शनिवार, 13 जून 2020

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हस्ताक्षर की ओर से आज शनिवार 13 जून 2020 को मुक्तक गोष्ठी का आयोजन प्रख्यात साहित्यकार यश भारती माहेश्वर तिवारी जी की अध्यक्षता में किया गया। राजीव प्रखर द्वारा संचालित इस ऑनलाइन गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों यश भारती माहेश्वर तिवारी, शचीन्द्र भटनागर, डॉ अजय अनुपम, डॉ मनोज रस्तोगी , डॉ पूनम बंसल, योगेंद्र वर्मा व्योम, ओंकार सिंह विवेक, श्री कृष्ण शुक्ल, मनोज वर्मा मनु, राजीव प्रखर, मोनिका शर्मा मासूम , मीनाक्षी ठाकुर और रीता सिंह द्वारा प्रस्तुत मुक्तक

(1)
झूठे भी तो आधार हुआ करते हैं
सपनों के भी संसार हुआ  करते हैं
कुछ ऐसी परिधि अनोखी निर्माणों की
उजड़ों के भी घरबार हुआ करते हैं

(2)
गाँव का गाँव सूना पड़ा है
जेठ का सूर्य इतना कड़ा है
छिप गये छाँव में सब पखेरू
धूप में वृद्ध पीपल खड़ा है

✍️माहेश्वर तिवारी
मुरादाबाद 244001
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1-
दूसरों की पीर जो अनुभव करे इनसान है
भाव के जिसके विशद् हों दायरे इनसान है
व्यक्ति को बीहड़ विजन पथ पर अकेला देखकर
स्नेह- करुणा से ह्रदय जिसका भरे इनसान है
2-
आदमी की भीड़ में इनसान मिल पाते नहीं
प्यार के, अपनत्व के अनुमान मिल पाते नहीं
हैं बहुत जो आग की बौछार करते  हर तरफ़
पर कहीं तुलसी, कहीं रसखान मिल पाते नहीं
3-
जो सभी को प्यार में नहला सके, इनसान है
दर्द से दुखता हृदय सहला सके, इनसान है
अब न युग को देवताओं की ज़रूरत है कहीं
जो यहाँ इनसानियत दिखला सके, इनसान है
4-
मीत, मत उनको सराहो, जो बहारों में जिए
जो सदा ऐश्वर्य के मादक इशारों में जिए
है वही इनसान, सेवा में जिसे आनंद हो
जो सदा असहाय, बेबस, बेसहारों में जिए
5-
आज धरती को नहीँ धन का ज़खीरा चाहिए
प्रेम, श्रद्धा, त्याग की प्रतिमूर्ति मीरा चाहिए
जो निडर- निष्पक्ष होकर कह सके बानी सही
आज व्याकुल विश्व को ऐसा कबीरा चाहिए

✍️ शचींद्र भटनागर
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन 80571-92199
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(1)
वे हमारे हुए या तुम्हारे हुए
हर कठिन काल गति में सहारे हुए
तिक्तताएं हृदय की समेटे सभी
चलपड़े इसलिये अश्रु खारे हुए

(2)
हो विवश थम गई भावना की नदी
निमिष भर में गयी बीत जैसे सदी
शब्द,संकेत भी जब न सम्भव लगे
एक उच्छ्वास ने सब कथा बांच दी

(3)
भाव की चांदनी के रजत कोष हैं
दाहपूरित,सजल, शांति मय,रोष हैं
नित अमलकांति वाले रजत अश्रुकण
बुद्धि पर भावना का विजय घोष हैं

(4)
मुक्तहोकर वासना के भार से
आन्तरिक अनुभूति के दृग-द्वार से
झांक कर देखो प्रणय की दिव्यता
देह-कामी स्थूलता के पार से

(5)
मुक्तस्वर से मौन भी गाने लगे
जलन सबका दर्द सहलाने लगे
प्यारवह संगीत है सुनकर जिसे
आंसुओं को भी हंसी आने लगे

