रविवार, 7 नवंबर 2021

मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर की ग़ज़ल ----हमको जो भी हकूक हासिल हैं उनको लड़कर ही हमने छीना है


हमसे कैसा गिला ओ शिकवा है

हमने वो ही कहा जो देखा है


सच को कैसे दबा के रखते हैं

यह भी हमने तुम्हीं से सीखा है


हम थे अनजान बेवफाई से

तुमको जाना तो उसको समझा है


हमको जो भी हकूक हासिल हैं

उनको लड़कर ही हमने छीना है


जिसने खुद को बदल लिया "मधुकर "

उसने ही तो जमाना बदला है


✍️ शिशुपाल 'मधुकर ", मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत

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