गुरुवार, 24 अगस्त 2023

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद संभल) के साहित्यकार त्यागी अशोका कृष्णम के दोहे और मुक्तक



 

मुरादाबाद की साहित्यकार प्रो ममता सिंह की कुंडलिया...मेरा हिंदुस्तान, नये आयाम गढ़ेगा



झूमें नाचें गर्व से, बढ़ा देश का मान।

गया उतर ध्रुव दक्षिणी, मेरा हिंदुस्तान।।

मेरा हिंदुस्तान, नये आयाम गढ़ेगा।।

लिए तिरंगा हाथ, प्रगति की राह बढ़ेगा।

आगे भी हर लक्ष्य, सफलता से हम चूमें।

मिलजुल कर सब साथ, खुशी से नाचें झूमें।।


✍️ प्रो ममता सिंह

 मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद मंडल के नजीबाबाद (जनपद बिजनौर) निवासी साहित्यकार इंद्रदेव भारती की 21 वीं सदी की लोरी...चन्दा मामा ! दूर थे , आज हुये हैं पास के


चन्दा   मामा  !  दूर  थे । 

आज  हुये  हैं  पास  के ।।

घर  मुन्ने का  धरती  पर ।

चन्दा   थे  आकाश   पे ।।


चन्दा   मामा  !  दूर  थे ।

आज  हुये  हैं  पास  के  ।।


पिछ्ली भूल सुधारी जी ,

स्वागत  द्वार   सजायेंगे  ।

'विक्रम'  भैया   पहुँचे  हैं ,

तुमको   लेकर   आयेंगे  ।।


हमको  था  विश्वास  ये  ।

एक दिन होंगे पास  के  ।। 

चन्दा   मामा  !  दूर  थे  ।

आज  हुये  हैं  पास  के  ।।


आँख  बिछाये  बैठे  सब  ,

'भारत' के  घर आना जी ।

'भारत  माँ'  के  हाथों  से -

राखी  तुम  बंधवाना  जी ।।


सपने    सच्चे   करने  हैं  ।

हम  बच्चों की  आस के  ।।

चन्दा    मामा    दूर    थे  ।

आज  हुये  हैं   पास  के  ।।


नगर, गाँव   हर  द्वार  पर ,

नर्तन    सबके   पाँव   में  ।।

जय  भारत, जय  भारती ,

गूँजा   मन  की   ठाँव  में  ।।


कोटि - कोटि अधरों पर  ।

फूल  खिले  हैं   हास  के  ।।

चन्दा   मामा  !    दूर   थे  ।

आज  हुये   हैं   पास  के  ।।

✍️ इन्द्रदेव भारती 

A/3 - आदर्शनगर,

नजीबाबाद(बिजनौर)

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार (वर्तमान में जकार्ता ,इंडोनेशिया निवासी) वैशाली रस्तोगी के दोहे और हाइकु .....


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्रीकृष्ण शुक्ल का गीत ....दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है

 


दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

अब तुम भी नत मस्तक हो लो, ये अभिनव भारत है।

कल तक हमको साँप सँपेरों,वाला कहते आये।
हमें मदारी और फकीरों, में ही गिनते आये।
देखो हमने आज चाँद पर झंडा गाढ़ दिया है।
दक्षिण ध्रुव पर विक्रम को निर्भीक उतार दिया है।
भारत की ताकत अब तोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

पढ़ो जरा इतिहास सदा हम मेधा में अगड़े थे।
अनुसंधानों में आगे संसाधन में पिछड़े थे।
हमने खुद अपने ही दम पर, दिग्गज सभी पछाड़े।
इसरो छोड़ो नासा में भी, हमने झंडे गाढ़े।
विस्फारित नयनों को धोलो ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

हमको तो कल्याण विश्व का, हो ये सिखलाया है।
सभी शांति से रहें यही कल्याण मंत्र गाया है।
जो उपलब्धि हमारी उसका फल सब मानव पायें।
सभी शांति से रहें विश्व में गीत प्रेम के गायें।
सुप्त चेतना के पट खोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

