सोमवार, 24 मई 2021

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'हस्ताक्षर ' की ओर से शनिवार 22 मई 2021 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया । गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों दुष्यंत बाबा, डॉ. रीता सिंह, डॉ. ममता सिंह, मयंक शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर, मोनिका 'मासूम', हेमा तिवारी भट्ट , राजीव 'प्रखर', डॉ. अर्चना गुप्ता, मनोज 'मनु', श्रीकृष्ण शुक्ल , ओंकार सिंह 'विवेक, योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', शिशुपाल 'मधुकर', वीरेन्द्र 'ब्रजवासी' , डाॅ. मनोज रस्तोगी , डाॅ. पूनम बंसल , डाॅ. अजय 'अनुपम', डाॅ. मक्खन 'मुरादाबादी' और अशोक विश्नोई द्वारा प्रस्तुत रचनाएं -------

 


रात के बाद जब दिन ही आना है

तब दूर तमस सब  हो ही जाना है
साथ मे लेकर सुबह की  लालिमा
फिर से  दिवाकर  उग ही आना है

जो उदय हुआ वह अस्त भी होगा
जो जीत गया कल पस्त भी होगा
चिर स्थायी कुछ नही  रह पाना है
तो उदय अस्त से  क्या घबराना है

पतझड़  आने  पर पत्ते झड़ जाते
फिर भी क्या तरु व्याकुल जाते ?
आनी नई कोपलें कलिया फिर से
आशा कि हरा भरा हो ही जाना है

हम  सभी  यहाँ  पर किराएदार हैं
नही  हमारे  मकान  यहाँ  जातीय
तुम्हें मंजिल पर बढ़ते ही जाना है
जीवन  मृत्यु  से  नही  घबराना है
✍️ दुष्यन्त बाबा, मुरादाबाद
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आशाओं के दीप जलाएँ
पीड़ित मन की पीर मिटाएँ
घन उदासियों के छटेंगे
ऐसी सबको धीर दिलाएँ ।
मनुज मदद को हाथ बढ़ाएँ
एक दूजे का साथ निभाएँ
फैल गया जो कोरोना से
सभी वह अंधकार मिटाएँ ।

✍️डॉ रीता सिंह, आशियाना , मुरादाबाद
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कोरोना की ये बीमारी, आपदा बनी है भारी।
पूर्ण करके तैयारी, इसको हराना है।।

ज़िंदगी रही है हार, मच रहा हाहाकार।
लाशों के लगे अम्बार, टूट नहीं जाना है।।

माना अभी है अन्धेरा, मुश्किलों ने हमें घेरा।
जल्द आयेगा सबेरा, जीत के दिखाना है।।

छोड़ो नहीं तुम आस, खुद पे रखो विश्वास।
बात सबसे ये ख़ास, ड़र को भगाना है।।

✍️ डाॅ ममता सिंह , मुरादाबाद
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ख़ुद पर रख विश्वास एक दिन नया सवेरा होगा,
द्वार-द्वार पर दीप जलेंगे दूर अँधेरा होगा।

धैर्य परीक्षित होता है जब समय कठिन आ जाए,
मनुज नहीं विपरीत परिस्थिति के आगे झुक जाए।
लड़ना होगा दीपक जैसे आँधी से लड़ता है,
घोर अमावस का अँधियारा भी पानी भरता है।
दुख के दिन बीतेंगे निश्चित, सुख का डेरा होगा।

द्वार-द्वार पर दीप चलेंगे दूर अंधेरा होगा।
✍️  मयंक शर्मा, मुरादाबाद
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रो रही ज़िंदगी अब हँसा दीजिये,
फूल ख़ुशियों के हर सू खिला दीजिये।

इश्क़ करने का जुर्माना भर देंगे हम,
फै़सला जो भी हो वो सुना दीजिये।

ढक गया आसमां मौत की ग़र्द से,
मरती दुनिया को मालिक़ दवा दीजिये।

बंद कमरो में घुटने लगी साँस भी,
धड़कनें चल पड़ें वो दुआ दीजिये।

जाल में ही न दम तोड़ दें ये कहीं,
कै़द से हर  परिंदा छुड़ा दीजिये ।

✍️ मीनाक्षी ठाकुर,मिलन विहार
मुरादाबाद
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इस तरह ग़म के अंधेरों में  उजाले रखिये
दीप छोटा सही उम्मीद का बाले रखिये

