गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

मुरादाबाद की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था कला भारती की ओर से 15 अप्रैल 2023 को आयोजित समारोह में रामपुर के वरिष्ठ कवि रामकिशोर वर्मा को कलाश्री सम्मान ।

मुरादाबाद की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था कलाभारती की ओर से शनिवार 15 अप्रैल 2023 को  सम्मान-समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन, मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इंटर कॉलेज पर हुआ जिसमें रामपुर के वरिष्ठ रचनाकार  रामकिशोर वर्मा को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए संस्था की ओर से, कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। कवयित्री पूजा राणा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार जितेन्द्र कमल आनंद ने की। मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार  सर्वेश कुमार सिंह एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में अशोक विश्नोई एवं बाबा संजीव आकांक्षी मंचासीन हुए जबकि कार्यक्रम का संचालन राजीव प्रखर ने किया। सम्मानित रचनाकार श्री रामकिशोर वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का  वाचन राजीव प्रखर एवं प्रदत्त मान पत्र का वाचन मनोज मनु ने किया। 

       कार्यक्रम के द्वितीय चरण में एक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें उपस्थित रचनाकारों ने विभिन्न सामाजिक मुद्दों को अपनी रचनाओं में उकेरा। काव्य-पाठ करते हुए सम्मानित रचनाकार  राम किशोर वर्मा ने कहा -

 हिले पत्ते नहीं फिर भी, पवन को जान जाते हैं । 

अधर बिन नैन ये तेरे, बहुत कुछ बोल जाते हैं ।। 

इसी क्रम में राजीव प्रखर, योगेन्द्र वर्मा व्योम, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, ईशांत शर्मा ईशु, प्रशांत मिश्र, पूजा राणा, मनोज मनु, रघुराज सिंह निश्चल, अशोक विद्रोही, नकुल त्यागी, रामदत्त द्विवेदी, डॉ मनोज रस्तोगी, अंबरीश गर्ग, अशोक विश्नोई बाबा संजीव आकांक्षी, जितेन्द्र कमल आनंद, आकृति सिन्हा, कमल सक्सेना आदि ने रचना पाठ किया। राजीव प्रखर द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।








































बुधवार, 19 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की रचना ....एक दूसरे को मिले प्यार की सौगात रे

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मुरादाबाद जनपद के ठाकुरद्वारा की साहित्यकार चक्षिमा भारद्वाज ’ खुशी’ की लघु कथा ...... टूटे टुकड़े



 "अरे रामरती तेरी बहु ने ये नई गगरी फोड़ दी तूने उसे कुछ कहा क्यों नहीं?" हिरादेई ने कुएँ पर मटकी टूटने के बाद बहु के नई मटकी लेने जाते ही पीछे से कहा।

 "क्या मटकी के ये टुकड़े जुड़ सकते हैं हिरा?" रामरती ने उल्टा हिरादेई से सवाल कर दिया।

 "नहीं तो! टूटी हुई चीजें भी भला कभी जुड़ती हैं।" हिरादेई ने मुँह बनाकर कहा।

 "तो फिर इस मिट्टी की मटकी के टूट जाने पर मैं अपनी बहू को खरी-खोटी सुनकर उससे अपने रिश्ते क्यों तोड़ लूँ? जब इस मटकी को नहीं जोड़ा जा सकता तो क्या हमारे रिश्ते में आई दरार को जोड़ा जा सकेगा? और फिर मेरी बहु का पैर यहाँ की कीचड़ पर फिसल गया था जिसके कारण मटकी फूटी। मेरी बहू ने इसे जानबूझकर तो तोड़ा नहीं...।" रामरती ने कहा और हिरादेई को अनदेखा करके आगे बढ़ गयी।


✍️ चक्षिमा भारद्वाज "खुशी"

ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघुकथा..... ' मुक्ति '

   


वह भागती -दौडती, चीखती-चिल्लाती पुलिस स्टेशन के गेट तक पहुंची ही थी, कि मोटर साईकिल से पीछा करते गुण्डे ने आकर उसकी कमर और कनपटी पर दो फायर झोंक दिये और फरार हो गया।वह वहीं पर औंधे मुंह गिर पडी । उसके एक हाथ में दरख्वास्त थी। खून से लथ-पथ उसका शरीर निढ़ाल पडा था। भीड इकट्ठा हो गई । भीड से आवाज आई । बेचारी कई दिन से थाने के चक्कर काट रही थी।कोई सुनने वाला ही नहीं था। 

       चलो अब ईश्वर ने उसकी सुन ली। उसे इस नरक के जंजाल से अपने पास बुला लिया। गुण्डों से मानो वह भी डरता हो। इसलिए ,उनका कुछ न बिगाड़ पाया। उस निर्दोष महिला को मुक्ति दे दी।

 ✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

चन्द्र नगर, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघुकथा....'संस्कारी बेटा '


"ट्रीन ...ट्रीन ...ट्रीन ...!"

"अरे जगत फोन उठा बेटा ...।"माँ रसोई में से बोलीं 

"हां ...हेल्लो ...अच्छा शुभि ..हाँ लायब्रेरी से ले लेना ...ठीक है ...ठीक है ।"

"किसका फोन है बेटा ?"

"माँ वो शुभि का था ...पूँछ रही थी कौन कौन सी बुक्स ले लूँ ?"जगत ने मोबाइल टेबल पर रखते हुए कहा ।

"भैया कह रही होगी !"निकिता जगत की बहिन ने व्यंगात्मक लहजे में कहा ।

"हाँ तो क्या हुआ ?"जगत ने उसके पास बैठते हुए कहा ।

"जगत अगर तुम यूँ ही हर लड़की के भाई बनते गए न तो देख लेना तुम्हारी तो शादी होने से रही ।

"चुप कर निकिता क्या बोलती रहती है ?"माँ ने निकिता को डाँटा ।

"बोलने दो माँ इसको ।"जगत ने हँसकर कहा ।

"तुमको बुरा नहीं लगता ...कॉलेज में 'अड़ोस पड़ोस में रिश्तेदारी में सब लड़कियाँ तुमको भैया भैया कहकर पुकारती हैं ।"निकिता ने फिर मुँह बनाया ।

"मैं उनकी हेल्प करता हूँ कह देती हैं मुझे अच्छा लगता है ।"जगत ने चाय का घूँट भरते हुए कहा ।

माँ रसोई में खड़ी मुस्करा रहीं थीं ।

"तो तुमतो क्वारे ही रहोगे ।"निकिता ने जगत को फिर चिढ़ाया ।

"ठीक है ।"जगत ने मुस्कराते हुए कहा ।

"क्या ठीक है ...अरे डाँट दिया करो लड़कियों को जब तुमसे भैया कहें ।"

"तुझे डांटता हूँ क्या बता ?सब में मुझे तू ही दिखती है । रही शादी की बात तो शादी तो एक लड़की से होगी और प्यार भी एक से ही फिर सब पर ट्राई मारकर खुद की आत्मा को मैला क्यों करूं ?"जगत ने निकिता से कहा तो निकिता को अपने भाई और माँ को अपने बेटे को दिए संस्कारों पर गर्व हो उठा ।

✍️ राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश , भारत


मुरादाबाद के साहित्यकार राम दत्त द्विवेदी की रचना .....

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मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रामकिशोर वर्मा की रचना ....

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मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी की कविता .... प्रतीक्षा कृष्ण की

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शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार हेमा तिवारी भट्ट की कहानी-छोटी सी आशा.......


