गुरुवार, 24 अगस्त 2023

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह की कुंडलिया...मेरा हिंदुस्तान, नये आयाम गढ़ेगा



झूमें नाचें गर्व से, बढ़ा देश का मान।

गया उतर ध्रुव दक्षिणी, मेरा हिंदुस्तान।।

मेरा हिंदुस्तान, नये आयाम गढ़ेगा।।

लिए तिरंगा हाथ, प्रगति की राह बढ़ेगा।

आगे भी हर लक्ष्य, सफलता से हम चूमें।

मिलजुल कर सब साथ, खुशी से नाचें झूमें।।


✍️ प्रो ममता सिंह

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार इंद्रदेव भारती की 21 वीं सदी की लोरी...चन्दा मामा ! दूर थे , आज हुये हैं पास के


चन्दा   मामा  !  दूर  थे । 

आज  हुये  हैं  पास  के ।।

घर  मुन्ने का  धरती  पर ।

चन्दा   थे  आकाश   पे ।।


चन्दा   मामा  !  दूर  थे ।

आज  हुये  हैं  पास  के  ।।


पिछ्ली भूल सुधारी जी ,

स्वागत  द्वार   सजायेंगे  ।

'विक्रम'  भैया   पहुँचे  हैं ,

तुमको   लेकर   आयेंगे  ।।


हमको  था  विश्वास  ये  ।

एक दिन होंगे पास  के  ।। 

चन्दा   मामा  !  दूर  थे  ।

आज  हुये  हैं  पास  के  ।।


आँख  बिछाये  बैठे  सब  ,

'भारत' के  घर आना जी ।

'भारत  माँ'  के  हाथों  से -

राखी  तुम  बंधवाना  जी ।।


सपने    सच्चे   करने  हैं  ।

हम  बच्चों की  आस के  ।।

चन्दा    मामा    दूर    थे  ।

आज  हुये  हैं   पास  के  ।।


नगर, गाँव   हर  द्वार  पर ,

नर्तन    सबके   पाँव   में  ।।

जय  भारत, जय  भारती ,

गूँजा   मन  की   ठाँव  में  ।।


कोटि - कोटि अधरों पर  ।

फूल  खिले  हैं   हास  के  ।।

चन्दा   मामा  !    दूर   थे  ।

आज  हुये   हैं   पास  के  ।।

✍️ इन्द्रदेव भारती 

A/3 - आदर्शनगर,

नजीबाबाद(बिजनौर)

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता ,इंडोनेशिया निवासी) वैशाली रस्तोगी के दोहे और हाइकु .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत ....दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है

 


दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

अब तुम भी नत मस्तक हो लो, ये अभिनव भारत है।

कल तक हमको साँप सँपेरों,वाला कहते आये।
हमें मदारी और फकीरों, में ही गिनते आये।
देखो हमने आज चाँद पर झंडा गाढ़ दिया है।
दक्षिण ध्रुव पर विक्रम को निर्भीक उतार दिया है।
भारत की ताकत अब तोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

पढ़ो जरा इतिहास सदा हम मेधा में अगड़े थे।
अनुसंधानों में आगे संसाधन में पिछड़े थे।
हमने खुद अपने ही दम पर, दिग्गज सभी पछाड़े।
इसरो छोड़ो नासा में भी, हमने झंडे गाढ़े।
विस्फारित नयनों को धोलो ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

हमको तो कल्याण विश्व का, हो ये सिखलाया है।
सभी शांति से रहें यही कल्याण मंत्र गाया है।
जो उपलब्धि हमारी उसका फल सब मानव पायें।
सभी शांति से रहें विश्व में गीत प्रेम के गायें।
सुप्त चेतना के पट खोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

ये तो केवल शुरूआत है अब हम नहीं रुकेंगे।
नहीं डिगेंगे, नहीं झुकेंगे, आगे सदा बढ़ेंगे।
विश्व पटल पर सभी चुनौती मिलकर पार करेंगे
विश्व गुरु तक भारत को पहुँचा कर ही दम लेंगे।
अब तो बोलो तुम भी बोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की कुंडिलिया और मुक्तक



 

