मंगलवार, 1 जनवरी 2019

मुरादाबाद के रंगकर्मी मास्टर फिदा हुसैन नरसी पर केंद्रित डॉ मनोज रस्तोगी का आलेख । यह आलेख प्रकाशित हुआ था दैनिक जागरण मुरादाबाद के 11 जुलाई 1999 के अंक में ...









मुरादाबाद के मास्टर फिदा हुसैन नरसी पारसी रंगमंच के वह आखिरी चिराग थे, जिन्होंने पारसी एवं हिन्दी रंगमंच को न केवल समृद्ध किया अपितु उसे विकसित भी किया। रंगमंच की नई पीढ़ी को पारसी रंगकर्म से परिचित कराया । अपनी एक सौ पांच वर्ष की आयु में भी वह सक्रिय रूप से रंगमंच से जुड़े हुए थे।

मुरादाबाद में 11 मार्च 1894 में जन्मे मास्टर फिदा हुसैन नरसी को अभिनय, गायन या वादन का शौक विरासत में नहीं मिला था। उनके परिवार में इनसे दूर-दूर तक का वास्ता न था। सन 1911 में कठपुतली का तमाशा देखकर वह अभिनय के प्रति आकृष्ट हुए और फिर उम्र के अंतिम पड़ाव तक रंगमंच से जुड़े रहे।

