शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2023

मुरादाबाद मंडल के चंदौसी (जनपद संभल)निवासी साहित्यकार अतुल मिश्र का व्यंग्य....हमारे शहर के निराले कुत्ते...



धर्मराज युधिष्टिर ने जो सबसे गलत काम किया, वह यह था कि वे खुद तो स्वर्ग की सीड़ियां पार करके चले गए, मगर अपने उस कुत्ते को पीछे ही छोड़ गए, जिसके नाम को लेकर अभी भी एकमत होने के चक्कर में इतिहासकार एकमत नहीं हो पाए हैं. अखबारों में अपना नाम ना छापने की शर्त पर कुछ इतिहासकारों ने यह मानने का दावा किया है कि इंडिया में कुत्तों का आदि पूर्वज वही कुत्ता था और बाकी सब जो देश भर में घूम रहे हैं, वे उसके वंशज हैं. प्राचीन काल में कुत्तों को वह सम्मान प्राप्त था, जो वफादारी की कमी होने की वजह से आदमी का भी नहीं रहा होगा. बेवफाई की कसमें खाने पर लोग कहा करते थे कि "खा, अपने कुत्ते की कसम कि तूने बेवफाई नहीं की." बाद में यही बेवफाई शायरी में महबूबा के लिए इस्तेमाल की जाने लगी.

    हमारे शहर में नगर पालिका होने की वजह से कुत्तों की पैदावार भी खूब हो रही है. ऐसा क्यों है, यह रिसर्च का विषय होने के बावज़ूद अभी तक किसी शोधार्थी के गाइड के दिमाग में नहीं आ पाया है. रास्ता चलते कौन सा कुत्ता, कब काट ले, कुछ नहीं कहा जा सकता. जो लोग कुत्तों से डरते हुए साइड में निकलने की कोशिशें करते हैं, कुत्ते सबसे ज़्यादा उसी शख्स की तरफ मुखातिब हो लेते हैं और तब अपनी पैंट में मौजूद टांगों की रक्षा के लिए उसके अन्दर से भर्राई सी आवाज़ निकलती है कि "बचा लो, यार, यह किन सज्जन का कुत्ता है ?" वह आदमी इस बात को जानता है कि अगर "यह किस कमबख्त का कुत्ता है," जैसी कोई बात बोल दी, तो वह कभी भी अपने कुत्ते से कटवाए बिना बाज नहीं आएगा.

    हमारी कॉलोनी को ही ले लीजिये. ऐसी-ऐसी नस्लों के कुत्ते लोगों ने पाले हुए हैं कि वे लाख 'हट-हट' या 'शीट-शीट' जैसी ध्वनियां करने के बावज़ूद, जब तक अच्छे भले आदमी की रही सही जान नहीं ले लेंगे, उसे यूं ही घूरते रहेंगे. इन कुत्तों से डरकर भागने  की ज़रा सी बात अगर मन में भी सोच ली, तो समझें कि वे या तो शराफत से आपको आपके घर के अन्दर तक दौड़ाकर आयेंगे या बहुत मूड में हुए, तो ऐसी जगह पर काटेंगे कि आप यह बताने की पोज़ीशन में भी नहीं रहेंगे कि यहीं पर क्यों काटा, अन्य किसी उपयुक्त स्थान पर क्यों नहीं ?

    भौंकने की अवस्था में काटने के संकेत देने पर कुत्ते को चुपाने का एक ही तरीका है और जो बहुत कारगर माना जाता है. जितनी जोर से कुत्ता भौंक रहा है, उससे भी जोर से अगर भौंक दिया जाये, तो कुत्ते को थोड़ी सी तसल्ली मिल जाती है कि आदमी और कुत्ते का कॉम्बिनेशन है, इसलिए इसे ना काटा जाये तो ही सही है. ना काटे जाने वाला आदमी अपनी इस गुप्त विद्या को अपने बच्चों को भी सिखा जाता है, ताकि इंजेक्शनों का खर्चा बचाने के काम आये. अब कोई कुत्ता पागल है या नहीं है, यह जानने के चक्कर में कभी नहीं पड़ना चाहिए, वरना हर कुता अपने आप को पागल समझने की गुस्ताखी के एवज़ में इस कदर काट खाता है कि इंजेक्शन लगाने लायक जगह भी ढूंढनी मुश्किल हो जाये कि अब ये कहां लगाएं ?

✍️अतुल मिश्र 

श्री धन्वंतरि फार्मेसी 

मौ. बड़ा महादेव 

चन्दौसी, जनपद सम्भल 

उत्तर प्रदेश, भारत

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