मंगलवार, 21 अप्रैल 2020

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 19 अप्रैल 2020 को ऑनलाइन काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस आयोजन की अध्यक्षता अशोक विद्रोही ने की । मुख्य अतिथि मनोज मनु तथा विशिष्ट अतिथि बाबा संजीव आकांक्षी थे। इस आयोजन में 21 साहित्यकारों सर्वश्री अभिषेक रुहेला , शुभम कश्यप, अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, अमित कुमार सिंह, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ , ईशांत शर्मा, मीनाक्षी ठाकुर , रश्मि प्रभाकर, डॉ मीना कौल, मोनिका मासूम, हेमा तिवारी भट्ट, डॉ रीता सिंह, डॉ अर्चना गुप्ता, राजीव प्रखर, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम, अशोक विश्नोई ,श्री कृष्ण शुक्ल, बाबा संजीव आकांची, मनोज मनु और अशोक विद्रोही ने अपनी रचना प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संचालन ईशांत शर्मा ने किया।


इक आस  दबी  है  सीने  में,
कल वो दिन भी  आ जायेगा।
वसुधा पर जो यह  रोग लगा,
निश्चित ही वह  टल  जायेगा।

थोड़ा-सा तुम  भी  सब्र  करो,
थोड़ा-सा  हम   सन्तोष  करें।
समझा  दें  सबको  नमता  से,
कोई भी व्यक्ति  न  रोष  भरे।
तम  ने जो  डेरा  डाल  लिया,
दीपक   ही   उसे   बुझायेगा।
वसुधा पर जो यह  रोग  लगा,
निश्चित ही  वह  टल  जायेगा।

था भटक गया  मानव  पथ से,
लेकिन अब तो यह भान हुआ।
क़ुदरत को हानि  न  देना  तुम,
जिससे  वह  चिन्तावान  हुआ।
अब भवनवास  ही  जीवन  में,
नित   नया   सवेरा    लायेगा।
वसुधा पर जो  यह  रोग  लगा,
निश्चित ही  वह  टल  जायेगा।।

✍️ अभिषेक रुहेला'
ग्रा०पो०- फत्तेहपुर विश्नोई,
मुरादाबाद (उ०प्र०)-244504
----------------------------------------------------------

ऐसा लगता है अंतकाल आया
एक कयामत लिए ये साल आया

आदमी आदमी से डरता है
खौफ का ऐसा अंतराल आया

खून इंसानियत का होता है
आसमा से ये क्या बबाल आया

लुट गया कारावाने सब्र-ओ-करार
उनको फिर भी न कुछ मलाल आया

उसने रख्खा शुभम भरम अपना
उसके जैसा न ज़ुल-जलाल आया

 ✍️ शुुभम कश्यप
बाग गुलाब राय
बाजार मुफ़्ती
मुरादाबाद 244001
मोबाइल नम्बर -6396191319
--------------------------------------- 

देश ये फिर से यारों सँवर जाएगा।
जल्द ही ये करोना भी मर जाएगा।।

रौशनी हर क़दम फिर से होगी यहाँ।
तीरगी से वतन जब उभर जाएगा।।

मारना है अगर मार नफ़रत को तू।
मारकर बेगुनह को किधर जाएगा।।

नासमझ बनके जो जाल फैला रहा।
खुद उसी जाल में फँस के मर जाएगा।।

जंग ग़ुरबत से भी आज है देखलो।
हौसला रख ये पल भी गुजर जाएगा।।

बात शासन की मानों मिरे दोस्तों।
गर न मानें मरज़ ये निगर जाएगा।।

है मुझे ये शपथ आज के हाल पर।
अब न 'आनंद' कोई भी दर जाएगा।।

✍️ अरविंद कुमार शर्मा "आनंद"
मुरादाबाद
 उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर - 8979216691
-----------------------------------------------

मैंने अब जीना सीख लिया है,
रोते-रोते हंसना सीख लिया है।
डसती आंखे,चुभती बातें,
मन की तड़पन, तन की ज्वाला,
इन सबको सहना सीख लिया है।
रोते-रोते हंसना सीख लिया है,
हर गम को पीना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।।

चुभती आंखों में कुछ अच्छा ढूंढ लिया है,
खुद की आँखों से खुद को पढ़ना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।
रोते-रोते हंसना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।
रास्ते के पत्थरों को भी पूजना सीख लिया है,
हर परेशानी से जूझना सीख लिया है,
मैंने अब जीना सीख लिया है।।।

