ऐ, भगत सिंह
लोग कहते हैं कि
तुम्हें अंग्रेजों ने
फांसी पर चढ़ाया था
क्या यह सही है
मैं नहीं मानता
अंग्रेजों की हिम्मत ही नहीं थी कि
तुम्हें फांसी पर चढ़ा देते
वे तो तुम्हारे नाम से ही
थर -थर कांपते थे
वे तो तुम्हें छू भी नहीं सकते थे
अच्छा तुम्हीं बताओ
जब तुमने बहरे हुए अंग्रेजों के
कान खोलने के लिये
असेंबली में बम फेंका
तो क्या तुम्हें पकड़ने वाले
अंग्रेज़ थे
नहीं न
वे तो इसी देश के वासिन्दे थे
तुम यह भी अच्छी तरह जानते हो
कि तुम पर कोड़े बरसाने वाले
पुलिस वाले कौन थे
वे भी अंग्रेज़ नहीं थे, यहीं के
इसी देश के रहने वाले थे
तुम्हें जेल में यातना देने वाले
कौन थे, कहाँ के थे वे, क्या नाम था उनका
इसका भी तुम्हें अच्छी तरह पता है
क्या वे अंग्रेज़ थे
नहीं न
तुम्हारे खिलाफ़ मुकदमा लड़ने वाला
वकील, इंग्लैंड से तो नहीं आया था
बताओ भगत सिंह
वह भी इसी देश की मिट्टी का था ना
जिस देश की मिट्टी को आज़ाद कराने की
तुमने कसम खायी थी
और तुम्हें फांसी का हुक्म सुनाने वाला जज
जिसने सारे नियमों को तोड़ कर फांसी देने का षड्यंत्र रचा
कहाँ का था वह
इसी देश का था ना
जिसकी गुलामी की जंज़ीर तोड़ने के लिए
तुमने सारी सुख सुविधाओं का त्याग
किया था
और वो जल्लाद
जिसने फांसी का लीवर खींच कर
तुम्हें मृत देह में बदल दिया था
क्या वह कहीं बाहर का था
ये वही लोग थे जिनके स्वाभिमान के लिए
तुमने फांसी का फंदा चूमा था
पर ये लोग गुलामी की दलदल में
सुविधाओं के कमल से लिपटे हुए थे
ये वही लोग थे जो तुम्हारे सपनों के पंखों को
नोचने के लिए अपना ज़मीर गिरवी रख चुके थे
अगर दुनिया तुम्हें महान देश भक्त कहती है तो
तुम्हारे खिलाफ़ साज़िश रचने वाले कौन हो सकते हैं
क्या उन्हें गद्दार कहना उचित नहीं है
उन्हें जयचंद भी बुला सकते हैं
अंग्रेजों को दोष देने से ऐसे लोग
दोषारोपण से साफ बच निकलते हैं
ये ही लोग सम्मानित और भद्र बनकर
तुम्हारे सपने को कुचलने में लिप्त थे
और उनके उत्तराधिकारी
तुम्हारी स्मृतियों को भुलाने की
पुरजोर कोशिश में लगे हैं
उन्हें लगता है कहीं तुम
वापिस न आ जाओ
क्योंकि इस बार तुम वापिस आये
तो ये बख्शे नहीं जायेंगे
यही डर उन्हें सताता रहता है
✍️ शिशुपाल "मधुकर "
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
भारत
वाह वाह वाह,उत्तम अभिव्यक्ति
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