मुरादाबाद के साहित्यकार अंकित गुप्ता अंक की नज़्म....चंदा मामा दूर नहीं हैं


ख़ास पुरानी बात नहीं है

सपनों की नाज़ुक टहनी पर

इक आशा का फूल खिला था

उसकी ज़्यादा उम्र नहीं थी

खिलते खिलते सूख गया था

उम्मीदों के पंख जले थे

दिल भी ग़म में डूब गए थे

उड़ने में कुछ देर हुई थी

पर मन में  विश्वास प्रबल था

चंदा मामा दूर नहीं हैं

जल्दी उनकी गोद में होंगे

और लो, वक़्त नहीं बीता है

जीत फुदक कर पास आई है

रक्षा पर्व को भारत माँ ने

भाई का घर ढूँढ लिया है

माँ थाली में दिखला देती

पर तुमको छूने का मन था

अब सपना साकार हुआ है

बंद सिरे खुलने वाले हैं

सदियों से जो राज़ दबे हैं

उनसे पर्दा जल्द उठेगा

सब हिन्दी तुमसे पूछेंगे

क्यों इतने उखड़े रहते हो

खोज निकालेंगे उसको भी

तुम पर जो इक दाग़ लगा है

आज तुम्हारे पहलू में हम

अपने बचपन को ढूँढेंगे

कात रही हो सूत अभी भी

शायद वो बुढ़िया मिल जाए

✍️अंकित गुप्ता 'अंक'

सूर्यनगर, निकट कृष्णा पब्लिक इंटर कॉलिज, 

लाइनपार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर ) के साहित्यकार राजकुमार वर्मा की रचना ...चन्दा मामा तक जा पहुँचे, जो लगता था दूर हमें


 

सारी दुनियाँ में कर डाला, इसरो ने मशहूर हमें

चन्दा मामा तक जा पहुँचे, जो लगता था दूर हमें


भारत के इस चन्द्रयान का, लोहा नासा मान गया

रूस चीन क्या विश्व समूचा, है क्षमता पहचान गया

इसरो के चन्द्रयान-3 ने, कर डाला मगरूर हमें

चन्दा मामा तक जा पहुँचे, जो लगता था दूर हमें


सबसे सस्ता मिशन हमारा, दुनियाँ देख अचंभी है

यह प्रयास हुआ ऐसा तो, आशा कितनी लंबी है

दूर नहीं दिन चाँद दिखाने, ले जाए एक टूर हमें

चंदा मामा तक जा पहुँचे, जो लगता था दूर हमें

✍️ राजकुमार वर्मा

धामपुर  

जनपद बिजनौर

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (अमरोहा) की साहित्यकार डॉ मधु चतुर्वेदी की ग़ज़ल ..मैं जैसी हूँ, मुझे वैसा ही रहना ....

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मैं जैसी हूँ, मुझे वैसा ही रहना।

तुम्हारे प्यार में बदलूँ,न कहना।।


नदी हूँ ,ख़ुद किनारों में बँधी हूँ;

जरूरी हो तो उनको तोड़,बहना।


समर्पण प्रेम का आधार,लेकिन;

मुझे ही क्यों बिखरना और  ढहना।


है ये भी शील का ही एक पहलू;

कि हो अन्याय तो हरगिज़ न सहना।

 

मैं सदियों से दहकती ही रही हूँ;

नहीं बेचारगी में और दहना।


मुझे 'मधु' ताज अपना मान लो तो;

तुम्हें मैं मान लूँगी अपना गहना।

🎤✍️ डॉ. मधु चतुर्वेदी

गजरौला गैस एजेंसी चौपला,गजरौला

जिला अमरोहा 244235

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9837003888

  

शनिवार, 19 अगस्त 2023

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से 19 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में ओंकार सिंह 'ओंकार' को कलाश्री सम्मान

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था कला भारती की ओर से शनिवार 19 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में महानगर के वरिष्ठ रचनाकार ओंकार सिंह ओंकार को कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।‌ इस सम्मान-समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कॉलेज, मिलन विहार में हुआ। दुष्यंत बाबा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता योगेन्द्र पाल विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि हरि प्रकाश शर्मा एवं विशिष्ट अतिथियों के रुप में रामदत्त द्विवेदी एवं डॉ. मनोज रस्तोगी मंचासीन हुए जबकि कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा किया गया।         सम्मान स्वरूप श्री ओंकार जी को अंग-वस्त्र, मान-पत्र, स्मृति-चिह्न एवं श्रीफल अर्पित किए गए। सम्मानित रचनाकार श्री ओंकार जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर एवं अर्पित मान-पत्र का वाचन दुष्यंत बाबा ने किया। 

कार्यक्रम के अगले चरण में एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें काव्य-पाठ करते हुए श्री ओंकार जी ने कहा - 

वर्षा भरती इस तरह, हर मन में आनंद। 

बौछारों की धुन लगे, जैसे कोई छंद।। 

वर्षा से हरिया गए, सब पेड़ों के पात। 

रसमय हर जीवन हुआ, अद्भुत है बरसात।। 

दुष्यंत बाबा ने कहा - 

हरे  रंग  की   चूड़ियां, और महावर लाल। 

प्रीतम आते देखकर, केश गिरातीं गाल।।

 योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा - 

चलो मिटाने के लिए, अवसादों के सत्र। 

फिर से मिलजुल कर पढ़ें, मुस्कानों के पत्र।।

 अपनेपन का जब हुआ, रिश्तों में फैलाव।

 "गूँगे का गुड़" बन गए, मन के अनगिन भाव।। 

नकुल त्यागी ने कहा - 

आज अभी मेरा भैया आया, 

मेरा वह सिन्धारा लाया 

राजीव प्रखर ने कहा - 

चल रस्सी को ढालकर, हम झूले में आज। 

रख दें सिर पर तीज के, फिर सुन्दर सा ताज।।

 होठों पर सुर-ताल हों, झूलों में उल्लास। 

मेघा ला दे ढूंढ कर, ऐसा सावन मास।।

 योगेन्द्र पाल विश्नोई का कहना था - 

यार क्या पायेगा जो डरा ज्वार से। 

और डूबा नहीं हो जो हो मझधार में। 

डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा -

 नहीं गूंजते हैं घरों में 

अब सावन के गीत।

 खत्म हो गई है अब, 

झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत। 

रामदत्त द्विवेदी ने कहा - 

बारातें जिस पथ से गुजरीं, 

शव भी उससे गुजरे हैं। 

हरि प्रकाश शर्मा ने व्यंग्य से अपनी वेदना व्यक्त की - 

इन भिनभिनाते ज़ख्मों पर 

यह नमकीन धाराएं, 

तड़पा तड़पा कर 

मुझे सहला रही हैं। 

इनके अतिरिक्त कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार राजीव सक्सेना एवं बाबा संजीव आकांक्षी ने भी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर अपने विचार रखे। आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।








































बुधवार, 16 अगस्त 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार के पी सिंह सरल के दोहे

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मुरादाबाद की साहित्यकार मीनाक्षी ठाकुर का एकांकी ....शहादत


पात्र-परिचय

बारिंद्र घोष

अरबिंद घोष

प्रफुल्ल कुमार चाकी उर्फ दिनेश चंद्र राय

खुदीराम बोस 

(सभी क्रांतिकारी) 

जार्ज किंग्सफोर्ड (सैशन जज) 

हाकिंस:अंग्रेज़ आधिकारी

कुछ अंग्रेज़ सैनिक।

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(अंक 1)

स्थान मिदनापुर युगांतर संस्था का गुप्त कार्यालय।

प. बंगाल ,  अप्रैल 1908

(दृश्य एक) -

(एक छोटे से कक्ष में मद्धम जलती लालटेन की रोशनी में एक बड़ी सी मेज के चारों ओर कुर्सियों पर बैठे, क्रांति कारियों के चेहरों पर ओज मिश्रित रोष झलक रहा है। कक्ष के एक कोने में एक छोटे स्टूल पर पानी से भरा घड़ा और उसके समीप ही एक गिलास रखा है तथा मेज पर कुछ महत्वपूर्ण कागज़ और पत्र पत्रिकाएं भी रखी हैं)।

बारिंद्र घोष (मेज पर से एक समाचार पत्र उठाकर, रोषपूर्ण स्वर में) : आज का अख़बार देखा?अंग्रेजो ने उस दुष्ट जज किंग्सफोर्ड को क्रांतिकारियों के कोप से बचाने के लिए मुजफ्फरपुर भेज दिया है सैशन जज बनाकर।

अरबिंद घोष (रोषपूर्ण स्वर में) : वो अत्याचारी जज कहीं भी चला जाये पर हमसे नहीं बच पायेगा। निर्दोष क्रांतिकारियों पर किये अत्याचारों का बदला हम उससे लेकर रहेंगे।

सभी क्रांतिकारी एक स्वर में : हाँ-हाँ, लेकर रहेंगे। ब्रिटिश साम्राज्य मुर्दाबाद . ..मुर्दाबाद...!! हिंदुस्तान ज़िंदाबाद.ज़िंदाबाद!! 

