मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से चार फरवरी 2023 को आयोजित भारतीय शास्त्रीय संगीत कार्यक्रम 'वसंत-राग एवं सम्मान समारोह' में बरेली के संगीतकार अवधेश गोस्वामी, रीता शर्मा एवं डॉ हितु मिश्रा को किया गया सम्मानित

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था 'अक्षरा' की ओर से नवगीतकार माहेश्वर तिवारी जी के नवीन नगर स्थित आवास पर शनिवार 4 फरवरी 2023 को भारतीय शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम 'वसंत-राग एवं सम्मान समारोह' का आयोजन किया गया जिसमें बरेली निवासी शास्त्रीय संगीतकार अवधेश गोस्वामी, रीता शर्मा एवं डॉ हितु मिश्रा को भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए मानपत्र, अंगवस्त्र, प्रतीक चिह्न तथा सम्मान राशि भेंटकर "संत संगीतज्ञ कीर्तिशेष पुरुषोत्तम व्यास स्मृति सम्मान" से सम्मानित किया गया। 

     सुप्रसिद्ध संगीतज्ञा बाल सुंदरी तिवारी एवं उनकी शिष्याओं लिपिका सक्सेना, संस्कृति राजपूत, सिमरन मदान व राधिका गुप्ता द्वारा संगीतमयी प्रस्तुत सरस्वती वंदना से आरम्भ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना रुकमणी खन्ना ने की, मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध शास्त्रीय संगीतज्ञ ब्रज गोपाल व्यास तथा विशिष्ट अतिथि दयानंद आर्य कन्या महाविद्यालय के प्रबंधक उमाकांत गुप्त रहे। कार्यक्रम का संयुक्त रूप से संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी प्रदीप शर्मा एवं नवगीतकार योगेन्द्र वर्मा व्योम ने किया।

         इस अवसर पर सर्वप्रथम बाल सुंदरी तिवारी द्वारा महाकवि निराला के अमर वसंत गीत- "सखि वसंत आया..." की संगीतमय प्रस्तुति की गयी तत्पश्चात अतिथि संगीतकारों की प्रस्तुतियां हुईं।

     बरेली के वरिष्ठ संगीतज्ञ अवधेश गोस्वामी ने राग- सोनी में भजन और राग- पटदीप में ठुमरी के साथ साथ राग-पीलू में "तुम राधा मैं कृष्ण..." की कर्णप्रिय संगीतमय प्रस्तुति दी। अतिथि संगीतज्ञ डॉ हितु मिश्रा ने राग-वसंत में छोटा खयाल -"...सरस रंग खिले" और होरी- "ब्रज में धूम मची..." की प्रस्तुति के साथ साथ 18 रागों की रागमाला प्रस्तुत की। बरेली की ही वरिष्ठ संगीतज्ञा रीता शर्मा ने विभिन्न रागों में भजन और गीतों -"ऐ री सखी री मोरे पिया घर आये..." की मनमोहक प्रस्तुति दी। कार्यक्रम में वरिष्ठ संगीतज्ञ बृज गोपाल व्यास, रागिनी कौशिक और राजीव व्यास ने भी प्रस्तुति दी। बरेली से पधारे प्रशांत उपाध्याय ने तबले पर, चाँद खां ने हारमोनियम पर और स्थानीय राधेश्याम ने तबले पर शानदार संगत दी।" 

            इस अवसर पर संगीतकार विनय निगम, साहित्यकार योगेन्द्र वर्मा व्योम, डॉ चंद्रभान यादव, डॉ मनोज रस्तोगी, राजीव प्रखर, मनोज मनु, डॉ माधुरी सिंह, उमाकांत गुप्त, संजीव आकांक्षी, गीता शर्मा, संतोष रानी गुप्ता, आशा तिवारी, समीर तिवारी, भाषा, अक्षरा, शशि प्रभा आदि उपस्थित रहे। आभार अभिव्यक्ति माहेश्वर तिवारी ने प्रस्तुत की।


















































:::::::प्रस्तुति:::::::::

योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'

संयोजक

साहित्यिक संस्था 'अक्षरा'

मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल- 9412805981

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम ने 5 फरवरी 2023 को आयोजित की काव्य-गोष्ठी

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की मासिक काव्य गोष्ठी पांच फरवरी 2023 को मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज में हुई। 

राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि ओंकार सिंह ओंकार ने कहा ....

