रविवार, 20 सितंबर 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ मीना नक़वी की ग़ज़ल ---- ये और बात , सुन के वो ख़मोशियों पे टाल दे। सवाल तो है मुन्जमिद जवाब के बग़ैर भी।

वो दर्स-ए-इश्क़ दे गया निसाब के बग़ैर भी। 

पढ़ेंगे उसको हम मगर, किताब के बग़ैर भी। 


ये और बात , सुन के वो ख़मोशियों पे टाल दे।

सवाल तो है मुन्जमिद जवाब के बग़ैर भी। 


हज़ार रंग फ़ूल जब हैं, जा बजा खिले हुये।

महक रहा है गुल्सिताँ, गुलाब के बग़ैर भी। 


वो दश्त दश्त आँख, वो भरी भरी सी इक नदी।

बरस न जाये आसमाँ, हुबाब के बग़ैर भी। 


न जाने कौन भूले बिसरे ,गीत है सुना रहा।

बजा रहा है धुन कोई, रबाब के बग़ैर भी। 


मिला न उनमें बचपना, मिली तो मुफ़लिसी मिली।

कटी है जिनकी ज़िन्दगी शबाब के बग़ैर भी। 


ये और बात रतजगों से ' मीना' रब्त हो गया।

गुज़र रही है शब हमारी, ख़्वाब के बग़ैर भी।


   ✍️ डॉ.मीना नक़वी



 

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