रविवार, 5 जुलाई 2020

वाट्सएप पर संचालित समूह "साहित्यिक मुरादाबाद" 5 जुलाई 2020 को छठे वर्ष में प्रवेश कर रहा है । समूह की पांचवी वर्षगांठ के अवसर पर समूह के सदस्यों ने इस प्रकार विचार व्यक्त किये ।

हमने वाट्सएप पर साहित्यिक मुरादाबाद समूह का गठन 5 जुलाई 2015 को किया था । इस समूह का उद्देश्य है कि मुरादाबाद मंडल की साहित्यिक- सांस्कृतिक परंपरा, इतिहास, विरासत और वर्तमान को उजागर करना। इस समूह के माध्यम से जहां मंडल के दिवंगत साहित्यकारों के साहित्य को प्रस्तुत किया जाता है वहीं वर्तमान साहित्यकारों और नवांकुरों को भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत करने और साहित्यिक विचार विमर्श करने का एक माध्यम उपलब्ध कराया जाता है।
    लगभग एक साल पश्चात हमने समूह के माध्यम से वाट्स एप कवि सम्मेलन एवं मुशायरे की अनूठी व अनोखी शुरुआत की । इस आयोजन में सदस्य अपनी रचना हस्तलिपि में प्रस्तुत करते हैं। वह अपनी रचना एक कागज पर लिखते हैं। उस कागज के कोने में अपना फोटो लगाते हैं। हस्ताक्षर करते हैं ,नाम व पूरा पता, मोबाइल नंबर लिखते हैं और उसका चित्र खींच कर समूह में साझा करते हैं। हमारी इस अनोखी पहल की सोशल मीडिया में ही नहीं बल्कि प्रिंट मीडिया में भी भरपूर सराहना हुई । यही नहीं हमारी इस पहल से विभिन्न समूहों में भी इसी तरह के आयोजनों की शुरुआत हो गई । इस आयोजन की सफलता से उत्साहित होकर हमने कुछ समय पश्चात माह के प्रत्येक दूसरे रविवार को वीडियो/ ऑडियो कवि सम्मेलन एवं मुशायरा शुरू किया। वर्तमान में हम माह के दूसरे रविवार को वीडियो कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का सफलतापूर्वक आयोजन कर रहे हैं।
    समूह के सदस्य विभिन्न साहित्यिक विधाओं में अपनी अभिव्यक्ति व प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकें इसके लिए हमने यह निर्णय लिया कि समूह में सोमवार को केवल पुस्तक परिचय /समीक्षा ( केवल मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों की कृतियों की) प्रस्तुत की जाएगी ।
मंगलवार को बाल साहित्य गोष्ठी का आयोजन होगा जिसमें सभी विधाओं में बाल रचनाएं प्रस्तुत की जाएंगी।
 बुधवार को लघु कथा/ कहानी गोष्ठी का आयोजन होगा।
 गुरुवार को संगीत (गायन, वादन व नृत्य), रंगमंच ,नाटक, एकांकी से संबंधित सामग्री ही साझा की जाएगी ।
शुक्रवार का दिन अतीत की स्मृतियों का रहेगा । इसमें मंडल की साहित्यिक- सांस्कृतिक विरासत, परंपरा व इतिहास को उजागर करने वाली सामग्री, संस्मरण, यादगार चित्र प्रस्तुत किए जाएंगे ।
शनिवार को स्वतंत्रता रहेगी । इस दिन सदस्य अपनी विभिन्न उपलब्धियां भी साझा कर सकेंगे।
  हमने समूह के माध्यम से यह प्रयास भी किया कि मुरादाबाद मंडल के सभी साहित्यकार एक पटल पर आएं । हमारा यह प्रयास काफी हद तक सफल भी रहा ।
     हमें यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि इस समूह ने मुरादाबाद के साहित्यिक पटल पर अनेक प्रतिभाओं को उजागर किया। वर्तमान में अनेक साहित्यकार ऐसे हैं जिन्होंने अपने साहित्यिक सफर की शुरुआत इस समूह से की।
     आप सभी के सहयोग का परिणाम है कि आज साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप के दायरे से निकलकर फेसबुक पेज, फेसबुक समूह, यूट्यूब चैनल, ब्लॉगर, शेयर चैट डॉट कॉम, wordpress.com समेत सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर संचालित हो रहा है ।
   इन पांच साल के दौरान हमने मुरादाबाद मंडल के साहित्य को पूरे देश ही नहीं विदेश में भी साहित्यिक मुरादाबाद के माध्यम से प्रचारित/प्रसारित करने का प्रयास किया है । आज साहित्यिक मुरादाबाद एक ब्रांड नेम बन चुका है । इन सबके मूल में वाट्स एप पर संचालित होने वाला यह समूह ही है । यहां साझा की जाने वाली रचनाएं ही हम विभिन्न माध्यमों से देश-विदेश में प्रचारित/प्रसारित करते हैं ।
  समूह की पांचवीं वर्षगांठ के अवसर पर समूह के सदस्यों ने विचार व्यक्त किये ।

प्रख्यात साहित्यकार यशभारती माहेश्वर तिवारी ने कहा कि "साहित्यिक मुरादाबाद" ने कई महत्वपूर्ण प्रतिभाओं को अभिव्यक्ति का एक पटल दिया जिनमें से कुछ ने कालान्तर में अपनी स्वतंत्र पहचान बनाई ।बहुतों को अपनी रचनात्मक सोच को निखारने का अवसर मिला  ।यह सिलसिला अनवरत जारी रहे ।

शिव अवतार रस्तोगी सरस ने कहा कि मनोज जी के साहित्यिक मुरादाबाद को देख कर कविवर बिहारी लाल का यह दोहा याद आ रहा है..
**तंत्री-नाद,कवित्त-रस,
सरस, राग, रति- रंग.
अन-बूढे, बूढ़े,. तिरे
जे, बूढ़े सब अंग.**
साहित्यिक- मुरादाबाद पटल ने डॉ मनोज की विकास- यात्रा को सफलीभूत किया है.. यदि यह पटल न होता तो यह अवकाश का समय उनके लिए अत्यंत कष्ट -कारक होता.इस पटल के कारण *टूटे नख रद केहरी * जैसे कलमकार भी अनजाने ही चले जाते.

वरिष्ठ साहित्यकार शचीन्द्र भटनागर का कहना था कि डा. मनोज जिस समर्पित पुरुषार्थ से पुरानी पुस्तकों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाओं, चित्रों को "साहित्यिक मुरादाबाद " में  प्रस्तुत करते हैं उससे मुझे वैसी ही सुखद अनुभूति होती है, जैसी स्व. सुरेन्द्र मोहन मिश्र के सानिध्य में होती थी. इन सबसे मेरा ज्ञानवर्धन भी होता है। इस समूह का अत्यंत महत्वपूर्ण अवदान मेरे लिए यह है कि दर्जनों ऐसी प्रतिभाओं से मैं परिचित हुआ, जिनसे मेरा परिचय बिना इस समूह से जुड़े संभव नहीं था.  इतना विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि उनमें से कुछ नवोदित प्रतिभाएं ऐसी भी हैं जो हमारी आयु तक हमसे अच्छा लिखा करेंगी, और इसका श्रेय इस समूह को मिलेगा,  क्योंकि उन्हें मंच इसी से मिला है.
साहित्यिक मुरादाबाद के उत्तरोत्तर लोकप्रिय होते समूह ने हमारे जैसे आयुवृद्ध साहित्यकारों को इस चिंता से मुक्त कर दिया है कि हमारे बाद हमारी अधूरी अथवा अप्रकाशित कृतियों का क्या होगा, हमें विश्वास है कि उन्हें साहित्यिक मुरादाबाद  धरोहर के रूप में सहेजकर रखेगा और यथासमय प्रस्तुत भी कर देगा. मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों को प्रोत्साहन, पुनर्जीवन देने तथा   पुनः प्रस्तुत करने के लिए मैं डा. मनोज रस्तोगी को हृदय से साधुवाद देता हूँ और आशा करता हूँ कि भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में भविष्य में जब भी मुरादाबाद मंडल के साहित्यकारों पर कोई शोध किया जाएगा, तो शोधकर्ता के लिए यह समूह मार्गदर्शक का काम करेगा.


वरिष्ठ साहित्यकार एवं फ़िल्म निर्माता निर्देशक अशोक विश्नोई ने कहा कि "साहित्यिक मुरादाबाद" का सफर खट्टे मीठे अनुभवों से गुजरता हुआ इस पड़ाव पर आ गया है जहाँ  सभी साहित्यकार / कवि एक दूसरे से जुड़ गए हैं और यह एक परिवार बन गया है।

आमोद कुमार  ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप ग्रुप अपनी असाधारण लोकप्रियता एवं अपने उद्देशय पूर्ति के कीर्तिमान स्थापित करता हुआ, पाँच वर्ष पूरे करके छठे वर्ष मे प्रवेश कर रहा है, इन वर्षों मे मुरादाबाद मंडल के अति अति विशिष्ट दिवंगत साहित्यकारों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को अमर बनाए रखने का जो अनूठा एवं श्रमसाध्य कार्य समूह के प्रशासक डा. मनोज रस्तोगी जी ने किया है, वह एतिहासिक है और हमेशा याद किया जाता रहेगा, साथ ही नए, पुराने सभी वर्तमान सम्मानित साहित्यकारों की रचनाओं एवं उनके परिचय से रूबरू कराने का जो कार्य निरन्तर प्रशासक महोदय के कुशल प्रबंधन मे जारी है, उसके लिए वह साधुवाद के पात्र हैं। जहाँ तक मेरा संबंध है, यूँ तो मै कालेज से सेवा निवृति के बाद दिल्ली आकर रहने लगा हुँ किन्तु साहित्यिक मुरादाबाद समूह के माध्यम से अतीत की भाँति अब भी मुरादाबाद के साहित्य जगत मे विचरण करता हूं ।

   
 डॉ इंदिरा रानी ने कहा कि जिस प्रकार भारत अनेकता में एकता के लिए प्रसिद्ध है उसी प्रकार  साहित्यिक मुरादाबाद समूह भी साहित्य की विविध विधाओं और सदस्यों के भिन्न-भिन्न मिजाज़ के लिए अनेकता में एकता का विशिष्ट उदहारण है. यह समूह रंग बिरंगे फूलों का गुलदस्ता है. पीतल नगरी के नाम से विख्यात मुरादाबाद अब साहित्यिक मुरादाबाद के नाम से प्रसिद्ध होगा. इस समूह से जुड़ कर मेरी साहित्यिक अभिरुचि तुष्ट होती है. समूह एक परिवार की तरह है यह नैतिक बल देता है।
     
  रामकिशोर वर्मा ने कहा कि मुरादाबाद मंडल (मुरादाबाद, रामपुर,सम्भल,अमरोहा और बिजनौर जनपद ) का ही नहीं अपितु पूरे भारत का साहित्यिमुरादाबाद अनुपम समूह है , जिसमें हिन्दी की विभिन्न विधाओं में रचनाकार/लेखक अपने मनोभावों को शब्दों में समाज और देश के उत्थान के लिए प्रस्तुत करता है । नवोदित रचनाकारों को यहां पर प्रोत्साहित करके वरिष्ठ रचनाकारों का मार्गदर्शन भी मिलता रहता है जिससे उनमें भी हिन्दी के प्रति समर्पित भाव जाग्रत होता है । मैं भी इस समूह से प्रारंभ से जुड़ा हुआ हूंँ । इस समूह के कारण ही मुझे मुरादाबाद मंडल के अनेक विद्वान साहित्यकारों का सानिध्य मिला । मैं वर्षों पहले कहानी लिखा करता था मगर बीच में पद्य लेखन में रूचि बढ़ने के कारण कहानी लेखन को विराम लग गया था। लेकिन इस समूह में एक दिन लघुकथा/कहानी लिखने का दिन नियत होने के कारण मेरा रूझान लघुकथा/कहानी लेखन में बढ़ा और अब मेरा प्रयास जारी हैं । ऐसा समूह जिसमें गीत और ग़ज़ल दोनों का संगम है, यह हमारी भारतीय संस्कृति को भली-भांति दर्शाता है । विभिन्नता में एकता का संदेश देता है ।
 
      योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' ने कहा कि  5 जुलाई 2015 को डॉ. मनोज रस्तोगी ने  'साहित्यिक मुरादाबाद' वाट्सएप ग्रुप की आधारशिला रखी और मुरादाबाद के साहित्य व साहित्यकारों को डिजिटली प्रस्तुत करने, प्रोत्साहित करने और प्रतिष्ठित करने का काम पूरी लगन, समर्पण और गंभीरता से शुरू किया. इस ग्रुप की यात्रा आज भी अनवरत है. 5 वर्ष की इस महत्वपूर्ण यात्रा में ग्रुप ने न केवल अपनी एक अलग पहचान बनायी बरन अनेक नवोदित रचनाकारों को एक प्रोत्साहन भरा मंच भी प्रदान किया. मैंने एक कार्यक्रम में संचालन करते समय कहा भी था कि "डॉ. मनोज रस्तोगी के 'साहित्यिक मुरादाबाद' ग्रुप ने कई शिक्षिकाओं को कवयित्री बनाने का काम किया है". यह सत्य भी है कि यदि यह ग्रुप रूपी मंच अपनी सहृदयता पूर्ण ज़िम्मेदारी न निभाता तो संभवतः अनेक नवोदित रचनाकारों की प्रतिभा और निखर कर सामने न आई होती. इस ग्रुप के माध्यम से सामने आए अनेक रचनाकार अपनी रचनाधर्मिता से मुरादाबाद के उजले साहित्यिक भविष्य की प्रबल संभावना बन रहे हैं.  अपनी पांच वर्ष की यात्रा में इस ग्रुप ने एक और महत्वपूर्ण कार्य किया. वह यह कि मुरादाबाद की समृद्ध साहित्यिक विरासत को समय समय पर प्रस्तुत किया. सप्ताह के सभी दिनों को विधाओं में बांटकर ग्रुप के सदस्य रचनाकारों को उस विधा विशेष में लिखने के लिए ज़िद की हद तक जाकर प्रेरित करने का ही परिणाम है कि आज मुरादाबाद में बाल रचनाकार और लघुकथाकार पर्याप्त मात्रा में है. सोने पर सुहागा यह और कि डॉ. रस्तोगी जी अपनी सेवानिवृत्ति उपरांत पूर्णकालिक  ग्रुप एडमिन के साथ साथ ब्लॉगर भी बन चुके हैं और ग्रुप पर प्रस्तुत सामग्री के साथ ही अन्यत्र उपलब्ध मुरादाबाद से संबंधित साहित्यिक सामग्री को ब्लॉग पर पोस्ट कर उसे वैश्विक रूप से प्रस्तुत करने और प्रचारित करने का बेहद महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं. शायद इसीलिए साहित्यिक मुरादाबाद की चर्चा आज केवल मुरादाबाद ही नहीं विश्व स्तर पर और प्रिंट मीडिया में भी प्रशंसनीय कार्य के रूप में हो रही है.
   
राजीव प्रखर ने साहित्यिक मुरादाबाद के साथ अपनी यात्रा के संदर्भ में कहा कि मैं भी इस समूह से प्रारंभ से ही जुड़ा रहा हूँ। एक रचनाकार होने की दृष्टि से, पांच वर्ष पुरानी इस साहित्यिक यात्रा में मुझे बहुत कुछ जानने, सीखने एवं समझने का अवसर इस समूह पर प्राप्त हुआ। इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस ग्रुप ने मुझ जैसे अनेक प्रशिक्षु रचनाकारों को एक सुदृढ़ मंच दिया। इसी से होते हुए हम अन्य मंचों तक पहुँचे तथा हमें अपनी क्षमताओं को पहचानने में पर्याप्त सहायता मिली। मेरे व्यक्तिगत विचार से, यह 'साहित्यिक मुरादाबाद' की सक्रियता एवं लोकप्रियता का ही परिणाम है कि इस समूह से प्रेरणा लेकर कई अन्य प्रतिष्ठित साहित्यिक समूह भी अस्तित्व में आए हैं। ये सभी समूह भी  सराहनीय कार्य कर रहे हैं जिसके मूल में साहित्यिक मुरादाबाद की से मिली प्रेरणा ही है।

डॉ श्वेता पूठिया ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद वह मंच है जिसमे विद्वान प्रख्यात साहित्यकारों के साथ नवागत साहित्यकार भी जुडे है।इसमे मुझे भी भाई मनोज जी के कारण जुडने का अवसर प्राप्त हुआ।विगत तीन माह का ही अल्प समय हुआ है ।बहुत लम्बी यात्रा नहीं है मेरी मगर फिर भी ऐसा लगता है कि न जाने कितना समय हो गया। सच कहूँ तो अभी तक मेरा लेखन स्वान्तः सुखाय था। जब भाव उमडे तो शब्दों मे ढाल दिया।मगर अब जब प्रति दिन की गतिविधि निर्धारित है तो स्वतः ही हाथ कलम की ओर बढ़ जाते है। इस संस्था से जुडने के बाद अब लेखन सोद्देश्य हो गया हैं।साथ सुधिजन का साहित्य पढने का सुअवसर प्राप्त होता हैं।लेखन पर विद्वतापूर्ण टिप्पणियाँ आत्मावलोकन भी करवाती हैं।

हरि प्रकाश शर्मा ने कहा कि डॉ मनोज जी का यह सराहनीय प्रयास प्रशंसनीय है और वो इसके लिए बधाई के पात्र है,इतने प्रबुद्ध लोगो को एक मंच पर लाना इतना आसान काम नही होता,मुझे आशा ही नही विश्वास भी है कि साहित्य की सफल यात्रा का यह रथ, ऐसे ही सफलता की मंजिलों को इस्पर्ष करते हुए बिना किसी अवरोध के अनवरत ऐसे ही चलता रहेगा ।

ओंकार सिंह विवेक ने कहा कि मनोज जी बहुत ही दुष्कर और दुरूह कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दे रहे हैं।मुझे फ़ख्र है कि मैं इस समूह की स्थापना के समय से ही इससे जुड़ा हुआ हूँ।

नवल किशोर शर्मा नवल का कहना था कि साहित्यिक मुरादाबाद समूह हिंदी साहित्य के क्षेत्र में वट वृक्ष की तरह सभी साहित्कारों को अपनी  छाया प्रदान कर रहा है व उन्हें उचित मार्गदर्शन कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है। साहित्यिक मुरादाबाद समूह हिंदी की विविध विधाओं को सहेजने व सँवारने का कार्य कर रहा है। मैं मुरादाबाद साहित्यिक समूह का सदस्य होने पर स्वयं को गौरवान्वित व भाग्यशाली महसूस करता हूँ।

