शुक्रवार, 19 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में मुम्बई निवासी ) प्रदीप गुप्ता की सात कविताएं.....

 



(1) गाँव : एक शब्द चित्र  

      

एक अजब वीरानगी है 

इन दिनों चौपाल में 


न इधर सरपंच आते 

न ही कोई फ़रियादी

हुक्का कहीं लुढ़का पड़ा है 

और कहीं चौपड़ गिरा दी 

अब ठहाके को तरसती 

सामने वाली बूढ़ी काकी 

एक अरसे से ढिबरी वहाँ 

है पड़ी  बिन तेल बाती 


जानना यह है ज़रूरी

गाँव क्यों इस हाल में 


बंट गए हैं लोग फ़िरक़ों में 

छोटी छोटी बात में 

और ज़हर फैला हुआ है 

नफ़रतों का बेबात में 

जो गले मिल के रहा करते थे 

गला काटने की फ़िराक़ में 

किसान से मुवक्किल बने और लुट गए 

बस वकील हैं ठाठ में 


है दुखद पर सच यही है 

गाँव अब इस हाल में 


न रोपाई समय पर 

न ही अब  चले है हल 

दिन कट रहे कचहरी में 

रात को पहरे का शग़ल 

कुछ इधर के साथ में हैं 

कुछ उधर के संग निकल 

स्थिति आदर्श है यह 

काटने वोटों की फसल 


और युवा करके पलायन शहर में 

फँस चुके  मजूरी के जंजाल में


(2) कठपुतली सा हमें नचाएँ 

कठपुतली सा हमें नचाएँ 

जो कुछ चाहें वही कराएँ


एक पटकथा लिख के रक्खी

जिसके नित दिन नए प्रसंग 

झूठ सत्य सा बाँच रहे हैं 

जैसे छिड़ी हुई हो जंग 

पढ़ना लिखना अब अतीत है 

जिएँ आभासी दुनिया के संग 

भ्रमित लोग अब और भ्रमित हैं 

झूठ बिखेरें  कितने रंग 


नेपथ्य से जाल बिछाएँ 

हम से जो चाहें करवाएँ 


मेरे सच और तेरे सच में 

झूठ झूठ जंजाल बिछे  हैं 

घर घर में उन्माद भरा है 

तर्कों के हथियार बड़े हैं 

उल्टे कदम सही ठहराने 

देखो कितने लोग खड़े हैं 

डोरें उनके पास हमारी 

हम सारे रोबोट बने हैं 


जतन करो आँखें खुल जाएँ 

कठपुतली फिर मानव बन जाएँ


(3) ज़िंदगी : एक शब्द चित्र ………

हरदम लड़ती रहती हो 

मुँह में जो आता कह देती हो . 

मैं भी सब चुप सुनता रहता हूँ 

साथ साथ अख़बार की सुर्ख़ियों को 

पढ़ता रहता हूँ 

इस सब के बीच मेज़ पे चाय आ जाती है 

हाँ, स्वरों की हलचल और बढ़ जाती है 

आलू के बदले अरबी ले आ जाना 

मुद्दा बन जाता है 

दूध वाला ज्यादा पानी मिला रहा है 

मसला आ जाता है 

कई बार लगता है भूमण्डल की 

सारी गड़बड़ मेरे कारण हैं 

और इधर मेरा दुनिया में होना अकारण है 

अख़बार से झांकता हूँ 

मेज पे नया कुछ पाता हूँ 

खमण , फ़ाफडा की ख़ुश्बू से 

भरी प्लेट पाता हूँ 

इसी बीच ऊँचे स्वर 

अचानक सुप्त हो जाते हैं 

पूजा घर से प्रार्थना के स्वर 

घंटी के साथ  गूंजित हो जाते हैं

इस सब के बीच नहाने 

और बाज़ार जाने के 

आदेश जारी हो जाते हैं 

अख़बार अधूरा छोड़ हम भी 

नए मोर्चे पर बढ़ जाते हैं 

बाज़ार में इक इक तरकारी 

चुन चुन के रखवाते हैं 

फिर भी कोई गड़बड़ न रह जाए

 सोच के थोड़ा घबराते है 

हर सामान को कई बार 

लिस्ट से जंचवाते हैं 

कुछ छूट नहीं गया हो 

इस लिए बार बार गिनवाते हैं 

यह किसी एक दिन का नहीं 

रोज़ का क़िस्सा है 

ऐसा लगता है अब व्यक्तित्व का 

अटूट हिस्सा है 

कभी सोचता हूँ कि उसकी

वाणी का अंदाज मीठा हो जाए

और ज़िंदगी का अन्दाज़ ही बदल जाए 

पर इस पर मुद्दे पर ठहर सा जाता हूँ 

और ज़िंदगी के इन रसों का लुत्फ़ उठाता हूँ 

तुम जैसी हो वैसे ही आगे भी रहना 

इस रूप में भी सैकड़ों से अच्छी हो 

ऐसे ही जीवन भर रहना


(4) उम्र का असर ....

उम्र का असर अब दिखने लगा है 

थोड़ा चल के शरीर थकने लगा हैं 


मगर बहुत कुछ है जो मुझे आज भी 

बूढ़ा होने से रोकता है 

तेरी यादों का सिलसिला 

आ के अक्सर झकझोरता  है 

पुलकित हो जाता है रोम रोम 

अजब सी ऊर्जा भर जाती है 

मायूसी पल भर में तेरी यादों से 

वाष्प बन कर उड़ जाती है


पहले उड़ता था उन्मुक्त पंछी जैसा 

अब अपने आप ही टिकने लगा है 


चंद दोस्त जब दूर से दिख जाते हैं 

कदम अपने आप उधर मुड़ जाते हैं 

वही उन्मुक्त अट्टहास वही शोख़ी 

उनके पुराने प्रहसन भी गुदगुदाते हैं 

मेरे ये दोस्त  टानिक से कम नहीं 

थके शरीर को नए उत्साह से भर देते हैं 

अजीब रिश्ता है मेरा उनके साथ 

बिना कहे वो मुझको समझ लेते हैं 


पर देख पता हूँ उन दोस्तों का दर्द 

अब उनके चेहरे पे  छलकने लगा है 


टीवी मोबाइल  से ऊब होती है 

तो जा के किताबों में गुम जाता हूँ 

हर किताब से नया रिश्ता बनता है 

उसके साथ सफ़र पे निकल जाता हूँ 

कई बार जब कविताएँ पढ़ता हूँ 

उनके कई अंश मुझ पे ताने मारते हैं 

कई कहानियों में अपना अक्स लगता है 

बहुत से उपन्यास हालत के रोजनामचे हैं 


किताबों की दुनिया मैं तैरते तैरते 

एक नया सा शख़्स मुझमें बसने लगा है


(5) मशक़्क़त करनी पड़ती है ………

बहुत मशक़्क़त करनी पड़ती है 

तब कहीं जा के किसी के लबों पे मुस्कान आ पाती है 


कभी जोकरों जैसा लबादा ओढ़ना होता है 

सुनाने पड़ते है समिष या फिर निरामिष जोक 

कभी बौद्धिकता का आवरण उतार देना होता है 

तो कई बार ज़रूरी हो जाती है थोड़ी नोक झोक 

भले ही दिल में चल रही हों ज़बरदस्त उलझनें 

अपने सारे उद्वेगों को ठंडे बस्ते में लेते हैं रोक 

ताकि आपके सामने वाला बस यही सोच ले 

आप से ज़्यादा ख़ुश मिज़ाज नहीं है कोई और 

 

सच तो यह है कि बहुत कोशिश के बावजूद 

आसानी से यह कला हर किसी को नहीं आ पाती है 


कर के देखिए न एक बार,  अगर आपके प्रयास से 

कोई सचमुच मुस्कुरा देता है 

यक़ीन मानिए आपका दिन बन जाएगा 

इस तरह दिल तक पहुँचने का रास्ता खुल जाता है 

इसे  हल्की फ़ुल्की उपलब्धि  मत समझ लेना 

अच्छे अच्छों को यह हुनर नहीं आ पाता  है 

दिल का रास्ता खोजने में बरस लग जाते हैं 

किसी का मुस्कुराना सम्बन्धों  का पासवर्ड बन जाता है 


मुस्कुराहट फैलाने का सिलसिला जारी रखें

किसी की मुस्कुराहट से दुनिया और हसीन हो जाती है . 



