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सोमवार, 4 मई 2020
वाट्स एप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद " में रविवार 3 मई 2020 को 200 वां वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया गया। इस आयोजन की विशेषता और अनूठापन था मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों का अपनी हस्तलिपि में रचना प्रस्तुत करना । इस ऐतिहासिक आयोजन में मुरादाबाद मंडल के 82 साहित्यकारों ने हिस्सा लिया । प्रस्तुत है आयोजन में शामिल मुरादाबाद मंडल के साहित्यकार सर्वश्री यश भारती माहेश्वर तिवारी, मंसूर उस्मानी, शचीन्द्र भटनागर ,डॉ मनोज रस्तोगी, डॉ प्रेमवती उपाध्याय, ऋचा पाठक, डॉ अजय जनमेजय, डॉ पूनम बंसल, मनोज वर्मा मनु, मुजाहिद चौधरी, योगेंद्र वर्मा व्योम, अखिलेश वर्मा ,डॉ अजय अनुपम, डॉ प्रीति हुंकार, शिव अवतार सरस, हेमा तिवारी भट्ट, अंदाज अमरोहवी ,अरविंद कुमार शर्मा आनन्द, अशोक विद्रोही, अशोक विश्नोई, आयुषि अग्रवाल, कमाल जैदी, डॉ अनिल शर्मा अनिल, डॉ अशोक रस्तोगी, डॉ कृष्ण कुमार नाज, डॉ कृष्ण कुमार बेदिल, डॉ रीता सिंह, प्रीति चौधरी, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, रवि प्रकाश ,स्वदेश सिंह, अभिषेक रुहेला ,आमोद कुमार, ओंकार सिंह ओंकार, कंचनलता पांडेय, डॉ अर्चना गुप्ता, डॉ अलका अग्रवाल , डॉ मीना नकवी, डॉ सुधा सिरोही, डॉ मक्खन मुरादाबादी, डॉ श्वेता पूठिया, त्यागी अशोक कृष्णम, नृपेंद्र शर्मा सागर , प्रशांत मिश्र, मंगलेश लता यादव, मीनाक्षी ठाकुर ,रागिनी गर्ग , राजीव प्रखर , रामकिशोर वर्मा, राशिद मुरादाबादी, शिशुपाल मधुकर , श्री कृष्ण शुक्ल , सूर्यकांत द्विवेदी, अतुल कुमार शर्मा , अमितोष शर्मा ,इला सागर रस्तोगी, उज्ज्वल वशिष्ठ, डॉ मीना कौल, प्रीति अग्रवाल ,मनोरमा शर्मा, डॉ ममता सिंह, अनुराग रुहेला, अस्मिता पाठक, आरिफा मसूद, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ, इंदु रानी, जितेंद्र कमल आनंद , डॉ पुनीत कुमार ,रश्मि प्रभाकर ,रचना शास्त्री , प्रवीण राही, डॉ मीरा कश्यप ,मोनिका मासूम , मोनिका अग्रवाल , कंचन खन्ना, आदर्श भटनागर, संतोष कुमार शुक्ल , सीमा रानी की रचनाएं-----
रविवार, 3 मई 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ------ भगवान से साक्षात्कार
जिंदगी में ऐसा पहली बार हुआ
लेटते ही आंख लग गई
और स्वप्न में
भगवान से साक्षात्कार हुआ
हमने बिना कोई पल गंवाए
आज के ज्वलंत मुद्दे उनके सामने उठाए
हे त्रिलोक स्वामी,
ये कैसी व्यवस्था है तुम्हारी
पूरे विश्व में फैली हुई है
कोरोना रूपी महामारी
भगवान बोले
वत्स,इसे महामारी मत कहो
ये हमारे प्रेम का प्रकाश है
सृष्टि को सुधारने का
एक छोटा सा प्रयास है
मैंने ,करने को अपना मनोरंजन
सृष्टि का किया था सृजन
फिर बड़ी लगन से मानव को बनाया
लेकिन उसको दिमाग देकर पछताया
इस दिमाग का दुरुपयोग कर
मानव ने सृष्टि का
रूप ही बिगाड़ दिया है
अलग अलग द्वीपों और देशों में
इसे बांट दिया है
अलगाववाद और वर्चस्व की दुर्भावना
इतनी प्रबल और व्याप्त हो गई है
मानव नाम की प्रजाति
लगभग लगभग समाप्त हो गई है
कोई हिन्दू,कोई सिक्ख,कोई मुसलमान है
किसी की जैन , बौद्ध
किसी की ईसाई के रूप में पहचान है
सब भूल चुके हैं
सब मेरी ही संतान हैं
कोई छोटा या बड़ा नही
सब एक समान हैं
सबका एक ही धर्म,मानव धर्म है
प्यार करना और प्यार बढ़ाना
जिसका मर्म है
लेकिन किसी को किसी की
परवाह कहां है
हर कोई दूसरे की टांग खींचने में लगा है
और तो और
तुम सबने मेरा स्तर भी गिरा दिया है
मंदिर,मस्जिद,चर्च और गुरुद्वारों में
मुझे अलग अलग नाम से बैठा दिया है
जबकि मैं तो सृष्टि के कण कण में हूं
आत्मा स्वरूप में,तुम सबके मन में हूं
कोरोना के चलते बंद है
सारे तथाकथित धार्मिक स्थल
कहीं पर नहीं है कोई भी हलचल
मजबूरी में सबको
घर पर ही ध्यान लगाना है
खुद को पहचानना है
अपने अंदर मुझको जगाना है
ये भी कोरोना का ही प्रभाव है
धीरे धीरे पनप रहा विनम्रता का भाव है
भौतिक सुख सुविधाएं,धन दौलत
मृत्यु के आगे सब बेकार हैं
फिर किस बात का अहंकार है
ये सबको समझ में आ रहा है
क्योंकि कोरोना
कोई भेदभाव नहीं दिखा रहा है
मैंने पूरी सृष्टि को पांच तत्वों से बनाया है
मानव शरीर में भी उन्हीं का
अंश समाया है
लेकिन मानव निरंतर
इनसे छेड़छाड़ कर रहा है
प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर
भौतिक सुविधाओं की जुगाड कर रहा है
पर्यावरण हो चुका है असंतुलित
जल हो या वायु
सभी हो चुके है प्रदूषित
लेकिन कोरोना के बाद से
सब कुछ रहा है बदल
स्वच्छ होने लगा है नदियों का जल
पेड़ पौधे खुशी से झूम रहे है
पशु पक्षी भी सहजता से घूम रहे है
इसीलिए तुम से कहता हूं
कोरोना से ना डरना है
ना किसी को डराना है
कुछ समय के लिए,घर में ही रहकर
अपने पारिवारिक दायित्वों को निभाना है
कड़वे हो चुके,टूटते बिखरते रिश्तों को
स्नेह की चासनी में पकाना है
अगर इतने से भी
किसी की समझ में नहीं आएगा
भविष्य में पृथ्वी पर
और अधिक खतरनाक वायरस भेजा जाएगा
तभी अचानक
कोयल की सुरीली आवाज ने मुझको जगा दिया
भगवान ने जबरदस्ती
मुझको ब्रह्म मुहूर्त में ही उठा दिया
मैंने विषय पर पुनः चिंतन किया
मुझको लगा
जिस दिन ये सारी बातें
हमारे विचारों में घुल जाएंगी
हम पढ़े लिखे मूर्खो की आंखें
हमेशा के लिए खुल जाएंगी
✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505, आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड, मुरादाबाद-244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ प्रीति हुंकार की रचना -----श्रमजीवी ही बनकर रहना देती हूं जग को पैगाम
मैं हूँ महिला श्रमिक ,मेहनत करना मेरा काम ।
श्रमजीवी ही बनकर रहना ,देती हूँ
जग को पैगाम ।
ईंट उठाती पानी भरती,
स्वप्न साकार कराती हूँ
छत विहीन अपना जीवन
पर भवन बनाती हूँ।
प्रतिपल नव उल्लास लिये मैं
करूँ परिश्रम आठों याम ।
श्रमजीवी ........