 इला सागर रस्तोगी ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद के प्रति मेरा आभार। कैटरपिलर से बटरफ्लाई तक के सफर सा। बहुत कुछ सीखा और सीख रही हूं। अवश्य ही यह कैटरपिलर सभी विद्वानजनों एवं गुणीजनों से कुछ न कुछ सीखकर एक दिन बटरफ्लाई सी रंग बिरंगे पंख फैला उड़ सकेगी।

महाराजा हरिश्चंद स्नातकोत्तर महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ मीना कौल ने कहा कि  साहित्यिक मुरादाबाद समूह ने  साहित्य  के क्षेत्र में शहर मुरादाबाद का नाम रोशन कर दिया।

प्रीति चौधरी का कहना था कि तीन महीने पहले ही इस समूह के साथ जुड़ना हुआ। एक सम्मानित साहित्यिक समूह के साथ जुड़ने का ये मेरा पहला मौक़ा था।मैं इस प्रकार के अन्य किसी भी ग्रूप के साथ नही जुड़ी थी।मात्र इसके साथ जुड़ने से ही मैं बहुत ख़ुश थी पर मन में एक डर भी था कि इतने विद्वान साहित्यकारों के बीच अपनी रचना कैसे प्रस्तुत कर पाऊँगी।बहुत हिम्मत करके मैं पहले बहुत सोचविचार कर रचना पोस्ट करती थी ।कई बार तो पोस्ट करके डिलीट कर देती थी।मेरी अधपकी रचनाओं को आप जैसे विद्वान  लोगों द्वारा पढ़ा गया,आप सबका मार्गदर्शन मिला ,प्यार मिला ,स्नेह मिला ।धीरे धीरे डर निकलता चला गया ।आप सबके बीच ऐसा लगता है जैसे मैं एक परिवार का हिस्सा हूँ ।मेरी रचना पर सबकी टिप्पणी मिलने से मुझे निरंतर लिखते रहने की प्रेरणा मिलती ।आप सबसे मुलाक़ात नही हुई है , फिर भी सब मुझे अपने लगते हो।मेरा नया परिवार ,जिसने मेरे ही व्यक्तित्व का नया रूप मुझे दिखाया।अब जो भी मैं लिखती हूँ उसका पूर्ण श्रेय इस समूह (परिवार)को ही जाता है ।मैंने कभी नही सोचा था कि मैं कहानी या लघु कथा भी लिख पाऊँगी परंतु अब न जाने विचारों की ऐसी बाढ़ सी आ गयी है जो शब्दों में बँधकर नदी की तरह बहना चाहती है।बाल कविता लिखना भी मैंने इस परिवार से सीखा।
                                     
 मरगूब हुसैन ने अपनी  काव्यात्मक प्रतिक्रिया कुछ इस तरह व्यक्त की--
इस ग्रुप में हम, जब  से आएं हैं।
यहां बहुत कुछ,हम सीख पाएं हैं।
मिल रहा है, आशीर्वाद सभी का।
तभी से हम, मंद मंद  मुस्काएं हैं।
         
डॉ ममता सिंह ने कहा कि मेरा साहित्यिक जन्म साहित्यिक मुरादाबाद में ही हुआ। मैंने अपनी पहली छन्द मुक्त रचना पटल पर साझा की थी। समूह के सभी सदस्यों से हमेशा ही बहुत सीखने को मिला और आशा करती हूँ कि आगे भी इसी प्रकार सभी का स्नेह और आशीष मिलता रहेगा।  इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस समूह ने मुझ जैसे अनेक रचनाकारों को एक सुदृढ़ मंच प्रदान किया है और आगे भी करता रहेगा। आज देश -विदेश में समूह की गतिविधियां देखी और सुनी जाती हैं।

अशोक विद्रोही ने कहा कि साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने और विकसित करने में जो योगदान साहित्यिक मुरादाबाद का रहा इसे किन शब्दों में व्यक्त करूं समझ नहीं पाता हूं। साहित्यिक मुरादाबाद की गतिविधियां प्रतिदिन क्लास जैसी लगती है। लिखना ,पढ़ना ,सीखना वरिष्ठ साहित्यकारों का मार्गदर्शन सभी कुछ तो है फिर लघु कथा, कहानी, बाल कविता ,अन्य कविता ,अतीत के झरोखे से, संगीत की फुहारे नवांकुर साहित्यकार एवं वरिष्ठ साहित्यकारों का नित्य प्रति समागम वह संगम
सब कुछ अनूठा, अद्भुत, अकल्पनीय साथ ही साथ  देश विदेशों में इसका प्रसारण टिप्पणियां, विभिन्न चैनलों पर चित्र सहित कहानी कविता के साथ शेयर करना, सालों पुरानी रचनाएं धरोहर के रूप में सुरक्षित मिलती हैं।
 
मोनिका शर्मा मासूम ने कहा कि आज से लगभग 5 वर्ष पूर्व मैं पहली बार  पारिवारिक समूह के अलावा किसी अन्य ग्रुप से जुड़ी थी। पटल की दैनिक गतिविधियों ने मानो स्कूल, कॉलेज के पुराने दिन लौटा दिए।  प्रतिदिन कुछ ना कुछ लिख कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की धुन सवार हो गई। गजलों का ताना-बाना बचपन से ही मन को लुभाता था पटल पर उपस्थित वरिष्ठ गजल कारों की गजलों के सांचे में अपने भावों को डालकर ग़ज़ल कहने का प्रयास करने लगी। मेरी मेहनत और लगन देखकर उर्दू अदब के वरिष्ठ साहित्यकार जनाब अनवर कै़फ़ी साहब ने मेरी ग़ज़लों पर इस्लाह करना स्वीकार कर मुझे ग़ज़लों की बारीकियों से अवगत कराया। इस पटल के सभी सम्मानित सदस्यों ने मुझे जो प्यार और सम्मान दिया उसे शब्दों में व्यक्त करने मैं असमर्थ हूं।  आज एक सशक्त ग़ज़ल कार के रूप में यदि मेरी पहचान है तो उसका आधार साहित्यिक मुरादाबाद का यह पटल ही है। जिसने सही अर्थों में मुझे मेरी पहचान  दी।

कवि और लेखक जहाँ करते हैं संवाद।
आदर, प्रेम का मंच है,तनिक नहीं उन्माद।
धीरज से होते जहाँ साहित्यिक परिवाद।
लेखन करता है जहाँ नित्य नया आह्लाद।
संचित करते बूँद बूँद को जहाँ मनोज जी रोज।
साहित्य का यह पटल रहेगा ज़िंदाबाद।

उमाकांत गुप्ता ने कहा कि साहित्यक मुरादाबाद के माध्यम से मेरा मुरादाबाद के साहित्यकारो से परिचय हो गया और इस लोक डाउन में एकांतवास के समय में अकेलापन खला नहीं।

 डॉ पुनीत कुमार ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद,एक बड़ा समूह,और वो भी बुद्धिजीवियों का ऐसे समूह को इतने लंबे समय तक सफलतापूर्वक
चलाना,एक दुरूह कार्य है। समूह के माध्यम से मुरादाबाद की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रखने के साथ साथ रचनाकारों की नई पीढ़ी को मंच,प्रोत्साहन और मार्गदर्शन देने हेतु समूचा मुरादाबाद हमेशा डॉ मनोज रस्तोगी का
ऋणी रहेगा। व्यक्तिगत रूप से देखा जाए तो में अभी तीन माह पूर्व ही इस समूह से जुड़ा हूं।इस छोटे से अंतराल में,साहित्यिक दृष्टि से मै जितना अधिक सक्रिय हो गया हूं,उतना अपने इकसठ वर्षीय जीवन में कभी नहीं रहा। इसका पूरा श्रेय साहित्यिक मुरादाबाद समूह को जाता है।लघुकथा लिखना,मैंने इस समूह से ही सीखा है। इसके लिए मै आदरणीय अशोक विश्नोई जी का हृदय से आभारी हूं।आदरणीय व्योम जी और प्रखर जी की प्रेरणा से दोहे लिखना भी सीख रहा हूं। साहित्यिक मुरादाबाद समूह ने मेरी
निर्जीव हो चुकी लेखनी में पुनः जान डाल दी।
       