✍️डॉ. अजय अनुपम
मुरादाबाद 244001
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(1)
सुन  रहे यह साल  आदमखोर है
हर तरफ  चीख, दहशत, शोर है
मत कहो वायरस जहरीला बहुत
आजकल इंसान  ही   कमजोर है

(2)
मौतों   का  सिलसिला  जारी है
व्यवस्था की कैसी ये लाचारी है
आप  शोक संदेश  पढ़ते  रहिये
आपकी इतनी ही जिम्मेदारी है

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
 मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश ,भारत
मोबाइल नंबर 945 6687 822
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शूल के संग हंसते सुमन देखिये
नीर से हैं भरे दो नयन देखिये
छेड़ कर फिर नयी प्रेम की रागनी
नेह की बारिशों के सपन देखिये

नहीं वो ज़िन्दगी जो दर्द से अनजान होती है
किसी भी आदमी की कर्म से पहचान होती है
ख़ुशी के रास्ते की हर बला को रोक देती है
मिली आशीष की पूंजी बनी दरबान होती है

याद में नैन उनकी तरल हो गए
प्यार के रंग सारे विरल हो गए
दर्द का ये गरल जब ख़ुशी से पिया
रास्ते ज़िन्दगी के सरल हो गए

न बदली ज़िन्दगी मेरी न बदला ये ज़माना है
कभी जो स्वप्न था देखा वही सपना सजाना है
लहर से खेलते हैं ये किनारे मुस्कुराते हैं
उम्र की कश्तियाँ लेकर सभी को पार जाना है

धूप में छाँव में राह चलने लगी
ज़िन्दगी हादसों से बहलने लगी
बदलियों ने ढकीं चाँद की शोखियाँ फिर नयी एक चाहत मचलने लगी

 ✍️ डॉ पूनम बंसल
मुरादाबाद 244001
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(एक)
अब न गौरैया चहकती है मुँडेरों पर
हो रहा हावी अजाना डर बसेरों पर
यह समय का खेल है या फिर सियासत है
रात भारी पड़ रही है अब सवेरों पर
(दो)
चाह में उत्साह की प्रस्तावना भी हो
शून्यता में नवसृजन संभावना भी हो
मंज़िलें निश्चित मिलेंगी शर्त इतनी है
कोशिशों में भी ललक हो साधना भी हो
(तीन)
त्यागकर स्वार्थ का छल भरा आवरण
तू दिखा तो  सही प्यार का आचरण
शूल  भी  फिर नहीं दे सकेंगे चुभन
जब छुअन का बदल जाएगा व्याकरण
(चार)
द्वंद  हर  साँस  का साँस के संग है
हो  रही  हर  समय स्वयँ से जंग है
भूख - बेरोज़गारी  चुभे   दंश - सी
ज़िन्दगी  का  ये  कैसा  नया रंग है
(पांच)
हों नयी उत्पन्न अब संभावनाएँ
नित जगें साहित्य के प्रति भावनाएँ
हम लिखें जो हो भला उससे सभी का
दिग्भ्रमित ना हों कभी नव कल्पनाएँ

 ✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद 244001
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1.
प्यार  की  बातें करें सब और सब में मेल हो,
नफ़रतों  का अब यहाँ पर बंद सारा खेल हो।
सैनिकों के शौर्य पर भी जो सियासत कर रहे,
 माँग  है  यह  ही  हमारी शीघ्र उनको जेल हो।

2.
धर्म-भाषा-बोलियों  का  जो  यहाँ  विस्तार  है,
 राष्ट्र  की  यह  एकता  का  एक दृढ़ आधार है।
  झुक नहीं  सकता कभी भारत किसी के सामने,
  जानता  इस  बात  को  अच्छी  तरह संसार है।
 
