पर्व मनाते यंत्रवत् हम
थके हुए त्योहार हुए हैं
पृथक आत्मा तन के ज्यों
रीतिबद्ध त्योहार हुए हैं ।
कलाइयों पर सजी राखियाँ
मन ,बच्चे जैसे निर्मल थे
प्रौढ़ावस्था हुयी सयानी
बोनसाइ त्योहार हुए हैं ।
पर्वों की अवतंस श्रंखला
सुखधाम धरा की निश्चलता
स्थिर और ठहरे जीवन में
सक्रियता के नाम हुए है ।
त्योहारी इस सभ्यता का
संयम से संपोषण करना
जीवन जीने के अर्थों में
ये सकाम ललाम हुए है ।
पर्व मनाते यंत्रवत् हम
थके हुए त्योहार हुए हैं
पृथक आत्मा तन की ज्यों
रीतिबद्ध त्योहार हुए हैं ।।
✍️ मनोरमा शर्मा
जट्बाजार
अमरोहा
उत्तर प्रदेश, भारत
हार्दिक आभार आदरणीय मनोजभाई साहब🙏🏼🙏🏼🙏🏼
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