बुधवार, 22 मई 2024

मुरादाबाद के प्रख्यात इतिहासकार,पुरातत्ववेत्ता और साहित्यकार स्मृतिशेष पंडित सुरेन्द्र मोहन मिश्र जी की जयंती 22 मई 2024 को उन पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का विशेष आलेख जो मुरादाबाद से प्रकाशित दैनिक परिवर्तन का दौर , दैनिक उत्तर केसरी, संभल से प्रकाशित दैनिक राष्ट्रीय सिद्धांत, लखनऊ से प्रकाशित दैनिक जनसंदेश और अमरोहा से प्रकाशित दैनिक आर्यावर्त केसरी में प्रकाशित हुआ है ......

 






अतीत में दबे साहित्य को खोजा सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
     मैं सरस्वती का पुत्र हूँ, लक्ष्मी के आगे सिर नहीं नवाऊंगा । कह कर दीपावली की रात्रि को पूजा- गृह से बाहर निकल जाने वाले सुरेंद्र मोहन मिश्र ने न केवल साहित्यकार के रूप में ख्याति प्राप्त की बल्कि इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता के रूप में भी विख्यात हुए । 
     साहित्य, इतिहास और पुरातत्व को अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले सुरेन्द्र मोहन मिश्र की बचपन से ही साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने में रुचि थी। पं सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला', महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, डॉ हरिवंश राय बच्चन जैसे अनेक लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों का साहित्य आपने पन्द्रह-सोलह वर्ष की अवस्था में ही पढ़ लिया था ।साहित्य अनुराग के कारण ही आप कविता लेखन की ओर प्रवृत्त हुए। उधर, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में गाये जाने वाले कोरसों का भी मन पर पूरी तरह प्रभाव पड़ा। 
     आपकी प्रथम कविता दिल्ली से प्रकाशित दैनिक सन्मार्ग में वर्ष 1948 में प्रकाशित हुई । उस समय आपकी अवस्था मात्र सोलह वर्ष की थी। इसके पश्चात् आपकी पूरी रुचि साहित्य लेखन की ओर हो गयी लेकिन आपके पिता को यह सहन न था। वह चाहते थे कि उनका पुत्र अपने अध्ययन में मन लगाये व वैद्यक व्यवसाय में उनका सहयोग करें।  
    प्रारम्भ में आपने छायावादी और रहस्यवादी कवितायें लिखी। वर्ष 1951 में जब वह मात्र 19 वर्ष के थे उनकी प्रथम काव्य कृति मधुगान प्रकाशित हुई। इस कृति में उनके 37 गीत हैं। इस गीत संग्रह की भूमिका में साहित्यकार शील लिखते है– मधुसूदन भगवान की असीम कृपा से प्रस्तुत मधुगान में ऐसे मधुर गीतों का संकलन हुआ है जिनके मधुमय निनाद से एवं जिनकी मधुमयतान से प्रत्येक सहृदय मानव का मानस मधुमय हो जाता है। जिस मधुर काल में यौवन का विकास आरम्भ होता है, उसमें समस्त सृष्टि इसी प्रकार दृष्टिगोचर होती है। प्रस्तुत गीतों के लेखक सुरेन्द्र मोहन मिश्र अपने जीवन की ऐसी हो मधुमयी घड़ियों में से होकर अग्रसर हो रहे हैं। उनके लिए वेदनामयी कसक भी मधुमयी है और माधुर्य तो माधुर्य है ही।