(6) सफ़र .….

बताया जो मैंने अपना सफ़र 

मेरे साथ चाँद तारे हो लिए 


कहाँ ये सफ़र जा के होगा ख़त्म 

कोई जीपीएस नहीं मेरे हाथ में 

रास्ता कहाँ से कहाँ जा मिले 

भूल जाऊँ दिशा बात ही बात में 

है ये लम्बा सफ़र कोई  साथी नहीं 

ना कोई सयाना मेरे साथ में 

ना कोई टिकट ना मासिक पास 

ना कोई आरक्षण मेरे पास में 


मगर देखे मेरे पैरों के ज़ख्म 

साथ में कुछ दोस्त भी हो लिए 


मजहबों के बारे में जम के पढ़ा 

ऋषियों  की वाणी को भी सुना 

मंत्रों को तसबीह पे फेर के 

ध्यान की मुद्राओं को भी चुना

संगतें साधुओं की अक्सर करीं

उनके सुभाषितों को भी गुना 

समाधि , मज़ारों पे चादर चढ़ा 

इक तिलिस्म रूहानियत का बुना 


यह सब कुछ कुछ अधूरा लगा 

इसलिए रस्ते अलग चुन लिए



(7) कविता ....

कविताओं को लेकर जोश ओ जुनून कहीं नहीं दिखता 

वजह साफ़ है अधिकांश मामलों में गहराई नहीं होती 

जो कविता महज लिखने के लिए लिखी जाती हैं 

उनमें उत्कृष्ट शब्द शिल्प रहता है स्पंदन नहीं मिलता 

कुछ कविताएँ तो ख़ास पुरस्कारों के लिए गढ़ी जाती हैं 

इसीलिए आम लोगों की ज़बान तक नहीं चढ़ पाती हैं 

कविता सच में कविता होगी तो पढ़ के मुरीद हो जाएँगे  

इनमें दर्द के साये तो कहीं झूमते गाते शब्द दिख जाएँगे 

ऐसी कविता में वंचित के दुःख दर्द भी मिल जाते हैं 

हताश इंसान को इनमें सम्बल भी नज़र आते हैं 

राह भटके को आशा का झरोखा  भी दिख जाता है 

कहीं समाज के हालत बदलने का जुनून छुपा रहता  है 

कई में तो कवि की ज़िंदगी का पूरा निचोड़ रहता है 

ऐसी कविता को सत्ता के गलियारे की दरकार नहीं 

घूमती रहती है ज़िंदगी की गलियों में कहीं विश्राम नहीं 

इसमें जीवन रंग रहते हैं कोई पूर्वाग्रह नहीं बोती हैं 

तभी तो ये किसी प्रचार तंत्र का कट पेस्ट नहीं होती हैं 

जब कभी लोग अपनी तकलीफ़ से आजिज़ आ जाते हैं 

इन्हीं कविताओं को परचम की तरह लहराते हैं 

इसी लिए ये आगे जाके इतिहास का हिस्सा बन जाती हैं 

और ये लोक गाथाओं में स्थायी रूप से बस जाती हैं 

कविता सही में कविता हो तो उसे हलके में मत लेना 

इसमें बसते हैं प्राण, काग़ज़ का पुर्ज़ा न समझ लेना


✍️ प्रदीप गुप्ता 

B-1006 Mantri Serene, Mantri Park, Film City Road , Mumbai 400065    

गुरुवार, 18 नवंबर 2021

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का मुक्तक--लोभ से होकर रहित यह जिंदगी...


 

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही का गीत --- मोदी - योगी अपने देश को ईश्वर का वरदान हैं, देखो, कैसा बदल रहा अब अपना हिंदुस्तान है...



 

मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर की रचना ----तेरी बांहों में दम निकले, सफर अब और क्या करना ...


 

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा की साहित्यकार प्रीति चौधरी की ग़ज़ल ---कह लो अब जो भी कहना है .....


 

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (जनपद अमरोहा ) की साहित्यकार रेखा रानी का गीत - हम भारत की तकदीर हैं


 

मुरादाबाद के साहित्यकार (वर्तमान में दिल्ली निवासी) आमोद कुमार का गीत-- जीवन भी है तृष्णा भी है .....निवेदिता सक्सेना के स्वर में..


 https://youtu.be/9NXiA8t26PY

बुधवार, 17 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में नोएडा निवासी) नरेन्द्र स्वरूप विमल का गीत--- रूप छलता रहा मन मचलता रहा, भावनाओं की गंगा प्रवाहित रही....। उनका यह गीत प्रकाशित हुआ है सुरेश अधीर एवं जितेन्द्र कमल आनन्द के सम्पादन में प्रकाशित साझा काव्य संकलन 'प्रवाह' में । यह संकलन आध्यात्मिक साहित्यिक संस्था काव्यधारा भारत, रामपुर द्वारा वर्ष 2000 में प्रकाशित हुआ था ।

 


रूप छलता रहा मन मचलता रहा, 

भावनाओं की गंगा प्रवाहित रही। 

कुछ न तु म कह सके 

कुछ न हम कह सके 

प्रेम की यह लता पर सुवासित रही।


दोष किसका यहाँ, तोष किसको यहाँ, 

धड़कनें हैं तो जीवन बिताना ही है। 

याद तृष्णा सही, मानता कुछ नहीं 

चाँद मन को दिखाकर रिझाना ही है। 

नीर ही नीर है, पीर ही पीर है, 

गंध-सी उर में ज्वला समाहित रहीं।।


आस ही आस है, प्यास ही प्यास है, 

जाने क्यों आज तक तुम पर विश्वास है। 

फूल बनने से पहले कली खिल गई, 

पास कुछ भी नहीं और सब पास है। 

ज़िन्दगी ढल रही, आँधियाँ चल रहीं। 

क्वारी इच्छा सदा पर विवाहित रहीं।।


कौमुदी छल रही, राका रजनी बनी, 

तुम क्या बिछुड़े सभी दृष्टियाँ फिर गई। 

तारे यादों के गिनने को बैठा ही था, 

धुन्ध ही धुन्ध में बदलियाँ घिर गई। 

आँखे रोती रहीं, बोझ ढोती रहीं, 

मन से मन की जलन अविभाजित रही।


स्वप्न कितने बुने, फूल कितने चुने,

गीत कितने लिखे, पर तुम न पा सके। 

घन बरसते रहे, हम तरसते रहे, 

झूठ को ही सही, तुम नहीं आ सके। 

फिर भी जलते रहे, दर्द पलते रहे, 

मन के मन्दिर में प्रतिमा स्थापित रही।


✍️ नरेन्द्र स्वरूप विमल

ए 220, सेक्टर 122, नोएडा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार कंचन खन्ना की कविता ---बच्चे


 

रविवार, 14 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे की पुण्यतिथि पर 12-13 नवम्बर 2021 को वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद की ओर से दो दिवसीय ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन





मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर  'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन 12 एवं 13 नवम्बर 2021 को किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि शंकर दत्त पांडे के गीत रागात्मकता और संवेदना से ओतप्रोत हैं । 

     

मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा दस जनवरी सन 1925 को मुरादाबाद के मुहल्ला लोहागढ़ में जन्में शंकर दत्त पांडे ने हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू तीनों भाषाओं में  विपुल साहित्य की रचना की । आपकी कृतियों में काव्य संग्रह झलक, बाल कहानी संग्रह, लाल फूलों का देश, बारह राजकुमारियाँ, पीला देव, जादू की अंगूठी, रोम का शिशु नरेश, जादू का किला, शेष पथ कैसे कटेगा, स्वप्न जो तुमने दिया, मधु ऋतु चली गयी, कामना के उपवनों में वर्तिका, अमृता, महावर कौन, स्वप्न और स्मृति, उपेक्षा के अक्षत, व्यथा उर्मियों की, संवेदना के दर्द,सौन्दर्य का आचमन , रेत पर जमती नहीं भीत, थाने के बादामी रजिस्टर, बहारों का पतझड़, स्मृतियों के पराग, सुहागिन विधवा, साधना का दीप, पिंजड़ा, हमराही तथा न्याय की प्रतीक्षा, विष के घूंट, पूरन की चौपाल, रेत पर लिखे कथानक, फूल की विस्तृत गंध तथा मैं तुम्हारे साथ, यादों के मजार व चंद धुंधली तस्वीरें उल्लेखनीय हैं। आपका निधन 12 नवम्बर 2004 को हुआ। 

महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर  महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि सरलता, सहजता, सौम्यता, सादगी और विद्वता की प्रतिमूर्ति स्व. शंकर दत्त पांडे जी ने न केवल मुरादाबाद में मांटेसरी शिक्षा पद्धति की अलख जगाई वरन् अपने उत्कृष्ट रचना कर्म से हिंदी साहित्य, विशेषकर बाल साहित्य में उल्लेखनीय योगदान भी दिया । उनका संपूर्ण बाल साहित्य बाल मनोविज्ञान पर आधारित रहा। उनके गीतों में रागात्मकता के दर्शन होते हैं साथ ही छायावाद का स्पष्ट प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। गहन संवेदना से ओतप्रोत उनके गीत पाठकों के मन पर अमिट छाप छोड़ने में सफल रहे हैं।

हिन्दू कॉलेज मुरादाबाद के पूर्व प्राचार्य डॉ रामानन्द शर्मा ने कहा कि अंग्रेजी, उर्दू और हिन्दी में समान लेखनी चलाने वाले श्री शंकर दत्त पांडे  भाव और भाषा के सुन्दर शिल्पी हैं। प्रकृति के प्रति वे नितान्त अनुराग रखते हैं और यही उनकी कविता की प्रमुख भूमि है। आकुल अन्तर और नीतियुक्त उद्बोधन भी उनकी काव्य-रचना के मनोरम सोपान हैं। प्रकृति के मनोरम चित्रों से उनके गीत परिपूर्ण हैं। इनमें कवि की तन्मयता एवं तल्लीनता तो देखते ही बनती है लेकिन सूक्ष्म पर्यवेक्षण एवं चिन्तनशीलता भी उपेक्ष्य नहीं रहे हैं। एक गीत का छोटा-सा अंश प्रस्तुत है जो न केवल गीत का अंश है, बल्कि स्वयं में पूर्ण चित्र भी है :

है नील गगन में चाँद उदित, 

है तारागण का हृदय मुदित, 

नभ-कुसुमों का यह मृदु कम्पन 

मानों रह-रह होते विकसित ।

इक शान्त झील में देख रहा,

यह छटा मनोरम प्रतिबिंबित,

यह    अन्तर्तम सहसा होता

अनुपम भावों में अभिप्रेरित ॥ 

अभिव्यक्तिविधान की दृष्टि से वे नैसर्गिक भाषा के समर्थक है और बोझिल, परिन्दे जैसे प्रचलित अरबी-फारसी के शब्दों का प्रयोग भी न्याय्य समझते हैं। भाषा को सायास संस्कृतनिष्ठ बनाना उन्हें उपयुक्त नहीं लगता। अलंकारों का स्वल्प प्रयोग ही वे काव्य में करते हैं किन्तु उनका अलंकृत प्रयोग काव्योक्ति को रमणीयता अवश्य देता है। छन्द की दृष्टि से उन्होंने नवीन प्रयोग भी किये हैं तथा कविता और गीत के मध्य संवाद-सेतु बनाने का प्रयास किया है। 

दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्या डॉ स्वीटी तलवाड़ ने कहा कि स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे का परिचय व उन के साहित्य की विस्तृत जानकारी पटल के माध्यम से प्राप्त कर वास्तव में अभीभूत हूँ।  उनकी मुक्त छंद कविताएं अत्यंत उत्कृष्ट भावनायें समेटे हुए हैं । उनकी कविताओं में भाव, भाषा, विषय, अभिव्यक्ति,सब अद्वितीय है।

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि स्मृति शेष शंकर दत्त पांडेय बहुआयामी सर्जक थे। पाण्डे जी मैडम मारिया मांटेसरी जी के शिष्य थे यही कारण था कि उन्होंने मांटेसरी शिक्षा पद्धति को बच्चों को पढ़ाने में प्रयोग किया जो सफल रहा। पाण्डे जी बाल नाटक के द्वारा भी बच्चों को शिक्षा देते थे। उन्होंने कई संस्मरण भी प्रस्तुत किये।

मथुरा के प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) राजीव सक्सेना ने कहा कि पांडे जी ने न केवल अपने समय के यथार्थ को शब्दों के माध्यम से जीया था बल्कि इसको उद्घाटित करने के क्रम में एक विराट रचना संसार की सृष्टि भी की थी। पांडे जी के लेखन के विविध आयाम थे। वे समकालीन साहित्य के एक बड़े हस्ताक्षर थे।  एक कुशल चितेरे की भाँति उन्होंने एक बड़े कैनवस पर जीवन के लगभग सभी विम्ब उकेरे हैं और स्पेक्ट्रम के सभी रंग उनके सृजन में पूरी भव्यता के साथ उपस्थित हैं।  उनके काव्य में छायावादी प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।  उनकी रचनाओं में एक व्यापक दृष्टि और युगबोध के भी दर्शन होते हैं। 

वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि स्वर्गीय पंडित शंकर दत्त पांडे जी मेरे वरिष्ठ मित्रों में एक थे। मुरादाबाद में पांडे जी और स्वर्गीय सर्वेश्वर सरन सर्वे दो ही व्यक्ति थे जो मैडम मारिया मान्टेसरी जी के शिष्य थे। वर्तमान साहू रमेश कुमार गर्ल्स इन्टर कालेज की स्थापना मान्टेसरी शिक्षापद्धति से, खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने के लिए ही की गई थी। पांडे जी कहानी भी लिखते थे। मेरा पांडे जी से नित्य का मिलना रहता था। यदि रोज़ न मिले तो रविवार तो निश्चित था ही। एक दूसरे के घर जाये बिना मन में उलझन सी बनी रहती थी। पांडे जी घुमक्कड़ वृत्ति के व्यक्ति थे। उन्हें यह पसन्द नहीं था कि कोई मन में दुराव रखकर बात करे। मुरादाबाद में लोहागढ़ नामक मुहल्ले में उनका घर था। पांडे जी ने श्री राजनारायण जी द्वारा प्रकाशित की जाने वाली प्रदेश पत्रिका के अंकों में से कुछ रचनाएं छांटकर 1962 से 1976 तक के अंकों का एक कलेक्शन भी तैयार किया था, जो मुरादाबाद के साहित्य/हिन्दी साहित्य में शोध करने वालों के लिए बहुमूल्य सामग्री प्रस्तुत करता है। उनकी कहानियों में बाल मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण रहता था। उन्होंने अधिकांश कहानियां बच्चों के लिए ही लिखी थीं।

     

दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार अग्रवाल ने कहा कि स्मृतिशेष श्री शंकर दत्त पाँडे मधुर स्वभाव के, गम्भीर किन्तु हँसमुख व्यक्तित्व के साहित्यकार थे। मेरा उनसे निकट का परिचय था, उनके अनुरोध पर मैने उनके बेटे को  पढ़ाया भी था, ये भी एक संयोग है कि मेरा जन्म भी लोहागढ़ मौहल्ले मे हुआ था जहाँ श्री पाँडे जी का। यूँ तो उनके साहित्यिक रचना संसार मे बाल साहित्य,गीत,कहानियाँ,छंद मुक्त कविताएं, उपन्यास  सभी कुछ था पर छोटे बालकों का जीवन एवं भविष्य गढ़ने और संवारने मे उनकी विशेष रुचि थी और इसमे प्रायः उनके साथ नज़र आते थे उनके परम मित्र मुरादाबाद के ख्याति प्राप्त चित्रकार एवं शायर स्व सर्वेश्वर सरन सर्वे जी थे। यूँ तो उनकी बाल कहानियों में राजा-रानी,परियों, जादू टोना आदि पर आधारित कल्पनाएं ही कथानक के रूप मे होती थीं किन्तु बच्चों के लिए ये अत्यंत शिक्षाप्रद होती थीं जिनके माध्यम से वे दया, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुणों का संदेश देते थे। पाँडे जी के गीत भी मर्मस्पर्शी हैं। जहाँ इन दिवंगत साहित्यकारों से नई पीढ़ी के रचनाकारों को प्रेरणा मिलती है, वहीं हमारे जैसे लोगों, जिन्होने उन्हे देखा है,उनसे बात की है,साथ बैठे हैं, के लिए रोमांचकारी और स्मृतियों का पुर्नसृजन है। 

वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि शंकर दत्त पांडे जी साहित्य और संस्कृति के सच्चे उपासक थे। उनका सम्पूर्ण जीवन शिक्षा और साहित्य के प्रति समर्पित रहा । सुख-दुख की पीड़ा का दर्शन उनकी रचनाओं में परिलक्षित होता है।  पांडे जी ने वियोग श्रंगार रसप्रणय मिलन की मर्यादित भाषा शैली में काव्य रचना की है। मैं डॉक्टर मनोज रस्तोगी जी को ह्रदय से शुभकामना देती हूं जो कार्य वह कर रहे है शायद साहित्यिक जगत में अमरता  का यह सोपान कभी भी संताने नहीं दे सकती थी।  निष्कर्ष में पांडे जी आज भी हम सबके ह्र्दय में मार्गदर्शक के रूप में प्रेरणा के सुफल स्त्रोत के रूप में अविरल निरन्तर प्रवाहमयी गतिमान बने हुए है ।

रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि श्री शंकर दत्त पांडे विलक्षण प्रतिभा के धनी साहित्यकार  थे। उनकी रचनाओं को पढ़ने से उनके  संवेदनशील और गहन चिंतक - मस्तिष्क का बोध होता है । उनके गीतों में भारी वेदना है। कवि शंकर दत्त पांडे मूलतः संवेदना के कवि हैं । वह भीतर तक वेदना में डूबे हुए हैं । संसार में कुछ भी उन्हें प्रिय नहीं लगता। यहां तक कि जब मस्त हवा के झोंके उन को स्पर्श करते हैं तब वह उन हवाओं से भी यही कहते हैं कि तुम मेरे साथ मजाक न करो। मैं पहले से ही इस संसार में लुटा - पिटा हूँ। वास्तव में  प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति की नियति यही होती है क्योंकि वह जगत में सब के व्यवहार को बारीकी से परखता है और इस संसार में उसे सर्वत्र झूठ और धोखा नजर आता है। वह दृश्य में छुपे हुए अदृश्य को जब पहचान लेता है तब उसे चिकनी-चुपड़ी बातें लुभा नहीं पातीं। ऐसे में ही कवि शंकर दत्त पांडे का कवि ऐसा मर्मिक गीत लिख पाता है ---

मस्त हवा के झोंके, तू,

मुझ विह्वल से परिहास न कर।

मैं आप लुटा-सा बैठा हूँ

ले जीवन के सौ कटु अनुभव,

यह सोच रहा हूं, मैं क्या हूँ

अपनी भावुकता में बहकर

ओ, मस्त हवा के झोंके, तू,

मुझ विह्वल से परिहास न कर ।।

        एक अन्य गीत में भी वेदना की ही अभिव्यक्ति मार्मिक आकार ग्रहण कर रही है। इसमें विशेषता यह है कि कवि को यह ज्ञात हो चुका है कि संसार निष्ठुर और संवेदना शून्य है । उसके आगे अपना दुखड़ा रोना उचित नहीं है। इसलिए वह विपदाओं में भी मुस्कुराने की बात कर रहा है

  कटुता का अनुभव होने पर,

 अन्तिम सुख-कण भी खोने पर, 

 आघातों से पा तीव्र चोट,

 अन्तर्तम के भी रोने पर,

 विपदाओं के झोकों से

 विचलित तो नहीं हुआ करते।

मन ऐसा नहीं किया करते।

   

 मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा कि शंकर दत्त पांडे जी से मेरा परिचय धर्मवीर साप्ताहिक के स्वामी और सम्पादक देवकी नंदन मिश्रा जी के प्रेस - कार्यालय में हुआ था समय निकल कर पांडेय जी अक्सर वहाँ आया करते थे । वहीं उनसे गप शप होती थी । धर्मवीर में उनकी रचनायें नियमित रूप से निकलती थीं , इस साप्ताहिक को देवकी नंदन जी के बाद अरविंद मिश्र ने चलाया था लेकिन कुछ वर्ष पहले उनका भी निधन हो गया इसलिए धर्मवीर में प्रकाशित पांडे जी की रचनाएँ शायद ही किसी के पास मिलें । पांडे जी साहित्यकार तो थे ही साथ ही एक अच्छे इंसान भी थे उनकी छवि आज भी स्मृति में बसी हुई है ।

     

साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार ने पांडे जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा ----

सीधा सादा सरल सहज व्यक्तित्व

निर्मल और निश्चल अस्तित्व

कोई आडंबर,कोई दिखावा नहीं

जो बाहर,वही भीतर,कोई छलावा नहीं

छोटे बड़े,अपने पराए

सभी के लिए करुणा और प्यार

शुचिता की प्रतिमूर्ति

विनम्र और सौम्य व्यवहार2

   

अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा   श्री पांडे जी  को जितना पढ़ रहें हैं उतनी उनसे निकटता अनुभव हो रही है ।ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक सच्चे और अच्छे व्यक्तित्व के स्वामी थे और भावों का आत्मिक आंदोलन  उनकी उत्कृष्ट और बौद्धिक ज्ञान को भी परिभाषित कर रहा है । भाषा की कुशलता के चितेरे हैं तभी  भावों का गुंथन निरंतरता के साथ अपनी मस्ती में सब कुछ कहने की सामर्थ्य रख रहा है । उनकी रचनाओं में संस्कृत निष्ठ भाषा के साथ उर्दू की  मासूमियत भी है ,बहाव भी है ।आधुनिक काल के प्रगतिवादी  सोच के साथ  रहस्यवाद का भी मिश्रण भी उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है । नीति के साथ मानसिक चैतन्यता  अपना प्रभाव बनाए रखती है । भाषागत सौन्दर्य के साथ जीवन का श्रंगार भी महकता है । सकारात्मकता का बोध कवि के साथ -साथ चलता है जो जन मानस को प्रेरणा देता हुआ चलता है । कुल मिलाकर  कवि श्री शंकर दत्त पांडे जी एक सफल ,सरस  अनुपम बौद्धिक क्षमता के रचनाकार थे । 

     

साहित्यकार हरी प्रकाश शर्मा ने कहा कि सम्मानीय शंकर दत्त पाण्डे जी से मेरे संबंध बहुत आत्मिक थे वो कम बोलते थे लेकिन अंदाज व्यंगात्मक था।राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति की  गोष्ठी में प्रति माह नियमित रूप से उनसे मुलाकात होती थी । उस समय मुझे कविताओं में साक्षात्कार का जनून सवार था।  एक दिन मैंने कवि से साक्षात्कार कविता सुनाई। उसे सुनकर कहने लगे तुम्हारा शब्द चयन अच्छा है ।उनके आशीर्वाद और प्रोत्साहन की ऊर्जा लेकर मैने  कविता से साक्षात्कार कविता लिखी जिसे सुनकर वह बहुत खुश हुए । उस समय मैं पापी के नाम से कविता लिखता था ।  दिल के बेहद साफ और अपनी बात को स्पष्टता से कहने की आदत थी। मै उनकी केवल उन्ही कविताओं से लाभान्वित हो पाया जो गोष्ठी मैं वो सुनाते थे। अंत में यही कहना चाहूंगा मृदुभाषी,,और खुशनुमा व्यक्तित्व था उनका,,,

   

 वरिष्ठ साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि  हमेशा उल्लास से भरे पांडेय जी के चेहरे पर मुस्कराहट सजी रहती। हँसी मज़ाक में मशगूल रहने वाले पाण्डे जी जितने उपर से प्रफुल्लित लगते उतने अंदर से गंभीर भी थे इसका प्रमाण उनकी साहित्यिक रचनाएँ देती हैं। वाम चेतना से लैस पाण्डे जी ने हालाँकि प्रकृति और प्रेम पर भी साहित्य रचना की है पर उनमें भी उनकी वाम चेतना की झलक दिखलाई देती है। अत्यंत सादगी पसंद पांडे जी वैचारिक रूप से अत्यंत समृद्ध थे। जीवन, समाज और दुनिया के बारे में उनकी समझ मार्क्स वादी थी। यह मै उनके साथ वार्ता लाप के आधार पर कह रहा हूँ। एक बार मेरी उनसे करीब तीन घंटे इसी विषय पर चर्चा हुई थी। अंत में मैं यह बात करके अपनी बात समाप्त करता हूँ कि मुरादाबाद के साहित्यिक समाज ने उन्हे वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे वास्तव में हकदार रहे। आत्म प्रचार, आत्म प्रशंसा के बजाय उन्होंने आत्म स्वाभिमान को तरजीह दी और गंभीर साहित्य लेखन में रत रहे। पाण्डे जी सरीखे साहित्यकारों का जीवन और साहित्य लेखन ही वास्तव में अनुकरणीय और प्रेरणा स्रोत होता है। 

     

रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि   साहित्य साधक स्मृतिशेष पंडित शंकरदत्त पांडे जी के साहित्य सृजन में हमें शृंगार के दोनों पक्षों का बड़ा सुंदर चित्रण देखने को मिलता है। उनके साहित्य सृजन में चिंतन की अथाह गहराई देखने को मिलती है जो नए रचनाकारों के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह है।उनके सृजन में कोई बनावट या कृत्रिमता नहीं है।अपने दिल की सीधी और सच्ची आवाज़ को ही उन्होंने रचनाओं में अभिव्यक्ति दी है।

         

 साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा साहित्यजगत के अजेय योद्धा थे स्मृति शेष शंकरदत्त पांडे। आपका मोहक काव्य आज भी अपना जादू बिखेरता प्रतीत होता है। आप मुरादाबाद की लगभग सभी साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे जिनमें विशेष रुप से राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति रही । स्मृति शेष कवियों, लेखकों, साहित्यकारों कि यह श्रृंखला चलाए रखने के लिए डॉक्टर मनोज रस्तोगी का नाम हिंदी साहित्य में सदा सर्वदा सम्मान पूर्वक लिया जाता रहेगा । उनकी तपस्या साधना का ही परिणाम है कि साहित्य जगत में न जाने कितने ही व्यक्तित्व जो बिना प्रसिद्धि पाये संसार से चले गये उनके चर्चे  आज अनेक देशों तक ,साहित्यिक मुरादाबाद, संजीवनी के माध्यम से छाये हुए हैं। 

   

युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने कहा कि पटल पर उनके इन बारह गीतों के संवेदना-तल का स्पर्श करते हुए मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि वेदना को समेटे होने पर भी उनके गीत मानव के अंतस से नकारात्मकता को परे धकेलने का सफ़ल उपक्रम करती है। भले ही इन गीतों में वेदना का पुट स्पष्ट दिखाई देता हो परंतु ये गीत विश्राम लेते-लेते उस वेदना से सफल द्वंद्व करते हुए अंतस में उल्लास भी भर जाते हैं। पिंजरे में कैद दुःखी परिंदे में उड़ निकलने की आशा, जीवन के उतार चढ़ाव की अभिव्यक्ति, मिलन की मधुर गंध, विहग को बिम्ब के रूप में  लेकर सृजन की प्रेरणा, निराशा से संघर्ष करने की इच्छा शक्ति इत्यादि सभी परिदृश्यों से यह बात स्पष्ट हो जाती है। और भी स्पष्ट शब्दों में कहूँ तो यही कहूंगा कि स्मृति-शेष शंकर दत्त जी एक ऐसे विलक्षण रचनाकार के रूप में हमारे सम्मुख आते हैं जिनका रचनाकर्म 'मैं'  से अधिक 'हम' पर केन्द्रित रहा। उनके भीतर का रचनाकार भले ही अपनी बात अपनी वेदना से आरंभ करता हो परन्तु रचना के विश्राम पर आते-आते वह सकल समाज के लिये प्रेरक बन जाता है। उनकी यही विशेषता उन्हें 'मैं/मेरा' पर ही केन्द्रित रहने वाले असंख्य रचनाकारों से अलग, एक अति-विशिष्ट श्रेणी में ले जाती है। आज हम नई पीढ़ी को भी इस आयोजन के माध्यम से उनकी महान रचनाधर्मिता से परिचित होने का अवसर मिला है, जिसके लिए पटल प्रशासन निश्चित ही बारम्बार साधुवाद का पात्र है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उनका यह महान रचनाकर्म निश्चित रूप से वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों को निरंतर अच्छा पढ़ने, सुनने एवं लिखने के लिए प्रेरित करता रहेगा। 

   

 साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि चर्चित साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि  कीर्ति शेष शंकर दत्त पांडे जी ने विविध विधाओं में विपुल साहित्य रचा और गुणवत्ता युक्त रचा।भिन्न भाषाओं, विषयों और विधाओं पर उनका अधिकार पढ़कर,जानकर गर्व मिश्रित विस्मय होता है।उनके द्वारा रचा गया साहित्य सबका सब उपलब्ध नहीं है यह हमारी हानि है।इस विपुल साहित्य रचना के बाद भी हम उनकी मुक्त छंद रचनाओं में बहुत कुछ अभिव्यक्ति से अब भी शेष रह जाने की तड़प देखते हैं। बाल-साहित्य पर उनका एक ही संकलन बारह राजकुमारियाँ हमें पटल पर उपलब्ध हुआ।परन्तु ये कहानियाँ उनकी मौलिक बाल कहानियाँ न होकर यूरोपीय देशों में प्रचलित लोकथाओं व परीकथाओं की अनुवाद हैं।इससे उनका भाषाओं पर अधिकार के साथ साथ उनके सहज अनुवादक होने के गुण का भी पता चलता है।पाश्चात्य कहानियों के ये हिन्दी अनुवाद इतने स्वाभाविक और लययुक्त हैं कि इन्हें पढ़कर आप को इनके अनुदित होने का अंदाजा ही नहीं होता। ये कहानियाँ कल्पनाओं का विस्तृत संसार खोलती हैं।संंदेशप्रद नैतिक कहानियों के मुकाबले बालमन को काल्पनिक और मनोरंजक कहानियाँ अधिक लुभाती हैं और उन्हें खुद से सही राह चुनने के लिए प्रेरित करती हैं। अतः इन कहानियों को अनुवाद और प्रकाशन हेतु चयन करना श्री पाण्डे जी की बाल मनोवैज्ञानिक अभिरूचि का परिचय देता है।

 

कवयित्री  मोनिका शर्मा मासूम ने कहा कि कीर्ति शेष श्री शंकर दत्त पांडे जीका लेखन साहित्य का अथाह सागर है जिसके अंदर की गहराई को सिर्फ सतह पर बैठकर पानी छूने से नहीं लगाया जा सकता। पटल पर प्रस्तुत उनकी रचनाओं का आस्वादन एक बार नहीं अपितु बार-बार करने का जी करता है और हर बार ही पढ़कर कल्पनाओं को एक नया आसमान मिल जाता है। 

   

कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि स्मृतिशेष  शंकर दत्त पांडे जी का व्यक्तित्व व कृतित्व सदैव नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करता रहेगा ।ऐसे प्रतिभाशाली मधुर भाषी ,गम्भीर किंतु हसमुख व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार स्मृतिशेष श्री पांडे जी  की कृतियां पाठक के मन पर अमिट छाप छोड़े बिना नही रहती । उनकी बाल कहानियां  शिक्षाप्रद होती थी ।उन्होंने अपने साहित्य में समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रतिविम्बित करने की चेष्टा की है ।

     

गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि उनके सभी गीत संवेदनाओं को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त जीवनी पढ़ने से ज्ञात हुआ कि इनकी प्रकाशित रचनाओं में बाल साहित्य, काव्य,कहानी उपन्यास नाटक संस्मरण आदि की प्रमुख विधाएं रहीं। आदरणीय पाण्डे जी सरल, सज्जन संतोषी भाव के व्यक्ति थे। उनमें छोटे बच्चों का भविष्य संवारने की बहुत ही ललक थी।

   

युवा साहित्यकार दुष्यन्त बाबा ने कहा कि स्मृतिशेष श्री शंकर दत्त पांडे जी के बारे में इतनी व्यापक जानकारी प्राप्त कर बहुत ही सुखद महसूस कर रहा हूँ।  आदरणीय डॉ मनोज रस्तोगी जी का आभार जो इतनी मेहनत के बाद हमें एक से एक महान व्यक्तित्व से परिचय कराते हैं।

 

स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे की सुपौत्री गरिमा पांडे ने कहा कि  हमारे जीवन में कुछ लोग ऐसे होते है जिनसे हम बहुत प्रभावित होते है जिनके बारे में हम सुनकर या  सोचकर अपनाे को बहुत गौरवान्वित महसूस करते है उनमें से एक मेरे दादा जी है । दादा जी सदैव अनाुशासित और स्वाभिमानी पुरुष थे। उनको लिखने का बहुत शौक था। देर रात तक वह लिखते रहते थे ।उनको कवि सम्मेलन में जाना बहुत ही प्रिय था। कभी कभी तो वो मुझे भी साथ ले जाया करते थे।  आज दादा जी की रचनाये ऐसे देखकर पढ़कर बड़ा गौरवान्वित महसूस हो रहा है। 

स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे जी की सुपौत्री हर्षिता पांडे ने कहा कि मैं आप सब का बहुत बहुत आभार प्रकट करती हूं  कि आपने मेरे दादा जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया और उनकी कविता, कहानी, उपन्यास ,नाटक आदि जो भी मेरे दादा जी ने लिखी हैं उजागर कीं। उनको पढ़ कर मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा है की काश मैं भी अपने दादा जी से मिल पाती उनको देख पाती और मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता । आज अब जब मुझे उनके  बारे मे इतना कुछ जानने को मिला है तो मैं अपने आप को भाग्यशाली महसूस कर रही हूं कि मैं उनकी सुपौत्री हूं | आप हमारे बीच नहीं है, लेकिन आप हमेशा हमारी यादों में रहेंगे, दादाजी  आपकी पुण्यतिथि पर हमारा सादर नमन ।

     

स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे जी के सुपौत्र विनीत पांडे ने कहा सबसे पहले मैं और मेरा पूरा परिवार आप सभी लोगो का दिल से धन्यवाद करता है कि आपने उन्हें याद किया और हमें ये महसूस कराया कि वो कहीं गए नहीं है बल्कि  अपनी उन सभी कविताओं,कहानियों,काव्य और जो कुछ उन्होंने लिखा अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में के रूप में आज भी हमारे बीच जीवित है । 


स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे जी की धेवती प्रतिभा पांडे ने कहा कि नानाजी एक सरल, सज्जन, संतोषी, खुशमिजाज व्यक्ति थे।लेखन का शौक उन्हें बचपन से ही था। कम उम्र में ही उन्होंने लिखना आरंभ कर दिया था। मेरा उनसे बचपन से ही बहुत लगाव रहा है।

     

श्री पांडे जी के धेवते सौरभ उप्रेती ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आप सभी लोगो को , मैं और मेरा परिवार धन्यवाद देना चाहता है।  पिछले दो दिन से मेरे परिवार में एक ऊर्जा सी आ गयी है।  मुझे याद है वो  बधाई-पत्र,  जो मेरे नाना जी ने मेरे पापा को मेरे जन्म के समय दिया था।  साहित्यकार होने के कारण , उन्होने पत्र को यह पंक्ति लिखकर पूरा किया " आपने सौरभ का क्या नाम रखा " कहीं न कहीं उन्होंने अपनी बात भी कह दी और मेरा नामकरण भी कर दिया। आज उनके जाने के इतने साल बाद , आप लोगो ने उनको याद करने की पहल की, इसके लिए मैं और मेरा परिवार आपका तहे दिल से धन्यवाद करता है। 


:::::::::प्रस्तुति::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822



मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष प्रो.महेन्द्र प्रताप का गीत - राष्ट्रनायक नेहरू के निधन पर ....यह गीत प्रकाशित हुआ है केजीके महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका 1964-65 में ।





 

 

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से 14 नवम्बर 2021 को किया गया काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति की ओर से मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन रविवार 14 नवम्बर 2021 को विश्नोई धर्मशाला लाइनपार में किया गया। 

राजीव प्रखर  द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई ने कहा --

 सारे संसार में खोजना व्यर्थ है। 

 बैठ जाओ कहीं भी गगन के तले।।

      मुख्य अतिथि ओंकार सिंह ओंकार की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी - 

 रात अंधेरी में से ही तो, भोर नई फूटेगी।

 घोर निराशा में से आशा, जीवन में उतरेगी।।

      विशिष्ट अतिथि के रूप में रघुराज सिंह निश्चल ने कहा - 

      खूब जलाये दीपक तुमने, 

      मिटा नहीं मन का अँधियारा। 

      हृदयों में जब भरी कलुषता, 

      फिर कैसे होता उजियारा।।

      कार्यक्रम का संचालन करते हुए रामसिंह निशंक ने कहा ---

      सारे जग में सबसे सुंदर, 

      लगती हमें धरा अपनी। 

      सबसे बढ़कर न्यारी-प्यारी, 

      लगती हमें धरा अपनी।।

      केपी सिंह सरल ने आह्वान  किया - 

      अमन चाहते हो, बाबा को फिर गद्दी पर आने दो।।

      रामेश्वर वशिष्ठ की अभिव्यक्ति इस प्रकार थी -  द्वार द्वार पर नई चेतना जागे।

मिटे अंधकार नई चेतना जागे। 

     राजीव प्रखर ने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा - 

दिलों से दूरियाँ तज कर, नये पथ पर बढ़ें मित्रों।

 नया भारत बनाने को, नई गाथा गढ़ें मित्रों।

 खड़े हैं संकटों के जो बहुत से आज भी दानव, 

सजाकर शृंखला सुदृढ़, चलो उनसे लड़ें मित्रों।                        

     प्रशांत मिश्र की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - जब स्कूल की गोल कराई याद आती है,

  थियेटर में बैठे मैथ की पढ़ाई याद आती है।। 

      संजय विश्नोई ने कुछ इस प्रकार कहा-

       असत्य पर सत्य की जीत की एक सुनहरी सुबह नयी। 

       कितने युग बीत गये, प्रभु श्रीराम आज भी कालजयी।।

       योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई ने आभार-अभिव्यक्त किया ।








:::::::::प्रस्तुति::::::::

 राजीव 'प्रखर'

डिप्टी गंज, मुरादाबाद , उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 8941912642 , 9368011960 

शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे के बारह गीत ।ये सभी गीत साहित्य कला मंच, चांदपुर, बिजनौर द्वारा वर्ष 1995 में डॉ महेश दिवाकर के सम्पादन में प्रकाशित साझा काव्य संग्रह 'काव्य-धारा' से लिये गए हैं

(1)

मुक्त विहग फिर तरु शाखा पर, तिनकों से नव-नीड़ बनाते। 

जो पर थे पिंजरे में सीमित, 

रक्त-बिन्दुओं से थे रज्जित,

पाकर आज गगन वह विस्तृत, अनायास ही हिल-डुल जाते। 

मुक्त विहग फिर तरु-शाखा पर, तिनकों से नव-नीड़ बनाते।। 

ऊँचे उड़ जाने की आशा, 

मन में सतरंगी अभिलाषा, 

आज़ादी की बन परिभाषा, मधुबन में रह-रह मदमाते । 

मुक्त विहग फिर तरु-शाखा पर, तिनकों से नव-नीड़ बनाते ।। 

उर में ले आह्वाद परिन्दे,

मस्ती में हैं शाद परिन्दे, 

आज बने आज़ाद परिन्दे, देखो आज़ादी अपनाते । मुक्त विहग फिर तरु-शाखा पर, तिनकों से नव-नीड़ बनाते ।। 


(2)


जीवन का पथ सुरभित भी है, काँटे भी चुभते पग-पग पर। 

उल्लास भरी, उन्मत्त घड़ी, 

विह्वलता की वह अश्रु लड़ी, 

दोनों जीवन की चिर-संगी, 

जब देखो दोनो पास खड़ीं। 

पल भर हँसते ही रो पड़ता, निज व्याकुलता में सुधि खोकर । 

जीवन का पथ सुरभित भी है, काँटे भी चुभते पग-पग पर ।। 

बहुधा मीठे हों जीवन-क्षण, 

बहुधा तीखे हों जीवन-क्षण, 

विषमय जीवन की यह हाला, 

हम पीते रहते हैं क्षण-क्षण

मुझ जीवन-पथ के राही को करते निराश उत्साहित कर।

जीवन का पथ सुरभित भी है, काँटे भी चुभते पग-पग पर ।। 

मीठी मादक-सी यह हाला, 

विष का भी यह कड़वा प्याला, 

शीतलता की ही जीवन में, 

धू-धू भी करती है ज्वाला, 

सुख की स्वर्णिम बदली आती, घिरते दुख के घन मंडरा कर। 

जीवन का पथ सुरभित भी है, काँटे भी चुभते पग-पग पर ।। 


(3)

जब से तुम जीवन में आई। 

तब से स्वर्णिम बदली बनकर, तुम जीवन-अम्बर में छाईं ।। 

रंजित हो आते जीवन-क्षण, 

औ कर जाते मधुमय जीवन, 

आह्लाद भरा रहता प्रतिपल, 

अलसाया तन और विकसित मन, 

वैदेही छवियाँ मुस्काई, जब से तुम जीवन में आईं। तब से स्वर्णिम बदली बनकर, तुम जीवन-अम्बर में छाईं ।। 

जीवन में परिवर्तन आया, 

जीवन-सरिता की गति बदली,

जीवन का कण-कण मुस्काया, 

मन में आशा की खिली कली 

जिस क्षण तुमने ली अँगड़ाई, जब से तुम जीवन में आईं। 

तब से स्वर्णिम बदली बनकर, तुम जीवन-अम्बर में छाई ।। 

तुम हो जैसे आकाश-कुसुम, 

मैं इस धरती का तृण लघुतम, 

तुमको पा ऐसा मदमाया, 

खैयाम करे ज्यों खाली खुम, 

तब सुरभित सुधियाँ पुलकाई, जब से तुम जीवन में आईं। 

तब से स्वर्णिम बदली बनकर, तुम जीवन-अम्बर में छाई ।।


(4)

शत्-शत् निश्वासें रोक रहा, कोई अधरों के सम्पुट में। 

अलकें मुख पर छितराई-सी, 

आँखें कुछ-कुछ अकुलाई-सी, 

पुतली में प्रतिबिम्बित होती, 

कोई अनुपम परछाई-सी, 

मन की गति बढ़ती जाती है, फिर आज किसी की आहट में। 

शत्-शत् निश्वासें रोक रहा, कोई अधरों के सम्पुट में ।। 

मुख पर है पीत मलिन छाया, 

फिर शिथिल हुई जाती काया, 

अन्तर्जग में हलचल-सी है, 

यह सहसा कौन निकट आया, 

यह किसके लोचन भीग रहे, मृदु केश-राशि के झुरमुट में। 

शत्-शत् निश्वासें रोक रहा, कोई अधरों के सम्पुट में ।। 

है अर्द्ध-निशा और चन्द्र उदित, 

डाली पर हो पल्लव विचलित, 

क्यों कम्पित करते मौन दिशा, 

जब चलती पुरवइया किञ्चित, 

होते हैं घाव हरे उर के, नित रंगे वेदना के पुट में। शत्-शत् निश्वासें रोक रहा, कोई अधरों के सम्पुट में।। 


(5)


विहग फिर गीतों के उड़ चले। 

लगाकर अरमानों को गले ।।


लचीली शाख़ वो चिकने पात, 

नीड़ के तिनकों की क्या बात, 

उड़ा फिरता है झंझावात,

विपद क्षण टाले नहीं रहे। 

विहग फिर गीतों के उड़ चले। 


भुलाकर मधुवन का आहलाद, 

लिये कटु अनुभव का अवसाद, 

सँजोये उर में बिसरी याद, 

कहाँ वह जोश और बलवते।

विहग फिर गीतों के उड़ चले। 


उमंगों में ऊदापन कहाँ ? 

बुझी-सी जीवन की ले शमां।

 दूर तक उड़े गगन में जहाँ, 

थके फिर आये तरु के तले। 

विहग फिर गीतों के उड़ चले। 


डाल पर कहीं किया विश्राम, 

उड़े फिर पहरों ये अविराम, 

सुबह हैं कहीं, कहीं हैं शाम, 

कहाँ पहुँचेंगे ये दिन ढले। 

विहग फिर गीतों के उड़ चले।। 


वेदना से निखरा अनुराग, 

हृदय में दबी-दबी-सी आग, 

विहंगम वाणी का मृदु राग, 

नित्य ही अन्तर्तम में पले 

विहग फिर गीतों के उड़ चले।


(6)

मृदुल भावों के राजकुमार, 

तुम्हीं से है मधुमय संसार । 


तुम्ही सूने जीवन में रंग 

लगा, भर देते सरस उमंग, 

सिहर उठते हैं जिससे अंग 


औ, होते झंकृत उर के तार। 

मृदुल भावों के राजकुमार, 

तुम्हीं से है भावुक संसार ।। 


प्रणय में पतझर ही मधुमास, 

प्रणय आता है किसको रास, 

आँसुओं में बह जाता हास, 


तुम्हीं ने पाया इसका सार । 

मृदुल भावों के राजकुमार, 

तुम्हीं से है मधुमय संसार।। 


द्रवित कर अपनी अन्तर पीर, 

बहाता है नित निर्झर नीर, 

कि कवि आ जाता उसके तीर, 


छलक पड़ता फेनिल उद्गार 

मृदुल भावों के राजकुमार, 

तुम्हीं से है मधुमय संसार ।। 


कल्पना के पंखों को खोल, 

कल्पना के पंखों पर डोल, 

कल्पना के पंखों को तोल, 


देखता नित जग की दृग-धार। 

मृदुल भावों के राजकुमार, 

तुम्हीं से है भावुक संसार ।।


(7)

कटुता का अनुभव होने पर, 

अन्तिम सुख-कण भी खोने पर, 

आघातों से पा तीव्र चोट, 

अन्तर्तम के भी रोने पर, 


विपदाओं के झोकों से 

विचलित तो नहीं हुआ करते। 

मन ऐसा नहीं किया करते। 


उर पर जो कुछ आ पड़ता है, 

उसको सहना ही पड़ता है, 

यह विश्व यहाँ तो जीवन में, 

पल-पल पर ही विह्वलता है, 


पर विह्वलता की बात नहीं, 

होठों पर यूँ लाया करते। 

मन ऐसा नहीं किया करते। 


अन्तर में ज्वाल जली है तो, 

तुम इस ज्वाला को जलने दो, 

अन्तर्ज्वाला में पिघल-पिघल 

नूतन भावों को ढलने दो, 


नूतनता ही तो जीवन है, 

इससे तो नहीं बचा करते। 

मन ऐसा नहीं किया करते। 


दुख में जिनके आयें आँसू, 

जो रह-रह भर लायें आँसू, 

मानस में अन्धड़ चलने पर, 

जो निज दृग में पायें आँसू


उनके आँसू पोंछा करते। 

उनके आँसू को लख अपने 

लोचन में अश्रु नहीं भरते। 

मन ऐसा नहीं किया करते ।। 


(8)

इक पुरानी बात, नूतन दर्द ले फिर याद आती। 

मधु अमाँ वह दिन सुहाने, 

प्रीत के मधुमय तराने, 

सामना कब हो किसी से, 

अब मिलन की कौन-जाने, 

है न यह संध्या सुहानी, अब मुझे पल भर सुहाती। इक पुरानी बात, नूतन दर्द ले फिर याद आती ।। 

क्या हुए वह क्षण रंगीले, 

जब कि दो लोचन रसीले, 

दे रहे थे चुप निमंत्रण 

तृषित उर दो घूंट पी ले, 

फिर हृदय-पट पर किसी की, है उभर तस्वीर आती। इक पुरानी बात, नूतन दर्द ले फिर याद आती ।। 

दो घड़ी की यह कहानी, 

हो न पायेगी पुरानी, 

जग भुलाना चाहता, 

पर यह सदा है याद आनी, 

रागिनी फिर वेदना की, हाय ! उर में गूंज जाती। 

इक पुरानी बात, नूतन दर्द ले फिर याद आती ।।


(9)

ओ, मस्त हवा के झोंके, तू, 

मुझ विह्वल से परिहास न कर। 


मैं आप लुटा-सा बैठा हूँ 

ले जीवन के सौ कटु अनुभव, 

यह सोच रहा हूं, मैं क्या हूँ 


अपनी भावुकता में बहकर 

ओ, मस्त हवा के झोंके, तू,

 मुझ विह्वल से परिहास न कर ।। 


काफूर हुआ मेरा मधु सुख, 

दृग में आँसू बन तैर रहा - 

मेरे इस अन्तर्तम का दुख 


जो जाता इक बदली-सा झर। 

ओ, मस्त हवा के झोके, तू, 

मुझ विह्वल से परिहास न कर।। 


सोया-सा है यह मेरा मन, 

भूला मैं सारे राग-रंग 

है आज शिथिल मेरा जीवन - 


ले अभिलाषाओं का पतझर । 

ओ, मस्त हवा के झोंके, तू, 

मुझ विह्वल से परिहास न कर।।


 तू विरह-मिलन को क्या जाने, 

क्या जाने क्यों जग बहक रहा 

तू प्रणय-मिलन को क्या जाने 


है जिसमें जाता हृदय निखर । 

ओ, मस्त हवा के झोंके, तू,

 मुझ विह्वल से परिहास न कर।।


(10)

नीरव रातों में मैं पहरों, निज मन को बहलाता रहता। 

नैनों में खारा नीर भरे, 

नस-नस में मीठी पीर भरे, 

यह घाव नमक लेकर मैंने 

अपने हाथों ही चीर भरे, 

हा! मुझसे कितनी भूल हुई, भूलों पर पछताता रहता। 

नीरव रातों में मैं पहरों, निज मन को बहलाता रहता ।। 

मम आशा के उजड़े खण्डहर, 

दृग नित बरसा करते जिन पर, 

इस करुण दृश्य से हो व्याकुल, 

यह मग्न हृदय आता भर-भर, 

हाँ! साथ ओस के मैं रजकण, आँखों से दुलकाता रहता। 

नीरव रातों में मैं पहरों, निज मन को बहलाता रहता ।। 

जब जग के खुलते मदिरालय, 

मतवाले हो मदिरा में लय, 

जीवन में लाते रंगीनी, 

तब मैं करता जग में अभिनय, 

रोना आने पर रजनी में, रह-रहकर मुस्काता रहता। नीरव रातों में मैं, पहरों, निज मन को बहलाता रहता ।।


(11)

मानव जीवन का विश्लेषण, 

सुख-दुख की करुण कहानी है। 


हैं याद मुझे वह भी घड़ियाँ, 

जब मैं अधरों पर हास लिये, 

फिरता था मधुबन में पहरों, 

भोले मुख पर उल्लास लिये, 


फिर शनैः शनैः बालापन से, 

यौवन की सीमा में आया, 

फिर शैनः शनैः मैंने अपने, 

जीवन को कुछ से कुछ पाया, 


फिर प्रेम-सरोवर के तट पर, 

मैं प्रेम-सलिल की प्यास लिये, 

सौ बार थका-माँदा आया, 

इक प्रेम-मिलन की आस लिये, 


अब धुँधला-धुँधला एक चित्र, 

है इस मानस-पट पर अंकित, 

मैं हाय, यही बस इक पूँजी, 

कर पाया जीवन में संचित। 


मत पूछो खाक कहाँ मैंने किस-किस मरुथल की छानी है। 

मानव-जीवन का विश्लेषण, सुख-दुख की करुण कहानी है।।


(12)

कवि ने कविता सुकुमारी के आँचल से आँसू पोंछ लिये।

 जब सह न सका जग की कटुता,

  जब व्याकुल करके आकुलता, 

अपनी सीमा से आगे बढ़ 

कवि-उर को छोड़ गई जलता, 

कवि ने कविता सुकुमारी के आँचल से आँसू पोंछ लिये । 


मानव का उत्पीड़न क्रन्दन, 

अबलाओं का वह मूक रुदन, 

जब आतुर करके छोड़ गया, 

भावुकता में अधझुल-सा मन, 

कवि ने कविता सुकुमारी के आँचल से आँसू पोंछ लिये । 


जब दग्ध हृदय वाला कोई, 

लब पर लाता प्याला कोई, 

पर सहसा जब वह टूट गिरा, 

और पी न सका हाला कोई, 

कवि ने कविता सुकुमारी के आँचल से आँसू पोंछ लिये।

✍️ शंकर दत्त पांडे

:::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल  स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822


गुरुवार, 11 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे का बाल कहानी संग्रह - बारह राजकुमारियां। इस संग्रह में उनकी छह बाल कहानियां हैं। इस कृति का प्रकाशन वर्ष 1962 में हिंदिया प्रकाशन चांदनी चौक दिल्ली से हुआ था ।


 क्लिक कीजिए और पढ़िए पूरी कृति

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https://documentcloud.adobe.com/link/review?uri=urn:aaid:scds:US:5ad4d3f5-de2e-427d-a4e0-bb0749e2ca9d 

:::::::प्रस्तुति::::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे का अप्रकाशित कविता संग्रह - रेत पर जमती नहीं भीत । इस संग्रह में उनकी चालीस मुक्त छंद कविताएं उन्हीं की हस्तलिपि में हैं । भूमिका लिखी है पुष्पेंद्र वर्णवाल ने । यह दुर्लभ कृति हमें डॉ प्रेमवती उपाध्याय से प्राप्त हुई है ।


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डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

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