ये तो केवल शुरूआत है अब हम नहीं रुकेंगे।
नहीं डिगेंगे, नहीं झुकेंगे, आगे सदा बढ़ेंगे।
विश्व पटल पर सभी चुनौती मिलकर पार करेंगे
विश्व गुरु तक भारत को पहुँचा कर ही दम लेंगे।
अब तो बोलो तुम भी बोलो, ये अभिनव भारत है।
दुनिया वालों आँखें खोलो, ये अभिनव भारत है।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल

मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ अर्चना गुप्ता की कुंडिलिया और मुक्तक



 

मुरादाबाद के साहित्यकार अंकित गुप्ता अंक की नज़्म....चंदा मामा दूर नहीं हैं


ख़ास पुरानी बात नहीं है

सपनों की नाज़ुक टहनी पर

इक आशा का फूल खिला था

उसकी ज़्यादा उम्र नहीं थी

खिलते खिलते सूख गया था

उम्मीदों के पंख जले थे

दिल भी ग़म में डूब गए थे

उड़ने में कुछ देर हुई थी

पर मन में  विश्वास प्रबल था

चंदा मामा दूर नहीं हैं

जल्दी उनकी गोद में होंगे

और लो, वक़्त नहीं बीता है

जीत फुदक कर पास आई है

रक्षा पर्व को भारत माँ ने

भाई का घर ढूँढ लिया है

माँ थाली में दिखला देती

पर तुमको छूने का मन था

अब सपना साकार हुआ है

बंद सिरे खुलने वाले हैं

सदियों से जो राज़ दबे हैं

उनसे पर्दा जल्द उठेगा

सब हिन्दी तुमसे पूछेंगे

क्यों इतने उखड़े रहते हो

खोज निकालेंगे उसको भी

तुम पर जो इक दाग़ लगा है

आज तुम्हारे पहलू में हम

अपने बचपन को ढूँढेंगे

कात रही हो सूत अभी भी

शायद वो बुढ़िया मिल जाए

✍️अंकित गुप्ता 'अंक'

सूर्यनगर, निकट कृष्णा पब्लिक इंटर कॉलिज, 

लाइनपार, मुरादाबाद

उत्तर प्रदेश, भारत


मुरादाबाद मंडल के धामपुर (जनपद बिजनौर ) के साहित्यकार राजकुमार वर्मा की रचना ...चन्दा मामा तक जा पहुँचे, जो लगता था दूर हमें


 

सारी दुनियाँ में कर डाला, इसरो ने मशहूर हमें

चन्दा मामा तक जा पहुँचे, जो लगता था दूर हमें


भारत के इस चन्द्रयान का, लोहा नासा मान गया

रूस चीन क्या विश्व समूचा, है क्षमता पहचान गया

इसरो के चन्द्रयान-3 ने, कर डाला मगरूर हमें

चन्दा मामा तक जा पहुँचे, जो लगता था दूर हमें


सबसे सस्ता मिशन हमारा, दुनियाँ देख अचंभी है

यह प्रयास हुआ ऐसा तो, आशा कितनी लंबी है

दूर नहीं दिन चाँद दिखाने, ले जाए एक टूर हमें

चंदा मामा तक जा पहुँचे, जो लगता था दूर हमें

✍️ राजकुमार वर्मा

धामपुर  

जनपद बिजनौर

उत्तर प्रदेश, भारत

मुरादाबाद मंडल के गजरौला (अमरोहा) की साहित्यकार डॉ मधु चतुर्वेदी की ग़ज़ल ..मैं जैसी हूँ, मुझे वैसा ही रहना ....

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मैं जैसी हूँ, मुझे वैसा ही रहना।

तुम्हारे प्यार में बदलूँ,न कहना।।


नदी हूँ ,ख़ुद किनारों में बँधी हूँ;

जरूरी हो तो उनको तोड़,बहना।


समर्पण प्रेम का आधार,लेकिन;

मुझे ही क्यों बिखरना और  ढहना।


है ये भी शील का ही एक पहलू;

कि हो अन्याय तो हरगिज़ न सहना।

 

मैं सदियों से दहकती ही रही हूँ;

नहीं बेचारगी में और दहना।


मुझे 'मधु' ताज अपना मान लो तो;

तुम्हें मैं मान लूँगी अपना गहना।

🎤✍️ डॉ. मधु चतुर्वेदी

गजरौला गैस एजेंसी चौपला,गजरौला

जिला अमरोहा 244235

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9837003888

  

