शनिवार, 19 अगस्त 2023

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से 19 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में ओंकार सिंह 'ओंकार' को कलाश्री सम्मान

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था कला भारती की ओर से शनिवार 19 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में महानगर के वरिष्ठ रचनाकार ओंकार सिंह ओंकार को कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।‌ इस सम्मान-समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कॉलेज, मिलन विहार में हुआ। दुष्यंत बाबा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता योगेन्द्र पाल विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि हरि प्रकाश शर्मा एवं विशिष्ट अतिथियों के रुप में रामदत्त द्विवेदी एवं डॉ. मनोज रस्तोगी मंचासीन हुए जबकि कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा किया गया।         सम्मान स्वरूप श्री ओंकार जी को अंग-वस्त्र, मान-पत्र, स्मृति-चिह्न एवं श्रीफल अर्पित किए गए। सम्मानित रचनाकार श्री ओंकार जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर एवं अर्पित मान-पत्र का वाचन दुष्यंत बाबा ने किया। 

कार्यक्रम के अगले चरण में एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें काव्य-पाठ करते हुए श्री ओंकार जी ने कहा - 

वर्षा भरती इस तरह, हर मन में आनंद। 

बौछारों की धुन लगे, जैसे कोई छंद।। 

वर्षा से हरिया गए, सब पेड़ों के पात। 

रसमय हर जीवन हुआ, अद्भुत है बरसात।। 

दुष्यंत बाबा ने कहा - 

हरे  रंग  की   चूड़ियां, और महावर लाल। 

प्रीतम आते देखकर, केश गिरातीं गाल।।

 योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा - 

चलो मिटाने के लिए, अवसादों के सत्र। 

फिर से मिलजुल कर पढ़ें, मुस्कानों के पत्र।।

 अपनेपन का जब हुआ, रिश्तों में फैलाव।

 "गूँगे का गुड़" बन गए, मन के अनगिन भाव।। 

नकुल त्यागी ने कहा - 

आज अभी मेरा भैया आया, 

मेरा वह सिन्धारा लाया 

राजीव प्रखर ने कहा - 

चल रस्सी को ढालकर, हम झूले में आज। 

रख दें सिर पर तीज के, फिर सुन्दर सा ताज।।

 होठों पर सुर-ताल हों, झूलों में उल्लास। 

मेघा ला दे ढूंढ कर, ऐसा सावन मास।।

 योगेन्द्र पाल विश्नोई का कहना था - 

यार क्या पायेगा जो डरा ज्वार से। 

और डूबा नहीं हो जो हो मझधार में। 

डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा -

 नहीं गूंजते हैं घरों में 

अब सावन के गीत।

 खत्म हो गई है अब, 

झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत। 

रामदत्त द्विवेदी ने कहा - 

बारातें जिस पथ से गुजरीं, 

शव भी उससे गुजरे हैं। 

हरि प्रकाश शर्मा ने व्यंग्य से अपनी वेदना व्यक्त की - 

इन भिनभिनाते ज़ख्मों पर 

यह नमकीन धाराएं, 

तड़पा तड़पा कर 

मुझे सहला रही हैं। 

इनके अतिरिक्त कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार राजीव सक्सेना एवं बाबा संजीव आकांक्षी ने भी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर अपने विचार रखे। आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।








































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