जब सिया रिजल्ट लेने गयी तो प्रधानाचार्य ने एक माँ के रूप में उसकी बहुत प्रशंसा की । सुनकर भाव विभोर हो गयी और अतीत में खो गयी ।
"मम्मी ...मम्मी |"छोटी सी दिव्या ने तोतली जुबान से सिया की साड़ी का पल्ला पकड़कर कहा ।
"हाँ ..क्या चाहिए मेरी विटटो को ?"सिया ने दिव्या को प्रेम से गोदी में उठाकर सीने से लगाते हुए कहा ।
"जब आप ऑफिस जाती हो न ..!"
"हाँ ..हाँ बोलो क्या हुआ ?"
"तब मुझे न ....मुझे न ...आपकी बहुत याद आती है ।"नन्ही सी दिव्या ने आँखों में आँसू भरते हुए कहा ।
"बेटा आप भी तो स्कूल जाते हो न ...फिर दादी कितना प्यार करती हैं ?"सिया ने दिव्या का गाल पर ममत्व से हाथ फेरते हुए कहा ।
"पर मैं तो जल्दी आ जाती हूँ न ...फिर मैं आपका इंतजार करती रहती हूँ ।"
"दादी तो कह रहीं थीं कि आप बहुत खेलती हो मेरे जाने के बाद ।"
"खेलती तो हूँ ,मगर आपकी याद आती है । आप ऑफिस मत जाया करो प्लीज ।"नन्ही दिव्या ने मम्मी के दोनो गालों को अपनी छोटी -छोटी हथेलिओं से पकड़ते हुए कहा ।
सिया ने दिव्या को सीने से चिपका लिया और प्रण किया कि जब तक दिव्या थोड़ी बड़ी नहीं हो जाती वह ऑफिस नहीं जायेगी । सारा वक्त बेटी के साथ बिताएगी अपनी आत्मिक संतुष्टि और बेटी के विकास के लिए ।
"मम्मी घर चलो न ।"दिव्या ने माँ का हाथ हिलाया
सिया बेटी की ट्रॉफी पाकर आज बहुत ही अच्छा महसूस कर रही थी । ऐसी खुशी उसको कभी महसूस नहीं हुई ।
✍️राशि सिंह
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
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