''माँ तुम समझती काहे न ....इस मकान का कोई फ़ायदा नहीं ...हमारे साथ शहर चलो और वहीं रहो ।" अभिषेक ने अपनी माँ का हाथ अपने हाथों में लेकर समझाते हुए कहा ।
''नहीं बेटा मैं यह घर नहीं छोड सकती ,यह तुम्हारे बाबू जी की आखिरी निशानी है --मैं ठीक हूँ यहाँ --तुम आराम से शहर में रहो ।"
''लेकिन माँ ?"
''बस बेटा --मैं इस मुद्दे पर और बात करना नहीं चाहती " अभिषेक की माँ ने दो टूक जवाब दे दिया !
दिन गुजरते गये धीरे -धीरे अभिषेक की माँ प्यारी का स्वास्थ्य भी गिरने लगा। साल मैं एक -दो बार अभिषेक माँ से मिलने आ जाता था ।
एक बार प्यारी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गयी । मोहल्ले वालों ने अभिषेक को फ़ोन पर सूचित किया।अभिषेक आया और माँ को शहर ले जाने लगा ,माँ भी इस बार राजी हो गयी। कार में बैठते हुए उन्होंने अभिषेक का हाथ पकड़ा और धीरे से बोलीं 'बेटा वादा करो मेरे जीते -जी इस घर को नहीं बेचोगे ।
''हाँ माँ आप चिंता न करो --ऐसा ही होगा । अभिषेक ने हकलाते हुए कहा ,और माँ को यकीन हो गया। वह इत्मीनान से आँखैं बंद करके लेट गयीं ! और अभिषेक उनके अंगूठे पर लगी स्याही क़ो धोने में लग गया ।
✍️ राशि सिंह , मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश
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