   
✍🏻अमित कुमार सिंह
 7 सी/61, बुद्धि विहार
मुरादाबाद 244001
मोबाइल फोन नंबर 9412523624
 --------------------------------------------------------           

कोरोना से क्या रोना
जो होना है सो होना
रहो तुम घर के अंदर
रखो तुम साफ-सफाई
घर से जब बाहर जाओ
तो मास्क लगना भाई
लौट के घर मे आकर
हाथो की करो धुलाई
कुछ दिन सह लो परेशान
कि फिर दिन आये सुखदाई
कि घर में रहने में ही
हैं हम सबकी भलाई
कोरोना से क्यों रोना
जो होना है सो होना ।।

✍️ आवरण अग्रवाल "श्रेष्ठ"
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

देश को अपना असली चेहरा दिखा गये,
आस्तीनों के सांप सड़कों पर आ गये,
मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये,

रहम नहीं था दिल मे डॉक्टर की
जान लेने पर आ गये,
जब पुलिस ने दौड़ाया तब घबरा गये,
मौका लगते ही फूल बरसाने आ गए

मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये,

भरी प्लेटें बिरयानी की शौक से खा गये,
नाम पूरे भारत में बदनाम करा गये,
पीतल के शहर पर कालिख़ पुतवा गये,

मुरादाबाद के पत्थर दुनिया भर में छा गये

✍️ ईशांत शर्मा "ईशु"
        मुरादाबाद
----------------------------------------------------------


अमीरो की बीमारी ने छीन लिया
निवाला गरीबों का..
बुझ गये चूल्हे रामधन और
मुनिया के।
सोच रहे हैं.....
झोंपड़ी के तिनको को शायद सैनिटाइज़
करने की ज़रूरत तो नहीं ...।
देहातियों को हिकारत से देखने वाले
बड़े लोग...
रखे जा रहे हैं एकांतवास में..
समाज से पृथक,
क्योंकि... वो ऊँचे लोग हैं।
उन्हें प्रारम्भ से ही अकेला पन भाता
आया है। अब लौट रहे है...वतन को
विदेश से...,क्या वतन की याद आयी है..
या कुछ और है....?
वातानुकूलित कमरों में रहने वाले
अचानक ही चाहने लगे..
 तपती जेठ की दुपहरियां
गँवार लोग सहमे हैं....पूछते हैं वैद्य जी से,"ई अमीरों का खाँसी जुकाम भी कुछ
अलग होत  है का?"
खेतों में हल चलाता बुधिया पूछता है..
"ई ढोर डंगर से दूर कैसन रहत बा...?
निःशब्द समाज..!!!
नाइट क्लबों में देर रात तक जागते
युगल ...अब कहाँ है?सम्भवतः अनुशा
सन में रहेंगे कुछ देर के लिये,
जब तक महामृत्यु का तांडव चलेगा...!!
काँपती धरती...विदीर्ण होते शरीर
आज शायद प्रकृति  अपने आवरण से हटा रही है...दूषित तन और मन..सम्भवतः चाहती है करना
 स्वयं को सैनिटाइज़....!!!!

✍️ मीनाक्षी ठाकुर
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------


मचा हर ओर हाहाकार, मेरे प्रभु राम आ जाओ,
बड़ी मुश्किल में है संसार, मेरे घनश्याम आ जाओ।।

ये कैसी आपदा आयी, थमा पहिया समय का है,
हुए बेबस सभी प्राणी, और आभास भय का है,
हैं संकट में सभी घर द्वार, मेरे प्रभु राम आ जाओ।।

हुए हैं त्रस्त विपदा से,तुम्हें सबने पुकारा है,
निकालो मुश्किलों से अब, तुम्हारा ही सहारा है,
लो अब फिर से कोई अवतार, मेरे प्रभु राम आ जाओ।।

परिस्थितियां हुईं विकराल, संयम टूट ना जाये,
प्रभू आशाओं का दामन कहीं अब छूट ना जाये,
तुम्हीं हो आसरा सरकार, मेरे प्रभू राम आ जाओ।।

✍️ रश्मि प्रभाकर
सेक्टर10, बुद्धि विहार
मुरादाबाद
-------------------------------------------------------

तेरे कारण
तेरे कारण
कोरोना तेरे कारण
कितने दिन हो गए
काम पे नहीं गए
भूल गए सारे सपनों को
नजरबंद हो गए
तेरे कारण
कोई कितना भी लुभाए
निकलूँगी न मैं घर से
घर में ही बैठूँगी
कमरे बदल बदल के
दरवाजे पर गई
झांक के मैं आ गई
आग लगे इस वायरस को
दूर अपने हो गए
तेरे कारण
झाडू मैं जोर जोर से
सब घर के कोने कोने
फिर याद आया
बरतन भी हैं धोने
झट रसोईघर गई
काम सब कर गई
कूकर में चावल
मिक्सी में चटनी
फिर खाली हो गई
तेरे कारण
तेरे कारण
कोरोना तेरे कारण

✍️ डॉ मीना कौल
मुरादाबाद 244001
---------------------------------------------------------

उँगलियों पर जिंदगी हमको नचाना छोङ दे
बेरहम जीने सुकूं से दे सताना छोङ दे

वक्त इतना तो मयस्सर कर संभल जाएँ  ज़रा
हर घङी कर मोङ पर ठोकर लगाना छोङ दे

या सजा ख्वाबों को दे या नींद से हमको जगा
आब का देके भरम सहरा पिलाना छोङ दे

बेबहर बिखरे हुए तकदीर के अशआर हैं
गा सूरीला गीत या फिर गुनगुनाना छोङ दे

छोङ दे ग़म खिङकियों से घर में घुसने की अदा
ऐ खुशी तू चौखटों को छू के जाना छोङ दे

कर अता नज़रें करम 'मासूम' फूलों पर ज़रा
शाख पे खारों की नाज़ुक गुल खिलाना छोङ दे

✍️ मोनिका"मासूम"
मुरादाबाद 244001
-------------------------------------------------------

कोरोना ने देख लो,क्या कर दीन्हा हाल।
हुस्न छिपा है मास्क में,बन्दा छोंके दाल।।
बन्दा छोंके दाल,सीन बदला है भाई।
नार करे अपलोड,मियां की साफ सफाई
घर में गूँजे गान,'सनम जी' 'बाबू' 'शोना'
रार हुई घर बंद,कि जब आया कोरोना।।
 
कुछ दोहे-------

*संकट की आये घड़ी,हो ना वक्त मुफीद*
*माँ बेटी के रूप में,नारी तब उम्मीद।।१।।*

*कब करना है क्या सही,समय तराजू तोल।*
*होशियार होता नहीं,जोखिम ले जो मोल।।२।।*

*जब आहट हो मौत की,रही द्वार खटकाय।*
*भेदभाव हर भूल के,बढ़ें सभी  समुदाय।।३।।*

*समय कसौटी कस रहा,विपदा रूप धराय।*
*नर,दानव या देवता,मन का मुकुर दिखाय।।४।।*

 *समय कभी टिकता नहीं,हर पल बने अतीत।*
*अधरों पर रखना सखे,बस हिम्मत के गीत।।५।।*
 
✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद 244001
------------------------------------------------------

कैसा यह कोरोना आया
सारे जग में ही है छाया
ठप्प कर रोजगार सभी के
जन जन घर में कैद कराया ।

दिखे विकसित देश भी हारे
हुए मजबूर सब बेचारे
एक एक कर इसने देखो
सारे जग में पैर पसारे ।

मशीनी अब विज्ञान हिला है
नहीं अभी उपचार मिला है
चीन तुम्हारे नव प्रयोग ने
दुनिया को दे दिया सिला है ।

भारतवासी तुम घर रहना
राजन का है बस यह कहना
साथ यदि है सबने दिया तो
देश धरा का होगा गहना ।

✍️ डॉ. रीता सिंह
आशियाना , मुरादाबाद ।
------------------------------------------------------

*सोच रही हूँ मोदी रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम*
******************

मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ  , उस पुस्तक का नाम
कोरोना है जिसमें रावण , मोदी जी हैं राम

राम की तरह मर्यादा का वो पालन करते हैं
पलटवार करते दुश्मन पर कभी नहीं डरते हैं
मोदी जी को भी है जनता प्राणों से भी प्यारी
धर्मनीति मानवता से करते जो हर तैयारी
शीश झुकाकर इस योगी को, करते सभी प्रणाम
मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम

कोरोना ने किया आक्रमण बुरा वक्त है आया
मोदी जी ने तभी देश में लोकडाउन करवाया
करते रहते हैं जनता से, अक्सर बातें मन की
रहती फिक्र हमेशा उनको भारत के जन जन की
नहीं रात दिन कभी देखते, करते रहते काम
मैं सोच रही हूँ क्या रक्खूँ, उस पुस्तक का नाम

कोरोना का वध होगा देश मुक्त हो जाएगा
दीपमालिका करके फिर भारत जश्न मनाएगा
गले मिलेंगे ईद मनाएंगे खुशियों से मिलजुल कर
होली के रंगों से खेलेंगे हम आपस मे खुलकर
मोदी जी के यत्नो के आएंगे शुभ परिणाम
*सोच रही हूँ मोदी रक्खूँ , उस पुस्तक का नाम*

✍️ डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद
--------------------------------------------------------


साफ़-सफ़ाई-चौकसी, अनुशासित व्यवहार।
कोरोना से युद्ध में, यही प्रमुख हथियार।।


जब तक ढीली हो नहीं, कोरोना की पैठ।
सबसे अच्छा है यही, जमकर घर में बैठ।।

कोरोना से जंग में, एक बड़ी दरकार।
मास्क पहन कर ही करें, घर की हद को पार।।


प्राणों पर भी खेल कर, आयी सबके काम।
वर्दी तेरे शौर्य को, बारम्बार प्रणाम।।

✍️  राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
----------------------------------------------------------


,घर से बाहर  न  निकलिए  साहिब ।
चेहरे पर मास्क लगा मिलिए साहिब ।।

अपना घर परिवार ही है जन्नत । 
कैदखाना इसे न समझिये साहिब ।।

यह न मौका है इल्जाम लगाने का ।
कुछ दिन तो मुंह को  सिलिए साहिब ।।

कुछ गलती तेरी थी कुछ थी मेरी।
भुलाकर इसे अब चलिए साहिब।।

एक दूसरे से बनाकर रखें फासला ।
 दिल में अपने दूरी न रखिए साहिब ।।

जलाएं मोहब्बत के दिये हर तरफ ।
नफरत का जहर न भरिए साहिब ।।

हम एक थे, एक हैं, एक ही रहेंगे ।
मिलकर कोरोना से लड़िये साहिब ।।

✍️ डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822
---------------------------------------------  -----------

मन का हर उल्लास मौन है, बड़ी विवशता है
अधरों पर मृदुहास मौन है, बड़ी विवशता है
क्या कहता है रोज़नामचा, कब तक रुकना है
आती-जाती सांस मौन है, बड़ी विवशता है

✍️ योगेन्द्र वर्मा 'व्योम'
मुरादाबाद 244001
----------------------------------------------------------

मास्क मुँह पर लगाइये साहिब,
भीड़ से बचकर रहिये साहिब
लापरवाही इतनी भी अच्छी नहीं,
बात अब मान भी जाइये साहिब ।

दोहा
कोरोना दिखला रहा, सबको ऐसा रंग ।
बदल गये हैं देखलो, सबके अपने ढंग ।

✍️ अशोक विश्नोई
 मुरादाबाद
मोबाइल,9411809222
--------------------------------------------------------

चतुष्पदी

कुछ दिन तो घर की रोटी और दाल खाइए।
महफूज आप घर में हैं बाहर न जाइए।।
छुप छुप के वार करता है दुश्मन अजीब है।
छुप कर के घर में आप भी खुद को बचाइए।।

गृहणियों की गुहार


मोदीजी गृहणियों को भी राहत दिलाइए।
पुरुषों के लिये भी तो ये फरमान लाइए।।
पाबंदियां जब तक हैं ये पतियों को बोल दो।
कुछ रोज काम घर का भी कर के दिखाइए।

पति पत्नी संवाद


पाबंदियो में प्रिये मत गुस्सा दिखाइए।
कैसे मनाएं आपको खुद ही बताइए।
बाजार मॉल मल्टीप्लेक्स बंद पड़े हैं।
मजबूरियों को समझिए अब मान जाइए।
सुनकर के मेरी बात फिर बीबी ने ये कहा।
कुछ जिम्मेदारी आप भी घर की उठाइए।
पाबंदियां बाहर लगी हैं घर में तो नहीं।
पकवान जो भी खाना हो, खुद ही बनाइए।।

  ✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG 69, रामगंगा विहार
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
मोबाइल : 9456641400
 -------------------------------------------------------

तेज़ाब मुंह में भरके,
करें कुल्ला दूसरों पे।
कोरोना से कुछ ऐसे,
"जमाती" पड़े हैं झुलसे।।

✍️ बाबा संजीव आकांक्षी
 मुरादाबाद 244001
--------------------------–----------------- -----

क्यों फिरे है तू जहालत पर यूं इतराया हुआ,
कर हिफ़ाज़त जिस्म की ये नूर से पाया हुआ,,

वक्त नाज़ुक है बड़ा घर से निकल मत बावले,
इस कोरोना का क़हर है हर तरफ छाया हुआ,,
-----------------------------------  -

सोचो फिर क्या होगा भाई?
अगर जान पे खुद बन आई?

