मंगलवार, 22 सितंबर 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" में प्रत्येक मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। मंगलवार 25 अगस्त 2020 को आयोजित गोष्ठी में शामिल साहित्यकारों डॉ अनिल शर्मा अनिल, अशोक विद्रोही, रवि प्रकाश, वीरेंद्र सिंह बृजवासी, सीमा रानी, श्री कृष्ण शुक्ल , राजीव प्रखर,राम किशोर वर्मा , डॉ पुनीत कुमार, डॉ प्रीति हुंकार ,मनोरमा शर्मा, नृपेन्द्र शर्मा सागर, डॉ श्वेता पूठिया और दीपक गोस्वामी चिराग की बाल कविताएं -------

क्यों घर रोका?

इतने दिन हो गए मम्मी जी
कोरोना के नाम पर।
घर में बंद हुए हम बच्चे
जाएं बड़े सब काम पर‌।।
कब स्कूल खुलेंगे अपने,
कब जाएंगे हम बाहर?
घर के भीतर रहते रहते

अब बोरिंग लगता है घर।
वहीं गेम सब,वहीं किताबें
वहीं रुटीन, वहीं खाना।
सच कहते हैं मम्मी जी हम
अब चाहते बाहर जाना।।
सिर में दर्द,जलन आंखों में
आनलाइन पढ़ते पढ़ते।
कुछ समझे,सब समझ न पाए
नया नहीं कुछ भी गढ़ते।
बस एक बात बता दो मम्मी,
बच्चों को क्यों घर रोका?
कोरोना का डर है सच में,
या इसमें कोई धोखा।
बेटा! सही कह रहे हो तुम,
सचमुच हो जाते हो बोर।
लेकिन इतनी बात समझ लो,
कोरोना का चल रहा दौर।।
बंद सभी स्कूल और कालेज,
रहो सुरक्षित अपने घर।
इसमें कोई नहीं है धोखा,
बस कोरोना का ही डर।
जितनी कर सकते आराम से
बस उतनी ही पढ़ाई करो।
ठीक ठाक सब हो जाएगा
बेटा बिल्कुल नहीं डरो।
पापाजी की ड्यूटी जारी,
इसलिए करते रोज सफर।
जनता की स्वास्थ्य सेवा में
लगे हुए सभी डॉक्टर।
बेटा,विषम परिस्थितियां हैं,
करना होगा समझौता।
वक्त बदल जाएगा यह भी,
सदा एक सा न होता।

✍️डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर,उत्तर प्रदेश
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बच्चों तुम चलते चलो, ले आशा के दीप।
ले जायेंगे लक्ष्य के, तुमको यही समीप।।

साहस रख बढ़ते चलो, अन्धेरे को चीर।
पथ अपना है ढूँढता, जैसे नदिया-नीर।।

साया तम का है घना, मेरे चारों ओर।
कोई ऐसी राह हो, दिखा सके जो भोर।

मेरे मन ले चल मुझे, अब उस पथ की ओर।‌
चल कर जिस पर पा सकूँ, मैं मंज़िल का छोर।।

उड़ तू नभ की ओर अब , अपना ढूँढ जहान
मिल जाएगा  लक्ष्य भी , भरकर नयी उड़ान
                    
✍️ प्रीति चौधरी
गजरौला,अमरोहा
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नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           छुट्टी में जब हम हैं जाते
           नाना नानी खुश हो जाते
           अपनी बहुत प्रतीक्षा करते
           दोनों प्यार बहुत हैं करते
           मैं नानी की राजदुलारी
          और भैया है राज दुलारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           नानी के घर दो गैया हैं
           एक बहना और एक भैया है
           मामा रोज जलेबी लाते
           सब मिल दही जलेबी खाते
           उधम मचाते कभी झगड़ते
           खाते कसम ना आएं दोबारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
           नहर किनारे बसा गांव है
           शुद्ध हवा और धूप छांव है
           नाना संग खेत पर जाते
           नलकूप के पानी में नहाते
           फिर बागिया से अमियां लाते
          अजब खेत और ग़ज़ब नज़ारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा नाना
         पर इस बार नहीं जा पाए
         कोरोना ने होश उड़ाए
         बहुत भयंकर बीमारी है
         घोषित हुई महामारी है
         अखिल विश्व इससे है हारा
          पूछो मत कितनों को मारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
        अबकी अरमां मिल गए माटी
        सारी छुट्टी घर में काटी
        कोरोना से सब हैं बेदम
        केवल घर में कैद हुए हम
        ऊब गये हैं पढ़ते पढ़ते
        होते बोर रहे दिन सारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
       मिलने से मजबूर हो गए
       नाना-नानी दूर हो गए
       हे प्रभु अब तो दया दिखाओ
       कोरोना को मार भगाओ
       दुखी हो रहे नाना नानी
       निशदिन रस्ता तकें हमारा
नानी का घर हमको प्यारा
खुशियों का संसार हमारा
  
अशोक विद्रोही
412 प्रकाश नगर मुरादाबाद
82 188 25 541
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कोरोना  से   फायदा ,सुन  लो   मेरे   यार
हम बच्चों को मिल गया ,मोबाइल उपहार
मोबाइल   उपहार ,ऑनलाइन   अब पढ़ते
पढ़कर  ढेर  सवाल ,रोज  उत्तर  हम गढ़ते
कहते रवि कविराय ,मजा यह हमें न खोना
अच्छा तिरछा - लाभ ,दिया  तुमने  कोरोना

✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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सड़  जाएंगे  दांत   तुम्हारे
ज्यादा   मीठा  मत  खाना
दर्द   करेगा,  मुँह   सूजेगा
बहुत     पड़ेगा   पछताना।

नींद  नहीं  आएगी  तुमको
मुश्किल   होगा   सो  पाना
टॉफी,चॉकलेट का तुम पर
यही      लगेगा     जुर्माना।

जब भी मीठा दूध पियो तो
दाँत  साफ   करके   आना
कोई फिर कुछ दे खाने को
लेकिन कुछ भी मत खाना।

बच्चो कुछ पाने की खातिर
कुछ  तो  पड़ता   है  खोना
पिज्जा, बर्गर, टॉफी सबसे
कहना  पड़ता  है, अब  ना।

अच्छे बच्चे  सभी बड़ों  का
सदा     मानते   हैं    कहना
तभी  हमेशा   सुंदर  दिखते
लगते  घर  भर  का  गहना।

टीना,  टीनू,   तरु,   हिमानी
पंकज  असमी  और   मोना  
मोती   जैसे  दांतों  के   संग
तुम   खुलकर  के  मुस्काना।

वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी
मुरादाबाद/उ,प्र,
मो0---   9719275453
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प्यारे बच्चाें ये सुंदर जीवन,
निराश कभी नही हाेना है |
कभी खुशी मिले यहाँ पर,
तो दुख भी हँसकर सहना है |

सुबह नरम व दाेपहर गरम ,
कभी रात चाँदनी हाेती है |
जी भर खाना मौज मनाना,
प्यारा ऐसा बचपन हाेता है |

कभी उछलना कभी कूदना,
सबकाे जी भर मस्ती देता है |
प्यार -दुलार सबकाे भरपूर ,
क्याें लौटकर फिर नही आता है?

