यादों की गठरी से निकले
फटे पुराने खत
काल चक्र की कलई खोलते
जाने अजाने खत
दादी बाबा को हर दिन
पिसते ही देखा
पिता जी के बलिदानों का
छुट पुट सा लेखा
दर्द छुपाने की कैसी है
मां को जाने लत
मर्यादा के मकड़जाल में
बहिना का यौवन
दफ्तर दफ्तर ऐड़ी घिसता
भैया का जीवन
बरसातों में अक्सर रोती
बिना बहाने छत
यादों की गठरी से निकले
फटे पुराने खत
काल चक्र की कलई खोलते
जाने अजाने खत
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T 2/505 आकाश रेजीडेंसी
मुरादाबाद 244001
M 9837189600
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