"सुनो ! कल कमल को छुट्टी कह दूँ क्या"

"नहीं,बुला लो।"

"अरे छोड़ो न, एक दिन रेस्ट कर लेगा।"

"उसने कौनसा पहाड़ खोदना है?आराम ही तो है,बैठ कर गाड़ी ही तो चलानी है।"

"फिर भी, मुझे ठीक नहीं लग रहा कल बुलाना।कल मुझे कॉलेज जाना नहीं है और हम सब लोग मूवी देखने जा रहै हैं।वहाँ के लिए तो आप ही ड्राइव कर लोगे।"

"जब मैं कह रहा हूँ तो कह रहा हूँ।बस तू कह दे उसे।भले ही कल 2 बजे बुला ले क्योंकि तीन बजे का शो है" 

"ठीक है..." रमा ने बेमन से कहा।उसे अच्छा नहीं लग रहा था कि वह नये साल के दिन खुद तो परिवार के साथ एंजॉय करे और अपने ड्राइवर को बेवजह थोड़ी दूरी की ड्राइव करने के लिए भी बुला ले।उसने सोचा था कि वह कमल को कल की छुट्टी देकर उसे नये साल का जश्न मनाने को कहेगी तो उस गरीब के चेहरे पर भी एक छोटी सी मुस्कान आ जायेगी।

     'हम बड़ी चीजें न कर सकें पर अपने स्तर की छोटी छोटी खुशियां तो बाँट ही सकते हैं' रमा ने मन में बुदबदाया।उसे राघव पर झुंझलाहट आ रही थी,पर अपने पति की बात भी वह नहीं टाल सकती थी।

     कमल गैराज में गाड़ी पार्क कर चुका था और अंदर लॉबी में की-स्टेंड पर गाड़ी की चाभी टाँगने आया था।उसने रोज की तरह रमा से पूछा,

     "मैंने गाड़ी पार्क कर दी है,मैम।अब मैं जाऊँ....?और वो ...कल की तो छुट्टी रहेगी न मैम।आप कह रहे थे न कि कल कॉलेज नहीं जाना है।"

     "हाँ,कल कॉलेज तो नहीं जाना है पर सर बुला रहे हैं कल किसी काम से।तुम कल दो बजे आ जाना।" रमा ने सेन्टर टेबल पर फैली पड़ी मैग्जीन्स समेटने का उपक्रम करते हुए कहा।वह असहज महसूस कर रही थी क्योंकि उसने जो सोचा था वह हो नहीं पाया था।उसने चोर निगाह से कमल की ओर देखा।

     "ठीक है,मैम" कहकर कमल रोज की तरह गम्भीरता ओढ़े गर्दन झुका कर मेन गेट के पास खड़ी अपनी टीवीएस तरफ बढ़ गया।रमा के सिर पर उस उदास चेहरे का बोझ चढ़ गया था,वह जाकर अपने कमरे में लेट गयी।

        अगले दिन ठीक दो बजे कमल अपनी ड्यूटी पर था।

        "नमस्ते मैम,नमस्ते सर।आपको नये साल की बहुत बहुत मुबारकबाद।"

        "नमस्ते कमल,तुमको भी नया साल मुबारक।" राघव ने गर्मजोशी से कहा।

        रमा ने फीकी मुस्कान फैंकी।उसे राघव का कमल को छुट्टी के दिन भी काम पर बुलाना गलत लग रहा था।हालांकि महीने में चार-पाँच छुट्टियाँ कमल को आराम से मिल जाती थी क्योंकि सन्डे को तो रमा कॉलेज नहीं जाती थी।पर आज नया साल था और यही बात उसे खटक रही थी।

        रमा के दो बेटे थे जो युवा कमल से कुछ ही वर्ष छोटे किशोर वय के थे।वे दोनों भी तैयार होकर बाहर आ गये थे।कमल ने गैराज से गाड़ी बाहर निकाली और उसे साफ किया।राघव ड्राइवर के साथ वाली सीट पर बैठा और रमा दोनों बेटों सहित पीछे की सीट पर।

        गाड़ी शहर के सबसे शानदार मॉल कम मल्टीप्लेक्स के मेन गेट पर पहुँच चुकी थी।

        कार पार्किंग में ले जाने से पहले कमल ने मालिक के परिवार को कार से उतारते हुए मालिक से पूछा," सर,कितनी देर की मूवी है?मैं सोच रहा था कार पार्क कर के मैं भी थोड़ी देर पास में ही अपने रिश्तेदार के घर हो आता।जब मूवी ख़त्म हो आप मुझे कॉल कर देना,मैं तुरन्त आ जाऊँगा।"

        "नहीं,तुम कहीं नहीं जाओगे।कार पार्क कर के सीधे यहाँ आओ।"

        कमल चुपचाप कार पार्किंग की ओर बढ़ गया।अब तो रमा को बहुत ही गुस्सा आया पर सार्वजनिक स्थान पर और वह भी जवान बेटों के सामने वह अपने पति से क्या कहे।उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर राघव ऐसा क्यों कर रहे हैं?राघव ने मुस्कुराकर रमा की ओर देखा लेकिन उसने गुस्से से मुंह फेर लिया।

        थोड़ी देर में कमल कार पार्क कर के लौटा तो राघव ने उसके कन्धे पर हाथ रखा और पूछा, "मूवी वगैरह देख लेते हो या नहीं।आज तुम्हें हमारे साथ मूवी देखना है,ठीक है।" कमल का चेहरा कमल की तरह खिल गया।रमा के दोनों बेटे भी पापा को देखकर मुस्कुराने लगे और रमा.... वह तो हक्की बक्की रह गयी थी।राघव ने प्यार से जब रमा की तरफ देखा तो वह मुस्कुरा उठी।रमा के बेटों ने कमल का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ आगे बढ़ाया तो राघव ने रमा का हाथ पकड़ा।पाँच टिकट ऑनलाइन बुक कराये गये थे,थ्री डी मूवी थी जो रेटिंग्स में धूम मचाये हुए थी।ढाई घण्टे की मूवी देखकर हंसते खिलखिलाते सब हॉल से बाहर निकले।

        राघव पिज्जा कॉर्नर की तरफ बढ़ा और सबके लिए पिज्जा आर्डर किया।कमल के चेहरे पर संकोच मिश्रित प्रसन्नता के भाव थे।पाँच जगह पिज्जा सर्व  हुए।सबने खाना शुरू किया।लेकिन ये क्या कमल की आँखों में आंसू थे।राघव ने मज़ाक करते हुए पूछा,"क्या बात मूवी अच्छी नहीं लगी, कमल।"

"नहीं,सर नहीं,ऐसी बात नहीं है।बहुत अच्छी मूवी थी।पर.... मैंने अपने जीवन में आज तक कभी मल्टीप्लेक्स में मूवी नहीं देखी और थ्री डी मूवी भी पहली बार देखी।एक बात बताऊं ,सर।दो साल पहले मैंने इस पिज्जा कॉर्नर पर काम किया है।लेकिन मैंने कभी पिज्जा नहीं खाया।मैं बता नहीं सकता कि मैं आज कितना खुश हूँ।आप सचमुच बहुत बड़े दिल वाले हैं।वरना एक ड्राइवर को अपने साथ कौन बैठाता है,एक ड्राइवर के लिए इतना कौन सोचता है?" राघव ने कमल को गले से लगा लिया।

       रमा खुद पर शर्मिन्दा थी कि वह अपने ही पति की भलमनसाहत को आखिर क्यों नहीं पहचान पायी।पर उसे हल्का गुस्सा भी आया कि आखिर राघव ने उसे ये सब पहले क्यों नहीं बताया।? पर अगले ही पल उसने मन ही मन ढेर सारा प्यार राघव पर उड़ेला।दोनों बेटे बहुत खुश थे कि वे अपने व्यस्ततम माता पिता के साथ नये साल पर मूवी देखने आए।लौटते समय गाड़ी में बैठी सवारियों के भाव बिल्कुल बदले हुए थे।इस नये साल पर सबकी छोटी छोटी आशाएं जो पूरी हुई थीं।

✍️ हेमा तिवारी भट्ट

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

गुरुवार, 13 अप्रैल 2023

मुरादाबाद जनपद के मूल निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष डॉ कुंअर बेचैन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केंद्रित कानपुर के साहित्यकार डॉ सुरेश अवस्थी का संस्मरणात्मक आलेख