शनिवार, 19 अगस्त 2023

मुरादाबाद की संस्था कला भारती की ओर से 19 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में ओंकार सिंह 'ओंकार' को कलाश्री सम्मान

मुरादाबाद की साहित्यिक संस्था कला भारती की ओर से शनिवार 19 अगस्त 2023 को आयोजित कार्यक्रम में महानगर के वरिष्ठ रचनाकार ओंकार सिंह ओंकार को कलाश्री सम्मान से सम्मानित किया गया।‌ इस सम्मान-समारोह एवं काव्य-गोष्ठी का आयोजन आकांक्षा विद्यापीठ इण्टर कॉलेज, मिलन विहार में हुआ। दुष्यंत बाबा द्वारा प्रस्तुत माॅं सरस्वती की वंदना से आरंभ हुए कार्यक्रम की अध्यक्षता योगेन्द्र पाल विश्नोई ने की। मुख्य अतिथि हरि प्रकाश शर्मा एवं विशिष्ट अतिथियों के रुप में रामदत्त द्विवेदी एवं डॉ. मनोज रस्तोगी मंचासीन हुए जबकि कार्यक्रम का संयुक्त संचालन राजीव प्रखर एवं आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा किया गया।         सम्मान स्वरूप श्री ओंकार जी को अंग-वस्त्र, मान-पत्र, स्मृति-चिह्न एवं श्रीफल अर्पित किए गए। सम्मानित रचनाकार श्री ओंकार जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर आधारित आलेख का वाचन राजीव प्रखर एवं अर्पित मान-पत्र का वाचन दुष्यंत बाबा ने किया। 

कार्यक्रम के अगले चरण में एक काव्य-गोष्ठी का भी आयोजन किया गया जिसमें काव्य-पाठ करते हुए श्री ओंकार जी ने कहा - 

वर्षा भरती इस तरह, हर मन में आनंद। 

बौछारों की धुन लगे, जैसे कोई छंद।। 

वर्षा से हरिया गए, सब पेड़ों के पात। 

रसमय हर जीवन हुआ, अद्भुत है बरसात।। 

दुष्यंत बाबा ने कहा - 

हरे  रंग  की   चूड़ियां, और महावर लाल। 

प्रीतम आते देखकर, केश गिरातीं गाल।।

 योगेन्द्र वर्मा व्योम ने कहा - 

चलो मिटाने के लिए, अवसादों के सत्र। 

फिर से मिलजुल कर पढ़ें, मुस्कानों के पत्र।।

 अपनेपन का जब हुआ, रिश्तों में फैलाव।

 "गूँगे का गुड़" बन गए, मन के अनगिन भाव।। 

नकुल त्यागी ने कहा - 

आज अभी मेरा भैया आया, 

मेरा वह सिन्धारा लाया 

राजीव प्रखर ने कहा - 

चल रस्सी को ढालकर, हम झूले में आज। 

रख दें सिर पर तीज के, फिर सुन्दर सा ताज।।

 होठों पर सुर-ताल हों, झूलों में उल्लास। 

मेघा ला दे ढूंढ कर, ऐसा सावन मास।।

 योगेन्द्र पाल विश्नोई का कहना था - 

यार क्या पायेगा जो डरा ज्वार से। 

और डूबा नहीं हो जो हो मझधार में। 

डॉ. मनोज रस्तोगी ने कहा -

 नहीं गूंजते हैं घरों में 

अब सावन के गीत।

 खत्म हो गई है अब, 

झूलों पर पेंग बढ़ाने की रीत। 

रामदत्त द्विवेदी ने कहा - 

बारातें जिस पथ से गुजरीं, 

शव भी उससे गुजरे हैं। 

हरि प्रकाश शर्मा ने व्यंग्य से अपनी वेदना व्यक्त की - 

इन भिनभिनाते ज़ख्मों पर 

यह नमकीन धाराएं, 

तड़पा तड़पा कर 

मुझे सहला रही हैं। 

इनके अतिरिक्त कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार राजीव सक्सेना एवं बाबा संजीव आकांक्षी ने भी वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर अपने विचार रखे। आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ द्वारा आभार-अभिव्यक्ति के साथ कार्यक्रम समापन पर पहुॅंचा।