✍🏻सीमा रानी
अमराेहा
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बंद घरों में पड़े बीतती अपनी सुबहो शाम।
मोबाइल में ही हो जाते अब तो सारे काम।।
खेल कूद पर भी पाबंदी कैसे दिन बेकार ।
अब तो मुश्किल लगता है ये हर पल का आराम ।

याद बहुत आता है वो टीचर का हमें डपटना।
उत्तर याद नहीं आये तो मुँह में थूक गटकना।।
इंटरवल में सबका मिलकर हल्ला गुल्ला करना।
एक दूजे के लंच बॉक्स से खाना साझा करना।

जी करता है कोरोना जी जल्दी से मिट जायें।
हम पहले की भाँति रोज विद्यालय में जा पायें।
और शाम को रोज पार्क में जाकर खेलें कूदें।
वीक एंड पर पापा के संग पुनः घूमने जायें।

✍️श्रीकृष्ण शुक्ल
MMIG-69, रामगंगा विहार,
मुरादाबाद ।
मोबाइल  9456641400
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देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

राजा-रज़िया-बिन्दर-असलम,
सारे उनको प्यारे।
सबको हँसकर बड़े प्रेम से,
आकर रोज सँवारे।
करती रहती सबके सुख की,
भगवन से फ़रियाद।
देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

प्रात: उठकर सबसे पहले,
आकर हमें जगाती।
पास बिठाकर फिट रहने के,
नुस्खे खूब बताती।
हम पौधे हैं पाते उनसे,
ममता रूपी खाद।
देखो हम बच्चों की प्यारी,
नानी ज़िन्दाबाद।

✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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इतना नीर कहांँ से आता
बादल कैसे जल बरसाता?
ग्रीष्म के ही बाद क्यों आता?
आता है; क्यों झड़ी लगाता ?

नदी-नालियां भर जाते हैं
सड़कों पर जल ही पाते हैं ।
शहरों का तो हाल बुरा है
बीच नदी ज्यों तना खड़ा है ।।

अति वर्षा जब हो जाती है
नदी-बांँध भी उफनाती है ।
बहता है जब इनका पानी
याद दिला देता है नानी ।।

खेत-गांँव सब पानी-पानी
पशु-पक्षी करते हैरानी !
जान-माल पर भी बनती है
वर्षा इतनी क्यों पड़ती है ।।

टी वी वाले बाढ़ दिखाते
दृश्य देखकर मन घबराते ।
घर-पहाड़ पानी में ढ़हते
दिल पर पत्थर रख सब सहते ।।

इतनी वर्षा मत बरसाओ
इन्द्रदेव अब दया दिखाओ ।
मात -भूमि कुछ जल को पी लें
जीव-जंतु तब सुखमय जी लें ।।

✍️राम किशोर वर्मा
रामपुर
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मम्मी मम्मी,प्यारी मम्मी
क्या दोगी मुझको उपहार

जन्मदिन आता है मेरा
पूरे एक साल के बाद
लेकिन तुमको ना जाने क्यों
कभी नहीं रहता है याद
बहुत हो गया, अब तो छोड़ो
अपना क्लबों का संसार

नहीं चाहिए नौकर आया
नहीं चाहिए कोर्इ खिलौना
नहीं चाहिए चॉकलेट भी
और ना ये मखमली बिछौना
ममता की गोदी मिल जाए
मिल जाए थोड़ा सा प्यार

✍️ डॉ पुनीत कुमार
T - 2/505
आकाश रेजिडेंसी
मधुबनी पार्क के पीछे
मुरादाबाद - 244001
M - 9837189600
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मिठ्ठू तोता पिंजड़े में भी ,
सबका जी  बहलाता है ।
सुबह आम की गुठली भाय,
शाम को काजू खाता है ।
घर में जब मेहमान पधारें ,
यह कहता है राम राम ।
बिन पूंछे ही सबसे कहता ,
मिठ्ठू मेरा प्यारा नाम ।
जब कोई पकवान बने तो ,
माँग माँग के खाता है।
मिठ्ठू****
मिठ्ठू और पटे की बोली,
लगती उसके मुख से प्यारी ।
लाल चोंच और हरे पंख से ,
उसकी सूरत सबसे न्यारी ।
बच्चों की जब डांट पड़े तो ,
उनकी नकल बनाता है ।
मिठ्ठू******

✍️डॉ प्रीति हुँकार
मुरादाबाद
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बारिश ,बादल ,मस्त पवन सब
मन मर्जी के मालिक हैं
मैं ही बस खिड़की से झांकू
सूना मन घर सूना है ।

पीटर के घर एक बहन है
सुन्दर गुड़िया ,जादू सी
बहुत चार्मिंग मुझको लगती
वो क्यूट डाॅल बार्बी सी ।

रोली चावल माथे टीका
बांधे राखी मेरे भी
मैं सारी चाकलेट दे दूँ
गोलू मोलू हाथी भी ।

चहक चहक कर चिड़िया है खुश
ये डाॅगी मस्ताना भी
मैं ही बस इकलौता बालक
घर में बंद खिलौना सा ।

दादा-दादी नाना -नानी
सबको ढूंढू भोला सा
मन कहता है मेरा भी हाँ
सबके बीच रहूं मैं अब।

मम्मी अपने ऑफिस जातीं
फिर डैडी जी भी जाते
मैं ही बस रह जाता घर में
और काका जी सो जाते ।

तड़ -तड़ करके बारिश होती
काले बादल घिर आते
ठंडी -मस्त हवा भी चलती
पर मुझको तनिक न भाते ।

✍️मनोरमा शर्मा
अमरोहा
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रोज सुबह तुम जल्दी जागो।
तितली के पीछे मत भागो।
साफ सफाई का हो ध्यान।
मल-मल नित्य करो स्नान।।

प्रभु के चरणों में सिर नवाओ।
हँसते-हँसते पढ़ने जाओ।
पढ़ लिख कर तुम बनो महान।
ऊँची रखना देश की शान।।

आपस के सब द्वेष भुलाकर।
चलना सबको साथ मिलाकर।
बढ़े पिता माता का मान।
मिले तुम्हे अच्छी पहचान।।

कभी किसी को नहीं सताना।
सच्ची सदा ही बात बताना।
लेकिन ना करना अभिमान।
सबका करना तुम सम्मान।।

मानवता के हित के काम।
इनमें मत करना विश्राम।
सदा बढ़ाना अपना ज्ञान।
इसको निज कर्तव्य मान।।

✍️नृपेन्द्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा मुरादाबाद
9045548008
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छोटी सी चिडिय़ा फुदक फुदक कर उडना चाहती है.
पिंजरे में न बान्धो मुझको यह कहती जाती है।
मुझको उडना है दूर दूर तक
क्षितिज तक जाना है जरूर
मेरी स्वत्रंता है अमूल्य
मेरा है न कोई मूल्य।

✍️श्वेता पूठिया
मुरादाबाद
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बच्चो! राष्ट्रीय-फल मैं आम।
मुझको खाते मिट्ठू राम।
वैसे मेरा नाम है *आम*।
बहुत खास हूँ ,न बस आम।

खट्टा-मीठा रस है मुझमें।
सौ से ज्यादा मेरी किस्में।
दशहेरी,चौसा और लंगड़ा।
खाता जो करता है भंगड़ा।

मुझको काली-कोयल खाती।
खाकर मीठा गाना गाती।
सब फल का मैं ही हूँ राजा।
रस मेरा है ताजा-ताजा।
देखो! मुख में आया पानी।
खाओगे होगी हैरानी।

,✍️ दीपक गोस्वामी 'चिराग'
शिव बाबा सदन,कृष्णा कुंज
बहजोई (सम्भल) पिन-244410
मो. 9548812618
ईमेल-deepakchirag.goswami@gmail.com

संस्कार भारती मुरादाबाद की ओर से रविवार 20 सितंबर 2020 को आयोजित हिन्दी साहित्य महोत्सव में प्रस्तुत विभांशु दुबे, इला सागर रस्तोगी, पिंकेश चौहान, अभिषेक रुहेला, प्रवीण राही, नृपेंद्र शर्मा सागर, रानी इंदु , प्रशांत मिश्र, ईशांत शर्मा ईशु, आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ , डॉ रीता सिंह, मयंक शर्मा , मीनाक्षी ठाकुर, रश्मि प्रभाकर, मोनिका मासूम , हेमा तिवारी भट्ट , डॉ ममता सिंह, राजीव प्रखर, मुजाहिद चौधरी, कृष्ण शुक्ल , डॉ एमपी बादल जायसी, डॉ मनोज रस्तोगी, योगेंद्र वर्मा व्योम , अशोक विद्रोही , डॉ मीना कौल, डॉ पूनम बंसल अशोक विश्नोई , अमित कुमार सिंह, डॉ सतीश वर्धन जी, बाबा कानपुरी जी और संजीव आकांक्षी की रचनाएं------


