मुरादाबाद के प्रख्यात साहित्यकार स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे की पुण्यतिथि पर उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर 'साहित्यिक मुरादाबाद' की ओर से दो दिवसीय ऑन लाइन आयोजन 12 एवं 13 नवम्बर 2021 को किया गया। चर्चा में शामिल साहित्यकारों ने कहा कि शंकर दत्त पांडे के गीत रागात्मकता और संवेदना से ओतप्रोत हैं ।
मुरादाबाद के साहित्यिक आलोक स्तम्भ के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार डॉ मनोज रस्तोगी ने कहा दस जनवरी सन 1925 को मुरादाबाद के मुहल्ला लोहागढ़ में जन्में शंकर दत्त पांडे ने हिन्दी, अंग्रेजी और उर्दू तीनों भाषाओं में विपुल साहित्य की रचना की । आपकी कृतियों में काव्य संग्रह झलक, बाल कहानी संग्रह, लाल फूलों का देश, बारह राजकुमारियाँ, पीला देव, जादू की अंगूठी, रोम का शिशु नरेश, जादू का किला, शेष पथ कैसे कटेगा, स्वप्न जो तुमने दिया, मधु ऋतु चली गयी, कामना के उपवनों में वर्तिका, अमृता, महावर कौन, स्वप्न और स्मृति, उपेक्षा के अक्षत, व्यथा उर्मियों की, संवेदना के दर्द,सौन्दर्य का आचमन , रेत पर जमती नहीं भीत, थाने के बादामी रजिस्टर, बहारों का पतझड़, स्मृतियों के पराग, सुहागिन विधवा, साधना का दीप, पिंजड़ा, हमराही तथा न्याय की प्रतीक्षा, विष के घूंट, पूरन की चौपाल, रेत पर लिखे कथानक, फूल की विस्तृत गंध तथा मैं तुम्हारे साथ, यादों के मजार व चंद धुंधली तस्वीरें उल्लेखनीय हैं। आपका निधन 12 नवम्बर 2004 को हुआ। महाराजा हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ विश्व अवतार जैमिनी ने कहा कि सरलता, सहजता, सौम्यता, सादगी और विद्वता की प्रतिमूर्ति स्व. शंकर दत्त पांडे जी ने न केवल मुरादाबाद में मांटेसरी शिक्षा पद्धति की अलख जगाई वरन् अपने उत्कृष्ट रचना कर्म से हिंदी साहित्य, विशेषकर बाल साहित्य में उल्लेखनीय योगदान भी दिया । उनका संपूर्ण बाल साहित्य बाल मनोविज्ञान पर आधारित रहा। उनके गीतों में रागात्मकता के दर्शन होते हैं साथ ही छायावाद का स्पष्ट प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। गहन संवेदना से ओतप्रोत उनके गीत पाठकों के मन पर अमिट छाप छोड़ने में सफल रहे हैं।हिन्दू कॉलेज मुरादाबाद के पूर्व प्राचार्य डॉ रामानन्द शर्मा ने कहा कि अंग्रेजी, उर्दू और हिन्दी में समान लेखनी चलाने वाले श्री शंकर दत्त पांडे भाव और भाषा के सुन्दर शिल्पी हैं। प्रकृति के प्रति वे नितान्त अनुराग रखते हैं और यही उनकी कविता की प्रमुख भूमि है। आकुल अन्तर और नीतियुक्त उद्बोधन भी उनकी काव्य-रचना के मनोरम सोपान हैं। प्रकृति के मनोरम चित्रों से उनके गीत परिपूर्ण हैं। इनमें कवि की तन्मयता एवं तल्लीनता तो देखते ही बनती है लेकिन सूक्ष्म पर्यवेक्षण एवं चिन्तनशीलता भी उपेक्ष्य नहीं रहे हैं। एक गीत का छोटा-सा अंश प्रस्तुत है जो न केवल गीत का अंश है, बल्कि स्वयं में पूर्ण चित्र भी है :
है नील गगन में चाँद उदित,
है तारागण का हृदय मुदित,
नभ-कुसुमों का यह मृदु कम्पन
मानों रह-रह होते विकसित ।
इक शान्त झील में देख रहा,
यह छटा मनोरम प्रतिबिंबित,
यह अन्तर्तम सहसा होता
अनुपम भावों में अभिप्रेरित ॥
अभिव्यक्तिविधान की दृष्टि से वे नैसर्गिक भाषा के समर्थक है और बोझिल, परिन्दे जैसे प्रचलित अरबी-फारसी के शब्दों का प्रयोग भी न्याय्य समझते हैं। भाषा को सायास संस्कृतनिष्ठ बनाना उन्हें उपयुक्त नहीं लगता। अलंकारों का स्वल्प प्रयोग ही वे काव्य में करते हैं किन्तु उनका अलंकृत प्रयोग काव्योक्ति को रमणीयता अवश्य देता है। छन्द की दृष्टि से उन्होंने नवीन प्रयोग भी किये हैं तथा कविता और गीत के मध्य संवाद-सेतु बनाने का प्रयास किया है।
दयानन्द आर्य कन्या महाविद्यालय की पूर्व प्राचार्या डॉ स्वीटी तलवाड़ ने कहा कि स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे का परिचय व उन के साहित्य की विस्तृत जानकारी पटल के माध्यम से प्राप्त कर वास्तव में अभीभूत हूँ। उनकी मुक्त छंद कविताएं अत्यंत उत्कृष्ट भावनायें समेटे हुए हैं । उनकी कविताओं में भाव, भाषा, विषय, अभिव्यक्ति,सब अद्वितीय है।वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई ने कहा कि स्मृति शेष शंकर दत्त पांडेय बहुआयामी सर्जक थे। पाण्डे जी मैडम मारिया मांटेसरी जी के शिष्य थे यही कारण था कि उन्होंने मांटेसरी शिक्षा पद्धति को बच्चों को पढ़ाने में प्रयोग किया जो सफल रहा। पाण्डे जी बाल नाटक के द्वारा भी बच्चों को शिक्षा देते थे। उन्होंने कई संस्मरण भी प्रस्तुत किये।मथुरा के प्रभारी सहायक निदेशक (बचत) राजीव सक्सेना ने कहा कि पांडे जी ने न केवल अपने समय के यथार्थ को शब्दों के माध्यम से जीया था बल्कि इसको उद्घाटित करने के क्रम में एक विराट रचना संसार की सृष्टि भी की थी। पांडे जी के लेखन के विविध आयाम थे। वे समकालीन साहित्य के एक बड़े हस्ताक्षर थे। एक कुशल चितेरे की भाँति उन्होंने एक बड़े कैनवस पर जीवन के लगभग सभी विम्ब उकेरे हैं और स्पेक्ट्रम के सभी रंग उनके सृजन में पूरी भव्यता के साथ उपस्थित हैं। उनके काव्य में छायावादी प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। उनकी रचनाओं में एक व्यापक दृष्टि और युगबोध के भी दर्शन होते हैं। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ अजय अनुपम ने कहा कि स्वर्गीय पंडित शंकर दत्त पांडे जी मेरे वरिष्ठ मित्रों में एक थे। मुरादाबाद में पांडे जी और स्वर्गीय सर्वेश्वर सरन सर्वे दो ही व्यक्ति थे जो मैडम मारिया मान्टेसरी जी के शिष्य थे। वर्तमान साहू रमेश कुमार गर्ल्स इन्टर कालेज की स्थापना मान्टेसरी शिक्षापद्धति से, खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने के लिए ही की गई थी। पांडे जी कहानी भी लिखते थे। मेरा पांडे जी से नित्य का मिलना रहता था। यदि रोज़ न मिले तो रविवार तो निश्चित था ही। एक दूसरे के घर जाये बिना मन में उलझन सी बनी रहती थी। पांडे जी घुमक्कड़ वृत्ति के व्यक्ति थे। उन्हें यह पसन्द नहीं था कि कोई मन में दुराव रखकर बात करे। मुरादाबाद में लोहागढ़ नामक मुहल्ले में उनका घर था। पांडे जी ने श्री राजनारायण जी द्वारा प्रकाशित की जाने वाली प्रदेश पत्रिका के अंकों में से कुछ रचनाएं छांटकर 1962 से 1976 तक के अंकों का एक कलेक्शन भी तैयार किया था, जो मुरादाबाद के साहित्य/हिन्दी साहित्य में शोध करने वालों के लिए बहुमूल्य सामग्री प्रस्तुत करता है। उनकी कहानियों में बाल मनोविज्ञान का सुन्दर चित्रण रहता था। उन्होंने अधिकांश कहानियां बच्चों के लिए ही लिखी थीं।दिल्ली के साहित्यकार आमोद कुमार अग्रवाल ने कहा कि स्मृतिशेष श्री शंकर दत्त पाँडे मधुर स्वभाव के, गम्भीर किन्तु हँसमुख व्यक्तित्व के साहित्यकार थे। मेरा उनसे निकट का परिचय था, उनके अनुरोध पर मैने उनके बेटे को पढ़ाया भी था, ये भी एक संयोग है कि मेरा जन्म भी लोहागढ़ मौहल्ले मे हुआ था जहाँ श्री पाँडे जी का। यूँ तो उनके साहित्यिक रचना संसार मे बाल साहित्य,गीत,कहानियाँ,छंद मुक्त कविताएं, उपन्यास सभी कुछ था पर छोटे बालकों का जीवन एवं भविष्य गढ़ने और संवारने मे उनकी विशेष रुचि थी और इसमे प्रायः उनके साथ नज़र आते थे उनके परम मित्र मुरादाबाद के ख्याति प्राप्त चित्रकार एवं शायर स्व सर्वेश्वर सरन सर्वे जी थे। यूँ तो उनकी बाल कहानियों में राजा-रानी,परियों, जादू टोना आदि पर आधारित कल्पनाएं ही कथानक के रूप मे होती थीं किन्तु बच्चों के लिए ये अत्यंत शिक्षाप्रद होती थीं जिनके माध्यम से वे दया, करुणा, परोपकार आदि मानवीय गुणों का संदेश देते थे। पाँडे जी के गीत भी मर्मस्पर्शी हैं। जहाँ इन दिवंगत साहित्यकारों से नई पीढ़ी के रचनाकारों को प्रेरणा मिलती है, वहीं हमारे जैसे लोगों, जिन्होने उन्हे देखा है,उनसे बात की है,साथ बैठे हैं, के लिए रोमांचकारी और स्मृतियों का पुर्नसृजन है। वरिष्ठ कवयित्री डॉ प्रेमवती उपाध्याय ने कहा कि शंकर दत्त पांडे जी साहित्य और संस्कृति के सच्चे उपासक थे। उनका सम्पूर्ण जीवन शिक्षा और साहित्य के प्रति समर्पित रहा । सुख-दुख की पीड़ा का दर्शन उनकी रचनाओं में परिलक्षित होता है। पांडे जी ने वियोग श्रंगार रसप्रणय मिलन की मर्यादित भाषा शैली में काव्य रचना की है। मैं डॉक्टर मनोज रस्तोगी जी को ह्रदय से शुभकामना देती हूं जो कार्य वह कर रहे है शायद साहित्यिक जगत में अमरता का यह सोपान कभी भी संताने नहीं दे सकती थी। निष्कर्ष में पांडे जी आज भी हम सबके ह्र्दय में मार्गदर्शक के रूप में प्रेरणा के सुफल स्त्रोत के रूप में अविरल निरन्तर प्रवाहमयी गतिमान बने हुए है ।रामपुर के साहित्यकार रवि प्रकाश ने कहा कि श्री शंकर दत्त पांडे विलक्षण प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। उनकी रचनाओं को पढ़ने से उनके संवेदनशील और गहन चिंतक - मस्तिष्क का बोध होता है । उनके गीतों में भारी वेदना है। कवि शंकर दत्त पांडे मूलतः संवेदना के कवि हैं । वह भीतर तक वेदना में डूबे हुए हैं । संसार में कुछ भी उन्हें प्रिय नहीं लगता। यहां तक कि जब मस्त हवा के झोंके उन को स्पर्श करते हैं तब वह उन हवाओं से भी यही कहते हैं कि तुम मेरे साथ मजाक न करो। मैं पहले से ही इस संसार में लुटा - पिटा हूँ। वास्तव में प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति की नियति यही होती है क्योंकि वह जगत में सब के व्यवहार को बारीकी से परखता है और इस संसार में उसे सर्वत्र झूठ और धोखा नजर आता है। वह दृश्य में छुपे हुए अदृश्य को जब पहचान लेता है तब उसे चिकनी-चुपड़ी बातें लुभा नहीं पातीं। ऐसे में ही कवि शंकर दत्त पांडे का कवि ऐसा मर्मिक गीत लिख पाता है ---
मस्त हवा के झोंके, तू,
मुझ विह्वल से परिहास न कर।
मैं आप लुटा-सा बैठा हूँ
ले जीवन के सौ कटु अनुभव,
यह सोच रहा हूं, मैं क्या हूँ
अपनी भावुकता में बहकर
ओ, मस्त हवा के झोंके, तू,
मुझ विह्वल से परिहास न कर ।।
एक अन्य गीत में भी वेदना की ही अभिव्यक्ति मार्मिक आकार ग्रहण कर रही है। इसमें विशेषता यह है कि कवि को यह ज्ञात हो चुका है कि संसार निष्ठुर और संवेदना शून्य है । उसके आगे अपना दुखड़ा रोना उचित नहीं है। इसलिए वह विपदाओं में भी मुस्कुराने की बात कर रहा है
कटुता का अनुभव होने पर,
अन्तिम सुख-कण भी खोने पर,
आघातों से पा तीव्र चोट,
अन्तर्तम के भी रोने पर,
विपदाओं के झोकों से
विचलित तो नहीं हुआ करते।
मन ऐसा नहीं किया करते।
मुम्बई के साहित्यकार प्रदीप गुप्ता ने कहा कि शंकर दत्त पांडे जी से मेरा परिचय धर्मवीर साप्ताहिक के स्वामी और सम्पादक देवकी नंदन मिश्रा जी के प्रेस - कार्यालय में हुआ था समय निकल कर पांडेय जी अक्सर वहाँ आया करते थे । वहीं उनसे गप शप होती थी । धर्मवीर में उनकी रचनायें नियमित रूप से निकलती थीं , इस साप्ताहिक को देवकी नंदन जी के बाद अरविंद मिश्र ने चलाया था लेकिन कुछ वर्ष पहले उनका भी निधन हो गया इसलिए धर्मवीर में प्रकाशित पांडे जी की रचनाएँ शायद ही किसी के पास मिलें । पांडे जी साहित्यकार तो थे ही साथ ही एक अच्छे इंसान भी थे उनकी छवि आज भी स्मृति में बसी हुई है ।
साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार ने पांडे जी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा ----
सीधा सादा सरल सहज व्यक्तित्व
निर्मल और निश्चल अस्तित्व
कोई आडंबर,कोई दिखावा नहीं
जो बाहर,वही भीतर,कोई छलावा नहीं
छोटे बड़े,अपने पराए
सभी के लिए करुणा और प्यार
शुचिता की प्रतिमूर्ति
विनम्र और सौम्य व्यवहार2
अमरोहा की साहित्यकार मनोरमा शर्मा ने कहा श्री पांडे जी को जितना पढ़ रहें हैं उतनी उनसे निकटता अनुभव हो रही है ।ऐसा प्रतीत होता है कि वह एक सच्चे और अच्छे व्यक्तित्व के स्वामी थे और भावों का आत्मिक आंदोलन उनकी उत्कृष्ट और बौद्धिक ज्ञान को भी परिभाषित कर रहा है । भाषा की कुशलता के चितेरे हैं तभी भावों का गुंथन निरंतरता के साथ अपनी मस्ती में सब कुछ कहने की सामर्थ्य रख रहा है । उनकी रचनाओं में संस्कृत निष्ठ भाषा के साथ उर्दू की मासूमियत भी है ,बहाव भी है ।