बारिंद्र घोष : तो ठीक है, सारी योजना आज ही बना ली जाये, ताकि समय रहते उस किंग्सफोर्ड को उसकी करनी का फल मिल जाये। (कुछ सोचते हुए) ... मगर इस काम मे बहुत खतरा है। जान की बाज़ी लगानी है। कौन उपयुक्त रहेगा ? तुम बताओ अरबिंदो.... ? 

(बात पूरी होने से पहले ही खुदीराम बोस सीना तानकर खड़े हो जाते हैं) 

खुदीराम बोस (जोश भरे स्वर में ) : मैं जाऊँगा मुजफ्फरपुर, उस पापी का अंत करने!!

अरबिंदो: मगर अभी तुम बहुत छोटे हो खुदीराम, हमारे पास और भी क्रांतिकारी हैं इस पावन कार्य हेतु ! ! 

खुदीराम बोस:छोटा हूँ तो क्या हुआ, मेरे सीने में आक्रोश की जो ज्वाला धधक रही है उसमें उस पापी को भस्म करने की पर्याप्त क्षमता है

बारिंद्र घोष : लेकिन अभी तुम्हारी उम्र ही क्या है बच्चे..! ! मात्र अट्ठारह वर्ष... ! नहीं नहीं..!!. यह कदापि उचित न होगा। और फिर अगर तुम्ह कुछ हो गया तो तुम्हारी दीदी को क्या जवाब देंगे हम?? 

खुदीराम (ओजपूर्ण स्वर में) : मेरी दीदी तो हिंदुस्तान की वो बहादुर बेटी है जिसने स्वयं मुझे आज़ादी के इस पावन यज्ञ में आहूति के लिए सहर्ष भेजा है.... 

अरबिंदो : परंतु...?? 

खुदीराम ( हाथ जोड़कर ) : किंतु परंतु कुछ न कीजिये बड़े भाई, मैं फैसला कर चुका हूँ। उस पापी का अंत मेरे हाथों ही होगा। 

बारिंद्र घोष : ठीक है तो...। परंतु तुम अकेले नहीं जाओगे, प्रफुल्ल तुम्हारे साथ जायेगा। क्या कहते हो प्रफुल्ल?? 

प्रफुल्ल कुमार चाकी (गर्व से गाते हैं ) : बांधा कफ़न है सर से हमने वतन की खातिर, माँ भारती ने देखो हमको है फिर पुकारा  (हँसते हैं) नेकी और पूछ पूछ। सौ जन्म कुर्बान ऐ हिंद तुझ पर   ... ! ! 

बारिंद्र (लम्बी सांस छोड़ते हुए) : ठीक है साथियों ! तो तय हुआ प्रफुल्ल और खुदीराम इस काम को अंजाम देंगें। कल इसी वक़्त, इसी जगह  पुन:मिलते हैं नारा लगाते हैं..( वंदेमातरम्)

क्रांतिकारियों का समवेत स्वर गूंजता है - वंदेमातरम् वंदेमातरम... ।

(दृश्य 2 - समय दोपहर)

स्थान - मिदनापुर, युगांतर संस्था का कार्यालय

(सभी क्रांतिकारी कक्ष में मेज के चारों ओर बैठकर विचार विमर्श कर रहे हैं। तभी अरबिंदो घोष तेजी से कक्ष में प्रवेश करते हैं, उनके हाथ में दो काले रंग का थैले हैं)

अरबिंदो (थैले में से  दो पिस्तौल निकालते हैं) : ये लो प्रफुल्ल और खुदीराम हथियार!!! (फिर थैला खुदीराम को सौंपते हैं) यह लो खुदीराम। इसमें बम है, जो तुम्हें उस दुष्ट की गाड़ी पर फेंकना है। यह बम तभी सक्रिय होगा जब तुम इसका इस्तेमाल करना चाहोगे।

खुदीराम और प्रफुल्ल चाकी आगे बढ़कर हथियार थाम लेते हैं और समवेत स्वर में नारा लगाते हैं : वंदेमातरम् वंदेमातरम्.....।    