श्री कृष्ण शुक्ल ने  कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद,
मुरादाबाद मंडल के समस्त साहित्यकारों के.लिये अनूठा मंंच है। वर्ष 2016 में जब साहित्यिक मुरादाबाद का पहला व्हाट्सएप कवि सम्मेलन हुआ और उसकी विस्तृत रिपोर्ट अखबारों में आयी तथा साहित्यिक मुरादाबाद के पटल पर भी रचनाएं आयीं, तब मुझे मनोज जी से संपर्क करने की तीव्र इच्छा हुई, किंतु मेरे पास उनका नंबर नहीं था। मैंने फेसबुक मैसेज बॉक्स में ही उन्हें मैसेज भेजा कि मैं भी थोड़ा बहुत लिखता हूँ और साहित्यिक मुरादाबाद से जुड़ना चाहता हूँ। मैंने अपना फोन नंबर भी उसमें लिख दिया था। उसी दिन मनोज जी का फोन मेरे पास आया। इस तरह हम साहित्यिक मुरादाबाद से जुड़े।
प्रारंभ में तो अपनी पुरानी रचनाएं ही पटल पर शेयर करते रहे, धीरे धीरे पटल पर अन्य साहित्यकारों की रचनाएं पढ़ते पढ़ते पुनः लेखनी चलने लगी और कुछ न कुछ नया लिखना भी शुरु हुआ। अगस्त 2016 से मैं इस पटल से जुड़ा हूँ, तब से एक भी रविवार ऐसा नहीं गया है जब मैंने अपनी रचना शेयर न की हो। एक आध अवसर को छोड़ दिया जाये तो प्रत्येक रविवार नयी रचना ही प्रस्तुत की है।
धीरे धीरे काव्य के अलावा आलेख, समीक्षा, कहानी, संस्मरण आदि सभी विधाओं में लिखना शुरू हुआ। इसका श्रेय भी साहित्यिक मुरादाबाद को और मनोज जी को ही जाता है। न ये अलग अलग दिन अलग अलग विधा के लिये नियत करते, न हम अन्य विधाओं में लिखते। इस प्रकार साहित्यिक मुरादाबाद नाम का एक ऐसा आधार हमें मिल गया, जिसने हमारी लिखने की इच्छा को पुनर्जागृत किया और विभिन्न विधाओं में लिखने को प्रेरित किया। धीरे धीरे शहर की अन्य साहित्यिक विभूतियों से भी पटल के माध्यम से परिचय हुआ और फिर गोष्ठियों में आना जाना भी शुरु हो गया और लोग हमारी गणना भी साहित्यकारों में करने लगे। धीरे धीरे साहित्यिक मुरादाबाद के मंच से कई साहित्यकारों से परिचय होता गया। आज की तिथि में हमारी साहित्यिक क्षेत्र में जो भी पहचान है, उसके मूल में साहित्यिक मुरादाबाद ही है। न हम साहित्यिक मुरादाबाद के पटल से जुड़ते, न लिखने की इच्छा पुनर्जागृत होती। इस पटल से जुड़ने के बाद ही पुनः लिखना शुरु हुआ, पुनः एक आत्मविश्वास जगा और धीरे धीरे पटल पर वरिष्ठ और अनुभवी साहित्यकारों का आशीर्वाद और सहयोग मिलने लगा और हमें साहित्यकार बना दिया गया और हम ही नहीं, तमाम साहित्यकारों की सृजनात्मकता और पहचान का आधार यह पटल ही है।

हेमा तिवारी भट्ट ने कहा कि भाई राजीव प्रखर जी के परामर्श पर बड़े भाई श्री मनोज रस्तोगी जी से फोन पर संपर्क हुआ और आपकी महती कृपा से 10 अगस्त 2016 को साहित्यिक मुरादाबाद वाट्स एप समूह की मैं विधिवत सदस्य बनी। यह समूह मानो मेरे भीतर के रचनाकार को बाहर लाने के लिए
ही बना था।इस पटल पर आदरणीय मनोज रस्तोगी जी द्वारा समय-समय पर मुरादाबाद के स्वर्णिम साहित्य के इतिहास की स्वर्णिम उपलब्धियों को सांझा किया जाता रहा है और मुरादाबाद के देदीप्यमान नक्षत्रों के समान दिवंगत व वरिष्ठ साहित्यकारों से उनकी रचनाओं व पुस्तकों के माध्यम से नव प्रशिक्षुओं को परिचित करवाया जाता रहा है।साथ ही समय-समय पर विभिन्न विधाओं आदि पर भी चर्चा होती रही है।इस सब का फायदा मुझ नवागत को यह हुआ कि मेरे भीतर सोया हुआ रचनाकार धीरे-धीरे पटल के माध्यम से अंगड़ाई लेने लगा और कच्चा पक्का जो भी भाव साझा की गई सामग्रियों के क्रम में मेरे मन में आया भावावेश मैं वह पटल पर सीधे टंकित कर सांझा करने लगी।इसका परिणाम यह हुआ कि विद्वत समाज द्वारा मेरे भावों और शब्द चयन को प्रशंसनीय पाया गया,हालांकि शिल्प में गठन व कसावट का कार्य अब भी निरंतर पटल के माध्यम से गतिमान है,पर सभी का भरपूर स्नेह इस पटल पर मुझे मिला।इस समृद्ध मंच के अमूल्य सानिध्य को पाकर ही मैं आज यदि मुरादाबाद में कहीं रचनाकार के रूप में जानी या पहचानी जाती हूंँ तो इसका पूरा श्रेय साहित्यिक मुरादाबाद पटल व इसके वरिष्ठ साहित्यकारों के आशीष को ही जाता है। साहित्यिक मुरादाबाद पटल ने ढेर सारे साहित्यिक अनुभवों के साथ साथ  अभिन्न मित्र,विशुद्ध प्रशंसक,सच्चे हितैषी,अनुभवी मार्गदर्शक और स्नेह के सिन्धु वरिष्ठ रचनाकारों से मुझे मिलाया है जिस का ऋण मैं कभी भी चुका नहीं पाऊंगी।

विभांशु दुबे विदीप्त ने कहा कि मुझे साहित्यिक मुरादाबाद से जुड़े हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ, लेकिन इस पटल के माध्यम से हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं के विषय में ज्ञान की अच्छी-खासी जानकारी प्राप्त हुई l  इस मंच के माध्यम से मुझे लेखन के कई पाठ सीखने को मिले l शब्दों का चुनाव, कहानी की विषय वस्तु, कहानी का प्रारूप कैसा हो, ये सब यहां पर उपस्थित विद्वानों की रचनाओं से ही सीखने को मिला l अभी तो मैंने बस पालने से बाहर चलना ही सीखा है और इस मंच ने उंगली थाम आगे बढ़ना सिखाया है l मुझे आशा है कि एक दिन साहित्य की दुनिया में अपने पैरों पर भी अवश्य ही खड़ा होऊँगा और उसमें इस मंच की और यहाँ पर उपस्थित सभी विद्वानों का योगदान अतुलनीय रहेगा l साहित्यिक मुरादाबाद वास्तव में साहित्य में उभरते नए साहित्यकारों को एक नयी दिशा प्रदान कर रहा है और उम्मीद है आगे भी करता ही रहेगा

कमाल जैदी वफ़ा ने कहा कि मैंने साहित्य के क्षेत्र में सन 1979 से बाल साहित्य से शुरुआत की थी मगर यह सिलसिला लम्बा नही चल पाया । दैनिक जागरण से जुड़ा तो  मनोज जी का भी सानिध्य मिला इसी नाते उन्होंने मुझे भी साहित्यिक मुरादाबाद समूह से जोड़ा पुराने शौक़ ने फिर से जोश मारा और पटल पर रचनाएं साझा करनी शुरू कर दी ।समूह के सदस्यों व मनोज जी ने हौसला अफ़जाई की जिससे सिलसिला जारी है । साहित्यिक मुरादाबाद में हिंदी-उर्दू के साहित्यकारों को जोड़कर आदर0 डॉ0 मनोज रस्तोगी जी ने साहित्य की बेलौस सेवा की है। साहित्य के क्षेत्र में मुरादाबाद मंडल का नाम देश दुनिया मे रोशन किया है ।

शिशुपाल सिंह मधुकर ने कहा कि   इस पटल के माध्यम से ही मुरादाबाद का साहित्यिक परिवार बहुत बड़ा हो गया है।इस पटल ने मुरादाबाद मंडल के तमाम साहित्यिक प्रतिभाओं को मंच प्रदान करके मुरादाबाद साहित्य का  भी मान बढ़ाया है।नई सोच और सोच का बड़ा दायरा लिए कई नवोदित रचनाकारों ने मुरादाबाद साहित्य को और समृद्ध किया है।कवि सम्मेलनों में कम संख्या में रचनाकारों को अवसर मिलने या व्यक्तिगत रूप से प्रयास करने से रचनाकार की पहचान का दायरा बहुत सीमित रहता था।अब साहित्यिक मुरादाबाद पटल के माध्यम से रचनाकारों की रचनाएं पहुंचने का दायरा बहुत बढ़ गया है।

कंचन लता पांडेय ने कहा कि आज अगर मैं ख़ुद को सार्वजनिक मंच पर देखती हूँ, तो इसका पूरा श्रेय साहित्यिक मुरादाबाद समूह को ही जाता है और मैं इसका ज़िक्र करना भी नहीं भूलती । जहाँ एक ओर इस समूह नें मेरी रचनाओं में ग़लतियों के बावजूद भी अपनाया, सराहा प्रोत्साहन दिया तो वहीं दूसरी ओर सुधारने के लिए मार्गदर्शकों गुरुजनों की पहचान कराई, जो मेरी रचनाओं को निरन्तर सुधारने में मेरे मददगार साबित हो रहे हैं और मेरे लिए ऐसे समूह में जहाँ से मैं और सीखने में तथा अपनी लिखी रचनाओं को अलग अलग माध्यमों तक ले जाने में सफल हो पा रही हूँ । जो इस समूह में जुड़ने के बाद ही सम्भव हुआ ।
 