जन्मजात श्रमिक हूँ मैं
संघर्ष मेरे है अंतहीन ।
अधरों पर मुस्कान लिये मैं
अंतर के सुख में सदा लीन।
कर्म मार्ग है मेरी पूजा
इससे श्रेष्ठ नही है काम।
श्रम जीवी ,,......
प्रतिदिन ही कुछ स्वप्न अनोखे
मैं भी देखा करती हूं ।
एक रोज सुखों की भोर कोई
सुख सूरज देखा करती हूं ।
खुश रहकर इसको जीना है
जीवन हैअनुपम अभिराम ।
श्रमजीवी.....
✍️ डॉ प्रीति हुंकार
मिलन विहार
मुरादाबाद 244001
मो 8126614625
शनिवार, 2 मई 2020
मुरादाबाद मंडल के चन्दौसी जनपद सम्भल (वर्तमान में अलीगढ़ निवासी) साहित्यकार लव कुमार प्रणय की दो रचनाएं ---- ये रचनाएं उन्होंने लगभग 47 साल पूर्व लिखी थीं । इन रचनाओं का प्रकाशन मुरादाबाद से प्रकाशित साप्ताहिक समाचार पत्र ' प्रदेश पत्रिका ' के 25 नवंबर 1973 के अंक में हुआ था। यह साप्ताहिक समाचार पत्र प्रत्येक रविवार को स्मृति शेष राज नारायण जी द्वारा संपादित , मुद्रित और प्रकाशित होता था ----
मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार अंदाज अमरोहवी की नज़्म -----लॉक डाउन
कहां तलक यह बतायें कि लॉकडाउन है .
यह लोग बाज़ तो आये कि लॉकडाउन है ..
ज़रा सी देर को चाहे बुरा लगे फिर भी .
न हाथ अपना मिलाये कि लॉकडाउन है ..
रहे सुकून से घर में ही यह जरूरी है .
न घर को छोड़ के जायें कि लॉकडाउन है .
सभी को आप अगर चाहते हैं जिंदा रहें .
सभी को बस यह बतायें कि लॉकडाउन है ..
अगर जो खांसी उठे भी तो मुंह पे हो रुमाल.
कहीं न छींटे उड़ाये कि लॉकडाउन है..
हो सांस लेना कठिन सर में दर्द हो या बुख़ार .
तो डॉक्टर को दिखाएं कि लॉकडाउन है..
है इंतज़ाम सभी तुम को ठीक रखने के .
पुलिस का साथ निभाये कि लॉकडाउन है..
मिले किसी से तो दूरी हो एक मीटर की .
यह फासला न घटाएं कि लॉकडाउन है..
यह मर्ज़ फैलता कैसे है सबको हो मालूम .
वजह हर एक को बतायें कि लॉकडाउन है ..