फिर इसका उपचार नहीं है,
बचें  रहे बस  यही  भलाई ,,

कोरोना  से  दम  घुटता है ,
इससे  मौत  बड़ी  दुखदाई,,

एक तरीका  इसे  मात  का,
बस  बचाव  में रखो सफाई,

बहुत ज़रूरी अगर निकलना,
फॉलो  रूल  करो सब  भाई,,

जात पात ये नहीं  देखता,
थोड़ी भी मत करो ढिलाई ,,

घर के लोग भी साथ न होंगे,
हालत   गर  संदिग्ध   बताई ,,

घर से बाहर मत ही निकलो,
जिससे  खानी  पड़े  पिटाई,,

✍️  मनोज 'मनु'
मुरादाबाद 244001
-----------------------------------------

सूनी सूनी सड़के हो गईं निर्जन हैं चौराहे
कोरोना  के रूप में यम ने खुद फैलाईं बाहें
पूरी दुनिया में तांडव कोरोना ने मचाया है
गये हजारों कालगाल मे  ये कैसा युग आया है
नहीं दिखाई देता फिर भी  हरदिन बढ़ता जाए
कोरोना के रुप में यम ने खुद फैलाईं बाहें
जो घमंड में ऐंठ रहे थे  गलतफहमियां दूर हुईं
विकसित देशों तक   सारी शक्ति चकनाचूर हुई
बड़े बड़ों के कोरोना से होश ठिकाने आये
 कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
 सत्य सनातन संस्कार ही  लौट लौट फिर आते हैं
फिर फिर धोओ हाथ स्वच्छता का ही पाठ पढ़ाते हैं
 दूर-दूर से करें नमस्ते कैसे हाथ मिलायें
कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
लॉक डाउन का पालन करके ही जीवन बच सकता है
कड़ी तोड़ दो कोरोना की वायरस फिर मर सकता है
जानी दुश्मन बना चीन जो कोरोना फैलाये
 कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें
 सूनी सूनी सड़कें हो गई सूने हैं चौराहे
कोरोना के रूप में यम ने खुद फैलाई बाहें   

 ✍️ अशोक विद्रोही
412 ,प्रकाश नगर
मुरादाबाद 8288 2541
----------------------------------------------

      :::::::::::::::प्रस्तुति::::::::::::::
   
                डॉ मनोज रस्तोगी
                8,जीलाल स्ट्रीट
                मुरादाबाद 244001
                 उत्तर प्रदेश, भारत
      मोबाइल फोन नंबर 9456687822

सोमवार, 20 अप्रैल 2020

वाट्स एप पर संचालित समूह साहित्यिक मुरादाबाद में प्रत्येक रविवार को वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया जाता है। इस आयोजन में साहित्यकार अपनी हस्तलिपि में रचनाएं प्रस्तुत करते हैं । रविवार 19 अप्रैल 2020 को आयोजित 198 वें वाट्सएप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे में 26 साहित्यकारों सर्वश्री अभिषेक रूहेला, ओंकार सिंह विवेक ,नवाज अनवर खान,अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, राजीव प्रखर, प्रीति चौधरी, जितेंद्र कमल आनंद, अशोक विश्नोई, मीनाक्षी ठाकुर, रवि प्रकाश, मुजाहिद चौधरी, अशोक विद्रोही, श्री कृष्ण शुक्ल, संतोष कुमार शुक्ल, डॉ अशोक रस्तोगी, अनुराग रुहेला, नृपेंद्र शर्मा सागर, डॉ पुनीत कुमार, इंदु रानी, डॉ.प्रीति सक्सेना हुंकार, डॉ.मुजाहिद फ़राज़, प्रवीण राही, प्रीति अग्रवाल, अमितोष शर्मा, डॉ अलका अग्रवाल और डॉ मनोज रस्तोगी ने अपनी हस्तलिपि में रचना प्रस्तुत की ।




























    ::::::::::प्रस्तुति:::::::::::

डॉ मनोज रस्तोगी
8,जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद सम्भल निवासी साहित्यकार अतुल कुमार शर्मा की कविता --कबाड़


