"मौसम अच्छा हो गया आज।" यह जानते हुए भी कि अच्छे मौसम में हर व्यक्ति ऐसा ही महसूस कर रहा होगा, एक दोस्त ने अपने दोस्त को बिना अंधा साबित किये अपनी बातचीत का पहला वाक्य छोड़ा।
"हां यार, कल कितना बुरा मौसम था ? गर्मी के मारे हालत ख़राब थी।" दूसरे दोस्त ने मौसम-सम्बंधी अपना विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए पहले दोस्त का ज्ञानवर्धन करने के लिहाज़ से कहा।
"लगता है, बारिश होगी।" मौसम की भविष्यवाणी में अपनी माहिरी प्रदर्शित करके पहले वाले ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा।
"बारिश हुई, तो भीगना पड़ेगा हमें।" दूसरे दोस्त ने बारिश के पानी में गीलापन होने की बुराई करते हुए जवाब दिया।
"छतरी होती तो शायद इतना नहीं भीगते।" भीगने से पूर्व जल-रक्षक छतरी की भूमिका और फिर उसकी प्रंशसा भी बात की बात में हो गई।
"छतरी से बैटर बरसाती रहती है। नीचे का हिस्सा भी नहीं भीगता उसमें।" स्वज्ञानजन्य बेहतर विकल्प का तात्कालिक प्रदर्शन करते हुए दूसरे दोस्त ने चारों दिशाओं में अपनी गर्दन घुमाकर ऐसे देखा कि अगर और लोग भी उसकी यह बात सुन रहे हों, तो 'क्या बात कही है आपने,' वाले अंदाज़ में उसकी तारीफ़
करें।
"वो तो है ही। छतरी अपनी जगह है, बरसाती अपनी जगह ।" पहले दोस्त ने यह बात कुछ इस अंदाज़ से की, जैसे उसने 'प्राचीन वर्णाश्रम-व्यवस्था में हर वर्ण का अपना अलग महत्त्व था, जैसी कोई बहुत ज्ञानपरक और गूढ़ बात कही हो और जिसकी कि तारीफ़ होनी चाहिए।
"लेकिन बारिश के साथ अगर आँधीनुमा हवा चल पड़े, तो छतरी किसी की नहीं रहती । कई मर्तबा तो वह उल्टी भी हो जाती है । " जीवन की तरह छतरी की भी निरर्थकता को सिद्ध करने की गरज से दूसरे दोस्त ने अपना पक्ष प्रस्तुत किया ।
"देखा जायेगा । अभी कौन सी बारिश हो रही है।" वार्ता-समापन की शैली में पहले वाला दोस्त
बुदबुदाया।
"और क्या। बातों-बातों में असली बात तो मैं भूल ही गया । यार, दौ सौ रुपये उधार दे दो। एक तारीख़ को लौटा दूँगा।" दूसरे ने अच्छे मौसम में अर्थदान की भूमिका प्रस्तुत करते हुए कहा।
और इस तरह पहले वाले दोस्त का अच्छा-ख़ासा आंतरिक मौसम ख़राब हो गया।
✍️अतुल मिश्र
श्री धन्वंतरि फार्मेसी
मौ. बड़ा महादेव
चन्दौसी, जनपद सम्भल
उत्तर प्रदेश, भारत
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें