चोर बन गया हूं
मैंने,न केवल चोरी की है
चोरी करते पकड़ा भी गया हूं
मैं कोई खानदानी चोर नहीं हूं
ना ही चोरी करना मेरा पेशा है
शायद इसीलिए
मैं ठीक से चोरी नहीं कर पाया
और मेरे इस कार्य को
आप सभी ने देखा है
जब मैं
अपने चारों ओर नजर घुमाता हूं
अधिकतर लोगों को
चोरी और लूटपाट करते हुए पाता हूं
हमारे नेता,चुनाव जीतते ही
देश को लूटने में लग जाते हैं
पूरे पांच साल तक
पब्लिक से नज़रें चुराते हैं
हम लाचार लोग
उनका कुछ नहीं कर पाते हैं
अगले चुनाव में
वो फिर चुन लिए जाते हैं
हमारे फिल्मकार
विदेशी फिल्मों से आइडिया चुरा रहे हैं
एक से बढ़कर एक
हिट फिल्में बना रहे हैं
साहित्य के क्षेत्र में भी
चोरों का बोलबाला है
अलग अलग कवियों की
अलग अलग लाइनें चुरा कर
कुछ कवियों ने
पूरा खंड काव्य लिख डाला है
कुछ ऐसे जोड़ तोड़ किए हैं
बड़े बड़े सम्मान पा लिए हैं
सरकारी कर्मचारी,समय चुराते हैं
दस बजे ऑफिस खुलता है
ग्यारह बजे आते हैं
उसके बाद काम से जी चुराते हैं
कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है
उनको समय से पहले
प्रमोशन भी मिल जाता है
व्यवसाय से जुड़े लोग
जितना अधिक टैक्स चुराते हैं
उतने ही बड़े व्यापारी कहलाते हैं
कोई  उन पर उंगली नहीं उठाता है
उनको समाज का
प्रतिष्ठित नागरिक समझा जाता है
युवा लड़के लड़कियां भी
इस क्षेत्र में अपना हाथ आजमा रहे हैं
किसी की नींद ,किसी का चैन
किसी का दिल चुरा रहे हैं
हम इसको बड़ी सहजता से लेते हैं
कभी मुंह फेर लेते हैंं
कभी मुस्करा देते हैं

इस चोरी के माहौल में
मैंने केवल कुछ रोटियां चुराई हैं
खुद नहीं खाई हैं,बच्चो को खिलाई हैं
मैं हालात के आगे मजबूर था
वो फैक्ट्री बंद हो गई,
जिसमे मैं मजदूर था
अपनी कमजोर पीठ पर
कुछ दिनों तक
बेरोज़गारी का बोझ उठाता रहा
बेटी के दहेज़ के लिए
बचाए पैसे से घर चलाता रहा
लेकिन जब बच्चे
भूख से तड़पने लगे
संयम की सीमा लांघ कर बिखरने लगे
मुझे ना चाहते हुए भी
ये काम करना पड़ा है
ये तथाकथित चोर
अब आपके सामने खड़ा है
इसे जो चाहे सजा दीजिए
लेकिन मेरे बच्चो को
भूख से बचा लीजिए ।

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T- 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद -244001
M-9837189600






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