वाह !बीस साल पहला,
दमकता हुआ गुलाब,
क्या साफ था वह मैदान !
खड़ी थी सफेद गाड़ी,
गेंदा से दमकती एक बाड़ी,
देखा कि बाबूजी कुर्सी पर बैठे हैं,
कुछ कागज और रजिस्टर समेटे हैं,
मैंने पूछा - क्या यह पाठशाला है?
उत्तर मिला- जी नहीं।
और क्या धर्मशाला है?
उत्तर मिला - जी नहीं।
और क्या मधुशाला है?
उत्तर मिला -  जी नहीं।
हारकर,जी मारकर,
मैं बोला-
बताओ साहब तो क्या है?
फिर वह धीमे स्वर में बोला-
भैया यह ना पाठशाला है,ना मधुशाला,
ना होटल है ना यह धर्मशाला।
मैंने सोचा-तो जरूर यह इमामबाड़ा है,
झट से वह बोला-यह तो कबाड़ा है।
वैसे इसे लोग अस्पताल कहते हैं,
डॉक्टर यहां से लापता रहते हैं।
कबाड़ा सुनकर,
मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई,
तभी एक ऐनकधारी वहां आई,
और अड़ गई।
शायद ये,उस बाबूजी की भी मालिक थी,
मैंने सोचा कि ये इस कबाड़े में क्यों आई?
क्या सचमुच इसे मरीजों की याद आई?
बस धीरे-धीरे मरीजों को देखा,
इधर बेटर ने उसकी तरफ देखा,
इशारा हुआ,
मैं ना समझा कि क्या हुआ?
चाय आई,
पी,
और कुल्हड़ पटका,
घड़ी देखी,
और साड़ी का पल्लू झटका।
रिक्शा खड़ा था,
बैग उनके गले में पड़ा था,
बैठीं और चल पड़ीं।
मरीज सब निराश लौट गए,
कुछ निजी अस्पतालों में गए।
बाकी इंतजार कल का करते रहे,
अपने दर्द को यूं ही सहते रहे।
उनमें शायद हिम्मत नहीं थी,
खिलाफत करने की,
और बगावत करने की।
यह दृश्य सरकारी अस्पताल का था,
जो ना धर्मशाला थी ना इमामबाड़ा था।
मुझे क्रोध उन दीन-दुखियों पर था,
और दुख तो देश की खामियों पर था।
आखिर कब तक ऐसा ही चलता रहेगा?
गरीब हाथों को मलता रहेगा।
जाने कब व्यवस्थाओं का रथ आगे बढ़ेगा?
और भारत महानता की सीढ़ियाँ चढ़ेगा?

✍️ अतुल कुमार शर्मा
निकट प्रेमशंकर वाटिका
संभल
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल 9759285761

रविवार, 19 अप्रैल 2020

यादगार पत्र : प्रख्यात साहित्यकार मधुर शास्त्री का एक पत्र जो उन्होंने लिखा था लगभग 35 साल पहले 25 अप्रैल 1985 को । इस पत्र में उन्होंने मेरे प्रश्न का उत्तर देते हुए कवि और कविता के सम्बंध में अपने विचार व्यक्त किये हैं ।


मुरादाबाद मंडल के जनपद संभल (वर्तमान में मेरठ निवासी) के साहित्यकार सूर्यकांत द्विवेदी की कविता ---


इस पीड़ा के पीछे
भी कई पीड़ाएँ हैं
हटाकर परदा देख
कितनी शिलाएं हैं।।

अनगिन आवरण
अनगिन आहरण
अनगिन आचरण
ज्यूँ किसी वृक्ष में
पंछी का पदार्पण।।

खो गई एक शिला
राम के इंतज़ार में
तैर गई दूजी शिला
राम के ही प्यार में।।

तन लपेटे भागीरथी
मन समेटे मृगतृष्णा
भोर में लो कैद हुई
पग-पग-पग ये तृष्णा।।

शबरी के जूठे बेर
केवट सम वो भाव
चलो लक्ष्मण चलें
देखें सीता के पाँव।।

किंचित इस घड़ी में
हैं अपावन कुछ दृश्य
किन्तु कुंती कौन यहाँ
मांगे दुःख जो अदृश्य।।

अनजान साया स्याह
तन और मन भेद का
अत्र कुशलम तत्रास्तु
आरोग्य मंत्र वेद का।।

   ✍️ सूर्यकांत द्विवेदी

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत --- न तुमने देखा ,न हमने देखा कहाँ है ईश्वर,कहाँ खुदा है जो सच है उसको नहीं देखते है प्यार ईश्वर वही खुदा है।