 खुदीराम : ज़िंदा रहे तो जल्द ही मिलेंगे। (आगे बढ़कर सबके गले मिलते हैं)।

(अंक दो - दृश्य एक)

1908, अप्रैल, समय दिन का। 

स्थान - मुजफ्फरपुर जार्ज किंग्स फोर्ड का बंगला। खुदीराम व प्रफुल्ल कुमार बंगले के बाहर, पेड़ो के पीछे छुपकर बंगले की गतिविधियों पर नज़र रखते हुए, किंग्स फोर्ड के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे हैं। कुछ ही पलों में वह सफेद कपड़े पहने बाहर निकलता है)

खुदीराम बोस : लगता है यही जॉर्ज किंग्स फोर्ड है।

प्रफुल्ल कुमार : हाँ, यही है वह दुष्ट। चलो देखते हैं, कौन सी बग्गी से बैठेगा यह किंग्स फोर्ड।

(जल्दी-जल्दी सफेद घोड़े की बग्गी पर बैठता है और बग्गी चल पड़ती है।)

खुदीराम ::तो  कल का दिन तय हुआ। आओ चलें।

प्रफुल्ल : जी तो करता है कि इस पापी का अभी काम तमाम कर दूँ।

खुदीराम (प्रफुल्ल का हाथ अपने दोनो हाथों से थामते हुए) : जब इतना सब्र किया तो आज और कर लेते हैं। कल इसकी ज़िन्दगी का आखिरी दिन होगा। 

(दोनों अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान करते हैं।)

(दृश्य 2 ,)

(स्थान: मुजफ्फरनगर 30 अप्रैल उन्नीस सौ आठ। समय 8.00 बजे। घुप्प अंधेरे में मुजफ्फरपुर क्लब के बाहर प्रफुल्ल और बोस दोनो छुपकर किंग्स फोर्ड के बाहर आने का इंतज़ार कर रहे हैं)1

प्रफुल्ल (बड़बड़ाते हुए) : कब निकलेगा दुष्ट बाहर।

बोस : कोई घड़ी जा रही है। बस, बाहर आने ही वाला है। पिछले चार दिन से देख रहे हैं कि वह इसी समय बाहर निकलता है।

(तभी सफेद कपड़ों में दो साये क्लब से बाहर निकलते हैं और तेजी से चलते हुए सफेद घोड़े की बग्घी में बैठ जाते हैं।) 

प्रफुल्ल (तेजी से फुसफुसाते हुए) : लगता है आ गया। बोस !!  जल्दी करो, बचने न पाये वो।

(दोनों  पेड़ से कूदकर बग्घी के पीछे नंगे पाँव ही दौड़ पड़ते हैं और बग्घी को निशाना बनाते हुए बम फेंक देते हैं। ज़ोर के धमाके के साथ बग्घी के परखच्चे उड़ जाते हैं। दोनों कुछ पल रुककर जली हुई बग्घी के पास जाकर देखते हैं तो चौंक जाते हैं। ) 

प्रफुल्ल : हे भगवान! गजब हो गया। ये तो कोई और लोग हैं।

खुदीराम (निराशाजनक तरीके से सर को हिलाते हैं) : वह दुष्ट बच गया, पर कब तक बचेगा। इस बम की गूंज लंदन तक जायेगी। हिंदुस्तान का हर बच्चा प्रफुल्ल, चाकी और खुदीराम बन जायेगा तुझे मारने के लिए दुष्ट किंग्स फोर्ड! (दांत पीसते हुए)

(तभी बहुत से पद चापों की आवाज़ सुनकर दोनो क्रांतिकारी भागते हुए नारा लगाते हैं) : वंदेमातरम् वंदेमातरम्।

(चारों ओर से फायरिंग की आवाज़ आने लगती है लेकिन दोनों अंग्रेज़ सिपाहियों को मात देते हुए अंधेरे में लुप्त हो जाते हैं।) 

दृश्य 3 - 

बोकामा रेलवे स्टेशन (बिहार)।

1 मई, 1908 सुबह के चार बजे 

(रेलवे स्टेशन पर कम लोग ही हैं। प्रफुल्ल चाकी भागते हुए रेलवे स्टेशन पर आते हैं, चेहरा गमछे से आधा ढका है। खुदीराम  दूसरे रास्ते से पीछे आ रहे हैं। चार-पाँच अंग्रेज़ सिपाही सतर्कता से रेलवे स्टेशन पर मुसाफिरों पर नज़र बनाये हुए हैं।)

प्रफुल्ल (एक वेंडर से हाफंते हुए) : भाई रुको ज़रा...! यहाँ कहीं पानी मिलेगा क्या??? 