" सबकी बात न माना कर
                                        
खुद को भी पहचाना कर।  

दुनियां से लड़ना है तो-                                               
अपनी ओर निशाना कर।" 

        जीवन संघर्ष के लिए ये प्रेरक पंक्तियां कोमलतम संवेदनाओं को सहजतम अभिव्यक्ति देने वाले गीतकार कीर्तिशेष डॉ कुँअर बेचैन की हैं। क्रूर कोरोना से संघर्ष में भले ही डॉ बेचैन हार गए हों पर उन्होंने अपनी गीत व ग़ज़ल रचनाओं से प्रेम, दर्शन, जीवन संघर्ष के जो सन्देश  दिये हैं वे अक्षुण्य व अमर रहेंगे। यूँ तो उनकी बहुत सी रचनाओं से मैं भरपूर परिचित हूँ पर इस गीत की शक्तिमत्ता को मुझे अमेरिका के 18 शहरों में हुए कवि सम्मेलनों में देखने व आत्मसात करने का पुण्य अवसर मिला है।

 

  मेरी अमेरिका की तीसरी साहित्यिक यात्रा में 4 अप्रैल 2013 से 5 मई 2013 के मध्य अंतरराष्ट्रीय हिंदी समिति की ओर से श्री आलोक मिश्र के सौजन्य से विभिन्न शहरों में 18 कवि सम्मेलनों का संचालन व काव्यपाठ का अवसर मिला। यूँ तो यह यात्रा कई कारणों से विशेष रही पर डॉ कुँअर बेचैन जी के सानिध्य व संरक्षण से विशेषतम हो गयी।
    व्यंग्य कवि दीपक गुप्ता आरम्भिक काव्य पाठ कर रहे थे और समापन श्री बेचैन जी। मध्य में मैं काव्यपाठ करता था। पहले दो कवि सम्मेलनों में कुँवर जी ने हिंदी की महिमा पर केंद्रित गीत को समापन का गीत बनाया। तीसरे दिन कवि सम्मेलन मंच पर जाने से पूर्व उन्होंने मुझसे एकांत में बात की। अपने अनुभवों के अनन्त महासागर से निकाले कुछ मोतियों की चर्चा करते हुए उन्होंने
मुक्त मन से मन्त्रणा करके फैसला दिया हिंदी का समापन गीत समापन को उतनी ऊंचाइयां नहीं दे पा रहा जितनी अपेक्षित है। उन्होंने मेरा अभिमत जानना चाहा। सच तो यह है कि मैं भी महसूस कर रहा था कि उनके गीत-ग़ज़ल पाठ पर सुधी श्रोतागण जिस उल्लास और ऊर्जा के साथ अपनी अन्तस् खुशी प्रकट करते थे इस गीत पर वह किंचित कमजोर पड़ जाती थी। मैं इस पर पहले ही चिंतन कर चुका था पर मेरे संकोच ने मुझे जकड़ रखा था इसलिए मैं कह नहीं पाया।
      उन्होंने मेरी दोनों हथेलियां अपने हाथों में लीं तो उनकी स्नेहिल ऊष्मा से मेरा संकोच पिघल गया। मैंने प्रस्ताव रखा कि क्यों न आप समापन ' सबकी बात न माना कर ' गीत से करें। उन्होंने सहमति दी और फिर उस दिन समापन इसी गीत से किया। इस गीत की प्रस्तुति पर श्रोताओं का उल्लास ऐसा बिखरा की हम सभी मंत्रमुग्ध थे। गीत की अंतिम पंक्ति  " दुनिया बहुत सुहानी है इसको और सुहाना कर " तक पहुंचते पहुंचते प्रेक्षागार
के सभी श्रोताओं ने खड़े होकर विपुल तालियों के साथ कुँवर जी के स्वर से समवेत स्वर मिलाते हुए अभिनन्दन किया तो मैं हिंदी कविता की सामर्थ्य पर धन्य धन्य हो गया। यह सिलसिला आगे के कवि सम्मेलनों में भी चलता रहा। वे पल याद करता हूँ तो अन्तस में वही तालियां गूंज उठती हैं।
     
सच यह है कि डॉ कुँअर बेचैन ने हिंदी ग़ज़ल को स्थापित करने के लिए ग़ज़ल के मान्य शिल्प का पूर्ण निर्वहन करते हुए उसमें गीतात्मकता, गीत के विम्ब विधान, प्रस्तुति कला और रागात्मक भाषा को प्रतिष्ठापित किया है वह अलग से शोध का विषय हो सकता है। बाद में उन्होंने ही बताया कि ' सबकी बात न माना कर' ग़ज़ल ही थी जिसे उन्होंने बाद में गीत बनाया।
    इस यात्रा में उनके कुछ प्रसंशकों की प्रशंसा का अंदाज ही अलग मिला। मुझे शहर तो नहीं याद है पर याद है कि एक काव्यप्रेमी कार्यक्रम समाप्त होने पर कुँअर जी समीप आ कर बोले, तो बेचैन साहब जी"झूले पर उसका नाम लिखा और झूला दिया।" एक अन्य व्यक्ति ने दो उंगलियां उठा कर कहा," आती जाती सांसे दो सहेलियां हैं, वाह क्या गज़ब की बात कही। " एक महिला ने यूँ तारीफ की, डॉक्टर साहब" नदी बोली समंदर से में तेरे पास आई हूं, मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ," की नदी को साथ नहीं लाये। मैंने देखा कुँअर जी ऐसे क्षणों में बस किसी मासूम बच्चे की तरह मुस्करा देते।
 
   

विस्मित करने वाली रेखांकन कला


  डॉ कुँअर बेचैन जी की रेखाचित्र बनाने की कला में भी सिद्धहस्त थे। इस कला प्रत्यक्ष प्रदर्शन इसी अमेरिका यात्रा में देखने को मिला। 8 अप्रैल 2013 को हम लोग सिद्ध प्रसिद्ध कथाकार दीदी सुधा ओम ढींगरा के आतिथ्य में उनके शहर राले नार्थ कैरोलिना पहुंचे। हमें दो दिन इसी शहर में रहना था। इसी शहर में मेरा चचेरा भाई संकल्प अवस्थी है। हम लोग खाली दिन संकल्प के बुलावे पर उनके आवास पर गए। कुंअर जी कुछ ही समय में संकल्प , किरण (पत्नी) व उनकी बेटी (अपेक्षा) व बेटे (अथर्व) के संग आत्मीयता के साथ ऐसे घुलमिल गए कि मानों लंबे अर्से से परिचित हों। उन्होंने बेटी की कापी पर अपने पेन से आड़ी तिरछी रेखाएं खींच कर एक चित्र  उंकेरा और उस पर सुंदर हस्तलेख में तुरन्त रचा हुआ एक दोहा - (किरन,अपेक्षा,और नव प्रिय संकल्प अथर्व।यू.यस. में इनसे मिले, हुआ हमें अति गर्व) लिखा और कलात्मक हरस्ताक्षर करके  मुझसे व दीपक गुप्ता से भी हस्ताक्षर कर आशीर्वाद स्वरूप  बच्चों को थमा दिया। रेखांकन में  मुस्कराते हुए  चार चेहरे बने हुए थे। उनकी इस रेखांकन कला को देख कर हम सभी आश्चर्यचकित रह गए।
  

 

मॉरीशस में मस्ती

डॉ कुँअर बेचैन के सानिध्य में मेरी दूसरी विदेश यात्रा विश्व हिंदी सम्मेलन, मॉरीशस (18 से 20 अगस्त 2020) की हुई।संयोग से समुद्र तट के बहुत करीब बने खूबसूरत होटल हैल्टन में मेरा और डॉक्टर साहब का कमरा आमने सामने था। हम  साथ साथ ही जाते। उस दिन मैं तैयार होने के लिए पैन्ट, शर्ट, सदरी, रुमाल, व प्रयोग किये मोजे बेड पर इधर उधर फेंक कर अभी बाथरूम में घुस ही रहा था कि समय के बेहद पाबंद कुंअर जी रूम में मुझे बुलाने आ गए। बोले, ' अरे अभी तैयार नहीं हुए?' मैं ' सिर्फ दो मिनट' कह कर बाथरूम में घुस गया। दो मिनट में लौटा तो देखा कि कुँअर जी मेरी खुली अटैची से मेरे लिए अपनी पसंद की पोशाक निकाल चुके थे। मैने उनके द्वारा चयनित पोशाक पहनी। उन्होंने तुरंत मोबाइल से एक फोटो क्लिक किया।
मुझे अपनी अस्त व्यस्तता पर खुद से शर्मिंदगी हुई। मैने उस दिन समय का पाबंद रहना सीखा।वहाँ हम लोगों ने उनके साथ खूब आनंद उठाया।


मेरा पहला कवि सम्मेलन कुँअर जी के सानिध्य में...


