बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद मंडल के जनपद अमरोहा निवासी साहित्यकार प्रीति चौधरी की कहानी --- कड़वा अनुभव-


      ‘’रमेश की माँ जो-जो सामान तुमने बताया था सब ले आया। ‘’सोहनलाल ने अपनी पत्नी कांता से कहा। अरे गुड़ फिर ले आए अभी तो लाए थे, कुछ भी मंगाओ बाज़ार से गुड़ ज़रूर आता है,  आपका। कांता ने ग़ुस्से में कहा।अरे भागवान, गुड़ पाचन में अच्छा होता है, खाने के साथ सबको खाना चाहिए और बहु रुचि को भी कितना पसंद है, रमेश आएगा इसबार तो ढेर सारा दे देना, मेरठ के गुड़ की बात ही अलग है। दिल्ली में कहाँ अच्छा गुड़ मिलता है। सोहनलाल अध्यापक पद से रिटायर होकर मेरठ के शांतकुंज में बने निज निवास में पत्नी कांता के साथ रहते थे। बेटा रमेश जिसने दिल्ली में अपने साथ ही कम्पनी में नौकरी करने वाली रुचि से शादी कर ली। वह अपनी पत्नी रुचि के साथ दिल्ली में सेटल हो गया।
सोहनलाल दिल्ली की महँगाई से वाक़िफ़ था इसलिए वह रमेश से कहता था कि घर का ज़रूरी सामान यही से ले जाया करो, रुचि के लिए तो वह स्पेशल गुड़ बनवाकर देता। एक दिन सोहनलाल को पैरालिसिस अटैक आया। इलाज के लिए रमेश बाबूजी को दिल्ली ले आया ।अटैक के कारण सोहनलाल न बोल पाए, न चल पाए। डाक्टर ने कहा इलाज लम्बा चलेगा तो वह माँ को भी दिल्ली ले आया। रमेश और रुचि दोनो कम्पनी चले जाते। घर पर सोहनलाल और कांता रह जाते। कांता सोहनलाल को अपने हाथो से खाना खिलाती।  खाने के साथ  गुड़ वह उन्हें नियम से देती। ’’रुचि बेटा मेरठ से जो गुड़ लाए थे वो तो ख़त्म हो गया तुम्हारे बाबूजी तो गुड़ के बिना रह नही पाते। यही से देख लेना ‘’ कांता ने रुचि से कहा।’’ इतनी जल्दी ख़त्म हो गया यहा दिल्ली में गुड़ बहुत महँगा है ‘’रुचि ने कहा। बेटी ले आना थोड़ा दे दिया करूँगी। रुचि बिना जवाब दिए काम पर चली गयी। ’’बेटी मिल गया क्या गुड़ आज तो तेरे बाबूजी ने खाना भी नही खाया ‘’शाम को कांता ने रुचि से कहा। ’’नहीं मिला’’ रुचि ने रूखेपन से जवाब दिया।सोहनलाल ने ज़िंदगी में बिना गुड़ के कभी खाना खाया हो, कांता को याद नही और आज इस हालत में वह उससे वंचित है। ये बात कांता को अंदर से दुखी कर रही थी। टर्न टर्न फ़ोन की घंटी बजी.... कांता ने फ़ोन उठाया तो दूसरी तरफ़ रमेश ने कहा कि माँ गीज़र वाले का नम्बर मेरी अलमारी में रखा है ज़रा मुझे बता दो। वैसे कांता बहु बेटे के कमरे में जाती नहीं थी। फ़ोन नम्बर के लिए उसने अलमारी खोली और काग़ज़ पर लिखा फ़ोन नम्बर रमेश को नोट करा दिया। फ़ोन रखने के बाद एकदम उसे ऐसा लगा जैसे उसने अलमारी में कुछ देखा है। घर में कोई नहीं था फिर भी उसका दिल बहू बेटे के कमरे की तरफ़ जाते हुए ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था उसने अलमारी खोली पीछे उसी बड़े डिब्बे में गुड़ रखा था जो उन्होने  मेरठ से भिजवाया था। कांता ने डरते डरते डिब्बे में से एक डली निकालकर पल्लू में छुपा ली और चुपचाप सोहनलाल के पास आकर बैठ गयी। उसका रंग पीला पड़ गया था। वह ख़ुद को अपराधी महसूस कर रही थी कि अपने ही घर में ........... सोहनलाल की आँखो से कांता जान गयी थी कि वह पूछना चाह रहे है कि क्या हुआ। शांता ने पल्लू हटाकर सोहनलाल को कहा कि आपकी बेटी समान बहू आपके लिए गुड़ ले आयी। सोहनलाल सब समझ गया। सोहनलाल ने इशारों से कहा कि जाओ इसे वही रख आओ। आज उस पल्लू में रखे गुड़ को देखकर दोनो की आँखे भीग गयी। ज़िंदगी भर जीवन में मिठास घोलने वाला गुड़ उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें कड़वा अनुभव दे गया।

✍️ प्रीति चौधरी
शिक्षिका
राजकीय बालिका इण्टर कॉलेज, हसनपुर, जनपद अमरोहा

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