भीङ में दुनिया की रहना है दो कदम आगे
अपने अंदाज़ ज़माने से निराले रखिये

देखना छोङिये ग़ैरों के ग़रेबानों में
आप अपने बड़े किरदार संभाले रखिये

ज़ायका सफर ए मंज़िल को चखाने के लिए
ज़ख्म ताज़ा कि हरे पाँव के छाले रखिये

✍️  मोनिका "मासूम", मुरादाबाद
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ईश्वर का संदेश

दिनकर पुनः नव,
मैं देता हूँ तुझको।
तू पाल्य मेरा,
मैं तेरा पिता हूँ।
तू भी है आश्वस्त,
पिता से मिलेगा।
इच्छाएँ मैं भी
कुछ रख रहा हूँ।
हर बार धुंधला,
तू लौटाता रवि को,
हर प्रातः उज्जवल,
मैं तुझ पर लुटाता।
माना असीमित
मेरा कोष दिखता।
मगर सच ये है कि
अमर बस विधाता।
संभल जा संंभल जा
समय तोलता है?
जग में मिला क्या
ये क्यों बोलता है?
ये रवि खिलौना,
नहीं ऐसा वैसा।
यदि दृश्य तुझको,
ये नत मुख कैसा?
अहो!पुत्र तुम हो
बड़े भाग्यशाली।
पढो़ बस सुबह-शाम,
दिनकर की लाली।
✍️हेमा तिवारी भट्ट, मुरादाबाद
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मृगतृष्णा से खुद को मत छलने देना
मन कभी निराशा को मत पलने देना
अपनी हर मंजिल को पाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको

है यदि दुख,कल सुख की बदरी छाएगी
राग सुरीले फिर से कोयल गाएगी
करनी हमको काँटों की परवाह नहीं
फूलों से हर चमन सजाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको

अभी रात काली है सुबह मगर होगी
कृपा सुनहरी किरणों की सब पर होगी
चाल समय की सदा बदलती रहती है
साथ समय के कदम मिलाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको

मार पड़े कुदरत की या हो बीमारी
चाहें टूट पहाड़ पड़ें हम पर भारी
करना होगा हमें सामना हिम्मत से
हार मानकर बैठ न जाना है हमको
आशा का ही दीप जलाना है हमको

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता ,  मुरादाबाद
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(1)
माना समय बड़ा दुष्कर है,
जीवन तक खोने का डर है,,

सामाजिकता छिन्न-भिन्न है,
बीच  में कोरोनाई जिन्न  है,,

कुछ सटीक उपचार नहीं है,
पर खर्चे का  पार  नहीं  है,,

औषधि  को  मारामारी  है,
तिस पर  कालाबाजारी है,,

फिर भी कुछ तो करना होगा,
यूं  ही  नहीं  ठहरना  होगा,,

वेंटिलेटर  नहीं  मिला  तो,
सीना  ही  थपकाना होगा,,

  आशा दीप जलाना होगा.... ,,
(2)
....आगे जाने राम.....

अब तक तो ऐसे ही बीती
आगे जाने राम,

आड़े तिरछे क्षेत्र फलों का
मिश्रण यह जीवन,
फेल हो रहे सूत्र गणित के
सीधे साधारण,
समाकलन अवकलन सरीखे
संतुष्टि को नाम,,
अब तक तो ऐसे ही बीती.....

कभी ज्यामिति निर्मेय जैसी
व्यूह रचे  सांसें,
पर त्रिकोणमिति सम चर
उत्तर अक्सर बांचें,
आवश्यकता रख लेती है
एक नया आयाम,,
अब तक तो ऐसे ही बीती....

शून्य कोरोना गुणा स्वयं से
करने अड़ा हुआ,
लॉक डाउन का बड़ा कोष्टक
घेरे हुए खड़ा,
व्यूह और आव्यूह कौन सा
कब कर जाए काम,,

अब तक तो ऐसे ही बीती
आगे जाने राम,

✍️  मनोज मनु ,मुरादाबाद
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आओ आशा दीप जलाएं
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माना चहुँ दिशि अंधकार है।
सांसों पर निष्ठुर प्रहार है।।
आओ आशा दीप जलाएं,
दूर भगाना अंधकार है।

रात भले हो घोर अँधेरी,
उसकी भी सीमा होती है।
रवि के रथ की आहट से ही,
निशा रोज ही मिट जाती है।
आशा दीपों की उजास से,
बस करना तम पर प्रहार है।

लेकिन देखो हार न जाना।
आशा को तुम जीवित रखना।।
आशा का इक दीप जलाकर,
अंधकार से लड़ते रहना।
केवल एक दीप जलने से,
ठिठका रहता अंधकार है।

रात अंततः ढल जाएगी।
भोर अरुणिमा ले आएगी।।
सूर्य रश्मियों के प्रकाश से,
कलुष कालिमा मिट जाएगी।।
तब तक आशा दीप जलाएं,
आशा है तो दूर हार है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।
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अब है बस कुछ देर की,दुःख  भरी यह रात,
आने वाला  शीघ्र ही,सुख का नवल प्रभात।

मज़बूती  से  थामकर , साहस  की पतवार,
विपदा-बाधा  का करें , आओ दरिया  पार।

यह दुनिया की शांति को, किए  हुए है भंग,
आओ  सब मिलकर लड़ें, कोरोना से जंग।

कोविड से उपजे हुए , इस संकट  में  आप,
अपने- अपने  इष्ट  का , करते रहिए जाप।

कोरोना   के  ख़ौफ़  से ,  सहमें   हैं   इंसान,
मिटा दीजिए राम जी,इसका नाम-निशान।
  
✍️ ओंकार सिंह विवेक, रामपुर
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चिंताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अंधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आंखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की खुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम', मुरादाबाद
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आओ सुख- दुःख से बतियाएँ
सुख से बोलें मत इतराना
दुःख से बोलें मत घबराना
जीवन है संघर्ष  सरीखा
यही सभी को है समझाना
सबको जीवन- गीत सुनाएँ

बोलो दुःख कैसे जाओगे
बोलो सुख कैसे आओगे
अनगिन प्रश्न हमारे भीतर
कब तक हमको बहलाओगे
मन की हर गुत्थी सुलझाएं

काल वेदना वाला आया
घोर निराशा का तम लाया
मिलकर इसको दूर करेंगे
मन में है संकल्प जगाया
आओ आशा दीप जलाएं

✍️शिशुपाल "मधुकर ", सी - 101 हनुमान नगर, लाइन पार, मुरादाबाद Mob- 9412237422
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हर मन में उजियार भरेगा
यह    आशा    का    दीप     
सबके   सारे  कष्ट   हरेगा
यह,  आशा    का    दीप।
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कबतक भटकेंगे दुनियांमें
जन  -  मानस       बेकार
कब तक टूटेगी  रूढ़ी  की
घृणित      यह       दीवार
अंधियारों  को  दूर  करेगा
यह,   आशा    का    दीप।

विश्वासों  का  तेल  भरा है
संकल्पों        के      साथ
दृढ़ निश्चयसे जली वर्तिका
हरने        सब       संताप
जीवन को हर्षित कर देगा
यह,   आशा    का    दीप।

हाथ-हाथ को काम मिलेगा
मिट       जाएगा       त्रास
घर-घर में  खुशियां लौटेंगी
होगा       जी भर      हास
खुशियां लेकर  ही  लौटेगा
यह,   आशा    का    दीप।

आंखें  कभी   नहीं  रोएंगी
मिले    सभी    का    साथ
गिरते को  बढ़कर  थामेगा
जब   अपनों    का    हाथ
अंतस में  उजियार  भरेगा
यह,    आशा    का    दीप।

सबकी  नैया  पार  लगेगी
होगा        बेड़ा         पार
अभिशापों का दंश मिटेगा
कहता       हूँ        सौबार
आशा  का  संचार   करेगा
यह,   आशा    का    दीप।
        
             
✍️वीरेन्द्र सिंह ,"ब्रजवासी", मुरादाबाद/उ,प्र 9719275453
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घर से बाहर  न  निकलिए  साहिब ।
चेहरे पर मास्क लगा मिलिए साहिब ।।

अपना घर परिवार ही है जन्नत ।                      कैदखाना इसे न समझिये साहिब ।।

यह न मौका है इल्जाम लगाने का ।
कुछ दिन तो मुंह को  सिलिए साहिब ।।

एक दूसरे से बनाकर रखें फासला ।
दिल में अपने दूरी न रखिए साहिब ।।

जलाएं मोहब्बत के दिये हर तरफ ।
नफरत का जहर न भरिए साहिब ।।

हम एक थे, एक हैं, एक ही रहेंगे ।
मिलकर कोरोना से लड़िये साहिब ।।

✍️डॉ मनोज रस्तोगी
Sahityikmoradabad.blogspot.com
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राहें भी ये पथरीली हैं गहन अँधेरा है।
आशा का इक दीप जला फिर हुआ सवेरा है।।

माना पतझर है लेकिन मौसम ये जाएगा।
मुस्काता ऋतुराज पुष्प झोली भर लाएगा।
छोड़ निराशा का आँचल मावस का फेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....

दुख के बादल बरस चुके अब क्या तरसाएंगे।
साहस की जब हवा चली तो ये उड़ जाएंगे।
सपनीली रातों में अब चंदा का डेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....

तट से टकराकर लहरें देखो इतराती हैं।
बीच भँवर में घिरी हुई ये गीत सुनाती हैं।
अवसादों से निकल जरा ये रैन बसेरा है।।
आशा का इक दीप जला.....

समय बड़ा बलवान हुआ कर्मों का है मेला।
बना मदारी नचा रहा वो, है उसका सब खेला।
सदभावों से सजा इसे जो जीवन तेरा है।।
आशा का इक दीप जला फिर हुआ सवेरा है।

           
✍️डॉ पूनम बंसल , 10, गोकुल विहार, कांठ रोड  मुरादाबाद उ प्र , मोबा 9412143525
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जनमानस का मलिन रंग है
दुखती आंखों में उमंग है
अब कर्तव्य सभी का, हम
संदेश कर्म का दें

सफल चिकित्सक, देह निरोगी
चिन्तन में लालित्य
अश्रुधार पी जाता,मन को
बहलाता साहित्य
हों कृतज्ञ हम
सांस सांस से
भर दें ममता की
सुवास से
सूनी आंखों को सहलाता
भाव मर्म का दें

नागफनी के साथ
बबूलों का तो रिश्ता है
बेरी के कांटे सहता
जो मौन फरिश्ता है
चौराहे पर अपने
दुख का रोना छोड़ें
बना सहायक अपने
थके हाथ को मोड़ें
पर दुःख में हों मित्र चलो
संदेश धर्म का दें

गीध-वंश ही हमें
बचाता है बीमारी से
प्रकृति दंड देती उबार
देती लाचारी से
आस्तीन के सांपों को
मतलब है डसने से
दांत कुंद होंगे उनके भी
गर्दन फंसने से
आवश्यक है उनको भी
संकेत शर्म का दें
✍️डा.अजय 'अनुपम', मुरादाबाद
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रोग-व्याधियों के कुनबे
एक हो गए मिलकर
चलो! एक हम भी होलें
फटा-पुराना सिलकर

पांचों उंगली अलग-अलग
सिर्फ विवशता जीतीं
मिल बैठैं तो मिली जुली
सार शक्तियां पीतीं
सीख गलतियों से मिलती
दर्द दुखों में बिल कर

दुरुपयोग शक्तियां जियें
तो चिंता हो पुर को
भस्मासुर की अतियां ही
डहतीं भस्मासुर को
एक हुआ था, लेकिन सच
देवलोक भी हिलकर

विविध धर्म भाषाएं मिल
मानव मर्म बचाएं
महल मड़ैया घेर सभी
संजीवन हो जायें
राम हुए ज्यों पुरुषोत्तम
मर्यादा में खिलकर

✍️डॉ. मक्खन मुरादाबादी, झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड, मुरादाबाद
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मन में  सुन्दर स्वप्न सजाएं
हर  असमंजस  दूर भगाएं
घोर निराशा के तम में सब
आओ !आशा दीप जलाएं
(2)
रिश्तो में अब प्यार का एहसास होना चाहिए
हर जुबां मीठी रहे विश्वास होना चाहिए
हो उदासी  अलविदा,ज़िन्दगी में अब तो बस
हास होना चाहिए परिहास होना चाहिए

✍️अशोक विश्नोई, मुरादाबाद

रविवार, 23 मई 2021

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से 23 मई 2021 को आयोजित काव्य गोष्ठी .....


मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से साहित्य समागम के तत्वावधान में एक ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन  किया गया जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने की | कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बाबा संजीव आकांक्षी तथा विशिष्ट अतिथि श्रीयुत श्री कृष्ण शुक्ल रहे | कार्यक्रम का शुभारंभ राजीव प्रखर के द्वारा  मां सरस्वती की वंदना के साथ किया गया| इस अवसर पर उपस्थित साहित्यकारों  द्वारा अपनी प्रस्तुतियां दी गई प्रकार है:-

 ठाकुर अमित कुमार सिंह ने कहा कि:-

 उम्र बीत जाती है फ़िकर, हिजारत और तिजारत में, 

लगता है अब हर किरदार निभाना आ गया

 इंदु रानी ने कहा कि:- 

रोम-रोम पुलकित भैया नैनों में मधुमास

 पग देखत श्री राम के, हिय बन गयो निवास

राजीव प्रखर  ने कहा कि:-

दूरियों का इक बवंडर, जब कहानी गढ़ गया।

मैं अकेला मुश्किलों पर, तान सीना चढ़ गया।

हाल मेरा जानने को, फ़ोन जब तुमने किया,

सच कहूँ तो ख़ून मेरा, और ज़्यादा बढ़ गया।

 मुजाहिद चौधरी एडवोकेट ने कहा कि:-

 उदास है ये फिजाएं, गगन उदास है यारों|

 अजीब वक्त है मिल कर भी रो नहीं सकते||

 डॉ अर्चना गुप्ता ने पढ़ा कि :-

कोरोना से मत डरो, हिम्मत से लो काम

 करना है मिलकर हमें, इसका काम तमाम

 श्री कृष्ण शुक्ल ने पढ़ा कि:-

 मानव के कष्टों का प्रभु अब अंत करो 

त्राहि-त्राहि हर ओर मची है मंद करो.

 बाबा संजीव आकांक्षी ने कहा कि :-

हैं नरो के इंद्र ने तुमको जगाया

अब भी ना जागे तो संताप होगा.

 अशोक विश्नोई ने कहा कि :-

मानस की चौपाईया देता उत्तम ज्ञान

इनको  पढ़िएगा सदा क्यों रहते अनजान.

इस अवसर पर प्रशांत मिश्रा, मीनाक्षी ठाकुर, डॉ रीता सिंह, हेमा तिवारी भट्ट, अशोक विद्रोही, योगेंद्र वर्मा व्योम, डॉ पूनम बंसल, डॉ मनोज रस्तोगी, आदि  ने भी अपनी प्रस्तुतियों से सभी की तालियां बटोरी.

 आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ के द्वारा सभी साहित्यकारों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया एवं ईश्वर से प्रार्थना की गई कि वह शीघ्र पूरे देश को विश्व को इस कोरोना की महामारी से निजात दिलाएं एवं दिवंगत साहित्यकारों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए. 

कार्यक्रम का संचालन युवा कवि ईशांत शर्मा ईशु ने किया |

 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी)आमोद कुमार का गीत ----तुम जो मिले

दिन बीते तुम जो मिले,
तम मे सौ-सौ दीप जले,
सुख-दुख जीवन मे जो मिले,
लगते थे सब हमको भले।
             तुम जो मिले

तुम जो उस दिन मुस्कुराए,
हम अपने गम भूल गए,
अभावों की सूनी बगिया मे
मुरझाए फूल फिर से खिले
                  तुम जो मिले

चंदा से मधु माँग पिया,
फिर क्यों जीवन विषमय हुआ,
यूँ तो सफर मे साथ थे हम,
फिर क्यों तन्हा तन्हा चले
              तुम जो मिले

अब तो सब कुछ बदल गया,
शाम हो गई और दिन ढल गया,
अलग-अलग क्यों उड़ते हैं
पंछी जो एक डाल पले
                  तुम जो मिले

मन्दिर के घंटों की ध्वनि,
खुश होते अम्बर-अवनि,
सर्द हवाएं चलती हैं
याद आई, तारे निकले
              तुम जो मिले
   
✍️ आमोद कुमार अग्रवाल, सी -520, सरस्वती विहार, पीतमपुरा, दिल्ली -34
मोबाइल फोन नंबर  9868210248

 

शनिवार, 22 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार विवेक निर्मल का गीत ---ये भी मेरा, वो भी मेरा भ्रम ये पाले हैं....