(1)
भारत  की  भाषा  हिन्दी  है
जन-जन की आशा हिन्दी है
यह नहीं मिटाये मिट सकती
यह जननि भाल की बिंदी है

(2)
आओ बात करें भारत में हिन्दी के सम्मान की
आओ मिलकर शपथ उठाएं हिन्दी के उत्थान की
देख के दुनिया की भाषाएं हमको ये ही लगता है-
सबसे सुंदर सबसे प्यारी हिन्दी हिदुस्तान की ।।

✍️ अशोक विश्नोई
      मुरादाबाद
     मो० 9411809222

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हिंदी का सम्मान करें हम, हिंदी अपनी शान है।
भारती के भाल की बिंदिया, हम सबका अभिमान है।।

सहज सरल है अनुपम है ये, शब्दों का गहरा सागर।
इसके अंग अंग से देखो, भावों की छलके गागर।
सम्प्रेषण का मधुर प्रसाधन, मीठी बहुत जुबान है।।

है वैज्ञानिक भाषा हिंदी, नियमों से अभिसार करें।
सजी हुई है अलंकार से, छंदों से श्रृंगार करें।
संस्कृति की बनती है पोषक, गीतों का प्रतिमान है।।

सबसे ज्यादा समझी जाती, दुनिया में बोली जाती।
फिर न जाने क्यूँ कर के यह, इंग्लिश से तोली जाती।
हिंदी को जो हीन समझता, वो तो बस नादान है।।

क्यूँ हो एक दिवस हिंदी का, इस पर भी कुछ ध्यान करें।
हर दिन हर पल हो हिंदी का, ऐसा अब अभियान करें।
मानवता को मिला हुआ यह, शारद का वरदान है।।
भारती के भाल की बिंदिया, हम सबका अभिमान है।

✍️डॉ पूनम बंसल
10, गोकुल विहार
कांठ रोड, मुरादाबाद
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जिंदगी आजकल
कोरोना के खौफ में गुजर रही है
  हर कदम पर बीमारी
  एक नयी साजिश रच रही है।
  वायरस के बोझ से
  हर व्यवस्था कुचल रही है
  निर्दोषों की चीख से
  मानवता भी दहल रही है।
  महामारी की आग में
  हर इच्छा ही जल रही है
  दूर देश से उठी आग
  कितनी साँसें निगल रही है।
  आपसी सद्भाव पर
  संदेह की काली छाया पड़ रही है
  धर्म स्थल पर भी
  शत्रु की काली दृष्टि पड़ रही है।
  कौन है जिसने
  यह अवांछित कर दिया
अपने ही घर में
हमें असुरक्षित कर दिया।
आखिर कब तक
जिंदगी कोरोना के साए में गुजरेगी
आँखें कब तक
अपने सपनों को तरसेंगी।
कभी कभी लगता है
इसकी कोई दुआ जरूर आएगी
महामारी छोड़ पीछे
मीना जिंदगी आगे बढ़ जाएगी।।
  ✍️ डाॅ मीना कौल
  मुरादाबाद
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अपने ही घर में कोई ,पाए ना सम्मान ।
कुछ राज्यों में होत यों,हिंदी का अपमान।।
हिन्दी का अपमान ,सुनो नेता गण प्यारे ।
हिंदी को अनिवार्य करो ,राज्यों में सारे।।
,विद्रोही,सच‌ होंय , राष्ट्र भाषा के सपने ।
यदि अपमानित न हो , हिन्दी घर मेंअपने।।

हिन्दी के हों दोहरे, छंद, बंध, श्रृंगार।
चौपाई और गीत में ,रस की पड़े फुहार ।।
रस की पड़े फुहार,भाव के घन उमड़े हों।
हिन्दी लो अपनाय, बंद सारे झगड़े हों ।।
,विद्रोही, मां के माथे,ज्यों सजती बिन्दी ।
भारत माता के माथे ,यों सजती हिन्दी ।।

✍️ अशोक विद्रोही
मुरादाबाद
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1:
हमारी अस्मिता है राष्ट्र का अभिमान है हिंदी।
परस्पर के सहज संवाद की पहचान है हिंदी ।
नहीं बस मात्र भाषा, ये हमारी मातृ भाषा है।
हमारा मान है हिंदी,  हमारी शान है हिंदी ।।

2:
है अँधेरा घना फिर भी, दीप जल जल कर लड़ा है।
सूर्य सा तो नहीं है पर, हौसला इसमें बड़ा है।।
मुश्किलों में डटे रहना, दीप से ही सीख लो तुम।
जीत उसकी ही हुई है, जो अडिग होकर खड़ा है।।

3:
अँधेरे दिलों के मिटाते रहेंगे।
दिये प्यार के बस जलाते रहेंगे।।
हवाओं से यदि तुम करोगे हिफाजत ।
दिये रात भर जगमगाते रहेंगे।।

✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल,  मुरादाबाद
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रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन
        लक्ष्य प्राप्ति के लिए
        हम भटकते  रहे
        अर्थ लाभ के लिए
        बर्फ सा गलते रहे
सुख की कामना में
जर्जर हो गया तन
       स्वाभिमान भी गिरवी
       रख नागों के हाथ
       भेड़ियों के सम्मुख
       टिका दिया माथ
इस तरह होता रहा
अपना चीरहरन
रेल की पटरियों सा
हो गया जीवन
✍️ डॉ मनोज रस्तोगी

8,जीलाल स्ट्रीट मुरादाबाद 244001

उत्तर प्रदेश , भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822
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चिन्ताओं के ऊसर में फिर
उगीं प्रार्थनाएँ

अब क्या होगा कैसे होगा
प्रश्न बहुत सारे
बढ़ा रहे आशंकाओं के
पल-पल अँधियारे
उम्मीदों की एक किरन-सी
लगीं प्रार्थनाएँ

बिना कहे सूनी आँखों ने
सबकुछ बता दिया
विषम समय की पीड़ाओं का
जब अनुवाद किया
समझाने को मन के भीतर
जगीं प्रार्थनाएँ

धीरज रख हालात ज़ल्द ही
निश्चित बदलेंगे
इन्हीं उलझनों से सुलझन के
रस्ते निकलेंगे
कहें, हरेपन की ख़ुशबू में
पगीं प्रार्थनाएँ

✍️ योगेन्द्र वर्मा ‘व्योम’
मुरादाबाद
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माँ हिन्दी के नेह की, एक बड़ी पहचान।
इसके आँचल में मिला, हर भाषा को मान।।

