बेटे अरविन्द को सरकारी नौकरी नहीं मिल पाने के कारण मोहन बहुत परेशान था। वह सोचता कि स्वयं सरकारी ऑफिस में बाबू होने पर भी अपने बेटे के लिए कुछ नहीं कर पाता। करता भी कैसे जनरल क्लास का जो ठहरा और पगार भी इतनी नहीं थी कि रिश्वत दे सके व न ही अरविन्द इतनी तीक्ष्णबुद्धि का था कि सर्वोत्तम अंक ला सके। वह अरविन्द को दुकान खुलवाने की सोचने लगा परन्तु सरकारी नौकरी के बिना न मान सम्मान मिलेगा न ही अच्छे घर की लड़की वह यह भी भलीभांति जानता था। यही सब सोचते हुए वह अखबार के पन्ने पलट रहा था कि तभी उसकी नजर एक खबर पर पड़ी। "पिता की मृत्यु हो जाने के कारण बेटे को पिता के पद पर नियुक्त किया गया।"
कुर्सी से उठ वह सीधा रेलवे ट्रैक की ओर गया, तेजी से उसकी ओर आती ट्रेन का जोरदार हॉर्न भी उसका इरादा नहीं बदल सका। उसकी आँखें आंसुओं से भीगी थी पर उम्मीद की एक किरण जगमगा रही थी।
✍️इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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