बुधवार, 19 अप्रैल 2023

मुरादाबाद जनपद के ठाकुरद्वारा की साहित्यकार चक्षिमा भारद्वाज ’ खुशी’ की लघु कथा ...... टूटे टुकड़े



 "अरे रामरती तेरी बहु ने ये नई गगरी फोड़ दी तूने उसे कुछ कहा क्यों नहीं?" हिरादेई ने कुएँ पर मटकी टूटने के बाद बहु के नई मटकी लेने जाते ही पीछे से कहा।

 "क्या मटकी के ये टुकड़े जुड़ सकते हैं हिरा?" रामरती ने उल्टा हिरादेई से सवाल कर दिया।

 "नहीं तो! टूटी हुई चीजें भी भला कभी जुड़ती हैं।" हिरादेई ने मुँह बनाकर कहा।

 "तो फिर इस मिट्टी की मटकी के टूट जाने पर मैं अपनी बहू को खरी-खोटी सुनकर उससे अपने रिश्ते क्यों तोड़ लूँ? जब इस मटकी को नहीं जोड़ा जा सकता तो क्या हमारे रिश्ते में आई दरार को जोड़ा जा सकेगा? और फिर मेरी बहु का पैर यहाँ की कीचड़ पर फिसल गया था जिसके कारण मटकी फूटी। मेरी बहू ने इसे जानबूझकर तो तोड़ा नहीं...।" रामरती ने कहा और हिरादेई को अनदेखा करके आगे बढ़ गयी।


✍️ चक्षिमा भारद्वाज "खुशी"

ठाकुरद्वारा, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत

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