    दूसरी कृति वर्ष 1955 में 'कल्पना कामिनी शीर्षक से पाठकों के सन्मुख आई। इस श्रृंगारिक गीतिकाव्य में उनके वर्ष 1951-52 में रचे 51 गीत हैं। लगभग 27 वर्ष के अंतराल के पश्चात उनकी तीसरी काव्य कृति कविता नियोजन का प्रकाशन वर्ष 1982 में हुआ। प्रज्ञा प्रकाशन मंदिर चन्दौसी द्वारा प्रकाशित इस कृति में उनकी वर्ष 1972 से 1974 के मध्य रची 26 हास्य-व्यंग्य की कविताएं हैं। इस कृति के संदर्भ में काका हाथरसी की काव्य पंक्तियां दृष्टव्य हैं- करते कविता नियोजन कविवर मिश्र सुरेन्द्र / प्रियदर्शी, सुंदर-सरस, हास्य व्यंग्य रस केन्द्र / हास्य व्यंग्य रस केन्द्र, कला में गहरी निष्ठा/काव्य जगत में दिन- दूनी बढ़ रही प्रतिष्ठा/ तुलना किससे करें, कहो कविराज तुम्हारी/ स्वीकारो प्रिय मंगलमय कामना हमारी ।
       वर्ष 1993 में उनकी चौथी कृति 'बदायूं के रणबांकुरे राजपूत' का प्रकाशन हुआ। प्रतिमा प्रकाशन चन्दौसी द्वारा प्रकाशित इस कृति में बदायूँ जनपद के राजपूतों का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत किया गया है। पाँचवीं कृति इतिहास के झरोखे से संभल का प्रकाशन वर्ष 1997 में प्रतिमा प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा हुआ। इसका दूसरा संस्करण वर्ष 2009 में प्रकाशित हुआ ।
      वर्ष 1999 में उनकी छठी कृति कवयित्री सम्मेलन का प्रकाशन हिन्दी साहित्य निकेतन बिजनौर द्वारा हुआ। इस कृति में उनको 42 हास्य-व्यंग्य कविताएं हैं। वर्ष 2001 मैं सातवीं कृति के रूप में ऐतिहासिक उपन्यास 'शहीद
मोती सिंह' का प्रकाशन प्रतिमा प्रकाशन मुरादाबाद द्वारा हुआ।
     वर्ष 2003 में उनकी तीन काव्य कृतियों- पवित्र पंवासा, मुरादाबाद जनपद का स्वतन्त्रता संग्राम तथा मुरादाबाद और अमरोहा के स्वतन्त्रता सेनानी का प्रकाशन हुआ । इसी वर्ष उसकी एक कृति मीरापुर के नवोपलब्ध कवि' का प्रकाशन हुआ। उनके देहावसान के पश्चात उनकी बारहवीं कृति आजादी से पहले की दुर्लभ हास्य कविताएं का प्रकाशन उनके सुपुत्र अतुल मिश्र द्वारा वर्ष 2009 में किया गया।
     उनकी अप्रकाशित कृतियों में महाभारत और पुरातत्व, मुरादाबाद जनपद की समस्या पूर्ति, स्वतंत्रता संग्रामः पत्रकारिता के साक्ष्य, चंदौसी का इतिहास, भोजपुरी कजरियां, राधेश्याम रामायण पूर्ववर्ती लोक राम काव्य, बृज के लोक रचनाकार, चंदौसी इतिहास दोहावली, बरन से बुलन्दशहर, हरियाणा की प्राचीन साहित्यधारा, स्वतंत्रता संग्राम का एक वर्ष, दिल्ली लोक साहित्य और शिला यंत्रालय, रूहेलखण्ड की हिन्दी सेवायें, भूले-बिसरे साहित्य प्रसँग, रसिक कवि तुलसी दास, हिन्दी पत्रों की कार्टून- कला के दस वर्ष उल्लेखनीय हैं।
   वर्ष 1955 में ही उनकी रुचि पुरातत्व महत्व की वस्तुएं एकत्र करने में हो गयी। इसी वर्ष उन्होंने चंदौसी पुरातत्व संग्रहालय' की नींव डाल दी जो बाद में कई वर्ष तक मुरादाबाद के दीनद‌याल नगर में हिन्दी संस्कृत शोध संस्थान, पुरातत्व संग्रहालय के रूप में संचलित होता रहा। पुरातत्व वस्तुओं की खोज के दौरान उन्होंने प्राचीन युग के अनेक अज्ञात कवियों प्रीतम, ब्रह्म, ज्ञानेन्द्र मधुसूदन दास, संत कवि लक्ष्मण, बालक राम आदि की पाण्डुलिपियाँ खोजी । हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि इनमें से अनेक ग्रंथ दुर्लभ थे।
   उनकी समस्त पुरातात्विक धरोहर वर्तमान में उनके सुपुत्र अतुल मिश्र के अलावा बरेली के पांचाल संग्रहालय, स्वामी शुकदेवानन्द महाविद्यालय, शाहजहांपुर में 'पं. सुरेन्द्र मोहन मिश्र संग्रहालय'  तथा रजा लाइब्रेरी में संरक्षित है। 
उनके साहित्य सृजन के संदर्भ में यश भारती माहेश्वर तिवारी का कहना है- कीर्तिशेष पंडित सुरेन्द्र मोहन मिश्र ने साहित्य के क्षेत्र में एक गीतकार से अलग एक विशुद्ध हास्य कवि के रूप में भी अपनी पहचान बनाई है।
    केजीके महाविद्यालय मुरादाबाद में हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ मीरा कश्यप कहती हैं- "उनमें इतिहासकार की भांति खरा यथार्थ है तो कल्पनाशीलता भी । इतिहास की वीथिका में विचरते हुए उनका कवि मन कभी भी थकता नहीं है, ऐसा एक विराटमना व्यक्ति अपने जीवन में निरंतर कालजयी रचनाओं के साथ हमारे बीच अपनी उपस्थिति बनाने में सफल हो सका है तो वे हैं - सुरेन्द्र मोहन मिश्र
 विज्ञान कथा लेखक राजीव सक्सेना का कहना है अपने सुदीर्घ रचना काल में मिश्र जी ने केवल हास्य रस की कविताएं ही नहीं रची हैं, काव्य की दूसरी विधाओं विशेषकर गीत को भी उन्होंने पर्याप्त समृद्ध किया है। काव्य रचना के अलावा मिश्र जी ने नाटक भी लिखे हैं। पुरातत्व और इतिहास पर भी उन्होंने काफी लिखा है। वे निरे कवि नहीं है बल्कि गद्य लेखन में भी खासे निष्णात हैं। सही बात तो यह है कि साहित्यकार के रूप में मिश्र जी के विविध रूप हैं।
   मिश्र जी का जन्म 22 मई 1932 को चंदौसी के लब्ध प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ। आपके पिता पंडित रामस्वरूप वैद्यशास्त्री रामपुर जनपद की शाहबाद तहसील के अनबे ग्राम से चंदौसी आकर बसे थे।उनकी आयुर्वेद जगत में अच्छी ख्याति थी। उनके द्वारा स्थापित धन्वतरि फार्मसी द्वारा निर्मित औषधियाँ देश भर में प्रसिद्ध है । आपके पितामह पंडित बिहारी लाल शास्त्री थे।
   आपकी प्रारम्भिक शिक्षा चंदौसी में पंडित गोकुलचन्द्र के विद्यालय में हुई। तदुपरान्त आपने एसएम इंटर कालेज में कक्षा तीन में प्रवेश ले लिया। वर्ष 1953 में आपने इसी विद्यालय से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। वर्ष 1955 में आपने शिक्षाध्ययन त्याग दिया और साहित्य सेवा को पूर्ण रूप से समर्पित हो गये ।
   15 अप्रैल 1955 को उनका विवाह सोरों के प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी पं दामोदर शर्मा की पुत्री और जिला सूचना अधिकारी ‘प्रियदर्शिनी’ महाकाव्य के अमर प्रणेता पंडित राजेंद्र पाठक की छोटी बहन विमला के साथ सम्पन्न हुआ | उनके दो सुपुत्र अतुल मिश्र व विप्र वत्स मिश्र तथा दो सुपुत्रियाँ प्रज्ञा शर्मा व प्रतिमा शर्मा हैं।
     उनका निधन 22 मार्च 2008 को मुरादाबाद में अपने दीनदयाल नगर स्थित आवास पर हुआ ।

संपर्क : संस्थापक
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद  244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

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