सबके सुख की करे कामना,

कितनी प्यारी होती माॅं। 

खुद कम खाकर हमें खिलाती, 

सबसे न्यारी होती माॅं। 

   मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवयित्री डॉ. पूनम बंसल ने अपने मनोभावों को मुक्तक में उकेरा - 

 आस की सांझ में स्वप्न पलने लगे, 

 प्रीत की याद के रंग मलने लगे।

 हार ही जीत की जब सहेली बनी, 

 हौंसले देखिए साथ चलने लगे। 

    विशिष्ट अतिथि के रूप में रामेश्वर वशिष्ठ ने कहा - 

तुम निराशा दो मुझे विश्वास लेकर क्या करूंगा। 

जब दीप ही मेरा नहीं, प्रकाश लेकर क्या करूंगा। 

    वरिष्ठ साहित्यकार रामदत्त द्विवेदी की अभिव्यक्ति थी - 

घर में दीवार बना ली नहीं, यह ठीक किया। 

अपनी पहचान छुपा ली नहीं, यह ठीक किया। 

      श्रीकृष्ण शुक्ल ने हास्य-व्यंग्य की फुहार छोड़ी -

 अश्रु आँखों में छिपाना सीख लो I 

 तुम अकारण मुस्कुराना सीख लो II 

 रूठने से बात बिगड़ी है सदा, 

 आप रूठे को मनाना सीख लो ।।

     डॉ. मनोज रस्तोगी ने व्यंग्य का रंग बिखेरा - 

बीत गए कितने ही वर्ष ,

हाथों में लिए डिग्रियां

कितनी ही बार जलीं 

आशाओं की अर्थियां

आवेदन पत्र अब लगते 

तेज कटारों से। 

      राजीव प्रखर की अभिव्यक्ति थी -  

हो इसकी उन्नति में मित्रो, जन-जन का अवदान। 

चलो बनाएं सपनों जैसा, प्यारा हिन्दुस्तान। 

 कार्यक्रम का संचालन करते हुए जितेन्द्र जौली ने व्यंग्य के तीर छोड़े - 

 महज दिखावा लग रही, हमें आयकर छूट। 

 सात लाख तक छूट है, उससे ऊपर लूट।। 

नकुल त्यागी ने कहा - 

दरअसल मेरे पति ही पगले हैं 

एक बार दस के नोटों के पैकेट में

दस  के एक सौ एक नोट निकले हैं। 

 अंत में ओंकार सिंह ओंकार जी की माताजी के निधन पर दो मिनट का मौन रखते हुए उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई। संस्था अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्त किया गया ।














शनिवार, 4 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की कविता .... गौरैया


आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।

दाने डाल टोकरी में अब तुझको नहीं फँसायेंगे।

छत पर दाना पानी रखकर हम पीछे हो जाएंगे।

छोटे छोटे घर भी तेरे फिर से नए बनाएंगे।

आजा प्यारी गौरैया अब तुझको नहीं सतायेंगे।।


हुई ख़ता क्या नन्हीं चिड़िया जो तू हमसे रूठ गयी।

या तू जाकर दूर देश में अपना रस्ता भूल गयी।

एक बार तू लौट तो आ हम सच्ची प्रीत निभाएंगे।

दूर से तुझको देख देखकर अब हम खुश हो जाएंगे।

आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।


चीं चीं करती छोटी चिड़िया याद बहुत तू आती है।

जब कोई तस्वीर किताबों में तेरी दिख जाती है।

एक बार तू वापस आ हम फिर से रंग जमाएंगे।

सुंदर सी तस्वीर तेरी हम फिर से नई बनाएंगे।

आजा प्यारी गौरैया हम तुझको नहीं सतायेंगे।।


✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

ठाकुरद्वारा

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ....मैं केवल देखता हूं



कोई क्रिया,प्रतिक्रिया नही

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


घोटालों के पहाड़ को

भ्रष्टाचार के ताल को

प्रदूषण के दानव को

मिलावट के जाल को

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


चढ़ती हुई महंगाई को

भुखमरी को, बेकारी को

शिक्षा के अभाव को

बढ़ती बेरोजगारी को

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


हिंसा को,अराजकता को

धार्मिक उन्माद को

चरित्र के पतन को

आतंक को,उग्रवाद को

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


गीता का ज्ञान

मेरे भीतर समाया है

भगवान श्रीकृष्ण ने

अर्जुन को समझाया है

कोई भी घटना हो

साक्षी भाव में रहना है

भावुकता में

बिल्कुल नही बहना है

मैं इसी सिद्धांत को

अपना माथा टेकता हूं

और हर घटना को

केवल देखता हूं

जी हां, मैं केवल देखता हूं


✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की कविता .....चित्र


एक नागरिक ने

जनता की निगाहों

को तोल-

मंच पर चढ़कर बोला -

मेरे हाथ में क्या है ?