आधुनिक काल के प्रगतिवादी सोच के साथ रहस्यवाद का भी मिश्रण भी उनकी रचनाओं में देखने को मिलता है । नीति के साथ मानसिक चैतन्यता अपना प्रभाव बनाए रखती है । भाषागत सौन्दर्य के साथ जीवन का श्रंगार भी महकता है । सकारात्मकता का बोध कवि के साथ -साथ चलता है जो जन मानस को प्रेरणा देता हुआ चलता है । कुल मिलाकर कवि श्री शंकर दत्त पांडे जी एक सफल ,सरस अनुपम बौद्धिक क्षमता के रचनाकार थे ।
साहित्यकार हरी प्रकाश शर्मा ने कहा कि सम्मानीय शंकर दत्त पाण्डे जी से मेरे संबंध बहुत आत्मिक थे वो कम बोलते थे लेकिन अंदाज व्यंगात्मक था।राष्ट्र भाषा हिन्दी प्रचार समिति की गोष्ठी में प्रति माह नियमित रूप से उनसे मुलाकात होती थी । उस समय मुझे कविताओं में साक्षात्कार का जनून सवार था। एक दिन मैंने कवि से साक्षात्कार कविता सुनाई। उसे सुनकर कहने लगे तुम्हारा शब्द चयन अच्छा है ।उनके आशीर्वाद और प्रोत्साहन की ऊर्जा लेकर मैने कविता से साक्षात्कार कविता लिखी जिसे सुनकर वह बहुत खुश हुए । उस समय मैं पापी के नाम से कविता लिखता था । दिल के बेहद साफ और अपनी बात को स्पष्टता से कहने की आदत थी। मै उनकी केवल उन्ही कविताओं से लाभान्वित हो पाया जो गोष्ठी मैं वो सुनाते थे। अंत में यही कहना चाहूंगा मृदुभाषी,,और खुशनुमा व्यक्तित्व था उनका,,,
वरिष्ठ साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि हमेशा उल्लास से भरे पांडेय जी के चेहरे पर मुस्कराहट सजी रहती। हँसी मज़ाक में मशगूल रहने वाले पाण्डे जी जितने उपर से प्रफुल्लित लगते उतने अंदर से गंभीर भी थे इसका प्रमाण उनकी साहित्यिक रचनाएँ देती हैं। वाम चेतना से लैस पाण्डे जी ने हालाँकि प्रकृति और प्रेम पर भी साहित्य रचना की है पर उनमें भी उनकी वाम चेतना की झलक दिखलाई देती है। अत्यंत सादगी पसंद पांडे जी वैचारिक रूप से अत्यंत समृद्ध थे। जीवन, समाज और दुनिया के बारे में उनकी समझ मार्क्स वादी थी। यह मै उनके साथ वार्ता लाप के आधार पर कह रहा हूँ। एक बार मेरी उनसे करीब तीन घंटे इसी विषय पर चर्चा हुई थी। अंत में मैं यह बात करके अपनी बात समाप्त करता हूँ कि मुरादाबाद के साहित्यिक समाज ने उन्हे वह सम्मान नहीं दिया जिसके वे वास्तव में हकदार रहे। आत्म प्रचार, आत्म प्रशंसा के बजाय उन्होंने आत्म स्वाभिमान को तरजीह दी और गंभीर साहित्य लेखन में रत रहे। पाण्डे जी सरीखे साहित्यकारों का जीवन और साहित्य लेखन ही वास्तव में अनुकरणीय और प्रेरणा स्रोत होता है।
रामपुर के साहित्यकार ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि साहित्य साधक स्मृतिशेष पंडित शंकरदत्त पांडे जी के साहित्य सृजन में हमें शृंगार के दोनों पक्षों का बड़ा सुंदर चित्रण देखने को मिलता है। उनके साहित्य सृजन में चिंतन की अथाह गहराई देखने को मिलती है जो नए रचनाकारों के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह है।उनके सृजन में कोई बनावट या कृत्रिमता नहीं है।अपने दिल की सीधी और सच्ची आवाज़ को ही उन्होंने रचनाओं में अभिव्यक्ति दी है।
साहित्यकार अशोक विद्रोही ने कहा साहित्यजगत के अजेय योद्धा थे स्मृति शेष शंकरदत्त पांडे। आपका मोहक काव्य आज भी अपना जादू बिखेरता प्रतीत होता है। आप मुरादाबाद की लगभग सभी साहित्यिक संस्थाओं से जुड़े रहे जिनमें विशेष रुप से राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार समिति रही । स्मृति शेष कवियों, लेखकों, साहित्यकारों कि यह श्रृंखला चलाए रखने के लिए डॉक्टर मनोज रस्तोगी का नाम हिंदी साहित्य में सदा सर्वदा सम्मान पूर्वक लिया जाता रहेगा । उनकी तपस्या साधना का ही परिणाम है कि साहित्य जगत में न जाने कितने ही व्यक्तित्व जो बिना प्रसिद्धि पाये संसार से चले गये उनके चर्चे आज अनेक देशों तक ,साहित्यिक मुरादाबाद, संजीवनी के माध्यम से छाये हुए हैं।
युवा रचनाकार राजीव प्रखर ने कहा कि पटल पर उनके इन बारह गीतों के संवेदना-तल का स्पर्श करते हुए मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि वेदना को समेटे होने पर भी उनके गीत मानव के अंतस से नकारात्मकता को परे धकेलने का सफ़ल उपक्रम करती है। भले ही इन गीतों में वेदना का पुट स्पष्ट दिखाई देता हो परंतु ये गीत विश्राम लेते-लेते उस वेदना से सफल द्वंद्व करते हुए अंतस में उल्लास भी भर जाते हैं। पिंजरे में कैद दुःखी परिंदे में उड़ निकलने की आशा, जीवन के उतार चढ़ाव की अभिव्यक्ति, मिलन की मधुर गंध, विहग को बिम्ब के रूप में लेकर सृजन की प्रेरणा, निराशा से संघर्ष करने की इच्छा शक्ति इत्यादि सभी परिदृश्यों से यह बात स्पष्ट हो जाती है। और भी स्पष्ट शब्दों में कहूँ तो यही कहूंगा कि स्मृति-शेष शंकर दत्त जी एक ऐसे विलक्षण रचनाकार के रूप में हमारे सम्मुख आते हैं जिनका रचनाकर्म 'मैं' से अधिक 'हम' पर केन्द्रित रहा। उनके भीतर का रचनाकार भले ही अपनी बात अपनी वेदना से आरंभ करता हो परन्तु रचना के विश्राम पर आते-आते वह सकल समाज के लिये प्रेरक बन जाता है। उनकी यही विशेषता उन्हें 'मैं/मेरा' पर ही केन्द्रित रहने वाले असंख्य रचनाकारों से अलग, एक अति-विशिष्ट श्रेणी में ले जाती है। आज हम नई पीढ़ी को भी इस आयोजन के माध्यम से उनकी महान रचनाधर्मिता से परिचित होने का अवसर मिला है, जिसके लिए पटल प्रशासन निश्चित ही बारम्बार साधुवाद का पात्र है। मुझे पूर्ण विश्वास है कि उनका यह महान रचनाकर्म निश्चित रूप से वर्तमान तथा भावी पीढ़ियों को निरंतर अच्छा पढ़ने, सुनने एवं लिखने के लिए प्रेरित करता रहेगा।
साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि चर्चित साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि कीर्ति शेष शंकर दत्त पांडे जी ने विविध विधाओं में विपुल साहित्य रचा और गुणवत्ता युक्त रचा।भिन्न भाषाओं, विषयों और विधाओं पर उनका अधिकार पढ़कर,जानकर गर्व मिश्रित विस्मय होता है।उनके द्वारा रचा गया साहित्य सबका सब उपलब्ध नहीं है यह हमारी हानि है।