रविवार, 3 मई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की कविता ------ भगवान से साक्षात्कार



जिंदगी में ऐसा पहली बार हुआ
लेटते ही आंख लग गई
और स्वप्न में
भगवान से साक्षात्कार हुआ
हमने बिना कोई पल गंवाए
आज के ज्वलंत मुद्दे उनके सामने उठाए
हे त्रिलोक स्वामी,
ये कैसी व्यवस्था है तुम्हारी
पूरे विश्व में फैली हुई है
कोरोना रूपी महामारी
भगवान बोले
वत्स,इसे महामारी मत कहो
ये हमारे प्रेम का प्रकाश है
सृष्टि को सुधारने का
एक छोटा सा प्रयास है
मैंने ,करने को अपना मनोरंजन
सृष्टि का किया था सृजन
फिर बड़ी लगन से मानव को बनाया
लेकिन उसको दिमाग देकर पछताया
इस दिमाग का दुरुपयोग कर
मानव ने सृष्टि का
रूप ही बिगाड़ दिया है
अलग अलग द्वीपों और देशों में
इसे बांट दिया है
अलगाववाद और वर्चस्व की दुर्भावना
इतनी प्रबल और व्याप्त हो गई है
मानव नाम की प्रजाति
लगभग लगभग समाप्त हो गई है
कोई हिन्दू,कोई सिक्ख,कोई मुसलमान है
किसी की जैन , बौद्ध
किसी की ईसाई के रूप में पहचान है
सब भूल चुके हैं
सब मेरी ही संतान हैं
कोई छोटा या बड़ा नही
सब एक समान हैं
सबका एक ही धर्म,मानव धर्म है
प्यार करना और प्यार बढ़ाना
जिसका मर्म है
लेकिन किसी को किसी की
परवाह कहां है
हर कोई दूसरे की टांग खींचने में लगा है
और तो और
तुम सबने मेरा स्तर भी गिरा दिया है
मंदिर,मस्जिद,चर्च और गुरुद्वारों में
मुझे अलग अलग नाम से बैठा दिया है
जबकि मैं तो सृष्टि के कण कण में हूं
आत्मा स्वरूप में,तुम सबके मन में हूं
कोरोना के चलते बंद है
सारे तथाकथित धार्मिक स्थल
कहीं पर नहीं है कोई भी हलचल
मजबूरी में सबको
घर पर ही ध्यान लगाना है
खुद को पहचानना है
अपने अंदर मुझको जगाना है

ये भी कोरोना का ही प्रभाव है
धीरे धीरे पनप रहा विनम्रता का भाव है
भौतिक सुख सुविधाएं,धन दौलत
मृत्यु के आगे सब बेकार हैं
फिर किस बात का अहंकार है
ये सबको समझ में आ रहा है
क्योंकि कोरोना
कोई भेदभाव नहीं दिखा रहा है

मैंने पूरी सृष्टि को पांच तत्वों से बनाया है
मानव शरीर में भी उन्हीं का
अंश समाया है
लेकिन मानव निरंतर
इनसे छेड़छाड़ कर रहा है
प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर
भौतिक सुविधाओं की जुगाड कर रहा है
पर्यावरण हो चुका है असंतुलित
जल हो या वायु
सभी हो चुके है प्रदूषित
लेकिन कोरोना के बाद से
सब कुछ रहा है बदल
स्वच्छ होने लगा है नदियों का जल
पेड़ पौधे खुशी से झूम रहे है
पशु पक्षी भी सहजता से घूम रहे है

इसीलिए तुम से कहता हूं
कोरोना से ना डरना है
ना किसी को डराना है
कुछ समय के लिए,घर में ही रहकर
अपने पारिवारिक दायित्वों को निभाना है
कड़वे हो चुके,टूटते बिखरते रिश्तों को
स्नेह की चासनी में पकाना है
अगर इतने से भी
किसी की समझ में नहीं आएगा
भविष्य में पृथ्वी पर
और अधिक खतरनाक वायरस भेजा जाएगा

तभी अचानक
कोयल की सुरीली आवाज ने मुझको जगा दिया
भगवान ने जबरदस्ती
मुझको ब्रह्म मुहूर्त में ही उठा दिया
मैंने विषय पर पुनः चिंतन किया
मुझको लगा
जिस दिन ये सारी बातें
हमारे विचारों में घुल जाएंगी
हम पढ़े लिखे मूर्खो की आंखें
हमेशा के लिए खुल जाएंगी

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T-2/505, आकाश रेसीडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
कांठ रोड, मुरादाबाद-244001
उत्तर प्रदेश, भारत

8 टिप्‍पणियां:

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