प्रवीण राही ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद का यह पटल अब सिर्फ  भाई साहब डॉक्टर मनोज रस्तोगी जी का नहीं रहा है।यह अब हम सभी का परिवार बन गया है। इस पटल ने जाने कितनी कहानियां इन 5 वर्षों में खुद में समाहित कर रखी हैं और जाने कितने अनगिनत और शेष  है।काफी उतार-चढ़ाव के बावजूद इस परिवार को संगठित रखने के लिए आप सभी को हृदय तल से शुक्रिया... इस परिवार को हम सभी को मिलकर पीढ़ी दर पीढ़ी आगे लेकर जाना है/जाना चाहिए,कारण स्पष्ट है..जितना हमने यह से  सीखा है उस ज्ञान की धारा को हम ब्याज सहित भी वापिस नहीं कर सकते। इस पटल की यात्रा पर उपन्यास लिखा जा सकता है ,मै तो केवल पिछले तीन महीनों से ही पटल पर सक्रिय हू,पर अपने अनुभव को थोड़े में समेटते हुए इतना ही कहूंगा कि एक किताब पढ़ने से अच्छा यहांं  100 अलग अलग सोच को/ विचारों को पढ़ना व सुनना ज्यादा उचित है।

वीरेंद्र सिंह बृजवासी ने कहा कि भाई मनोज रस्तोगी जी साहित्यिक  मुरादाबाद को आपके कुशल नेतृत्व और कुशल संचालन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए पांच वर्ष पूर्ण करने के लिए हार्दिक बधाई।पहले तो हर रविवार को हस्तलिखित, स्वरचित ,फोटोयुक्त रचना भेजने का ही प्रावधान रखा गया।परंतु निरंतर प्रगति के साथ साथ सप्ताह के प्रत्येक दिन को नई-नई साहित्यिक विधाओं से जोड़कर इस कार्यक्रम को अनेक  ऊंचाइयां प्रदान की गईं। मैं भी अपनी क्षमता के अनुसार आपके साथ चलने का प्रयास करता रहता हूँ।अपने गीत और बाल रचनाओं के माद्यम से सभी प्रबुद्ध रचनाकारों तक पहुंचकर उनका आशीर्वाद पाने को भी लालायित रहता हूँ।

डॉ अर्चना गुप्ता ने कहा कि  इस साहित्यिक मंच की, बड़ी खास ये बात/ जुड़े मुरादाबाद के , इससे हैं जज्बात । साहित्यिक मुरादाबाद मंच से जुड़े काफी वक्त हो गया। इस मंच के माध्यम से रोज ही रचनाओं के माध्यम से सबसे मुलाकात हो जाती है। सबको जानने का अवसर भी मिलता है। आदरणीय मनोज जी की मेहनत को मैं नमन करती हूं। पूरे मनोयोग से वो मंच को चलाते हैं ।और आई हुई सभी रचनाओं को संचित और सुरक्षित भी करते हैं। अतीत से भी परिचय कराते हैं। आज ये ग्रुप मुरादाबाद की शान बन चुका है।

मनोरमा शर्मा ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद के इस प्रबुद्ध मंच पर मेरी यात्रा अधिक पुरानी नही है ,दो वर्ष पहले ही मैं इस पटल पर  अपनी समधन  माननीया सीमा अग्रवाल के सौजन्य से आयी । उन्होंने ही मुझे  मुरादाबाद के असली स्वरूप से परिचय करवाया । मैं साहित्यिक पटल के अमूल्य रत्नों को देखकर  ,पढ़कर अभिभूत हूँ ,आश्चर्यचकित होती हूँ  इतनी योग्य प्रतिभाओं को  देखकर  । एक अच्छा कवि ,अच्छा कथाकार है ,उपन्यासकार है  गायक ,गायिका ,गज़लकार है ,एक से एक बढ़कर बालकविताएँ  ,उत्तम श्रेणी की  समीक्षाएँ  ,इस मंच का इतना वैविध्य  ही इसे विशेष   बनाता है   इस पटल के श्रेष्ठ सानिध्य से  मैं कृतज्ञ हूँ और आनन्दित भी । निश्चित रूप से इसका गौरव  , साहित्यिक विस्तार  , हम जैसे नवांकुरों को  अपनी छत्रछाया से पल्लवित करता रहेगा।

रश्मि प्रभाकर ने कहा कि मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ जो मुझे इतने महान सुधी कविजनों का सान्निध्य इस समूह के माध्यम से प्राप्त हुआ। बहुत बहुत धन्यवाद एवं 5 वर्ष पूरे होने पर समूह संचालक आदरणीय मनोज रस्तोगी जी को हार्दिक बधाई ।

डॉअजय  अनुपम ने कहा कि  साहित्यिक मुरादाबाद की पांच कठिन वर्षों की सफल यात्रा का श्रेय डॉ मनोज रस्तोगी की सूझबूझ और पटल के सभी सम्मानित सदस्यों की सहयोग भावना को जाता है। उनके लिए बधाई भी इस सहयोग भावना के लिए बनती है। साहित्यिक क्षेत्र का यह प्रयास सराहनीय होने के साथ मुरादाबाद के भविष्य के लिए अनन्त संभावनाएं समेटे हुए है। मुझे विश्वास है कि अभी और नये कार्यक्रम पटल द्वारा संचालित किए जाएंगे।

मंगलेशलता यादव ने कहा कि मुझे लिखने का शौक था जो कहींं परिस्थितियों की भीड़ में खो गया था जब थोड़ा समय निकाल कर उसकी छंटाई की और फेस बुक पर किन्हीं साहित्यिक पोस्ट को लाईक और कमेंट करना शुरू किया जिसे हमारे आदरणीय एडमिन महोदय ने देखा शायद समझ लिया होगा कि साहित्य मे रुचि है इसके अलावा मेरी सांस्कृतिक अभिरुचि को दृष्टि गत रखते हुए इन्होंने मुझे 8 अगस्त 2016 मे इस साहित्यिक गतिविधियों से भरे बहुआयामी ग्रुप से जोडा  तो जब मैने इस ग्रुप मेंं इतने बड़े बड़े साहित्यिक महा ज्ञानियों को देखा और पढा तो मेरी तो हवा खराब हो गई एकबार सोचा अपना मजाक बनवाने से बेहतर है लेफ्ट हो जाऊंं परन्तु इतने महान ज्ञानियों का सानिध्य पाने का लोभ और उनकी विभिन्न रचनाओं को पढ़ने के  लालच  ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया। बस तभी से आप सभी को पढ रही हूँ और सीखने का प्रयास कर रही हूँ कुछ टूटी फूटी रचनाओं को लिखा और थोड़ी सी कहानियों की प्रस्तुति देकर बस ग्रुप मे जगह बनाए हूँ । अब कुछ कविताओं की रचनाओं को लिखा भी तो साझा करने से झिझकती  हूँ कि हंसी का पात्र न बन जाऊ परन्तु मेरी यात्रा पडावों के साथ जारी रहेगी

मीनाक्षी ठाकुर ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद मेरा प्रथम साहित्यिक मंच है ,जहाँ से मेरा विधिपूर्वक लेखन शुरु हुआ।इससे पूर्व कालेज डायरी तक ही मेरा लेखन सीमित था। इस मंच तक पहुँचने का मार्ग मुझे बहन हेमा तिवारी ने ही दिखाया , उन्होंने ही मुझे डा. मनोज रस्तौगी  जी के समूह के बारे में बताया था। तत्पश्चात मैं फेसबुक के माध्यम से इस समूह में जुड़ी ।इस पटल से जुड़कर मुझे नित नवीन विधाएँ सीखने को मिलती रही हैं। सभी सम्मानित सुधिजनों का स्नेहाशीष,समर्थन व मार्ग दर्शन  मुझे सदैव ही  मिलता रहा है।इसके लिये मैं आप सभी  सुधिजनों की व साहित्यिक मुरादाबाद (,मेरी प्रथम साहि. पाठशाला) की बहुत आभारी हूँ। डा. मनोज रस्तौगी जी को साधुवाद कि वह निःस्वार्थ साहित्यसेवा में निरंतर लगे हुए हैं तथा पीतल नगरी की साहित्यिक  चमक को निखारने ,सँवारने व सहेजने का कठिन कार्य कर रहे हैं।अतीत की धरोहर को ,वर्तमान के शोकेस में सजाकर, सुनहरे भविष्य के लिये प्रदर्शित करने का सराहनीय कार्य करने हेतु बधाई डा. मनोज रस्तौगी जी ।

सीमा रानी ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद की वजह से ही मुझ जैसे नौसिखियाें काे अपने विचार साझा करने मंच मिला |मेरी अल्पबुद्धि मानती है कि प्रतिभा हर व्यक्ति में हाेती है पर उसे प्रस्तुत करने का मंच न मिल पाने के कारण बहुत सी प्रतिभाएं छिप जातीं हैं परन्तु उस समूह ने बहुत सी प्रतिभाओं को निखरने का मौका दिया और समय समय पर भरपूर हौसलाअफजाई भी की, इस सब के लिए आपको नमन व वंदन |इस समूह के विद्वतजनों से प्रतिदिन कुछ न कुछ सीखने के लिए मिलता है जो मुझ जैसे नवंकुराें के लिए बहुत महत्व रखता है |इस पटल के समस्त गुणींजनाे के साानिध्य से मै बहुत अभिभूत व कृतज्ञ हूं |