न तुमने  देखा ,न  हमने  देखा
कहाँ है ईश्वर,कहाँ      खुदा है
जो सच है उसको नहीं  देखते
है  प्यार  ईश्वर   वही   खुदा है।
           ------------------
यही   सिखातीं   हैं आयतें  भी
यही  सिखातीं  हैं सब  ऋचाएं
इसी  में रमती  है सृष्टि    सारी
इसी से महकी  हैं सब  दिशाएं
सही   ठिकाना   तुम्हें    बताने
कहाँ  है  ईश्वर , कहाँ  खुदा  है।
न तुमने देखा----------------

अगर विधाता पिता  है सबका
फिरभेद करने का अर्थ क्या है?
अलगअलग मज़हबोंके हक में
किताबें लिखने का फर्ज क्याहै?
तुम्हारे  कर्मों   का   साथ   देने
कहाँ  है  ईश्वर,  कहाँ   खुदा  है।
न तुमने देखा------------------

रचे   हैं  यदि  उसने   ग्रंथ   सारे
तो दिल से  किसने  उन्हें पढ़ा  है
बताओ हर पंक्तिका अर्थ किसने
समाज   हित  में  स्वयं   गढ़ा  है
तुम्हारे  लालच  का  भाव   पढ़ने
कहाँ   है   ईश्वर   कहाँ   खुदा  है।
न तुमने देखा--------------------

जिसे   चढ़ाते   हो   सोना - चांदी
क्या उसने आकर  कहा किसी से
तुम्हारे   पापों   का   अंत    होगा
बताओ   उसने   कहा   सभी   से
तुम्हारी   जड़ता   को  दूर   करने
कहाँ   है   ईश्वर, कहाँ   खुदा   है।
न तुमने देखा--------------------

प्यार   सभी   के   लिए   दुआ  है
सभी   दुखों   की  यही   दवा   है
बेमतलब  मत  लड़ो    किसी   से
जन्म   प्यार  के   लिए   हुआ   है
पाखंडों       से       दूर      हटाने
कहाँ   है  ईश्वर  कहाँ    खुदा   है।
न तुमने देखा--------------------

               ***********

            वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
            मुरादाबाद 244001
            उत्तर प्रदेश, भारत
            मोबाइल फोन ननंबर 9719275453

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार भोलानाथ त्यागी की कविता--- छटपटाहट




शनिवार, 18 अप्रैल 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार मुजाहिद चौधरी की गजल ---- गाली देना, पत्थरबाजी अपनी तो तहजी़ब नहीं । इस हरकत पर शर्मिंदा हैं माफ़ी को मजबूर हैं हम ।।


आखिर कब तक ऐसे मंज़र सहने को मजबूर हैं हम।
कब तक यूं खामोश रहें अब कहने को मजबूर हैं हम ।।

गाली देना, पत्थरबाजी अपनी तो तहजी़ब नहीं ।
इस हरकत पर शर्मिंदा हैं माफ़ी को मजबूर हैं हम ।।

तुम को‌ जब अपने ही घर में दुश्मन बन‌कर रहना है।
तर्के ताल्लुक करने को फिर तुमसे अब मजबूर हैं हम ।।

तुमसे खफा होकर ही अपने रिश्ते नाते तोड़ेंगे ।   
दुनिया के ताने सुनने को बेबस और मजबूर हैं हम ।।

रिश्ता तोड़ें, मिलना छोड़ें सब करना मजबूरी है।
दूर तुम्हारे साए से भी रहने को मजबूर हैं हम ।।

क्यों करते हो नादानी,ये कौन तुम्हें सिखलाता है ।
राह दिखाने सबक सिखाने तुम को अब ‌मजबूर हैं हम ।।

हम भी सलामत कौम सलामत मुल्क सलामत रखना है ।
अपने ईमां की खातिर मर जाने को मजबूर हैं हम ।

हम हैं मुजाहिद मुल्क से नफ़रत हमको तो मंजूर नहीं ।
मुल्क पे जान लुटाने को ही  फिर सारे मजबूर हैं हम ।।


   ✍️ मुजाहिद चौधरी
  हसनपुर ,अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार फक्कड़ मुरादाबादी का गीत---- घरवाली का रौब दिखाना जाने क्या क्या कहना । अब आगे क्या होगा भैया पूछ रही है बहना।। छज्जा सूना सूना लगता पड़ोसन के बिन । याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...


याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन
घर में रहकर घरवालों से कटे कटे यह दिन
घरवाली का रौब दिखाना जाने क्या क्या कहना
अब आगे क्या होगा भैया पूछ रही है बहना
चौबीस घंटे खबर एक ही और लाशों की गिनती
सड़कों पर सन्नाटा गूंजे करे पुलिस से विनती
छज्जा सूना सूना लगता पड़ोसन के बिन
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...