यह सुखद संयोग है कि काव्य साहित्य की वाचिक परम्परा कवि सम्मेलन से जिस कार्यक्रम से मेरा परिचय हुआ, वही मेरा पहला कवि सम्मेलन बना जिसमे मैने काव्यपाठ किया। सुखद है कि पहले ही कवि सम्मेलन में मुझे डॉ कुंअर बेचैन जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। जहां तक मुझे स्मरण है कि सितंबर 1979 में कानपुर में गीतकार श्री शिव कुमार सिंह कुँवर के संयोजन में रोडवेज वर्कशाप में कवि सम्मेलन हुआ था जिसका सन्चालन श्री उमाकांत मालवीय जी कर रहे थे। मैं पहली बार कवि सम्मेलन सुन रहा था। मैंने साथ बैठे मित्र अनुपम निगम से कहा कि जैसे ये लोग कविता पढ़ रहे हैं, मैं भी पढ़ सकता हूँ। उन्होंने मेरा नाम आयोजक मंडल के पास भेज दिया। चमत्कार हुआ और दूसरे चक्र में डॉ कुँअर बेचैन के बाद मुझे बुलाया गया। चूंकि मैं उन दिनों रामलीला में वाणासुर का पाठ करता था और कविताएं लिखा करता था, इसलिए मुझे मंच व माइक का भय नहीं था। मैंने उन दिनों स्वतंत्रता दिवस पर कविता लिखी थी। वही कविता मैने पूरे तेवर के साथ प्रस्तुत की। खूब वाह वाह हुई। कार्यक्रम खत्म होने पर जिस कवि ने सबसे पहले मुझे नोटिस में लेकर पीठ थपथपाई वह कुँअर जी थे। सिर पर रखा उनका आशीर्वाद का हाथ मैं अभी भी महसूस करता हूँ। ' मानस मंच ', राष्ट्रीय पुस्तक मेला, दैनिक जागरण के कवि सम्मेलनों, लाल किला, देश के कई शहरों सहित तमाम कवि सम्मेलनों व पुस्तक लोकार्पण समारोहों में उनके साथ मंच साझा करने के पुण्य अवसर मिले। मानस मंच,कानपुर के आयोजन में उन्होंने मेरे आग्रह पर सम्मान भी स्वीकार किया।डॉ कुअँर बेचैन ने एक अन्य आत्मीय यात्रा में बताया कि बचपन में ही माता पिता को खो देने के बाद बड़ी बहन के संरक्षण व निर्देशन मे उन्होंने कितने संघर्षों से इस मुकाम तक पहुंचा हूं। मैंने सीखा कि साधन ' से नहीं 'साधना' से मिलती है सफलता।

आज भी प्रेरणा देता है मेरे जन्मदिन पर लिखा प्रत्येक शब्द 


डॉ कुँअर बेचैन ने अमेरिका यात्रा के बाद मेरे जन्मदिन 15 फरवरी को उन्होंने मेरे लिए जो लिखा उसका शब्द शब्द में स्नेह से पगा हुआ और प्रेरक है...
"आज प्रसिद्ध पत्रकार, कवि,संचालक , संयोजक एवं चिंतक डॉ. सुरेश अवस्थी जी का जन्मदिन है। उन्हें जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं । सुरेश जी के साथ मुझे कई कविसम्मेलनों में जाने का अवसर मिला। विशेष रूप से उस यात्रा का ज़िक्र करना चाहूंगा जो अमेरिका की यात्रा थी। अमेरिका के 18 नगरों में हम लोगों का काव्य-पाठ था। कहा जाता है कि अगर किसी के स्वभाव की मूल प्रवृति की पहचान करनी हो तो उसके साथ कुछ दिनों यात्रा करो। डॉ. सुरेश ने इस यात्रा के दौरान जिस आत्मीयता का परिचय दिया, जितना मेरा ध्यान रखा,  जितना मुझे प्रेम और सम्मान दिया वह अविस्मरणीय है। उनकी प्रबंधन-क्षमता भी अनुकरणीय है।
      मैं उनके जन्मदिन के सुअवसर पर उनके उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करता हूँ। वे दीर्घजीवी हों। - कुँअर बेचैन


काश! उनके हाथों में सौंप पाता पुस्तकें...

डॉ कुंअर बेचैन जी ने मेरे ग़ज़ल संग्रह " दीवारें सुन रही हैं" व दोहा संग्रह " बन कर खिलो गुलाब " में मेरी रचनाधर्मिता पर उदारतापूर्वक आलेख लिखे। कोरोना महामारी के चलते ये दोनों पुस्तकें समय पर न आ सकीं। अब जब कि दोनों पुस्तकें आ गईं हैं तो जीवन भर मलाल रहेगा कि काश! मैं ये पुस्तकें उनके हाथों में सौंप पाता?
  

 शिष्यों की लंबी सूची

डॉ  बेचैन जी के रचनाधर्मी शिष्यों की लंबी सूची है। उन्हीं में से एक गीतकार ग़ज़लकार मेरे अनुजवत डॉ दुर्गेश अवस्थी हैं । उन्होंने कई बार अपने गुरुदेव डॉ कुँअर जी के गुरुत्वभाव, सदाशयता, स्नेह , उदारता, सहयोग आदि की मुझसे कई बार चर्चा की। मुझे याद है कि जब मैंने डॉ दुर्गेश को मानस मंच, कानपुर के कवि सम्मेलन में आमंत्रित किया तो उन्होंने काव्यपाठ से पूर्व अपने गुरुदेव का स्मरण करके उनकी ही पंक्तियों से उन्हें प्रणाम किया और फिर अपनी रचनाएं पढ़ीं। उनके महाप्रस्थान से बेहद भावुक व दुखी दुर्गेश जी ने बताया कि हाल ही में डॉ बेचैन जी ने उनकी पुस्तक की भूमिका लिखी है। उनके द्वारा लिखी यह भूमिका अंतिम भूमिका है। जाते जाते वह मुझे आशीर्वाद का महाप्रसाद दे गए। उनके प्रति वह जीवनपर्यंत ऋणी रहेंगे।
    

मेरा मानना है कि कालजयी रचनाओं के रचनाकार देह से भले ही हमारे बीच से चले जाएं पर अपनी रचनाओं से हमेशा रहते हैं क्योंकि उनकी मृत्यु नहीं होती, रूपांतरण होता है। डॉ कुंअर बेचैन अपने प्रसंशकों व अपने दुर्गेश जी जैसे प्रतिभासंपन्न शिष्यों में रूपांतरित हुए हैं।इसलिए अनन्त स्मृतियां, अपार स्नेह, अप्रतिम रचनाधर्मिता, आनंदकारी प्रस्तुति, अभिभूत करने वाली लोकप्रियता, अद्भुत शालीनता, अपार बड़प्पन, अक्षुण्य धैर्य, अभूतपूर्व वाणी संयम, अलौकिक रागात्मकता, अमर काव्य साधना, अगम सकारात्मकता व अनन्तिम सौहार्द्र ।

✍️ डॉ.सुरेश अवस्थी    
117/L / 233 नवीन नगर
कानपुर.208925
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9336123032,      9532834750    
मेल::::: drsureshawasthi@gmail.com

बुधवार, 12 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के मूल निवासी साहित्यकार स्मृति शेष डॉ कुंअर बेचैन के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित दिल्ली के साहित्यकार डॉ हरीश नवल का सारगर्भित आलेख ...... रोशन रहेंगे शब्द जिनके


'ये दुनिया सूखी मिट्टी है 

तू प्यार के छींटे देता चल।'

कम शब्दों में इतनी बड़ी बात कहने वाले डॉ. कुंअर बेचैन एक बड़े साहित्यकार तो थे ही, एक बड़े इंसान भी थे। सदा मुस्कराते रहने वाले डॉ. कुंअर भीतर से कितने बेचैन थे, यह केवल वे ही जानते थे। उनके जीवन के संघर्ष उन्हें बहुत बड़ा कवि हृदय दे सके थे। उनके गीत उनके सामाजिक सरोकारों के दर्पण हैं। मेरा सौभाग्य मुझे उनका साथ लगभग पैंतीस वर्ष मिला, यद्यपि एक श्रोता के रूप में मैंने उन्हें पचास साल से अधिक सुना।

     सन् 1985 की गर्मियों में अचानक मेरी मुलाक़ात बेचैन जी से मंसूरी के नीलम रेस्टोरेंट में हो गई जहाँ के परांठे बहुत प्रसिद्ध थे । परांठों के साथ-साथ डॉ बेचैन से गीत, अगीत, प्रगीत और नवगीत पर जानदार चर्चा हुई। हम दोनों ही हिंदी प्राध्यापक थे और अन्य विषयों के अलावा काव्यशास्त्र भी पढ़ाते थे। तब नवगीत नया-नया ही था। उसके विषय में डॉ बेचैन से कुछ नवीन व्याख्याएँ सौगात के रूप में मुझे मिलीं। रेस्टोरेंट से हम दोनों की विदाई एक बहुत अच्छे सूक्त वाक्य से हुई, जब उन्होंने कहा – “नीलम किसी किसी को सूट करता है पर आज यह हम दोनों को कर गया।"

      डॉ. बेचैन से संक्षिप्त मिलाप प्रायः कवि सम्मेलनों के आरंभ होने से पहले अथवा समापन के बाद मिलता था, जब वे औरों से भी घिरे होते थे। हाँ गोष्ठियों में भले ही कम मिलना होता था किंतु भरपूर होता था। विशेषकर लखनऊ के माध्यम गोष्ठियों में रहना, खाना-पीना साथ होता था। दिल्ली के हंसराज कॉलेज में उन्हें खूब बुलाया जाता था। वहाँ के आयोजक डॉ प्रभात कुमार मुझे हिंदू कॉलेज से बेचैन जी से मिलने के लिए आमंत्रित किया करते थे। प्रभात जी से भी उनकी बहुत बनती थी। डॉ बेचैन गुणग्राहक थे और प्रभात जी की सैन्स ऑफ ह्यूमर के प्रशंसक थे जिस कारण हम तीनों की हँसी दूर-दूर तक गुंज जाती थी। एक दिन मैं और डॉ प्रभात, डॉ. बेचैन के घर गाजियाबाद गए। ट्राफियों, सम्मान पत्रकों और केभाभी जी की गरिमा से भरा घर मेरे मन में घर कर गया। उसके बाद मैं अपनी पत्नी स्नेह सुधा के साथ दो बार गाजियाबाद गया। स्नेह सुधा चित्रकार हैं और कविता भी लिखती हैं यह बात कुंअर जी को बहुत भाती थी। वे स्वयं एक बड़े चित्रकार थे जिनके रेखाचित्रों की धूम सर्वत्र है। प्रियजन को अपनी पुस्तक भेंटते हुए वे एक अद्भुत रेखाचित्र क्षण भर में उस पर बना देते थे। मेरे पास भी उनकी कविता और चित्रकला के बहुत से संग्रहणीय साक्षी हैं।

      मैंने एक बार डॉ० बेचैन से मेरे कॉलेज में हो रहे कवि सम्मेलन हेतु अनुरोध किया। वे बोले, "हिंदू कॉलेज में बुला रहे हो तो मुझे कवि सम्मेलन की जगह साहित्यिक संगोष्ठी में बुलाओ, कविताएँ तो मैं सुनाता ही रहता हूँ मुझसे किसी साहित्यिक विषय पर चर्चा करवाओ।" अवसर की बात है कि लगभग एक महीने बाद ही हिंदू कॉलेज में तीन दिवसीय गोष्ठी हुई जिसमें एक दिन डॉ० बेचैन के नाम हुआ वे 'साहित्य के प्रदेय' विषय पर बोले और बहुत प्रभावी बोले जिसमें विद्यार्थियों द्वारा पूछे गए प्रश्नों के भी उन्होंने सम्यक् उत्तर दिए। विद्यार्थी बहुत ख़ुश हुए और समापन के बाद उनसे आटोग्राफ लेने के लिए भीड़ में बदल गए। डॉ. साहब ने सभी को अपने हस्ताक्षर के साथ-साथ संदेश भी दिए। मैंने पाया कि विद्यार्थियों से भी अधिक प्रसन्न हुए और संतुष्ट कुंअर जी स्वयं थे क्योंकि उन्हें अपने मन की बातें कहने का भरपूर अवसर मिला था, ऐसा उन्होंने मुझे बताया ।

   ग़ज़ल के व्याकरण संबंधित भी उनकी पुस्तक और उनकी एक पत्रिका के दो अंक मेरे पास है। दुष्यंत कुमार के बाद मेरी समझ से डॉ बेचैन ने निरंतर हिंदी ग़ज़ल को विकसित और प्रसारित किया। उनके काव्य अवदान में जहाँ नौ गीत संग्रह है वहीं ग़ज़ल के पंद्रह संग्रह हैं। कविता की अन्य शैलियों में उनके दो कविता संग्रह, एक हाइकु संग्रह एक दोहा संग्रह और एक महाकाव्य भी है। उन्होंने दो उपन्यास भी लिखे जिनमें जी हाँ मैं ग़ज़ल हूँ मेरी पुस्तक संपदा में है। अत्यंत सरस शैली में डॉ. बेचैन ने मिर्ज़ा ग़ालिब की कथा लिखी है जिसमें गजल का मानवीकरण किया है। बेमिसाल है यह उपन्यास |

        जब मैं 'गगनांचल' का संपादन कर रहा था, मैंने बेचैन जी से एक विशेष अंक के लिए उनकी तीन गजलें मांगी जिसपर उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि 'गगलांचल में उनके संस्मरण छपें ताकि विदेश में भी पता चले कि मैं गद्य भी लिखता हूँ। मैंने सहर्ष दो कड़ियों में उनसे संस्मरण लिए जिनमें से जब एक प्रकाशित हुआ इसकी प्रशंसा में बहुत से पाठकों के पत्र आए, उनमें से अधिकतर नहीं जानते थे कि कुंअर जी गद्य भी लिखते हैं। इस संस्मरण का शीर्षक था 'मैं जब शायर बना' इसमें उन्होंने अपने कॉलेज की एक फैन्सी ड्रैस प्रतियोगिता का जिक्र किया था जिसमें वे शायर बने थे और वे अपने घर से ही एक शायर के गेटअप में पान चबाते दाढ़ी लगाए, सिगरेट का धुआँ उड़ाते, छड़ी लिए सभागार में संयोजक के पास पहुँचे और उन्होंने कुंअर जी को सम्मान देते हुए अपने साथ बिठा लिया और कहा कि मुशायरा तो रात आठ बजे से है अभी तो फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता चल रही है, आप प्रतियोगिता देखिए आपका नाम जान सकता हूँ। कुंअर जी ने बड़े आत्मविश्वास के साथ कहा, "जनाब मुझे कासिम अमरोहिणी कहते है सीधे अमरोहा से ही आ रहा हूँ, गजलें और नज्में कहता हूँ ।

