गुरुवार, 3 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ----- मानवता


"गुडमार्निग$$$$........ टीचर$$$.........." क्लास फर्स्ट के छोटे छोटे बच्चे एक मधुर संगीत की तरह गुडमार्निग गाते हुए बोले।
"गुडमार्निग बच्चों सिट डाउन। मैं जिन जिन बच्चो का नाम ले रही हूँ वो खड़े हो जाए। आशि, अर्नव, रुद्धव, राघव, सारिका, मिष्टी और मेधावी आप सभी की दो महीने की फीस पैडिंग हैं। एक तो इतने टाइम बाद स्कूल खुले हैं उसपर आपलोग ने पूरे दो महीने से फीस नहीं जमा करी। अब जबतक फीस जमा नहीं होगी आप हर पीरियड में कान पकड़कर क्लास के बाहर खड़े रहेंगे।" सभी बच्चे कान पकड़कर क्लास के बाहर खड़े रहे।
आशि रोते रोते घर पहुंची। वहां उसने देखा कि उसका छोटा भाई सफेद चादर में लिपटा जमीन पर लेटा हुआ था और माँ पापा का रो रोकर बुरा हाल था।
पड़ोस की एक आंटी दूसरी आंटी को बता रही थी "पैसे नहीं बचे इसीलिए टायफॉयड का इलाज नहीं करा सके और .......अपने नन्हे से बच्चे को खो दिया।"
अगले दिन आशि को छोड़ सभी बच्चों की फीस जमा हो गई। क्लासटीचर क्लास में आयी और फीस न जमा होने की वजह से फिर से आशि को पूरे टाइम क्लास के बाहर कान पकड़कर खड़े रहने को कहा।
आशि की नन्ही आखों से बहते आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उधर टीचर ने चैप्टर फाइव जिसका टाइटिल था "मानवता", बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

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