 

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की रचना ---दिल से दिल की प्रीत लिखूं मैं.....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास की कुछ रचनाएं, उन्हीं की हस्तलिपि में .....…


 







शुक्रवार, 21 मई 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष बहोरन सिंह वर्मा प्रवासी जी के ग़ज़ल संग्रह "सीपज" की सुरेश दत्त शर्मा पथिक द्वारा लिखी गई भूमिका ।




छरहरा शरीर, लम्बा बदन, गौर वर्ण, सरस नेत्र, सिर पर गाँधी टोपी, आँखों पर बिना फैशन का चश्मा, पूरी बाँहों की कमीज, सादा सा पाजामा, पैरों में स्वर न करने वाले चप्पल, एक हाथ में छड़ी दूसरे हाथ में किताब, कापियों तथा कविताओं की नोटबुकों से आधा भरा थैला, धीमी धीमी चाल से चलता हुआ ऐसा व्यक्ति यदि आप को सड़क पर दिखाई दे जाए तो आप समझ लें कि यही हैं कविवर श्रीयुत बहोरन सिंह जी वर्मा 'प्रवासी'।

 सन् १९४९-५० में इनसे परिचय हुआ। नगर के अच्छे अध्यापकों में श्री प्रवासी जी की गणना होती है। 'शिक्षक संघ' के माध्यम से इन्होंने शिक्षकों की न्यायोचित माँगों को तीव्र स्वर दिया है तथा उनकी समस्या के समाधान हेतु शिक्षाधिकारियों को विवश किया है। अपने कर्त्तव्य के प्रति सदैव सजग रहे हैं तथा छात्रों के सर्वागीण विकास को पूजा से कम महत्व प्रदान नहीं किया है। इनकी दिनचर्या में अध्ययन और अध्यापन का प्रमुख स्थान है। माँ सरस्वती की सतत आराधना करके उनसे वरदान प्राप्त किया।

     साहित्यिक संस्था 'अन्तरा' तथा अन्य कवि गोष्ठियों में प्रवासी जी से कवितायें सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। 'तरन्नुम' के साथ तथा डूबकर कविता पढ़ते हैं। सुनने में अच्छा लगता है। सरल शब्दों में गहरी बात कहने में श्री प्रवासी जी सिद्धहस्त हैं। डा. अजय कुमार अग्रवाल 'अनुपम' प्रबन्धक, हिन्दी साहित्य सदन, मुरादाबाद, प्रायः मेरे पास रहते हैं। अभी कुछ दिन पूर्व उन्होंने श्रीयुत प्रवासी जी के गजल संग्रह 'सीपज के विषय में दो शब्द लिखने को कहा। उनके इस प्रस्ताव से मैं द्विविधा में पड़ गया। वास्तव में में इस गुरुतर कार्य के लिये अपने को अयोग्य मानता हूं। मैंने यह बात श्रीयुत अनुपम जी से कई बार कही। उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी। विवश होकर उनके अनुरोध को स्वीकार करना पड़ा, क्योंकि श्रीयुत अनुपम जी से सम्बन्ध ही इस प्रकार का है। 'दो शब्द' जैसे हैं प्रस्तुत हैं।
        प्रस्तुत ग़ज़ल संग्रह 'सीपज' को आद्योपान्त पढ़ा। अच्छा लगा। अस्सी ग़ज़ल रूपी मोतियों को पिरोकर एक ऐसी सुघड़ माला बनायी गयी है जिसका प्रत्येक मोती अपनी अलग ही छवि बिखेर रहा है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गीत एक ऐसा गुलदस्ता होता है जिसका प्रत्येक फूल अलग अलग रंग का होते हुए भी उसके सभी फूलों की गंध एक सी होती है जबकि ग़जल के सभी फूलों के रंग और गंध अलग भी हो सकते हैं। पूरे गीत का मूल भाव एक ही रहता है जबकि गजल के प्रत्येक शेर का भाव अलग होता है।
      श्रीयुत प्रवासी जी भावुक तथा गहरी परख वाले कवि हैं। उन्होंने समाज को गहराई से देखा है और उसकी अच्छाई बुराई को भली भाँति भोगा है। समाज की विसंगतियों को ध्यान पूर्वक देखा है। उनके सीपज का कथ्य उनके द्वारा भोगा हुआ सत्य है। प्रत्येक क्षेत्र में अन्याय को देखकर कवि के हृदय में एक टीस उठती है:
      'भव्यता कैसे रहेगी विश्व की,
      हर तरफ दुर्गन्ध ही दुर्गन्ध है। (गजल१)