3.
डगर का  ज्ञान होता है अगर माँ साथ होती है,
  सफ़र  आसान होता है अगर माँ साथ होती है।
  कभी मेरा जगत में बाल बाँका हो नहीं सकता,
  सदा  यह भान  होता है अगर माँ साथ होती है।

 ✍️  ओंकार सिंह विवेक
 रामपुर
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सामने आकर मधुर स्वर बोलता है।
पीठ पीछे सिर्फ विष ही घोलता है।।
आदमी से दोस्त, दर्पण ही भला है।
जो भी दिखता है बराबर बोलता है।।

एक नुस्खा आजमाना चाहिए
दर्द में भी मुस्कुराना चाहिए
चार बातें यूँ ही उनसे कीजिए
दोस्ती का कुछ बहाना चाहिए।

अँधेरे दिलों के मिटाते रहेंगे।
दिये प्यार के बस जलाते रहेंगे।
हवाओं से यदि तुम करोगे हिफ़ाजत।
दिये रात भर जगमगाते रहेंगे।

सब प्रशंसा करें, आप ऐसे बनो,
साथ सबका मिले, मीत ऐसे बनो,
जल रहा है स्वयं, दे रहा रोशनी,
हो सके तो किसी, दीप जैसे बनो।।

दुख के बादल सभी आज छँट जाएंगे।
राम के हाथों पुतले निपट जाएंगे
तुम ह्रदय में बसाओ तो श्री राम को।
मन के भीतर के रावण भी मिट जाएंगे।

 ✍️  श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नं. 9456641400
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खुदा भी, गॉड भी, भगवान भी, वाहेगुरु भी तू,
हमारी कोशिशों के हौसले का दम शुरू भी तू,
तेरी मर्जी से होता है यहां ज़र्रा भी सूरज सा ,
तू ही मुझ में बसा है और मेरे रूबरू भी तू ,,
............

किसे हक़ है तेरी मर्जी में कोई भी दखल दे दे,
जो तू चाहे करिश्मे को हक़ीक़त का अमल दे दे,
भला तुझे सा करम फ़रमा सिवा तेरे कहीं  होगा,
कि जन्नत की रिहाइश एक नेकी का बदल दे दे,,
..........

 कुछ तो था जिसका ग़म नहीं जाता,
 दिल से वो... दम से कम नहीं जाता ,
कोई ...शिद्दत  से  याद  करता।  है ,
मुद्दतों ...यह   वहम    नहीं    जाता ,,
...........

ना रुसवाई का ग़म होता ये  हिस आहत ना होती,
 खलिश रहती तेरे दिल में कभी राहत न होती,
 ये कितने हुस्न के पैकर बिखर जाते हैं  तन्हा,
कभी सोचा? अगर तेरी हमें चाहत न होती,,
............

मुझे लगता है मेरे ख्वाब भी अब,
मेरे दिल से तिजारत कर रहे हैं,
 तेरे एहसास को दलदल बनाकर,
 मेरी जां से से बगावत कर रहे हैं,,
.............

किसी को ख्वाब की ता'बीर मिल गई होती,
आप मिलते अगर .. तकदीर मिल गई होती ,
और रांझे ने.... भला कौन  खुदा मांगा था?
 वही मिल जाता..अगर  हीर मिल गई होती,

 ✍️ मनोज वर्मा 'मनु'
  63970 93523
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(1)
शब्द पिरोने का यह सपना, इन नैनो में पलने दो।
मैं राही हूँ लेखन-पथ का, मुझे इसी पर चलने दो।
कल-कल करती जीवन-धारा, पता नहीं कब थम जाए,
मेरे अन्तस के भावों को, कविता में ही ढलने दो।

(2)
हरे-भरे कलरव से गुंजित, प्यारा सा संसार मिला।
घोर अकेलेपन से लड़कर, जीने का आधार मिला।
वर्षों से सूनी बगिया में, ज्यों ही पौध लगायी तो,
मैंने पाया मुझको मेरा, बिछुड़ा घर-परिवार मिला।

