धरती का श्रंगार छीनकर, हमने कितने पाप किये।
जंगल काटे, नदियां बाँधी, ताल तलैया पाट दिये।।
आज प्रदूषण के कारण अब, जीवन भी दुश्वार हुआ।
अपने ही जीवन पर हमने, नित्य कुठाराघात किये।।
हम धरती से भोजन, पानी, प्राणवायु तक लेते हैं।
स्वार्थ सिद्धि की खातिर इसको, घाव निरंतर देते हैं।।
काट काट कर जंगल हमने, इसकी हरियाली छीनी।
आओ अब कुछ वृक्ष लगाकर, इसको जीवन देते हैं।।
✍️ श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद ।
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