चारों ओर अशान्ति का साम्राज्य देखकर कवि ने कहा है:
'शान्ति, जन को अब कहाँ से प्राप्त हो,
  शान्ति मंदिर ही हुआ जब ध्वस्त है
  भय प्रवासी को न शूलों का रहा होगा,
  यह हुआ उनका बहुत रहा, अभ्यस्त है। (गजल ९)

इसी भाव को अपनी ५६वीं ग़ज़ल में इस प्रकार कहा है..
'नुकीले बिछे पगपग डगर में,
नहीं ज्ञात कैसे पथिक चल रहा है।

जगत में सुख शान्ति लाने के जितने प्रयास हो रहे है, उतनी ही अशान्ति बढ़ रही है। 'मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की इसको देखकर कवि निराशा भरे स्वर में कह उठता है:
मचा विश्व में आर्त्त क्रन्दन 'प्रवासी',
हुआ है व्यथा का शमन अब असंभव (गजल ४६)

निरीह भोली भाली जनता की दुर्दशा तथा उसको ठगकर ऐश्वर्य का जीवन जीने वाले नेताओं को देखकर कवि अत्यधिक दुःखी स्वर में कहता है:
कुछ समझ में नहीं आ रही है,
इस नियति चक्र की गति तनिक भी,
नीर को जो तरसते  कभी थे,
क्षीर को पी रहे हैं जगों से,
स्वप्न में भी यह आशा नहीं थी
जो मनुज की दशा हो गई अब,
लाज हिम के सदृश गल रही है,
नीर सा ढल गया है दृगों से। (गजल ७१)

वे आगे कहते हैं:
आज जन का विषमयी स्वर पान कर,
साँस घुटती जा रही है क्या करें ।' (ग़ज़ल७३)
हर ओर आज स्वार्थ की लहरा रही ध्वजा,
निःस्वार्थ कौन कर रहा उपकार आज कल
शुचि स्नेह, मान, नम्रता कब के विदा हुए
विद्रूप हो गया बहुत व्यवहार आजकल (गजल ७६
)

साहित्य शब्द में हित निहित है अतः जो साहित्य
समाज के हित हेतु न लिखा गया हो वह चाहे जो हो साहित्य नाम को सार्थक नहीं करता। श्रीयुत प्रवासी जी की मान्यता भी यही है। साथ ही वे काव्य में यति, गति छन्द तथा गेयता के पोषक हैं। वे कहते हैं:
हो न कल्याण-भावना जिसमें काव्य ऐसा असार होता है ।
न कल्याण हो जिस गिरा से किसी का
कहो शब्द विन्यास वाणी नहीं है। (गजल २८)

काव्य कहलाता छन्द, यति, वही जो गेय है।
छंद, यति, गति हीन रचना हेय है। (गजल ३९) ।

श्री प्रवासी जी धन, विद्या, काव्य तथा भक्ति के साधको को सिद्धि का मूल मंत्र बताते हुए कहते हैं:
लगन के बिना साधना है अधूरी,
सतत साधना सिद्धि मन्दाकिनी है।

पसीने की कमाई की प्रशंसा तथा कफन खसोट कर एवं दूसरों को सताकर कमाए धन को विष के समान बताते हुए कवि ने कहा है:

मिले जो सहज, श्रेष्ठ जानो उसे ही,
अलभ वस्तु पर दृष्टि अपनी धरो मत।
गरल बूँद, मधुक्षीर को विष बनाती,
कुधन से कभी कोष अपना भरो मत।
सुपथ से मिला अल्प धन ही बहुत है,
कुपथ से कभी द्रव्य अर्जन न करना।

  श्री प्रवासी जी ने श्रृंगार रस के बहुत से गीत तथा दोहे लिखे हैं। सीपज में भी श्रृंगार रस अछूता नहीं रहा है। कुछ शेरों को उदधृत करना पर्याप्त होगा:

हो गया दूर बालपन उनका,
अब बदलने लगा चलन उनका। गजल २

सृष्टि उस काल हो गई बेसुध
जिस समय वे सहज सँवर बैठे
प्राण की रूप माधुरी लखकर
क्या करें बातचीत भूल गए।

  उर्दू ग़ज़ल के अन्दाज में श्री प्रवासी जी कहते हैं: हटाओ नहीं चन्द्र मुख से अलक घन
मचल जायेंगे लख हटीले रसिक मन ।(गजल १२
)

परहित सरिस धरम नहिं भाई परपीड़ा सम नहिं अधमाई। गोस्वामी तुलसी दास जी के इसी भाव को श्री प्रवासी जी ने इस प्रकार व्यक्त किया है:

मनुजता की विमल व्याख्या यही है,
नयन गीले सुखाते जाइएगा । (ग़ज़ल २१)

मातृभूमि की सेवा करने की प्रेरणा देते हुए श्री प्रवासी जी कहते हैं:
एक दिन हर वस्तु होनी है विलय,
श्रेष्ठ कर्मों हो नहीं का सुयश अविलेय है।
सकता मनुज कोई उऋण
मातृभू का ऋण सभी पर देय है ।

मनुज की अशान्ति का कारण उसका लोभ और मोह है। कभी पूरी न होने वाली लालसाओं के चक्कर में पड़कर उसका सुख चैन गूलर का फूल हो गया है सन्तोष तथा त्याग ही शान्ति का आधार है, श्री प्रवासी जी कहते हैं:
लालसाएँ हैं कॅटीले जाल सी,
सर्व सुखदाता विषय का त्याग है।

कविवर रहीम जी ने एक दोहा लिखा है:
रहिमन अपने पेट सौं, बहुत कह्यों समझाय।
जो तू अन खायो रहै, तो सौ को अनखाय

इसी भाव को श्री प्रवासी जी ने अपने शब्दों में इस प्रकार कहा है:
सभी व्यक्ति होते सुजन इस धरा के,
व्यथित यदि न करती क्षुधानल उदर की।

दुःखालय संसार से संताप पाकर तथा विवश होकर प्राणी करुणालय एवं दीनबन्धु भगवान की शरण में जाता है। उन्हों की शरण में वह सुख शान्ति का अमृतपान करता है। श्री प्रवासी जी का कथन है:
तुम्हारे दर्श का प्यासा, तुम्हारे द्वार आया है।
कृपा की दृष्टि हो जाए बहुत जग ने सताया है ।।
कृपा जिस ओर हो  जाए तुम्हारी,
सुधा उसके लिए होता गरल है ।

अन्त में कहा जा सकता है कि कविवर भाई श्रीयुत प्रवासी जी ने सीधी सादी सरल भाषा रुपी धागे में मधुर भावों के रंग बिरंगे सीपजों को यत्नपूर्वक पिरोकर जो माला प्रस्तुत की है वह श्रोता तथा पाठकों के मन को मोहित किये बिना नहीं रह सकती। कला तथा भाव दोनों ही दृष्टियों से सीपज' एक अच्छी रचना है। श्रीयुत प्रवासी जी ने जनता की समस्याओं को तथा सुहृदयों के भावों को सीपज का कथ्य बनाया है। इसीलिये सीपज सभी पाठकों का मनोरंजन करते हुए आदर प्राप्त करेगी ऐसा विश्वास है। इस सुप्रयास के लिए भाई प्रवासी जी प्रशंसा के पात्र हैं। और इस संस्कृति को आप तक पहुंचाने के लिए हिन्दी साहित्य सदन मुरादाबाद तथा उसके प्रबन्धक डा. अजय अनुपम साधुवाद के अधिकारी हैं।

✍️ सुरेश दत्त शर्मा 'पथिक',मुरादाबाद

सोमवार, 17 मई 2021

वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक रविवार को वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है । इस आयोजन में समूह में शामिल साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में चित्र सहित अपनी रचना प्रस्तुत करते हैं । रविवार 16 मई 2021 को आयोजित 253 वें आयोजन में शामिल साहित्यकारों डॉ अशोक रस्तोगी, अटल मुरादाबादी, दीपक गोस्वामी चिराग, विवेक आहूजा, रेखा रानी, राजीव प्रखर , मीनाक्षी ठाकुर, शिवकुमार चंदन, चंद्रकला भगीरथी, प्रीति चौधरी, अशोक विद्रोही, मुजाहिद चौधरी, इंदु रानी, श्री कृष्ण शुक्ल,अमितोष शर्मा,कंचन खन्ना, सन्तोष कुमार शुक्ल सन्त और डॉ मनोज रस्तोगी की रचनाएं उन्हीं की हस्तलिपि में .......