जो बतलायेगा

हम , उसे हिंदुस्तान

की सैर करायेगा -

तभी,

जनता के बीच से

आवाज़ आई --

तुम्हारे हाथ में 

क्या है भाई--

नज़र नहीं आ रहा है

मेरे पास चश्मा नहीं है

दूसरा बोला,

तुम्हारे हाथ में फ़ोटो है

जिसका चेहरा लालू

से मिलता है--

कई बच्चों का बाप होने पर

कमल सा खिलता है--

मुझे,

तो दूर से टोपी ही

नजऱ आ रही है-

वी.पी.सिंह की याद

आ रही है-

नागरिक ने कहा

नहीं भाई नहीं,

तुम्हारे सभी उत्तर गलत 

हो गये,

तुम्हारे सभी अंदाज़

फेल हो गये-

यह चित्र,

किसी नेता या

राजनेता का नहीं

आम आदमी का चित्र है--

जिसका चेहरा

खिला हुआ नहीं

भूख से त्रस्त है--

सर पर टोपी नहीं

बल्कि,

अपनी जिंदगी के बोझ 

को ढोता, दर्द को सहता-

तिल - तिल कर मरता-

आज का इंसान है।

इसकी टांगे महंगाई ने

कमजोर कर दी हैं-

यह खड़ा होने में

असमर्थ है --

यह बड़ा ही विचित्र है--

सच्चाई के करीब,

आम आदमी का चित्र है ।।


✍️अशोक विश्नोई

मुरादाबाद

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार शिव कुमार चंदन की काव्य कृति शारदे-स्तवन की रवि प्रकाश द्वारा की गई समीक्षा .... सरल हृदय से लिखी गई सरस्वती-वंदनाऍं

सहस्त्रों वर्षों से सरस्वती-वंदना साहित्य के विद्यार्थियों के लिए आस्था का विषय रहा है । भारतीय सनातन परंपरा में देवी सरस्वती को ज्ञान का भंडार माना गया है । वह विद्या की देवी हैं । सब प्रकार की कला, संगीत और लेखन की आधारशिला हैं।  उनके हाथों में सुशोभित वीणा जहॉं एक ओर सृष्टि में संगीत की विद्यमानता के महत्व को उन के माध्यम से दर्शाती है, वहीं एक हाथ में पुस्तक मानो इस बात का उद्घोष कर रही है कि संपूर्ण विश्व को शिक्षित बनाना ही दैवी शक्तियों का उद्देश्य है । केवल इतना ही नहीं, एक हाथ में पूजन के लिए प्रयुक्त होने वाली माला भी है जो व्यक्ति को देवत्व की ओर अग्रसर करने के लिए एक प्रेरणादायक प्रस्थान बिंदु कहा जा सकता है । 

       हजारों वर्षों से सरस्वती पूजा के इसी क्रम में रामपुर निवासी कवि शिवकुमार चंदन ने एक-एक करके 92 सरस्वती-वंदना लिख डालीं और उनका संग्रह 2022 ईस्वी को शारदा-स्तवन नाम से जो प्रकाशित होकर पाठकों के हाथों में आया तो यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है । सामान्यतः कवियों ने एक-दो सरस्वती वंदना लिखी होती हैं, लेकिन 92 सरस्वती वंदनाऍं लिख देना इस बात का प्रमाण है कि कवि के हृदय में मॉं सरस्वती की वंदना का भाव न केवल प्रबल हो चुका है, अपितु जीवन में भक्ति का प्रादुर्भाव शीर्ष पर पहुॅंचने के लिए आकुल हो उठा है । इन वंदनाओं में एक अबोध और निश्छल बालक का हृदय प्रतिबिंबित हो रहा है । कवि ने अपने हृदय की पुकार पर यह वंदनाऍं लिखी हैं और एक भक्त की भॉंति इन्हें मॉं के श्री चरणों में समर्पित कर दिया है।

   प्रायः यह वंदनाऍं गीत-शैली में लिखी गई हैं । कुछ वंदना घनाक्षरी छंद में भी हैं, जो कम आकर्षक नहीं है । एक घनाक्षरी वंदना इस प्रकार है :-