(3)
घोर विनाशक अन्धेरे ने , ऐसी सेज सजाई है।
श्वास-श्वास मटमैली होकर, सकल-सृष्टि थर्राई है।
सदा निरंकुश रह कर तूने, किया साधनों का दोहन,
तेरे ही इन दुष्कर्मों की, धुन्ध धरा पर छायी है।

(4)
राजनीति सा हो गया, मौसम का व्यवहार।
कभी भानु बहुमत रखें, कभी मेघ सरदार।।
असमंजस में पड़ गये, नीचे वाले लोग।
पता नहीं चलने लगे, कब किसकी सरकार।।

✍️ - राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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1
उसके मकाने-दिल में हमने घर बना लिया
चौखट को उसकी चूम कर मंदिर बना लिया
तकदीर अपनी छोड़ दी उसके नसीब पर
किस्मत को उसकी अपना मुकद्दर बना लिया
2
ओ चन्दा तेरे ही जैसा उज्जवल मेरा भाग रहे
जैसे तू बरसाए ,मुझ पर भी उनका अनुराग रहे
मैं भी प्रीत की रीत सँवर कर धवल चाँदनी हो जाऊं
मांगू तुझ से बस इतना मेरा भी अखंँड सुहाग रहे
 3
हैं कांच की चूड़ियां सिंगार नारी का
इनकी खनक में गूंजता है प्यार नारी का
नाजुक सी हैं भले, मगर कमजोर नहीं हैं
यह बांध के रखती हैं घर संसार नारी का
4
गज़ल कोई फिर सरफरोशी लिखी है
मुहब्बत में यूं गर्म जोशी लिखी है
वजूद अपना "मासूम" ने खुद मिटाकर
मुक़द्दर में खाना बदोशी लिखी है
5
कहूं हिटलर का पोता या उसे सद्दाम का नाती
न जाने क्यों मेरी कोई अदा उसको नहीं भाती तरसती है मेरी आंखें बस इक मुस्कान को उसकी
मुई, सौतन है ये भी सामने मेरे नहीं आती

✍️ मोनिका मासूम
मुरादाबाद 244001
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                    1
देख दुर्दशा मज़दूरों की,पल-पल आँसू बहते हैं,
हाय ! गरीबी लड़े मौत से,भूखे तन कब सुनते हैं।
कभी गाँव से चली डगर थी,शहरों में पाने रोटी,
आज उसी रोटी की खातिर, शहर गाँव को मुड़ते हैं।।
                     2
होकर जिधर से निकला, ये कारवां हमारा,
कर ली फत़ेह हासिल, हुआ आसमां हमारा,
मर कर भी न मरें हम,कुछ ऐसा करके जाएँ,
सदियों रहे सलामत,हिंदोस्तां हमारा।।
                      3
कहे मीरा दिवानी ये,मुक़म्मल ठौर क्या करना,
तेरी बाँहों में दम निकले, सफ़र अब और क्या करना ।
ज़हर पीकर भी ज़िंदा हैं,तमन्ना में तेरी ज़ालिम,
लगे दम ज़िंदगी मेरी,दुआ पर गौर क्या करना।।

 ✍️ मीनाक्षी ठाकुर
 मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
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भोर के सूरज से निकलती , लहक हैं बेटियाँ
घर उपवन में खिले सुमन की , महक हैं बेंटियाँ
चहचहातीं जो अंजुली भर , खुले आसमां में
बाबुल अँगना की वो मीठी , चहक हैं बेटियाँ ।

बहें जिस लहर सँग भाई वो , बहक हैं बेटियाँ
छोड़तीं राखी के लिये सभी , हक हैं बेटियाँ
हो जाती भस्म जिसमें , कुरुवंश की कुरूपता
याज्ञसैनी के उस क्रोध की , दहक हैं बेटियाँ ।

 ✍️ डॉ. रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)

::::::::प्रस्तुति:::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

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