✍️ अंदाज़ अमरोहवी
मोहल्ला बगला, ब्रिटिश इंग्लिश स्कूल,
अमरोहा -244221
उत्तर प्रदेश , भारत
वाट्सअप न. 9837272808
ईमेल - andaazamrohvi@gmail.com
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नकवी की गजल ------ दिन का वध करने वालों ने रात की हत्या कर दी है। चाँद खरीदे धनवानों ने ,आज अमावस घर घर है।।
उपवन सारा मुरझाया है, जंगल जंगल पतझर है।।
जाने कैसा जादू टोना,डाल दिया है ऋतुओं ने।
हरियाली का जो वाहक था, छाँव-रहित वह तरुवर है।।
लेखन के स्वर मौन हुये हैं, ध्वनि हीन हैं अक्षर तक।
एक कोलाहल मन के बाहर, एक कोलाहल भीतर है।।
दिन का वध करने वालों ने रात की हत्या कर दी है।
चाँद खरीदे धनवानों ने ,आज अमावस घर घर है।।
ऊब के एकाकीपन से जब , झाँका है उसके मन में।
ऐसा लगा आँखों में उसकी निर्मल प्रेम का सागर है।।
त्याग की वर्षा तिरोहित है, और मेघ घिरे हैं निज हित के।
कुंठित है संवेदन शक्ति, भूमि भाव की बंजर है।।
लेखन धर्म है भक्ति-भाव से , पूर्ण समर्पण है कविता।
शब्द मेरे रह जायें 'मीना' यह काया तो नश्वर है।।
✍️ डा. मीना नक़वी
मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ रीता सिंह की कविता------श्रम देवता
तुम्हारे द्वारा कराये गये
हर अहसास को
महसूस किया है मैंने ।
तुम बनकर मेरी प्रेरक शक्ति
कराते हो हर पल
मुझे उन अहसासों को
जो जीवन पथ में आने वाली
हर मुश्किलों को सुलझाने में
मेरे किसी अच्छे मित्र के समान
सहायक होंगे ।
सूरज निकलने से सूरज ढलने तक
तुम्हारे द्वारा किए जाने वाले
श्रम के पश्चात
उसका मनोनुकूल फल भी
जब तुम्हें नहीं मिलता
तब मैं तुम्हारा अधिकार
तुम्हें दिलाने के लिए
तुम्हारे साथ होना चाहती हूँ ,
लेकिन किसी मजबूरी का
बहाना लेकर
सिर्फ अपनी सहानुभूति को
तुम्हारे साथ कर देती हूँ ।
जब संध्या ढले घर पहुँचने पर
तुम्हारी नन्हीं गुड़िया
ढेर सारी बचपनी आशाों के साथ
तुम्हारे खाली हाथ देखती है
तब मेरे प्यार , दुलार और
ममत्व का अहसास
तुम्हारी उस गुड़िया के साथ होता है ।
तुम्हारी पत्नी की
पुरानी सी मटमैली धोती में
लिपटे हुए तुम्हारे
गोदी के बालक को देखकर
मन करता है
मैं गोद लेकर उस भावी नागरिक का
पालन पोषण करूँ
और बचा लूँ उसे
विचलित कर देने वाले
दुःखों के हर उन थपेड़ों से
जिनका तुम मुझे
कदम कदम पर
अहसास कराते हो ।
✍️ डॉ रीता सिंह
एन के बी एम जी कॉलेज
चन्दौसी (सम्भल)
शुक्रवार, 1 मई 2020
मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ मक्खन मुरादाबादी की कविता ------- कोई न कोई जगह तो
कहीं न कहीं/कोई न कोई/जगह तो
मजदूरों का भी/अपना घर होती है ,
सबकुछ होता है/उनमें भी/घर जैसा ही
बस , गुजर - बसर नहीं होती है ।
ऐसे में भी/रहते आयें हैं ये
इन्हीं घरों में/संतोषी मन से ,
कम्बख़त/पेट नहीं मानता, लेकिन
ले चल पड़ता है/इनको तन से ।
यूं ही कौन छोड़ता है/अपना घर ,
छुड़वा देते हैं, लेकिन/
मजदूरी की/मजबूरी के पर ।
पेट भरण की/आस जहां भी/दिख जाती है,
मन विहीन इन तनों की/
ज़िन्दगी ठिठक/ टिक वहीं जाती है।
कमरतोड़ मेहनत से/जी-तोड़ कमाते,खाते,
जहां टिके होते जाकर/वहीं में रच,बस जाते।
ज़िन्दगी/परवान चढ़ने लगती ,
उम्मीद बढ़ने लगती ।
चाहे जैसी भी हैं, नौकरियां ,
इनकी लाचार कथा-व्यथा रूपों में
शहर-शहर/उग आती हैं/
इनके घर होकर/झुग्गी-झोंपड़िया।
इनमें ही रात कटती है ,
ज़िन्दगी की/हर बात बंटती है।
जिन विवशताओं से ये/चिपटे रहते हैं ,
उनमें इनके/सारे सुख/लिपटे रहते हैं।
ऐसी-वैसी/विपदाओं को तो
ये विपदा ही नहीं मानते ,
क्या होता है कष्ट?