डॉ प्रीति हुंकार ने कहा कि जो स्नेह मुझे व मेरी कविता को इस प्यारे से परिवार में मिला ,वह कभी मुझे अपने परिवार से नही मिला ।अगस्त 2019 से मैं अपने इस स्नेह सिक्त परिवार के संपर्क में आई और इस परिवार में किसी ने भाई की तरह तो किसी ने पिता के समान ,किसी सखी बनकर ,किसी बड़ी बहन बनकर पग पग पर मेरा मार्गदर्शन किया।
जीवन के अनुभव से ,साहित्यिक सृजनात्मक पक्ष में जिनकी सानी नही है ,ऐसे मेरे गुरुजनों का सतत आशीष मेरी तुच्छ सी लेखन क्षमता को अनवरत संस्कृत करके मुझे लिखने के लिये प्रेरित करता रहा है ।अगर आप सब मेरी प्रेरणा नही बनते ,मैं इस समूह से न जुड़ती तो जितना मैने पिछले पाँच वर्षों में नही लिखा उतना केवल 10 माह में लिखा ,यह सब साहित्यिक मुरादाबाद का ही प्रभाव है।जिन विधाओं में मैं कभी सोच भी नही सकती थी ,उनमे मैंने लिखा ,और आप सबने उसे सराहा तो मुझे लगा जैसे मैं फिर से कॉलेज वाले दिनों को जीने लगी हूँ। जो भी हो ,पर मैं इतना कह सकती हूं कि अगर मैं इस समूह दो तीन वर्ष पहले जुड़ती तो शायद मैं कही और भी अच्छा सृजन कर पाती पर जब जागो तभी सबेरा ,। हुआ कृतार्थ जन्म यह मेरा ,मुझको सम्हाला आपने ।
मैं तो गीली मिट्टी थी ,साँचें में ढाला आपने ।

मुजाहिद चौधरी ने कहा कि मुझे यह तो याद नहीं कि मैंने यह ग्रुप कब ज्वाइन किया,लेकिन यह अवश्य कहूंगा कि मेरे अंदर जो छुपा हुआ लेखक या कवि है, उसको ऊर्जा,उत्साह प्रेरणा और मंच देने का काम साहित्यिक मुरादाबाद ग्रुप ने किया है।   इस ग्रुप  से एक दिन के लिए भी अलग रहना एक सुअवसर,एक सम्मान खोने जैसा है ।

अखिलेश वर्मा ने अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्ति कुछ इस तरह व्यक्त की ----
 सबसे प्यारा मंच है , लगता है परिवार
छोटों से आदर मिले , मिले बड़ों से प्यार
मिले बड़ों से प्यार , विविधता इसकी न्यारी
नोंक झोंक तक़रार , कभी लगती है प्यारी
आदरणीय मनोज , सँजोये पाँच बरस से
कहो लगा के जोर , मंच प्यारा है सबसे ।

मयंक शर्मा ने कहा कि साहित्यिक मुरादाबाद में वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में नए रचनाकारों को साहित्य के गुर प्राप्त होते हैं और नए रचनाकारों को बुजुर्गों से अपनी लेखनी के परिमार्जन का अवसर मिलता है । समूह के प्रशासक आदरणीय डॉ मनोज रस्तोगी जी ने एक कुशल माली की तरह ये उपवन सजाया है, जहां साहित्य के वट वृक्षों की छाया तले भाँति-भाँति के फूलों को खिलने का अवसर प्राप्त हुआ है। साहित्यिक मुरादाबाद के रूप में साहित्य की हर विधा से जुड़े लोगों को एक सार्थक मंच मिला है, तो वहीं सप्ताह में एक दिन संगीत के माध्यम से स्वाद में बदलाव का भी अनूठा प्रयास है।

अनुराग रोहिला ने कहा कि 2-3  वर्ष पूर्व तक मैं अपने संगीत सफर में इतना व्यस्त रहा कि कुछ नया खास नहीं लिख पाया कि अचानक एक दिन पता नही कैसे मुझे साहित्यिक मुरादाबाद  ग्रुप के बारे में पता लगा मेने आदरणीय एडमिन श्री मनोज रस्तोगी जी को रिक्वेस्ट की के मुझे भी इस ग्रुप से जोड़ा जाए और उन्होंने मुझे अपने इस परिवार का हिस्सा बना लिया ! मेरी आकांक्षाए हिलोरे लेने लगी और सोई कलम जो अब तक सिर्फ भजन ही लिख रही थी वो हर विधा लिखने को मचलने लगी और मेरा सफर जो रुक से गया था एक बार फिर से अपनी गति पा गया इस साहित्यिक ग्रुप में मुझे पुनः वही प्रेम बड़प्पन और स्नेह मिला जिसके लिए में बेचैन रहता था मेरी कृतियों और रचनाओं  पर मुझे सभी का आशीर्वाद और मार्गदर्शन मिलने लगा ! जो एक बड़ी बात है । मेरी साहित्यिक यात्रा का सारा श्रेय साहित्यिक मुरादाबाद को जाता है !! हमारा ये परिवार इसी तरह आसमा की ऊंचाइयां छूता रहे यही मां शारदा से प्रार्थना है !

कशिश वारसी ने कहा कि  मैं ग्लोबल न्यूज़ का संपादक होने के नाते यह बात बड़ी जिम्मेदारी से कह रहा हूं यह हकीकत है कि ग्लोबल न्यूज़ का पेज नंबर तीन साहित्यिक मंच साहित्यिक मुरादाबाद की देन है।
इसके इसके अतिरिक्त डॉ अनिल शर्मा अनिल , सीमा वर्मा, रश्मि अग्रवाल, निवेदिता सक्सेना, सन्तोष कुमार शुक्ल संत, अतुल कुमार शर्मा , डॉ मक्खन मुरादाबादी और डॉ पूनम बंसल ने भी अपनी शुभकामनाएं व्यक्त कीं ।

शनिवार, 4 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार भारती रस्तौगी की दस ग़ज़लें ---- ये ली गईं हैं उनके काव्य संग्रह "खुशबू अहसास की" से । यह संग्रह पांच साल पहले वर्ष2015 में हरिगंगा प्रकाशन, बिजनौर से प्रकाशित हुआ था ।












मुरादाबाद की साहित्यकार सरिता लाल की 11 कविताएं----- ये कविताएं ली गई हैं उनके कविता संग्रह "अभिव्यक्ति" से । यह संग्रह गीतिका प्रकाशन बिजनौर द्वारा 19 साल पहले वर्ष 2001 में प्रकाशित हुआ था ।













✍️ सरिता लाल
37-ए, मधुबनी
कांठ रोड
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत

शुक्रवार, 3 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृतिशेष अम्बालाल नागर की कविता ---परोंठा




:::::प्रस्तुति::;:;;;
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नम्बर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर निवासी साहित्यकार भोलानाथ त्यागी की कविता ------- नमामि गंगे

जल है , तो कल है -
लेकिन अब तो
जलहीन हैं
नदियां
सूख गई हैं  संवेदनाएं -
आंखों का पानी भी ,
मर चुका है कभी का -
उम्मीद की मछलियां ,
तपते रेगिस्तान में
तलाशी जा रही हैं -
पानी ,
खुद पानी - पानी
हो रहा है ,
और , भविष्य -
कटे जंगलों में
शेष ठूंठों सा ,
बिलबिला रहा है /
नीरो -
पूर्वतः , बाँसुरी बजा
भस्मासुरी नृत्य में -
मगन है ,
नमामि गंगे का जयघोष -
मात्र ,
उपहास का पात्र
बन कर रह गया है ,
राजनीति के ,
विदूषकों की
खोखली जलभक्ति
और -
जलसमाधि लेते ,
आश्वासन ,
मृगमरीचिका बन
जल , तलाश रहें हैं -
मरुस्थल में ......

✍️ भोलानाथ त्यागी
 विनायकम
49 इमलिया परिसर 
सिविल लाइंस
बिजनौर 246701
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 70172 61904  , 94568 73005
                   

मुरादाबाद की साहित्यकार अस्मिता पाठक की कविता ------ माइग्रेन

उस वक्त
वह माईग्रेन के जैसा नहीं था
वह रोज़मर्रा बहती नदी से
धूसर सवालों
की तरह नहीं टकराता था
वह बस मेरा ही एक भाग था
उसमें न मस्तिष्क था और
न दर्द था

उन खुशनुमा दिनों में
कैंपस के पास
मामूली सी झाड़ियों के बीच से
फुदकते हुए
एक टांग वाली गौरैया हाथ से
ब्रेड छीनती थी
और मैं कॉफी, दोस्तों
और बेचैन आवाज़ों में
सोमवार को ढ़ूँढती थी....
उन दिनों
दिल्ली, देश और हवा
वैसे ही दिखते थे जैसे मैंने
किताबों में देखे थे
कागज़ की खुशबू में
वे खूबसूरत थे
वे रोचक थे
तब समझी
...कागजों में सब खूबसूरत होता है...

उन दिनों
वह माईग्रेन नहीं था
क्योंकि शायद
तब सवाल स्पष्ट नहीं थे
उन बारीक महीन सवालों से
खेलते हुए
उनके किनारे बड़े होने तक
वे विरोध पर थोपी हुई सरलता
में गिरकर
खो चुके थे...

✍️  अस्मिता पाठक
मुरादाबाद 244001

गुरुवार, 2 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार स्मृति शेष पुष्पेंद्र वर्णवाल के 11 गीत ------ ये उनके गीत-विगीत संग्रह 'प्रणय पर्वा' से लिए गए हैं। उनका यह संग्रह श्री पुष्पेंद्र वर्णवाल षष्टिपूर्ति अभिनंदन समिति मुरादाबाद द्वारा 14 वर्ष पूर्व वर्ष 2006 में प्रकाशित हुआ था













:::::::प्रस्तुति::::::::
डॉ मनोज रस्तोगी
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद मंडल के जनपद रामपुर निवासी साहित्यकार रवि प्रकाश का संस्मरण ---- जब काका हाथरसी रामपुर आये थे .....






रामपुर में काका हाथरसी नाइट : 8 फरवरी 1981
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काका हाथरसी हिंदी काव्य मंच के अत्यंत लोकप्रिय और सशक्त हस्ताक्षर थे। सारे भारत में आपके प्रशंसकों की संख्या लाखों में कही जा सकती है । ऐसे ही एक प्रशंसक रामपुर में सुन्दरलाल इंटर कॉलेज  के संस्थापक एवं प्रबंधक श्री राम प्रकाश सर्राफ थे । काका हाथरसी की काव्य शैली के आप प्रशंसक थे तथा रामपुर में काका हाथरसी को सुनने के इच्छुक थे। जब सुन्दरलाल इंटर कॉलेज की स्थापना के 25 वर्ष पूरे हुए तब आपने यह विचार किया कि क्यों न काका हाथरसी को रामपुर में आमंत्रित करके काका नाइट का आयोजन किया जाए और इस प्रकार अपने मनपसंद कवि को देर तक साक्षात सुनने का शुभ अवसर प्राप्त हो । इसी योजना के अंतर्गत दो दिवसीय काव्योत्सव आपने सुन्दरलाल इंटर कॉलेज के प्रांगण में आयोजित किया। पहले दिन 8 फरवरी 1981 को काका हाथरसी नाइट का आयोजन था तथा अगले दिन 9 फरवरी 1981 को बसंत पंचमी के दिन अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन रखा गया था ।
        कार्यक्रम के संचालन के लिए आपने श्री भगवान स्वरूप सक्सेना मुसाफिर से संपर्क किया । भगवान स्वरूप सक्सेना जी की मंच संचालन क्षमता बेजोड़ थी । आपकी गंभीर आवाज जो खनकदार गूँज पैदा करती थी , उसका कोई सानी नहीं था। आज भी आपकी आवाज का कोई दूसरा विकल्प दिखाई नहीं देता। आप सहज ही दोनों दिन के काव्य - समारोह का संचालन करने के लिए राजी हो गए। वास्तव में आपकी राम प्रकाश जी से बहुत निकटता तथा आत्मीयता रामपुर में जिला सूचना अधिकारी के पद पर कार्य करते हुए हो गई थी। आपका अक्सर दुकान पर आना , बैठना और बातचीत करते रहना चलता रहता था । अनेक बार आपके साथ आपकी बहन तथा आपकी माताजी भी साथ आ जाती थीं  और घर पर अत्यंत सहज रीति से घुलमिल जाती थी । आप मंच संचालन की अद्वितीय  क्षमता के साथ-साथ एक अच्छे लेखक और कवि भी थे । पुस्तक "नर्तकी" आपके शब्द चित्रों का  एक संग्रह है जिसे गद्य और पद्य का मिलन स्थल कह सकते हैं । तत्काल समारोहों का संचालन करने की जैसी खूबी आपने थी वैसी किसी में नहीं थी । राम प्रकाश जी के दर्जनों समारोहों में आप ने मंच को सुशोभित किया था । कवि सम्मेलन तथा काका नाइट में आपके मंच संचालन से चार चाँद लग गए ।
        किन कवियों को बुलाया जाए तथा काका हाथरसी से किस प्रकार से संपर्क किया जाए, इसके लिए रामप्रकाश जी ने विद्यालय के हिंदी प्रवक्ता डॉ चंद्र प्रकाश सक्सेना कुमुद जी से वार्तालाप किया । चंद्र प्रकाश जी न केवल विद्यालय के हिंदी प्रवक्ता थे ,बल्कि हिंदी के बड़े भारी विद्वान थे । कवि और कहानीकार भी थे। आपने संपर्क ढूंढ लिए और इस प्रकार अच्छे कवियों की व्यवस्था काका नाइट के अगले दिन के लिए भी हो गई ।
       मुरादाबाद से प्रोफेसर महेंद्र प्रताप विशेष रूप से कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए आमंत्रित किए गए । आप चंद्र प्रकाश सक्सेना जी के गुरु भी रहे थे । इसके अलावा अलीगढ़ से डॉ रवींद्र भ्रमर  ,लखनऊ से डॉक्टर लक्ष्मी शंकर मिश्र निशंक ,बरेली से श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना, बदायूँ से डॉ.उर्मिलेश ,श्री मोहदत्त साथी , श्री नरेंद्र गरल तथा दिल्ली से श्री अशोक चक्रधर ने कवि सम्मेलन में पधार कर अपनी उपस्थिति से वातावरण को रसमय कर दिया था ।
         काका हाथरसी नाइट में  काका अपने साथ डॉ. वीरेंद्र तरुण  को भी लाए थे।  उनका भी काव्य पाठ  आकर्षक रहा था । काका हाथरसी की  हास्यरस से भरी हुई  कुंडलियाँ  अपने आप में अनूठी थीं।  सहज सरल भाषा  और  देसी मुहावरों से रची - बसी उनकी कविताएँ  जनता के हृदय को स्पर्श करती थीं। रामपुर के सार्वजनिक जीवन में अभी भी वह काव्य - उत्सव स्मृतियों में सजीव है।

 ✍️ रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1

बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद की साहित्यकार इला सागर रस्तोगी की लघुकथा ------नियुक्ति

 
        बेटे अरविन्द को सरकारी नौकरी नहीं मिल पाने के कारण मोहन बहुत परेशान था। वह सोचता कि स्वयं सरकारी ऑफिस में बाबू होने पर भी अपने बेटे के लिए कुछ नहीं कर पाता। करता भी कैसे जनरल क्लास का जो ठहरा और पगार भी इतनी नहीं थी कि रिश्वत दे सके व न ही अरविन्द इतनी तीक्ष्णबुद्धि का था कि सर्वोत्तम अंक ला सके। वह अरविन्द को दुकान खुलवाने की सोचने लगा परन्तु सरकारी नौकरी के बिना न मान सम्मान मिलेगा न ही अच्छे घर की लड़की वह यह भी भलीभांति जानता था। यही सब सोचते हुए वह अखबार के पन्ने पलट रहा था कि तभी उसकी नजर एक खबर पर पड़ी। "पिता की मृत्यु हो जाने के कारण बेटे को पिता के पद पर नियुक्त किया गया।"
कुर्सी से उठ वह सीधा रेलवे ट्रैक की ओर गया, तेजी से उसकी ओर आती ट्रेन का जोरदार हॉर्न भी उसका इरादा नहीं बदल सका। उसकी आँखें आंसुओं से भीगी थी पर उम्मीद की एक किरण जगमगा रही थी।

 ✍️इला सागर रस्तोगी
मुरादाबाद

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी --- कड़वा अनुभव-


      ‘’रमेश की माँ जो-जो सामान तुमने बताया था सब ले आया। ‘’सोहनलाल ने अपनी पत्नी कांता से कहा। अरे गुड़ फिर ले आए अभी तो लाए थे, कुछ भी मंगाओ बाज़ार से गुड़ ज़रूर आता है,  आपका। कांता ने ग़ुस्से में कहा।अरे भागवान, गुड़ पाचन में अच्छा होता है, खाने के साथ सबको खाना चाहिए और बहु रुचि को भी कितना पसंद है, रमेश आएगा इसबार तो ढेर सारा दे देना, मेरठ के गुड़ की बात ही अलग है। दिल्ली में कहाँ अच्छा गुड़ मिलता है। सोहनलाल अध्यापक पद से रिटायर होकर मेरठ के शांतकुंज में बने निज निवास में पत्नी कांता के साथ रहते थे। बेटा रमेश जिसने दिल्ली में अपने साथ ही कम्पनी में नौकरी करने वाली रुचि से शादी कर ली। वह अपनी पत्नी रुचि के साथ दिल्ली में सेटल हो गया।
सोहनलाल दिल्ली की महँगाई से वाक़िफ़ था इसलिए वह रमेश से कहता था कि घर का ज़रूरी सामान यही से ले जाया करो, रुचि के लिए तो वह स्पेशल गुड़ बनवाकर देता। एक दिन सोहनलाल को पैरालिसिस अटैक आया। इलाज के लिए रमेश बाबूजी को दिल्ली ले आया ।अटैक के कारण सोहनलाल न बोल पाए, न चल पाए। डाक्टर ने कहा इलाज लम्बा चलेगा तो वह माँ को भी दिल्ली ले आया। रमेश और रुचि दोनो कम्पनी चले जाते। घर पर सोहनलाल और कांता रह जाते। कांता सोहनलाल को अपने हाथो से खाना खिलाती।  खाने के साथ  गुड़ वह उन्हें नियम से देती। ’’रुचि बेटा मेरठ से जो गुड़ लाए थे वो तो ख़त्म हो गया तुम्हारे बाबूजी तो गुड़ के बिना रह नही पाते। यही से देख लेना ‘’ कांता ने रुचि से कहा।’’ इतनी जल्दी ख़त्म हो गया यहा दिल्ली में गुड़ बहुत महँगा है ‘’रुचि ने कहा। बेटी ले आना थोड़ा दे दिया करूँगी। रुचि बिना जवाब दिए काम पर चली गयी। ’’बेटी मिल गया क्या गुड़ आज तो तेरे बाबूजी ने खाना भी नही खाया ‘’शाम को कांता ने रुचि से कहा। ’’नहीं मिला’’ रुचि ने रूखेपन से जवाब दिया।सोहनलाल ने ज़िंदगी में बिना गुड़ के कभी खाना खाया हो, कांता को याद नही और आज इस हालत में वह उससे वंचित है। ये बात कांता को अंदर से दुखी कर रही थी। टर्न टर्न फ़ोन की घंटी बजी.... कांता ने फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ़ रमेश ने कहा कि माँ गीज़र वाले का नम्बर मेरी अलमारी में रखा है ज़रा मुझे बता दो। वैसे कांता बहु बेटे के कमरे में जाती नहीं थी। फ़ोन नम्बर के लिए उसने अलमारी खोली और काग़ज़ पर लिखा फ़ोन नम्बर रमेश को नोट करा दिया। फ़ोन रखने के बाद एकदम उसे ऐसा लगा जैसे उसने अलमारी में कुछ देखा है। घर में कोई नहीं था फिर भी उसका दिल बहू बेटे के कमरे की तरफ़ जाते हुए ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था उसने अलमारी खोली पीछे उसी बड़े डिब्बे में गुड़ रखा था जो उन्होने  मेरठ से भिजवाया था। कांता ने डरते डरते डिब्बे में से एक डली निकालकर पल्लू में छुपा ली और चुपचाप सोहनलाल के पास आकर बैठ गयी। उसका रंग पीला पड़ गया था। वह ख़ुद को अपराधी महसूस कर रही थी कि अपने ही घर में ........... सोहनलाल की आँखो से कांता जान गयी थी कि वह पूछना चाह रहे है कि क्या हुआ। शांता ने पल्लू हटाकर सोहनलाल को कहा कि आपकी बेटी समान बहू आपके लिए गुड़ ले आयी। सोहनलाल सब समझ गया। सोहनलाल ने इशारों से कहा कि जाओ इसे वही रख आओ। आज उस पल्लू में रखे गुड़ को देखकर दोनो की आँखे भीग गयी। ज़िंदगी भर जीवन में मिठास घोलने वाला गुड़ उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें कड़वा अनुभव दे गया।

✍️ प्रीति चौधरी
शिक्षिका
राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, हसनपुर, जनपद अमरोहा

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी---- बाल मिठाई


    ... बस हरे भरे पर्वतों के बीच से हिचकोले खाती हुई चली जा रही थी मोड़ पर मोड़ आते  जा रहे थे लगता था जैसे किसी हिंडोले में बैठे हों.... दोनों ही ओर बहुत सुंदर पहाड़ी दृश्य थे इनके बीच से सर्पीली सड़क पर बस तेजी से आगे बढ़ रही थी ...आदि और अनीता प्यार और उल्लास में डूबे अलौकिक आनंद का अनुभव कर रहे थे उन दोनों की नयी नयी शादी हुई थी और वे आदि के मित्र दिलीप के साथ अल्मोड़ा जा रहे थे दिलीप पंत की अल्मोड़ा में ननिहाल थी ननिहाल में सब आदि को अपना ही बच्चा मानते थे और आदि और अनीता उन्हीं के बुलावे पर अल्मोड़ा जा रहे थे के.एम.ओ की बस में बड़ी घिचपिच थी और भीड़ के कारण सामान का भी लोगों को ठीक से ध्यान नहीं हो पा रहा था.... हल्द्वानी से चलकर बस गर्म पानी में रुकी फिर अल्मोड़ा के पास बस दोबारा रुकी तभी अनीता ने देखा कि उसकी अटैची गायब है आपस में बात करने पर पता लगा कि हल्द्वानी छूट गई यह देखकर आदि और अनीता सकते में आ गए क्योंकि अटैची में कपड़ों के साथ साथ कुछ कीमती जेवर और करीब ₹10000 भी थे जिनका अब मिलना बहुत मुश्किल था सारा मजा खराब हो गया रास्ते में कुछ  ठीक से खाया पिया भी नहीं गया तभी दिलीप पंत ने आदि से कहा कि मैं अटैची लेने हल्द्वानी वापस जा रहा हूं आप लोग अल्मोड़ा पहुंचो पंत दूसरी बस से हल्द्वानी के लिए लौट गया बस अल्मोड़ा पहुंच गई रात हो चुकी थी बाकी बचे हुए सामान के साथ आदि और अनीता दिलीप के ननिहाल में पहुंचे सब को बड़ी चिंता हो रही थी ,,अरे! दिलीप नहीं आया!,, घर में प्रवेश करते ही मामा जी ने कहा तो आदि ने बताया कि इस तरह से अटैची छूट गयी उसी को वापस लेने हल्द्वानी लौट गया है सभी यही सोच रहे थे कि नहीं मिलेगी सबने खाना खाया रात के 1:00 बजे घर पर दस्तक हुई दिलीप लौट आया था परंतु अटैची नहीं मिली सभी बहुत परेशान थे ....अनीता के पास तो पहनने को कपड़े भी नहीं थे अब अटैची मिलने का कोई प्रश्न ही नहीं था.... ....जैसे-तैसे सुबह हुई एक व्यक्ति गेट पर आया आने वाला जिसका नाम जगदीश पांडेय था मामा जी से कुछ बातें कर रहा था,, आपके यहां कुछ मेहमान आए हैं,,,?,, मामा जी ने कहा,, हां,, उनकी अटैची हल्द्वानी बस स्टैंड पर छूट गई थी?... हां !..... तब तक घर के सभी लोग गेट पर पहुंच गए थे.... आदि और अनीता को अटैची देखकर बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ जगदीश ने बाकायदा पूरी लिस्ट बनाई हुई थी ..  एक एक चीज पूछ कर संतुष्ट होने पर ही उसने अटैची वापस की  कपड़े तक पहचानने के बाद ही जगदीश की संतुष्टि हुई अनीता ने कहा ,,भैया इसमें कुछ पैसे भी थे,,,,और भी कुछ था ?उसनेे पूछा ,,भैया उसमें मेरे कंगन और माथे का टीका भी थे,, जगदीश ने एक-एक सामान वापस कर दिया और बताया यदि अटैची में यहां का पता लिखा कार्ड नहीं होता तो मैं आ भी नहीं पाता ....सभी ने उसका धन्यवाद किया अनीता ने खासतौर से कहा,, भैया बहुत-बहुत धन्यवाद,, जगदीश ने कहा,,भाई कहा है तो धन्यवाद कैसा ,,?  दिलीप ने कहा कुछ तो लेना पड़ेगा ₹1000 देने की कोशिश की परंतु जगदीश ने कुछ भी नहीं लिया ।
       1 सप्ताह बाद वे लोग घर लौटने लगे..... बस में  खिड़की की तरफ अनीता बैठी हुई थी तभी ...अचानक जगदीश दिखाई पड़ा उसके हाथ में एक मिठाई का डिब्बा था अनीता को देते हुए उसने कहा लो दीदी ! रास्ते के लिए इसमें कुछ मीठा है..... वह बाल मिठाई का खूबसूरत डिब्बा था तत्काल ही बस चल दी दूर तक जगदीश हाथ हिलाते हुए दिखाई देता रहा.... अनीता को उसमें अपने भाई की छवि ही नजर ... आ रही थी ..
           अब जब भी कहीं बाल मिठाई दिखाई देती है अनीता को वही घटना याद आ जाती है.. सचमुच पूरी घटना काल्पनिक लगती है .... परंतु यह सत्य कथा है।

✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
82 188 25 541

मुरादाबाद की साहित्यकार डॉ श्वेता पूठिया की लघु कथा ----- तलाक


आज न्यायालय में उपस्थित जज़ साहब भी आश्चर्य थे जब उन्होंने सुना कि शादी के 28 साल बाद उर्मिला ने अपने पति से तलाक लेने हेतु मुकदमा डाला है।समाज के वे एक खशहाल परिवार के रुप में माने जाते थे।
       जज़ साहब बोले," एक बार सोच लीजिए "।उर्मिला बोली ,"सोच कर ही किया है श्रीमान।जब इनके विवाहेत्तर सम्बध को साक्षात अपनी आँखों से देखा था उसी दिन इन्हें छोडने का निश्चय कर लिया था ।मगर  परिवार की इज्ज़त का वास्ते कुछ न कर सकी।किन्तु मन से अपना न सकी।समाज के तलाक शुदा के बच्चों के प्रति व्यवहार जानते हुए,हम दोनों ने अलग अलग कक्षो मे रहने का फैसला लिया।और एक सहमति पत्र बना लिया था।आज मेरी बेटी की भी शादी हो चुकी है। बेटा भी अच्छे पद पर काम कर रहा है।आज वो मेरी स्थिति को समझ सकते है।उन्हें भी आपत्ति नहीं है। अपने समस्त उत्तरदायित्व मैने निबाहे है ।अब अपने सम्मान केसाथ जीना चाहती हूं।जज़ साहब पिछले 20वर्षों से केवल दिखावे के रिश्ते से आजादी चाहती हूँ।"

✍️ डा.श्वेता पूठिया
मुरादाबाद