मानो मुझको मिल गये, सारे तीरथ-धाम।
जब हिन्दी में लिख दिया, मैंने अपना नाम।।

तभी सफल होगा सखे, हिन्दी का अभियान।
मिले इसे व्यवहार में, जब पूरा सम्मान।।

मन की आँखें खोल कर, देख सके तो देख।
कोई है जो लिख रहा, कर्मों के अभिलेख।।

प्यारी मुनिया को मिला, उसी जगह से त्रास।
जिसमें लोगों ने रखा, नौ दिन का उपवास।।

सुन गोरी के पाँव से, पायल की झंकार।
ढल जाने को काव्य में, मचल उठा श्रृंगार।।

पुतले जैसा जल उठे, जब अन्तस का पाप।
तभी दशहरा मित्रवर, मना सकेंगे आप।।

बुरे ग्रहों ने साथियो, ज्यों ही सूँघे नोट।
पल में पावन हो गये, रहा न कोई खोट।।

-✍️ राजीव 'प्रखर'
मुरादाबाद
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मैं जब भी अपने पुरखों से मिला हूं ये लगा मुझको ।
मैं उनके ख्वाब जैसा हूं हमेशा ये लगा मुझको ।।
मेरे गांव के रस्ते,सूने घर,वीरान चौपालें ।
मेरे ही मुंतज़िर हैं वो हमेशा ये लगा मुझको ।।
कभी भूला नहीं बचपन के यारों को,बुजु़र्गों को ।
मैं जब भी घर गया उनसे मिला हूं ये लगा मुझको ।।
अजब मायूसी है,वहशत का आलम है जमाने में ।
नहीं गांव में कुछ खौ़फो़ ख़तर बस ये लगा मुझको ।।
ये हिंदू और मुस्लिम के जो झगड़े हैं शहर में हैं ।
मेरे गांव में हैं सब भाई भाई ये लगा मुझको ।।
ये दरिया धूप बादल और सितारे भी सभी के हैं ।
मेरा घर मेरा आंगन है सभी का ये लगा मुझको ।।
मुजाहिद एक इंसां है उसे इंसां से रग़बत है ।
मैं तन्हा हो के सबका हूं हमेशा ये लगा मुझको ।।

✍️मुजाहिद चौधरी
हसनपुर, अमरोहा
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अहसास उमड़ते जब मन में, भावों में बांधा जाता है,
भावों को बना लेखनी जब शब्दों में साधा जाता है,
आँखों में उमड़े सपनों की जब हृदय तंत्र से ठनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब आँसू बिना ही आँखों में आती है नमी विचारों की,
जब कलम उगलती अंगारे, और लिखती ग़ज़ल बहारों की,
संयोग वियोग भावना जब कवि हृदय रक्त में सनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब धरती से अम्बर तक का एक अद्भुत रूप निखरता है,
जब सागर से अम्बुद बनकर, वापस उस ओर बिखरता है,
उन्मुक्त कल्पनाओं की जब इक सुंदर नदी उफ़नती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब उमस भरी लंबी रातें, तम की चादर फहराती हैं,
जब जुगनू की टिम टिम किरणें अंधियारे को गहराती हैं,
जब सुखद सवेरा करने को, उषा परिधान पहनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।

जब मस्तक रूपी कागज़ पर अनुबंध उकेरे जाते हैं,
जब उर के श्वेत पटल पर अद्भुत रंग बिखेरे जाते हैं,
जब श्रोताओं की वाह वाह कवि हृदय प्रेरणा बनती है,
तब जाकर के निर्भीक लेखनी से इक कविता बनती है।।

✍️रश्मि प्रभाकर
मुरादाबाद
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ज़िंदगी तुझसे मिलन जिस वक़्त दोबारा हुआ
आँसुओं का ये समंदर और भी खारा हुआ

बट गये ग़म और खुशी दीवारो दर की आड़ में
शर्म आँखों की गई जब घर का बटवारा हुआ

जी रहा है आदमी अब आदमीयत छोड़कर
हर बशर मक़तूल  हर एक शख़्स हत्यारा हुआ

जिसपे क़ुदरत  मेह्रबाँ थी उसको मंज़िल मिल गई
दर बदर फिरता रहा तक़दीर का मारा हुआ

तीर नफ़रत के मुहब्बत की कमां से जब चले
और भी घायल दिले -"मासूम" बेचारा हुआ

✍️ मोनिका "मासूम"
मुरादाबाद
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आओ सिपाही हिन्दी के,
हिन्दी के लिए बलिदान करें।
हिन्दी है भाल तिलक जैसी,
हिन्दी का वही सम्मान करें।

निज भाषा के लिए अगर,
हमने नहीं कोई काम किया।
तो निरर्थक ही जीवन को,
इन साँसों का दाम दिया।
जीवन समर्पित हिन्दी हित,
साँसे हिन्दी को दान करें।
आओ सिपाही......

हिन्दी ओढ़े,हिन्दी पहने,
हिन्दी ही गहना हो अपना
हिन्दी सोचे,हिन्दी बाँचे
हिन्दी ही सपना हो अपना
हिन्दी का जाप करें निशदिन,
हिन्दी का ही गुणगान करें
आओ सिपाही......

जन गण मन के कानों में
हिन्दी हिन्दी हिन्दी गूँजे
हर घर हर जन तक देखो
हिन्दी हिन्दी हिन्दी पहुँचे।
"हिन्दी वालों हिन्दी बोलो"
हिन्दी हित यह आह्वान करें
आओ सिपाही......

✍️ हेमा तिवारी भट्ट
मुरादाबाद
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हिन्दी भारत का गौरव और श्रृंगार है।
पा रही जग में अब तो ये विस्तार है।।

रस अलंकार छन्दों से है ये सजी,
ये तो रसखान की मीठी रसधार है।।

पीर मीरा की इसमें समाई हुयी,
ये सुभद्रा औ' दिनकर की हुंकार है।।

जोड़ती है सभी के दिलों को तो ये,
हिन्दी भाषा नहीं प्राण आधार है।।

गर्व *ममता* हैं करते बहुत इस पे हम,
छू गई हिन्दी मन के सभी तार है।।

✍️ डाॅ ममता सिंह
मुरादाबाद
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सूरज की किरणें जब आयीं
अंग अंग धरती मुस्कायी
हुए मुदित सब सुमन मनोहर.
पाती तरुवर ने लहरायी ।

सरिता ने धुन मधुर सुनायी
खिली हुईं कलियाँ हर्षायी
उठे विहग, सब राग छेड़ते
निंदिया रानी किसे सुहायी ।

लगे जीव सब ,नित कर्मों में
रोजी - रोटी सबको भायी
कर्मशील लख कोना कोना
सकल सृष्टि में खुशी समायी ।

✍️ डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)
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लघुकथा-----  क़सूर

कपड़ों की दुकान बंद होते ही, उस दुकान में टँगी सभी पोशाकें वाचाल हो गयीं। "स्कर्ट "ने अपना अनुभव सुनाते हुए कहा कि सड़कों पर सब  लोग उसे गंदी नज़रों से घूरते हैं।
यह सुनकर, "साड़ी" ने कहा,"नहीं बहन!सिर्फ तुम्हें ही नहीं ,मुझे भी घूरते हैं।
"नकाब "ने कहा,"पर मैं तो दब ढक कर निकलता हूँ,  फिर भी मेरे बदन को भी लोगों की निगाहें खंज़र जैसी निगाहें चुभती रहती हैं।"
"दुपट्टे वाली ड्रेस"ने एक लंबी साँस ली और कहा,"....मेरा आँचल भी लोगों की कुदृष्टि से यत्र- तत्र मैला होता रहता है।"
यह सुनकर  मौन दर्पण  बोल उठा,
" ....सब तुम्हारे यौवन का "क़सूर"है!!लोगों की निगाहों का नहीं।"
"यौवन का "क़सूर."..???पर मुझे भी तो लोगों की गंदी.....!!"बात पूरी करने से पहले ही दुकान के कोने में टँगी "छुटकी" फ्राक सुबक -सुबक कर रोने लगी ।

✍️मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद
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हिंदी संस्कार की भाषा
हिंदी प्रेम प्यार की भाषा
हिंदी राम कृष्ण की भाषा
हिंदी है तो हम हिंदुस्तानी,
हिंदुस्तानी  कहलाते  है
इस हिंदी ने दी पहचान
इसे नमन है सौ सौ बार
  ये हिंदी अपनी भाषा है
   इससे  अपना नाता है
  यह अपनी मिट्टी से जोड़ें
यह अपने दिल कभी ना तोड़े
जख्मों पर मरहम सी हिंदी
दर्द हुआ तो दवा है हिंदी
टूटे रिश्ते जोड़ते हिंदी
कभी न रिश्ते तोड़ती हिंदी
दुनिया को दिखलाती हिंदी
विश्व बंधुत्व सिखलाती हिंदी
प्रेम प्यार की भाषा हिंदी
संस्कार की भाषा हिंदी
हिंदी है तो तुम हम हैं
इस हिंदी की जय बोलो
सब हिंदी की जय बोलो