सन् 1917 में वह रामदयाल ड्रामेटिक क्लब से जुड़े। उस समय उन्होंने क्लब द्वारा मंचित किये गये नाटक “शाही फकीर“ में महिला कलाकार का अभिनय किया। सन् 1918 में उनकी मुलाकात दिल्ली में न्यू एल्फ्रेड कम्पनी के निदेशक मानिक शाह से हुई। यह कंपनी मुख्य रूप से पारसी नाटकों का मंचन करती थी। मास्टर फिदा हुसैन की कद काठी और बुलंद आवाज मानिक शाह को भा गयी। उन्होंने और कंपनी के लेखक निर्देशक पं. राधेश्याम कथा वाचक ने फिदा हुसैन की प्रतिभा को परखकर उन्हें कंपनी में शामिल कर लिया। इस कम्पनी में उन्होंने लगभग 12 वर्ष तक काम किया। सन 1921 में महात्मा गांधी अहमदाबाद में भक्त प्रहलाद नाटक में उनके अभिनय से खासे प्रभावित हुए।
   सन् 1928 में इसी कंपनी के नाटक ईश्वर भक्ति में मास्टर साहब के अभिनय और आवाज की तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष पं. मोतीलाल नेहरू सरोजिनी नायडू और पं. मदन मोहन मालवीय ने बेहद सराहना की। इस नाटक के एक गाने (निर्बल के प्राण पुकार रहे. जगदीश हरे, जगदीश हरे) ने तो मा. फिदा हुसैन को कामयाबी की बुलंदी पर पहुंचा दिया। उसके बाद भक्त नरसी मेहता नाटक में नरसी भगत के रूप में मा. फिदा हुसैन को देखकर जगदगुरु शंकराचार्य इतने अधिक प्रभावित हुए कि उन्हें नरसी की उपाधि से विभूषित कर दिया। उसी दौरान महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने उनके अभिनय को देखकर प्रेमशंकर की उपाधि से
अलंकृत किया और मा. फिदा हुसैन प्रेमशंकर और नरसी के नाम से विख्यात हो गये। उन्होंने राजा हरिश्चन्द्र, नल दमयंती, यहूदी की लड़की, चंद्रावली, खूबसूरत बला, गर्म खून, सीता वनवास, ख्वाबे हस्ती, सिल्वर किंग, वीर अभिमन्यु, हिटलर आदि नाटकों में यादगार अभिनय किया था। इस समय तक उन्हें डेढ़ सौ से अधिक स्वर्ण  पदक प्राप्त हो चुके थे तथा गायक, संगीतकार नाटककार के रूप में ख्याति अर्जित कर चुके थे। सन् 1932 में प्रसिद्ध ग्रामोफोन रिकार्ड कम्पनी एचएमवी ने उन्हें कलकत्ता में अपना ड्रामा डायरेक्टर नियुक्त किया।इस कंपनी में उन्होंने दस साल तक काम किया। इसी दौरान जहांआरा बेगम उर्फ कजन बाई की कंपनी, कजन थियेट्रिकल कंपनी में उन्होंने लैला मजनू, शीरी फरहाद बिल मंगल, गरीब का दर्द और हुमायूँ आदि नाटकों में मुख्य भूमिका निभाई।
    सन् 1948 में उन्होंने कलकत्ता में अपनी निजी मून लाइट कंपनी स्थापित की। फिल्म जगत में उनका प्रवेश सन 1932 में हुआ। उनकी पहली फिल्म बाबूलाल चौरवानी द्वारा निर्मित और प्रफुल्लराय द्वारा निर्देशित रामायण थी। उसके बाद उन्होंने चारु राय की फिल्म मस्ताना, इंसाफ, डाकू का लड़का, सोहराब मोदी की फिल्म दिल की प्यास, खुदाई,सितमगर, मतवाली मीरा, मुंशी मेहंदी हसन की दिल फरोश, कुंवारी मां और गरीब की दुनिया फिल्मों में मुख्य भूमिका निभाई ।
     फिल्मी दुनिया को अलविदा कहकर वह फिर रंगमंच की दुनिया में लौट आये और मून लाइट कंपनी पुनः शुरू की। वर्ष 1968 तक रंगमंच की दुनिया में धूम मचाने के बाद वह अपने शहर मुरादाबाद वापस लौट आये।
    यहां आने के बाद भी यह निष्क्रिय नहीं रहे और आदर्श कला संगम से जुड़ गये। तब से अब तक लगातार वह नयी प्रतिभाओं को मार्ग दर्शन करते रहे। यहां आकर उन्होंने पारसी रंगमंच शैली से महानगर के रंगमंच को न केवल गौरवान्वित किया बल्कि इस शैली को नयी प्रतिभाओं को सिखाया भी। यहां उन्होंने आदर्श कला संगम के बैनर तले आगा खां कश्मीरी का तुर्की हूर, अहमद हसन का भाई बहिन और पं. राधेश्याम कथा वाचक का वीर अभिमन्यु नाटक मंचित किये।
   कलकत्ता की प्रतिभा अग्रवाल ने उनके कार्यों का मूल्यांकन करते हुए एक ग्रंथ मास्टर फिदा हुसैन, रंगमंच के 50 साल शीर्षक से प्रकाशित किया। उनके जीवन पर वृत्त चित्र बनाया गया। दूरदर्शन, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, संगीत नाटक अकादमी, भारत भवन जैसे राष्ट्रीय संस्थानों में उनकी सेवायें ली जाने लगीं।
   सन् 1985 में उन्हें केन्द्र सरकार द्वारा संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकट रमन द्वारा उन्हें रंगमंच सम्राट की उपाधि से अलंकृत किया गया। उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी ने उन्हें तीन वर्ष की मानद सदस्यता प्रदान की। वर्ष 94 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार के सर्वोच्च सम्मान यश भारती से सम्मानित किया गया। जिला प्रशासन द्वारा भी दर्जनों बार सम्मानित मा. फिदा हुसैन नरसी के आवास वाली गली का नामकरण भी उनके नाम पर किया गया।  उन्हें रंग भारती सम्मान से भी प्रदेश सरकार ने सम्मानित किया। उनका निधन 10 जुलाई 1999 को हुआ ।
   हिन्दी और परसी रंगमंच में उनका योगदान अब इतिहास बनकर रह गया है। अपनी शायरी, बेजोड़ अभिनय की छाप जो उन्होंने छोड़ी है वह युग-युगों तक अमिट रहेगी।
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822


 

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