प्रीत नहीं जिनके अन्तर में,व्यर्थ ही ये काया पाई,
खुद मंज़िल पे जा पहुँचे और,औरों को न राह दिखाई।
सपन नहीं जिनकी निंदिया में,उन नयनों का सोना भी क्या
आँसू निकले,दिल न रोया,उन आँखों का रोना भी क्या ।
मरहम नहीं रखा घावों पर,न किसी की जान बचाई,
प्रीत नहीं जिनके अन्तर में,व्यर्थ ही ये काया पाई।
सोने का सूरज ये क्षितिज पर,प्यार का संदेशा देता,
चाँदी का चँदा फिर आकर, नयनोंं में मोती भर देता।
प्रेम के अनमोल ये आँसू, इनकी क्या कीमत है लगाई, प्रीत नहीं जिनके अन्तर में, व्यर्थ ही ये काया पाई।
मत रो साथी,मृदु हास से ,अधरों का श्रंगार करो तुम,
बीत जायेगी ये निशा भी, भोर का इंतज़ार करो तुम।
नव प्रभात की पहली किरन ये,देखो सुख संदेशा लाई,
प्रीत नहीं जिनके अन्तर में, व्यर्थ ही ये काया पाई।
✍️ आमोद कुमार अग्रवाल
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