बार-बार चेहरे को ढकना और हाथों को धोना
सारी दुनिया कोस रही है कैसा भला कोरोना
कोस रहे थे सभी चीन को कैसी करी शरारत
रामायण से शुरू हुआ दिन और रात महाभारत
दिन तो गुजरा इधर-उधर में राते तारे गिन गिन
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...

जो जैसा था वहीं रुका, रुका ना वक्त का पहिया  अपनी-अपनी जान बचाते क्या मैया क्या भैया
बुझे- बुझे से चेहरे दिखे चौपट हुए सब धंधे
जगह जगह पर पिटते दिखे आंखों वाले अंधे
दहशत में हर कोई घिरा था खुशहाली गई छिन
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...

जितने विकासशील देश थे देख रहे शमशान
खाली जगह नहीं दिखती ऐसे कब्रिस्तान
लाशों पर लाशें गिरती थी ऐसा हुआ धमाका
बड़े-बड़े दौलत वाले भी करते दिखे फांका
सारी दुनिया विस्मित हो गई देखकर ऐसा जिन्न
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...

चौदह दिन तक रहे अकेले नहीं काटते मच्छर
ऐसा रोग लगा मानव को भाग रहे सब डरकर
चमगादड़ भी नहीं दिखती, रहे जानवर भूखे
पीने वाले भी सच मानो फिरते सूखे-सूखे
देख रहे थे सभी जानवर हुआ आदमी भिन्न
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...

पति बेचारा वक्त का मारा मन ही मन झुंझलाता
और बच्चों का रौब दिखाना उसे तनिक ना भाता   लॉकडाउन में हुआ लॉक था आपस में थी दूरी
दिल के अरमां दिल में घुट गए ऐसी थी मजबूरी
हाथों को साबुन से धोते क्या लक्स क्या रिन
याद बहुत आएंगे भैया लुटे पिटे यह दिन...

 ✍️ फक्कड़ मुरादाबादी
 मोबाइल फोन नंबर - 94102-38638

मुरादाबाद के समाजसेवी गुरविंदर सिंह की रचना -- कोरोना योद्धाओं पर हमला करना, मानवता पर हमला करने जैसा है...


मुरादाबाद के साहित्यकार शचींद्र भटनागर की ग़ज़ल --- आज खुले मन से इंसानियत दिखाएं हम


दुर्लभ पत्र : महाकवि पंडित सूर्यकांत त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष दयानंद गुप्त को लिखा गया एक पत्र । यह दुर्लभ पत्र 3 अगस्त 1945 को लिखा गया था। साहित्यिक मुरादाबाद को यह पत्र उपलब्ध कराया है श्री दयानंद गुप्त जी के सुपुत्र श्री उमाकांत गुप्ता जी ने ।



दुर्लभ चित्र : रामपुर के साहित्यकार जितेंद्र कमल आनन्द द्वारा सम्पादित काव्य संकलन "गुंजन की गुंजार " (1993) का लोकार्पण करते हुए साहित्यकार एवं पूर्व जिला सूचना अधिकारी रामपुर स्मृति शेष दिवाकर राही जी । लोकार्पण समारोह महल सराय , किला रामपुर में हुआ था। माइक पर हैं श्री जितेंद्र कमल आनन्द जी । यह चित्र हमें श्री आनन्द जी द्वारा उपलब्ध हुआ है ।


शुक्रवार, 17 अप्रैल 2020

दुर्लभ चित्र : बांये से : स्मृति शेष दिग्गज मुरादाबादी , डॉ मक्खन मुरादाबादी , स्मृति शेष हुल्लड़ मुरादाबादी, स्मृति शेष पं.मदन मोहन व्यास, स्मृति शेष सर्वेश्वर सरन सर्वे., डॉ एच.सी. वैश्य (स्वास्थ्य अधिकारी, नगरपालिका,जो महानिदेशक स्वास्थ्य ,उ.प्र.के पद से रिटायर हुए।)


डॉ मक्खन मुरादाबादी जी के अनुसार यह चित्रसम्भवतः वर्ष 1974 का है । डॉ वैश्य जी के मकान की छत पर कविसम्मेलन हुआ था । यह चित्र हमें  स्मृतिशेष पंडित मदन मोहन व्यास जी के सुपुत्र मनोज व्यास जी से प्राप्त हुआ है ।

मुरादाबाद के साहित्यकार योगेंद्र वर्मा व्योम का नवगीत --- उम्मीदों से हारे लोग


मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत --- माटी के दीपक ने जलकर बार-बार समझाया है