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सोमवार, 4 मार्च 2024
मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष शिशुपाल मधुकर की शनिवार,दो मार्च 2024 को प्रथम पुण्यतिथि थी। प्रस्तुत है उन पर केंद्रित विशेष आलेख जो दो मार्च 2024 को अमरोहा के दैनिक आर्यावर्त केसरी, संभल के दैनिक राष्ट्रीय सिद्धांत, लखनऊ के दैनिक जनसंदेश, तीन मार्च 2024 को मुरादाबाद के दैनिक उत्तर केसरी और चार मार्च को मुरादाबाद के दैनिक परिवर्तन का दौर में प्रकाशित हुआ है ......
बुधवार, 21 फ़रवरी 2024
रविवार, 8 जनवरी 2023
सोमवार, 2 जनवरी 2023
बुधवार, 23 मार्च 2022
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर की कविता --- भगत सिंह
ऐ, भगत सिंह
लोग कहते हैं कि
तुम्हें अंग्रेजों ने
फांसी पर चढ़ाया था
क्या यह सही है
मैं नहीं मानता
अंग्रेजों की हिम्मत ही नहीं थी कि
तुम्हें फांसी पर चढ़ा देते
वे तो तुम्हारे नाम से ही
थर -थर कांपते थे
वे तो तुम्हें छू भी नहीं सकते थे
अच्छा तुम्हीं बताओ
जब तुमने बहरे हुए अंग्रेजों के
कान खोलने के लिये
असेंबली में बम फेंका
तो क्या तुम्हें पकड़ने वाले
अंग्रेज़ थे
नहीं न
वे तो इसी देश के वासिन्दे थे
तुम यह भी अच्छी तरह जानते हो
कि तुम पर कोड़े बरसाने वाले
पुलिस वाले कौन थे
वे भी अंग्रेज़ नहीं थे, यहीं के
इसी देश के रहने वाले थे
तुम्हें जेल में यातना देने वाले
कौन थे, कहाँ के थे वे, क्या नाम था उनका
इसका भी तुम्हें अच्छी तरह पता है
क्या वे अंग्रेज़ थे
नहीं न
तुम्हारे खिलाफ़ मुकदमा लड़ने वाला
वकील, इंग्लैंड से तो नहीं आया था
बताओ भगत सिंह
वह भी इसी देश की मिट्टी का था ना
जिस देश की मिट्टी को आज़ाद कराने की
तुमने कसम खायी थी
और तुम्हें फांसी का हुक्म सुनाने वाला जज
जिसने सारे नियमों को तोड़ कर फांसी देने का षड्यंत्र रचा
कहाँ का था वह
इसी देश का था ना
जिसकी गुलामी की जंज़ीर तोड़ने के लिए
तुमने सारी सुख सुविधाओं का त्याग
किया था
और वो जल्लाद
जिसने फांसी का लीवर खींच कर
तुम्हें मृत देह में बदल दिया था
क्या वह कहीं बाहर का था
ये वही लोग थे जिनके स्वाभिमान के लिए
तुमने फांसी का फंदा चूमा था
पर ये लोग गुलामी की दलदल में
सुविधाओं के कमल से लिपटे हुए थे
ये वही लोग थे जो तुम्हारे सपनों के पंखों को
नोचने के लिए अपना ज़मीर गिरवी रख चुके थे
अगर दुनिया तुम्हें महान देश भक्त कहती है तो
तुम्हारे खिलाफ़ साज़िश रचने वाले कौन हो सकते हैं
क्या उन्हें गद्दार कहना उचित नहीं है
उन्हें जयचंद भी बुला सकते हैं
अंग्रेजों को दोष देने से ऐसे लोग
दोषारोपण से साफ बच निकलते हैं
ये ही लोग सम्मानित और भद्र बनकर
तुम्हारे सपने को कुचलने में लिप्त थे
और उनके उत्तराधिकारी
तुम्हारी स्मृतियों को भुलाने की
पुरजोर कोशिश में लगे हैं
उन्हें लगता है कहीं तुम
वापिस न आ जाओ
क्योंकि इस बार तुम वापिस आये
तो ये बख्शे नहीं जायेंगे
यही डर उन्हें सताता रहता है
✍️ शिशुपाल "मधुकर "
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
भारत
रविवार, 7 नवंबर 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर की ग़ज़ल ----हमको जो भी हकूक हासिल हैं उनको लड़कर ही हमने छीना है
हमसे कैसा गिला ओ शिकवा है
हमने वो ही कहा जो देखा है
सच को कैसे दबा के रखते हैं
यह भी हमने तुम्हीं से सीखा है
हम थे अनजान बेवफाई से
तुमको जाना तो उसको समझा है
हमको जो भी हकूक हासिल हैं