इनके तन-मन/दोनों ही नहीं जानते।
जंगल-जंगल/रंगत-रौनक/चहल-पहल की
मुर्दों में जान पड़ी सी/जो भी हलचल है,
वह सब इनकी ही/कर्मठता का प्रतिफल है।
किन्तु,आज समाना/विपदा काले/
इन पर संकट/गहरा जाता है ,
तब और अधिक,जब/इनकी श्रम बूंदों से/
फलीभूत हुआ भी/कन्नीकाट हुआ होकर/पुकार इनकी पीड़ा की /नहीं है सुनता/
हो निपट बहरा जाता है ।
जब, आशाओं पर/फिर जाता है पानी,
राह भटकते देखे हैं/
अच्छे-अच्छे ज्ञानी-ध्यानी।
सब यादों की/छोड़ के दौलत/
अपने-अपने नीड़ों में ,
बीबी-बच्चों सहित/कुछ सामानों के
निकल पड़ते हैं ये/होकर शुमार भीड़ों में।
भूखे पेटों का स्वर भी/
मिल जाता है/मन के स्वर से ,
इन्हें पुकार/आने लगती है
अपने उसी पुराने घर से ।
यात्राएं हों/कितनी भी लम्बी
धुन सवार हो जाती है , इन पर/
ये खोकर उसमें/उसके ही हो जाते हैं,
पांव!रेल,बस, गाड़ियां/नहीं होते, लेकिन
जाने कैसे/हो, उड़नखटोला जाते हैं ।
ये तो/कर लेंगे फिर भी/
कर मुकाबला/बड़े-बड़े कहरों का ,
लेकिन,क्या होगा आगे/
इन शहरों के/अंधे,गूंगे, बहरों का ?
✍️ डॉ मक्खन मुरादाबादी
झ-28, नवीन नगर, कांठ रोड
मुरादाबाद- 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9319086769
मुरादाबाद के साहित्यकार शिशुपाल सिंह मधुकर का गीत ----यह तो बिल्कुल अलग बात है
मजदूरों की व्यथा- कथा तो कहने वाले बहुत मिलेंगे
पर उनके संघर्ष में आना यह तो बिल्कुल अलग बात है
कितना उनका बहे पसीना
कितना खून जलाते हैं
हाड़ तोड़ मेहनत करके भी
सोचो कितना पाते हैं
मजदूरों के जुल्मों- सितम पर चर्चा रोज बहुत होती है
उनको उनका हक दिलवाना यह तो बिल्कुल अलग बात है
मानव है पर पशुवत रहते
यही सत्य उनका किस्सा है
रोज-रोज का जीना मरना
उनके जीवन का हिस्सा है
उनके इस दारुण जीवन पर आंसू रोज बहाने वालों
उनको दुख में गले लगाना यह तो बिल्कुल अलग बात है
है संघर्ष निरंतर जारी
यह है उनका कर्म महान
वे ही उनके साथ चलेंगे
जो समझे उनको इंसान
एक दिन उनको जीत मिलेगी पाएंगे सारे अधिकार लेकिन यह दिन कब है आना यह तो बिल्कुल अलग बात है
✍️ शिशुपाल "मधुकर"
मुरादाबाद 244001
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