      फैन्सी ड्रेस प्रतियोगिता समाप्त हुई तीन पुरस्कार दिए गए। प्रोग्राम समाप्त होने वाला था कि कुंअर जी ने संयोजक से कहा कि मैं कुछ कहना चाहता हूँ। संयोजक ने घोषणा कर दी कि आदरणीय कासिम अमरोहवी साहब इस प्रतियोगिता के बारे में अपने विचार रखना चाहते है। कुंअर जी ने माइक संभाला और प्रतियोगिता की सराहना करते हुए कहा कि आपने गौर नहीं किया कि एक शख्स और भी है जिसने फैन्सी ड्रेस में हिस्सा लिया लेकिन उसे नज़रअंदाज़ कर दिया गया। यह कहकर उन्होंने अपनी दाढ़ी मूंछे हटा दी। वे पहचान लिए गए और निर्णय बदला गया। ज़ाहिर है उन्हें प्रथम घोषित किया गया।

    डॉ. बेचैन की आदत थी जो मेरी भी थी कि गोष्ठियों में हम दोनों नोट्स लेते थे। मैं उन्हें बोलने के बाद नष्ट कर देता था लेकिन डॉ. बेचैन उन्हें फाइल में रखते थे। उन्होंने पाँच हजार से ज्यादा कवि सम्मेलनों में भाग लिया था। इन नोट्स में कवि सम्मेलन का इतिहास अंकित है जिनके आधार पर उन्होंने दो हज़ार पृष्ठ खुद ही टाइप कर लिए थे। संभवतः आने वाले किसी समय उनकी कवि सम्मेलन महागाथा एक ग्रंथ के रूप में प्रकट हो जाए।

    बहुत सी और भी यादें उनसे जुड़ी हुई हैं। 22 दिसंबर, 2013 डॉ. बेचैन को हिंदी भवन में संवेदना सम्मान प्रदान करने के लिए हिंदी भवन में एक समारोह हुआ जिसकी अध्यक्षता श्री बालस्वरूप राही की थी। लक्ष्मीशंकर वाजपेयी, कृष्ण मित्र, मंगल नसीम और प्रवीण शुक्ल के वक्तव्य थे और मुझे मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया गया था। जब अन्यों के भाषण चल रहे थे, डॉ. बेचैन ने मुझे पर्ची पर लिखकर आदेशात्मक आग्रह किया कि मैं जब बोलूं तो केवल उनके काव्य कर्म का ही विश्लेषण करूँ। मैंने ऐसा ही किया था जिससे डॉ. बेचैन बहुत प्रसन्न और संतुष्ट हुए। उनका कहना था कि प्रायः वक्ता 'कुंअर बेचैन' पर बोलते हैं, कुंअर बेचैन' के काव्य कर्म पर नहीं।

      मुझे उनका एक ऐसा संस्मरण ध्यान आ रहा है जिसमें उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के अनेक आयाम उद्घाटित हुए थे। दिसंबर 2008 में जापान में उर्दू, हिंदी पढ़ाने के सौ वर्ष मनाए गए थे, जिसमें जापान भारत और पाकिस्तान के कवियों का सम्मेलन भी था जिसमें कुंअर बेचैन जी को अध्यक्षता करनी थी। मुझ सहित पाँच प्रतिभागी और थे। पाकिस्तान के दल ने हम भारतीयों की अवहेलना करते हुए बड़ी निर्लज्जता से घोषित अध्यक्ष के स्थान पर पाकिस्तान के तहसीन फिराकी को अध्यक्ष पद पर बैठा दिया। मैंने विरोध में खड़े होकर कुछ कहना चाहा, तो बेचैन ने मेरा हाथ पकड़ मुझे बिठा दिया और बोले, “उन्हें मनमानी करने दो औक़ात पद से नहीं प्रतिभा से जानी जाती है। कुछ न कहो।" मैं चुप होकर बैठ गया। पाकिस्तान के दल ने कवि सम्मेलन के संचालन का दायित्व भी स्वयं हथिया लिया। सम्मेलन आरंभ हुआ पहले पाकिस्तान के कवियों ने अपना रचना पाठ किया, फिर भारत की बारी आई। एक-एक कर सुरेश ऋतुपर्ण, हरजिन्दर चौधरी, लालित्य ललित और मैंने कविताएँ प्रस्तुत की। समापन कवि के रूप में कुंअर बेचैन ने एक ग़ज़ल और एक कविता प्रस्तुत की और बैठने लगे, लेकिन श्रोताओं ने जिनमें पाकिस्तान के कवि भी थे उन्हें बैठने न दिया और एक-एक कर डॉ० बेचैन जी की अनेक रचनाएँ सुनी। सभी उपस्थित जन देर तक खड़े होकर तालियाँ बजाते रहे। पाकिस्तानी दल भी तालियाँ पीट रहा था। अब अध्यक्ष जनाब हसीन फिराकी का उद्बोधन था जिसमें उन्होंने कहा कि वे बहुत शर्मिन्दा हैं कि उनके देश की कविता अभी तक इश्क, हुसन और जुल्फों में ही अटकी हुई है और भारत की कविता ग़रीबी, माँ-पिता, नदी, पेड़ पत्तियाँ और इंसानियत जैसे विषयों को अनेक अर्थ देकर समेटती है; विशेषकर कुंअर बेचैन साहब की रचनाएँ। उन्होंने भी बाकायदा नोट्स बना रखे थे और कुंअर जी की कविताओं को बहुत से उदाहरण देते हुए उनका यशोगान किया।

      बात यहीं नहीं रुकी पाकिस्तान ने डॉ० कुंअर बेचैन का अभिनंदन करने के लिए टोक्यो के एक पाँच तारा होटल में अभिनंदन समारोह और भव्य डिनर आयोजित किया। कुंअर जी के कारण उनके साथ-साथ हम भारतीय साहित्यकारों का ही नहीं अपितु पूरे भारत का अभिनंदन हुआ। कुंअर बेचैन जी का मानना था कि 'शब्द एक लालटेन' है जिसे आप अपने हाथ में लेकर अँधेरा दूर करते चल सकते हो। उन्होंने जीवन भर इस लालटेन को थामे रखा और उनके शब्दों की लालटेन ऐसी है जो कभी भी बुझेगी नहीं, रोशनी देती रहेगी।


✍️ डॉ हरीश नवल

65 साक्षरा अपार्टमेंटस, ए-3 पश्चिम विहार

नई दिल्ली-110063 

मोबाइल फोन नंबर 9818999225 

मेल ::: harishnaval@gmail.com


शनिवार, 8 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार का गीत ....काल चक्र की कलई खोलते /जाने अजाने खत


यादों की गठरी से निकले

फटे पुराने खत

काल चक्र की कलई खोलते

जाने अजाने खत 


दादी बाबा को हर दिन

पिसते ही देखा

पिता जी के बलिदानों का

छुट पुट सा लेखा

दर्द छुपाने की कैसी है

मां को जाने लत 


मर्यादा के मकड़जाल में

बहिना का यौवन

दफ्तर दफ्तर ऐड़ी घिसता

भैया का जीवन

बरसातों में अक्सर रोती

बिना बहाने छत


यादों की गठरी से निकले

फटे पुराने खत

काल चक्र की कलई खोलते

जाने अजाने खत


✍️  डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार जिया जमीर का आलेख ....सिर्फ शराब और शबाब के शायर नहीं हैं जिगर मुरादाबादी । यह आलेख उन्होंने अल्फाज़ अपने फाउंडेशन की ओर से रविवार 26 फरवरी 2023 को आयोजित कार्यक्रम जिक्र ए जिगर में प्रस्तुत किया था ।

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मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की लघुकथा ......सच


संस्था के मुखिया के साथ दुर्व्यवहार होता रहा और किसी को पता तक नहीं कैसे गैर जिम्मेदार लोग हो ....... देखा नहीं तो सुना तो होगा कान तो खुले होंगे ......। "जांच अधिकारी ने सवाल किया ...."।                                                    मैं भी औरों की तरह  मुंह लटकाए गूंगा बहरा बना रहा क्योंकि सच बोलना उस समय किसी गुनाह से कम न था ।                                                                               मन करता है साले सबको सस्पैंड करूं ........ताकि लापरवाही करना भूल जाएं।अधिकारी बड़बड़ाते हुए चला गया और सच अब भी कही दबा पड़ा था ।


✍️ डॉ प्रीति  हुंकार 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की लघुकथा.....सफाई


 गंगा  के स्वच्छता अभियान के सफलतापूर्वक पूर्ण होने के उपलक्ष्य में एक भव्य आयोजन चल रहा था।

"सबसे पहले सफाई अभियान की पूरी टीम को बहुत बहुत बधाई। अब ये हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम गंगा को स्वच्छ बनाए रखें।"नेताजी ने इन शब्दों के साथ अपना भाषण समाप्त किया और गंगा में स्नान करने की इच्छा जताई। 

 उनकी इस इच्छा को जानकर,सफाई टीम में खुसर फुसर शुरू हो गई । "बड़ी मुश्किल से तो गंगा साफ हुई है ......."


✍️डॉ पुनीत कुमार

T 2/505 आकाश रेजीडेंसी

आदर्श कॉलोनी रोड

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विश्नोई की लघुकथा --मौसी का घर


  " अरे आप आ गये सरला ने अपने पति की ओर इशारा करके कहा," आपके साथ रानी भी आई है।

 रानी ने नमस्ते मौसी कह कर सम्बोधित किया।

---ठीक है ठीक है चलो आपने यह अच्छा किया, मैं काम करते - करते थक जाती हूँ यह चौक्का बर्तन कर दिया करेगी मेरा भी काम हल्का हो जायेगा," क्यों बेटी ?"

अब रानी क्या कहे वह मौसी को टेढ़ी निगाह से निहारती रही------।।

        

✍️ अशोक विश्नोई

  

मुरादाबाद के साहित्यकार नृपेंद्र शर्मा सागर की लघुकथा .... प्रायश्चित


एक सप्ताह से डॉ जगदीश प्रजापति घर नहीं लौटे थे। उनकी पत्नी शकुंतला को उनकी बहुत चिंता हो रही थी। 

 "न जाने यह सरकार क्या करके छोड़ेगी, लोग बीमारियों से मर रहे हैं और सरकार ने सारे डॉक्टरों को नसबंदी के काम में लगा रखा है। ऊपर से टार्गेट भी फिक्स कर दिए हैं, अब या तो टारगेट जितनी नसबंदी करो या फिर कार्रवाई के लिए तैयार रहो। न जाने क्या होने वाला है, मेरा मन बहुत घबरा रहा है।" शकुंतला परेशानी में खुद से ही बातें कर रही थी तभी दरवाजे पर दस्तक हुई।

 "कौन ??" शकुंतला ने दरवाजा खोलते हुए पूछा।

 दरवाजा खोलते ही जैसे उसकी साँस ही अटक गयीं। बाहर अस्पताल के दो कर्मचारी डॉ जगदीश को सहारा देकर खड़े थे। 

 "क्या हुआ उन्हें?? है ईश्वर दया करना।" शकुंतला ने अपने पति को ऐसे देखकर हाथ जोड़ते हुए कहा और उनके आने के लिए जगह छोड़कर खड़ी हो गयी।

 "क्या हुआ जी आपको? आप ऐसे कैसे आये हो, इन लोगों का सहारा लेकर?" जब अस्पताल वाले चले गए तो शकुंतला ने अपने पति के पास बैठते हुए पूछा।

 "शकुंतला! उस दिन नसबंदी के टारगेट में एक की कमी थी तो...", जगदीश जी ने धीरे से कहा।

 "हे भगवान! तो क्या आपने खुद की...? अभी तो हमारे कोई संतान भी नहीं हुई है और आपने अभी से...?" शकुंतला किसी अनहोनी की आशंका से लगभग बेहोश सी हो गयी थी।

 "संभालो खुद को शकुंतला, हमारे जैसे लाखों नौजवान हैं जिनकी संताने नहीं हैं, कितनों के तो विवाह तक भी नहीं हुए हैं और इस नसबंदी की आँधी उन्हें उजाड़ चुकी है। कितने तो मेरे ही हाथों..., बस उसी का प्रायश्चित करने के लिए मैं भी... अब मुझे इसी बहाने कुछ दिन की छुट्टी भी मिल जाएगी शकुंतला, मैं और पाप करने से बच जाऊँगा।" जगदीश जी ने कहा और दोनों की आंखों से आँसू बहने लगे।

✍️ नृपेंद्र शर्मा "सागर"

 ठाकुरद्वारा 

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद के साहित्यकार धन सिंह धनेंद्र की लघु कथा .....परीक्षाफल

       


आज प्रियांश का परीक्षाफल मिलना है। निधि  बन-संवर कर अपने पति के साथ स्कूल पहुंच गई। प्रियांश ने शुरु से एल०के०जी० और यू०के०जी० में अपनी क्लास में सर्वोच्च स्थान प्रप्त किया था। इस बार भी उसे पूर्ण विश्वास था कि  उसका प्रियांश ही क्लास में सर्वोच्च स्थान पर  होगा।

         स्कूल के खुले मंच पर पर मैडल व रिजल्ट देने के लिए प्रधानाचार्या ने जब प्रियांश की जगह किसी और बच्चे का नाम पुकारा तो निधि का चेहरा उतर  गया । तालियों की गडगडाहट उसके कानों को चुभ रही थी। इस बार स्कूल की एक अध्यापिका के बेटे ने सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था।  उसने सोचा उसका प्रियांश दूसरे नम्बर पर रह गया। लेकिन जब न तो दूसरे और न ही तीसरे नम्बर पर  प्रियांश का नाम लिया गया तब निधि ब्याकुल हो गई और रोने लगी। वह स्कूल की प्रिंसपल और क्लास टीचर को खूब भला-बुरा कहती रही। उसने पक्षपात का आरोप लगाते हुए खूब शौर मचाया। पति ने उसे किसी तरह सम्हाला। स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी। अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को लेकर जा चुके थे। निधि अभी भी कुर्सी में निढ़़ाल पडी थी। वह निराशा के सदमे से उभर नहीं पाई। उसका पति भी कम उदास और परेशान नहीं  था लेकिन उन दोनों का लाडला प्रियांश स्कूल में लगे झूले पर ऊंची-ऊंची पेंगे लगाने में मस्त था । 

✍️ धनसिंह 'धनेन्द्र'

श्रीकृष्ण कालोनी, चन्द्र नगर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की लघु कथा ... 'सच्चा सुकून '



पूरा स्कूल का हॉल विद्यार्थियों और पैरेंट्स से भरा हुआ था । बच्चे चहक रहे थे । जब रिजल्ट की घोषणा हुई तो सिया आश्चर्यचकित रह गयी अपनी बेटी दिव्या की प्रथम श्रेणी देखकर एल के जी में देखकर ।

जब सिया रिजल्ट लेने गयी तो प्रधानाचार्य ने एक माँ के रूप में उसकी बहुत प्रशंसा की । सुनकर भाव विभोर हो गयी और अतीत में खो गयी ।

"मम्मी ...मम्मी |"छोटी सी दिव्या ने तोतली जुबान से सिया की साड़ी का पल्ला पकड़कर कहा ।

"हाँ ..क्या चाहिए मेरी विटटो को ?"सिया ने दिव्या को प्रेम से गोदी में उठाकर सीने से लगाते हुए कहा ।

"जब आप ऑफिस जाती हो न ..!"