उनको लड़कर ही हमने छीना है
जिसने खुद को बदल लिया "मधुकर "
उसने ही तो जमाना बदला है
✍️ शिशुपाल 'मधुकर ", मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 15 अगस्त 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर की ग़ज़ल ----खूँ जिन्होंने दिया इस चमन के लिए
सर नवाते उन्हें हम नमन के लिए
हँस के फांसी चढ़े जो वतन के लिए
दम से उनके ही आईं बहारें यहाँ
खूँ जिन्होंने दिया इस चमन के लिए
सब हों आज़ाद हो जुल्म का खात्मा
हो गये होम वे इस हवन के लिए
आओ अर्पित करें अपने श्रृद्धा सुमन
नौजवानों के उस बांकपन के लिए
ख्वाब आँखो में वो ही सजाएँगें हम
मर मिटे थे वे जिस सपन के लिए
✍️ शिशुपाल "मधुकर ",मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत
रविवार, 7 मार्च 2021
गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021
शुक्रवार, 1 जनवरी 2021
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल मधुकर की रचना ----आशा की इक नई किरण से स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
आशा की इक नई किरण से स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा
लेते हैं संकल्प यही हम मिटे जगत का हर अंधियारा।
करनी है स्वीकार चुनौती कदम कदम पर आने वाली
नव वर्ष के मंगलमय का हो सपना साकार हमारा
✍️ शिशुपाल "मधुकर", मुरादाबाद
शनिवार, 3 अक्तूबर 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का गीत ---रोजगार का नहीं भरोसा महंगा बिजली पानी , दिल्ली साहूकारों जैसी करती है मनमानी, अब सरकार नहीं सुनती है किसी के दिल की हाय
सौ में दस की खातिर ही अब होते सभी उपाय
बोलो बाकी लोगों कब तक सहोगे यह अन्याय
रोजगार का नहीं भरोसा महंगा बिजली पानी
दिल्ली साहूकारों जैसी करती है मनमानी
अब सरकार नहीं सुनती है किसी के दिल की हाय
बोलो ---------
बढ़ती जाती रोज गरीबी खुश होते धनवान
मेहनत करने वालों का अब होता है अपमान
बेईमानों ने सारे में लिया है जाल बिछाय
बोलो -----------
होता है अपराध साथियों किसी जुल्म को सहना
शोषण अत्याचार के आगे खतरनाक चुप रहना
अब तक का इतिहास हमें तो रहा है यही बताय
✍️ शिशुपाल सिंह "मधुकर", मुरादाबाद
शनिवार, 5 सितंबर 2020
बुधवार, 8 जुलाई 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का गीत ------जैसी आशंका थी वैसे ही दिन आए हैं......
✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद 244001
शुक्रवार, 22 मई 2020
रविवार, 10 मई 2020
शुक्रवार, 1 मई 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का गीत ----यह तो बिल्कुल अलग बात है
मजदूरों की व्यथा- कथा तो कहने वाले बहुत मिलेंगे
पर उनके संघर्ष में आना यह तो बिल्कुल अलग बात है
कितना उनका बहे पसीना
कितना खून जलाते हैं
हाड़ तोड़ मेहनत करके भी
सोचो कितना पाते हैं
मजदूरों के जुल्मों- सितम पर चर्चा रोज बहुत होती है
उनको उनका हक दिलवाना यह तो बिल्कुल अलग बात है
मानव है पर पशुवत रहते
यही सत्य उनका किस्सा है
रोज-रोज का जीना मरना
उनके जीवन का हिस्सा है
उनके इस दारुण जीवन पर आंसू रोज बहाने वालों
उनको दुख में गले लगाना यह तो बिल्कुल अलग बात है
है संघर्ष निरंतर जारी
यह है उनका कर्म महान
वे ही उनके साथ चलेंगे
जो समझे उनको इंसान
एक दिन उनको जीत मिलेगी पाएंगे सारे अधिकार लेकिन यह दिन कब है आना यह तो बिल्कुल अलग बात है
✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद 244001