बुधवार, 1 जुलाई 2020

मुरादाबाद के साहित्यकार अशोक विद्रोही की कहानी---- बाल मिठाई


    ... बस हरे भरे पर्वतों के बीच से हिचकोले खाती हुई चली जा रही थी मोड़ पर मोड़ आते  जा रहे थे लगता था जैसे किसी हिंडोले में बैठे हों.... दोनों ही ओर बहुत सुंदर पहाड़ी दृश्य थे इनके बीच से सर्पीली सड़क पर बस तेजी से आगे बढ़ रही थी ...आदि और अनीता प्यार और उल्लास में डूबे अलौकिक आनंद का अनुभव कर रहे थे उन दोनों की नयी नयी शादी हुई थी और वे आदि के मित्र दिलीप के साथ अल्मोड़ा जा रहे थे दिलीप पंत की अल्मोड़ा में ननिहाल थी ननिहाल में सब आदि को अपना ही बच्चा मानते थे और आदि और अनीता उन्हीं के बुलावे पर अल्मोड़ा जा रहे थे के.एम.ओ की बस में बड़ी घिचपिच थी और भीड़ के कारण सामान का भी लोगों को ठीक से ध्यान नहीं हो पा रहा था.... हल्द्वानी से चलकर बस गर्म पानी में रुकी फिर अल्मोड़ा के पास बस दोबारा रुकी तभी अनीता ने देखा कि उसकी अटैची गायब है आपस में बात करने पर पता लगा कि हल्द्वानी छूट गई यह देखकर आदि और अनीता सकते में आ गए क्योंकि अटैची में कपड़ों के साथ साथ कुछ कीमती जेवर और करीब ₹10000 भी थे जिनका अब मिलना बहुत मुश्किल था सारा मजा खराब हो गया रास्ते में कुछ  ठीक से खाया पिया भी नहीं गया तभी दिलीप पंत ने आदि से कहा कि मैं अटैची लेने हल्द्वानी वापस जा रहा हूं आप लोग अल्मोड़ा पहुंचो पंत दूसरी बस से हल्द्वानी के लिए लौट गया बस अल्मोड़ा पहुंच गई रात हो चुकी थी बाकी बचे हुए सामान के साथ आदि और अनीता दिलीप के ननिहाल में पहुंचे सब को बड़ी चिंता हो रही थी ,,अरे! दिलीप नहीं आया!,, घर में प्रवेश करते ही मामा जी ने कहा तो आदि ने बताया कि इस तरह से अटैची छूट गयी उसी को वापस लेने हल्द्वानी लौट गया है सभी यही सोच रहे थे कि नहीं मिलेगी सबने खाना खाया रात के 1:00 बजे घर पर दस्तक हुई दिलीप लौट आया था परंतु अटैची नहीं मिली सभी बहुत परेशान थे ....अनीता के पास तो पहनने को कपड़े भी नहीं थे अब अटैची मिलने का कोई प्रश्न ही नहीं था.... ....जैसे-तैसे सुबह हुई एक व्यक्ति गेट पर आया आने वाला जिसका नाम जगदीश पांडेय था मामा जी से कुछ बातें कर रहा था,, आपके यहां कुछ मेहमान आए हैं,,,?,, मामा जी ने कहा,, हां,, उनकी अटैची हल्द्वानी बस स्टैंड पर छूट गई थी?... हां !..... तब तक घर के सभी लोग गेट पर पहुंच गए थे.... आदि और अनीता को अटैची देखकर बड़ा सुखद आश्चर्य हुआ जगदीश ने बाकायदा पूरी लिस्ट बनाई हुई थी ..  एक एक चीज पूछ कर संतुष्ट होने पर ही उसने अटैची वापस की  कपड़े तक पहचानने के बाद ही जगदीश की संतुष्टि हुई अनीता ने कहा ,,भैया इसमें कुछ पैसे भी थे,,,,और भी कुछ था ?उसनेे पूछा ,,भैया उसमें मेरे कंगन और माथे का टीका भी थे,, जगदीश ने एक-एक सामान वापस कर दिया और बताया यदि अटैची में यहां का पता लिखा कार्ड नहीं होता तो मैं आ भी नहीं पाता ....सभी ने उसका धन्यवाद किया अनीता ने खासतौर से कहा,, भैया बहुत-बहुत धन्यवाद,, जगदीश ने कहा,,भाई कहा है तो धन्यवाद कैसा ,,?  दिलीप ने कहा कुछ तो लेना पड़ेगा ₹1000 देने की कोशिश की परंतु जगदीश ने कुछ भी नहीं लिया ।
       1 सप्ताह बाद वे लोग घर लौटने लगे..... बस में  खिड़की की तरफ अनीता बैठी हुई थी तभी ...अचानक जगदीश दिखाई पड़ा उसके हाथ में एक मिठाई का डिब्बा था अनीता को देते हुए उसने कहा लो दीदी ! रास्ते के लिए इसमें कुछ मीठा है..... वह बाल मिठाई का खूबसूरत डिब्बा था तत्काल ही बस चल दी दूर तक जगदीश हाथ हिलाते हुए दिखाई देता रहा.... अनीता को उसमें अपने भाई की छवि ही नजर ... आ रही थी ..
           अब जब भी कहीं बाल मिठाई दिखाई देती है अनीता को वही घटना याद आ जाती है.. सचमुच पूरी घटना काल्पनिक लगती है .... परंतु यह सत्य कथा है।

✍️ अशोक विद्रोही
 412 प्रकाश नगर
 मुरादाबाद
82 188 25 541

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