✍️आवरण अग्रवाल श्रेष्ठ
मुरादाबाद
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हिंदी अब उड़ने लगी निज पंखों को खोल,
सात समंदर पार भी लोग रहे हैं बोल।

अपना हो या ग़ैर का रखती नहीं विचार,
हिंदी ने हर शब्द को खोल दिये हैं द्वार।

साइलेंट कुछ भी नहीं सबकी है आवाज़,
हिंदी उर पट खोलती रखे न कोई राज़।
✍️मयंक शर्मा
मुरादाबाद
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लघुकथा ---- असंतुलन

"इतना क्यों दुखी होती हो भाभी इतना क्यों रो रही हो?" ध्वनि ने भाभी को सांत्वना देते हुए चुप कराने की कोशिश करते हुए कहा।
भाभी ने सिसकियां भरते हुए उत्तर दिया "ध्वनि अब मैं थक गयी हूँ यह सब करते अब और नहीं किया जाता। महीने भर उन अच्छे दिनों का इंतजार फिर कोशिश करने के बाद वजन मत उठाओ, ज्यादा दौड़ो मत, गर्म चीजें मत खाओ, क्या पता इस बार ईश्वर सुन ही ले और फिर टैस्ट किट का प्रयोग और फिर नेगेटिव रिजल्ट फिर भी यही उम्मीद होती है कि शायद किट गलत हो या फलाना हार्मोन अभी अच्छी मात्रा में बने नहीं और फिर उन दिनों का आ जाना और अंत में मेरा बिलखते रोना, किस्मत को कोसना और फिर शुरू होती है एक नई साइकिल। पिछले दस साल से यही तो कर रही हूँ ध्वनि मैं पर अब थक गई । कितना कहा मैने इनसे कि बस अब मुझसे डॉक्टरों के चक्कर नहीं लगाए जाते पर ये भी मजबूर हैं। बच्चा तो चाहिए ही न। बच्चा गोद लेने की कितनी कोशिश की फिर भी निराशा ही हाथ लगी।"
ध्वनि ने भाभी को गिलास से पानी पिलाते हुए कहा "दुखी मत हो भाभी ईश्वर के घर देर है अन्धेर नहीं। लो आप टीवी देखो मन बदलेगा।"
चैनल लगाते समय ध्वनि ने गलती से न्यूज चैनल लगा दिया। उसपर आती एक खबर ने दोनों का ध्यान आकर्षित किया। खबर में दिखा रहे थे कि किस प्रकार एक नृशंस मानव ने नवजात जुड़वां बच्चियों को कूड़े के डिब्बे में मरने के लिए छोड़ दिया।  ध्वनि समझ नहीं पा रही थी कि इस खबर को देखने के बाद अपनी रोती हुई भाभी को वह अब क्या सांत्वना देकर चुप कराए।

✍️ इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद
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भटक रहा संसार में, इधर-उधर  इंसान।
चले अगर सदमार्ग पर,मिल जाये भगवान।।

प्रेम साँचा उसे मिले, जो नर हो निष्काम।
मीरा खातिर प्रेम के, कर बैठी विषपान।।

पर नारी के  रूप ने , भेदा है हर चित्त,
कामातुर  देवेश भी, बन बैठा हैवान ।।

धारण कर भगवा वसन,बनें न दुर्जन संत।
इंद्रासन पर बैठकर, हुए न असुर महान।।

सेवा कर माँ बाप की,मिल जाएं सब धाम।
जग में तेरा नाम हो, पावन संतति जान।।
                     
✍️ पिंकेश चौहान ' तपन '
मुरादाबाद
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1.......
शब्द से मोतियों को पिरोते हैं हम,
लोग बेचैन हैं कैसे सोते हैं हम।
है नहीं काम आसान सुन लो सभी,
पृष्ठ को आँसुओं से भिगोते हैं हम।

2.......
ग़मों की वादियों में भी हमेशा मुस्कुराते हैं,
नहीं ज़ख्मी परिन्दे की तरह हम छटपटाते हैं।
ज़रूरत आपको होगी भले ही चाँद की हम तो,
लिये आज़ाद इक चेहरा सदा ही जगमगाते हैं।

✍️ अभिषेक रुहेला
ग्रा०पो०- फतेहपुर विश्नोई, मुरादाबाद
(उ०प्र०)- 244504
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अध जले आंचल
भुरभुरे काग़ज़
जैसी हूं
उसपे अब भी कुछ लिख सकती हूं
कुछ तो अब भी रंग भर सकती हूं
आईना तू क्या  रूठा है मुझसे ?
अब तो मैं भी तुझसे रूठी हूं
जरा देख
तेरे सामने ही बैठी हूं
जितना बचा है मेरे चेहरे पे चेहरा
बिंदिया कहीं भी अब लगा लूंगी
ठेढ़े मेढ़े अधरो को भी
लिपिस्टिक से सजा दूंगी
आईना तुझे कोई किरदार
निभाने कहां आता है?
तू हर चेहरे से बिक जाता है
फिर मुझे देखे क्यों नज़रे चुराता है?
मेरी नजरों में आज भी
मैं उतनी ही खूबसूरत हूं
पापा की लाडली
मां की लक्ष्मी
घर की इज्जत की मूरत हूं
सब कुछ पहले जैसा हो जाएगा
वक्त के साथ घाव भर भर जाएगा
मैं हिमालय सी अडिग
प्रशांत महासागर सी गहरी
सियाचिन की बर्फ सी जमी पड़ी हूं
पर जीने की आस में
खुद के सामने खड़ी हूं
संकीर्ण गली सी सोच वालों
तुमसे आज भी मैं बड़ी हूं
बस ठीक है सब
केवल रसायन शास्त्र को अब
पसंद नहीं  करती हूं
जब  भी इसे मैं पढ़ती हूं
अंदर से रो रो पड़ती हूं
उस तेजाबी हादसे से 
बारम्बार जल पड़ती हूं
बारम्बार जल पड़ती हूं

✍️ प्रवीण राही
8860213526
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ख़ातिर औलाद की एक घोंसले को बुनते हुए
नही है देखता कोई बाप को उधड़ते हुए

बने थे फूल जिस चमन के हम थे जानो जहां
कैसे कोई देख ले चमन को यूँ उजडते हुए

वो जो औलाद की ही खाल मे दुश्मन है छुपा
कैसे कोई रोके ले औलाद को बिगड़ते हुए

चोरी करते सभी पर चोर वो जो पकड़ा गया
नामी बदमाश हमने देखे खूब चलते हुए

हैं गिरी हरकतें किसकी नही बूझो तो जरा
बड़े बड़े नाम वाले देखे हमने गिरते हुए

✍️इन्दु,अमरोहा,उत्तर प्रदेश
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सियासत की राह में,
इंसानियत मैली हो गई,
अब तक नदी का जल पीते थे,
अब फिल्टर गोमुख हो गई,

गंगा की कालिख़ में,
दाग तुम्हारा भी है,

इतनी फ़िक्र थी,
खुद ही गंदगी रोक लेते,
ऐसा सुनकर बात हमारी टाल गए,
नदी साफ करने चले थे
खुद गन्दगी डाल गए,

✍️प्रशान्त मिश्र
मुरादाबाद
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छोटी - सी ज़िन्दगी है हर बात में खुश रहो ।
जो चेहरा पास न हो उसकी आवाज़ में खुश रहो ।
कोई रूठा हो आपसे उसके अंदाज़ मे खुश रहो ।
जो लौट कर नहीं आने वाले उसकी याद में खुश रहो ।
कल किसने देखा है अपने आज में खुश रहो ।
छोटी - सी ज़िन्दगी है हर बात में खुश रहो।