इस विपुल साहित्य रचना के बाद भी हम उनकी मुक्त छंद रचनाओं में बहुत कुछ अभिव्यक्ति से अब भी शेष रह जाने की तड़प देखते हैं। बाल-साहित्य पर उनका एक ही संकलन बारह राजकुमारियाँ हमें पटल पर उपलब्ध हुआ।परन्तु ये कहानियाँ उनकी मौलिक बाल कहानियाँ न होकर यूरोपीय देशों में प्रचलित लोकथाओं व परीकथाओं की अनुवाद हैं।इससे उनका भाषाओं पर अधिकार के साथ साथ उनके सहज अनुवादक होने के गुण का भी पता चलता है।पाश्चात्य कहानियों के ये हिन्दी अनुवाद इतने स्वाभाविक और लययुक्त हैं कि इन्हें पढ़कर आप को इनके अनुदित होने का अंदाजा ही नहीं होता। ये कहानियाँ कल्पनाओं का विस्तृत संसार खोलती हैं।संंदेशप्रद नैतिक कहानियों के मुकाबले बालमन को काल्पनिक और मनोरंजक कहानियाँ अधिक लुभाती हैं और उन्हें खुद से सही राह चुनने के लिए प्रेरित करती हैं। अतः इन कहानियों को अनुवाद और प्रकाशन हेतु चयन करना श्री पाण्डे जी की बाल मनोवैज्ञानिक अभिरूचि का परिचय देता है।
कवयित्री मोनिका शर्मा मासूम ने कहा कि कीर्ति शेष श्री शंकर दत्त पांडे जीका लेखन साहित्य का अथाह सागर है जिसके अंदर की गहराई को सिर्फ सतह पर बैठकर पानी छूने से नहीं लगाया जा सकता। पटल पर प्रस्तुत उनकी रचनाओं का आस्वादन एक बार नहीं अपितु बार-बार करने का जी करता है और हर बार ही पढ़कर कल्पनाओं को एक नया आसमान मिल जाता है।
कवयित्री डॉ शोभना कौशिक ने कहा कि स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे जी का व्यक्तित्व व कृतित्व सदैव नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करता रहेगा ।ऐसे प्रतिभाशाली मधुर भाषी ,गम्भीर किंतु हसमुख व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार स्मृतिशेष श्री पांडे जी की कृतियां पाठक के मन पर अमिट छाप छोड़े बिना नही रहती । उनकी बाल कहानियां शिक्षाप्रद होती थी ।उन्होंने अपने साहित्य में समाज के प्रत्येक वर्ग को प्रतिविम्बित करने की चेष्टा की है ।
गजरौला की साहित्यकार रेखा रानी ने कहा कि उनके सभी गीत संवेदनाओं को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त जीवनी पढ़ने से ज्ञात हुआ कि इनकी प्रकाशित रचनाओं में बाल साहित्य, काव्य,कहानी उपन्यास नाटक संस्मरण आदि की प्रमुख विधाएं रहीं। आदरणीय पाण्डे जी सरल, सज्जन संतोषी भाव के व्यक्ति थे। उनमें छोटे बच्चों का भविष्य संवारने की बहुत ही ललक थी।
युवा साहित्यकार दुष्यन्त बाबा ने कहा कि स्मृतिशेष श्री शंकर दत्त पांडे जी के बारे में इतनी व्यापक जानकारी प्राप्त कर बहुत ही सुखद महसूस कर रहा हूँ। आदरणीय डॉ मनोज रस्तोगी जी का आभार जो इतनी मेहनत के बाद हमें एक से एक महान व्यक्तित्व से परिचय कराते हैं।