शारदे मॉं चरणों में चंदन प्रणाम करे 

अंतस में ज्ञान की मॉं ज्योति को जगाइए

रचना विधान काव्य शिल्प छंद जानूॅं नहीं 

चंदन को छंद के विधान को सिखाइए

विवश अबोध मातु आयके उबारो आज 

जगत की सभी नीति रीति को निभाइए 

प्रकृति की प्रीति रीत पावस बसंत शीत

चंदन के गीत छंद स्वर में गुॅंजाइए (पृष्ठ 127)

एक गीत में कवि जन्म-जन्मों तक भटकने के बाद मॉं की शरण में आता है और जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य "ध्यान" की उपलब्धता को प्राप्त हो जाता है । गीत के प्रारंभिक अंश इस प्रकार हैं :-

जन्म-जन्मों का चंदन पथिक हो गया

मोह अज्ञान तम में कहॉं खो गया

थाम ले बॉंह को टेर सुन आज मॉं 

कर कृपा शारदे,पूर्ण कर काज मॉं

छोड़कर पंथ चंदन शरण आ गया 

मॉं तुम्हारा सहज ध्यान गहरा गया (पृष्ठ 25) 

     जीवन में वैराग्य भाव की प्रधानता अनेक गीतों में प्रस्फुटित होती हुई दिखाई पड़ रही है । यह सहज ही उचित है कि कवि अनेक जन्मों की अपनी दुर्भाग्य भरी कहानी को अब मंजिल की ओर ले जाना चाहता है । ऐसे में वह मॉं सरस्वती से मार्गदर्शन भी चाहता है । एक गीत कुछ ऐसा ही भाव लिए हुए है । देखिए :-

जब इस जग में आए हैं मॉं

निश्चित इक दिन जाना है

अनगिन जन्म लिए हैं हमने

अपना कहॉं ठिकाना है 

यह सॉंसें अनमोल मिली हैं 

ज्यों निर्झर का झरना है 

करूॅं नित्य ही सुमिरन हे मॉं 

मुझे बता क्या करना है ?(पृष्ठ 104) 

        वंदना में मुख्य बात लोक-जीवन में प्रेम की उपलब्धता हो जाना मानी गई है । सरस्वती-वंदना में कवि ने इस बात को ही शब्दों में आकार देने में सफलता प्राप्त की है । एक वंदना गीत में कवि ने लिखा है :-

ज्ञान की ज्योति दे दो हमें शारदे 

नेह मनुहार से मॉं हमें तार दे

अर्चना में हमारी यही आस हो 

मन में भक्ति जगे श्रद्धा विश्वास हो

भाव के सिंधु में प्रीति पतवार दे 

ज्ञान की ज्योति दे दो हमें शारदे (पृष्ठ 34)

         अति सुंदर शुद्ध हिंदी के शब्दों से अलंकृत यह सरस्वती-वंदनाऍं सदैव एक नतमस्तक भक्त के मनोभावों को अभिव्यक्त करती रहेंगी । सामान्य पाठक इनमें अपने हृदयोद्गारों को प्रकट होता हुआ देखेंगे तथा भीतर से परिष्कार की दिशा में प्रवृत्त हो सकेंगे।

     पुस्तक की भूमिका में डॉक्टर शिवशंकर यजुर्वेदी (बरेली), हिमांशु श्रोत्रिय निष्पक्ष (बरेली) तथा डॉक्टर अरुण कुमार (रामपुर) की भूमिकाऍं वंदना-संग्रह की गुणवत्ता को प्रमाणित कर रही हैं । डॉ शिव शंकर यजुर्वेदी ने ठीक ही लिखा है कि इस वंदना-संग्रह का जनमानस में स्वागत होगा तथा यह पूजा-घरों की शोभा बढ़ाएगी, मेरा विश्वास है । ऐसा ही इस समीक्षक का भी विश्वास है। कृतिकार को ढेरों बधाई।





कृति : शारदे-स्तवन ( मां सरस्वती वंदना-संग्रह)

कवि : शिव कुमार चंदन, सीआरपीएफ बाउंड्री वॉल, निकट पानी की बड़ी टंकी, ज्वालानगर, रामपुर (उत्तर प्रदेश) मोबाइल 6397 33 8850 

प्रकाशक : काव्य संध्या प्रकाशन, बरेली 

मूल्य : ₹200 

प्रथम संस्करण : 2022

समीक्षक : रवि प्रकाश,

बाजार सर्राफा

रामपुर 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल 99976 15451