✍️ईशांत शर्मा
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हम पढे और पढाये
         कुछ करके दिखाये
हम कम नही किसी से
         दुनिया को ये बताये
हम पढे ----
कुछ करके----
         हिन्दू हो या मुस्लमान
सिख हो या इसाई
         इक साथ मिल सभी ने
अवाज ये उठाई
        हम पढे और----
        कुछ करके------
अनपढ़ न रहे कोई
       हमने है सौगन्ध खाइ
मजदूर हो या किसान
       बुढा हो या जवान
हम पढे और-----
कुछ करके------
      बटे और बेटी को
शिक्षा मिले समान
      अज्ञानता का दाग
माथे से हम मिटायें
       हम पढे और -----
       कुछ करके ------
गर मंजिलों को है पाना
       खुद का है पहचान बनाना
पढ़ लिख शिक्षित हो के
       आगे ही बढ़ते जाना है
अशिक्षित पायें शिक्षा
      और शिक्षित उन्हें पढ़ायें
हम पढे़ -------
कुछ करके ----
      
✍️ डा एम पी बादल जायसी
  9319318919
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आईने के सामने
आब ऐ आईना हो जाऊं मैं,
तेरा अक्श देखूँ
तो तुझ सा ही हो जाऊं मैं।
दिल में दबी एक
ख्वाहिश सा मचल जाऊं मैं,
सिमट के तुझ में
खुद ही संभल जाऊं में ।।
दिल रोज ही तेरी चाहत करे
बस तेरी ही रिवायत करे,
अब ये यूँही बिगड़ जाए
तो कोई क्या करे ।
चाहकर भी तुझको
चाहत न हो पूरी,
रास्ते सभी जहां के
लगते हैं क्यों अधूरे,
ये दूरियां मिटाना
लगता है अब जरूरी ।।
तू सामने जो आये तो
तुझमें ही खो जाऊँ में,
तू बेरूखी दिखा दे
अमित कुमार सिंह,मुरादाबाद
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वह दिल भी क्या दिल है यारों,  जिस दिल में किसी का प्यार ना हो।
कोई लक्ष्य ना हो कोई चाह ना हो, किसी चाहत की परवाह ना हो।

है लक्ष्य बिना जीवन सूना, कोई पथ ही नही गर चलने को।
ऐसे जीवन को क्या कहिये, कोई चाह नहीं हो पाने को।।

जिस मिट्टी से तन का नाता,  उस मातृभूमि से प्रेम करो।
निज देश धर्म की रक्षा में,कोई नया मार्ग सृजन कर लो।।

अपने इस नश्वर जीवन को, निज देश के हित कुर्बान करो।
जो मानवता के शत्रु हैं, उनमें मानवता का ज्ञान भरो।।

कुछ पथिक भटकते हैं पथ से, कुछ को भटकाया जाता है।
वे सत्य भुला यह देते हैं, मानव का उनसे नाता है।।

कुछ मासूमों की राह सत्य के, मार्ग में प्रशस्त करो।
जिस मिटी से तन का नाता, उस मातृभूमि से प्रेम करो।।

✍️नृपेंद्र शर्मा "सागर"
ठाकुरद्वारा, जिला मुरादाबाद
mobile:-+919045548008
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न जिद मे न किसी गुस्से में किया था
कुछ कर दिखाने के लिए उसने ये कदम लिया था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
अपनी मेहनत की कश्ती को एक समंदर में छोड़ा था
एक लड़के ने खुद के करियर के लिए घर छोड़ा था
छोड़कर घर की मोह माया को
हास्टल की दुनिया से नाता जोड़ा था
चंद सपनों की खातिर खुद को अपनों से दूर किया था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
उम्मीदों की दौड़ में वो मां के आंचल से दूर निकला था
पिता के साये से दूर अब बाहर की दुनिया में पहुंचा था
हाँ, एक लड़के ने भी अपना घर छोड़ा था
किताबों की दुनिया से उसने अपना नाता जोड़ा था
कुछ कर दिखाने के जुनून में खुद को झोंका था
एक लड़के ने भी घर छोड़ा था
रख परे शौक को अपने
अपनी मेहनत के साहिल पर उसने
अपनी किस्मत की कश्ती को छोड़ा था
अपने माता पिता के गर्व को ऊंचा रखने के लिए
खुद को त्याग की आग में झोंका था
एक लड़के ने कुछ कर दिखाने को घर छोड़ा था
वक्त से भी उसकी मशक्कत का सिला उसको मिला था
उस लड़के के कारनामे से
उसके पिता का सीना गर्व फूला था
आखिरकार उसने उस सच को पत्थर पर लिख छोड़ा था
अब लोग कहते थे उसके गांव के B
वाकई कुछ कर दिखाने को
एक लड़के ने घर छोड़ा था ll

✍️विभांशु दुबे विदीप्त ,मुरादाबाद
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जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।
मन से राम को याद करो तो बन जाते सब बिगड़े काम ।।

ताड़का और सुबाहु तारे पत्थर बनी अहिल्या तारी ।
जयंत और खर-दूषण तारे केवट के संग नौका तारी ।।
मात्र बेर खाने से जग में अमर हो गया शबरी नाम ।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।

मायावी मारीच तर गया बाली का उद्धार हो गया ।
सुग्रीव और अंगद जैसों का राम नाम आधार हो गया ।।
वानर सेना सारी तर गयी बोल बोल कर जय श्रीराम।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।।

विभीषण भी गले लगाया ,हनुमान को भक्त बनाया ।
क्रोध राम का देखा तो फिर दम्भी सागर शरण मे आया ।।
पत्थर तक भी तर गये देखो जिन पर लिखा गया था राम ।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जयश्री राम ।।

कुम्भकर्ण जैसा बलशाली ,रावण के जैसा महाज्ञानी ।
परख न पाये थाह राम की मद में होकर के अभिमानी ।।
अंत समय पर जोर जोर से बोले दोनों जय श्रीराम  ।।
जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम ।।

धरा गगन भी हर्षित हो गये मन सबके भी पुलकित हो गये ।
कलियुग में बनवास भोगकर राम अवध में वापस आ गये ।।
धाम अवध सबको चलना है बोल बोल कर जय श्रीराम ।

जय श्रीराम बोलो जयश्रीराम ,जय श्री राम बोलो जय श्रीराम।
मन से राम को याद करो तो बन जाते सब बिगड़े काम ।।

जय श्रीराम बोलो जय श्रीराम -------------------

  ✍️ डॉ सतीश वर्द्धन ,पिलखुवा
9927197480
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जितनी विषम परिस्थितियां हैं, उतने ही दृढ़ मोदी जी,
भरते हैं हुंकार दुश्मनों की छाती चढ़ मोदी जी।

जब भी घोर देश में संकट या विपपदाएं आती हैं,
देते हैं इमदाद सभी को खुद आगे बढ़ मोदी जी।

उग्रवादियों देशद्रोहियों के घुसकर ताहखानों में,
ध्वस्त किए उनकी साजिश के बड़े-बड़े गढ़ मोदी जी।

पाक-चीन से कम,खतरा ज्यादा घर के जयचंदों से,
उनसे मिले निजात, युक्तियां वही रहे गढ़ मोदी जी।

मीठा मीठा गप्प और कड़वा कड़वा जो थूक रहे,
उनको सबक सिखाने का भी रहे पाठ पढ़ मोदी जी।