वेंडर(धीरे से बुदबुदाता है) :  मेरा नाम त्रिगुणायत है और बारिंद्र ने आप लोगों की सहायता के लिए मुझे आपके पीछे यहाँ भेजा था। यह लो  कलकत्ता का टिकट, ट्रेन आती होगी। (फिर अपनी टोकरी में छुपा कर रखे बरतन से पानी पिलाता है। इतने में ही दोनो अंग्रेज़ सिपाही दौड़ते हुए आते हैं, उन्हें देख प्रफुल्ल पानी पीना छोड़ तेज कदमों से आगे बढ़ने लगते हैं) 

पहला सिपाही : ऐ, रुको ज़रा।

(प्रफुल्ल अपनी चाल और भी तेज कर देते हैं, मगर बाकी सिपाही दौड़ कर प्रफुल्ल को चारों ओर से घेर लेते हैं। स्वयं को चारों ओर से घिरा देख प्रफुल्ल अपनी  कमर से पिस्तौल निकाल कर सिपाहियों पर फायरिंग कर देते हैं, तीन सिपाहियों घायल होकर नीचे गिर जाते हैं, अब पिस्तौल में आखिरी गोली बची है)।

प्रफुल्ल(कनपटी से रिवाल्वर सटाकर) : तुम जैसे पापियों के हाथों मरने से अच्छा मैं स्वयं ही मृत्यु का वरण कर लूँ। वंदेमातरम्......, वंदेमातरम्...... (कहकर ट्रिगर दबा देते हैं और धाँय की आवाज़ के साथ ही वह शेर  धरती पर गिर जाता है।) 

दृश्य - 4 : 

स्थान मुज़फ़्फ़र पुर जेल11अगस्त 1908

(खुदीराम को हथकड़ी लगाकर फांसी के तख्ते की ओर ले जाया जा रहा है, चेहरे पर अपूर्व तेज है, सफेद धोती कुरते पहने और हाथ में भगवद्गीता लिए कुछ गुनगुनाते हुए आगे बढ़ रहें हैं।) 

 हाकिंस: ये इंडिया का लोग भी अजीब होता है। छोटा बच्चा भी मरने के लिए कितना खुश हो रहा है। तुमको  डर नहीं लगता खुदीराम ? 

खुदीराम : डर ? (ज़ोर से हंसता है) डर कैसा? यह तो मेरा सौभाग्य है कि अपनी मातृभूमि पर अपने शीश का पुष्प चढ़ाने का अवसर मुझे इतनी जल्दी मिल गया। मैं धन्य हो गया। माँ भारती......( बेतहाशा हँसता है) 

हाकिंस (थोड़ा भयभीत होकर सकपका जाता है) : बस-बस। फाँसी का समय निकला जा रहा है। (थूक गटकता है) तुम्हारी कोई अंतिम  इच्छा ?

खुदीराम: हाँ है। 

 हाकिंस : क्या?

खुदीराम: जब भी जन्म लूँ, हिंदुस्तान की गोद मिले। (ऊपर की ओर देखते हुए) आता हूँ प्रफुल्ल! जेल के बाहर देख रहो हो न। कितने खुदीराम और प्रफुल्ल खड़े हैं। यह शोर सुनो चाकी, हमारी  शहादत व्यर्थ न होगी। देखो, देखो, बम की गूंज कितनी दूर तक गयी है, हा  हा हा !वंदेमातरम्.. ..वंदेमातरम्  !हिंदुस्तान ज़िंदाबाद..!! 

(फांसी का फंदा चूमकर अपने गले में डाल लेते हैं। ) 

हाकिंस (आश्चर्य मिश्रित भाव से) : सचमुच भारत का हर बच्चा शेर है।

(नेपथ्य में खुदीराम अमर रहे, प्रफुल्ल चाकी अमर रहे... वंदेमातरम् की आवाज़ गूंजती है। परदा गिरता है।)


✍️ मीनाक्षी ठाकुर

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत