बुधवार, 10 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघुकथा ----- डायन

अपनी बीमार बेटी का इलाज करवाने आयी अपनी ननद के साथ उजाला  ने अस्पतालो के चक्कर काटे,रातोंं को जगी,रुपया पैसा लगाया वो अलग।सारा गांव उसकी तारीफ करता कि भौजाई हो तो ऐसी।अब ज़रा तबीयत ठीक हो गयी  थी और पैसे भी न बचे तो ननद के कहने पर बच्ची को वापस घर ले जानेका विचार किया। बस से उतर कर तेज धूप मे बच्ची को गोद मे लिये उजाला घर पहुंची।चारपाई पर बच्ची को लिटाकर काम मे लग गयीं।अचानक नन्द  चिल्लाने लगी ,"हाय हाय मेरी बेटी को खा गयी डायन,अस्पताल से तो सही आयी थी",।वह बाहर आयी आसपास की भीड जमा थी,उसे देखते ही उसकी ननद उसपर झपट पडी।इससे पहले वोकुछ समझती,गांव वाले पत्थर मारने लगे।उसके माथे से खून बहने लगा।उसका पति अजबसिंह यूहीं खडा रहा।वह हिम्मत करके बोली, मैने कुछ नहीं किया, मैतो सुलाकर गयी थी।मै ऐसाक्यू करुगी, पालने मे सोये अपने बेटे की ओर देखकर बोली।अपने पतिकीओर देखकर बोली" तुम कुछ कहते क्यों नहीं?"अजबसिंह ने बहन कीओर देखा फिर बोला,"हाँ ये डायन है ।इसे निकालो"।उसे डायन घोषित कर दिया गया।
गांव की रीत के अनुसार उस गांव से बाहर झोपड़ी बनाकर रहती ।न कोई व्यक्ति उससे मिलता नबात करता।वो जिधर से गुजरती लोग डरकर रास्ता छोड देते।
दस साल गुजर गये उसकी शक्ल सच मे डरावनी हो गयी।रातो को घुमती ,गीत गाती,हँसती।एकदिन वह रात को रेल लाइन के किनारे चल रही थी,देखा कुछ लोग पटरी उखाड़ रहे थे।वह चिल्ला ई,"कौन है वहाँ?"उसकी आवाज सुनते ही" ,डायन आयी"कहकर सब भागे।उसने देखा पटरियां काफी उखडी है।दूर से रेल की आवाज़ सुनाई दे रही थी।उसकी समझ मे कुछ नहीं आयी उसने अपनी साडी उतारी और दोनों हाथ उठाकर पटरियों पर दौडी,"रोको गाडी रोको आगे पटरी टुटी है"ड्राइवर ने देखा गाड़ी की गति कम की मगर तब तक डायन के ऊपर रेल निकल गयीं।एक बहुत बडी दुर्घटना उसने टाल दी।अगले दिन रेल के बडे अफसर वहां पहुचे और डायन की तारीफ की ,बोले "उसके परिवार से कोई हो तो सामने आये हम उसे ईनाम के पांच हजार रुपए देना चाहते है"उसके कारण हजारों लोगो की जान बची वरना अनर्थ हो जाता।"
अजब सिंह आगे आया बोला,"मैउसका पति हूँ और ये उसका बेटा"।अधिकारी नेउसकी पीठ थपथपाई और ईनाम का लिफाफा दिया।।

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद

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