✍️बाबा कानपुरी

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कुछ नए और
कुछ पुराने मिले
हुए सब अपने
जो भी बेगाने मिलेl
कुछ इस तरह से
मालामाल किया
गया मुझे
गम के गहने,
तकलीफों के ताज़,
धोखे की दौलत
फरेबी जज़्बात
ये बेशुमार दौलत
ज़िंदगी भर की कमाई
से अब भी
कहीं ज्यादा है
और दो, और दो,
ये खज़ाना और दो मुझे
मैं थकूंगा नहीं.
ये मेरा वादा हैl
क्योंकि
मैं पिता हूँ, पति हूँ,
आम नागरिक हूँ,
एक व्यवसायी हूँ,
कुछ कहते हैं
बड़ा हरजाई हूँ,
सामाजिक सरोकारों से
जोड़ा गया हूँ,
बेवज़ह, बेवक्त,
बेमकसद तोडा गया हूँl
जो भी कुछ

✍️ संजीव आकांक्षी
मुरादाबाद

सोमवार, 21 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार वीरेंद्र सिंह बृजवासी का गीत -----इंसानियत से गिरती हुई बात न करना प्यारी सी जिंदगी के साथ घात न करना।


इंसानियत   से   गिरती  हुई

बात            न         करना

प्यारी सी  जिंदगी  के  साथ

घात          न          करना।


हम सही  तो  सारा  ज़माना

सही             है           यार

घृणा की राह पर न  बढ़ाओ

कदम          हर          बार

बर्बादियों   की  बातें   कभी

ज्ञात            न        करना।

इंसानियत से---------------

                

हर  बात में  मिठास भरी हो

भरा            हो          प्यार

हो गुल की तरह  रेशमी  हर

शब्द          में         निखार

शापित किसी के सरपे कभी

हाथ            न         धरना।

इंसानियत से--------------


खुशियां सभी की  हैं ज़रा यह

बात           जान            लो

बस  बांटना  है  प्यार  इसको

सही           मान            लो

खुशियों  के  सवेरों  में  सिया

रात           न            भरना।

इंसानियत से----------------


किसके लिए  ईश्वर  का कौन 

रूप                         धरेगा

खुश होके  पीर  सबकी  यहां

कौन                         हरेगा

प्रतिघात कभी  अपनों  से  है

तात           न           करना।

इंसानियत से----------------


जो सबसे  मिलकर धरती पर                             

रह              लेता            हो   

जो सबके  लिए  हर  कष्ट भी 

सह            लेता             हो

शतरंज  की  चालों  सा  कभी

मात             न         करना।

इंसानियत से----------------

      

 ✍️ वीरेन्द्र सिंह ब्रजवासी, मुरादाबाद/उ,प्र,

मो0- 9719275453


 

रविवार, 20 सितंबर 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार ज़मीर दरवेश की ग़ज़ल ...... बुज़ुर्ग पेड़ से करके चले सलाम दुआ, हवा को चाहिए पासे अदब निभा के चले!

بہت وہ چل نہیں پاۓ جو بچ بچاکے چلے، 

وہی چلے جو کلیجے پہ تیر کھا کے چلے! 

बहुत वो चल नहीं पाए जो बच बचाके चले, 

वही चले जो कलेजे पे तीर खाके चले! 


بزرگ پیڑ سے کرکے چلے  سلام دعا،

ہوا کوچاہیے پاس ِادب نبھا کے چلے ! 

बुज़ुर्ग पेड़ से करके चले सलाम दुआ, 

हवा को चाहिए पासे अदब निभा के चले! 


یہ میری خو  ہے مخالف ہوا کے چلتا ہوں، 

وہ اور ہوگا کوئی ساتھ جو ہوا کے چلے!

यह मेरी ख़ू* है मुख़ालिफ़ हवा के चलता हूँ, 

वो और होगा कोई साथ जो हवा के चले! 


 ہنسا ہنسا کے چمن زار کردیا گھر کو ،

ہلاکے ہاتھ جو چلنے لگے رلا کے چلے! 

हंसा हंसा के चमनज़ार कर दिया घर को, 

हिलाके हाथ जो चलने लगे रुला के चले! 


دیارِ یار میں جانا ہو چاہے مقتل میں، 

مزہ تو جب ہے کہ دیوانہ سر اٹھا کے

 چلے! 

दायरे यार** में जाना हो चाहे मक़तल में, 

मज़ा तो जब है के दीवाना सर उठा के चले! 


 کسی چراغ کا لینا نہیں پڑا احسان، 

بہت اندھیرا ہُوا جب تو دل جلاکے چلے! 

किसी चराग़ का लेना नहीं पड़ा एहसान, 

बहुत अंधेरा हुआ जब तो दिल जलाके चले! 


چلے جو دشت میں اہلِ جنوں تو نقش ِقدم، 

بنا بنا کے چلے اور مٹا مٹا کے چلے! 

चले जो दश्त में एहले जुनूँ तो नक़्शे क़दम, 

बना बना के चले और मिटा मिटा के चले! 


عجب ہیں ہم بھی کہ ہجرت پہ  جارہے تھے مگر، 

اجاڑ کر نہ چلے گھر کو گھر سجاکے چلے! 

अजब हैं हम भी के हिजरत ***पे जा रहे थे मगर, 

उजाड़ कर न चले घर को घर सजा के चले! 


مٹانے جگنو چلے گھور اندھیرا تو خود کو، 

جلا جلا کے چلے اور بجھا بجھا کے چلے! 

मिटाने जुगनू चले घोर अंधेरा तो ख़ुद को, 

जला जला के चले और बुझा बुझाके चले! 


*आदत  ** मेहबूब का शहर*** मुस्तक़िल तौर पर अपने गाँव/ शहर को छोड़ जाना

  ✍️ज़मीर दरवेश, मुरादाबाद


 

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नक़वी की ग़ज़ल ---- ये और बात , सुन के वो ख़मोशियों पे टाल दे। सवाल तो है मुन्जमिद जवाब के बग़ैर भी।

वो दर्स-ए-इश्क़ दे गया निसाब के बग़ैर भी। 

पढ़ेंगे उसको हम मगर, किताब के बग़ैर भी। 


ये और बात , सुन के वो ख़मोशियों पे टाल दे।

सवाल तो है मुन्जमिद जवाब के बग़ैर भी। 


हज़ार रंग फ़ूल जब हैं, जा बजा खिले हुये।

महक रहा है गुल्सिताँ, गुलाब के बग़ैर भी। 


वो दश्त दश्त आँख, वो भरी भरी सी इक नदी।

बरस न जाये आसमाँ, हुबाब के बग़ैर भी। 


न जाने कौन भूले बिसरे ,गीत है सुना रहा।

बजा रहा है धुन कोई, रबाब के बग़ैर भी। 


मिला न उनमें बचपना, मिली तो मुफ़लिसी मिली।

कटी है जिनकी ज़िन्दगी शबाब के बग़ैर भी। 


ये और बात रतजगों से ' मीना' रब्त हो गया।

गुज़र रही है शब हमारी, ख़्वाब के बग़ैर भी।


   ✍️ डॉ.मीना नक़वी



 

शनिवार, 19 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार राशि सिंह की कहानी ----- पुश्तैनी मकान


''माँ तुम समझती काहे न ....इस मकान का कोई फ़ायदा नहीं ...हमारे साथ शहर चलो और वहीं रहो ।" अभिषेक ने अपनी माँ का हाथ अपने हाथों में लेकर समझाते हुए कहा ।

''नहीं बेटा मैं यह घर नहीं छोड सकती ,यह तुम्हारे बाबू जी की आखिरी निशानी है --मैं ठीक हूँ यहाँ --तुम आराम से शहर में रहो ।"

''लेकिन माँ ?"

''बस बेटा --मैं इस मुद्दे पर और बात करना नहीं चाहती " अभिषेक की माँ ने दो टूक जवाब दे दिया !