स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे की सुपौत्री गरिमा पांडे ने कहा कि हमारे जीवन में कुछ लोग ऐसे होते है जिनसे हम बहुत प्रभावित होते है जिनके बारे में हम सुनकर या सोचकर अपनाे को बहुत गौरवान्वित महसूस करते है उनमें से एक मेरे दादा जी है । दादा जी सदैव अनाुशासित और स्वाभिमानी पुरुष थे। उनको लिखने का बहुत शौक था। देर रात तक वह लिखते रहते थे ।उनको कवि सम्मेलन में जाना बहुत ही प्रिय था। कभी कभी तो वो मुझे भी साथ ले जाया करते थे। आज दादा जी की रचनाये ऐसे देखकर पढ़कर बड़ा गौरवान्वित महसूस हो रहा है। स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे जी की सुपौत्री हर्षिता पांडे ने कहा कि मैं आप सब का बहुत बहुत आभार प्रकट करती हूं कि आपने मेरे दादा जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद किया और उनकी कविता, कहानी, उपन्यास ,नाटक आदि जो भी मेरे दादा जी ने लिखी हैं उजागर कीं। उनको पढ़ कर मुझे भी ऐसा महसूस हो रहा है की काश मैं भी अपने दादा जी से मिल पाती उनको देख पाती और मुझे उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता । आज अब जब मुझे उनके बारे मे इतना कुछ जानने को मिला है तो मैं अपने आप को भाग्यशाली महसूस कर रही हूं कि मैं उनकी सुपौत्री हूं | आप हमारे बीच नहीं है, लेकिन आप हमेशा हमारी यादों में रहेंगे, दादाजी आपकी पुण्यतिथि पर हमारा सादर नमन ।
स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे जी के सुपौत्र विनीत पांडे ने कहा सबसे पहले मैं और मेरा पूरा परिवार आप सभी लोगो का दिल से धन्यवाद करता है कि आपने उन्हें याद किया और हमें ये महसूस कराया कि वो कहीं गए नहीं है बल्कि अपनी उन सभी कविताओं,कहानियों,काव्य और जो कुछ उन्होंने लिखा अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में के रूप में आज भी हमारे बीच जीवित है ।
स्मृतिशेष शंकर दत्त पांडे जी की धेवती प्रतिभा पांडे ने कहा कि नानाजी एक सरल, सज्जन, संतोषी, खुशमिजाज व्यक्ति थे।लेखन का शौक उन्हें बचपन से ही था। कम उम्र में ही उन्होंने लिखना आरंभ कर दिया था। मेरा उनसे बचपन से ही बहुत लगाव रहा है।
श्री पांडे जी के धेवते सौरभ उप्रेती ने आभार व्यक्त करते हुए कहा कि आप सभी लोगो को , मैं और मेरा परिवार धन्यवाद देना चाहता है। पिछले दो दिन से मेरे परिवार में एक ऊर्जा सी आ गयी है। मुझे याद है वो बधाई-पत्र, जो मेरे नाना जी ने मेरे पापा को मेरे जन्म के समय दिया था। साहित्यकार होने के कारण , उन्होने पत्र को यह पंक्ति लिखकर पूरा किया " आपने सौरभ का क्या नाम रखा " कहीं न कहीं उन्होंने अपनी बात भी कह दी और मेरा नामकरण भी कर दिया। आज उनके जाने के इतने साल बाद , आप लोगो ने उनको याद करने की पहल की, इसके लिए मैं और मेरा परिवार आपका तहे दिल से धन्यवाद करता है।
:::::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
मैं आपके इस प्रयास की दिल से सराहना करता हूं और आपको धन्यवाद देता हूं ।
जवाब देंहटाएंहमारे हिंदी साहित्य को जीवित रखने के लिए आपकी ये पहल प्रशंसनीय है ।
मुझे बहुत खुशी मिली जब मैने अपने नानाजी श्री शंकर दत्त पाण्डेय जी कृति को आपके ब्लाग में देखा ।
मैं और मेरा परिवार आपका आभारी है । 🙏🙏
🙏🙏 बहुत बहुत धन्यवाद आपका ।
हटाएं