"हाँ ..हाँ बोलो क्या हुआ ?"

"तब मुझे न ....मुझे न ...आपकी बहुत याद आती है ।"नन्ही सी दिव्या ने आँखों में आँसू भरते हुए कहा ।

"बेटा आप भी तो स्कूल जाते हो न ...फिर दादी कितना प्यार करती हैं ?"सिया ने दिव्या का गाल पर ममत्व से हाथ फेरते हुए कहा ।

"पर मैं तो जल्दी आ जाती हूँ न ...फिर मैं आपका इंतजार करती रहती हूँ ।"

"दादी तो कह रहीं थीं कि आप बहुत खेलती हो मेरे जाने के बाद ।"

"खेलती तो हूँ ,मगर आपकी याद आती है । आप ऑफिस मत जाया करो प्लीज ।"नन्ही दिव्या ने मम्मी के दोनो गालों को अपनी छोटी -छोटी हथेलिओं से पकड़ते हुए कहा ।

सिया ने दिव्या को सीने से चिपका लिया और प्रण किया कि जब तक दिव्या थोड़ी बड़ी नहीं हो जाती वह ऑफिस नहीं जायेगी । सारा वक्त बेटी के साथ बिताएगी अपनी आत्मिक संतुष्टि और बेटी के विकास के लिए ।

"मम्मी घर चलो न ।"दिव्या ने माँ का हाथ हिलाया 

सिया बेटी की  ट्रॉफी  पाकर आज बहुत ही अच्छा महसूस कर रही थी । ऐसी खुशी उसको कभी महसूस नहीं हुई ।

✍️राशि सिंह 

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


सोमवार, 3 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार ओंकार सिंह ओंकार की ग़ज़ल .....कुछ लोग जमाने को बदलने नहीं देते ....

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मुरादाबाद के साहित्यकार राजीव सक्सेना की रचना .... खुल गई नकलीपन की पोल ....

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मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम की ग़ज़ल ...ठहाके मौन हैं गायब हंसी है

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मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम की ओर से 2 अप्रैल 2023 को काव्य-गोष्ठी का आयोजन

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था हिन्दी साहित्य संगम के तत्वावधान में मिलन विहार स्थित आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कॉलेज में रविवार दो अप्रैल 2023 को मासिक काव्य-गोष्ठी का आयोजन किया गया।  राजीव प्रखर द्वारा प्रस्तुत माँ शारदे की वंदना से आरंभ  एवं उनके संचालन में हुए इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए रामदत्त द्विवेदी ने कहा....

 दृष्टिकोण यदि खुद का बदले, तो सब बदला हुआ मिलेगा।

जिस रंग का चश्मा पहनेंगे, बाहर वह ही रंग दिखेगा।

     मुख्य अतिथि अशोक विश्नोई ने कहा .....

मन में सुन्दर स्वप्न सजाएं। 

हर असमंजस दूर भगाएं।

घोर निराशा के तम में सब,

आओ! आशा दीप जलाएं।

       विशिष्ट अतिथि राजीव सक्सेना ने सामाजिक विषमता पर कड़ा प्रहार करते हुए कहा - 

सीपी बनने की कोशिश में

 टूट गये घोंघों के खोल 

खुल गयी नकलीपन की पोल

     विशिष्ट अतिथि ओंकार सिंह ओंकार ने कहा - 

नफ़रत को मुहब्बत में बदलने नहीं देते। 

हैं कौन जो दुनिया को संभलने नहीं देते। 

लोगों ने बिछाए हैं हर इक राह में कांटे,

बेख़ौफ़ मुसाफिर को जो चलने नहीं देते।। 

        राजीव प्रखर अपनी इन पंक्तियों के माध्यम से सभी को बचपन की ओर ले गये - 

दूर सभी झगड़ों से देखो, बचपन कितना प्यारा है। 

भीतर इसके कल-कल करती, मृदु भावों की धारा है।

 तेरा-मेरा-इसका-उसका, यह बेचारा क्या जाने।

 इसकी निश्छलता से पुलकित, हर घर-ऑंगन-द्वारा है।

        रामेश्वर प्रसाद वशिष्ठ ने कहा - 

एक ऋण ही मिला, जन्म के नाम पर। 

हर हवेली चढ़ी है, आज नीलाम पर।।

      अशोक विद्रोही ने कहा -

 न कोई दौलतें चाहूं, न कोई शोहरतें चाहूं।

मुझे प्राणों से प्यारा है, वतन के गीत मैं गाऊं।। 

डॉ मनोज रस्तोगी अपने व्यंग्यात्मक अंदाज़ चहके -

 जैसे तैसे बीत गए पांच साल रे भैया। 

फिर लगा बिछने वादों का जाल रे भैया। 

आवाज में भरी मिठास, चेहरे पर मासूमियत

भेड़ियों ने पहनी गाय की खाल रे भैया।

 नकुल त्यागी ने कहा -

 सभी भारत के वासी जो सब आपस में भाई हैं। 

मजहब धर्म और जात बिरादरी हमने ही तो बनाई है।

 योगेन्द्र वर्मा व्योम की रचना ने भी सभी के हृदय को स्पर्श किया -

न जाने किस भँवर में ज़िन्दगी है।

ठहाके मौन हैं ग़ायब हँसी है।

दुआएँ अब असर करती नहीं क्यों, 

हमारी ही कहीं कोई कमी है।

 मनोज मनु ने श्रीराम से प्रार्थना करते हुए कहा - 

श्री राम दयालु दया करिए हरिए हर दोष हमारा प्रभो ,

भव कूप तमो पसरो हिय में हरिए तम घोर हमारा प्रभो

जितेन्द्र कुमार जौली ने हिन्दी को नमन किया - 

मेरा भारत देश महान, जय हिन्दी, जय हिन्दुस्तान।

 हम सब हैं इसकी संतान, जय हिन्दी, जय हिन्दुस्तान। 

     दुष्यंत बाबा की अभिव्यक्ति इस प्रकार रही - 

सैनिक लड़ता सीमाओ पर, प्रिया का यौवन  जाता है करती करुण विलाप ममता, आँचल सूना हो जाता है। 

इंजीनियर राशिद हुसैन बोले -

 हां मैं इंसान हूॅं, मैं परेशान हूॅं। 

ज़िन्दगी तुझे देखकर हैरान हूॅं।

 पदम 'बेचैन' ने संदेश दिया - 

कहा कहियों  ऐसो नर परे जो वियोग में। 

योग में हो ध्यान मग्न, कृष्ण लग्यो रट है।। 

संस्था अध्यक्ष रामदत्त द्विवेदी द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।




















:::::::प्रस्तुति;;;;;;

जितेंद्र कुमार जौली

महा सचिव

हिन्दी साहित्य संगम

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


रविवार, 2 अप्रैल 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष विजय त्यागी की ग़ज़ल.....मेरी तस्वीरों का चेहरा अक्सर ऐसा हो जाता है, जैसे कोई भूखा बच्चा रोते-रोते सो जाता है

 


मेरी तस्वीरों का चेहरा अक्सर ऐसा हो जाता है 

जैसे कोई भूखा बच्चा रोते-रोते सो जाता है


भोले पंछी लिख जाते हैं जिन पत्तों पर पते-ठिकाने वैरी सावन उन पत्तों को सांझ सवेरे धो जाता है


बर्फीली खामोश फिज़ा में तेरी आँखों का सन्नाटा

किसी परिन्दे की आहट से गहरी झील में खो जाता है।


मिट जाती हैं सब तहरीरें, धुंधला जाते हैं सब चेहरे जब भी कोई गम का सावन दिल का महमां हो जाता है। 


ऊँचे पेड़ों की बांहों में बांहें सोच समझकर डालो

पत्थर पर गिरने से शीशा टुकड़े-टुकड़े हो जाता है


✍️ विजय त्यागी