दिन गुजरते गये  धीरे -धीरे अभिषेक की माँ प्यारी का स्वास्थ्य भी गिरने लगा। साल मैं एक -दो बार अभिषेक माँ से मिलने आ जाता था ।

एक बार प्यारी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गयी । मोहल्ले वालों ने अभिषेक को फ़ोन पर सूचित किया।अभिषेक आया और माँ को शहर ले जाने लगा ,माँ भी इस बार राजी हो गयी। कार में बैठते हुए उन्होंने अभिषेक का हाथ पकड़ा और धीरे से बोलीं 'बेटा वादा करो मेरे जीते -जी इस घर को नहीं बेचोगे ।

''हाँ माँ आप चिंता न करो --ऐसा ही होगा । अभिषेक ने हकलाते हुए कहा ,और माँ को यकीन हो गया। वह इत्मीनान से आँखैं बंद करके लेट गयीं ! और अभिषेक उनके अंगूठे पर लगी स्याही क़ो धोने में लग गया ।

 ✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश 






मुरादाबाद के साहित्यकार डॉ पुनीत कुमार की व्यंग्य कविता ------ मच्छर से बातचीत


 माई डियर मच्छर

बहुत दिनों बाद नजर आ रहे हो

अपनी मधुर तान आजकल

किसको सुना रहे हो

आखिरी बार

जब हमारी हुई थी मुलाकात

गोलू मोलू हो रहा था

तुम्हारा स्वास्थ 

लेकिन आज तुम 

दीनहीन से लग रहे हो

पहले सरकारी जैसे थे

आज वित्त विहीन से लग रहे हो

तुम्हारा चेहरा भी पिटा हुआ है

क्या तुम्हारे साथ कोई हादसा हुआ है


जब हमने बहुत उकसाया

उसने करुण स्वरों मेेें बताया

हमारी इस हालत की जिम्मेदार है

तुम्हारे खून की गिरती हुई क्वालिटी

और उस पर आश्रितों की

बढ़ती हुई क्वांटिटी

हमने कहा ,पहेली मत बुझाओ

क्वालिटी और क्वांटिटी वाली बात

जरा डिटेल मेेें समझाओ

मच्छर बोला

पहले क्वालिटी पर

कर लिया जाय विचार

एक जमाना था

तुम हमसे करते थे अत्यधिक प्यार

दिल से रखते थे हमारा ख्याल

पहनने को चाहें चिथड़े मिले

खून का रंग बनाए रखते थे लाल

लेकिन आजकल

आधुनिकता के नाम पर 

तुम अपने स्वास्थ्य से

कर रहे हो खिलवाड़

झूठी शान के चक्कर मेेें

हैसियत से ज्यादा महंगे

कपड़ो की कर रहे हो जुगाड

समाज मेेें अपनी

इज्जत बढ़ाने के लिए

अपने आप को दूसरो से

ऊंचा दिखाने के लिए

तुमको अंधाधुंध 

पैसा फूंकना पड़ता है

और इसका सारा असर

भोजन के खर्च पर पड़ता है

तुम अपने भोजन पर देते हो

कम से कम ध्यान

क्योंकि तुमने

मटर पनीर खाया या सूखी रोटी

किसी को नहीं होता इसका ज्ञान

लेकिन अगर

भड़कीले कपड़े ना पहनें जाएं

तो इज्जत घाट जाती है

नाक पहले से ही छोटी है

वो भी कट जाती है

आधुनिकता का नशा

दिन प्रतिदिन चढ़ रहा है

तुम्हारे खून मेेें लगातार

पानी का अंश बढ़ रहा है

ऐसे मिलावटी खून को पीकर

हम अब तक ज़िन्दा हैं

येे सोचकर शर्मिंदा हैं


इतना कहकर मच्छर ने

हमारे गालों पर टिकाई अपनी लात

फिर बोला ,

अब सुनो क्वांटिटी वाली बात

आजकल कुछ लोगों मेेें ही

खून का भंडार है

लेकिन उनके खून पर

पहले से ही किसी का अधिकार है

ग्राहकों का खून चूस कर

व्यापारी पैसा कमा रहे हैं

डॉक्टर मरीजों के खून का

लुत्फ उठा रहे हैैं

वकील अपने मुवक्किलों का

खून चख रहे हैैं

महाजन ,गरीब कर्जदारों का खून

अपनी तिजोरी मेेें रख रहे हैैं

और इन सब

खून पीने वालो का खून

नेताजी पी रहे हैैं

शाकाहारी मुखौटा

लगाकर जी रहे हैैं

इसके बाद

जो थोड़ा सा खून बचता है

वही झूठा खून,हमको मिलता है


अगर सच मेेें 

करना चाहते हो हमारी भलाई

एक छोटा सा

काम कर दो मेरे भाई

हमको किसी तरह से करा दो

पार्लियामेंट में प्रविष्ट

वहां एक से बढ़कर एक है

खून के स्टॉकिस्ट

गरीब का खून,अमीर का खून

पढ़े लिखों का खून, बेपढ़ो का खून

गोरों का खून, कालों का खून

हिन्दू का खून,मुस्लिम का खून

उनके पास हर तरह का माल मिलेगा

हमारा मुरझा चेहरा 

वहीं पहुंच कर खिलेगा ।


✍️  डाॅ पुनीत कुमार

T -2/505

आकाश रेजिडेंसी

मधुबनी पार्क के पीछे

मुरादाबाद 244001

M 9837189600

मुरादाबाद मंडल के कुरकावली (जनपद सम्भल)निवासी साहित्यकार स्मृतिशेष रामावतार त्यागी का एक गीत और एक ग़ज़ल ... इनका प्रकाशन लगभग 36 साल पहले साप्ताहिक हिन्दुस्तान के 10 जून 1984 के अंक में हुआ था ।


 

मुरादाबाद के साहित्यकार श्री कृष्ण शुक्ल के दो मुक्तक


धरती का श्रंगार छीनकर, हमने कितने पाप किये।

जंगल काटे, नदियां बाँधी, ताल तलैया पाट दिये।।

आज प्रदूषण के कारण अब, जीवन भी दुश्वार हुआ।

अपने ही जीवन पर हमने, नित्य कुठाराघात किये।।


हम धरती से भोजन, पानी, प्राणवायु तक लेते हैं।

स्वार्थ सिद्धि की खातिर इसको, घाव निरंतर देते हैं।।

काट काट कर जंगल हमने, इसकी हरियाली छीनी।

आओ अब कुछ वृक्ष लगाकर, इसको जीवन देते हैं।।


✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।

मुरादाबाद के साहित्यकार ( वर्तमान में दिल्ली निवासी )आमोद कुमार अग्रवाल का गीत ---- प्रीत नहीं जिनके अन्तर में,व्यर्थ ही ये काया पाई, खुद मंज़िल पे जा पहुँचे और,औरों को न राह दिखाई।

 

प्रीत नहीं जिनके अन्तर में,व्यर्थ ही ये काया पाई,
खुद मंज़िल पे जा पहुँचे और,औरों को न राह दिखाई।

सपन नहीं जिनकी निंदिया में,उन नयनों का सोना भी क्या 
आँसू निकले,दिल न रोया,उन आँखों का रोना भी क्या ।
मरहम नहीं रखा घावों पर,न किसी की जान बचाई,
प्रीत नहीं जिनके अन्तर में,व्यर्थ ही ये काया पाई।

सोने का सूरज ये क्षितिज पर,प्यार का संदेशा देता,
चाँदी का चँदा फिर आकर, नयनोंं में मोती भर देता।
प्रेम के अनमोल ये आँसू, इनकी   क्या  कीमत है लगाई, प्रीत नहीं जिनके अन्तर में, व्यर्थ ही ये काया पाई।

मत रो साथी,मृदु हास से ,अधरों का श्रंगार करो तुम,
बीत जायेगी ये निशा भी, भोर का इंतज़ार करो तुम।
नव प्रभात की पहली किरन ये,देखो सुख संदेशा लाई,
प्रीत नहीं जिनके अन्तर में, व्यर्थ ही ये काया पाई।
     
  ✍️ आमोद कुमार अग्रवाल

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ पूनम बंसल का गीत